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मंडी डिपो का "कोटली  दिल्ली " रूट जो की पहले वाया बिलासपुर दिल्ली जाता था , आज से इस रूट को फोरलेन भगेड़ से दिल्ली के चल...
14/04/2024

मंडी डिपो का "कोटली दिल्ली " रूट जो की पहले वाया बिलासपुर दिल्ली जाता था , आज से इस रूट को फोरलेन भगेड़ से दिल्ली के चलाया जा रहा है , इस रूट से जाने पर यात्रियों के समय पर काफी बचत होगी l

कोटली दिल्ली बस फेयर ₹663/-
० कोटली से चलने का समय:: 07:30 PM
० मंडी से चलने का समय:: 09:00 PM
० सुंदरनगर से चलने का समय:: 09:45 PM
० भगेड़ से चलने का समय:: 10:30 PM
० चण्डीगढ़ पहूंचने का समय:: 01:10 AM
० दिल्ली पहूंचने का समय:: 06:00 AM
_______________________________
०दिल्ली से चलने का समय:: 09:14 PM

14/04/2024

आज के मैच में हार के बावजूद मुंबई इंडियंस के फैंस चेन्नई सुपर किंग्स के फैंस से ज्यादा खुश थे 😎🤫🫣😜😝😋😌

07/04/2024

Ishq Tera Ishq menu ❤️ A cover by Vikram Sharma ।। Shobla Himachal Melodies 💕

आइए जानते हैं हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के सुंदरनगर में स्तिथ प्रसिद्ध "माता मुरारी देवी मंदिर" के बारे में🙏💐⤵️मुरारी द...
06/04/2024

आइए जानते हैं हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के सुंदरनगर में स्तिथ प्रसिद्ध "माता मुरारी देवी मंदिर" के बारे में🙏💐⤵️

मुरारी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के सुंदर नगर (मंडी) में एक महान और प्रसिद्ध स्थान है। यह मंदिर सुंदर नगर के पश्चिम में मुरारी धार नामक एक पवित्र पहाड़ी की चोटी पर है, जिसे सिकंदरा री धार (प्राचीन नाम) के नाम से भी जाना जाता है। यह माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान की थी। मुरारी देवी में कुछ चट्टानें भी हैं जिन पर कुछ बड़े मानव के पैरों के निशान देखे जा सकते हैं और स्थानीय लोगों का कहना है कि ये पैर के निशान पांडवों के हैं।

मुरारी देवी माता मंदिर का पौराणिक इतिहास ⤵️
प्राचीन काल में पृथ्वी पर मूर नामक एक पराक्रमी दैत्य हुआ। उस दैत्य ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की और उनसे वरदान मांगा कि मैं अमर हो जाऊं। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं विधि के विधानों से बन्धा हूं, इसलिये तुम्हे अमर होने का वरदान नहीं दे सकता, परन्तु मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम्हारा वध किसी भी देवता, मानव या जानवर के द्वारा नहीं होगा बल्कि एक कन्या के हाथों से होगा। घमण्डी मूर दैत्य ने सोचा कि मैं तो इतना शक्तिशाली हूं, एक साधारण कन्या मेरा वध कहाँ कर पायेगी? मैं तो अमर ही हो गया हूं। ये सोचकर उस दैत्य ने धरती पर अत्याचार करने शुरू कर दिये। उसने स्वर्ग पर आक्रमण करके देवताओं को वहाँ से निष्कासित कर दिया और स्वयं स्वर्ग का राजा बन बैठा। समस्त सृष्टि उसके अत्याचारों से त्रहि-त्राहि कर उठी। वो बहुत उपद्रव मचाता था। सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए, तो भगवान ने कहा चिंता मत करो, मैं अवश्य आपके कष्टों का निवारण करूँगा । भगवान विष्णु और मूर दैत्य का आपस में युद्ध आरम्भ हो गया जो दीर्घकाल तक चलता रहा। युद्ध को समाप्त न होता देख कर भगवान नारायण को स्मरण था की मूर का वध केवल कन्या के हाथों ही हो सकता है, ऐसा विचार करके वो हिमालय में स्थित सिकन्दरा धार (सिकन्दरा री धार) नामक पहाड़ी पर एक गुफा में जाकर लेट गए। मूर उनको ढूंढता हुआ वहां पहुंचा तो उस ने देखा की भगवान निद्रा में हैं और हथियार से भगवान पे वार करूं, ऐसा सोचा तो भगवान के शरीर से 5 ज्ञानेद्रियाँ, 5 कर्मेंद्रियाँ, 5 शरीर कोष और मन ऐसे 16 इन्द्रियों से एक कन्या उत्पन्न हुयी। उस कन्या का मूर दैत्य के साथ घोर युद्ध हुआ। तब उस देवी ने अपने शस्त्रों के प्रहार से मूर दैत्य को मार डाला। मूर दैत्य का वध करने के कारण ये कन्या माता मुरारी के नाम से जानी गयीं और उसी पहाड़ी पर दो पिण्डियों के रूप में स्थापित हो गयीं जिनमें से एक पिण्डी को शान्तकन्या और दूसरी को कालरात्री का स्वरूप माना गया है। माँ मुरारी के कारण ये पहाड़ी मुरारी धार के नाम से प्रसिद्ध हुई। द्वापर युग मे जब पांडव अपना अग्यातवास काट रहे थे, तब वो लोग इस स्थान पर आये। देवी ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि पहाड़ की चोटी पर जाकर खुदाई करो, उस स्थान पर तुम्हें मेरी पिण्डियां मिलेंगी। उस स्थान पर एक मन्दिर बना कर उन पिण्डियों की स्थापना करो। माता के आदेशनुसार पांडवों ने वहाँ एक भव्य मन्दिर का निर्माण किया। आज भी मन्दिर से थोड़े नीचे जाकर देखें तो वहाँ पर पांडवों के पदचिन्ह कुछ पत्थरों पर देखे जा सकते हैं। मंदिर में ठहरने के लिए मंदिर समिति द्वारा एक सराय का प्रबंध है और इसमें 80-100 लोगों के बैठने की क्षमता है। दोपहर और रात का भोजन भी लंगरों में प्रदान किया जाता है। एक कैंटीन भी है जहाँ लोग चाय या कोल्ड ड्रिंक ले सकते हैं। इस जगह की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय जनवरी से जून तक है। आपको एक बार इस आनंददायक स्थान पर जाने की योजना अवश्य बनानी चाहिए।

