Vaibhav Chaudhary

Vaibhav Chaudhary The purpose of this page is to make people aware for their rights.

एक शिक्षक कहा करते थे, आप जीवन में कुछ भी करें, लेकिन अपने आपको खुश करने के लिए किसी और को खोजने की कोशिश न करें।  कभी भ...
30/08/2024

एक शिक्षक कहा करते थे, आप जीवन में कुछ भी करें, लेकिन अपने आपको खुश करने के लिए किसी और को खोजने की कोशिश न करें। कभी भी किसी पर इस हद तक निर्भर न रहें कि आपकी उम्मीदें पूरी न होने पर आप उदास हो जाएं। विशेषकर मानसिक रूप से..।

आप परेशान हैं, कोई अच्छा संगीत सुनें, अपने लिए एक गर्म कप कॉफी बनाएं, दोपहर की मीठी धूप में खुद से बात करें, अपने पसंदीदा लेखक की किताब पढ़ें। अगर आपमें कोई खास रचनात्मकता है तो खुद को उसमें व्यस्त रखें।

दूसरों पर व्यंग्य करके स्टेटस लिखना, अपने दुख, कमजोरी को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करना किसी बुद्धिमान व्यक्ति का काम नहीं है। अगर आप बहुत परेशान हैं तो कमरे में अंधेरा कर दें और चुपचाप बैठ जाएं। अपने धर्म के अनुसार प्रार्थना करें.

यादें ताजा करें, हंसें, रोएं, जो भी हो, अपने साथ एक खूबसूरत रिश्ता बनाएं ताकि दुख के दिनों में आपको कंधे की जरूरत न पड़े।

अगर आप किसी चीज में सफल होते हैं तो खुद पर गर्व करें, अगर आप असफल होते हैं तो खुद पर गर्व करें, खुद से एक वादा करें। लेकिन किसी और की नज़रों में अपनी पूर्णता खोजने की कोशिश न करें।

आपको कष्ट तब होगा जब दूसरों की नजरें आपके दोषों में आपके गुण नहीं ढूंढ पाएंगी, यदि आप ढूंढ सकते हैं, तो आप ढूंढ सकते हैं। रेस्तरां में अकेले खाना खाना सामान्य होना चाहिए, पार्क में अपने साथ समय बिताना क्यों हास्यास्पद होगा? यदि संभव हो तो वित्तीय लोगों को भी खुद को स्थापित करना चाहिए। ताकि आप गंभीर मूड स्विंग्स में खुद को चॉकलेट दे सकें, आप अपने जन्मदिन पर खुद को एक उपहार दे सकें या वंचित बच्चों के साथ जन्मदिन की खुशी साझा कर सकें, आप अपनी पसंदीदा पोशाक खरीद सकें, भले ही आप अपने लिए पैसे बचा सकें।
कभी-कभी अपने आप को कुछ फूल दीजिए। घर के एक कोने में फूल होंगे, मनमोहक खुशबू फैलेगी और आप बेहतर महसूस करेंगे। हर किसी को खुश रखना आपकी जिम्मेदारी नहीं है, हर किसी को खुश रखना दुनिया में किसी के लिए भी संभव नहीं है। जहां आप नहीं कह सकते, वहां "नहीं" कहना सीखें।

मेरे माता-पिता मेरी कद्र नहीं करते, मेरे दोस्त मुझे समय नहीं देते, मेरे करीबी मुझसे ठीक से बात नहीं करते, मेरे लिए उनके पास समय नहीं है, इससे कोई परेशानी नहीं होगी। हमारी भाषा में ध्यान दूसरों के लिए अनावश्यक तनाव मात्र है।

दूसरों को परेशान क्यों करें?

एक खूबसूरत व्यक्तित्व होना मुश्किल नहीं है, बस खुद से इतना प्यार करें कि दूसरों की नजरों में अपने लिए प्यार ढूंढने की जरूरत न पड़े।

चौथी औद्योगिक क्रांति के इस युग में लोगों का दिमाग प्लास्टिक की तरह हो गया है। इसलिए खुद को अपने तक ही सीमित रखना बेहतर लगता है।




Chaudhary Vaibhav Kakran
Vaibhav Chaudhary

23/08/2024

विवाह उपरांत जीवन साथी को छोड़ने के लिए 2 शब्दों का प्रयोग किया जाता है
1-Divorce (अंग्रेजी)
2-तलाक (उर्दू)
कृपया हिन्दी का शब्द बताए...??

कहानी आजतक के Editor... संजय सिन्हा की लिखी है...।

तब मैं... 'जनसत्ता' में... नौकरी करता था...। एक दिन खबर आई कि... एक आदमी ने झगड़े के बाद... अपनी पत्नी की हत्या कर दी...। मैंने खब़र में हेडिंग लगाई कि... "पति ने अपनी बीवी को मार डाला"...! खबर छप गई..., किसी को आपत्ति नहीं थी...। पर शाम को... दफ्तर से घर के लिए निकलते हुए... प्रधान संपादक प्रभाष जोशी जी... सीढ़ी के पास मिल गए...। मैंने उन्हें नमस्कार किया... तो कहने लगे कि... "संजय जी..., पति की... 'बीवी' नहीं होती...!"

