![एक नयी तरही ग़ज़ल क्या इसके सिवा कीमती मैं मांगती रब से,उसने ही नवाज़ा मुझे अम्मा के लक़ब से धोका कभी आ...](https://img3.medioq.com/048/273/983340350482732.jpg)
29/12/2024
एक नयी तरही ग़ज़ल
क्या इसके सिवा कीमती मैं मांगती रब से,
उसने ही नवाज़ा मुझे अम्मा के लक़ब से
धोका कभी आंसू तो कभी रंजो मुसीबत
अल्लाह बचाये हमें दुनिया की तलब से।
जिसने कभी देखा नहीं कुदरत का करिश्मा,
होता है परेशान वो कुदरत के ग़ज़ब से
जो चाहिए वो आप सितम कीजिए मुझ पर
निकलेगा न इक लफ्ज़ कभी मेरे भी लब से
बर्बाद हुआ अम्नो शुकूं शह्र का मेरे
कुछ लोग सियासत यहां करने लगे जब से
इस शहर में मशहूर हैं बे-अदबियां जिसकी
वो हमसे मिला आके निहायत ही अदब से।
इस्लाह से ही आती है किरदार में खुशबू,
"कमज़र्फ़ हैं जो जलते हैं इस्लाह-ए-अदब से"
दौलत नहीं, शोहरत नहीं, हिम्मत नहीं 'रुबी '
इस जिंदगी में नूर है उल्फ़त के सबब से।