कैसे पहुंचा जाए माता के मंदिर⤵️
मुरारी देवी मंदिर तक पहुंचने के दो रास्ते हैं:-
1. मुख्य मार्ग सुंदर नगर से स्वराघात तक है जो लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर है। आप बस या किसी अन्य वाहन से स्वराघात पहुंच सकते हैं। स्वराघात पहुंचने के बाद, आपको स्वराघाट से लगभग 2 KM की दूरी पर स्थित मंदिर तक पहुँचने के लिए एक पैदल मार्ग पर ऊपर की ओर चलना होगा। स्वराघात में कुछ दुकानें हैं जहां आप कोल्ड ड्रिंक्स, मिठाई और अन्य पूजा सामाग्री खरीद सकते हैं।
2. मुरारी देवी मंदिर तक पहुंचने का एक अन्य रास्ता सुंदर नगर-मुरारी देवी (वायां लेदा) सड़क है जो निर्माणाधीन है, इसलिए अब तक कोई बस सेवा उपलब्ध नहीं है, लेकिन आप मोटर बाइक, स्कूटर और चार पहिया वाहन जैसे अन्य वाहनों द्वारा पहुंच सकते हैं।
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शोबला हिमाचल- "हमारी संस्कृति हमारा अभिमान" ।। Shobla Himachal- "Our Culture Our Pride"
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The beauty of Himachal Pradesh can’t be described in words ✍️
01/04/2024

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क्या कोई बता सकता है हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला में यह कौन सी जगह है ? 🤔
01/04/2024

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31/03/2024

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रामदरबार का आलौकिक नजारा 🙏💐
30/03/2024

रामदरबार का आलौकिक नजारा 🙏💐

28/03/2024

🌸🌺 भरी हुई जेब आपको कई गलत रास्तों पर ले जा सकती है, लेकिन खाली जेब आपको जिंदगी के कई मतलब समझाती है 🌺🌸

"My beloved Bharat and Bhartiya Janta’s own party, Bharatiya Janta party (BJP) has always had my unconditional support, ...
25/03/2024

"My beloved Bharat and Bhartiya Janta’s own party, Bharatiya Janta party (BJP) has always had my unconditional support, today the national leadership of BJP has announced me as their Loksabha candidate from my birth place Himachal Pradesh, Mandi (constituency). I abide by the high command’s decision on contesting Lok Sabha polls. I feel honoured and elated to officially join the party. I look forward to be a worthy karyakarta and a reliable public servant"
Kangana Ranaut Bharatiya Janata Party (BJP)
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CONGRATULATIONS & BEST WISHES TO KANGANA JI 💐

🌿🌸🌼🌺 जग में सुंदर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम 🌺🌼🌸🌿 ।। जय श्री राम 🙏💐
24/03/2024

🌿🌸🌼🌺 जग में सुंदर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम 🌺🌼🌸🌿 ।। जय श्री राम 🙏💐

21/03/2024

Mandi Shivratri 2024 Jaleb Glimpses ।। मंडी शिवरात्रि की जलेब के मनमोहक दृश्य ❤️

International Shivratri Festival Mandi 2024 ❤️
21/03/2024

International Shivratri Festival Mandi 2024 ❤️

21/03/2024

Whatever begins in anger🤬 ends in shame...😞

21/03/2024

दूसरों का भला कीजिये लाभ होगा,
क्यूंकि भला का उल्टा लाभ होता है..
दूसरों पर दया करोगे तो सदा याद किये जाओगे,
क्यूंकि दया का उल्टा याद होता है..

A HIDDEN FRESHWATER LAKE HOME TO A MYSTERIOUS FLOATING ISLAND 🗻Prashar Lake, Himachal Pradesh
21/03/2024

A HIDDEN FRESHWATER LAKE HOME TO A MYSTERIOUS FLOATING ISLAND 🗻
Prashar Lake, Himachal Pradesh

"In the embrace of Himachal Pradesh, find yourself lost and yet completely found."
21/03/2024

"In the embrace of Himachal Pradesh, find yourself lost and yet completely found."

