11/03/2023
बिहार का एक पत्रकार है मनीष कश्यप
बहुत हिम्मत वाला लड़का है। अभियांत्रिकी बैकग्राउंड से है। लेकिन उसने इंजीनियरिंग छोड़कर हाथ में माइक थाम लिया। कोई लाव लश्कर नहीं। कोई बड़ी फंडिंग, कोई बड़ा स्पॉन्सरशिप, कोई इकोसिस्टम, कोई गॉडफादर नहीं। कुछ नहीं। बस माइक उठाकर सड़कों पर खड़ा हो गया और सड़कों की गली नालियों और पेयजल से बोलना शुरू किया। बिहार में मुद्दों की कमी नहीं है। जहां खड़े हो जाइए भ्रष्टाचार, जातिवाद आपको वहीं से मिल जाएगा।
मनीष कश्यप अच्छा नहीं बोलता है। आवाज उसकी उंची है। व्याकरण तो बिल्कुल भी नहीं मालूम। चीखता-चिल्लाता है। लेकिन बड़ी जिम्मेदारी से कहता हूं, एक बार उसके कवरेज पर नजरें चली जाए फिर आप बिना पूरी सुने आगे स्लाइड नहीं हो सकते। इसी का नतीजा है उसके वीडियोज मिलियंस ऑफ व्यूज में जाते हैं। ऐसे ही देखते कुछ वर्षों की आवाज में वह बिहार का एक बड़ा पत्रकार बन गया।
खुद को बिहार का बेटा लिखने वाला मनीष कश्यप जब बोलता है, तब लगता है बिहार बोल रहा है। क्योंकि उसका कोई गॉडफादर नहीं है। उसका कोई जॉर्ज सोरोस नहीं है। वह पूरी स्वतंत्रता से बोलता है। वह सरकारी कार्यालयों में ढ़ीठ की तरह घुस जाता है। सबसे सवाल करता है। वाजिब सवाल करता है। और वह इसे रेलना कहता है। कहता है हम पत्रकारिता नहीं करते, हम रेलते हैं। वह बिहार के जातिवाद के खिलाफ खड़ा होता है। वह बिहार के मजदूरों के साथ खड़ा होता है। वह ऐसे सामाजिक सांप्रदायिक पीड़ितों के घर जाता है, जहां पर नेताओं का पहुंचना एजेण्डे के सांचे में नहीं बैठता हो।
तमिलनाडु मामले पर मनीष कश्यप खेल गया। मामले को बैलेंस करना उसकी पत्रकारिता में नहीं है। मजदूरों के समर्थन में एकतरफा खड़ा हो गया। उसके ऊपर प्राथमिकी दर्ज हो गई। गिरफ्तारी उसकी होने होने को है। लेकिन हिम्मत देखिए उसकी, कह रहा है हम गिरफ्तारी देंगे, लेकिन 180 दिनों में तेजस्वी यादव हम आपकी सरकार गिरा देंगे। सरकार गिराना नहीं गिराना दूसरी बात है। लेकिन बिहार की जनता आई स्टैंड विद मनीष कश्यप लिख रही है। मनीष के आवाज में जो मजबूती है, आत्मविश्वास जितना बुलंद है, जैसे यही बिहार के माटी अंगराई हो। बिहार कब करवट लेगा, सवाल मन में कौतूहल पैदा करता है।