“पति की... 'बीवी' नहीं होती?” मैं चौंका था

" “बीवी" तो... 'शौहर' की होती है..., 'मियाँ' की होती है..., पति की तो... 'पत्नी' होती है...! "

भाषा के मामले में... प्रभाष जी के सामने मेरा टिकना मुमकिन नहीं था..., हालांकि मैं कहना चाह रहा था कि... "भाव तो साफ है न ?" बीवी कहें... या पत्नी... या फिर वाइफ..., सब एक ही तो हैं..., लेकिन मेरे कहने से पहले ही... उन्होंने मुझसे कहा कि... "भाव अपनी जगह है..., शब्द अपनी जगह...! कुछ शब्द... कुछ जगहों के लिए... बने ही नहीं होते...! ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है...।"

खैर..., आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया..., आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं...। लेकिन इसके लिए... आपको मेरे साथ... निधि के पास चलना होगा...।

निधि... मेरी दोस्त है..., कल उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था...। फोन पर उसकी आवाज़ से... मेरे मन में खटका हो चुका था कि... कुछ न कुछ गड़बड़ है...! मैं शाम को... उसके घर पहुंचा...। उसने चाय बनाई... और मुझसे बात करने लगी...। पहले तो इधर-उधर की बातें हुईं..., फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि... नितिन से उसकी नहीं बन रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है...।

मैंने पूछा कि... "नितिन कहां है...?" तो उसने कहा कि... "अभी कहीं गए हैं..., बता कर नहीं गए...।" उसने कहा कि... "बात-बात पर झगड़ा होता है... और अब ये झगड़ा बहुत बढ़ गया है..., ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि... अलग हो जाएं..., तलाक ले लें...!"

निधि जब काफी देर बोल चुकी... तो मैंने उससे कहा कि... "तुम नितिन को फोन करो... और घर बुलाओ..., कहो कि संजय सिन्हा आए हैं...!"

निधि ने कहा कि... उनकी तो बातचीत नहीं होती..., फिर वो फोन कैसे करे...?!!!

अज़ीब सँकट था...! निधि को मैं... बहुत पहले से जानता हूं...। मैं जानता हूं कि... नितिन से शादी करने के लिए... उसने घर में कितना संघर्ष किया था...! बहुत मुश्किल से... दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे..., फिर धूमधाम से शादी हुई थी...। ढ़ेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं... ऐसा लगता था कि... ये जोड़ी ऊपर से बन कर आई है...! पर शादी के कुछ ही साल बाद... दोनों के बीच झगड़े होने लगे... दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे... और आज उसी का नतीज़ा था कि... संजय सिन्हा... निधि के सामने बैठे थे..., उनके बीच के टूटते रिश्तों को... बचाने के लिए...!

खैर..., निधि ने फोन नहीं किया...। मैंने ही फोन किया... और पूछा कि... "तुम कहां हो... मैं तुम्हारे घर पर हूँ..., आ जाओ...। नितिन पहले तो आनाकानी करता रहा..., पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया...।

अब दोनों के चेहरों पर... तनातनी साफ नज़र आ रही थी...। ऐसा लग रहा था कि... कभी दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले ये पति-पत्नी... आंखों ही आंखों में एक दूसरे की जान ले लेंगे...! दोनों के बीच... कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी...!!

नितिन मेरे सामने बैठा था...। मैंने उससे कहा कि... "सुना है कि... तुम निधि से... तलाक लेना चाहते हो...?!!!

उसने कहा, “हाँ..., बिल्कुल सही सुना है...। अब हम साथ... नहीं रह सकते...।"

मैंने कहा कि... "तुम चाहो तो... अलग रह सकते हो..., पर तलाक नहीं ले सकते...!"

“क्यों...???

“क्योंकि तुमने निकाह तो किया ही नहीं है...!”

"अरे यार..., हमने शादी तो... की है...!"

“हाँ..., 'शादी' की है...! 'शादी' में... पति-पत्नी के बीच... इस तरह अलग होने का... कोई प्रावधान नहीं है...! अगर तुमने 'मैरिज़' की होती तो... तुम "डाइवोर्स" ले सकते थे...! अगर तुमने 'निकाह' किया होता तो... तुम "तलाक" ले सकते थे...! लेकिन क्योंकि... तुमने 'शादी' की है..., इसका मतलब ये हुआ कि... "हिंदू धर्म" और "हिंदी" में... कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद... अलग होने का कोई प्रावधान है ही नहीं....!!!"

मैंने इतनी-सी बात... पूरी गँभीरता से कही थी..., पर दोनों हँस पड़े थे...! दोनों को... साथ-साथ हँसते देख कर... मुझे बहुत खुशी हुई थी...। मैंने समझ लिया था कि... रिश्तों पर पड़ी बर्फ... अब पिघलने लगी है...! वो हँसे..., लेकिन मैं गँभीर बना रहा...

