साहित्य कैफ़े a Cup of Feelings

साहित्य कैफ़े a Cup of Feelings साहित्य का अर्थ है सबका या समाज का हित, हम साहित्यकारों की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि हमारा लेखन समाज और संस्कृति को उन्नत रखे। आओ मिलकर समाज की सेवा करें।

     #साहित्यकैफ़े
02/10/2024

#साहित्यकैफ़े

02/10/2024
24/09/2024

एक नयी पहल -

मैं प्रयास करूँगा कि कविताओं के सिवा हिन्दी व्याकरण से जुड़ी जानकारियां भी आप सभी तक पहुँचे जिससे कि नए लेखकों की शैली में सुधार हो सके । आप सब मिलकर इस प्रयास को सार्थक करें। पेज की पोस्ट को शेयर कर दिया कीजिए जिससे कि हमारा भी मनोबल कमजोर न हो।

आज कुछ
समानार्थक प्रतीत होने वाले भिन्‍नार्थक शब्‍द
*****

अभिमान – अपने को दूसरों से बड़ा समझने का घमण्‍ड।
अहंकार – झूठा घमण्‍ड।
गर्व – आत्‍म सम्‍मान सहित अभिमान।

अनभिज्ञ – जो किसी एक बात को नहीं जानता।
अज्ञ – जो कुछ नहीं जानता।
अज्ञेय – जो न जाना जा सके।

प्रेम – छोटे-बड़े, हमउम्र सबके प्रति स्निग्‍ध भाव।
स्‍नेह – छोटों के प्रति स्निग्‍ध भाव।
आसक्ति – मोहजनित लगाव।
प्रणय – विपरीत लिंगों में एक दूसरे के प्रति उत्‍पन्‍न स्निग्‍ध भाव।
वात्‍सल्‍य – माता-पिता का बच्‍चों के प्रति प्रेम।

आज्ञा – इज़ाज़त भी, आदेश भी ।
अनुमति – इज़ाज़त।

अनुरोध – विनय पूर्वक किया गया आग्रह।
आग्रह – विनय के साथ-साथ अधिकार भाव से की गई प्रार्थना।
अनुकंपा – दूसरों के प्रति संवेदनशील होना/सहानुभूति पूर्ण कृपा।

अन्‍वेषण – अज्ञात पदार्थ स्‍थानादि का पता लगाना।
अनुसंधान – छानबीन, जाँचपड़ताल।
आविष्‍कार – किसी नवीन सिद्धान्‍त की खोज करना

इच्‍छा – सामान्‍य वस्‍तु को पाने की साधारण चाह।
अनुभव – कर्मेन्द्रियों द्वारा प्राप्‍त होने वाला ज्ञान।
अनुभूति – ज्ञनेंद्रियों द्वारा तात्‍कालिक प्राप्‍त होने वाला आन्‍तरिक ज्ञान।

अध्‍यक्ष – किसी सुसंगठित विधायी संस्‍था का प्रधान।
सभापति – आयोजित सभा का प्रधान।

अधिवेशन – किसी संस्था का बड़ा सम्मेलन।
बैठक – किसी संस्था की किसी समिति की थोड़े समय के लिए सभा।

आधि – मानसिक रोग/पीड़ा।
व्याधि – शारीरिक रोग/पीड़ा।

अनुमोदन – किसी कार्यवाही या कथन पर सहमति देना।
समर्थन – किसी प्रस्ताव या विचार पर सहमति देना।

अन्याय – न्याय के विरुद्ध काम।
अपराध – कानून का उल्लंघन।

विचित्र – नियमित से भिन्‍न।
विलक्षण – विरल लक्षण वाला

अवस्था – वर्तमान समय की उम्र की गणना।
आयु – सम्पूर्ण जीवन की उम्र की गणना।

अस्‍त्र – फेंककर चलाया जाने वाला हथियार।
शस्‍त्र – हाथ में थामकर चलाया जाने वाला हथियार।

