29/05/2024
शुशीला धुर्वे जी के पोस्ट पर मेरी टिप्पणी~
आपकी ये पोस्ट पढ़कर दुख,आश्चर्य, और कोफ़्त हुवा। इसलिए भी हुवा क्योंकि इस पोस्ट को बहुत से लोगों ने शेयर किया है। आपका ये कथन घटिया शब्दों में घटिया पोस्ट है। आप युवाओं के लिए चिंतित हैं ये जायज़ है, चिंतित होने चाहिए, सामाजिक कार्यकर्ता हैं आप। पर इस पोस्ट में भड़ास, फ्रस्टेशन और कुंठा साफ दिखाई दे रहा है। जिन्होंने भी इस पोस्ट को लाइक शेयर किया है और समर्थन किये हैं उनके भीतर भी भड़ास, फ्रस्टेशन और कुंठा है। आप इस तरह, युवाओं को अवेयर नहीं कर सकते, उन्हें नहीं जोड़ सकते। आधुनिकता और ट्रेंड्स को उन तक पहुंचने से नहीं रोक सकते। आप उन पर पहरा भी नहीं डाल सकते। आखिरकार कारपोरेट और कारपोरेट के बनाये ट्रेंड्स जाल को कैसे तोड़ेंगे? क्या ऐसी 4 लाइन के पोस्ट लिखकर तोड़ेंगे!
रचनात्मक बदलाव ऐसे तो नहीं आएगा, ना ही धर्म संस्क्रति सभ्यता के भाषणों और बड़े बड़े आयोजनों, सम्मेलनों से आएगा।
विचारों के आदान प्रदान, स्वास्थ संवाद और रिश्तों के व्यवहारिक ज्ञान पर बातचीत के साथ उम्र के साथ होने वाले शारीरिक और मानसिक परिवर्तन, पर्सनल हाइजीन और समसामयिक घटनाओं, विचारों पर हर घर,चौक चौराहों सहित सभा,सम्मेलनों, सेमिनारों में बातचीत की परंपरा से बदलाव आता है, पर ये परम्परायें तो कब की खत्म हो चुकी हैं। यहां भी कोई ढंग के डिस्कसन दिखाई नहीं देते। एक ग्रुप हुवा करता था "गोंडवाना फ्रेंड्स" उसमें 2014- 2015 तक बहुत ही knowledgeable discussion हुवा करता था। उस ग्रुप को षडयंत्र पूर्वक किन लोगों ने तोड़ा! ये शायद बहुत कम लोग जानते होंगे। ये अपने ही बीच हैं अपने ही लोग हैं और अब भी सबसे बड़ा ग्रुप होने और सबसे बड़ी विचारधारा होने का दम्भ भरते हैं।
आप लोग संविधान संविधान अधिकार अधिकार की बातें करते हैं, लड़कियों को इसी संविधान ने हक अधिकार दिए हैं। वे अपने समझ के अनुसार उन अधिकारों का प्रयोग करती हैं।
अगर किसी को अपने घर में प्यार और सम्मान नहीं मिलेगा तो वो बाहर ही कहीं ढूंढेगा चुपचाप।। भले ही वो प्यार और सम्मान झूठा ही हो। किसी ने बाहर प्यार और सम्मान पा लिया और अगर वो बालिग है तो उसको करने दो जीने दो ठोकर खाने दो सीखने दो। और सबक लेकर अगर वो वापिस आये तो उसी सम्मान और प्यार के साथ उसका साथ दो उसको साथ लो, सामाजिक बहिष्कार, दंड जैसी फालतू चीजों से कोई सुधार नहीं होता, होता रहा होगा किसी जमाने में अब नही होता। जो पीड़ित है उसका साथ देकर दूसरों को पीड़ित होने से बचाया जा सकता है। फालतू के समाज सेवक मत बनो भाई... सचमुच के समाज सेवक समाज से प्यार करते हैं, समाज का डर नहीं दिखाते समाज से जोड़ते हैं समाज से प्रेम का रिश्ता रखते हैं, आपसी सामंजस्य और सामाजिक सरोकारों का भाव रखते हैं।