20/12/2024
मारवाड़ी कॉलेज के संस्कृत विभाग, डा प्रभात दास फाउंडेशन तथा ज्योतिर्वेद विज्ञान संस्थान द्वारा द्वि- दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम उद्धाटित ।
अशोक के अभिलेखों की भाषा और लिपि का विश्लेषण' विषयक सिंपोजियम में 120 से अधिक शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने की सहभागिता
मारवाड़ी कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभाग, डॉ प्रभात दास फाउंडेशन, दरभंगा तथा ज्योतिर्वेद विज्ञान संस्थान, पटना के संयुक्त तत्वावधान में "अशोक के अभिलेखों की भाषा और लिपि का विश्लेषण" विषय पर द्वि- दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम का उद्घाटन प्रधानाचार्य डॉ कुमारी कविता की अध्यक्षता में मारवाड़ी कॉलेज के भाषा- प्रयोगशाला में ऑनलाइन एवं ऑफलाइन मोड में किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में बौद्ध एवं पालि विश्वविद्यालय, श्रीलंका के वरीय आचार्य डॉ कंदेगम दीप वंसालंकार थेरो, सम्मानित अतिथि के रूप में डीएमसीएच के पूर्व अधीक्षक डॉ सूरज नायक तथा विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर आर एन चौरसिया विशिष्ट अतिथि, अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ विनोद बैठा वक्ता, बर्सर डॉ अवधेश यादव रिपोर्ट लेखक, ज्योतिर्वेद विज्ञान संस्थान, पटना के निदेशक डॉ राजनाथ झा स्वागत कर्ता, संस्कृत विभागाध्यक्ष एवं संयोजक डॉ विकास सिंह संचालक तथा डॉ प्रभात दास फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा धन्यवाद कर्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त किये। वहीं संस्कृत एवं भारतीय अध्ययन संस्थान, जेएनयू, नई दिल्ली के प्रोफेसर सी उपेन्द्र राव ऑनलाइन मुख्य वक्ता के रूप में अपने वक्तव्य रखे। कार्यक्रम में डॉ राम नारायण राय, डॉ रवि कुमार राम, डॉ वीर सनातन पूर्णेन्दु, डॉ सुधीर कुमार दास, डॉ श्रवण कुमार, डॉ सुभाष कुमार सुमन, डॉ विष्णुदेव मोची, उमेश राय, बालकृष्ण कुमार सिंह सहित 120 से अधिक व्यक्ति शामिल थे। अतिथियों का स्वागत पाग, चादर, फाइल, मोमेंटो तथा पुष्प पौधों से हुआ। सनातन वैदिक गुरुकुल दीप, झंझारपुर के ब्रह्मचारियों ने वैदिक एवं लौकिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया।
अध्यक्षीय संबोधन में डॉ कुमारी कविता ने कहा कि यह सिंपोजियम हमें अशोक कालीन भाषा और लिपि को जानने का अवसर प्रदान कर रहा है। ये अभिलेख अशोक की शासन शैली का दर्पण है। अशोक की करुणा, अहिंसा, धम्म एवं जन- कल्याणकारी नीति सार्वभौमिक हैं जो सामाजिक सद्भाव की स्थापना में मददगार भी हैं। उन्होंने कहा कि अशोक की ब्राह्मी लिपि भारतीय भाषाओं की नींव हैं जो शिलाओं, धातु- प्लेटों, ताड़ के पत्तों आदि पर लिखे जाते थे।
मुख्य अतिथि डॉ थेरो ने कहा कि अशोक श्रीलंका और भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के आरंभ कर्ता थे, जिनके पुत्र और पुत्री ने हमें धम्म की शिक्षा दी, जिसे हम आज तक संजोकर रखे हैं। अशोक के अभिलेख प्राचीन भारतीय इतिहास का एक अद्वितीय स्रोत है। ब्राह्मी लिपि एवं प्राकृत भाषा में लिखे अशोक के अभिलेख हमें बताते हैं कि कैसे भारत के विभिन्न क्षेत्रों में संवाद स्थापित किया गया था?
मुख्य वक्ता प्रो सी उपेन्द्र राव ने कहा कि सम्राट अशोक के अभिलेख काफी संख्या में मिले हैं, जिनमें ज्यादातर ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं। इनसे अशोक के जीवन में आंतरिक परिवर्तन, अहिंसा के प्रयोग, उनकी शासन व्यवस्था आदि के बारे में काफी जानकारियां मिलती हैं। अशोक की लोकप्रियता के कारण ही उन्हें 'देवानां प्रियो' तथा 'प्रियदर्शी' कहा गया था। उन्होंने कहा कि प्राचीन लिपियों का अध्ययन प्राचीन इतिहास तथा भारतीय संस्कृति को जानने का महत्वपूर्ण प्रयास है। सम्मानित अतिथि डॉ सूरज नायक ने कहा कि 'डिकोडिंग' शब्द यह बताता है कि आज विद्वान उन लिपियों और भाषाओं को आधुनिक साधनों- डिजिटल फॉरेंसिक एवं भाषाई विश्लेषण के द्वारा पुनः जीवन्त करने की दिशा में कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि कलिंग युद्ध के बाद अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ और वह बौद्ध धर्म को स्वीकार कर अहिंसा का प्रसार किया।
विशिष्ट अतिथि डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि राजतंत्र का कालखंड होते हुए भी अशोक बेहतरीन प्रजा पालक एवं जनकल्याणकारी शासक थे, जिनसे आज के शासकों को भी सीख लेने की जरूरत है। अशोक ने प्रजा कल्याणार्थ ही सड़क, अस्पताल, पेयजल, सराय आदि की व्यवस्था की थी। उन्होंने कहा कि अशोक की प्रमुख लिपि ब्राह्मी सभी भारतीय लिपियों की जननी कही जाती है जो प्राचीन भारत की प्रशासनिक, धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक आदि व्यवस्थाओं की जानकारी का मुख्य स्रोत है। डॉ बिनोद बैठा ने कहा कि इस कार्यक्रम से छात्रों एवं शिक्षकों को काफी लाभ होगा, क्योंकि अशोक की लिपियों की जानकारी से उनके कल्याणकारी कार्यों को हम अधिक जान पाएंगे। डॉ अवधेश प्रसाद यादव ने कहा कि सिंपोजियम का विषय काफी उपयोगी एवं रोचक है। शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों को इस आयोजन से अधिक से अधिक लाभ उठाना चाहिए।
संचालन करते हुए संयोजक डॉ विकास सिंह ने कहा कि हमेशा ज्ञान में रत रहने के कारण ही पहले भारत विश्वगुरु था और ज्ञान के बल पर ही पुनः 2047 तक भारत विकसित राष्ट्र बनेगा। इस क्षेत्र में आगे भी और अधिक काम करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि दो दिनों में कई तकनीकी सत्र भी आयोजित किए जाएंगे। वहीं अतिथियों का स्वागत ज्योतिषाचार्य डॉ राजनाथ झा ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन करते हुए फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने कहा कि इस विषय पर और कई व्याख्यान कराने की जरूरत है। आगे भी फाउंडेशन ऐसे कार्यक्रमों में हर तरह से मदद करेगा।