राजस्थानी दोहे - कहावतें : उनके अर्थ और क़िस्से कहानियाँ

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भैरव डर किण बात रो, जे अपणै मन साच। आपै परगट होवसी, ओ कंचन ओ काच।। यदि अपने मन में सच्चाई है तो फिर डर किसी बात का नहीं ...
21/11/2023

भैरव डर किण बात रो, जे अपणै मन साच।
आपै परगट होवसी, ओ कंचन ओ काच।।

यदि अपने मन में सच्चाई है तो फिर डर किसी बात का नहीं होना चाहिए।
क्योंकि, देर-सवेर यह स्वत प्रकट हो जाता है कि यह कंचन है और यह कांच है।

गढ सिवाणा के निकटवर्ती नगर महेवास में सुलतान नाम का सेठ रहता था, जिसकी पत्नी का नाम धनश्री था। उसके सुरूपा नाम की एक सखी थी। एक बार सुरूपा अपनी सखी के यहां मिलने गई और दोनों काफी देर तक बातें करती रही। उस दिन धनश्री का बतीस रत्नों का मूल्यवान हार खूंटी पर टंगा हुआ था और खूंटी के ठीक नीचे खुला तैल पात्र पड़ा था। एक चूहा दौड़ता हुआ खूंटी के पास से गुजरा तो वह हार उस तैल पात्र में गिर गया। उसे तैल पात्र में गिरते हुए किसी ने भी नहीं देखा। बातें कर लेने के बाद सुरूपा तो सखी के घर से अपने घर आ गई। वह तो निर्विकल्प थी। कुछ देर बाद धनश्री ने जब खूंटी पर टंगा हुआ अपना हार नहीं देखा तो उसने सोचा कि सुरूपा के सिवाय तो और कोई मेरे धर आया नहीं, अत अवश्य वही मेरा हार ले गई है। धनश्री हार की चिंता में पड़ी हुई थी कि तभी भोजन के लिए सुलतान सेठघर आ गया। उसने उसे उदास देखा तो उदासी का कारण पूछा। तब धनश्री ने बतीस रत्नों वालें हार के खो जाने की घटना बतलाई। साथ ही सुरूपा पर अपना संदेह प्रकट किया। सुलतान सेठ तब सुरूपा के पति के पास गया और हार के खो जाने की घटना से उसे अवगत कराया। अपने पति से हार खो जाने की घटना और अपने पर कलंक आने की बात ज्ञात कर सरूपा को अत्यंत दुख हुआ। सुरूपा के पति ने उसे निर्दोष जान कर सुलतान सेठ से जाकर कहा कि मित्र, मेरी स्त्री ने तुम्हारा हार नहीं लिया है, यदि तुम्हारा यही खयाल है कि उसने हार लिया है तो उसी के समान मूल्य का मेरा यह हार ग्रहण करो। सुलतान से ने वह हार लेकर रख लिया और बाद में उसे अपनी स्त्री को दे दिया। सारी बात गुप्त रूप से ढकी रह गई। जब धीरे धीरे सारा तैल बिक गया और नीचै मैल में लिपटा हुआ हार निकला तो सुलतान सेठ को बड़ी भारी चिंता हुई। उसने सोचा कि मेरे जैसा पापी कौन होगा, जिसने सरूपा जैसी सती साध्वी महिला को मिथ्या कलंक लगाया और उसका हार लेकर चांडाल कर्म किया। उसे बड़ा पश्चाताप हुआ। वह उसी समय सुरूपा का हार लेकर उसके घर रवाना हुआ। उसके मन में ग्लानि हो रही थी, जिसके कारण उसके पांव धीमे धीमे पड रहे थे। वह सुरूपा के घर पहुंचा और उसने बार बार क्षमा मांगी और उसका हार उसे वापस सौंप दिया। वह वहां से चुपचाप अपने घर चला गया। सुरूपा को अपने कलंक के उतरने और हार के मिलन जाने की अत्यंत प्रसन्नता हुई। उसे अब इस बात का हर्ष था कि उसकी सखी धनश्री को पता चल ही गया कि मैंने हार नहीं चुराया।

डोरी सूं डर जाय, ना तर डरै न न्हार सूं।आळा है क बलाय, चातर जाणै चकरिया।।अर्थ - डरने को तो स्त्री डोरी से भी डर जाती है, ...
03/07/2023

डोरी सूं डर जाय, ना तर डरै न न्हार सूं।
आळा है क बलाय, चातर जाणै चकरिया।।

अर्थ - डरने को तो स्त्री डोरी से भी डर जाती है, नहीं डरती है तो वह सिंह से भी नहीं डरती। अब यह अबला है या बला यह तो विद्वान लोग ही जानते हैं।

