25/05/2024
Send a message to learn more
Welcome to the official home page of Nikhil Mantra Vigyan
The only monthly magazine containing an a
Nikhil Mantra Vigyan at Jodhpur, India:
Nikhil Mantra Vigyan
14A, Main Road, High Court Colony Road, Near Senapati Bhawan
Jodhpur - 342001, Rajasthan, India
Telephone: +91-291-2638209/2624081
Fax: +91-291-5102540
SMS: +91-960-2334847
MailId: [email protected]
Revered Gurudev Dr Narayan Dutt Shrimali Ji always strived to shatter all myths, taboos and misconceptions related to the ancient In
dian sciences and instill faith and respect for them in the mind of the common man. With this aim he launched a unique magazine "Mantra Ta**ra Yantra Vigyan" in 1981. The new magazine "Nikhil Mantra Vigyan" was started in September 2010 to replace "Mantra Ta**ra Yantra Vigyan". Ever since its conception the monthly has been dedicated to revealing the knowledge and wisdom of ancient Yogis and Rishis. It opens the gate to the amazing world of Sadhanas, Astrology, Ayurveda, Alchemy, Numerology, Palmistry, Hypnotism, Mantras, Ta**ra and Spiritualism . The magazine by propagating true and authentic knowledge aims at banishing misconceptions and fears regarding the ancient Indian knowledge of the spiritual world. The magazine carries wonderful Sadhanas every month which can be performed in special auspicious moments in that month for gaining solutions to the various problems of human life. Powerful Mantra practices based on the Vedic knowledge are revealed which could help the common man to overcome tensions, diseases, adversities, poverty and enemies. Thousands of readers have been initiated into the field of Sadhanas through this powerful medium. The magazine also carries the divine experiences of Sadhaks and disciples who have tried Sadhanas and benefited through them. Besides it gives valuable information related forthcoming Sadhanas camps and the monthly astrological forecast. The most precious part of the magazine is very special features based on Revered Gurudev's discourses which deal with the problems faced by Sadhaks during Sadhanas, and dwell on the intricacies of the world of spiritualism. Needless to say these words of Gurudev have helped several lost, troubled souls to find a new ray of hope in their lives. In the new millennium the magazine aims at providing fast and quick solutions to all problems of modern human life. This group is all about my revered Gurudev Shri Nand Kishore Shrimali Ji. I dont want to indulge myself into impossible task of writing descriptions about any thing related to him. Just I want to say that HE has always been like Brahma and created his desciples, like Vishnu he has Cared and like Shiva he has always consumed the poisons of all his shishyas and have strived hard for the betterment of the entire society as a whole. I have only one word to express my self....."jai gurudev"
mail here to subscribe Nikhil Mantra Vigyan:- [email protected]
Send a message to learn more
बहुत सजा पायी है,
सच बोलने की,
खता बस इतनी है,
कि सच बोलने की आदत है।
बहुत सजा पायी........
ये सच है कि दुनिया ने हमें,
समझा कसूरवार,
पर आदमी तो हम ठीक़ठाक़ हैं।
बहुत सजा पायी........
चलो जो हुआ सो हुआ,
उषा से सांझ होने लगी,
छाया अब फैल रही है,
अंधेरा सबको आगोश में ले रहा है,
हमें फक्र है कि,
हम न झुके न हमने न बुरा किया,
और न ही अनाचार सहा।
बहुत सजा पायी......
यह सच है कि,
इसकी भरपूर कीमत चुकानी पड़ी,
पर मलाल नहीं है हमें,
क्योंकि जो सच था,
वही कहा वही सुना,
वही सबको सुनाया।
बहुत सजा पायी......
