Nayi Udaan

Nayi Udaan छात्रों - युवाओं की साहित्यिक पत्रिका !

30/12/2022

"रत्ती भर भी संदेह नहीं कि पूर्वोत्तर मिनिएचर एशिया है। एशिया की शायद ही कोई जाति छूटी हो जिसके वंशज यहाँ न पाए जाते हों, यहाँ की बोलियों में उनके शब्द न हो और धार्मिक विश्वासों पर स्पष्ट अनार्य, अद्रविड छाप न हो। कई आदिवासी कबीलों का पत्राचार इजराइल से चल रहा है। वे अपना उद्गम यहूदियों में तलाश रहे हैं।"

पुस्तक: वह भी कोई देश है महराज
लेखक: अनिल यादव

17/04/2022
मोहन राकेश की जयंती पर... #यात्रा  #साहित्य  #स्मृति  #मोहन_राकेश  #हिंदीसाहित्य  #हिंदी  #यात्रा_वृतांत  #आख़िरी_चट्टान...
08/01/2022

मोहन राकेश की जयंती पर...

#यात्रा #साहित्य #स्मृति
#मोहन_राकेश #हिंदीसाहित्य #हिंदी
#यात्रा_वृतांत #आख़िरी_चट्टान_तक

प्रत्येक आना नया आना होता है... #यात्रा  #साहित्य #अज्ञेय  #स्मृति
07/01/2022

प्रत्येक आना नया आना होता है...

#यात्रा #साहित्य
#अज्ञेय #स्मृति

नव वर्ष , नव उमंगनूतन वर्ष 2022 की शुभकामनाएं  !Nayi Udaan
01/01/2022

नव वर्ष , नव उमंग
नूतन वर्ष 2022 की शुभकामनाएं !

Nayi Udaan

हिंदी दिवस की बधाई!
14/09/2020

हिंदी दिवस की बधाई!

 #कैनवस /  #अश्वनी_आज़ादतुम मेरे लिए एक कैनवस की तरह होएक जादुई कैनवसऔर मैं एक नवजात चित्रकारजब भी खींचता हूँ कोई लाइन आड़...
05/07/2020

#कैनवस / #अश्वनी_आज़ाद

तुम मेरे लिए एक कैनवस की तरह हो
एक जादुई कैनवस
और मैं एक नवजात चित्रकार

जब भी खींचता हूँ कोई लाइन आड़ी-टेढ़ी
सीधी कर देती हो तुम
जब भी कुछ बनाता हूँ आधा
पूरा कर देती हो तुम
जब भी कभी रह जाते हैं रंग फीके
गहरे कर देती हो तुम

कभी-कभी उभर आती है एक तस्वीर
ठहरे हुए पानी की
देख सकता हूँ जिसमें मैं साफ-साफ अपना अक्स
तुम सीखाती भी हो
क्या-क्या उकेरा जाना चाहिए

और जब बनकर तैयार हो जाता है चित्र
मैं डर जाता हूँ
कि अब कैनवस बदलना पड़ेगा

और फिर से दिखाती हो तुम अपना जादू
कर लेती हो अपने को एक दम 'सफेद'
और कहती हो -
'लो अब फिर से बनाओ'

https://www.facebook.com/ashwaniaajad

 #चौक /  #आलोक_धन्वाउन स्त्रियों का वैभव मेरे साथ रहाजिन्‍होंने मुझे चौक पार करना सिखाया।मेरे मोहल्‍ले की थीं वेहर सुबह ...
02/07/2020

#चौक / #आलोक_धन्वा

उन स्त्रियों का वैभव मेरे साथ रहा
जिन्‍होंने मुझे चौक पार करना सिखाया।

मेरे मोहल्‍ले की थीं वे
हर सुबह काम पर जाती थीं
मेरा स्‍कूल उनके रास्‍ते में पड़ता था
माँ मुझे उनके हवाले कर देती थीं
छुटटी होने पर मैं उनका इन्‍तज़ार करता था
उन्‍होंने मुझे इन्‍तज़ार करना सिखाया

कस्‍बे के स्‍कूल में
मैंने पहली बार ही दाख़िला लिया था
कुछ दिनों बाद मैं
ख़ुद ही जाने लगा
और उसके भी कुछ दिनों बाद
कई लड़के मेरे दोस्‍त बन गए
तब हम साथ-साथ कई दूसरे रास्‍तों
से भी स्‍कूल आने-जाने लगे