मैंने फिर निधि से पूछा कि... "ये तुम्हारे कौन हैं...?!!!"

निधि ने नज़रे झुका कर कहा कि... "पति हैं...! मैंने यही सवाल नितिन से किया कि... "ये तुम्हारी कौन हैं...?!!! उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा कि..."बीवी हैं...!"

मैंने तुरंत टोका... "ये... तुम्हारी बीवी नहीं हैं...! ये... तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं.... क्योंकि... तुम इनके 'शौहर' नहीं...! तुम इनके 'शौहर' नहीं..., क्योंकि तुमने इनसे साथ "निकाह" नहीं किया... तुमने "शादी" की है...! 'शादी' के बाद... ये तुम्हारी 'पत्नी' हुईं..., हमारे यहाँ जोड़ी ऊपर से... बन कर आती है...! तुम भले सोचो कि... शादी तुमने की है..., पर ये सत्य नहीं है...! तुम शादी का एलबम निकाल कर लाओ..., मैं सबकुछ... अभी इसी वक्त साबित कर दूंगा...!"

बात अलग दिशा में चल पड़ी थी...। मेरे एक-दो बार कहने के बाद... निधि शादी का एलबम निकाल लाई..., अब तक माहौल थोड़ा ठँडा हो चुका था..., एलबम लाते हुए... उसने कहा कि... कॉफी बना कर लाती हूं...।"

मैंने कहा कि..., "अभी बैठो..., इन तस्वीरों को देखो...।" कई तस्वीरों को देखते हुए... मेरी निगाह एक तस्वीर पर गई..., जहाँ निधि और नितिन शादी के जोड़े में बैठे थे...। और पाँव~पूजन की रस्म चल रही थी...। मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली... और उनसे कहा कि... "इस तस्वीर को गौर से देखो...!"

उन्होंने तस्वीर देखी... और साथ-साथ पूछ बैठे कि... "इसमें खास क्या है...?!!!"

मैंने कहा कि... "ये पैर पूजन का रस्म है..., तुम दोनों... इन सभी लोगों से छोटे हो..., जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं...।"

“हां तो....?!!!"

“ये एक रस्म है... ऐसी रस्म सँसार के... किसी धर्म में नहीं होती... जहाँ छोटों के पांव... बड़े छूते हों...! लेकिन हमारे यहाँ शादी को... ईश्वरीय विधान माना गया है..., इसलिए ऐसा माना जाता है कि... शादी के दिन पति-पत्नी दोनों... 'विष्णु और लक्ष्मी' के रूप हो जाते हैं..., दोनों के भीतर... ईश्वर का निवास हो जाता है...! अब तुम दोनों खुद सोचो कि... क्या हज़ारों-लाखों साल से... विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं...?!!! दोनों के बीच... कभी झिकझिक हुई भी हो तो... क्या कभी तुम सोच सकते हो कि... दोनों अलग हो जाएंगे...?!!! नहीं होंगे..., हमारे यहां... इस रिश्ते में... ये प्रावधान है ही नहीं...! "तलाक" शब्द... हमारा नहीं है..., "डाइवोर्स" शब्द भी हमारा नहीं है...!"

यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि... "बताओ कि... हिंदी में... "तलाक" को... क्या कहते हैं...???"

दोनों मेरी ओर देखने लगे उनके पास कोई जवाब था ही नहीं फिर मैंने ही कहा कि... "दरअसल हिंदी में... 'तलाक' का कोई विकल्प ही नहीं है...! हमारे यहां तो... ऐसा माना जाता है कि... एक बार एक हो गए तो... कई जन्मों के लिए... एक हो गए तो... प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता..., उसे करने की कोशिश भी मत करो...! या फिर... पहले एक दूसरे से 'निकाह' कर लो..., फिर "तलाक" ले लेना...!!"

अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ... काफी पिघल चुकी थी...!

निधि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी...। फिर उसने कहा कि... "भैया, मैं कॉफी लेकर आती हूं...।"

वो कॉफी लाने गई..., मैंने नितिन से बातें शुरू कर दीं...। बहुत जल्दी पता चल गया कि... बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं..., बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएं हैं..., जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं...।

खैर..., कॉफी आई मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली...। नितिन के कप में चीनी डाल ही रहा था कि... निधि ने रोक लिया..., “भैया..., इन्हें शुगर है... चीनी नहीं लेंगे...।"

लो जी..., घंटा भर पहले ये... इनसे अलग होने की सोच रही थीं...। और अब... इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं...!

मैं हंस पड़ा मुझे हंसते देख निधि थोड़ा झेंपी कॉफी पी कर मैंने कहा कि... "अब तुम लोग... अगले हफ़्ते निकाह कर लो..., फिर तलाक में मैं... तुम दोनों की मदद करूंगा...!"

शायद अब दोनों समझ चुके थे.....

हिन्दी एक भाषा ही नहीं - संस्कृति है...!

इसी तरह हिन्दू भी धर्म नही - सभ्यता है...!!