अनुपम – जिसकी तुलना नहीं हो सकती।
अद्वितीय – जिसके समान कोई दूसरा न हो।

अपयश – स्थाई बदनामी।
कलंक – चरित्र पर अस्थाई दोष।

अध्ययन – सामान्य पठन-पाठन।
अनुशीलन – चिंतन-मनन सहित अध्ययन।

अनबन – दो व्यक्तियों की आपस में न बनना।
खटपट – दो पक्षों के बीच झगड़ा।

अर्पण – अपने से बड़ों के लिए।
प्रदान – बड़ों की ओर से छोटों के लिए।

आदि – एक-दो उदाहरणों के बाद।
इत्यादि – कई उदाहरणों के बाद

अर्चना – पुष्प, नैवेद्य आदि से देवता की पूजा।
पूजा – वस्तुओं के बिना, भाव से ईश्वर की प्रार्थना।
आराधना – मनोकांक्षा की पूर्ति हेतु इष्ट की पूजा।
उपासना – इष्टदेव की प्रार्थना।

अधिक – सीमा से ज्यादा।
काफी – निर्धारित सीमा के अनुरूप।
अनुमान – बौद्धिक तर्क द्वारा लिया गया निर्णय।

प्राक्कलन – भविष्य में होने वाले व्यय के बारे में गणना के सहारे किया गया अनुमान।

अपमान – किसी की प्रतिष्ठा को जानबूझकर ठेस पहुँचाना।
अवमानना – अनायास किसी की प्रतिष्ठा की हानि।

अमूल्य – जिसका मूल्य निर्धारण करना संभव न हो।
बहुमूल्य – जिसका मूल्य बहुत अधिक हो।

अभिनन्दन – किसी उपलब्धि पर सम्मान देना।
स्वागत – आये हुये व्यक्ति का सत्कार करना।

आपत्ति – जिस संकट का निवारण हो सके/अचानक आया संकट।
विपत्ति – जिस संकट का निवारण न हो सके।

आशा – अच्छे कार्य की उम्मीद।
आशंका – अनिष्ट होने का खटका।
शंका – होने न होने का संदेह।

आचरण – व्यक्ति का चरित्र।
व्यवहार – दूसरों के साथ किया जाने वाला क्रिया-व्यापार।

आकार – लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई का नाप-जोख।
रूप – सौन्दर्य का नाप-जोख।

आदरणीय – अपने से बड़ो के लिए सामान्य रूप से प्रयुक्त सम्मान सूचक शब्द।
पूजनीय – माता-पिता, गुरुजन, महापुरुषों के लिए प्रयुक्त सम्मान सूचक शब्द।

अनुच्छेद – गद्यांश या अवतरण।
परिच्छेद – अध्याय

अन्तःकरण – विवेकादि का केन्द्र।
मन – सोच-विचार का केन्द्र।
चित्त – स्‍मरण केन्‍द्र।
आतंक – बल के आधार पर किया गया अत्याचार
त्रास – व्याकुलता सहित भय।

अधर – केवल नीचे का ओंठ।
ओष्ठ – ऊपर और नीचे के ओंठ।

आलोचना – गुण-दोषों का सम्यक्‌ विवेचन।
निंदा – केवल दोषों का बखान

आनन्द – शारीरिक और आत्मिक सुख।
हर्ष – तत्कालीन सुख
उल्लास – उत्साहयुक्त क्षणिक प्रसन्नता

आलोचना – किसी एक पक्ष का विवेचन
समालोचना – सम्पूर्ण पक्षों का विवेचन

आमंत्रण – किसी समारोह में सम्मिलित होने के लिए सामान्य बुलावा।
निमंत्रण – भोजनादि के लिए विशेष बुलावा

उन्‍नति – यथास्थिति से ऊपर उठना
प्रगति – पिछड़ेपन की स्थिति से आगे बढ़ना।

उपहार – छोटे और वयस्कों को सप्रेम कुछ देना।
भेंट – बड़ों को आदर सहित कुछ देना।

उत्साह – किसी कार्य को करने की उमंग।
साहस – कठिन कार्य करने की हिम्मत।

उपस्थिति – व्यक्ति का होना।
विद्यमानता – वस्तु का होना

मैं आशा करता हूँ आप सभी को जानकारी पसंद आयी होगी कृपया लाइक और शेयर करना न भूलें।