राजनीति बहुत जरूरी है सभी के लिए क्योंकि राजनीति ही धर्म की स्थापना करने में सबसे बड़ा योगदान प्रदान करती है जहां भी आपकी सरकार नहीं है वहां अधर्म में फैल रहा है यह आप अच्छे से जानते हैं
अध्यात्म और धर्म तभी जिंदा रहेगा जब आपके पास अपनी सरकार होगी चुनी हुई और आप उससे आपके हित में कानून और संविधान का पालन हो सकेगा
किसी का ज्ञान और साधना का जीवन अमूल्य है उसे यूं ही हर जगह देते रहने से उसका महत्व नहीं रहता है. जिसमें पात्रता होती है विनम्रता होती है उसे ज्ञान अवश्य ही प्राप्त हो जाती है उसे ढूंढने की जरूरत नहीं है सद्गुरु उसे स्वयं ढूंढ कर उसको वह ज्ञान वह विज्ञान प्रदान कर देते हैं। बस आप अपने आप को पत्र बना ले और पात्रता में शुद्धता का ध्यान रखें बाकी सब सदगुरुदेव के ऊपर छोड़ दें आपको वह अमूल्य ज्ञान विज्ञान प्राप्त हो जाएगा
मनुष्य अपने कर्मों का जो विज्ञान है समझ नहीं पता है उसे लगता है सभी लोग अहंकारी हैं गुरु अहंकारी है उसे ध्यान नहीं दे रही हैं । क्योंकि अज्ञान ही दुख का कारण है। और यह दुख होना भी बहुत जरूरी है क्योंकि दुख होने से ही मनुष्य अपने अंदर झांक कर देखने का समय प्राप्त होता है कि मनुष्य के अंदर कितना बड़ा विज्ञान है और वह बाहर की ओर देखकर सिर्फ इर्षा से भरा हुआ है।
जब मनुष्य का ज्ञान और विज्ञान जागृत होता है तो सदगुरुदेव उसके अंदर वह ज्ञान विज्ञान भर देते हैं
अपने अंदर का ज्ञान और विज्ञान जागृत करने के लिए उसे भी बल प्रदान करता है। यह सब चीज इसीलिए बना है क्योंकि आप उसकी अधिकारी हैं कर्म करने के लिए
2️⃣5️⃣❗1️⃣1️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣3️⃣
*प्रारब्ध भोग*
एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था। धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था ।
जब भी उसे शौच; स्नान आदि के लिये जाना होता था; वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे।
धीरे धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे।इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे।
अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा था एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी,तुरन्त एक लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है।अब ये रोज का नियम हो गया।
एक रात उनको शक हो जाता है कि,पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नही आते थे।लेकिन ये तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है।
एक रात वह व्यक्ति उसका हाथ पकड लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है ? मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं।
अभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआ और उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया।
वह व्यक्ति रोते हुये कहता है : हे प्रभु आप स्वयं मेरे निवृत्ती के कार्य कर रहे है। यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही दे दो ना।
प्रभु कहते है कि जो आप भुगत रहे है वो आपके प्रारब्ध है। आप मेरे सच्चे साधक है; हर समय मेरा नाम जप करते है इसलिये मै आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ।
व्यक्ति कहता है कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बडे है; क्या आपकी कृपा, मेरे प्रारब्ध नही काट सकती है।
प्रभु कहते है कि, मेरी कृपा सर्वोपरि है; ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है; लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा । यही कर्म नियम है । इसलिए आपके प्रारब्ध मैं स्वयं अपने हाथो से कटवा कर इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूँ।
ईश्वर कहते है: *प्रारब्ध तीन तरह* के होते है :
*मन्द*,
*तीव्र*, तथा
*तीव्रतम*
*मन्द प्रारब्ध* मेरा नाम जपने से कट जाते है। *तीव्र प्रारब्ध* किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते है। पर *तीव्रतम प्रारब्ध* भुगतने ही पडते है।
लेकिन जो *हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं; उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूँ।*
*प्रारब्ध पहले रचा,पीछे रचा शरीर।*
*तुलसी चिन्ता क्यों करे,भज ले श्री रघुबीर।।*
*🙏🏼🙏🏻🙏जय श्री कृष्ण*🙏🏿🙏🏾🙏🏽
सभी साधक
कृपया ध्यान दें
करवा चौथ का व्रत तो आपकी भार्या ने रखा है पर आप भी व्रत का पूर्ण फल व लाभ प्राप्त करने के लिये दिन भर शांत रहे व रात्रि को संयम से रहे ब्रह्मचर्य से रहे । तभी व्रत का लाभ प्राप्त होगा।यह ऐसा स्वर्णिम अवसर है जब आप की भार्या ने व्रत किया तो आप भी अपने मंत्र, स्त्रोत्र का जाप करे तो व्रत के लाभ में बढ़ोतरी होगी।
भगवान गणपति की कृपा प्राप्त होगी और सौभाग्य प्राप्त होगा आज भगवान गणपति की पूजा और दुर्गा अर्पित करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं
मनुष्य का बुरा समय कटता ही नहीं । लटक और भटक अवश्य ही जाता है? मनुष्य का मनोविज्ञान
ग्रहों की माया इतनी प्रबल होती है की अपनी दशा महादशा में अच्छे अच्छे लोगो को हिला कर रख देती है। उस वक्त मंत्र जाप अनुष्ठान आदि में व्यवधान उत्पन्न होते ज्यादा है और कार्य भी शीघ्र पूर्ण नही होने देते। मनुष्य की बुद्धि भी प्रबल माया में भटक जाती है! इसीलिए कहा जाता है विनाश काले विपरीत बुद्धि। आपकी हित चाहने वालों को भी हम बुरा बना देते हैं उनके ऊपर शक करने लगते हैं और हमारा समाधान की जगह नुकसान शुरू हो जाता है। बुरे समय में मनुष्य को पूरी तरीके से हिला देता है । उसकी सोचने वाली बुद्धि और जिस पर वह विश्वास करता है। वह भी अज्ञानी और दुर्भाग्यशाली व्यक्ति की तरह अपने आप को समझने लगता है। वह अपने गुरु ईस्ट या जिसे वह उपाय करवाता है या अपनी समाधान जानने के लिए जाता है या समाधान करता है। वह उसको भी अपनी लपेटे में ले लेता है। जो उसकी मदद करता है उसे ही फिर दुर्भाग्यशाली होने का श्राप देने लगता है या उसके ऊपर पूरा हमला ही कर देता है। गली तक मुंह से निकलने लग जाती हैं। सब के लिए बुरा सोचने लग जाता है। गुरु और मार्गदर्शन देने वाले उसे सुई की तरह चुभने लग जाते है। Un ki अच्छी बात भी बहुत बुरी लगने लग जाती है। वह अपनी मां की मालीनता और गंदगी दूर करने के बजाय वह सभी कोसता हुआ कहता है लोग कितना पाप कर रहे हैं बड़ा कम कर रहे हैं उनको सजा क्यों नहीं मिल रही है मुझे क्यों सजा मिल रही है?