NUMBER OF VOTING ON DIFFERENT POLLING DATES IN STATES & UNION TERRITORIES IN INDIA 🇮🇳
17/03/2024

NUMBER OF VOTING ON DIFFERENT POLLING DATES IN STATES & UNION TERRITORIES IN INDIA 🇮🇳

15/03/2024
🌺🌼🌸🌿हिमाचल प्रदेश (मंडी जिला) के राजा माधव राव (श्री कृष्ण) की भव्य तस्वीर 🌿🌸🌼 मंडी शिवरात्रि में इनका है अहम महत्व🙏💐   ...
13/03/2024

🌺🌼🌸🌿हिमाचल प्रदेश (मंडी जिला) के राजा माधव राव (श्री कृष्ण) की भव्य तस्वीर 🌿🌸🌼 मंडी शिवरात्रि में इनका है अहम महत्व🙏💐

✅ आइए जानते है "मंडी के प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि मेले" और "राजा माधव राव (श्री कृष्ण)" के महत्व के बारे में कुछ रोचक, अहम और ख़ास बातें ⤵️

✅ "मंडी शिवरात्रि मेला" एक वार्षिक प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय मेला है, जो भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर में शिवरात्रि के त्योहार के साथ शुरू हो जाता है और 7 दिनों के लिए आयोजित किया जाता है और बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है I

✅ मेले का आयोजन⤵️
मंडी शिवरात्रि मेले का आयोजन हर साल पञ्चाङ्ग के अनुसार कृष्ण पक्ष के 13 वें दिन या 13 वीं रात (सूर्योदय के बाद 14 दिनों पर उपवास) को फाल्गुन महीने में होने वाले व्रत चंद्रमा से होता है जोकि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार फरवरी या मार्च होता है। इस त्योहार की लोकप्रियता इतनी व्यापक है कि ये एक अंतर्राष्ट्रीय त्योहार के रूप में जाना जाता है। इस मेले में मंडी जिले के 200 से अधिक देवी-देवता इकट्ठा होते हैं। ब्यास नदी के तट पर स्थित मंडी शहर, जिसे "छोटी काशी" के रूप में जाना जाता है, हिमाचल प्रदेश के सबसे पुराने शहरों में से एक है, जिसकी परिधि में विभिन्न देवी-देवताओं के लगभग 81 मंदिर हैं। इस घटना के उत्सव से जुड़े कई किंवदंतियाँ हैं। यह उत्सव मंडी के संरक्षक देवता "माधव राव" (भगवान विष्णु) और मंडी के भूतनाथ मंदिर के भगवान शिव पर केंद्रित है I

✅ मंडी शिवरात्रि मेले का इतिहास⤵️
सोलहवीं शताब्दी में मंडी राज्य पर राजा अजबर सेन का शासन था, उन्होंने मंडी शहर के केंद्र में भूतनाथ मंदिर का निर्माण किया, जो उत्सव के दो मंदिरों में से एक है। इस अवधि के दौरान शिव और संबंधित देवी-देवताओं की पूजा प्रमुख थी। हालाँकि, राज्य की लोकतांत्रिक प्रकृति को विशेष बल तब मिला, जब राजा सूरज सेन के शासनकाल के दौरान, विष्णु पूजा भी राज्य के लिए अभिन्न अंग बन गई। राजा सूरज सेन (1664 से 1679), जिनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था, ने "माधव राव मंदिर" का निर्माण किया और जिसे भगवान विष्णु के एक रूप में मंडी के रक्षक के रूप में समर्पित किया। राधा और कृष्ण की एक सुरुचिपूर्ण चांदी की छवि उनकी सुनार भीम द्वारा बनाई गई थी, 1705 में, जिसे "माधव राव" नाम दिया गया था और बाद में मंडी राज्य के राजा के रूप में नियुक्त किया गया था। तब से शासकों ने माधव राव के सेवक और राज्य के संरक्षक के रूप में राज्य की सेवा की। इस भगवान को विभिन्न धार्मिक अवसरों पर अन्य सभी देवताओं से अधिक पूर्वता के साथ दर्शाया गया है। हालांकि, शिवरात्रि से शुरू होने वाले मेले के रूप में इस त्योहार का विशिष्ट पालनहार इसके शासक ईश्वरी सेन से जुड़ा हुआ है। पंजाब के संसार चंद द्वारा 1792 में छेड़े गए युद्ध में अपना राज्य खो देने के बाद ईशवरी सेन को 12 साल तक कैदी रखा गया था। उन्हें गोरखा आक्रमणकारियों द्वारा छोड़ा गया जिन्होंने कांगड़ा और मंडी राज्यों पर आक्रमण किया था। बाद में, गोरखाओं ने मंडी राज्य को ईश्वरी सेन को बहाल किया। उन्हें मंडी, उनकी राज्य की राजधानी लौटने के अवसर पर एक स्वागत दिया गया था। इस अवसर पर, राजा ने राज्य के सभी पहाड़ी देवी देवताओं को आमंत्रित किया और एक भव्य उत्सव का आयोजन किया, और यह दिन शिवरात्रि त्यौहार का दिन था। तब से हर साल मंडी में शिवरात्रि के दौरान मंडी मेले का आयोजन किया जाता है।