साहित्य कैफ़े
- साहित्य कैफ़े a Cup of Feelings





22/09/2024

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया

किस लिए जीते हैं हम किस के लिए जीते हैं
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया

- साहिर




20/09/2021

जो नहीं हो सके पूर्ण-काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम ।

कुछ कुण्ठित औ' कुछ लक्ष्य-भ्रष्ट
जिनके अभिमन्त्रित तीर हुए;
रण की समाप्ति के पहले ही
जो वीर रिक्त तूणीर हुए !
उनको प्रणाम !

जो छोटी-सी नैया लेकर
उतरे करने को उदधि-पार;
मन की मन में ही रही¸ स्वयँ
हो गए उसी में निराकार !
उनको प्रणाम !

जो उच्च शिखर की ओर बढ़े
रह-रह नव-नव उत्साह भरे;
पर कुछ ने ले ली हिम-समाधि
कुछ असफल ही नीचे उतरे !
उनको प्रणाम !

एकाकी और अकिंचन हो
जो भू-परिक्रमा को निकले;
हो गए पँगु, प्रति-पद जिनके
इतने अदृष्ट के दाव चले !
उनको प्रणाम !

कृत-कृत नहीं जो हो पाए;
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल
कुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भी
यह दुनिया जिनको गई भूल !
उनको प्रणाम !

थी उम्र साधना, पर जिनका
जीवन नाटक दुखान्त हुआ;
या जन्म-काल में सिंह लग्न
पर कुसमय ही देहान्त हुआ !
उनको प्रणाम !

दृढ़ व्रत औ' दुर्दम साहस के
जो उदाहरण थे मूर्ति-मन्त ?
पर निरवधि बन्दी जीवन ने
जिनकी धुन का कर दिया अन्त !
उनको प्रणाम !

जिनकी सेवाएँ अतुलनीय
पर विज्ञापन से रहे दूर
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके
कर दिए मनोरथ चूर-चूर !
उनको प्रणाम !

- बाबा नागार्जुन
#साहित्य

वासुदेव !सब बदल चुका,युग फिर परिवर्तन मांग रहा है।दिन दिन दशा बिगड़ती जातीदेख   देख   आँखें   हैं   गीलीघाट  घाट  पर  रह...
30/08/2021

वासुदेव !
सब बदल चुका,
युग फिर परिवर्तन मांग रहा है।

दिन दिन दशा बिगड़ती जाती
देख देख आँखें हैं गीली
घाट घाट पर रहते कालिय
जमुना हुयी बहुत ज़हरीली

वासुदेव !
यमुना का हर
कालिय फन,नर्तन मांग रहा है।

दूर जगत से राजा सोये
अपनी अपनी सेज बिछाए
कालयवन कर रहा उपद्रव
मुचकुन्दों को कौन जगाए

वासुदेव !
दो शक्ति हमें
युग युद्ध प्रवर्तन मांग रहा है।

तुमने दिया बहुत कुछ था पर
कालचक्र की गति थी वामा
आकर एक बार तो देखो
फिर निर्धन हो गया सुदामा

वासुदेव !
उस बालसखा -
का खाली बर्तन मांग रहा है।

- ज्ञान प्रकाश आकुल

साहित्य कैफ़े a Cup of Feelings साहित्य कैफ़े

शिवांश पाराशर "राही" जी द्वारा लिखा हुआ बेहद खूबसूरत गीत सुकृत कर्म के दाम तुम्हे मिल जाएंगे,वो करुणा के धाम तुम्हे मिल ...
08/08/2021

शिवांश पाराशर "राही" जी द्वारा लिखा हुआ बेहद खूबसूरत गीत

सुकृत कर्म के दाम तुम्हे मिल जाएंगे,
वो करुणा के धाम तुम्हे मिल जाएंगे,
लालित,ललित,ललाम तुम्हे मिल जाएंगे,
मर्यादा में राम तुम्हे मिल जाएंगे !!