👆उपरोक्त लेख मुझे बहुत ही अच्छा लगा..., जो सनातन धर्म और संस्कृति से जुड़ा है...।🙏

23/08/2024

"क्या बताऊँ मम्मी, आजकल तो बासी कढ़ी में भी उबाल आया हुआ है| जबसे पापा जी रिटायर हुए हैं दोनों लोग फिल्मी हीरो हीरोइन की तरह दिन भर अपने बगीचे में ही झूले पर विराजमान रहते हैं| न अपने बालों की सफेदी का लिहाज है न बहू बेटे का, इस उम्र में दोनों मेरी और नवीन की बराबरी कर रहे हैं|"
तब तक चाय पीने के लिये सोनम को पूछने प्रभाजी उसके कमरे की तरफ बढ़ीं पर उदास मन से रसोई में दाखिल हुईं| उन्होंने सुन सब लिया था पर नज़रअंदाज़ करते हुए खामोशी से चाय बनाकर ले गयीं और सोनम को भी उसी के कमरे में दे दी|
उन्हें अशोक जी के लिए चाय ले जाते देख, उनकी बहू सोनम के चेहरे पर व्यंगात्मक मुस्कान तैर गयी| पर वह नज़र अंदाज़ कर सिर झुकाए निकल गईं| पति के रिटायर होने के बाद कुछ दिन से उनकी यही दिनचर्या हो गयी थी|
अशोक जी की इच्छानुसार अच्छे से तैयार होकर अपने घर के सबसे खूबसूरत हिस्से अपने पेड़ पौधों के साथ बैठना| क्योंकि सारी उम्र तो उनकी बच्चों के लिये जीने में निकल गयी थी|
तो जीवन सन्ध्या में दोनों लोग साथ समय भी गुजारते वहाँ पड़ी मेज चार कुर्सी उस भाग को और मोहक बना देतीं और दिन भर के बहुत से कार्य वहाँ आसानी ने निपट जाते|

पाण्डेय विला...दोमंजिला कोठीनुमा घर अशोक और प्रभा का जीवन भर का सपना था, बड़ा खूबसूरत लगता देखने में उस पर वातावरण भी बेहद सुरम्य |
बीस बाई बीस गज़ की कच्ची जगह भी थी उस घर में, बाहर जहाँ था प्रभा के सपनोँ का बगीचा| बेला के पौधे, हरसिंगार का घनेरा पेड़,अंगारो सा दहकता गुड़हल का पेड़ और छोटा सा टैंक जिसमें कमल के फूल खिले रहते|
जाड़े में तो रँग बिरंगे फूल डहेलिया, गुलाब, पैंजी और तमाम किचन गार्डन की सब्जियां चार चाँद लगा देतीं देखने वाले की आँखों में और रसोईघर में भी ताज़े धनिया, पोदीना मेंथी की बहार रहती|
हर मौसम में घर खुशबू और सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर रहता,उस पर वहाँ पड़ा झूला जो भी वहाँ बैठ जाता तो उठने की इच्छा ही न होती उसकी|
जाड़ों में वहीँ तसले में आग जलती और भुने आलू,शकरकन्द के मज़े लिये जाते तो बरसात में सुलगते कोयलों पर सिंकते भुट्टे स्वर्ग के आनन्द की अनुभूति करवाते|
अशोक जी ने वह जगह छुड़वाई तो प्रभा और अपने लिये कमरे के लिये | लेकिन संयोग ऐसा बना कि ज़िम्मेदारी ने उन्हें उस जगह का इस्तेमाल ही न करने दिया|
ऐसे में प्रभा ने अपने खाली समय और उस ख़ाली जगह का इस्तेमाल इस बुद्धिमत्ता से किया कि वह कोना घर की जान बन गया| उनका पूरा खाली समय वहीँ बीत जाता| अब उन्हें उस जगह कमरा न बन पाने का मलाल भी न था|
पर प्रभा को अरमान था घर में झूला हो तो अशोक जी ने उसे वहाँ ज़रूर लगवा दिया| पेड़ों से लगाव कुछ ऐसा हो गया कि फिर दोनों में से किसी की इच्छा उनके स्थान पर कमरा बनवाने की हुई ही नहीँ|