✅ मेले का अवलोकन⤵️
मेले का अवलोकन शिवरात्रि के दिन किया जाता है जब माधव राव और राजा को श्रद्धांजलि देने के लिए गाँव के देवी-देवताओं को पालकी या रथ द्वारा मंडी तक ले जाया जाता है। तत्पश्चात मेला सात दिनों तक चलता है। हर एक देवी-देवता सबसे पहले माधव राव मंदिर में भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करने के लिए ले जाए जाते हैं और फिर ये सुन्दर काफिला (ज़रेब) राजा (भगवान माधव राव के राज-प्रतिनिधि) के महल की ओर उनके सम्मान के लिए बढता है I माधव राव शिवरात्रि के दिन ही केवल एक बार अपने मंदिर से बाहर आते हैं और जुलूस का नेतृत्व करते हैं। इसके बाद शासक भूतनाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते हैं, जहां शिवरात्रि का मुख्य त्योहार होता है। देवी-देवताओं की पालकियोँ को भगवान विष्णु और शिव के मंदिरों में जाने के बाद उनकी खुशी में ढ़ोल नागडे और लोक संगीत के साथ पड्डल मैदान लाया जाता है। मेले में आमंत्रित देवी-देवताओं द्वारा श्रेणी और स्थिति के आधार पर पूजा के क्रम को बनाके रखा जाता है।

✅ कैसे पहुंचा जाए मंडी शहर ⤵️
मंडी शहर शिमला, चंडीगढ़, पठानकोट और दिल्ली से सड़क द्वारा पहुँचा जा सकता है I दिल्ली से मंडी की दूरी सड़क द्वारा लगभग 410 किमी है I

रेल द्वारा: संकीर्ण गेज लाइन द्वारा जोगिंदर नगर और शिमला निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। यह भारतीय रेलवे की ब्रॉड गेज लाइन द्वारा चंडीगढ़ और कालका से जुडे हुए हैI

हवाई जहाज द्वारा: कुल्लू-मनाली हवाई अड्डा भुंतर निकटतम हवाई अड्डा है, यह मंडी शहर से लगभग 50 किमी दुर है I
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शोबला हिमाचल "हमारी संस्कृति हमारा अभिमान"
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12/03/2024
India 🇮🇳 No. 1🥇🏆🏏 across all formats of World Cricket ICC - International Cricket Council Indian Cricket Team
12/03/2024

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10/03/2024

🪅अंतराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव,मंडी में देवता के साथ आए देवलुओं ने लगाई जोरदार पहाड़ी नाटी 🪅Live 🔴🎥✅ आइए जानते है...

10/03/2024

🌺🪅अंतराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में जब लगी देवता के सामने पहाड़ी नाटी 🪅🌺 Mandi Shivratri Live 🔴🎥✅ आइए जानते है "मंडी के प्र.....

09/03/2024

🌼🌸🌺🪅 अंतराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव मंडी 2024 हुआ देवमय।। सैंकड़ों स्थानीय देवी - देवताओं के आगमन से झूम उठी पूरी मंडी ।। Mandi Shivratri 2024 Visuals 🪅🌺🌸🌼 ।। Shobla Himachal Shorts ❤️

✅ आइए जानते है "मंडी के प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि मेले" के बारे में कुछ रोचक, अहम और ख़ास बातें ⤵️

✅ "मंडी शिवरात्रि मेला" एक वार्षिक प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय मेला है, जो भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर में शिवरात्रि के त्योहार के साथ शुरू हो जाता है और 7 दिनों के लिए आयोजित किया जाता है और बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है I

✅ मेले का आयोजन⤵️
मंडी शिवरात्रि मेले का आयोजन हर साल पञ्चाङ्ग के अनुसार कृष्ण पक्ष के 13 वें दिन या 13 वीं रात (सूर्योदय के बाद 14 दिनों पर उपवास) को फाल्गुन महीने में होने वाले व्रत चंद्रमा से होता है जोकि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार फरवरी या मार्च होता है। इस त्योहार की लोकप्रियता इतनी व्यापक है कि ये एक अंतर्राष्ट्रीय त्योहार के रूप में जाना जाता है। इस मेले में मंडी जिले के 200 से अधिक देवी-देवता इकट्ठा होते हैं। ब्यास नदी के तट पर स्थित मंडी शहर, जिसे "छोटी काशी" के रूप में जाना जाता है, हिमाचल प्रदेश के सबसे पुराने शहरों में से एक है, जिसकी परिधि में विभिन्न देवी-देवताओं के लगभग 81 मंदिर हैं। इस घटना के उत्सव से जुड़े कई किंवदंतियाँ हैं। यह उत्सव मंडी के संरक्षक देवता "माधव राव" (भगवान विष्णु) और मंडी के भूतनाथ मंदिर के भगवान शिव पर केंद्रित है I