भारत की भू रज में राम समाए हैं,
धर्म,कर्म में यज में राम समाए हैं,
राम मिलेंगे हर मुस्काती कलियों में,
राम मिलेंगे जनकपुरी की गलियों में,
राम मिलेंगे नगर,गली व बस्ती में,
राम मिलेंगे हर केवट की कश्ती में,
श्रमिक,भ्रमित विश्राम तुम्हे मिल जाएंगे,
मर्यादा में राम तुम्हे मिल जाएंगे !!

राम मिलेंगे गीध राज की टेरों में,
भाव-भरे माता शबरी के बेरों में,
राम मिलेंगे सदा सिया के शीलों में,
कोल भिल्ल वानर बनवासी भीलों में,
राम मिलेंगे अधरों के स्पंदन में,
चित्रकूट तुलसी के घिसते चंदन में,
सिया विराजे बाम तुम्हे मिल जाएंगे,
मर्यादा में राम तुम्हे मिल जाएंगे !!

राम मिलेंगे हर मर्यादित भाषा में,
पूज्य प्रमाणित पौराणिक परिभाषा में,
राम मिलेंगे आती जाती स्वांसो में,
राम मिलेंगे श्रद्धा में विश्वासों में,
राम मिलेंगे भरत सरीखा जीने में,
राम मिलेंगे सदा हनुमान के सीने में,
पथ पर सुंदर ठाम तुम्हे मिल जाएंगे,
मर्यादा में राम तुम्हे मिल जाएंगे !!

राम मिलेंगे हर उत्तम उत्कृष्ठों में,
रामचरित मानस के हर एक पृष्ठों में,
राम मिलेंगे हर कण हर सृष्टि में,
राम मिलेंगे समता में समदृष्टि में,
राम मिलेंगे तम को हरती रविता में,
सुंदर सहज सुशील काव्य में कविता में,
अंतरहित अभिराम तुम्हे मिल जाएंगे,
मर्यादा में राम तुम्हे मिल जाएंगे !!

ना मंदिर में,ना घर बैठे,ना प्रवास में...
राम मिलेंगे दीन जनों की भूख प्यास में,
ना तो शहर में और ना गांव में,
राम मिलेंगे पंचवटी की छांव में,
राम मिलेंगे कौशल्या की ममता में,
राम मिलेंगे सीता की गरिमता में,
मनुज धर्म के आधार तुम्हे मिल जाएंगे,
मर्यादा में राम तुम्हे मिल जाएंगे !!

ना सूरज, ना चंदा, ना तारों में....
राम मिलेंगे वानर सेना के नारों में,
ना तो गौरव ना ही प्रतिमानों में,
राम मिलेंगे भारत की पहचानो में,
राम मिलेंगे कूंचे कूंचे टंगे झंडों में,
राम मिलेंगे पवित्र चिता के कंडों में,
हर घड़ी नवीन स्वभाव तुम्हे मिल जाएंगे,
मर्यादा में राम तुम्हे मिल जाएंगे !!

सुकृत कर्म के दाम तुम्हे मिल जाएंगे,
वो करुणा के धाम तुम्हे मिल जाएंगे,
लालित,ललित,ललाम तुम्हे मिल जाएंगे,
मर्यादा में राम तुम्हे मिल जाएंगे !!

@कवि शिवांश पाराशर "राही "

जो रिश्ता छवि का दर्पण से इच्छाओं का है यौवन से ऊंचाई का नील गगन से वो रिश्ता तेरा-मेरा है...चित्रकार बन जैसे कोई पहला-प...
15/04/2021

जो रिश्ता छवि का दर्पण से
इच्छाओं का है यौवन से
ऊंचाई का नील गगन से
वो रिश्ता तेरा-मेरा है...

चित्रकार बन जैसे कोई
पहला-पहला चित्र बनाए
या तुतलाती कलम थमाकर
कोई पहला छंद लिखाए

पहली बार छुआ जब तुमने
ऐसी ही अनुभूति हुई थी
रिश्तों की संज्ञा तक पहुंची
एक पहेली अनसुलझी सी
सिहरन का रिश्ता चुंबन से
धड़कन का जो मादक तन से
वो रिश्ता तेरा-मेरा है....