पर वह और अशोक कभी एक साथ उस जगह कम ही बैठ पाते,कभी प्रभा अनमनी होतीं तो अशोक बड़े ज़िंदादिल शब्दों में कहते, "पार्टनर रिटायरमेंट के बाद दोनों इसी झूले पर साथ बैठेंगे और खाना भी साथ में ही खायेंगे| हर शिकायत दूर कर देँगे| फ़िलहाल हमें बच्चों के लिये जीना है|
बच्चों के कैरियर पर सब कुछ बलिदान हो गया,अब बेटा भी अच्छी नौकरी में था और बेटी भी अपने घर की हो चुकी थी |
रिटायरमेंट के बाद घर में थोड़ी रौनक रहने लगी थी,अशोक जी को भी घर में रहना अच्छा लग रहा था| बड़े पद पर थे तो कभी उनके कदम घर में टिके ही नहीँ|
गाँव से आकर शहर में बसेरा बनाना आसान न था, लेकिन किसी तरह चार सौ गज़ ज़मीन कर ली| सहधर्मिणी प्रभा जी भी सहयोगी महिला थीं तो मन्ज़िल और आसान हो गयी|
अब दोनों पति पत्नी आराम के पलों को सँजो लेना चाहते थे उनके घर में ज़रूरी सब सुविधाएं भी थीँ फिर भी बहू सोनम को न जाने क्योँ वह कोना सबसे ज़्यादा खटकता था|
क्योंकि कोई भी बन्धन न होने पर भी अशोक जी के घर में रहने से उसे घर का काम बढ़ा महसूस होता| दिन भर उसके साथ लगी रहने वाली प्रभा का अब थोड़ा समय अपने पति को देना उसे अखरने लगा था|
अक्सर वह नवीन को उसके माता पिता के लिये ताने देने का कोई मौका न छोड़ती| उसने उस कोने से छुटकारा पाने के लिये नवीन को एक रास्ता सुझाते हुए कहा,"क्योँ न हम बड़ी कार खरीद लें...नवीन"|
"आईडिया तो अच्छा है पर रखेंगे कहाँ एक कार रखने की ही तो जगह है घर में",नवीन थोड़ा चिंतित स्वर में बोला|

"जगह तो है न, वो गार्डन तुम्हारा..जहाँ आजकल दोनों लव बर्ड्स बैठते हैं"सोनम थोड़े तीखे स्वर में बोली|
थोड़ा तमीज़ से बात करो,नवीन क्रोध से बोला ज़रूर पर उसने भी अशोक जी से बात करने का मन बना लिया था|
अगले दिन वह कुछ कार की तस्वीरों के साथ शाम को अपने पिता के पास गया और बोला," पापा !मैं और सोनम एक बड़ी गाड़ी खरीदना चाहते हैं| "
पर बेटा बड़ी गाड़ी तो घर में पहले ही है, फिर उसे रखेंगे भी कहाँ?अशोक जी ने प्रश्न किया|
ये जो बगीचा है यहीँ गैराज बनवा लेंगे वैसे भी सोनम से तो इनकी देखभाल होने से रही और मम्मी कब तक करेंगी? इन पेड़ों को कटवाना ही ठीक रहेगा| वैसे भी ये सब जड़े मज़बूत कर घर की दीवारें कमज़ोर कर रहें है|
प्रभा तो वहीँ कुर्सी पर सीना पकड़ कर बैठ गईं,अशोक जी ने क्रोध को काबू में करते हुए कहा, मुझे तुम्हारी माँ से भी बात करके थोड़ा सोचने का मौका दो|
क्या पापा... मम्मी से क्या पूछना ..वैसे भी इस जगह का इस्तेमाल भी क्या है नवीन थोड़ा चिड़चिड़ा कर बोला|
"आप दोनों दिन भर इस जगह बगैर कुछ सोचे समझे,चार लोगों का लिहाज किये बग़ैर साथ बैठे रहते हैं| कोई बच्चे तो हैं नहीं आप दोनों और अब घर में सोनम भी है छोटे बच्चे भी है |
पर आप दोनों ने दिन भर झूले पर साथ बैठे रहने का रिवाज बना लिया है और ये भी नहीँ सोचते कि चार लोग क्या कहेंगे|
इस उम्र में मम्मी के साथ बैठने की बजाय अपनी उम्र के लोगों में उठा बैठी करेंगे तो वो ज़्यादा अच्छा लगेगा न कि ये सब और वह दनदनाते हुए अंदर चला गया|

अंदर सोनम की बड़बड़ाहट भी ज़ारी थी,अशोक जी भी एहसास कर रहे थे प्रभा के साथ अपनी ज़्यादती का| जब कभी पत्नी ने अपने मन की कही तो उन्होंने उन्हें ही सामन्जस्य बिठाने की सीख दी|
पर आज की बात से तो उनके साथ प्रभा जी भी सन्न रह गईं,अपने बेटे के मुँह से ऐसी बातें सुनकर|
रिटायरमेंट को अभी कुछ ही समय हुआ था उनके, ज़िन्दगी तो भागमभाग में ही निकल गयी थी बच्चों के लिए सुख साधन जुटाने में|
नवीन और सोनम ने उस शाम खाना बाहर से ऑर्डर कर दिया पर प्रभा से न खाना खाया गया और न उन्हें नींद आयी| नींद तो अशोक को भी नहीँ आ रही थी और वो प्रभा की मनोस्थिति भी समझ रहे थे |
किसी ट्रैफिक सिग्नल पर खड़े सिपाही जैसी जिससे हर रिश्ता बस अपनी ही तवज्जोह चाह रहा था| पर सोचते सोचते सुबह, कुछ सोचकर उनके होंठों पर मुस्कान तैर गयी|
अगले दिन जब सोकर वह उठे तो देखा प्रभा जी सो रहीं थी पर बेचैनी चेहरे पर दिख रही थी| वह रसोई में गये और खुद चाय बनाई | कमरे में आकर पहला कप प्रभा को उठा कर पकड़ाया और दूसरा खुद पीने लगे|
आपने क्या सोचा?प्रभा ने रोआंसे लहज़े में पूछा|
मैं सब ठीक कर दूँगा बस तुम धीरज रखो,अशोक बोले|
पर हद से ज़्यादा निराश प्रभा उस दिन पौधों में पानी देने भी न निकलीं,और न ही किसी से कोई बात की|
दिन भर सब सामान्य रहा,लेकिन शाम को अपने घर के बाहर To Let का बोर्ड टँगा देख नवीन ने भौंचक्के स्वर में अशोक से प्रश्न किया,"पापा माना कि घर बड़ा है पर ये To Let का बोर्ड किसलिए"?