तरह-तरह की उसके ख्याल उसे उगाने की बजाय मुरझाने के लिए मजबूर कर देते हैं। यहीं से उसकी यही से उसका दुर्भाग्य उसे आगे की ओर धकेलता जाता है। मनुष्य मरता तो नहीं है कभी-कभी लेकिन इतना तिल तिल के मारता है कि रोज ही उसे मृत्यु की जैसे एहसास होता है। रोज सुबह सूर्य को देखते हुए भी वह अपने अंदर अंधेरा अनुभव करता है।
उसकी श्रद्धा विश्वास पूरी तरीके से हिल जाता है वह पूरी तरीके से अपने आप को हीन भावना से ग्रस्त कर लेता है। उसके सामने उपाय होता हुआ भी उसे नजर नहीं आता है। उसकी देखने की शक्ति भी छिन जाती है। वह अपने आप को पूर्ण शक्तिहीन समझता है दुर्भाग्यशाली समझता है अपने आप को पाप कर्मों में विलुप्त और अपने पाप कर्मों की सजा जानकर किसी भोगने के लिए कहता है जैसा चल रहा है वह होने दो।
फिर दुर्घटना और विपत्ति का समय आगे बढ़ता ही जाता है। मनीष जो शांति है वह कहीं खो जाती है मां का कंट्रोल अपने हाथ से निकल जाता है वह तरह-तरह की बचने के उपाय भी सोचता है पर असफलता की तरह।
कई लोग कर्ज के दलदल में है कई रुपया फसे हुए है उनसे परेशान है । अगर आपके दिन खराब चल रहे है धैर्य से काम लेना होगा। जिन्हे कर्ज होता है विशेष रूप से इनके बुद्धि जरूरत से ज्यादा खराब है। इनमे मैनेजमेंट की कमी होती है।
जहा लगाना चाहिए वहा नही लगाते और जहा नही लगाना चाहिए वहा लगा देते है । और कई बार बुरा समय के विशेष चक्कर है तो रिस्क ज्यादा खेलेंगे । सट्टे की लत ज्यादा होगी कितना जल्दी आप कड़ोड़ पति बन जाए ऐसे खयाल आते है। याद रखे यह खयाल ग्रह देते है।
राजा हरिश्चंद्र की शनि की महादशा में भिखारी और अपने आप को अपने परिवार को बेच दिया। फिर भी कर्जा उतार नहीं पा रहे थे।
बड़े बड़े योगी ध्यान करने वाले भी जेल जाना पड़ जाता है। बड़ी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। बड़े राजनीति और धनवान लोग भी भिखारी की तरह बन जाते हैं। उनके परिवार भी उनके साथ छोड़ देता है । उनके मित्र दोस्त भी सब उनसे पीछा छुड़ाने के लिए फोन भी नहीं उठाते हैं और ना ही कभी हाल-चाल पूछने के लिए दोबारा आपको कॉल करते हैं या आपको समय देते हैं।
इस संसार चक्र में जो कुछ हो रहा है उनकी बेमतलब की हो जाती है।
हम सकारात्मक बनना तो चाहते हैं पर बन नहीं पाते हैं?