कुछ ऐसे रिश्ते भी देखे
आज जुड़े तो कल को टूटे
सिर्फ प्यार का रिश्ता सच्चा
बाकी सब रिश्ते हैं झूठे

संबंधों की चहल-पहल में
खो मत जाना, डर लगता है
स्वार्थ-सपन की रात गहन है
सो मत जाना, डर लगता है

जो रिश्ता गति का है मन से
और लाज का झुके नयन से
होली का है जो फागुन से
वो रिश्ता तेरा-मेरा है....

सांझ हुई है चलते-चलते
दुनिया का कुछ छोर न पाया
मृगतृष्णाओं से घबराकर
लौट मुसाफिर घर को आया

जितनी सुलझानी चाही है
उतनी और बढ़ी है उलझन
जितना कठिन बना डाला है
उतना कठिन नहीं है जीवन
जो प्रतिमा का है पूजन से
सांसों का जो है जीवन से
वो रिश्ता तेरा-मेरा है....

-राजेन्द्र राजन
अलविदा प्यारे गीतकार.. ईश्वर आपको अपने चरणों में स्थान दे।🙏🙏💐💐

नई ग़ज़ल.....ख़्वाब आँखों में जज़्ब होने में। हमको मुद्दत लगी है सोने में।उसने आना नहीं चुना वरना। वक़्त लगता है वक़्त ह...
16/01/2021

नई ग़ज़ल.....

ख़्वाब आँखों में जज़्ब होने में।
हमको मुद्दत लगी है सोने में।

उसने आना नहीं चुना वरना।
वक़्त लगता है वक़्त होने में ।

क्या मिला था किसी को पाने से।
क्या गया है किसी को खोने में।

दिल में दुनिया बसाई है हमने।
दिल की दुनिया रखी है कोने में।

भूल बैठी हैं देखने की अदा।
आँखें सपने तेरे संजोने में।

फ़र्क़ सच और झूठ का है फक़त।
शे'र लिखने में शे'र होने में।

कितने दरिया बहा चुकीं आँखें।
एक चेहरे के रंग धोने में।

कनुप्रिया

घर से भागे लोगतथागत होने का करते हैं दावा।सावधान युग !पहचानना बहुत मुश्किल हैइन छलियों का ढंग  नया हैभीतर  बरमूडा  त्रिक...
15/01/2021

घर से भागे लोग
तथागत होने का करते हैं दावा।
सावधान युग !

पहचानना बहुत मुश्किल है
इन छलियों का ढंग नया है
भीतर बरमूडा त्रिकोण है
बस ऊपर से बोधगया है

पीड़ाओं को डस लेता है
इनका कद काठी
पहनावा।
सावधान युग !

रटे रटाये उपदेशों में
भावों के भी रंग भरे हैं
वाणी के चन्दन के भीतर
विष से भरे भुजंग भरे हैं

इनका मुख ऐसा गोमुख है
जिसमें
बहता है बस लावा।
सावधान युग !

कभी त्यागने और भागने
का अंतर हम समझ न पाये
इसीलिये तो युगचेता बन
हर दिन नये तथागत आये

कई पीढ़ियाँ झेल रही हैं
सदियों से
बस यही छलावा।
सावधान युग !

- ज्ञान प्रकाश आकुल

साहित्य कैफ़े a Cup of Feelings

रे मनुष्य मन ! तुम तो सबसे अनुपम कृति थे परमपिता कीहर प्राणी  से  अधिक  बुद्धि बल रखने वाले किंतु क्या हुआ, धूमिल कर बैठ...
14/01/2021

रे मनुष्य मन !
तुम तो सबसे अनुपम कृति थे परमपिता की
हर प्राणी से अधिक बुद्धि बल रखने वाले
किंतु क्या हुआ, धूमिल कर बैठे छवि अपनी
जीवित रख ना सके आत्मा के उजियाले

