Anurag Mishra 'Anubhav'

Anurag Mishra 'Anubhav' Highlight your mistakes so that it might not be repeated.(it is just the archives of my mistakes)

04/11/2024

शिरकत से मिरे उसको कितनी तल्ख़ियांँ थी और,
हिज़्र से भी वह रहता है खुशगवार नहीं?

04/11/2024

नाकाम हो गए जा़लिम के मन्सुबे जब,
देखा बगैर सिर के लड़ता हुआ बदन।
(Inspired by Gora Badal )



21/10/2024

एक चिंगारी उडी और फिर धुआँ ही धुआँ
घोंसले जल गए हुज्जत में इन परिंदों के।

11/10/2024

कुछ फसलें उगाने की फ़कत मुझमें शक्तियाँ
मैदान अपरदन का हूँ ,मैं रूर नहीं हूँ।


13/09/2024

वो खुद को मिटायेगा तो देगा कोई सबक,
वरन् पैरों की चोट से कौन मरता है?,यार!

13/09/2024

हम घूमने चलें क्या मक्का और मदीना,
वालिद हमारे ख़र्च से मस्जिद न जा सके।

02/09/2024

दालों को बेचकर दिया जब मुझको किराया,
सारी दौलत-ए-जहान् उस रोज़ मेरे नाम हो गईं।

तमाम उम्र का खर्चा, मिला है क्या?आखिरी बार तेरे द्वार पर आया था मैं.....इस हयात की बातों पर भरोसा न रहा ,असल में जीतने व...
14/08/2024

तमाम उम्र का खर्चा, मिला है क्या?
आखिरी बार तेरे द्वार पर आया था मैं.....

इस हयात की बातों पर भरोसा न रहा ,
असल में जीतने वाला , असलियत में हारा है।


12/08/2024

संघर्षों के दिन कब अच्छे होते हैं,
पर जैसे होते हैं, सच्चे होते हैं।

एक समय बगिया को महकाने वाले फल,
खट्टे होते हैं , जब कच्चे होते हैं।

नए कपोलों के आने की उम्मीदों में,
कई दिनों तक तने अकेले होते हैं।

डर जाते हैं महज़ हवा के चलने से,
जिन वृक्षों में फल के गुच्छे होते हैं।

03/08/2024

ठोकरें अपनी किसी को दिखानी ही नहीं,
कौन है जिसकी कोई अपनी कहानी ही नहीं ,

अपनी आंखों में थोड़ी नमी बचाकर रखना,
सफर में ऐसे ठिकाने हैं जहां पानी ही नहीं,

तमाम किस्मों की फसलें, उगाकर देखो,
जमीं को छोड़ना बंजर ,है बुद्धिमानी नहीं।

जंग में आए हो तो ‌ खून -खराबा होगा,
रहे ये ध्यान!, हो कोई बद्जुबानी नहीं।

(Not error free)

17/07/2024

यह न होता तो और क्या होता !
शब्द दूजा कोई लिखा होता !!

पात्र होते तो एक जैसे ही!
हाँ ,कथानक कोई जुदा होता!!

हैं जहाँ रास्ते वहाँ मंज़िल होती!
जहांँ हैं शैल , रास्ता होता!!

बहोत आसान हो जाता जो सफर !
तो फिर कुछ और ही बुरा होता!!

आँख भी मैली हो चुकी होती !
अश्क इनसे ना गर गिरा होता!!

बूँद जो सीप में ,गिरी होती !
तो आब, काँच बन चुका होता!!

