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27/08/2023

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18/08/2023
नारदमुनी की इन बातों से - क्यों लोगों के जीवन में हो रही है पैसों की बरसातएक बार की बात है कि.एक आदमी ने नारदमुनि से पूछ...
16/08/2023

नारदमुनी की इन बातों से - क्यों
लोगों के जीवन में हो रही है पैसों की बरसात

एक बार की बात है कि.एक आदमी ने नारदमुनि से पूछा मेरे भाग्य में कितना धन है ? नारदमुनि ने कहा- भगवान विष्णु से पूछकर कल बताऊंगा | नारदमुनि ने कहा. 1 रुपये रोज तुम्हारे भाग्य में है। आदमी बहुत खुश रहने लगा, उसकी जरूरते 1 रूपये में पूरी हो जाती थी।
एक दिन उसके मित्र ने कहा में तुम्हारे सादगी जीवन
और खुश देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ
आदमी ने कहा मेरी कमाई 1 रुपया रोज की है इसको ध्यान में रखना। इसी में से ही गुजर बसर करना पड़ेगा तुम्हारी बहन को । मित्र ने कहा कोई बात नहीं मुझे रिश्ता मंजूर है।
अगले दिन से उस आदमी की कमाई 11 रुपया हो गई। उसने नारदमुनि से पूछा की हे मुनिवर मेरे भाग्य में 1 रूपये लिखा है फिर 11 रुपये क्यो मिल रहे है ? नारदमुनि ने कहा- तुम्हारा किसी से रिश्ता या सगाई हुई है क्या? हाँ हुई है, उसने जवाब दिया । तो यह तुमको 10 रुपये उसके भाग्य के मिल रहे है, इसको जोड़ना शुरू करो तुम्हारे विवाह में काम आएँगे - नारद जी ने जवाब दिया।
एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी कमाई 31 रूपये होने लगी। फिर उसने नारदमुनि से पूछा है मुनिवर मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रूपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रूपये क्यों मिल रहे है। क्या मै कोई अपराध कर रहा हूँ या किसी त्रुटिवश ये हो रहा है? मुनिवर ने कहा- यह तेरे बच्चे के भाग्य के 20 रुपये मिल रहे है।
हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है। किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है हमको नहीं पता। लेकिन मनुष्य अहंकार करता है कि मैने बस मैंने कमाया, मेरा है, मेरी मेहनत है, मैं कमा रहा हूँ, मेरी वजह से हो रहा है। मगर वास्तव में किसी को पता नहीं की हम किसके भाग्य का खा रहे हैं, इसलिए उपलब्धियों पर अहंकार कभी नहीं करना चाहिए।

जय श्री राधे राधे

Good morning 🙏🌹
10/08/2023

Good morning 🙏🌹

*दुनिया मे सबसे शक्तिशाली मनुष्य की वाणी है* *जो हथियार उठाये बिना क्रांति करवा सकती है* *और परिश्रम किए बिना शांति।।* 🌴...
07/08/2023

*दुनिया मे सबसे शक्तिशाली मनुष्य की वाणी है* *जो हथियार उठाये बिना क्रांति करवा सकती है* *और परिश्रम किए बिना शांति।।*
🌴 🙏🏼प्रातः नमन🙏🏼🌴

ऐसा सैनिक जो शहीद होने के बाद भी कर रहा देश की सीमा की सुरक्षा, जानिए आप भीशायद आप भी विश्वास नहीं करेंगे कि कोई सैनिक श...
03/08/2023