सकारात्मक बनने के लिए मार्गदर्शन की जरूरत होती हैं। और सही मार्गदर्शन का उपाय और आज्ञा का पालन करते हुई आप आपने दुर्भाग्य से पीछा छुड़ा सकते। धनवान, कर्ज मुक्त, होकर शांति और समृद्धि एवं विकास हो सके गा।
ग्रहों का अनुष्ठान करना। पूजा पाठ करना साधना करना ऐसी समय में अनिवार्य हो जाता है बार-बार आपको साधना करना या करवाना ही पड़ेगा तभी आप अपनी समस्या से धीरे-धीरे निकाल पाएंगे बार-बार मुसीबत उसे समय आएगी पर आपके धैर्य बनाकर अपने आप को खड़ा रखना पड़ेगा। आपके पास उस समय पैसे नहीं भी होंगे तब भी आपको जरूरत के पैसे बचाकर पूजा पाठ अनुष्ठान में लगाना पड़ेगा। क्योंकि नुकसान को ठीक करने के लिए तो इलाज तो करना पड़ेगा क्योंकि तब छोटा उपाय भी काम नहीं करता है आपको बड़ी अनुष्ठान कर कर ही या करके ही आपको सफलता प्राप्त हो सकती है।
कई बार इंटरनेट से उपाय देखकर या किसी सहायक से उपाय पूछ कर उपाय करते हैं तो समस्या का समाधान नहीं हो पता है जो आपको समय देना पड़ेगा 40 दिन या 60 दिन का समय लगता है और अनुष्ठान का भी फल आपको 30 से 90 दिन के अंदर प्राप्त होने की संभावना होती है।
रातों-रात आपको लाभ नहीं दिखाई देता है तो यह समझना चाहिए कि समय लगेगा पर उपाय करते रहना पड़ेगा तभी हमारा दुर्भाग्य दूर होगा और उपाय करता यह समझ ले गुरु और गुरु द्वारा मार्गदर्शन करने वाले लोगों को कभी भी भला बुरा या अगर वह पैसे ले लेते हैं या कार्य नहीं करते हैं तो भी आपको भला बुरा नहीं कहना है उसे समय ग्रह की स्थिति ऐसी होती है कि आपसे केवल लिया जाता है दिया नहीं जाता है।
लेने से आपकी पाप कम होते जाते हैं। आपका दुर्भाग्य धीरे-धीरे समाप्त होता जाता है अपनी मनोदशा को सही करते हुए केवल पॉजिटिव सोचना है क्योंकि कुछ खोने के बाद ही आप कुछ पाने की संभावना बनती है यह आप बचपन से सीखते आए हैं।
उपाय बताने वाला और मार्गदर्शन करने वाला भी आपके ग्रहों की स्थिति से परेशान हो जाता है उसे भी उसका दंड का भागी बनना पड़ता है। उसकी साधना और पूजा पाठ का क्रम बिगड़ जाता है। उसकी भी मनोदशा क्रोध और छीन भिन्न कर देती है मनोदशा। इसलिए उपाय बताने वाले मार्गदर्शन वाले को गुरु कहा जाता है और गुरु ही शिव होते हैं जो मनुष्य का जहर रूपी पाप को ग्रहण करके भी शुभ शिव बने रहना पड़ता है। इसीलिए गुरु को सदैव प्रणाम करना चाहिए और श्रद्धा विश्वास बनाकर रखना चाहिए क्योंकि बुरे समय में सिर्फ आपका साथी गुरु ही होता है मार्गदर्शन करने वाला ही होता है इसलिए उसका हाथ पकड़ कर चलने में आपकी भलाई है।
ईश्वर आपको संकेतों के माध्यम से ही आपको शुभ व्यक्ति प्राप्त होता है सौभाग्यशाली व्यक्ति आपको प्राप्त होता है इसलिए आपको बहुत ध्यान से समझ कर ही आपको विश्वास करना चाहिए।
धन वैभव छिन जाने के बाद भी अगर आप बच्चे हैं तो यह भी आप ईश्वर को शुक्रिया और ग्रहों को शुक्र धन्यवाद देना चाहिए।
मार्गदर्शन उस समय पाना सबसे कठिन है और अच्छे लोग मिलना भी कठिन होते हैं इसलिए आपको सोच समझकर ही उपाय करता और मार्गदर्शन करने वाले के ऊपर विश्वास करना चाहिए। अगर विश्वास किया है तो समय देना पड़ेगा तुरंत रातों-रात आपको सफलता नहीं मिल जाएगी क्योंकि बीज भी तीन दिन का समय लेता है उगाने में। और फल देने में समय लगेगा।
आपका लाभ आपका शुभ हो और आपका दुर्भाग्य समाप्त हो इसी के साथ मंत्र तंत्र यंत्र विज्ञान विश्वविद्यालय। आप के साथ कनेक्ट है ऑनलाइन गुरुकुल। सिद्धाश्रम के द्वारा संचालित है। सदगुरुदेव की मार्गदर्शन में ही आपको उपाय बताए जाते हैं।
गुरु धाम से संपर्क कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान कर सकते हैं। गुरुदेव भी साधना शिविर के माध्यम से आपकी समाधान करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
निखिल मंत्र विज्ञान जोधपुर - 9799988915, 9799988930, 9799988937, 9799988938
और निखिल मंत्र विज्ञान दिल्ली - 9799988970, 9799988904, 9799988905
