M R Malkani Ki Kalam Se

M R Malkani Ki Kalam Se To know the fact behind the issues that's make news & to see that issues with my point of view....

.     एंटिक पीस था, भाव मिल गये। डॉलर की तो पूरे वर्ल्ड में फिक्स रेट है। वैसे भी दीपावली का सीजन है, घर की सफाई में कई ...
10/11/2023

. एंटिक पीस था, भाव मिल गये। डॉलर की तो पूरे वर्ल्ड में फिक्स रेट है। वैसे भी दीपावली का सीजन है, घर की सफाई में कई कबाड़ निकलता है बस इस बार कबाड़ी को एंटिक मिल गया? भाव दे दिये, मगर इतने भी नहीं कि हैंडीक्राफ्ट आइटम एक्सपोर्ट होने लायक हो?

जोधपुर में सियासत गरमायी हुई है। शहर को चुनाव का रंग चढ़ा है, 9 नवम्बर को नाम वापसी का दिन था। मैदान में उतरे कई सूरमा ढेर हो गये। सबसे ज्यादा कचर-पचर सयाने और वयोवृद्ध नेता रामेश्वर दाधीच के सूरसागर विधानसभा क्षेत्र के चुनावी मैदान छोड़ने पर हुई। वे अगर चुनाव लड़ जाते तो सारा मुलम्मा उतर जाता? शायद हजार पन्द्रह सौ में सिमट जाते?

सूरसागर में पहले से भाजपा का फ्रेश प्रत्याशी देवेंद्र जोशी भी चट्टान सा खड़े हैं। कहा गया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जोशी ब्राह्मण के सामने दाधीच ब्राह्मण उतारना एक चाल है ताकि कांग्रेस का मुस्लिम प्रत्याशी पहली बार जिताया जा सके। सारे विश्लेषक, घर-घर राजनीति की प्याऊ खोल बैठे और चुनावी कुंए से बाहर आये मेंढकों के तीन दिन की इस टर-टर और फैंका-फैंकी के बाद सब 'सुट' हो गये। कोई जवाब नहीं बन रहा था इनसे?

कट्टर कांग्रेसी, वरिष्ठ कांग्रेसी, अशोक गहलोत के बहुत करीबी कहे जाने वाले, कमोबेश सीरत (कृतित्व) में तो नहीं अलबत्ता अशोक गहलोत की शक्ल से मेल खाते रामेश्वर दाधीच और अशोक गहलोत की मेहर से जोधपुर में पहली बार जितवाये गये मेयर रामेश्वर दाधीच ने जरा से लालच में वर्षों की सब यारी दोस्ती, रिश्ते-नाते; यहां तक की गहलोत के अटूट भरोसे का खून कर उन्हें और उनकी पार्टी को हारने के लिये भारतीय जनता पार्टी ज्वॉइन कर ली।

शायद ये वक़्त नहीं था, गहलोत के साथ धोखा करने का? ये साथ छोड़ने की वजह भी बड़ी तुच्छ थी उन्हें विधायक बनने की लार टपकी जा रही थी। तो अब कौन सी रामेश्वर दाधीच को बीजेपी ने बड़ी इज्जत दे दी है? पहले ही पायदान पर उन्हें उनकी औकात दिखाते हुये साफ मैसेज दे दिया कि - जनाब, बस यहीं तक! "कभी ब्राह्मण सीट हुई, तो तुम्हें लोकसभा का टिकट देंगे।" इस लॉलीपोप के साथ रामेश्वर दाधीच को प्रदेश भाजपा में उपाध्यक्ष का पद दिया। अब इन्हें कौन समझाये कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सी. पी. जोशी की 29 की कार्यकारिणी में पहले से 11 उपाध्यक्ष हैं, आप 12वें सही?

इस पूरे एपिसोड में राजनीति के मंझे मंझाये क्षत्रप रामेश्वर दाधीच को तो हाई क्वॉलिटी वाली बेइज्जती की हाईट का भी अंदाजा नहीं लगा? पहले ही दिन सारा खेल जोधपुर के सांसद और केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत ने ' 'फ्रंटफुट' पर खेला।

रामेश्वर दाधीच ने सूरसागर क्षेत्र से सुबह पर्चा वापस लिया दोपहर बाद ही उन्हें चार्टड प्लेन में जयपुर ले जाया गया। वहां प्रेस कांफ्रेस हुई। कोयला व इस्पात मंत्री प्रहलाद जोशी व गजेंद्रसिंह शेखावत ने भगवा पटका दाधीच के गले में डाल उन्हें बीजेपी में लिया जबकि ठीक उसी वक़्त राजस्थान के ही उदयपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़ी पब्लिक मीटिंग कर रहे थे। जोधपुर से ये चार्टर प्लेन उदयपुर भी जा सकता था मगर नहीं ले जाया गया।

गज्जू बन्ना और प्रहलाद जोशी की बजाय देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी अशोक गहलोत की सी शक्ल लेकर आये कांग्रेस के इस एंटिक पीस के गले में केसरिया पटका डाल मान सम्मान से भाजपा ज्वाइन करवा सकते थे। मुश्किल से एक से डेढ़ मिनट ही लगता मगर पहले ही दिन कांग्रेस के साथ-साथ अपनी जवानी से बुढ़ापे तक अशोक गहलोत के साथ को स्वार्थ के लिये छोड़ आये, जो उनका सगा नहीं हुआ, बीजेपी का कब होगा? इस शक-सूबे में दाधीच को भाजपाइयों ने उनको उनकी जगह बता दी। आला दर्जे की बेइज्जती करवा रात को उसी प्लेन से लौट के बुद्दु घर को आये वाला किस्सा हुआ।

जयपुर की प्रेस कांफ्रेस में अपने गले में पहली बार भगवा डाले रामेश्वर दाधीच ने नरेन्द्र मोदी की तारीफों की हदें पार कर दी। जमकर कसीदे पढ़े। खुद को कट्टर हिंदूवादी साबित करते हुये पेंटकट पायजामे की मोरी उलट कर दिखा दिया कि उनके पेंटकट पायजामे के नीचे आर.एस.एस. वाला खाकी निक्कर तो वर्षों से पहना हुआ है - देख लो!