" अगले महीने मेरे स्टाफ के मिस्टर गुप्ता रिटायर हो रहें है,तो वो इसी घर में रहेँगे",उन्होंने शान्ति पूर्ण तरीके से उत्तर दिया| हैरान नवीन बोला,"पर कहाँ?"
"तुम्हारे पोर्शन में",अशोक जी ने सामान्य स्वर में उत्तर दिया|
नवीन का स्वर अब हकलाने लगा था,"और हम लोग "
"तुम्हे इस लायक बना दिया है दो तीन महीने में कोई फ्लैट देख लेना या कम्पनी के फ्लैट में रह लेना,अपनी उम्र के लोगों के साथ | "अशोक एक- एक शब्द चबाते हुए बोले|
हम दोनों भी अपनी उम्र के लोगों में उठे बैठेंगे,सारी उम्र तुम्हारी माँ की सबका लिहाज़ करने में निकल गयी| कभी बुजुर्ग तो कभी बच्चे| अब लिहाज़ की सीख तुम सबसे लेना बाकी रह गया था|
"पापा मेरा वो मतलब नहीँ था",नवीन सिर झुकाकर बोला|
नहीँ बेटा तुम्हारी पीढ़ी ने हमें भी प्रैक्टिकल बनने का सबक दे दिया,जब हम तुम दोनों को साथ देखकर खुश हो सकते है तो तुम लोगों को हम लोगों से दिक्कत क्योँ है| "?
इस मकान को घर तुम्हारी माँ ने बनाया, ये पेड़ और इनके फूल तुम्हारे लिए माँगी गयी न जाने कितनी मनौतियों के साक्षी हैं,तो उसका कोना मैं किसी को छीनने का अधिकार नहीं दूँगा|
पापा आप तो सीरियस हो गये, नवीन के स्वर अब नम्र हो चले थे|
न बेटा... तुम्हारी मां ने जाने कितने कष्ट सहकर, कितने त्याग कर के मेरा साथ दिया आज इसी के सहयोग से मेरे सिर पर कोई कर्ज़ नहीँ है| इसलिये सिर्फ ये कोना ही नहीं पूरा घर तुम्हारी माँ का ऋणी है| घर तुम दोनों से पहले उसका है, क्योंकि जीभ पहले आती है, न कि दाँत|

औलाद होने का हमसे लाभ उठाओ पर जब मंदिर में ईश्वर जोड़े में अच्छा लगता है तो मां बाप साथ में बुरे क्योँ लगते हैं? ज़िन्दगी हमें भी तो एक ही बार मिली है| 🙏🏻

01/08/2024

उस पांच सितारा ऑडिटोरियम के बाहर प्रोफेसर साहब की आलीशान कार आकर रुकी , प्रोफेसर बैठने को हुए ही थे कि एक सभ्य सा युगल याचक दृष्टि से उन्हें देखता हुआ पास आया और बोला ," साहब , यहां से मुख्य सड़क तक कोई साधन उपलब्ध नही है , मेहरबानी करके वहां तक लिफ्ट दे दीजिए आगे हम बस पकड़ लेंगे । "

रात के साढ़े ग्यारह बजे प्रोफेसर साहब ने गोद मे बच्चा उठाये इस युगल को देख अपने "तात्कालिक कालजयी" भाषण के प्रभाव में उन्हें अपनी कार में बिठा लिया । ड्राइवर कार दौड़ाने लगा ।

याचक जैसा वह कपल अब कुटिलतापूर्ण मुस्कुराहट से एक दूसरे की आंखों में देख अपना प्लान एक्सीक्यूट करने लगा । पुरुष ने सीट के पॉकेट मे रखे मूंगफली के पाउच निकालकर खाना शुरू कर दिया बिना प्रोफेसर से पूछे /मांगे ।
लड़की भी बच्चे को छोड़ कार की तलाशी लेने लगी ।एक शानदार ड्रेस दिखी तो उसने झट से उठा ली और अपने पर लगा कर देखने लगी ।
प्रोफेसर साहब अब सहन नही कर सकते थे ड्राइवर से बोले गाड़ी रोको ,लेकिन ड्राइवर ने गाड़ी नही रोकी बस एक बार पीछे पलटकर देखा , प्रोफेसर को झटका लगा ,अरे ये कौन है उनके ड्राइवर के वेश में ?? वे तीनों वहशियाना तरीके से हंसने लगे , प्रोफेसर साहब को अपने इष्टदेव याद आने लगे ,थोड़ा साहस एकत्रित करके प्रोफेसर साहब ने शक्ति प्रयोग का "अभ्यासहीन " प्रयास करने का विचार किया लेकिन तब तक वह पुरुष अपनी जेब से एक लाइटर जैसा पदार्थ निकाल चुका था और उसका एक बटन दबाते ही 4 इंच का धारदार चाकू बाहर आ चुका था प्रोफेसर साहब की क्रांति समयपूर्व ही गर्भपात को प्राप्त हुई ।