✅ मंडी शिवरात्रि मेले का इतिहास⤵️
सोलहवीं शताब्दी में मंडी राज्य पर राजा अजबर सेन का शासन था, उन्होंने मंडी शहर के केंद्र में भूतनाथ मंदिर का निर्माण किया, जो उत्सव के दो मंदिरों में से एक है। इस अवधि के दौरान शिव और संबंधित देवी-देवताओं की पूजा प्रमुख थी। हालाँकि, राज्य की लोकतांत्रिक प्रकृति को विशेष बल तब मिला, जब राजा सूरज सेन के शासनकाल के दौरान, विष्णु पूजा भी राज्य के लिए अभिन्न अंग बन गई। राजा सूरज सेन (1664 से 1679), जिनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था, ने "माधव राव मंदिर" का निर्माण किया और जिसे भगवान विष्णु के एक रूप में मंडी के रक्षक के रूप में समर्पित किया। राधा और कृष्ण की एक सुरुचिपूर्ण चांदी की छवि उनकी सुनार भीम द्वारा बनाई गई थी, 1705 में, जिसे "माधव राव" नाम दिया गया था और बाद में मंडी राज्य के राजा के रूप में नियुक्त किया गया था। तब से शासकों ने माधव राव के सेवक और राज्य के संरक्षक के रूप में राज्य की सेवा की। इस भगवान को विभिन्न धार्मिक अवसरों पर अन्य सभी देवताओं से अधिक पूर्वता के साथ दर्शाया गया है। हालांकि, शिवरात्रि से शुरू होने वाले मेले के रूप में इस त्योहार का विशिष्ट पालनहार इसके शासक ईश्वरी सेन से जुड़ा हुआ है। पंजाब के संसार चंद द्वारा 1792 में छेड़े गए युद्ध में अपना राज्य खो देने के बाद ईशवरी सेन को 12 साल तक कैदी रखा गया था। उन्हें गोरखा आक्रमणकारियों द्वारा छोड़ा गया जिन्होंने कांगड़ा और मंडी राज्यों पर आक्रमण किया था। बाद में, गोरखाओं ने मंडी राज्य को ईश्वरी सेन को बहाल किया। उन्हें मंडी, उनकी राज्य की राजधानी लौटने के अवसर पर एक स्वागत दिया गया था। इस अवसर पर, राजा ने राज्य के सभी पहाड़ी देवी देवताओं को आमंत्रित किया और एक भव्य उत्सव का आयोजन किया, और यह दिन शिवरात्रि त्यौहार का दिन था। तब से हर साल मंडी में शिवरात्रि के दौरान मंडी मेले का आयोजन किया जाता है।

✅ मेले का अवलोकन⤵️
मेले का अवलोकन शिवरात्रि के दिन किया जाता है जब माधव राव और राजा को श्रद्धांजलि देने के लिए गाँव के देवी-देवताओं को पालकी या रथ द्वारा मंडी तक ले जाया जाता है। तत्पश्चात मेला सात दिनों तक चलता है। हर एक देवी-देवता सबसे पहले माधव राव मंदिर में भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करने के लिए ले जाए जाते हैं और फिर ये सुन्दर काफिला (ज़रेब) राजा (भगवान माधव राव के राज-प्रतिनिधि) के महल की ओर उनके सम्मान के लिए बढता है I माधव राव शिवरात्रि के दिन ही केवल एक बार अपने मंदिर से बाहर आते हैं और जुलूस का नेतृत्व करते हैं। इसके बाद शासक भूतनाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते हैं, जहां शिवरात्रि का मुख्य त्योहार होता है। देवी-देवताओं की पालकियोँ को भगवान विष्णु और शिव के मंदिरों में जाने के बाद उनकी खुशी में ढ़ोल नागडे और लोक संगीत के साथ पड्डल मैदान लाया जाता है। मेले में आमंत्रित देवी-देवताओं द्वारा श्रेणी और स्थिति के आधार पर पूजा के क्रम को बनाके रखा जाता है।

✅ कैसे पहुंचा जाए मंडी शहर ⤵️
मंडी शहर शिमला, चंडीगढ़, पठानकोट और दिल्ली से सड़क द्वारा पहुँचा जा सकता है I दिल्ली से मंडी की दूरी सड़क द्वारा लगभग 410 किमी है I

रेल द्वारा: संकीर्ण गेज लाइन द्वारा जोगिंदर नगर और शिमला निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। यह भारतीय रेलवे की ब्रॉड गेज लाइन द्वारा चंडीगढ़ और कालका से जुडे हुए हैI

हवाई जहाज द्वारा: कुल्लू-मनाली हवाई अड्डा भुंतर निकटतम हवाई अड्डा है, यह मंडी शहर से लगभग 50 किमी दुर है I
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08/03/2024

🌾🌿🌺🥀🌸 जय जटला ऋषि 🌸🥀🌺🌿🌾

आइए जानते हैं हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के तुंगल घाटी के ऐसे प्रसिद्ध देव स्थल के बारे में जहां नि:संतान दंपतियों को होती है मनवांछित संतान की प्राप्ति 🙏💐