आपको सचेत किया जाता रहेगा। बाकी आपकी मर्जी है आपके जीवन जीने के लिए स्वतंत्र हैं।
आप सभी ऋषि मुनि महात्माओं को प्रणाम
आपका शुभ हो और आप अपने कर्मों में सफलता पाए
सदगुरुदेव स्वामी निखिलेश्वनंद महाराज की जय
आचार्य श्री प्रताप सिंह
साधना मार्गदर्शन और ग्रहों का उपाय जानने के लिए
सम्पर्क करें। WhatsApp number 919560160184
निखिल मंत्र विज्ञान जोधपुर - 9799988915, 9799988930, 9799988937, 9799988938
और निखिल मंत्र विज्ञान दिल्ली - 9799988970, 9799988904, 9799988905
भगवती जगदंबा सरस्वती साधना
आजकल समाज कुछ ऐसा हो गया है की सत्य बोल दो तो मुंह टेढ़ी हो जाते हैं अगर झूठ बोल दो तो खुशी खुशी आपको चाय पिला देंगे।
जैसा समाज हो रहा है वैसा ही लोग बना रहे हैं धीरे-धीरे यह हम लोगों की ही गलती है कि हम अपने बच्चों को सत्य बोलने से रोक रहे हैं सत्य सुनने से रोक रहे हैं सत्य कहने और सुनने दोनों से ही हम लोग परहेज करते है।
आने वाला समय सिर्फ कोई भी सत्य कहने से डरता है ऐसा बोलने वाले लोग मिलेंगे। कोई भी सत्य नहीं बोलेगा क्योंकि सत्य बोलना कठोर तपस्या होगा । उसको संसार का सबसे बड़ा व्यक्ति ही मानेंगे लोग।
पर इसे आचरण में नहीं डालेंगे क्योंकि उसे लगेगा हमारा लाइफ खराब कर देगा।
झूठ बोलने से वाणी खराब हो जाती है। और मनुष्य का सूर्य खराब हो जाता है। जिस वजह से सूर्य से मिलने वाली सारे गुण अवगुण में बदल जाते हैं।
आप कभी भी फेमस नहीं बनेंगे आपका मान सम्मान घटेगा मनुष्य आपको सही दृष्टि से कभी नहीं देखेंगे।
आपके पास कितना भी पैसा धन दौलत हो बिना मान सम्मान की वह धन दौलत मिट्टी समान है।
धीरे-धीरे आपका मानसिक तनाव और चिंता आपके शरीर को जर्जर रोग कर देगा।
अब आपको मां भगवती सरस्वती की साधना करना अनिवार्य हो जाता है। क्योंकि माता भगवती सरस्वती की साधना करने से मनुष्य की वाणी दोष और चित में दोष उत्पन्न हुए कई प्रकार की संताप को दूर करने वाली हो जाती है।
ब्रह्मा से साक्षात्कार तभी हो सकता है जब मनुष्य का चित् शांत निर्मल हो । तभी उसकी अंदर ब्रह्म की उत्पत्ति और ब्रह्म में बनने की ओर हम अग्रसर होने लग जाते हैं।
मंत्र साधना भी तभी सिद्धि प्राप्त होती है । जब वह माता भगवती सरस्वती की साधना आराधना संपन्न करता है। मनुष्य को सिर्फ यही पता है धन सम्मान और लक्ष्मी सिर्फ लक्ष्मी साधना से ही आती है पर मूल लक्ष्मी आपकी सरस्वती साधना ही है क्योंकि बिना ज्ञान के आप धन का भी उपयोग नहीं कर सकते और ना ही अपनी बुद्धिमानी से उसकी रक्षा कर सकते हैं।
पैसा तो बहुत सारे लोग कमा रहे हैं। धन संचय भी कर रहे हैं । पर मनुष्य का धन संचय करते-करते मनुष्य समाप्त हो जाता है । उससे कोई भी अपने लिए कुछ भी नहीं कर पता है । हजारों लोगों की कहानी यही है। मनुष्य के अंदर बुद्धि ज्ञान से ना ही वैराग्य प्राप्त होता है और ना ही उसकी चित् शांत होता है और ना ही निर्मल होता है। और ना ही वह ब्रह्म मय बनने की ओर अग्रसर हो पता है। दुर्भाग्य यही है कि हम पूरे जीवन में संघर्ष करते हुए बहुत कुछ प्राप्त करते हुए भी अधूरे रहते हैं । हमारा कभी भी मनुष्य जन्म का लेने का जो मर्म है वह सार्थक नहीं हो पता है।
मनुष्य धन प्राप्त करने के बाद मनुष्य का अलग-अलग प्रकार की मानसिक शारीरिक विकृति ही मनुष्य को प्राप्त होती है । मनुष्य अपनी कमाई हुई धन और पुण्य कर्म को यूं ही गलत कर्मों में व्यर्थ ही गवा देता है।
साधक साधनाएं भी करता है व्रत करता है पूजा पाठ करता है तीर्थ धाम करता है गुरु भी बनता है पर उसकी कर्म प्राप्त होता भी है पर मनुष्य उसका सिर्फ दुरुपयोग करता है क्योंकि बुद्धि ज्ञान और विवेक तीनों का लोप होता है। अगर पूरा जीवन मनुष्य का देखा जाए तो सिर्फ दुर्भाग्य और चुनौतियां ही मनुष्य की पीछे पड़ी रहती है। वह वास्तविक ज्ञान विज्ञान से परिचित नहीं हो पता है।