रे विवेक धन !
तुमने हर सीमा तोड़ी, मर्यादा लाँघी
लड़े धर्म पर किंतु मर्म का अर्थ न समझे
मद का बोझ उम्र भर लेकर घूमे लेकिन
सहज ज़िंदगी हुई कहाँ पर व्यर्थ, न समझे

सुनो युवा मन!
कैसे तुम रह गए देह तक सीमित जबकि
तुम्हें आत्मा तक जाने की शक्ति मिली है
तुम्हें हृदय को छूने का अधिकार प्राप्त है
तुम्हें किसी के भावों की अभिव्यक्ति मिली है

ओ मन कंचन
क्या कामुकता ही जीवन का ध्येय बचा है
या फिर कुछ भी और चेतना में बाकी है
मन पर काम नहीं, करुणा का भाव लपेटो
बहुत कृपा कर हमें ईश ने दुनिया दी है

सुनो चिरंतन
मन की भू पर करुणा के चावल उपजाओ
हम ही प्रेम न कर पाये तो कौन करेगा
हम ही जीत न पाये यदि विश्वास मनुज का
कौन हमारी झोली में अहसास भरेगा

ओ शाश्वत मन
जीवन जितना शेष, विशेष करो साँसों को
जियो इस तरह, हर मुख पर हो ज़िक्र तुम्हारा
जियो इस तरह, तुमसे जग मांगे उजियारा
विश्व गगन में बनो चमकता एक सितारा

अंशुल
@साहित्य कैफ़े

सभी हिंदीभाषी मित्रों को विश्व हिंदी दिवस की असीम शुभकामनाओं के साथ कुछ मुक्तक 🙏हृदय  में   नेह  से   उपजी , सरल   हिंदी...
10/01/2021

सभी हिंदीभाषी मित्रों को विश्व हिंदी दिवस की असीम शुभकामनाओं के साथ कुछ मुक्तक 🙏

हृदय में नेह से उपजी , सरल हिंदी हमारी है।
सतत शुचि धार गंगे सी , तरल हिंदी हमारी है।
सनातन ग्रंथ वेदों से, निकलकर ज्ञान की मणिका-
पुरातन वस्त्र में लिपटी, नवल हिंदी हमारी है।

खिले नित पंक में परिमल, कमल हिंदी हमारी है।
प्रदूषित हो नहीं सकती , विमल हिंदी हमारी है।
घराना खानदानी है , कभी मीरा कभी तुलसी-
कभी 'दुष्यंत' के घर की , ग़ज़ल हिंदी हमारी है।

कभी छुप ही नहीं सकती, मुखर हिंदी हमारी है।
तिमिर में ज्योत्सना जैसी, प्रखर हिंदी हमारी है।
महादेवी अगर हिंदी! निराला 'प्राण' हैं इसके-
सतत शृंगार 'अनुराधा' , अमर हिंदी हमारी है।

सुरभि नित घोलती उर में, मलय हिंदी हमारी है।
युगों से क्रांति के स्वर में, विलय हिंदी हमारी है।
हजारों बोलियों से प्रेम है पर जी नहीं भरता -
जहाँ रुक तृप्त चित होता, निलय हिंदी हमारी है।

अलंकृत छंद से, रस से, सुवासित नित्य है हिंदी।
कथाओं की प्रखरता से, विभासित नित्य है हिंदी।
सतत अज्ञान का तम नित्य हरती वर्तिका बनकर-
कहाती 'माँ ' सपूतों से, उपासित नित्य है हिंदी।

छुई जब तूलिका मैंने, मुझे किसलय लगी हिन्दी।
प्रथमतः शब्द जो फूटे, मुझी में लय लगी हिन्दी।
सुभद्रा और दिनकर से, सजा साहित्य का उपवन-
यहाँ हर पुष्प मधुशाला, मुझे मधुमय लगी हिन्दी।

कहीं पाली, कहीं प्राकृत, कहीं अपभ्रंश हिंदी में।
कहीं खुसरो, कहीं ग़ालिब, कहीं हरिवंश हिंदी में।
विदेशज और देशज या, कहीं तत्सम कहीं तद्भव -
सरल शाश्वत सरस मधुरिम, अमिय के अंश हिंदी में।