✅ हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला में तुंगल घाटी की गोखड़ा पंचायत में पपराहल गांव के समीप है स्तिथ है यह देव स्थल जिसे जटला ऋषि की आल (सरोवर) के नाम से जाना जाता है। यह देवस्थल ऋषि जटला जी को समर्पित है, कहा जाता है इस स्थान पर ऋषि जटला जी ने तपस्या की थी, इसलिए यह उनकी तपोभूमि के रूप में जानी जाती है। इस स्थान की मान्यता है कि यहीं नि:संतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति होती है। नि:संतान महिलाएं अपने साथ पांच-पांच दाडू या अखरोट के दाने लाती हैं और सरोवर में फेंकती है, यह दाने पानी के प्रवाह के साथ-साथ सरोवर में नीचे की तरफ तैरते हैं, एक स्थान पर नि:संतान महिलाएं अपना आंचल पानी में फैला कर बैठ जाती है, इसी तरह महिलाएं पानी के एक छोर पर घंटो बैठी रहती है और इस तपस्या के फलस्वरूप अगर कोई अखरोट या दाडू उनकी झोली में आकर ठहर जाए तो माना जाता है की ऋषि जटला का आशीर्वाद उन्हे प्राप्त हुआ है और उन्हें संतान की प्राप्ति होगी। इस स्थान के प्रति यही विश्वास एवम श्रद्धा लोगों को आकर्षित करता है, स्थानीय निवासियों में इस स्थान के प्रति गहरी आस्था है। यह स्थल अपनी धार्मिक महता होने के साथ-साथ अपनी सुन्दरता के लिए भी प्रसिद्ध है, जंगल के बीच यह पानी की यह आल बहुत खूबसूरत लगती है। दूर-दूर से लोग यहां आते हैं और उनकी इस स्थान के प्रति गहरी आस्था और विश्वास है।

✅ कैसे पहुंचा जाए यहां पर
जटला ऋषि की आल तक पहुंचना बहुत आसान है। मंडी से कोटली मार्ग पर तलयाहढ से लगभग दो किलोमीटर की दूरी से निकले गोखड़ा लिंक पर पपराहाल गांव तक सड़क द्वारा पहुंचा जा सकता है। यह तक की दूरी मंडी से लगभग 11 किलोमीटर की है। यहां पहुंचने के बाद पैदल रास्ते से लगभग आधे घंटे में जटला ऋषि की आल तक पहुंचा जा सकता है।
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08/03/2024

आइए जानते हैं हिमाचल प्रदेश के ज़िला मंडी की सबसे महत्त्वपूर्ण तहसील "कोटली" के बारे में 🙏💐

✅ कोटली मंडी शहर से केवल 22 किमी की दूरी पर स्थित एक छोटा शहर है। कोटली मंडी की एक तहसील भी है। कोटली और आसपास के क्षेत्र को तुंगल घाटी के रूप में जाना जाता है और इसका मंडयाली संस्कृति में बहुत महत्व है। यहां की बोली मंडयाली है। मंडी से जालंधर तक एनएच 003 (पुराना नंबर एनएच 70) यहां से गुजरता है। कोटली में लगभग हर सुविधाएं हैं जैसे तहसील, आईपीएच, एचपी पीडब्लूडी और बिजली बोर्ड सब डिवीजन, सरकारी कॉलेज, आईटीआई, स्कूल, डाकघर, अस्पताल, इत्यादि। कोटली एक ग्राम पंचायत भी है।

✅ धार्मिक महत्व: आसपास के क्षेत्र में विभिन्न मंदिर हैं जैसे कि:-
🙏माहन देव- कोटली से माहन देव मंदिर की दूरी 14 किमी
🙏रछेरा देव-कोटली से रछेरा देव की दूरी 02 किमी
🙏जानित्री माता-कोटली से जानित्री माता की दूरी 14 किमी
🙏टिल्या माता-कोटली से टिल्या माता की दूरी 04 किमी
🙏सुरगनी माता-कोटली से सुरगनी माता की दूरी 04 किमी
🙏झगरू देव मंदिर, पिजु पाल देव, कासला देव, कुमराह देव मंदिर, तेज बहादुर सिंह, त्रोका वाली देवी मंदिर, नागनी देवी मंदिर, मुरह देवी, झुंबा माता इत्यादि।

✅ पर्यटन की दृष्टि से: कोटली के पास कुछ स्थान हैं जैसे कि जानित्री धार, रछेरा देव धार, इत्यादि जहाँ पर्यटक घूमने के लिए जा सकते हैं, लेकिन अनुपलब्ध बुनियादी सुविधाओं और होटलों के कारण यहाँ बहुत कम लोग आते हैं। पीडब्ल्यूडी और वन अतिथि गृह कोटली में रात्रि प्रवास के लिए उपलब्ध हैं। यहाँ की अधिकांश जनसंख्या साक्षर है और मुख्य पेशा कृषि है, कुछ लोग सरकारी और निजी सेवाओं में हैं, लेकिन निश्चित रूप से प्रत्येक परिवार से भारतीय सेना में एक व्यक्ति सेवा कर रहा है। अरनोदी "खड्ड" कुण का तर में ब्यास नदी से मिलने के लिए तुंगल घाटी के साथ बहती है।

✅ प्रसिद्ध मेलों में साईगलू का सात दिवसीय मेला, माहन देव का तीन दिवसीय मेला और जानित्री जालपा माता का एक दिवसीय मेला जो साल में दो बार होता है।
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08/03/2024

आइए जानते है मंडी के प्रसिद्ध देवता कमरुनाग जी और उनकी रहस्यमयी झील के बारे में 🙏💐

✅ कमरुनाग जी (अन्य नाम वीर बर्बरीक, श्री खाटू श्याम जी, बबरुभान जी) को हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िला में बारिश के देवता के रूप में जाना जाता है। कमरूनाग जी का मंदिर एक घने जंगल के बीच में मंडी के कामराह नामक गांव में स्थित है। इस स्थान पर हर साल 14 जून को तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। पौराणिक परंपरा के अनुसार भक्त अपनी श्रद्धा भाव से सोने-चांदी इत्यादि के आभूषण, सिक्के एवं पैसे का चढ़ावा एक छोटी सी झील में विसर्जित कर देवता को अर्पित करते हैं । मंदिर का पुजारी नाग देवता की ओर से एक माध्यम के रूप में यहाँ कार्य करता है।