मनुष्य के जीवन में सिर्फ धन प्राप्त होना ही काफी नहीं होता है उसके अंदर बुद्धि विवेक भी होना आवश्यक है। अगर मनुष्य के पास बुद्धि है और विवेक है सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता है तो वह हजारों को करोड़ों में बदलने की क्षमता रखता है। स्वास्थ्य रूप में देखा जाए तो यही मूल लक्ष्मी का स्वरूप है।
इस नवरात्रि में भगवती जगदंबा की साधना नर्वाण मंत्र की साधना लोग करते हैं। पर मनुष्य का सही संकल्प सही विधान सही चित सही रूप से प्राप्त होने पर भी उसका उपयोग नहीं कर पता है । क्योंकि बिना गुरु सतगुरु की ज्ञान की बगैर आपका साधना पूर्ण नहीं हो सकता है । क्योंकि बिना मार्गदर्शन के जीवन अधूरा सा ही रहता है। क्योंकि पाल-पाल निर्णय बदलते रहते हैं। समय बदलता रहता है। कब क्या किस प्रकार से हम इस समय का उपयोग करना है। यह हमें केवल सदगुरु और मार्गदर्शन करने वाला ही बता सकता है तभी हमारे जीवन में विजय प्राप्त हो सकता है। साधना में सिद्धि प्राप्त हो सकता है ।लक्ष्मी प्राप्त हो सकती हैं। और हम मान सम्मान और ज्ञान विज्ञान के सही उपयोगकर्ता बन सकते हैं अपनी पुण्य को संचय करते हुए उसे सही रूप से इस्तेमाल करते हुए हम अपना मुक्ति और सिद्धाश्रम गमन कर सकते है। #अघोर #दरिद्रतानाशकलक्ष्मी #लक्ष्मीप्राप्तिकेदुर्लभप्रयोग #लक्ष्मीतांत्रिकमंत्र #अघोरलक्ष्मीकवच #अमावस्यासाधना #स्वर्णलक्ष्मी
9560160184
आज बड़ा इतवार है आज सूर्य भगवान का व्रत है सभी को नमक खाना वर्जित है चाहे वह छोटा बच्चा हो चाहे बड़ा बच्चा हो और चाहे बड़ा आदमी हो चाहे छोटा आदमी हो सभी को आज नमक का परहेज करना है एक अनाज गेहूं से बना खाद्य पदार्थ सिर्फ मीठा खा सकते हैं।
जो लोग नमक खाते हैं आज के दिन वह साल भर स्किन डिशेज से परेशान रहते हैं।
हिंदी भाषा में उसे चर्म रोग कहते हैं और चर्म रोग बहुत ही भयंकर होता है और किसी को कम ज्यादा हो सकता है यह वैज्ञानिक विधान है
"समस्या का आना पार्ट ऑफ लाइफ है ...
हम उनसे कैसे निकल पाते है ये आर्ट ऑफ लाइफ है ..."
जीवन में समस्याएं का आना जाना तो चलता रहता है
अभी एक समस्या खत्म नहीं होती है तो दूसरी आ जाती है दूसरी खत्म होती है तो तीसरी आ जाती है तीसरी खत्म होती है तो चौथी आ जाती है
यह जीवन में समस्याएं खत्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं।
एक साधारण मनुष्य के लिए समस्याएं मुसीबत होती है क्योंकि समस्याओं से निपटना समस्याओं से 2, 4 हाथ होना हर आदमी का लक्ष्य भटक जाता है।
समस्याएं आती क्यों हैं मनुष्य की गलतियों की वजह से मनुष्य के अज्ञानता से मनुष्य की अहंकार से मनुष्य के क्रोध से
मनुष्य की कामवासनाओं की वजह से और कभी-कभी मनुष्य की अतिरिक्त इच्छाओं की वजह से
क्योंकि मनुष्य अपनी समस्याएं स्वयं बनाता है जिस प्रकार एक मकड़ी जाला बनाती है और उसमे स्वयं फंसकर बैठी रहती है उसी प्रकार मनुष्य भी अपना समस्याओं का ताना-बाना खुद बनता है।
मनुष्य की यही सबसे बड़ी परेशानी और सबसे बड़ी माया है। हर मनुष्य अच्छी तरीके से जानता है कि मैं किसी समस्या को जन्म दिया है और कौन सी समस्या हमारे जीवन में आने वाली है और कौन सी समस्याओं से मेरा जीवन कैसे परिस्थितियों को बदल देगा कैसे मेरे जीवन को परिवर्तित कर देगा यह वह खुद सही तरीके से जानता है पर वह उसे चीज को झूठ लाता रहता है और उसे भागता रहता है
मनुष्य की यही भागने की आदत ही मनुष्य अपनी समस्याओं को बड़ा करता जाता है और इतना बड़ा कर देता है कि वह पहाड़ से भी ऊंचा हो जाता है
और मनुष्य छोटी सी समस्या को तूल देकर इतना बड़ा बना देता है कि उसे वह खुद पर नहीं कर पता है।
इसी समस्याओं को दूर करने के लिए ही सदगुरु और गुरु का निर्माण होता है गुरु और सद्गुरु इसी समस्याओं से आपको बचाने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं वह आपकी अज्ञानता और माया के बंधन को धीरे-धीरे काटते जाते हैं और मनुष्य को समझ में आता रहता है कि मैं कौन सी समस्या से निकल रहा हूं आसानी से और धीरे-धीरे उसके जीवन में जो समस्याएं हैं वह एक-एक करके समाप्त होती जाती है और वह अपनी व्यक्तित्व को और अपने आप को पहचाने लगता है कि मैं कौन हूं कहां से आया हूं और मेरा क्या उद्देश्य है मेरा क्या लक्ष्य है वह किस लिए जन्म लिया हूं और मैं किस लिए यहां पर जन्म लिया है इस सब का ज्ञान उसे हो जाता है।