लेकिन अब भी
उन थोड़े से दिनों के कई दशकों बाद भी
जब कभी मैं किसी बड़े शहर के
बेतरतीब चौक से गुज़रता हूँ
उन स्त्रियों की याद आती है
और मैं अपना दायाँ हाथ उनकी ओर
बढा देता हूँ
बायें हाथ से स्‍लेट को संभालता हूँ
जिसे मैं छोड़ आया था
बीस वर्षों के अख़बारों के पीछे।
https://www.instagram.com/p/CCIaVr6FU51/?igshid=i9oo5ur61we2
http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%95_/_%E0%A4%86%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95_%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE

 #जनकवि_बाबा_नागार्जुन
30/06/2020

#जनकवि_बाबा_नागार्जुन

पढ़े बंबइया बोली में प्रसिद्ध ऋतुराज रंजन की कविता चांद थकेला हैआज चाँद भी कुछ थकेला है अपुन भी बहुत अकेला है  थोड़ी - स...
26/06/2020

पढ़े बंबइया बोली में प्रसिद्ध ऋतुराज रंजन की कविता

चांद थकेला है

आज चाँद भी कुछ थकेला है
अपुन भी बहुत अकेला है
थोड़ी - सी पियेला है

अपुन का लाइफ क्या है?
एक ढेला है, रास्ते पर पड़ेला है
किस्मत ने अक्खा जिंदगी
लात मार कर धकेला है

अपुन का माँ बोलता है कि
मेहनस का फल, आम का माफिक मीठा है
पर अपुन जब भी खाता
ये आम लगता करेला है

और जब भी गिरा है अपुन, तो पाया है
किसी अपने ने धकेला है ,फिर आहिस्ते से मुँह फेरा है
इसीलिये तो अक्खा जिंदगी
अपुन अकेलाइच्च चलेला है

कई बार पूछा है दिल से अपुन इधर क्या करेला है?
किसका वास्ते जीएला है? काये कू मरेला है?
पर जाएँ किधर? हर तरफ धूल है
धुआँ है , धक्का है , रेले पे रेला है

और इधर अपना पोएट बोलता है कि
जिंदगी एक मेला है
जो हँस के जिया, वहीच्च जीएला है

अपुन ये हँसी कहाँ से लाएँ?
पाकिट में न एक धेला है और ये हँसी भी क्या,
मार्किट में बिकेला है?

ऋतुराज रंजन

 #साइलेंट_वैली_की_माँ /  साकार पृथ्वी होती है गर्भ में शिशु को समाये बैठी माँ  अतीव सुन्दर और मनोहारी नवसृजन में डूबी धर...
04/06/2020

#साइलेंट_वैली_की_माँ /

साकार पृथ्वी होती है
गर्भ में शिशु को समाये बैठी माँ
अतीव सुन्दर और मनोहारी
नवसृजन में डूबी धरती।

आकाश भर सम्भावनाओं
और ब्रह्माण्ड भर उमंगो से भरी होती है जननी
जब वह उम्मीद से होती है।

मुद्रालिप्सा, हवस, लालच, लोभ के अपकर्म और
लैंड, लेबर, लिक्विडेशन और लॉ के धतकरम में डूबे दो पायो
पता नहीं तुम्हे पता भी है कि नहीं पता
कि उसका उम्मीद से होना
अंतिम उम्मीद है इस दुनिया के बचने की।

बहुत अशुभ और अपशकुनी होता है
एक गर्भवती माँ का जलसमाधि लेने के लिए विवश होना
कौशल्या पुत्र भी नहीं जी पाए थे
आहत वैदेही के वसुंधरा में समाने के बाद।

ईश्वर की तरह
निपट अकेला और अकर्मण्य होने से बचना है
तो
कहो सारी दुनिया से
कि वह घुटनों के बल बैठ माफी मांगे
साइलेंट वैली की उस माँ से
जो बिना कुछ कहे टुकुर टुकुर ताकती
लानत भेज गयी है
तुम पर, मुझ पर और हम सब पर।

https://www.facebook.com/badal.saroj

मैं तुम्हारी याद में मकबरा/किला नही बनाउंगाबदले में लगाउंगा अनगिनत पेड़क्योंकि मैं जानता हूँदीवारों से बातें तो की जा सक...
26/05/2020

मैं तुम्हारी याद में मकबरा/किला नही बनाउंगा
बदले में लगाउंगा अनगिनत पेड़
क्योंकि मैं जानता हूँ
दीवारों से बातें तो की जा सकती है
उन्हें गले नहीं लगाया जा सकता.!