...तो रामेश्वर दाधीच कांग्रेसी से भाजपाई हो गये। कांग्रेस के इस 'टफ टाइम' में साथ छोड़ दिया और अब रट्टा लगा रहे हैं - जय जय सियाराम! इन्हें पहला टारगेट दिया है - कांग्रेस से तोड़कर और ब्राह्मण लाओ। 23 नवम्बर को जोधपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब रोड-शो करने आयें तब तक नामचीन 5 ब्राह्मण कांग्रेसी नेता व ललित सहित दो ढाई सौ और भी भाजपा में मिलाओ। बस इसी जोड़-तोड़ की राजनीति का बाजार गरमा-गर्म है! ये है सियासी काची मौत। बारियौ चालिसवो भेलौ, पैरावणी ओढ़ावणी नीं लावणी।

. 🍁  लूट मची है शहर में। खुद जोधपुर कमीशनरेट की पुलिस हर नुक्कड़,  हर मोड़ पर नाका लगा कर जबरन वसूली कर रही है। पुलिस को  ...
11/10/2023

. 🍁 लूट मची है शहर में। खुद जोधपुर कमीशनरेट की पुलिस हर नुक्कड़, हर मोड़ पर नाका लगा कर जबरन वसूली कर रही है। पुलिस को 'जान-जुआरी' नहीं मिले, तो समझो ना करने वाले की ये खाकी खाल खींच लेती है। धौंस ये कि पुलिस की लाते, घूसे, मुक्के, डंडे खाने वाले मजलूमों की पुलिस कमीशनर तक सुन रहे?

पुलिस कमीशनर रविदत्त गौड़ ने खुद 5 महीनों से पुनः ये 'लूट नाके' खोले हैं। लूट करने वालों में प्राथमिकता उसी को मिली है जिसे पहले शिकायतन नाके से हटाया गया। अनुभव को आधार मान प्राथमिकता मिलती है। झालामंड नाके पर तैनात सिपाही अशोक विश्नोई और मनीष मीणा इसी नाके से शिकायतन हटाये गये थे और फिर गोटी बिठा कर ये यहीं आ लगे। वसूली में इनका हाथ तंग नहीं है, उच्चतम मानदंड में यही अनुभव क्या कम है?

जोधपुर शहर के ज्यादातर पुलिस थानों की मैस यहां के जुआ, गुब्बा और क्रिकेट सट्टा के अड्डे संचालित करने वाले के पैसे से चलते हैं। घी, तेल, आटा से लेकर परचून तक का राशन यही गुब्बेबाज पुलिस को मुहैया करवाते हैं। इसीलिये - जैसा खावै अन्न वैसा होवै मन। ...तो मुख्यमंत्री के गृह नगर में खाकी का ये है चाल, चरित्र और चेहरा।

कहते हैं - इंसाफ खत्म, समझो निजा़म खत्म, इक़बाल खत्म। और ये दोनों बातें जोधपुर पुलिस कमीशनरेट पर सौ फीसदी फिट है। नागौर के जायल में छावटा खुर्द गांव का अधेड़ जिमनाराम जाट 7 अक्टूबर की रात 12:30 बजे ट्रक लेकर झालामंड नाके के रास्ते शहर में दाखिल हुआ। ट्रक में कोयला भरा था। गुजरात के जामनगर से इस ट्रक को नागौर खींवसर पहुंचना था। चालक के पास बिल बिल्टी समेत सारे कागज कम्पलीट थे, उसने दिखाये भी।

झालामंड नाके पर तैनात सिपाही अशोक विश्नोई और मनीष मीणा ने ट्रक रुकवाया और हक़ के साथ 'जान-जुआरी' मांगी। जिमनाराम ने मना कर दिया। मानो शोले फिल्म के वीरू ने कह दिया हो - "बसंती इन ..त्तों के आगे मत नाचना।" बस! गब्बर नाराज हो गया और बेल्ट खोल सटकाने लगा। ऐसा ही कुछ खाकी वाले अशोक विश्नोई और मनीष मीणा ने बीहड़ की बजाय हाई-वे पर ये सीन क्रिएट किया।

सिपाहियों ने पच्चीस-पचास गलियों के साथ अधेड़ ड्राईवर जिमनाराम को ट्रक से नीचे पटका और धे तेरी, धे तेरी करते मार-मार फुटबाल बना दिया। सीधे-सीधे 500 नहीं दिये, तो ट्रक के मीटर बोर्ड पर रखे पांच सौ और जाट साहब की जेब से 150 रुपये जबरन लेकर ही सब्र आया। सड़क पर भीड़ लग गई। लोग वीडियो बनाने लगे, कुछ बीच बचाव में भी आये मगर खाकी का कार्यक्रम जारी रहा। ट्रक ड्राईवर जिमनाराम के कान के पीछे से खून आने लग गया। कान में पहना सोने का लूंग भी गया।

जख्म लेकर लुटा-पिटा अधेड़ पुलिस के मुखिया जी के दरबार में हाजिर हुआ। उसे गुमान था कि हुमायूँ के दरबार में फरियादी घंटा बजायेगा और उसे मा-बदौलत इंसाफ देंगे? मगर यहां तो कुंए भांग नहीं 'हवा भांग' घुली थी। जैसा खावै अन्न, वैसा होवै मन! दूर-दूर तक इंसाफ नदारद, ना सुनवाई ना कोई फरियाद। रिपोर्ट लेकर भी मुखिया जी ने कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया ना करवाया? यही रिपोर्ट सिपाही ने दी होती, तो राजकार्य में बाधा, लोकसेवक से मारपीट, एससीएसटी एक्ट की दो धाराएं और जोड़ कर जिमनाराम को ठोक देते अंदर? ये कैसा इंसाफ, ये कैसा निजा़म और ये कौन सा इक़बाल? बदनामी के सारे रास्ते ओपन...।

जोधपुर में हर मोड़ पर पुलिस का 'नाका' खुला है। अगस्त 2022 में पुलिस कमीशनर साहब डर गये थे, दो नाकों पर फर्राटा वाहनों ने दो सिपाही उड़ा दिये। 5 अगस्त 22 को इसी झालामंड नाके पर देर रात एक वकील साहब ने नाके पर गाड़ी चढ़ा दी, तो अगली सुबह ही गौड़ साहब ने शाही फरमान जारी कर दिया कि सारे पुलिस नाके हटा दो। और हटा भी दिये गये। सारे तामझाम समेट लिये। लॉजिक दिया कि एक तो स्टाफ कम है, दूसरा इन नाकों से पिछले दो चार साल में एक भी बड़ी कार्यवाही नहीं हुई, तीसरा अवैध परिवहन कर रहे बजरी के ट्रक भी नहीं रुक रहे, उल्टा बजरी बजरी में क्या नाके, क्या चेतक, क्या ट्राफिक पुलिस और क्या थाने सब लूटम लूट मचाये हैं। तब इन नाकों का क्या औचित्य? बंद करो इन्हें। नाकों से लगा स्टाफ विड्रल।