इन्हीं सब समस्याओं से निकलने के लिए साधना पद्धति दीक्षा पद्धति बना है जो मनुष्य को स्वयं का ज्ञान और स्वयं का शक्ति को पहचानने की क्षमता प्राप्त होती है समस्याएं वही रहती हैं जब आपके अंदर वह शक्ति वह ज्ञान वह अस्त्र प्राप्त हो जाता है जिसके माध्यम से आप अपनी समस्याओं को जड़ मूल से खत्म कर सकते हैं।
आपके अंदर साहस डर को भगाने के लिए और आपके अंदर समस्त विकारों को दूर करने के लिए अपने आप को शक्ति अर्जित होने लग जाती है आप अपनी भूल को सुधार के लिए हमेशा प्रयत्नशील हो जाते हैं यही से मनुष्य का देवता और नर से नारायण बनने की शक्ति उसे प्राप्त होने लगती है यह जितना सुनने में सरल है उतना यह सरल नहीं है यह जीवन की बहुत बड़ी चुनौती है एक जहर है जिसे हमें पीना पड़ता है।
सही समय पर सही मार्गदर्शन करने वाला व्यक्ति ही गुरु होता है। सद्गुरु तो केवल एक ही होता है पर गुरु अनेकों प्रकार की बनते जाते हैं जीवन में।
साधना करके ही जीवन को लक्ष्य पूर्ति संभव है जिन लोगों को भुवनेश्वरी साधना करना है जो त्रिलोक के महाविद्या है उसे अगर हमने सिद्ध कर लिया तो हमारा जीवन परिवर्तित होना संभव हो जाएगा एक महाविद्यालय सिद्ध हो जाए जीवन में तो हमारा जीवन का लक्ष्य पूरा हो जाता है।
WhatsApp chat
सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम्
गुरु पूर्णिमा अयोध्या शिविर
आज वो सशरीर नहीं हैं, लेकिन करोड़ों हृदय में बसे हैं।शिष्योँ के रूप में उनकी चेतना जीवंत है। आज गुरुदेव निर्वाण दिवस है। पूर्ण दिवस है। और गुरु पूर्णिमा का शुभ अवसर भी है
पंचोपचार पूजन करके सदगुरुदेव का गणेश और भैरव की पूजन के पश्चात स्फटिक या हकीक माला से
पीला आसन हो और उत्तर की ओर मुख करके बैठ जाएं और हाथ जोड़कर सद्गुरु सदगुरुदेव से प्रार्थना करें मैं पूर्ण रूप से आपकी कृपा प्राप्त करने के लिए और अपने आप को पूर्ण समर्पित और जीवन पर्यंत गुरु को अपने हृदय में स्थापित करने के लिए। साधना कर रहा हूं।
क्लीम सकल दोष निवारण फट।।
५ माला जाप करे। उस के साथ
नीचे दिए गए मंत्र को
*ॐ श्रीं श्रीं गूरू वरप्रदाय श्रीं ॐ नमः।*
आज 5, 11, २१, ५१, १२५ माला जप सफेद हकीक माला से करें। १ माला ५ माला हवन करे ।
तत्पश्चात उस माला को एक दिन के लिए धारण कर लें।
जुलाइ 2/3 मे अयोध्या चले।
जय श्री राम, जय सदगुरुदेव जी
*एक बच्चे को आम का पेड़ बहुत पसंद था।*
*जब भी फुर्सत मिलती वो आम के पेड के पास पहुंच जाता।*
*पेड के उपर चढ़ता,आम खाता,खेलता और थक जाने पर उसी की छाया मे सो जाता।*
*उस बच्चे और आम के पेड के बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया।*
*बच्चा जैसे-जैसे बडा होता गया वैसे-वैसे उसने पेड के पास आना कम कर दिया।*
*कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।*
*आम का पेड उस बालक को याद करके अकेला रोता।*
*एक दिन अचानक पेड ने उस बच्चे को अपनी तरफ आते देखा और पास आने पर कहा,*
*"तू कहां चला गया था? मै रोज तुम्हे याद किया करता था। चलो आज फिर से दोनो खेलते है।"*
*बच्चे ने आम के पेड से कहा,*
*"अब मेरी खेलने की उम्र नही है*
*मुझे पढना है,लेकिन मेरे पास फीस भरने के पैसे नही है।"*
*पेड ने कहा,*
*"तू मेरे आम लेकर बाजार मे बेच दे,*
*इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।"*
*उस बच्चे ने आम के पेड से सारे आम तोड़ लिए और उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।*
*उसके बाद फिर कभी दिखाई नही दिया।*
*आम का पेड उसकी राह देखता रहता।*
*एक दिन वो फिर आया और कहने लगा,*
*"अब मुझे नौकरी मिल गई है,*
*मेरी शादी हो चुकी है,*
*मुझे मेरा अपना घर बनाना है,इसके लिए मेरे पास अब पैसे नही है।"*
*आम के पेड ने कहा,*
*"तू मेरी सभी डाली को काट कर ले जा,उससे अपना घर बना ले।"*