अचल ये हो नहीं सकती, सतत गतिमान है हिंदी।
दिवाकर अस्त होते हैं, मगर द्युतिमान है हिंदी।
कभी 'कामायनी' आई, कभी 'वो तोड़ती पत्थर' -
विरासत में मिली जग को, अटल अभिमान है हिंदी।

तपी बदलाव की लौ में, कनक हिंदी हमारी है।
लता के कण्ठ की मधुमय, खनक हिंदी हमारी है।
जगत की रीत! करना प्रेमिका को चाँद से उपमित -
मगर उस चाँद की आभा, चमक हिंदी हमारी है।

'प्रदग्ध

तुम शब्बर चाचा के घर की बग़ल में भी रह सकती थीतुम गुलिस्ताँ प्राइमरी स्कूल में पढ़ भी सकती थीतुम्हारे अब्बू शहनाई भी बजा...
12/12/2020

तुम शब्बर चाचा के घर की बग़ल में भी रह सकती थी
तुम गुलिस्ताँ प्राइमरी स्कूल में पढ़ भी सकती थी
तुम्हारे अब्बू शहनाई भी बजा सकते थे

लेकिन बासठ की उमर में तुम उठती हो और वर्सोवा पुलिस थाने जाकर अपने इकहत्तर
साल के पति नेताजी सालंके के खिलाफ उत्पीड़न का मुकद्दमा लिखा देती हो

तुम्हारे साथ बदसलूकी हुई है
तुम्हें थोड़ा आराम कर लेना चाहिए
तुम जो कर सकती थी कर आई हो
और ये दुबली-पतली खबर देश में फैल भी गई है
फ्लैट का दरवाजा भीतर से बंद कर लो

थोड़ी देर में आएगा दिनेश ठाकुर हाथ में रजनीगंधा के फूल लिए
या अमोल पालेकर भी आ सकता है या मैं भी आ सकता हूँ
कोई न कोई आएगा
उसके दरवाजा खटखटाते ही फिल्म शुरू होती है
साठ के अंत की फिल्म सत्तर के शुरू की फिल्म
शहर आने की फिल्म
जेल जाने की फिल्म
बहुत ज्यादा लोगों से कम लोगों की फिल्म
पब्लिक ट्रांसपोर्ट की फिल्म
या पब्लिक सेक्टर की फिल्म शुरू होती है एक फ्लैट का दरवाजा खटखटाने से

लेकिन मेरे और तुम्हारे बीच
सिर्फ दरवाजे भर की दूरी नहीं है

बहुत से जमाने हैं बहुत से लोग
विद्याचरण शुक्ल हैं और बी आर चोपड़ा हैं और प्रकाश मेहरा हैं और मनमोहन देसाई हैं
और आनंद बख्शी हैं और ठाँय-ठाँय और ढिशुम-ढिशुम और ढाँ... है और घटिया फिल्में हैं
और अत्यन्त घटिया राजनीति है और आपातकाल है
दरअसल गिरावट के अन्तहीन मुकाबले चल रहे हैं मेरे और तुम्हारे बीच
और तुम हो कि मुकद्दमा लिखा देती हो

मैं जानना चाहता हूँ कि इस समय तुम क्या कर रही होगी क्या हो रही होगी तुम कुछेक
हिन्दी फिल्मों की एक गुमनाम और मीडियाकर अभिनेत्री तुम परवीन बाबी या जीनत अमान
भी तो हो सकती थी तुम मणि कॉल की सिद्धेश्‍वरी में विद्याधरी भी बन सकती थी
तुम मेरी नानी भी हो सकती थी बेटी हो सकती थी तुम वह बहन हो सकती थी जिसकी शादी
तुम्हारे अस्तित्व की तरह ढहा दी गई थी एक दिन मेरी बीबी हो सकती थी तुम

मेरी माँ साठ साल की हैं और तुम बासठ की
मेरी माँ हो सकती थी तुम
मेरी माँ हो सकती हो तुम
अम्मा...............।