15/07/2024

हम फेंकतें जो पत्थर ,गिरतें हैं वो जमीं पर ।
कर लें भी कशिश कितना, रुकते नहीं कहीं पर ।
हम घर में छिपके बैठेंगे, कितनीं मर्तबाँ?
निकालेंगे पाँव बाहर, फूटेंगे सिर वहीं पर।


वो हमको सताने का, वीऱा उठा चुके हैं।
हम खुद को हंँसाने से ,चुकते नहीं कहीं पर।

पैरों के सिर पे इतनी , होती है ज़िम्मेवारी।
पीछे हों एक कदम तो, आगे भी हों कहीं पर।

सीखेंगे महकना हम ,फूलों के साथ रहकर।
हैं लहज़-ए-लफ्ज़ अपने ,कांँटों की तर्ज़नी पर।

(It may take some errors and it may be meaningless)

12/07/2024
06/07/2024

दूब के एक पौंडे़ से गट्ठर तक का सफर ,
बड़े ही धैर्य और साहस की निशानी है सुखन।
जब उसके बारे में सुनना तो सलामी देना,
वो ज़मीनी हौसलों एक कहानी है सुखन।


06/07/2024

बड़े हिसाब से रखे थे हमने मेंज पर डिब्बे,
पर जाने कैसे कोई डिब्बा हिल ही जाता है।

लगाकर देखता हूं मैं जब खुद में नईं आंखें,
किसी कोने में आख़िर कोई कचऱा मिल ही जाता है।


20/06/2024

*My Ego will never define me

सुनाई दे रही थी मुझे भी वो अट्टहास,
वो ठहाके लगा रहे थे ,क्षितिज पर बैठे कुछ मुकुटधारी।

सवार थे ऐरावत पर , सूक्ष्म नजर आ रहे थे उन्हें अन्य।
उन्होंने देखा कि ठण्डा पड़ गया है मेरा बदन‌ कांपने लगे हैं मेरे हांथ।

हाँ अकेला नहीं था मैं, मेरे साथ मेरा "मैं" था । पर
मैं नहीं जीतना चाहता ऐसी कोई भी लड़ाई ,जिसका श्रेय मेरा "मैं" ले जाए।

क्योंकि मुझे मालूम है कि" मैं" हार गया तो भी मैं नहीं हारा ।
पर यदि मेरा " मैं " जीत गया तो मैं हार गया ।

इसलिए ठिठुर रहे थे मेरे हाँथ ,नहीं था मेरे खून में वो तापमान।
तुम्हारे "मैं" ने तो तुम्हारी प्यास बुझा ली ।परन्तु, मेरे मौन ने मेरे "मैं" को मारडाला ।
आखिरकार बरसात हमारे इलाके में हुई जबकि तापमान आपकी गलियों का जियादा था ।

हे ! मुकुटधारियों जाओ हवाओं को अपने वश में कर लो।
पर याद रहे विज्ञान कहता है -"अपनी गर्मियों से तुम महज़ हवाओं को आकर्षित कर सकते हो , बारिश के लिए तुम्हें उनके विपरीत पर्वत की तरह खड़ा रहना पड़ेगा।"

तुम्हें स्कूल जाना है.....बहुत -से दाँव खेले तिकडियों के , गोटियां जीती ,उन्हीं पत्तों में अब 'इक्के' की 'प्रायिकता' बता...
03/04/2024

तुम्हें स्कूल जाना है.....

बहुत -से दाँव खेले तिकडियों के , गोटियां जीती ,
उन्हीं पत्तों में अब 'इक्के' की 'प्रायिकता' बताना है,
तुम्हें स्कूल जाना है।

कि वो जब झूलने जाते हो झूले
और नहीं आती है बारी ।
तुम गिनते रस्सियों को आती -जाती
और बढ़ती बेकरारी।
उसी रस्सी के आने जाने की मोहलत बताना है।
तुम्हें स्कूल जाना है।

बड़े ही शौक से तुमने बनाए मिट्टी के बर्तन,
जलेबी भी बनाई थी जलाकर मिट्टी का ईंधन,
छद्म बाजार में लाखों कमाएं मिट्टी के रुपये,
उन्हीं रुपयों से नई सोच की चीजें बनाना है।
तुम्हें स्कूल जाना है।
तुम्हें स्कूल जाना है।


12/03/2024

क्षितिज को छूने चले लेकर काफिला अपना ,
देव ऐसे खा़मोश होंठों को तबस्सुम देना।

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