*उस जवान ने पेड की सभी डाली काट ली और ले के चला गया।*
*आम के पेड के पास अब कुछ नहीं था वो अब बिल्कुल बंजर हो गया था।*
*कोई उसे देखता भी नहीं था।*
*पेड ने भी अब वो बालक/जवान उसके पास फिर आयेगा यह उम्मीद छोड दी थी।*
*फिर एक दिन अचानक वहाँ एक बुढा आदमी आया। उसने आम के पेड से कहा,*
*"शायद आपने मुझे नही पहचाना,*
*मैं वही बालक हूं जो बार-बार आपके पास आता और आप हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।"*
*आम के पेड ने दु:ख के साथ कहा,*
*"पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नही जो मै तुम्हे दे सकु।"*
*वृद्ध ने आंखो मे आंसु लिए कहा,*
*"आज मै आपसे कुछ लेने नही आया हूं बल्कि आज तो मुझे आपके साथ जी भरके खेलना है,*
*आपकी गोद मे सर रखकर सो जाना है।"*
*इतना कहकर वो आम के पेड से लिपट गया और आम के पेड की सुखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।*
*वो आम का पेड़ कोई और नही हमारे माता-पिता हैं दोस्तों ।*
*जब छोटे थे उनके साथ खेलना अच्छा लगता था।*
*जैसे-जैसे बडे होते चले गये उनसे दुर होते गये।*
*पास भी तब आये जब कोई जरूरत पडी,*
*कोई समस्या खडी हुई।*
*आज कई माँ बाप उस बंजर पेड की तरह अपने बच्चों की राह देख रहे है।*
*जाकर उनसे लिपटे,*
*उनके गले लग जाये*
*फिर देखना वृद्धावस्था में उनका जीवन फिर से अंकुरित हो उठेगा।*
आप से प्रार्थना करता हूँ यदि ये कहानी अच्छी लगी हो तो कृपया ज्यादा से ज्यादा लोगों को भेजे ताकि किसी की औलाद सही रास्ते पर आकर अपने माता पिता को गले लगा सके..!!
*संबंधों की कुल पांच सीढ़ियां होती हैं! देखना ,अच्छा लगना ,चाहना, पाना यह चार बहुत सरल सीढ़ियां है....*
*सबसे कठिन पांचवी सीढ़ी है....*
*निभाना..!!*
*शुभ दिन*💐🙏
बहुत सारे लोग शिकायत करते हैं. मेरा जीवन क्यों नहीं बदल रहा मेरा भाग्य क्यों नहीं बदलता है
आप अपनी समस्या सुलझाना चाहते हैं या अपने तर्कों पर अड़े रहते हैं। उपाय तो यही है श्रद्धा विश्वास और समर्पण। और साधना समय पर करना। यही जीवन की समस्याओं का समाधान है। जाप साधना और हवन नहीं करेंगे हमारे जीवन में बदलाव नहीं हो सकता हैं । सभी समस्याओं को जड़ से और जड़ मूल से समाप्त करने की विधि यही है।
आचार्य Hirendra Pratap Singh (mtyv)
WhatsApp no 9560160184
अपच बुरी होती है, किसी भी चीज की हो --
भोजन न पचे तो रोग , ज्ञान न पचे तो दिखाबा , धन न पचे तो अनाचार , सुख न पचे तो पाप और सम्मान न पचे तो अहंकार बढ़ ही जाता है. सिर्फ साधना ही एक मात्र अशरा है ।गुरु से मिले
इसलिए पाचन दुरुस्त रखिये !!!!!
Jodhpur City
Monday | 9am - 5pm |
Tuesday | 9am - 5pm |
Wednesday | 9am - 5pm |
Thursday | 9am - 5pm |
Friday | 9am - 5pm |
Saturday | 9am - 5pm |
Be the first to know and let us send you an email when Nikhil Kunj at Nikhil Mantra Vigyan by Gurudev Nand Kishore Shrimaliji posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.
Send a message to Nikhil Kunj at Nikhil Mantra Vigyan by Gurudev Nand Kishore Shrimaliji:
2️⃣5️⃣❗1️⃣1️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣3️⃣ *प्रारब्ध भोग* एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था। धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था । जब भी उसे शौच; स्नान आदि के लिये जाना होता था; वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे। धीरे धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे।इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे। अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा था एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी,तुरन्त एक लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है।अब ये रोज का नियम हो गया। एक रात उनको शक हो जाता है कि,पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नही आते थे।लेकिन ये तो आवाज लगात