नीरज

 ्जेंट_लेटर /  #बाबुषा_कोहली
13/05/2020

्जेंट_लेटर / #बाबुषा_कोहली

 #हैप्पी_मदर्स_डे   #हेमन्त_अजूबा #क्षणिकाएँ(१)जिस दर्द की दुहाई मैं आज दे रहा हूँवर्षो पहले उसे लहू से सींचा गया है(२)र...
10/05/2020

#हैप्पी_मदर्स_डे

#हेमन्त_अजूबा

#क्षणिकाएँ

(१)
जिस दर्द की दुहाई मैं आज दे रहा हूँ
वर्षो पहले उसे लहू से सींचा गया है
(२)
रास्ते बनाने के लिए मुझे
जिस जिस की आवश्यकता है
माँ सफ़र में ही उन्हें छोड़ गई।
(३)
जितना प्रेम मुझे अब मिल रहा है
माँ ने उतना ही दुःख तब सहा था
इसे प्रेम समझूँ या पश्चाताप?

(४)
मेरी किताबों में कुछ सूखे फूल है
जिन्हें मैंने नहीं मेरी माँ ने छोड़ा है
माँ भी अत्यंत समर्पित प्रेमिका थी।
(५)
माँ का संघर्ष
मेरी नसों में सहयोग
बनके बहता है।

- अजूबा

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10/05/2020

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 #हो_चित्त_जहाँ_भय_शून्य, #माथ_हो_उन्नत /  #गुरुदेव_रवीन्द्र_नाथ_टैगोर हो चित्त जहाँ भय-शून्य, माथ हो उन्नत  हो ज्ञान जह...
07/05/2020

#हो_चित्त_जहाँ_भय_शून्य, #माथ_हो_उन्नत / #गुरुदेव_रवीन्द्र_नाथ_टैगोर


हो चित्त जहाँ भय-शून्य, माथ हो उन्नत

हो ज्ञान जहाँ पर मुक्त, खुला यह जग हो

घर की दीवारें बने न कोई कारा

हो जहाँ सत्य ही स्रोत सभी शब्दों का

हो लगन ठीक से ही सब कुछ करने की

हों नहीं रूढ़ियाँ रचती कोई मरुथल

पाये न सूखने इस विवेक की धारा

हो सदा विचारों, कर्मों की गति फलती

बातें हों सारी सोची और विचारी

हे पिता मुक्त वह स्वर्ग रचाओ हममें

बस उसी स्वर्ग में जागे देश हमारा ।

 #कविताएं... /  #हेमन्त_अजूबामैं फाड़ देना चाहता हूँ उन कविताओं कोजिन पर मैं अमल नहीं कर पाताजिनकी आत्मा केवल बसी हुई हैक...
06/05/2020

#कविताएं... / #हेमन्त_अजूबा

मैं फाड़ देना चाहता हूँ उन कविताओं को
जिन पर मैं अमल नहीं कर पाता
जिनकी आत्मा केवल बसी हुई है
कागज़ पर!!
जो कैद हैं शब्दों के जाल में,
जिनकी कोई उम्र ही नहीं
बस वो लिखी गईं थी
पल भर की अनुभूति के अनुसार!!

मैं फाड़ देना चाहता हूँ उन कविताओं को
जिनके शब्द नृत्य करते हैं कल्पना में
वास्तविकता के स्थान पर!!!
जो कविकल्पित हैं और उकेरी गयीं थीं
अनुभूति का स्वाद चखे बिना!!

मैं फाड़ देना चाहता हूँ उन कविताओं को
जो खींचीं गयीं थी मेरे अंदर से अथक प्रयास के पश्चात
और सज्जित कर दी गई थी बेढंग तरीके से
मेरी डायरी के उस पन्ने पर जो सूना पड़ा था
कई दिनों से..

मैं फाड़ देना चाहता हूँ उन कविताओं को
जो विराजमान है अट्टलाकिओं पर
और हँसती है बस्तियों की सजावट,
उनकी साधारणता
और छिपी हुई गुणवत्ता पर
जिसका उन्हें कतई भी आभास नहीं..