✅ इस स्थान का पौराणिक इतिहास
हिमालय में हर दूसरे मंदिर, शिखर और झील की तरह, इस स्थान की भी एक कहानी है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कमरुनाग महाभारत के महान युद्ध में भाग लेना चाहते थे। ये धरती के सबसे शक्तिशाली योद्धा थे। लेकिन ये भगवान श्री कृष्ण जी की नीति से हार गए थे। इन्होने कहा था कि कोरवों और पांडवों में जिसकी सेना हारने लगेगी वे उसका साथ देंगे। लेकिन भगवान् श्री कृष्ण ये जानते थे कि इस तरह अगर इन्होने कोरवों का साथ दे दिया तो पाण्डव जीत नहीं पायेंगे। श्री कृष्ण जी ने एक शर्त लगा कर इन्हे हरा दिया और बदले में इनका सिर मांग लिया। लेकिन कमरुनाग जी ने एक इच्छा जाहिर की कि वे महाभारत का युद्ध देखेंगे, इसलिए भगवान् कृष्ण जी ने इनके काटे हुए सिर को हिमालय के एक उंचे शिखर पर पहुंचा दिया। लेकिन जिस तरफ इनका सिर घूमता वह सेना जीत की ओर बढ्ने लगती। तब भगवान कृष्ण जी ने सिर को एक पत्थर से बाँध कर इन्हे पांडवों की तरफ घुमा दिया। इन्हें पानी की दिक्कत न हो इसलिए भीम ने यहाँ अपनी हथेली को गाड़ कर एक झील बना दी। यह भी कहा जाता है कि इस झील में सोना चांदी चढ़ानें से मन्नत पुरी होती है। लोग अपने शरीर का कोई भी गहना यहाँ चढ़ा देते हैं। झील पैसों से भरी रहती है, ये सोना-चांदी कभी भी झील से निकाला नहीं जाता क्योंकि ये देवताओं का होता है। ये भी मान्यता है कि ये झील सीधे पाताल लोक तक जाती है। इस में देवताओं का खजाना छिपा है। हर साल जून महीने में 14 और 15 जून को कमरुनाग जी भक्तों को दर्शन देते हैं। झील घने जंगल में है और इन दिनों के बाद यहाँ कोई भी पुजारी नहीं होता। यहाँ बर्फ भी पड़ जाती है।

✅ सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व
कमरुनाग झील काफी धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है। झील के किनारे स्थित कमरुनाग देव का मंदिर मंडी जिले के सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों में से एक है। हिंदू कथाओं के अनुसार यक्ष (धन के देवता) इस क्षेत्र में निवास करते थे। कमरुनाग का महान हिंदू महाकाव्य महाभारत में उल्लेख है। कमरुनाग देव को "बारिश के देवता" के रूप में भी जाना जाता है और लोग मौसम की अनुकूल परिस्थितियों के लिए बड़ी संख्या में मंदिर जाते हैं।

✅ कैसे पहुँचा जाए कमरुनाग मंदिर
कमरुनाग के लिए कोई सीधी सड़क नहीं है, यहाँ केवल ट्रेकिंग द्वारा पहुंचा जा सकता है, निकटतम सड़क संपर्क रोहंडा में है जो मंडी से 55 किलोमीटर और सुंदरनगर से 35 किलोमीटर दूर है।
कमरुनाग झील सुंदरनगर-रोहंडा 35 किलोमीटर (सड़क मार्ग) से और उसके बाद रोहंडा-कमरुनाग 6 किलोमीटर (पैदल यात्रा)
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अंतराष्ट्रीय शिवरात्रि मेला 🪅, मंडी, हिमाचल प्रदेश की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।। जय भोले नाथ 🙏💐        ✅ आइए जानते ह...
08/03/2024

अंतराष्ट्रीय शिवरात्रि मेला 🪅, मंडी, हिमाचल प्रदेश की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।। जय भोले नाथ 🙏💐

✅ आइए जानते है "मंडी के प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि मेले" के बारे में कुछ रोचक, अहम और ख़ास बातें ⤵️

✅ "मंडी शिवरात्रि मेला" एक वार्षिक प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय मेला है, जो भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर में शिवरात्रि के त्योहार के साथ शुरू हो जाता है और 7 दिनों के लिए आयोजित किया जाता है और बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है I

✅ मेले का आयोजन⤵️
मंडी शिवरात्रि मेले का आयोजन हर साल पञ्चाङ्ग के अनुसार कृष्ण पक्ष के 13 वें दिन या 13 वीं रात (सूर्योदय के बाद 14 दिनों पर उपवास) को फाल्गुन महीने में होने वाले व्रत चंद्रमा से होता है जोकि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार फरवरी या मार्च होता है। इस त्योहार की लोकप्रियता इतनी व्यापक है कि ये एक अंतर्राष्ट्रीय त्योहार के रूप में जाना जाता है। इस मेले में मंडी जिले के 200 से अधिक देवी-देवता इकट्ठा होते हैं। ब्यास नदी के तट पर स्थित मंडी शहर, जिसे "छोटी काशी" के रूप में जाना जाता है, हिमाचल प्रदेश के सबसे पुराने शहरों में से एक है, जिसकी परिधि में विभिन्न देवी-देवताओं के लगभग 81 मंदिर हैं। इस घटना के उत्सव से जुड़े कई किंवदंतियाँ हैं। यह उत्सव मंडी के संरक्षक देवता "माधव राव" (भगवान विष्णु) और मंडी के भूतनाथ मंदिर के भगवान शिव पर केंद्रित है I