जोधपुर में आने-जाने वाले रास्ते यथा नागौर से आयें तो करवड़, जयपुर-अजमेर से आयें तो डिगाडी बनाड़, रिंग रोड पर शिकारगढ़, लूनी से आयें तो गुड़ा विश्नोईयान नाका और गौरा होटल के पास का नाका, जैसलमेर से चौपासनी स्कूल की तरफ आयें तो डाली बाई मंदिर नाका, सूरसागर केरु से आयें तो चौपड़, बाड़मेर से आयें तो डीपीएस सर्किल मार्ग पर और पाली से आ रहे हैं तो झालामंड सर्किल पर पुलिस का नाका है। ये बंद किये नाके अभी 5 महीने से कमीशनर रवि दत्त गौड़ ने फिर से चालू कर दिये। अब चूंकि विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित हो गई और शहर में धारा 144 लगा दी गई तो कुछ और नाके रन करने लगे हैं। इन पांच महीनों में भी इन नाकों से कोई बड़ी कार्यवाही नहीं हुई बल्कि इन नाकों से एंट्री लेने वालों से हर ट्रक ट्रेलर 500 रुपये की जबरन वसूली की जा रही है। अफसरों को सब पता है और सब में हिस्सा भी। बड़े और व्यस्त नाकों से रोजाना औसतन 20 गाडे-घोड़े निकलते हैं और हर दिन एक नाका 10 हजार का 'लगान' समेट रहा है।

पुलिस थानों की मैस जुआ, गुब्बा और क्रिकेट सट्टा चलाने वालों के डलवाये राशन से गर्मागरम रोटी भाजी पका रहे हैं और बाकी के दूसरे खर्च खाते में ये है ना - "नाके"

शहर में बिछी नाकों की इस जाजम से जोधपुर पुलिस बेड़ा और इसमें तैनात अफसरों से लेकर लांगरी तक का पता चल जाता है कि हमारी ये पुलिस - 'डायनामिक है या लिथार्जिक?'

एम. आर. मलकानी
पत्रकार, जोधपुर
9829022700

☘️ ये है 10 का दम।  कूट-कूट कर पिछवाड़ा सुजा दिया। भाईजी लाल कई दिनों तक सीधा नहीं लेट  पायेंगे। खाकी का रौब-दाब ऐसा ही त...
08/10/2023

☘️ ये है 10 का दम। कूट-कूट कर पिछवाड़ा सुजा दिया। भाईजी लाल कई दिनों तक सीधा नहीं लेट पायेंगे। खाकी का रौब-दाब ऐसा ही तो होता है। बासनी थाना पुलिस इस वक्त जोधपुर कमीशनरेट की सबसे तेज और मुस्तैद पुलिस जो हो गई है।

बासनी थाने में दो ढाई माह से इंस्पेक्टर जितेंद्रसिंह राठौड़ थाना अधिकारी हैं। बड़े तेज। मिनटों का काम सैकिंडों में करते हैं और मुकदमा 2-4 करोड़ वाला हो, तो इतना भी टाइम नहीं लगता। इस पर भी अगर कोई 'मिलने मिलाने' वाला हो, तो ये भी टेंशन नहीं कि घटना स्थल यहां का है या वहां का? तुरंत अपने थाने में दर्ज कर मारते हैं और मुलजिम को पाताल से भी ढूंढ लाते हैं। मोटे आसामियों को जोधपुर की पुलिस ऐसे ही ओबलाइज करती है। है ना चुस्त, दुरुस्त, तंदुरुस्त अपनी पुलिस!

जोधपुर में एक गुब्बा, सट्टा और क्रिकेट सट्टा किंग हैं विनोद सिंघवी।करोड़ों में 'खेलते खिलाते हैं।' पुलिस थाने में इनकी हिस्ट्रीशीट खुली रहती है। खुद को बड़े कारोबारी बताते हैं। कहते हैं वे एनसीडीएक्स वायदा कारोबारी हैं अब एक नया शब्द भी लाये हैं 'जिनजा' कार्य। ख़ैर! 51 साल के हैं। पाल लिंक रोड देवनगर में रहते हैं। नाइयों की बगेची प्रताप नगर के विनोद टावर में ऑफिस है।

विनोद सिंघवी कायलाना रोड पर सिद्धार्थ इंटरनेशनल रिसोर्ट होटल, शास्त्री नगर में सिद्धार्थ पैलेस बंगला, चौपासनी रोड पर आदेश्वर टावर, पाल रोड डीपीएस के नजदीक 200 फ्लैट की कॉलोनी सिद्धार्थ रेजीडेंसी के मालिक हैं। हाल में ई-633 गली नम्बर 8 बासनी में कोई बिल्डिंग बनने के लिये खड्डे खुदे पड़े हैं।

बड़े नेक, शरीफ, रसूखदार, स्मार्ट, खास तौर से पुलिस वालों की बेगार निकालने में कभी पीछे नहीं रहे विनोद? बड़ा नरम हाथ रखते हैं। उनके लिये पैसा जो हाथ का मैल है। 20-25 लाख के काम तो मिनटों में निकाल देते हैं। पुलिस बेड़े में इनकी यही पेठ है। शायद इसीलिये कहते हैं - "खाया पिया नीचे देखता है" और 'खाकी' देख भी रही है।

सेठ विनोद सिंघवी कई दिनों से परेशान थे। काम धंधे में कभी साथ रहे मथानिया के सेठ पवन संचेती को सलटाना है, कोई डेढ़ से 3 करोड़ का हिसाब है? पासा पड़ नहीं रहा था कि अचानक लॉटरी लग गई, पुलिस वाला जिगरी-जिगरी दोस्त इंस्पेक्टर जितेंद्रसिंह बासनी थाने में एसएचओ तैनात कर दिये गये। 'सैंया भये कोतवाल अब डर कहे का' विनोद सिंघवी ने आंटा निकाले की जुगत भिड़ा ली।