ऐसा सैनिक जो शहीद होने के बाद भी कर रहा देश की सीमा की सुरक्षा, जानिए आप भी
शायद आप भी विश्वास नहीं करेंगे कि कोई सैनिक शहीद होने के बाद भी सीमा की रखवाली करता होगा। सिक्किम में ऐसा माना जाता है।
सिक्किम जानेवाले लोगों को बाबा हरभजन की समाधि का दर्शन जरूर करना चाहिए। यहां आपको ऐसी बात सुनने को मिलेगी, जिस पर सहसा विश्वास तो नहीं ही करेंगे। भारतीय सैनिक रहे बाबा हरभजन के बारे में कहा जाता है कि वे आज भी भारत-चीन की सीमा पर गश्त करते हैं। यह चीनी और भारतीय दोनों सेनाओं को महसूस भी होता है।
अंतिम सांस तक देश के लिए लड़ते हुए बहुतेरे भारतीय सैनिकों की गाथाओं को सुना और पढ़ा भी है। यहां एक ऐसे जाबांज के बारे में बता रहे हैं, जो शहीद होने के बाद भी 1968 से लगातार भारतीय सीमा की सुरक्षा करता है। यह बिल्कुल विश्वास करने लायक नहीं है, लेकिन भारतीय सेना को यह पक्का यकीन है। इसी कारण उनकी समाधि पर प्रतिदिन प्रेस की हुई उनकी ड्रेस रख दी जाती है। अगले दिन वह ऐसी लगती है, मानो किसी ने पहनी हो।
गंगटोक से 25 किलोमीटर दूर छांगू लेक और नाथुला बॉर्डर के बीच मे पडऩे वाली यह समाधि गवाह है उस विश्वास की, जिसे आज भी यहां तैनात सैनिक सच मानते हैं। बात 1968 की है। हरभजन सिंह पंजाब रेजिमेंट के एक सिपाही थे। उनकी नियुक्ति यहां इंडो-चाइना बॉर्डर पर थी। एक दिन हरभजन सिंह पेट्रोलिंग करते हुए पानी की एक तेज धारा में बह गए और उनकी वहीं मृत्यु हो गई।
कुछ दिन बाद वह अपने एक साथी के सपने में आए और समाधि बनाने की बात कही। सेना के जवानों ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए मिलकर यहां उनकी समाधि बनाई। कहते हैं कि बाबा हरभजन की आत्मा आज भी बॉर्डर पर पेट्रोलिंग करती है और उनकी उपस्थिति का अनुभव हिंदुस्तानी ही नहीं, चीनी सैनिकों को भी होता है। आज इस घटना को कितने साल बीत चुके हैं लेकिन आज भी यहां के लोग मानते हैं कि बाबा जीवित हैं और यहां उनका कमरा बना हुआ है, जिसमें उनकी यूनिफॉर्म रोज प्रेस करके लटकाई जाती है जो कि अगले दिन पहनी हुई हालत में मिलती है।
समुद्र तल से 13000 फीट की ऊंचाई पर बाबा हरभजन की समाधि के दर्शन किए जा सकते हैं। चारों ओर से पहाड़ों से घिरी यह समाधि एक रमणीक स्थल है। यहां सैलानियों के लिए एक कैफे और सोवेनियर शॉप भी मौजूद है।
कहते हैं नाथू ला दर्रे में बाबा के नाम पर एक कमरा आज भी सुसज्जित है। यह कमरा अन्य सामान्य कमरों की तरह प्रतिदिन साफ किया जाता है, बिस्तर लगाया जाता है, हरभजन सिंह की सेना की वर्दी और उनके जूते रखे जाते हैं। कहते हैं रोज सुबह इन जूतों में कीचड़ के निशान पाए जाते हैं। माना जाता है कि बाबा सेना की अपनी पूरी जिम्मेदरी निभाते हैं। कहते हैं कि बाबा की मान्यता सिर्फ भारतीय सेना में नहीं, बल्कि बॉर्डर पर तैनात चीनी सेना में भी है। जब भी नाथू ला पोस्ट में चीनी-भारतीय सेना की फ्लैग मीटिंग होती है तो चीनी सेना एक कुर्सी हरभजन सिंह उर्फ बाबा के लिए भी लगाती है।
30 अगस्त 1946 को जन्मे बाबा हरभजन सिंह, 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे। 1968 में वो 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में सेवारत थे। 4 अक्टूबर 1968 को खच्चरों का काफिला ले जाते वक्त पूर्वी सिक्किम के नाथू ला पास के पास उनका पांव फिसल गया और घाटी में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई।
जय hind......

सोमवार के व्रत में जरूर सुनें ये कथा, मिलेगी श‍िव-पार्वती की कृपाएक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था. उसके...
29/07/2023

सोमवार के व्रत में जरूर सुनें ये कथा, मिलेगी श‍िव-पार्वती की कृपा
एक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था. उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इस कारण वह बहुत दुखी था. पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था.
उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया. पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि 'हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है.' लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई.

माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी. माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था. उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख. वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा.

कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ. जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया. साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना. जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना.
दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े. रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था. लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था. राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची.

साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया. उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं. विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा. लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया. लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था. उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी.

उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि 'तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है. मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं.'
जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई. राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई. दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया. जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया. लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है. मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ.

शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए. मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया. संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे. पार्वती ने भगवान से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा. आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें. जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया. अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है. लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे.
माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया. शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया. शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया. दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था. उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया. उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया.

इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए. उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है. इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

सुहागिन स्त्रियां जानें अनजाने में सिंदूर से जुड़ीकर बैठती हैं ये गलतियां जिसे शास्त्रों में माना जाता हैं अशुभ आइये शुरू...
27/07/2023

सुहागिन स्त्रियां जानें अनजाने में सिंदूर से जुड़ी
कर बैठती हैं ये गलतियां जिसे शास्त्रों में माना जाता हैं अशुभ

आइये शुरू करते हैं हिंदू संस्कृति में सिंदूर से जुड़ी ये बाते
सिंदूर सुहाग का प्रतीक माना गया है. सुहागिन स्त्रियां जानें अनजाने में सिंदूर से जुड़ी कुछ ऐसी गलतियां कर बैठती है जिसे शास्त्रों में अशुभ माना जाता है. शास्त्रों में सिंदूर लगाते वक्त क्या सावधानियां बरती चाहिए इसका वर्णन किया है, सिंदूर के नियमों की अनदेखी कई पति-पत्नी के लिए परेशानियों का सबब बन सकती है.
जिनमें हैं
नंबर 1-
शास्त्रों के अनुसार महिलाओं को दूसरी स्त्रिओं से उधार मांगकर सिंदूर नहीं लगाना चाहिए. ऐसा करना अशुभ माना जाता है. साथ ही अपना सिंदूर भी किसी को न दें. मान्यता है कि इससे पति का सौभाग्य दुर्भाग्य में बदल सकता है.
नंबर 2-
सिंदूर हमेशा मांग के बीचों-बीच लगाएं, सिंदूर लगाने के बाद इसे बालों से छिपाए नहीं. शास्त्रों के अनुसार ऐसा करने से पति को जीवन में असफलता का सामना करना पड़ सकता है. इससे पति-पत्नी के रिश्ते में तनाव पैदा होता है.
नंबर 3-
अक्सर महिलाएं बाल धोने के तुरंत बाद सिंदूर लगा लेती है जो शास्त्रों के अनुसार अनुचित है. इससे सिंदूर फैल सकता है. ऐसा करने पर नकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं और पति को धन हानि झेलनी पड़ सकती है
नंबर 4-
सिंदूर लगाने का तरीका पति के जीवन को प्रभावित करता है, इसलिए जरूरी है कि विवाहित महिलाएं सही विधि से मांग में भरें ताकि पति पर कोई आंच न आए

नागपंचमी की सबसे प्राचीन कथा : जब नागदेव बने भाईप्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबस...
27/07/2023

नागपंचमी की सबसे प्राचीन कथा : जब नागदेव बने भाई
प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं थे।
एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- 'मत मारो इसे? यह बेचारा निरपराध है।'
यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा-'हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहां कामकाज में फंसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।
उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहां पहुंची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- 'तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा मांगती हूँ, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो, मांग ले। वह बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।
कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि 'मेरी बहन को भेज दो।' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि 'मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूंछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहां के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।
एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- 'मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बुरीतरह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई। परंतु सर्प के समझाने पर शांत हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चांदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया।
इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से कहा- भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- 'इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए'। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी।
सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार यहां आना चाहिए।' राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि 'महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो'। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया।
छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया ! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।
यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दंड दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन ! क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया।
यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। वह अपने हार और इन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी। तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है और स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।

🌹🙏गुड morning🙏
25/07/2023

🌹🙏गुड morning🙏

🌹GOOD MORNING 🙏
22/07/2023

🌹GOOD MORNING 🙏

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