कहानी - एक दिन एक राजा ने अपने मंत्री से पूछा कि औरत अधिक चतुर होती है या मर्द? मंत्री ने उतर दिया कि पृथ्वीनाथ दोनों ही अपनी अपनी जगह चतुर हैं। लेकिन राजा ने कहा कि मैं एक उतर चाहता हूं। इस पर मंत्री को कोई उतर नहीं सूझा। वह उदास गर लौटा तो उसकी बेटी ने उदासी का कारण पूछा। कारण जानकर उसने कहा कि मैं राजा को इसका उतर दे दूंगी। मंत्री की लडकी ने जाकर राजा से कहा कि मर्द की अपेक्षा औरत अधिक चतुर होती है। राजा ने कहा कि इसे साबित करके दिखलाओ और मंत्री की लडकी को अपने नगर से बिना कुछ दिये निकाल दिया। मंत्री की बेटी चलते चलते एक जंगल में पहुंची और एक वृक्ष की छाया में बैठ गई। पास ही एक जाट, जिसका नाम गोदू था, अपनी बकरी चरा रहा था। उसने जाट को अपने पास बुलाकर उसका परिचय पूछा। जाट ने कहा कि मैं यहीं जंगल में रहता हूं और नगर में से रोटी मांग कर ले आता हूं। गांव के लडक़े मुझे पागल कहकर चिढाते हैं अत मैं उनसे बहुत कतराता हूं। मंत्री की लडकी ने उसे अपना धर्म का भाई बना लिया और उससे पूछा कि तुहारे पास कुछ है भी जाट के पास एक रूपया था, जो उसने एक वृक्ष के नीचे गाड़ रखा था। यही उसकी धरोहर थी। बहन के कहने पर वह रूपया निकाल लाया। तब मंत्री की लडकी ने कहा कि गांव में जाओ और खाने पीने की इतनी इतनी चीजें ले आओ। साथ ही एक मखमल का टुकडा एक सुई व कुछ धागा भी उसने मंगवाया। मंत्री की बेटी ने उससे फिर कहा कि आज यदि लडके तुहें चिढाएं तो उन्हें कडी आवाज में दुत्कार देना कि मैं पागल नहीं हूं। सारा सौदा ठीक से खरीद कर ले आना। जो पैसे बाकी बचे, वे भी अच्छी तरह गिनकर ले आना। गोदू ने वैसा ही किया। मंत्री की बेटी ने रोटियां बनाई और फिर दोनों ने भोजन किया। गोदू ने आज तक ऐसी रोटी नहीं खाई थी। रोटी खाकर वह बड़ा खुश हुआ और फिर बकरी के पास चला गया। इधर मंत्री की बेटी ने उस मखमल के टुकडे की एक बहुत सुंदर टोपी बनाई। फिर उसने गोदू को बुलाकर कहा कि इसे नगर में जाकर बेच आ। लेकिन तू अपनी ओर से टोपी की कोई कीमत न कहना,अपितु ग्राहक जो दे दे वही ले आना। नगर में एक बनजारा आया हुआ था। उसने नगर के बाहर अपना डेरा लगा रखा था। गोदू टोपी लेकर उसी के पास पहुंचा।बनजारे को टोपी बडी पसंद आई। उसने पच्चीस रूपये में वह टोपी खरीद ली।
गोदू ने टोपी बेचकर उसके रूपये लाकर अपनी बहन को दे दिए। दूसरे दिन उसने गोदू को फिर एक रूपया दिया और वही सामान फिर मंगया लिया। उसने फिर टोपी बनाकर गोदू को दी ओर वह उस बनजरे को पच्चीस रूपये में बेच आया। यों उसने सात टोपियां बेच दी। आठवें दिन जब वह टोपी लेकर पहुंचा तो बनजारे ने उससे पूछा कि तुझे ये टोपियां बनाकर कौन देता है? गोदू ने कहा कि मेरी बहन मुझे टोपी बनाकर देती है। बनजारे ने कहा कि मैं उससे मिलना चाहता हूं। गोदू ने कहा कि मैं अपनी बहन से पूछकर कल इसका उतर दूंगा। गोदूने अपनी बहन को बनजारे की बात बताई तो उसने कहा कि बनजारे को ले आना।दूसरे दिन बनजारा आया तो मंत्री की लडक़ी को देख कर मोहित हो गया। बनजारेने उससे विवाह का प्रस्ताव किया तो मंत्री की लडक़ी ने कहा कि पहले मुझे एकलाख रूपये दो, ताकि मैं अपनी स्थिति सुधार लूं। फिर मैं तुमसे विवाह कर लूंगी।