परिवादी विनोद सिंघवी जितना सुस्त और ढीला था, थाना अधिकारी उतने ही चुस्त। विनोद सिंघवी के बासनी में जो खड्डे खुद रहे हैं उसे ऑफिस व घटना स्थल बताया गया, 2 अक्टूबर की घटना बता 5 तारीख को रिपोर्ट की और दर्ज कर लिया मुकदमा नम्बर 277/23 जबकि घटना स्थल से थाना मात्र 90 मीटर की दूरी पर बताया परिवादी ने 4 दिन लगा दिये थाने पहुंचने में। प्रथम सूचना रिपोर्ट के विलंब से दर्ज करवाने का कारण भी दर्ज नहीं किया। हो जाता है, जब अपना ही दोस्त कोतवाल हो। आराम से।

सीआई जितेंद्र सिंह इनकी तरह ढीली थोड़े ना थे? विनोद सिंघवी को धमकाने की रिपोर्ट भले 4 दिन बाद पेश की मगर पुलिस ने उसे फौरन से पेशतर दर्ज की और अगले 15 घंटे भी नहीं लगाये, 2 आरोपी लाकर हवालात में बंद किये। आरोपी की हिम्मत कैसे हुई 'सिंगम' के हल्के में आकर उसके हिस्ट्रीशीटर दोस्त को धमकाने की? पुलिस ने रात ही उन दोनों की 'कम्बल परेड' कर डाली। चक्की की मोटर पर चलने वाले बेल्ट के टुकड़े पर लिखा था- आन मिलो सजना, आ गले लग जा...आदि। जुड गांव के पुखराज विश्नोई और उम्मेदनगर मथानिया के छैलाराम जाट का पिछवाड़ा लाल हो गया। अब लेटो सीधे-चित्ते? अभी तो तीन और पकड़ने है, पटकने हैं, हो जायेगा।

विनोद सिंघवी की रिपोर्ट ठीक उस वक़्त थाने आई जब बासनी पुलिस आरजीएचएस सरकारी योजना के 2 करोड़ से ज्यादा के मेडीकल घोटाले के गिरफ्तार आरोपी जुगल झंवर से वीडियो पर लाइव पूछताछ कर रही थी। आरोपी डॉ. विनय व्यास को जुगल झंवर से आमने सामने बिठाकर पुलिस सवाल कर रही थी। ये दिन में कोई 12 साढ़े बारह बजे का टाइम था। विनोद सिंघवी का भाई मनोज सिंघवी भी यहीं मौजूद था।

परिवादी के 12 बजे की दी एफआईआर रात दस बजे दर्ज हुई। मनोज सिंघवी वहीं थाने में रहा। पुलिस सफाई दे रही है कि गवाहों के बयान लिखे, फोन ऑडियो की 21 क्लिप की स्क्रीप्ट लिखी गई, मौका नक्शा मूर्तब किया गया और मुलजिम पकड़ कर लाये गये। सब कुछ वंदे भारत एक्सप्रेस से भी तेज। क्या और भी मुकदमों में ऐसे ही ताबडतोड़ कार्यवाही होती है? ....हो रही है ना बासनी थाने में। बशर्ते परिवादी क्रिकेट सट्टा, गुब्बा, हिस्ट्रीशीटर और वायदा कारोबारी हो और उस पर भी सीआई का जिगरी हो। ये और बात है कि 26 सितंबर के दर्ज सरकारी कोष को 2 ढाई करोड़ के घोटाले के मुख्य आरोपी उमेश परिहार को बासनी पुलिस आज तक नहीं पकड़ सकी।

पूरे सीन से कहानी के पंख लग गये। "लोग खाये बगैर रह सकते हैं, कहे बगैर नहीं रहते" दो- ढाई करोड़ के दवा घोटाले के मामले में रू-ब-रू बाद डॉ. विनय व्यास को फ्री कर दिया गया। आरोप है कि डॉ. विनय व्यास को फ्री करने का ठेका 25 लाख में उठा? दो-मुकदमे, करोड़ों का काम, विनोद सिंघवी और उसके भाई मनोज सिंघवी की थाने में दस घंटे की मौजूदगी, डॉ विनय व्यास को फ्री करना, सुपारी उठने की ख़बर, सिंघवी के मुकदमे में हाथों हाथ दो आरोपी लाकर बाडे में डालने, खाकी की फुर्ती इससे पहले और इस धारा 384 के मुकदमे में इतना कुछ गंभीर से गंभीरतम होना? वाकई ये पुलिस जोधपुर से अपराध और अपराधियों को जड़ से खत्म कर के ही दम लेगी। है ना ये 10 का दम!

.   क्या लगता है, पिछले दस दिनों से शहर में जो कसरत चल रही है कि ईदमिलादुन्नबी पर निकाले जाने वाला जुलूस-ए-मुहम्मदी रद्द...
27/09/2023

. क्या लगता है, पिछले दस दिनों से शहर में जो कसरत चल रही है कि ईदमिलादुन्नबी पर निकाले जाने वाला जुलूस-ए-मुहम्मदी रद्द हो जाये, इसका रूट बदल दिया जाये, जुलूस निकालने वालों को खाकी के रौब-दाब से इतना डरा दिया जाये कि ये आगीवाण बाकी बची अपनी पूरी जिंदगी में जुलूस का "ज" बोलने से ही खौफजदा हो जायें? ...और शायद ऐसा कुछ हुआ भी लगता है?

पिछले 10 दिनों से अपने शहर की पुलिस जी-जान लगाकर जुलूस-ए-मुहम्मदी को रद्द करवाने में जुटी थी? इस काम में शायद एक स्थानीय उच्च अधिकारी को जिम्मा दे रखा था। मालूम पड़ता है कि इस पुलिस अधिकारी ने सबसे पहले मुफ़्ती मौलाना शेर मोहम्मद जी को घेरना चाहा। मौलाना नहीं चाह रहे थे कि जुलूस का 1971 से चला आ रहा रूट बदले। तीन चार दिन तक ये कसरत चली थी।

रूट बदलवाने के मंसूबे टूटते दिखे तो पुलिस ने जुलूस के आगीवाण उस्ताद हमीम बक्श को निशाने पर लिया। उन्हें बुला बुलाकर कई अच्छी बुरी मुलाकातें की गई। खबरें तो यहां तक है कि उस्ताद ना रूट बदलने को तैयार थे ना जुलूस रद्द करने पर राजी थे।