प्रोफेसर साहब समझ चुके थे कि आज कोई बड़ी अनहोनी निश्चित है उन्होंने खुद ही अपना पर्स निकालकर सारे पैसे उस व्यक्ति के हाथ में थमा दिये लेकिन वह व्यक्ति अब उनके आभूषणों की तरफ देखने लगा, दुखी मन से प्रोफेसर साहब ने अपनी अंगूठियां ,ब्रेसलेट और सोने के चेन उतार के उसके हाथ में धर दिए , अब वह व्यक्ति उनके गले में एक और लॉकेट युक्त चैन की तरफ हाथ बढ़ाने लगा । प्रोफेसर साहब याचना पूर्वक बोले - इसे छोड़ दो प्लीज यह मेरे "पुरुखों की निशानी " है जो कुल परंपरा से मुझ तक आई है , इसकी मेरे लिए अत्यंत भावनात्मक महत्ता है । लेकिन वह लुटेरा कहां मानने वाला था उसने आखिर वह निशानी भी उतार ही ली ।
बिना प्रोफ़ेसर साहब के पता बताएं वे लोग उनके आलीशान बंगले के बाहर तक पहुंच गए थे ।
युवक बोला ," लो आ गया घर , ऐसे ढेर सूखे मेवे , कपड़े , पैसा और प्रोफेसर साहब की ल.......
उसकी आँखों मे आई धूर्ततापूर्ण बेशर्म चमक ने शब्द के अधूरेपन को पूर्णता दे दी ।

प्रोफेसर साहब अब पूरे परिवार की सुरक्षा एवं घर पर पड़े अथाह धन-धान्य को लेकर भी चिंतित हो गये उनका रक्तचाप उछाले मारने लगा लेकिन करें भी तो क्या ??
लगे गिड़गिड़ाने ," भैया मैंने आपको आपत्ती में देखकर शरण दी और आप मेरा ही इस तरह शोषण कर रहे हैं यह अनुचित है । ईश्वर का भय मानिए यह निर्दयता की पराकाष्ठा है ।अब तो छोड़ दीजिए मुझे भगवान के लिए ।
प्रोफेसर फूट फूट कर रोने लगे ।।

वे पति पत्नी अपना बच्चा लेकर कार से उतर गये और वह ड्राइवर भी , उनके द्वारा लिया गया सारा सामान उन्होंने वापस प्रोफेसर साहब के हाथ में पकड़ाया और बोले

" क्षमा कीजिएगा सर ! रोहिंग्या मुसलमानों के विषय मे शरणागत वत्सलता पर आज आपके द्वारा उस ऑडिटोरियम मे दिए गए "अति भावुक व्याख्यान" का तर्कसंगत शास्त्रीय निराकरण करने की योग्यता हममें नहीं थी अतः हमें यह स्वांग रचना पड़ा ।
"आप जरा खुद को भारतवर्ष और हमें रोहिंग्या समझ कर इस पूरी घटना पर विचार कीजिए और सोचिये की आपको अब क्या करना चाहिए इस विषय पर । "

वो मूंगफली नही इस देश का अथाह प्राकृतिक संसाधन है जिसकी रक्षार्थ यंहा के सैनिक अपना उष्ण लाल लहू बहाकर करते है सर , मुफ्त नही है यह ।
वो आपकी बेटी/बेटे की ड्रेस मात्र कपड़ा नही है इस देश के नागरिकों के स्वप्न है भविष्य के जिसके लिए यंहा के युवा परिश्रम का पुरुषार्थ करते है ,मुफ्त नही है यह ।
आपकी बेटी / पत्नी मात्र नारी नही है देश की अस्मिता है सर जिसे हमारे पुरुखों ने खून के सागर बहा के सुरक्षित रखा है , खैरात में बांटने के लिए नही है यह ।
आपका ये पर्स अर्थव्यवस्था है सर इस देश की जिसे करोड़ो लोग अपने पसीने से सींचते है , मुफ्त नही है यह ।

और आपके पुरुखों की निशानी यह चैन मात्र सोने का टुकड़ा नही है सर , अस्तित्व है हमारा , इतिहास है इस महान राष्ट्र का जिसे असंख्य योद्धाओ ने मृत्यु की बलिवेदी पर ढेर लगाकर जीवित रखा है , मुफ्त तो छोड़िए इसे किसी ग्रह पर कोई वैज्ञानिक भी उत्पन्न नही कर सकते ।