मैं फाड़ देना चाहता हूँ उन कविताओं को
जो लिखी थी उस आकर्षण केंद्र पर
जिसे मैं अक्सर प्रेम कहता हूँ!
जिसकी कविताएँ फूटी थी अनायास
किन्तु महफ़िलों में मैंने बेचा है उनको
प्रेम के नाम पर!!

-हेमन्त अजूबा

 #शुप्रभात_दोस्तोंआज पढ़ें ⬇️ नयी उड़ान का " #अंतर्राष्ट्रीय_मजदूर_दिवस_विशेषांक" #टीम_नयी_उड़ान🙏
03/05/2020

#शुप्रभात_दोस्तों
आज पढ़ें ⬇️ नयी उड़ान का " #अंतर्राष्ट्रीय_मजदूर_दिवस_विशेषांक"
#टीम_नयी_उड़ान🙏

 #अंतरराष्ट्रीय_मजदूर_दिवस #फ़ैज़_अहमद_फ़ैज़हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे,इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सार...
01/05/2020

#अंतरराष्ट्रीय_मजदूर_दिवस
#फ़ैज़_अहमद_फ़ैज़
हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे,
इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।

यां पर्वत-पर्वत हीरे हैं, यां सागर-सागर मोती हैं,
ये सारा माल हमारा है, हम सारा खजाना मांगेंगे।

वो सेठ व्‍यापारी रजवारे, दस लाख तो हम हैं दस करोड,
ये कब तक अमरीका से, जीने का सहारा मांगेंगे।

जो खून बहे जो बाग उजडे जो गीत दिलों में कत्‍ल हुए,
हर कतरे का हर गुंचे का, हर गीत का बदला मांगेंगे।

जब सब सीधा हो जाएगा, जब सब झगडे मिट जायेंगे,
हम मेहनत से उपजायेंगे, बस बांट बराबर खायेंगे।

हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे,
इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।

29/04/2020

अलविदा इरफ़ान😥

29/04/2020

#किसान

# मैथिलीशरण गुप्त

हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है
पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है

हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ
खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ

आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अंत में
अधपेट खाकर फिर उन्हें है काँपना हेमंत में

बरसा रहा है रवि अनल, भूतल तवा सा जल रहा
है चल रहा सन सन पवन, तन से पसीना बह रहा

देखो कृषक शोषित, सुखाकर हल तथापि चला रहे
किस लोभ से इस आँच में, वे निज शरीर जला रहे

घनघोर वर्षा हो रही, है गगन गर्जन कर रहा
घर से निकलने को गरज कर, वज्र वर्जन कर रहा

तो भी कृषक मैदान में करते निरंतर काम हैं
किस लोभ से वे आज भी, लेते नहीं विश्राम हैं

बाहर निकलना मौत है, आधी अँधेरी रात है
है शीत कैसा पड़ रहा, औ’ थरथराता गात है

तो भी कृषक ईंधन जलाकर, खेत पर हैं जागते
यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते

सम्प्रति कहाँ क्या हो रहा है, कुछ न उनको ज्ञान है
है वायु कैसी चल रही, इसका न कुछ भी ध्यान है

मानो भुवन से भिन्न उनका, दूसरा ही लोक है
शशि सूर्य हैं फिर भी कहीं, उनमें नहीं आलोक है

 #कोरोना....... /  #उर्वशीना मज़हब देखा न हैसियत हीहैं सब इबादतें सामने इसके एक सीना अमीरी डरा पा रही हैना गरीबी भगा पा र...
28/04/2020

#कोरोना....... / #उर्वशी

ना मज़हब देखा न हैसियत ही
हैं सब इबादतें सामने इसके एक सी
ना अमीरी डरा पा रही है
ना गरीबी भगा पा रही है
है ये आपदा कुछ ढीठ ही
ना हथियार काम आ रहे हैं
ना सियासतों के औज़ार नाम कमा पा रहे हैं
है ये जंग भी क़ाबिल ए सीख सी
ना कुछ लोग सुधर पा रहे हैं
ना वो डॉक्टर, पुलिस वाले और
सफाई कर्मचारी चैन पा रहे हैं
हैं हालात भी कुछ ग़मगीन हीं
अर्थ मंदी में जा रही है
प्रकृति अपनी जुगलबंदी के गीत गुनगुना रही है
हैं ये बेरंग हवाएं
बन रही विभिन्न रंगों से रंगीन सी
एकता की लहरें अनेकता में संचारित की जा रही हैं
कि ये विश्व आपदा ज़मीन को
सरहदों से वंचित करती जा रही है
जो झुका सकेगी, दूर कर सकेगी
इस संकट को
देखना, वो होगी
हम सबके प्रयासों की उम्मीद ही।