बात हल्के के सीआई कैलाश पारीक और एसीपी छवि शर्मा से बूते की नहीं थी। ये शहर में नये पोस्टेड भी हैं, तो ज्यादा सफल उखाड़-पछाड़ शायद ही कर पायें, तो इनसे भी बड़े अफसर को ये टास्क सौंपा गया। मुफ़्ती साहब को डरना धमकाना जब बूते से बाहर था, तो उस्ताद हमीम बक्श पर शिकंजा कसा गया।

दो-तीन-पांच बार की मीटिंग्स में मुस्लिम समाज के जिम्मेदारों को फोन कर डीसीपी (पूर्व) के ऑफिस बुलाया गया। मुफ़्ती साहब से लेकर अखाडों के उस्तादों को समझाने, जुलूस रद्द करवाने, रूट बदलने के लिये राजी करने से लेकर डराने तक का जिम्मा ना तो पुलिस कमीशनर रवि दत्त गौड़ ने उठाया ना डीसीपी डॉ. अमृता दुहान ने उखाड़ पछाड़ की। सारा भार-बोझ सरकार के और पुलिस बेड़े के वफादार और कड़क एडीसीपी नाजिम अली ने उठाया।

शहर में मुसलमानों और उनके कायद को वक्त-वक्त पर खाकी का रौब-दाब झाड़, डराने धमकाने और आँख दिखाने से लेकर उन्हें पुलिस की बात नहीं मानने पर ऐसे ऐसे झूठे मुकदमे में झेलकर चकरी चढ़ाने की धौंसपट्टी के लिये पुलिस बेड़े में एडीशनल एसपी नाजिम अली को आगे कर रखा है। नाजिम अली भी हमेशा चार कदम आगे बढ़कर ये जिम्मेदारी निभाते हैं। वे मुस्लिम कायद को डराने धमकाने में कभी पीछे नहीं रहे?

जुलूस-ए-मुहम्मदी इस दफा रद्द करने या 28 की बजाय 29 सितंबर को निकालने या इसका पारंपरिक रूट बदलने के लिये अखाड़ों के उस्ताद और जुलूस के आगीवाण हमीम बख्श को डीसीपी पूर्व के दफ्तर में बुलाकर नाजिम साहब ने ऐसा धमकाया बताया कि हमीम बख्श की घिग्गी बंध गई। उस्ताद ने वहीं डीसीपी डॉ. अमृता दुहान के सामने ही हाथ पैर ढीले छोड़ दिये। उस्ताद हमीम बख्श को वहीं से पुलिस की गाड़ी में डाल अस्पताल पहुंचाया गया। 5-6 दिन से उस्ताद कार्डियक केयर वार्ड से बाहर नहीं आ पाये।

पुलिस की धमकी से जुलूस के बाकी के आगीवाण उस्तादों की तो सिट्टीपिट्टी गुम हो गई। सब सन्न-सुट हो गये और पुलिस को लिखकर दे दिया कि तौबा, जुलूस से तौबा, जुलूस निकालना तो छोड़ो नाम तक नहीं लेंगे और ऐलान कर दिया कि "ईदमिलादुन्नबी का जुलूस रद्द।" सरकार और पुलिस की मुराद मन्नत पूरी हुई।

जोधपुर कमीशनरेट में तैनात एडी सीपी नाजिम अली बड़े काबिल और इकलौते अफसर हैं जो मानो हर मर्ज की एक ही दवा है। 3 मई को जोधपुर में ईद के मौके जब सांप्रदायिक दंगा हुआ उससे पहले मुस्लिम मौहल्लों में डंडे फटकारने और उत्पात मचाने के संदेह में आने वाले युवकों को पकड़ने के लिये यही बढ़चढ़ कर आगे रहे। ईद की नमाज से पहले जालोरी गेट चौराहे से नमाज पढ़ने ईदगाह जाने वाले मुसलमानों को नाजिम अली ने ही बेरिकेट्स लगाकर रोका और चौराहे के साईड में लगे पाईप की रेलिंग से होकर जाने का हुक्म जारी किया।

नमाज के फौरन बाद ये बेरिकेट्स हटा लिये और ईदगाह से लौटती भीड़ भगवा देख भड़क गई। शहर में दंगा हो गया।

मुहर्रम पर भी उस्तादों को धमकाने और अपमानित करने में नाजिम अली की कारगुजारियां मुस्लिम बाहुल्य मौहल्लों में आज भी याद कर मिशाल में पेश की जाती है। अब उससे भी बड़ी नजीर जुलूस-ए-मुहम्मदी रद्द करवाने, रूट बदलवाने के लिये नाजिम अली साहब को ही याद किया जायेगा। शाबाश एडीसीपी नाजिम अली!

वफादार एडीसीपी की इन सेवाओं को देखते हुये अशोक गहलोत और उनकी सरकार नाजिम साहब से बड़ी खुश है और इनाम के तौर पर इनका तबादला पुलिस के दूसरे विभाग में हो जाने के बावजूद उन्हें 15 महीनों तक एडीसीपी पूर्व के पद से कार्यमुक्त नहीं किया और एक बार फिर कागजों से कागजों में नाजिम अली का तबादला एडीशनल एसपी सीआईडी सीबी जोधपुर से पुनः एडीसीपी पूर्व जोधपुर कमीशनरेट किया गया ताकि जब भी शहर की मुस्लिम कायद को लगाम देने या 'एडी' लगाने की जुर्रत पड़े तो नाजिम अली की सेवाएं तुरंत ली जा सके। 5-6 दिन से नाजिम साहब 'टॉक ऑफ टाउन' है।

. जोधपुर सूरसागर से भाजपा विधायक सूर्यकांता व्यास और निगम दक्षिण में भाजपा की ही  महापौर वनिता सेठ की आपसी सियासी लड़ाई ...
30/06/2023

. जोधपुर सूरसागर से भाजपा विधायक सूर्यकांता व्यास और निगम दक्षिण में भाजपा की ही महापौर वनिता सेठ की आपसी सियासी लड़ाई सड़कों पर डंपिंग स्टेशन यार्ड हटाने की मांग को लेकर आम लोगों के लिये आफत बन गई है।