बनजारे ने उसे एक लाख रूपये ला दिए। मंत्री की लडक़ी ने अब एक अच्छा सामकान ले लिया खूब ठाठ-बाट से रहने लगी। बनजारा उसके पास गया तो उसने उत्तर दिया कि वे रूपये तो मकान आदि में खर्च हो गए, अब तुम मुझे विवाह की तैयारी करने के लिए एक लाख रूपये और दो। अब बनजारे ने सोचा कि यह लडक़ीमुझे ठग रही है। इसलिए वह कोतवाल के पास गया। कोतवाल आया और मंत्री कीलडक़ी को देखकर वह खुद आसक्त हो गया। उसने स्वयं मंत्री की लडकी से विवाहका प्रस्ताव किया। लडकी ने कहा कि आप रात को दस बजे आइए, तब मैं आपसे बात करूंगी। कोतवाल ने बनजारे को घुडक़ कर निकाल दिया। तब बनजारा उससेऊंचे अधिकारी के पास गया। वह भी मंत्री की लडक़ी के पास आया तो उसकी भी वही गति हुई। मंत्री की लडकी ने उसे रात को ग्यारह बजे आने के लिए कह दिया।अब बनजारा दीवान के पास गया। दीवानगी को रात के बारह बजे आने को कहागया। और बनजारा तब थक हार कर राजा के पास पहुंचा। राजा भी मंत्री की लडकी के यहां पहुंचा तो राजा भी उस पर मोहित हो गए। तब मंत्री की लडकी ने उन्हें आधी रात के बाद आने को कह दिया। इस तरह मंत्री की लडकी ने एक के बाद एक सबको रात को घर आने के लिए कह दिया। अब वह रात होने का इंतजार करने लगी। ताकि उन सबकी खातिदारी की जा सके।
दस बजते ही कोतवाल साहब सज धर कर आ पहुंचे।मंत्री की बेटी ने कोतवाल को एक कमरे में बैठा दिया। फिर वह उनके लिए खाने पीने की चीजें जुटाने लगी। देर होती देखकर कोतवाल साहब जल्दी करने लगे तो मंत्री की लडक़ी ने कहा कि अब रात आगे या देर है। ग्यारह बजते बजते बडे अधिकारी ने दरवाजे पर दस्तक दी तो कोतवाल साहब ने पूछा कि कौन है? मंत्री की लडकी ने कहा कि बड़े अधिकारी है। यह सुनकर कोतवाल साहब की सिटटीपिटटी गुम हो गई। उन्होंने मंत्री की लडकी से कहा कि मुझे शीघ्र कहीं छिपा। मंत्रीकी लडकी ने कहा कि मै कहां छिपाऊं। अंत में जब कोतवाल साहब बहुत ही गिड़गिड़ाने लगे तो उसने उनके ऊपर एक फटा हुआ टाट डाल दिया और उसकेदोनो हाथों में दीपक टिका दिए। अब बडें अधिकारी की आवभगत होने लगी। इतनेमें दीवानजी आ गए। अब बडे अधिकारी ने कहा कि मुझे जल्द छिपा। मंत्री कीलडकी ने उन्हें मुर्गा बनाकर एक कोने में खड़ा कर दिया और फिर उसे कपड़ाओढाकर उसकी पीठ पर रख दिया। अब दीवानजी की खातिरदारी होने लगी। इतनेमें राजाजी आ गए। मंत्री की लडकी ने दीवान जी को छिपाने के लिए उनको एकओढनी ओढाकर चकी पीसने के लिए बैठा दिया। अब राजाजी की खातिरदारीहोने लगी। थोडी देर बाद मंत्री की लडकी किसी दूसरे कमरे में जाकर निश्चिंतहोकर सो रही। इधर राजाजी उसका इंतजार करते करते ऊंघने लगे। वे किसी कोपुकारते तो कोई उतर नहीं मिलता। राजाजी सोचने लगा कि लडकी न जाने कहांचली गई। बड़े असमंजस में पड़ गए। अपने आप से कहने लगे कि कहां आ फंसे।दीपक की बात्ती मंद होने लगी तो राजाजी उसे ठीक करने के लिए उठे। उधरकोतवाल ने सोचा कि मेरी शामत आ गई। वह गिड़गिड़ाता हुआ राजा के पैरों परगिर पड़ा। राजा कोतवाल को इस रूप में देखकर हका बका रह गया। उसनेडांटकर कोतवाल से पूछा कि तूम यहां कैसे? कोतवाल ने उतर दिया कि हुजूर, मैंही नहीं, बड़े अधिकारीजी, कोने में खडे हैं और दीवानजी चकी पीस रहे हैं। सवेराहुआ तो मंत्री की लडकी वहां आई। उसने राजा से कहा कि महाराज, गुस्ताखी माफहो। अपने मुझसे एक सवाल पूछा था कि औरत अधिक चतुर होती है कि मर्द? मैंनेकहा था कि औरत अपने इस कथन को सिद्ध कर दिखाया है। लडकी की बातसुनकर राजा बड़ा शर्मिन्दा हुआ और उसके बाद वह चुपचाप महल को चला गया।कोतवाल बडा अधिकारी और दीवान ने भी अपने अपने घर की राह ली।

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