✅ मंडी शिवरात्रि मेले का इतिहास⤵️
सोलहवीं शताब्दी में मंडी राज्य पर राजा अजबर सेन का शासन था, उन्होंने मंडी शहर के केंद्र में भूतनाथ मंदिर का निर्माण किया, जो उत्सव के दो मंदिरों में से एक है। इस अवधि के दौरान शिव और संबंधित देवी-देवताओं की पूजा प्रमुख थी। हालाँकि, राज्य की लोकतांत्रिक प्रकृति को विशेष बल तब मिला, जब राजा सूरज सेन के शासनकाल के दौरान, विष्णु पूजा भी राज्य के लिए अभिन्न अंग बन गई। राजा सूरज सेन (1664 से 1679), जिनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था, ने "माधव राव मंदिर" का निर्माण किया और जिसे भगवान विष्णु के एक रूप में मंडी के रक्षक के रूप में समर्पित किया। राधा और कृष्ण की एक सुरुचिपूर्ण चांदी की छवि उनकी सुनार भीम द्वारा बनाई गई थी, 1705 में, जिसे "माधव राव" नाम दिया गया था और बाद में मंडी राज्य के राजा के रूप में नियुक्त किया गया था। तब से शासकों ने माधव राव के सेवक और राज्य के संरक्षक के रूप में राज्य की सेवा की। इस भगवान को विभिन्न धार्मिक अवसरों पर अन्य सभी देवताओं से अधिक पूर्वता के साथ दर्शाया गया है। हालांकि, शिवरात्रि से शुरू होने वाले मेले के रूप में इस त्योहार का विशिष्ट पालनहार इसके शासक ईश्वरी सेन से जुड़ा हुआ है। पंजाब के संसार चंद द्वारा 1792 में छेड़े गए युद्ध में अपना राज्य खो देने के बाद ईशवरी सेन को 12 साल तक कैदी रखा गया था। उन्हें गोरखा आक्रमणकारियों द्वारा छोड़ा गया जिन्होंने कांगड़ा और मंडी राज्यों पर आक्रमण किया था। बाद में, गोरखाओं ने मंडी राज्य को ईश्वरी सेन को बहाल किया। उन्हें मंडी, उनकी राज्य की राजधानी लौटने के अवसर पर एक स्वागत दिया गया था। इस अवसर पर, राजा ने राज्य के सभी पहाड़ी देवी देवताओं को आमंत्रित किया और एक भव्य उत्सव का आयोजन किया, और यह दिन शिवरात्रि त्यौहार का दिन था। तब से हर साल मंडी में शिवरात्रि के दौरान मंडी मेले का आयोजन किया जाता है।

✅ मेले का अवलोकन⤵️
मेले का अवलोकन शिवरात्रि के दिन किया जाता है जब माधव राव और राजा को श्रद्धांजलि देने के लिए गाँव के देवी-देवताओं को पालकी या रथ द्वारा मंडी तक ले जाया जाता है। तत्पश्चात मेला सात दिनों तक चलता है। हर एक देवी-देवता सबसे पहले माधव राव मंदिर में भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करने के लिए ले जाए जाते हैं और फिर ये सुन्दर काफिला (ज़रेब) राजा (भगवान माधव राव के राज-प्रतिनिधि) के महल की ओर उनके सम्मान के लिए बढता है I माधव राव शिवरात्रि के दिन ही केवल एक बार अपने मंदिर से बाहर आते हैं और जुलूस का नेतृत्व करते हैं। इसके बाद शासक भूतनाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते हैं, जहां शिवरात्रि का मुख्य त्योहार होता है। देवी-देवताओं की पालकियोँ को भगवान विष्णु और शिव के मंदिरों में जाने के बाद उनकी खुशी में ढ़ोल नागडे और लोक संगीत के साथ पड्डल मैदान लाया जाता है। मेले में आमंत्रित देवी-देवताओं द्वारा श्रेणी और स्थिति के आधार पर पूजा के क्रम को बनाके रखा जाता है।

✅ कैसे पहुंचा जाए मंडी शहर ⤵️
मंडी शहर शिमला, चंडीगढ़, पठानकोट और दिल्ली से सड़क द्वारा पहुँचा जा सकता है I दिल्ली से मंडी की दूरी सड़क द्वारा लगभग 410 किमी है I

रेल द्वारा: संकीर्ण गेज लाइन द्वारा जोगिंदर नगर और शिमला निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। यह भारतीय रेलवे की ब्रॉड गेज लाइन द्वारा चंडीगढ़ और कालका से जुडे हुए हैI

हवाई जहाज द्वारा: कुल्लू-मनाली हवाई अड्डा भुंतर निकटतम हवाई अड्डा है, यह मंडी शहर से लगभग 50 किमी दुर है I
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