सूरसागर विधायक श्रीमती व्यास ने शुक्रवार की दोपहर 12:00 बजे के करीब जोधपुर- जैसलमेर स्टेट हाई-वे पर धरना दिया। उनके कुछ समर्थक महिला पुरुष रास्ता रोक कर प्रताप नगर बस स्टेंड से कायलाना चौराहे को जाने वाली मुख्य सड़क को अवरुद्ध कर उत्पात मचाने लगे जो 6 बजे तक जारी रहा। सड़क पर बिस्तर टेंट लगाकर बगैर किसी वैध अनुमति के लाउडीस्पीकरों पर भजन आदि शुरू कर दिया। रास्ते रोक कर बीमार, गर्भवती महिला, वृध्दों तक को जोर जबरदस्ती से रोका गया। मौके पर मौजूद पुलिस कई घंटों मूकदर्शक बनी रही। धरने पर बीजेपी का कोई पदाधिकारी नहीं आया। मौके पर राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत 5 मिनट के लिए आए और निकल गए। प्रताप नगर एसीपी अशोक आंजना मौके पर पुलिस लवाजमे के साथ लाचार और मजबूर बने मौजूद रहे। चार घंटे से उत्पात मचा हुआ है।

.    ज़मीर के मारों ने ना तो चार क़दम का आख़िरी साथ दिया और ना कांधा। शायद एहसान फरामोशी यही है। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी मे...
20/04/2023

. ज़मीर के मारों ने ना तो चार क़दम का आख़िरी साथ दिया और ना कांधा। शायद एहसान फरामोशी यही है। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे और फेसबुक फोबिया में धरा-धरी करने वालों की लुक्खी प्रीत का मुलम्मा भी उतर गया।

रात से अभी तक चेपे जा रहे हैं, धर रहे हैं और जिससे सीखा उसी के लिए पैल रहे हैं - "राजेंद्र गोस्वामी से पत्रकारिता सीखी है, वे गुरुवर थे, उनकी मौत का समाचार सुन स्तब्ध हूं, निःशब्द? वे शिल्पी थे, धैर्य की प्रतिमूर्ति थे, विज्ञप्ति लिखना, ख़बर बनाना उन्हीं से सीखा, ...और ना जाने क्या-क्या?

"ये सब लिखने वाले आज उनके जनाज़े में शामिल नहीं हुये। जिसे जीते जी खुशामद कर चढ़ा रहे थे, उसी की अंतिम शव यात्रा में आकर आख़िरी चार क़दम साथ चलना या कांधा देने की रसूमात के फ़र्ज भी अदा नहीं किये। बंदा तो शान से निकल भी गया और पंचतत्व में घुल अपने हक़ीक़ी से जा भी मिला।

श्मशान घाट पर चिता प्रज्वलित थी और मौजूद लोगों की आँखें नम। बेटे नितिन ने पिता की अंतिम परिक्रमा कर अग्नि समर्पित की। शमशान आये मौजूद लोग छांव देख इधर उधर बैठ गये। इन्हें अपने जिगरी को 'थेपड़ी' देनी थी, नमन करना था, नश्वर शरीर को पंचतत्व में मिलने का साक्षी होना था और हुये भी।

....लेकिन

जोधपुर में 650 लोग खुद के पत्रकार होने का दावा करते हैं। अभी चुनाव हुये थे, तो 300 के करीब की लिस्ट बनी थी। हाँ! पत्रकार होकर सरकार से प्लॉट मांगने वाले भी ढाई सौ से ज्यादा हैं; और साहब व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और फेसबुक पर 800 से अधिक ने दिल की गहराइयों की डींगे उकेरते हुये ना जाने क्या क्या ना कहा? मगर हुजूर! पत्राकारिता की अपने आप में एक संस्था रहे व्यक्ति की अंतिम शव यात्रा में जोधपुर के महज 14 पत्रकार ही आये।

प्रेस क्लब के अध्यक्ष अजय अस्थाना, मरुधरा पत्रकार संस्थान के अध्यक्ष डॉ. महेंद्र भंसाली, एम. आर. मलकानी, दिनेश जोशी, राजीव गौड़, प्रवीण धींगरा, मनोज वर्मा, ललित परिहार, अचलसिंह मेड़तिया, प्रदीप जोशी, नंदकिशोर सारस्वत, राजकुमार जोशी, मनोज गिरी, अनिल सिंह बस! यही 14 आये; चार क़दम साथ चलने, कांधा देने और थेपड़ी देने।

पत्रकारों की ये थी राजेंद्र गोस्वामी से 'प्रीत' लगाव, रिश्ता, निष्ठा। और तो और जिस 'राजस्थान पत्रिका' को अपनी जिंदगी के बेहतरीन पल देकर संवारा, उससे भी श्मशान तक श्रृद्धा के दो फूल, कोई रीथ पेश करने नहीं आया? ये है ख़ुदगर्ज़ी, मतलब परस्ती। पत्रिका ही नहीं यहां से निकालने वाले किसी भी बड़े अखबार से कोई नहीं था। ये पत्रकारों की कद्र है? जिंदा रहते और दम आख़िर होने बाद। और यही हकीकत है ख़ून चूसने और चुसवाने के खूबसूरत दिखते पत्राकारिता के ग्लैमरस का।

पत्रकारों को तो छोड़ो, जोधपुर में कांग्रेस के सामने जिस बीजेपी को राजेंद्र गोस्वामी ने अपनी क़लम से मीडिया की धार देकर चमकाया, कायम किया, अपनी निष्ठा, प्रतिबद्धता और कर्म से पल्लवित किया, उस 'नुगरी और नाशुक्री' बीजेपी का एक भी, एक भी कार्यकर्ता या नेता का उस राजेन्द्र को 'थेपड़ी' देना भी नहीं हुआ। वाह रे! मतलबी दुनिया के सियासी एलिनो। कितने मतलबी और मरे ज़मीर के हैं ये लोग? सबको इस रास्ते एक दिन आना है।

ये सारी बातें वहीं श्मशान में कपाल क्रिया से पहले के वकफे में मौजूद लोग करते रहे, चिता की लपटें तेज और तेज होती गईं, जितने मुंह उतनी बातें हुईं, लेकिन शायद फ़िज़ा में शब्दों को क़रीने से सारी उम्र पिरोने वाले राजेन्द्र गोस्वामी के शब्द गूंज रहे थे -

'चलते रहेंगे काफ़िले
मेरे बग़ैर भी यहां,
एक तारा टूटने से
फ़लक सूना नहीं होता।'