#उर्वशी / #दयाल_सिंह_कॉलेज_करनाल

27/04/2020

#रामधारी_सिंह_दिनकर
वह प्रदीप जो दीख रहा है
झिलमिल दूर नहीं है।
थक कर वैठ गये क्या भाई!
मंजिल दूर नहीं है।

अपनी हड्डी की मशाल से
हृदय चीरते तम का‚
सारी रात चले तुम दुख –
झेलते कुलिश निर्मल का‚
एक खेय है शेष
किसी विध पार उसे कर जाओ‚
वह देखो उस पार चमकता है
मंदिर प्रियतम का।
आकर इतना पास फिरे‚
वह सच्चा शूर नहीं है।
थक कर वैठ गये क्या भाई!
मंजिल दूर नहीं है।

दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर
पुण्य प्रकाश तुम्हारा‚
लिखा जा चुका अनल अक्षरों में
इतिहास तुम्हारा‚
जिस मिट्टी ने लहू पिया
वह फूल खिलाएगी ही‚
अंबर पर धन बन छायेगा
ही उच्छ्वास तुम्हारा।
और अथिक ले जांच‚
देवता इतना क्रूर नहीं है।
थक कर वैठ गये क्या भाई!
मंजिल दूर नहीं है।

वह स्त्री जो पुल बनी दो सभ्यताओं के बीच का ारतीयबी ए अंतिम वर्ष पं. चिरंजीलाल राजकीय महाविद्यालय
25/04/2020

वह स्त्री जो पुल बनी दो सभ्यताओं के बीच का

ारतीय
बी ए अंतिम वर्ष
पं. चिरंजीलाल राजकीय महाविद्यालय

25/04/2020

े_जनम_दिया_मर्दों_को_मर्दों_ने_उसे_बाज़ार_दिया



#साहिर_लुधियानवी

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया

जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया

तुलती है कहीं दीनारों में बिकती है कहीं बाज़ारों में

नंगी नचवाई जाती है अय्याशों के दरबारों में

ये वो बे-इज़्ज़त चीज़ है जो बट जाती है इज़्ज़त-दारों में

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया

मर्दों के लिए हर ज़ुल्म रवा औरत के लिए रोना भी ख़ता

मर्दों के लिए हर ऐश का हक़ औरत के लिए जीना भी सज़ा

मर्दों के लिए लाखों सेजें, औरत के लिए बस एक चिता

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया

जिन सीनों ने इन को दूध दिया उन सीनों को बेवपार किया

जिस कोख में इन का जिस्म ढला उस कोख का कारोबार किया

जिस तन से उगे कोंपल बन कर उस तन को ज़लील-ओ-ख़्वार किया

संसार की हर इक बे-शर्मी ग़ुर्बत की गोद में पलती है

चकलों ही में आ कर रुकती है फ़ाक़ों से जो राह निकलती है

मर्दों की हवस है जो अक्सर औरत के पाप में ढलती है

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया

औरत संसार की क़िस्मत है फिर भी तक़दीर की हेटी है

अवतार पयम्बर जन्नती है फिर भी शैतान की बेटी है

ये वो बद-क़िस्मत माँ है जो बेटों की सेज पे लेटी है

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया

 #रामधारी_सिंह_दिनकरश्रेय होगा धर्म का आलोक वह निर्बन्ध,मनुज जोड़ेगा मनुज से जब उचित संबंध।
24/04/2020

#रामधारी_सिंह_दिनकर
श्रेय होगा धर्म का आलोक वह निर्बन्ध,
मनुज जोड़ेगा मनुज से जब उचित संबंध।

24/04/2020

#पंचायती_राज_दिवस पर आज की कविता

जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में / अदम गोंडवी


जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में
गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में

बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गयी
राम सुधि की झौपड़ी सरपंच की चौपाल में

खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हम को पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में

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Ahinsa Marg
Karnal
132001

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