यहीं बनता है एक मानवीय सम्बन्ध
मैं इसे दर्ज करता हूँ
और अपने पिता से तुम्हारी बात पक्की करता हूँ
अगर तुम्हें पसंद हो यह सब तभी

लेकिन तुम हो कि मुकद्दमा लिखा देती हो ।
साहित्य कैफ़े a Cup of Feelings

 #ग़ज़ल |  #غزلमैंने दिन रात की मेहनत से इसे पाया हैतुमको लगता है कि यह मुफ्त का सरमाया हैمیں نے دن رات کی محنت سے اسے پای...
07/12/2020

#ग़ज़ल | #غزل

मैंने दिन रात की मेहनत से इसे पाया है
तुमको लगता है कि यह मुफ्त का सरमाया है

میں نے دن رات کی محنت سے اسے پایا ہے
تم کو لگتا ہے کہ یہ مفت کا سرمایہ ہے

माहे-रमज़ाँ में कोई छोड़ गया है अपना
मैंने इस ईद पे कुर्ता नहीं सिलवाया है

ماہِ رمضاں میں کوئی چھوڑ گیا ہے اپنا
میں نے اس عید پہ کُرتا نہیں سلوایا ہے

एक तो याद है तेरी जो मुझे खाती है
मैंने दो रोज़ से खाना भी नहीं खाया है

ایک تو یاد ہے تیری جو مجھے کھاتی ہے
میں نے دو روز سے کھانا بھی نہیں کھایا ہے

जो कभी वक़्ते-मुक़र्रर पे नहीं मिलता था
अब मिरे वास्ते तोहफे में घड़ी लाया है

جو کبھی وقتِ مقرر پہ نہیں ملتا تھا
اب مرے واسطے تحفے میں گھڑی لایا ہے

मेरे पैरों में ही आकर न उलझ जाए कहीं
मैंने जो धागा तेरे वास्ते सुलझाया है

میرے پیروں میں ہی آکر نہ الجھ جائے کہیں
میں نے جو دھاگا تِرے واسطے سلجھایا ہے

तुझको आग़ाज़े-मोहब्बत ही में वाकिफ़ करदूँ
मुझको जिस जिस ने भी छोड़ा है वो पछताया है

تجھ کو آغازِ محبت ہی میں واقف کر دوں
مجھ کو جس جس نے بھی چھوڑا ہے وہ پچھتایا ہے

Riyaz Tariq

साहित्य कैफ़े a Cup of Feelings

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालोंकुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।सपना क्या है, नयन सेज प...
29/11/2020

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।

सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।

माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।

लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।

लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!

गोपालदास 'नीरज'
@साहित्य कैफ़े

सुना है मैंने लोगों से कभी मरती नहीं है रूहकिसी तलवार से, औज़ार से कटती नहीं है रूहजलाने से किसी भी जिस्म को जलती नहीं है...
21/11/2020

सुना है मैंने लोगों से कभी मरती नहीं है रूह
किसी तलवार से, औज़ार से कटती नहीं है रूह
जलाने से किसी भी जिस्म को जलती नहीं है रूह
एक ऐसी शय है कि जिसको कभी हम छू नहीं सकते
एक ऐसा दृश्य जो हम लोगों की आंखों से ओझल है

अगर ऐसा है तो इसपर मेरा अपना तज़ुर्बा है
मुझे लगता है जितनी रूह हैं दुनिया में, श्रापित हैं
वज़ूद अपना बचाने के लिये ये जिस्म चुनतीं हैं
और अपने श्राप को इक जिस्म पर ये थोप देती हैं
बेचारा जिस्म लोगों से शिक़ायत करता रहता है
मगर सब रूह के पाबंद हैं तो कुछ नही सुनते

मेरे इस जिस्म की भी रूह से बिल्कुल नहीं बनती
मेरा ये जिस्म भी मुझसे शिक़ायत करता रहता है
सभी के जैसे मैं भी जिस्म की बिल्कुल नहीं सुनता
मगर मैं जिस्म पर थोपा गया ये दुख समझता हूँ
मैं जिस्म-ओ-रूह के झगड़े के बीचों बीच रहता हूँ।

-अमूल्य मिश्रा
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