...और लोग अंतिम थेपड़ी दे लौट गये। अलविदा! गोस्वामी जी।

एम. आर. मलकानी
9829022700

.    ...फिर सदमे का मुकाम। एक और दर्द। जफ़र के बाद आज अब राजेन्द्र गोस्वामी का निधन; इस एक माह में दो पत्रकार दुनिया छोड़ ...
20/04/2023

. ...फिर सदमे का मुकाम। एक और दर्द। जफ़र के बाद आज अब राजेन्द्र गोस्वामी का निधन; इस एक माह में दो पत्रकार दुनिया छोड़ गये। दोनों को कैंसर ले गया।

अंतिम यात्रा बुधवार 19 अप्रेल दोपहर सवा 1 बजे सरस्वती नगर बासनी से सिवांची गेट शमशान पहुंचेगी, विश्व हिंदू परिषद शमशान घाट पर पार्थिव शव अग्नि को समर्पित किया जायेगा।

पत्राकारिता में 'टचिंग' और 'हार्ड न्यूज' के मास्टर, मस्त मौला और अपनी खुद की पहचान कायम करने वाले राजेंद्र गोस्वामी भी कुछ समय से हाजी जफ़र खान सिन्धी की तरह ही कैंसर से पीड़ित थे। एम्स में इलाज चल रहा था। कीमों थैरेपी हुई थी। जोधपुर में राजस्थान पत्रिका को लंबी सेवाएं देने के अलावा राजेन्द्र गोस्वामी जोधपुर विकास प्राधिकरण के चेयरमैन रहे डॉ. महेंद्र सिंह राठौड़ के सलाहकार भी रहे।

मूल रूप से चित्तौड़गढ़ जिले से थे। पिता पुलिस में अफसर थे। भारतीय पुलिस सेवा से। श्री पी.जी. गोस्वामी जोधपुर में भी एसपी. रहे। हाऊसिंग बोर्ड ने सरस्वती नगर बसाया तब वह इलाका बियाबान था। पी.जी. गोस्वामी ने वहां घर बनाया। आज भी सिटी बस 'एसपी साब के बंगले' के ठिकाने जा कर स्टोपेज करती है। उनकी नौकरी उदयपुर ज्यादा रही तो राजेन्द्र गोस्वामी ने पढ़ाई भी उदयपुर में की 15 जुलाई 1955 का पैदा हुआ राजेंद्र 81 में वहीं पत्रिका का पत्रकार बन गया। कुछ साल उदयपुर रह कर जोधपुर आ गया और यहां झंडे गाड़ दिये।

नपे-तुले लफ्जों में ख़बर लिखने वाले राजेन्द्र गोस्वामी ने जोधपुर में जिसे भी ख़बर लिखने का गुर सिखाया, वह कामयाब रहा। कई को तो परफेक्ट 'विज्ञप्तिबाज' बनाया ही उन्होंने। शब्दों की कचर पचार का भाई कीड़ा था। कई-कई विज्ञप्ति के साईड में राजेन्द्र जी एक चौकोर बॉक्स बनाकर कुछ जोड़ने वाले शब्द डालते और ख़बर हो जाती मुकम्मल। तब मैं दैनिक "जलते दीप" का रिपोर्टर था। हमारी हर मुलाकात में अच्छी छनती। आज अब वो नहीं रहे।

राजस्थान पत्रिका में शायद 2008 के आसपास तक तो सक्रिय पत्राकारिता में थे। फिर एक अखबार से जुड शौक जिंदा रखा भी और जब प्रोफेसर महेंद्रसिंह राठौड़ जेडीए के चेयरमैन बने तो उन्हें अपना सलाहकार बनाया। वैसे पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत के बड़े लाड-लाडेसर थे। जब भी शेखावत जोधपुर आते तो कार में पिछली सीट पर राजेंद्र गोस्वामी जरूर होते थे और पत्रिका के लिये एक्सक्लूसिव न्यूज आती ही आती थी। जोधपुर के हम सरीखे पत्रकारों को राजेंद्र गोस्वामी बहुत याद आयेंगे।

पूरा परिवार अच्छा पढ़ा लिखा है। बहन डॉक्टर है, भाई काजरी से वैज्ञानिक रिटायर्ड है। शादीसुदा एक पुत्री है, बेटे की जोधपुर में सगाई हो रखी है। खूब सारे दोस्त हैं। सब को रोता बिलखता छोड़ गये। ईश्वर श्रीचरणों में जगह दे।
ॐ शांति, शांति, शांति!

.   'शहजादे सलीम'  वैभव गहलोत की सरपरस्ती में राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव महेंद्र शर्मा और तिकड़ी की तीसरी गोटी राज...
01/10/2022

. 'शहजादे सलीम' वैभव गहलोत की सरपरस्ती में राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव महेंद्र शर्मा और तिकड़ी की तीसरी गोटी राजीव खन्ना ने जोधपुर की ना सिर्फ खेल प्रेमी अवाम को ठग लिया बल्कि क्रिकेट की नई उभरती पौध को ही उखाड़ फैंका, उनका भविष्य निचौड़ दिया, मात्र कुछ करोड़ की टपकती लार की खातिर? इसीलिये कहते हैं ''शहजादे से ना रियासत संभाल रही ना सियासत।''

कान के कच्चे, नाक पर हर पल गुस्सा धरे तुनक मिजाज, 36 गुणों वाले वैभव काे आरसीए सचिव महेंद्र शर्मा और परम मित्र राजीव खन्ना 'चलाते' हैं। जोधपुर शहर विधायक मनीषा पंवार खास हैं और साये की तरह साथ रहती हैं। इनके अलावा वैभव शायद ही किसी से भी सीधे मुंह बात करते हों। बीजेपी सांसद गजेंद्रसिंह शेखावत से लोकसभा का चुनाव हारने और बाप की साख को बट्टा लगाने में ये सभी फैक्टर शामिल है। रही सही कसर तब चुनाव प्रचार में जयपुर से आये 'भय्या जी' यानी वैभव गहलोत के दोस्तों ने पूरी कर दी थी। शाम बाद होटल रेडिशन में इन दोस्तों के पैर जमीं पर नहीं टिकते थे। और फिर भय्या जी हार गये, तो अब कौन से जीतने वाले 'लछण' हैं?