कुछ विचार कीजिये सर ! कौन है जो खून चूसने वाली जोंक को अपने शरीर पर रहने की अनुमति देता है , एक बुद्धिहीन चौपाया भी तत्काल उसे पेड़ के तने से रगड़ कर उससे मुक्ति पा लेता है ।

उस युवक ने वह लाइटर जैसा रामपुरी चाकू प्रोफेसर साहब के हाथ में देते हुए कहा यह मेरी प्यारी बहन जो आपकी पुत्री है उसे दे दीजिएगा सर क्योंकि अगर आप जैसे लोग रोहिंग्या को सपोर्ट देकर इस देश में बसाते रहे तो किसी न किसी दिन ऐसी ही किसी कार में आपकी बेटी को इसकी आवश्यकता जरूर पड़ेगी

#बांग्लादेशीऔर रोहिंग्या को देश से निकालो....!!

27/07/2024

तीन कहानियां जो आपको ट्रिगर करेंगी।

1. नोकिया ने एंड्राइड को मना कर दिया
2. याहू ने गूगल को अस्वीकार कर दिया
3. कोडक ने डिजिटल कैमरों से इनकार कर दिया

सबक:
1. मौके ले लो
2. बदलाव को गले लगाओ
3. समय के साथ बदलने से इनकार करोगे तो पुराने हो जाओगे

दो और कहानियां:
1. फेसबुक ने व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर कब्ज़ा कर लिया
2. ग्रैब ने दक्षिण पूर्व एशिया में उबेर पर कब्जा कर लिया
सबक:
1. इतने शक्तिशाली बन जाओ कि आपके प्रतिस्पर्धी आपके सहयोगी बन जाएँ
2. शीर्ष पर पहुंचें और प्रतियोगिता को खत्म करें।
3. नवोन्मेष करते रहो

दो और कहानियां:
1. कर्नल सैंडर्स ने 65 साल में केएफसी की स्थापना की
2. जैक मा, जिन्हें केएफसी में नौकरी नहीं मिली, उन्होंने अलीबाबा की स्थापना की और 55 साल की उम्र में सेवानिवृत्त हुए।

सबक:
1. उम्र केवल एक संख्या है
2. कोशिश करने वाले ही सफल होते हैं

अंतिम लेकिन कम से कम नहीं:
लेम्बोर्गिनी की स्थापना एक ट्रैक्टर निर्माता से बदले के कारण की गई थी जिसका फेरारी के संस्थापक एन्ज़ो फेरारी द्वारा अपमान किया गया था।

सबक:
कभी भी किसी को कम मत समझना!
✔️ बस मेहनत करते रहो
✔️ अपना समय बुद्धिमानी से निवेश करें
✔️ असफल होने से डरो मत।

13/07/2024

पुराने जमाने में जब हॉस्पिटल नहीं होते थे.. तो बच्चे की नाभि कौन काटता था,
मतलब पिता से भी पहले कौनसी जाति बच्चे को स्पर्श करती थी?
आपका मुंडन करते वक्त कौन स्पर्श करता था?
शादी के मंडप में नाईं और धोबन भी होती थी।
लड़की का पिता, लड़के के पिता से इन दोनों के लिए साड़ी की मांग करता था।
वाल्मीकियों के बनाये हुए सूप से ही छठ व्रत होता हैं!
आपके घर में कुँए से पानी कौन लाता था?
भोज के लिए पत्तल कौन सी जाति बनाती थी?
किसने आपके कपड़े धोये?
डोली अपने कंधे पर कौन मीलो-मीलो दूर से लाता था और उनके जिन्दा रहते किसी की मजाल न थी कि आपकी बिटिया को छू भी दे।
किसके हाथो से बनाये मिटटी की सुराही से जेठ महीने में आपकी आत्मा तृप्त हो जाती थी?
कौन आपकी झोपड़ियां बनाता था?
कौन फसल लाता था?
कौन आपकी चिता जलाने में सहायक सिद्ध होता हैं? जाट समाज से होली थाम एव मकान निर्माण से ईंट रखवाना।
जीवन से लेकर मरण तक सब सबको कभी न कभी स्पर्श करते थे। . . *और कहते है कि छुआछूत था।*
*यह छुआछूत की बीमारी अंग्रेजों ने देश को तोड़ने के लिए एक साजिश के तहत डाली थी।*
*जातियां थी, पर उनके मध्य एक प्रेम की धारा भी बहती थी, जिसका कभी कोई उल्लेख नहीं करता।*
*अगर जातिवाद होता तो राम कभी सबरी के झूठे बेर ना खाते,*
*बाल्मीकि के द्वारा रचित रामायण कोई नहीं पढता,*
*कृष्ण कभी सुदामा के पैर ना धोते!*
जाति में मत टूटिये, धर्म से जुड़िये..
देश जोड़िये.. सभी को अवगत कराएं!
*सभी जातियाँ सम्माननीय हैं...*
* एक भारत, श्रेष्ठ भारत।*.

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