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सियासत के कई-कई मोर्चा फतह करने और खुद का पॉलीटिकल एम्पायर खड़ा करने में जी-जान खपाये हुये हैं और कामयाब भी हैं। लोग यूं ही नहीं कहते ''जननायक'' लेकिन उनकी इकलौती औलाद वैभव शोले फिल्म के डायलॉग - 'पूरा नाम मिट्टी में मिलाय दिया।' की तरह खरे स्वर्ण हैं। आम तौर से अशोक जी के साथी सहयोगी और चालीस पचास वर्षों से नजदीक रहे लोगों से वैभव तमीज को ताक में रखकर ही मिलते या बात करते हैं।

वैभव की कारगुजारियां कई पन्ने खोलती है। जोधपुर के बरकततुल्ला स्टेडियम में 32 करोड़ से ज्यादा खर्च कर उसे सुधरवाया। अंदरखाने महेंद्र शर्मा और राजीव खन्ना को कमाई करवाई, कुछ चौड़े, कुछ छुपकर। राजीव खन्ना के खुद की डेढ़ साल पहले बनाई कम्पनी ने निर्माण किया। राज्य सरकार के बजट से करोड़ों खर्च कर स्टेडियम आरसीए को सुपुर्द कर दिया गया। यहां 30 सितंबर 2022 से लीजेंड्स लीग चैम्पियन ट्राफी के तीन मैच करवाये जा रहे हैं। मैच शुरू होने के कुछ घंटे पहले वैभव ने कहा आरसीए ने Absolute legends pvt. ltd. कम्पनी को मैदान किराये पर दिया है। ये 'कॉमर्शियल टूर्नामेंट' है। यह प्राइवेट कम्पनी ही लीग मैच करवा रही है, आरसीए नहीं। आरसीए तो समन्वय तक सीमित है। भय्या जी ने मैचेज की सारी कमान अपने खासुल-खास राजीव खन्ना को दी जिन्होंने आगे से आगे कई कामों के कई ठेके दिये हैं। सुरक्षा जांच एजेंसीज भी ऊपरवाडे अपनी और चांदी भी खुद ही 'पाड' रहे हैं। कहते हैं नफा तीन हिस्से में बंटेंगा?

आम शोहरत है कि भय्या जी जब बदतमीजी पर उतरते हैं तो सारी हदें पार कर जाते हैं। दिन में दस बार। बरकततुल्ला स्टेडियम के नये निखार का जोरदार उद्घाटन पिताश्री मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किया। फीता काटने के नजदीक की जगह पर अशोक जी को दो खास दोस्त खड़े थे जिन्हें जानते बुझाते वैभव ने बाजू पकड़ कर चलता किया। अपमान का घूंट पी ये दोनों मौके से निकल लिये। ये थी शहजादे की बदतमीजी की एक बानगी।

उदघाटन बाद मंच पर जहां जिला क्रिकेट संघ के तदर्थ संयोजक शैतानसिंह सांखला को कुर्सी देना बनता था, जबकि छात्र नेता सुनील चौधरी और दिलीप चौधरी मंचासीन थे। भय्या जी ने माली होकर सांखला के माली पन्ने उतार दिये। दो कोच और सलेक्टर को भी हाथ पकड़ बेइज्जती के साथ भगा चुके हैं भय्या जी।

आरसीए से सीनियर क्रिकेटर की लिस्ट 6 सितंबर को जारी हुई थी। 350 ने भाग लिया। 16 का चयन हुआ। जोधपुर से कई खिलाड़ियों के नाम वैभव 'भय्या जी' ने कटवा दिये। जारी की गई लिस्ट में बड़ा फेरबदल और कथित घोटाला किया गया? वैभव ने आदेश दिया कि राजेंद्र सोलंकी, पप्पाराम विश्नोई, जसवंत सिंह कच्छवाह, बद्रीराम जाखड़, महेंद्र विश्नोई, मुन्नी देवी, कुंती देवड़ा और मयंक देवड़ा ने जिन भी खिलाड़ियों के लिये सिफारिश की हो उनके नाम काट दिये जायें और कटे भी।

चयनित खिलाड़ी भगवती प्रसाद गोयल का नाम सूची में 12 नंबर पर था। जयपुर रवाना होने के ठीक पहले उसका नाम काट दिया और कहा कि उसका नाम मिस प्रिंट हो गया जबकि भगवती की जगह देवाराम सुथार चयन हुआ है। लिस्ट में विपिन भाटी का नाम शुरू में था मगर कटवा दिया। 16 बच्चों में एक भी मुस्लिम का नाम नहीं डालने दिया, जो थे वे भी कटवा दिये। 5 बच्चे ट्रायल में ही नहीं आये उनका भी सलेक्ट करना चर्चा में है। fb पर कमेंट डालने वाले वैभव राजपुरोहित को भी बाहर का रास्ता दिखाया। कई जिंदगी लॉक।

दैनिक भास्कर के खेल संवाददाता भय्या जी के इर्द गिर्द ही रहते हैं। बताते हैं कि रिपोर्टर ने अपने पुत्र कबीर का अंडर नाइनटीज में सलेक्शन के लिये भय्या जी की चिलम भरी तो पार पड़ गई मगर हर बार सिक्का हेड ही गिरे जरूरी नहीं होता। कहते हैं घोड़े के पीछे और अफसर के आगे चिपक कर नहीं चलना चाहिये। लात उछलना इनकी फितरत है।

'भय्या जी' यानी वैभव गहलोत एक तरफ तो कहते हैं कि जोधपुर में हो रहा लीजेंड्स लीग क्रिकेट आरसीए नहीं करवा रही। टोटली मैच कॉमर्शियल टूर्नामेंट है और दूसरी तरफ कांग्रेस नेताओं को रेवाड़ी की तरह 1000 फ्री पास देते हैं। उन्हीं कांग्रेसी नेताओं में विधायक मनीषा को छोड़ सभी को कीड़े मकौड़े के भाव देते हैं। है ना भय्या जी का ये आला दर्जे का दोगलापन?

अशोक गहलोत अपने इकलौते कालजै की इस कौर को किसी भी तरह राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं। आड़े दिन अपनी जगह भय्या जी को जयपुर से जोधपुर भेजते हैं। मौत-गमी में बैठना हो या ब्याह-शादी में शगुन देना हो, अशोक जी की जगह वैभव आगे होते हैं। धृतराष्ट को दुर्योधन में युधिष्ठर ही दिखता है। कभी पूत के पग पालने में भी देखने चाहिये।

एम. आर. मलकानी
पत्रकार जोधपुर
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