Rajeev singh

Rajeev singh रचनाकार , ब्लॉग राइटर ।

20/04/2024

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22/01/2024

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19/01/2024
07/10/2023

भाग ८ **प्रजातंत्र के बाई प्रोडक्ट**
जातिवाद और संप्रदायवाद आज प्रजातंत्र पर इतने हावी हो गए हैं कि तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा समाज के विकास की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा ।

जनता फ्री खा कर मस्त तो नेताजी लूटने में व्यस्त ।

यही हकीकत है ।
स्थिति बिल्ली के गले में घंटी बांधने जैसी हो गई है , नहीं तो जिन राजनीतिज्ञों ने अपने नकामिल , अक्षम औलादों को सत्ता सौंप, कुछ हद तक कामयाबी दिलवा दिया , वैसा तो शायद नहीं ही हो पाता किसी दूसरे तंत्र में ।

जिस वंशवाद , परिवारवाद के चलते राजतंत्र को नकारा गया , वो आज प्रजातंत्र में फिर से कैसे हावी हो गया ?

पहले राजा में कम से कम नेतृत्व क्षमता तो होता ही था साथ ही उनके योग्यततायों को जांचा परखा जाता था फिर जो योग्य होता था उसे राजा बनाया जाता था लेकिन आज प्रजातंत्र में योग्यता का कोई जरूरत नहीं है ।
वंशवाद और परिवारवाद में अनपढ़/ अयोग्य / अक्षम है तो भी चलेगा । वंश अगर गुंडा , मवाली है तब तो और बढ़िया और अगर दबंग , बाहुबली है तब तो सोने पे सुहागा , बशर्ते वो जाति/धर्म के नाम पर जहर फैलाने में साथ ही लोगों के भावनाओं से खेलने में माहिर हो ।

आज जात - धर्म के चश्मे का रंग इतना काला हो चुका है कि इस चश्मे से देखने वाले को इसमें कोई बुराई दिखता ही नहीं , चाहे वो जनता हो या नेता ।

जादूगर के मोहनी बातों में उलझ जनता जैसे हाथ के सफाई को सच समझ बैठती है और तालियां बजाते रहती है , ठीक वैसा ही मति भ्रम आज लोगों को हो चला है इसलिए लोग बेसुध हैं ।

आज प्रजातंत्र के बाई प्रोडक्ट इतने हैं कि खुद प्रजातंत्र को भी समझ नहीं आ रहा कि क्या सच है और क्या झूठ , कौन सत्य है और कौन असत्य ?

आज प्रजातंत्र खुद से पूछ रहा कि क्या लोग ऐसे ही हमारा चीर हरण करते रहेंगे या हमे भी बचाने कोई कृष्ण आएगा ??

🙏राजीव सिंह🙏
**वैशाली ( विहार )**

07/09/2023

#पाठक जी को शिक्षा विभाग में मजबूरी में लाना प़डा है । दरअसल ने शिक्षा की बदहाली और इसपर सरकार की नाकामी का पोल समाज के बीच खोल कर रख दिया है lअब मजबूरी में ही सही सुधार तो हो कर रहेगा ।

जौहर प्रथा / सती प्रथा - क्षत्रियों को समूल समाप्त करने की सोची समझी साजिश l     समाज में क्षत्रियों को हमेशा से योद्धा ...
11/08/2023

जौहर प्रथा / सती प्रथा - क्षत्रियों को समूल समाप्त करने की सोची समझी साजिश l

समाज में क्षत्रियों को हमेशा से योद्धा के रूप में ही देखा जाता है l

क्षत्रिय अगर लड़ने में 20 थे तो क्षत्राणी भी 19 नहीं थीं l वाबजूद इसके जौहर प्रथा/सती प्रथा जैसा अमानवीय तरीका का इजाद तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा किया गया, जो दुश्मन से बिना लड़े ही खुद को अग्नि में समर्पित कर लेने वाली एक कुप्रथा थी , ताकि उन लोगों द्वारा invited दुश्मनों का कम से कम नुकसान हो सके साथ ही क्षत्रियों की संख्या भी घटती जाए और राजा से किसी बात का बदला भी चुकता हो जाए l

सोचिए क्षत्राणियाँ भी अगर युद्ध में जातीं ( जब अपनी सेना हार रही होती) ,तो थके -हारे सैनिकों में नया जोश भर जाता, जो हार को जीत में भी बदल दे सकता था l
इसीलिए वो ऐसी रणनीति कभी नहीं बनाए क्योंकि उनके मन में ही खोट था l

देश के आन बाण और शान की रक्षा हेतु सदियों से क्षत्रिय ही अपने जान की आहूति देते आए हैं, बाकि किसी को फुर्सत कहाँ है अपने काम से ?

कोई पोथी पतरा में, कोई व्यापार में, तो कोई खेती में , तो कोई कुछ में तो कोई कुछ मे व्यस्त थे l कौन हारा कौन जीता, इससे इनको क्या ?

अब आप ही बताइए ऐसे देश को कोई क्यों नहीं लूटेगा जो खुद ही लुटाने के लिए तैयार बैठा हो l

अधिकतर को इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता था कि राजा देशी है या विदेशी , उन्हें अपने धंधे से मतलब था , केवल और केवल क्षत्रिय को ही राष्ट्र से प्रेम था l यही वज़ह था कि विदेशी हमे लूटने और हम पर शासन करने में सफल हुए l

बाकी लोग तो जागे तब, जब उनपर आन पडी l नहीं तो मुगलों संग बिरियानी और अंग्रेजों संग केक भी ये लोग खूब खाते थे l

राजीव सिंह
वैशाली (बिहार)

कई मेढक अपने साथी मेढक को साँप के मुँह से बचाने के लिए जबरदस्त कोशिश करते हुए lइसे अंत तक जरूर देखें l
09/08/2023

कई मेढक अपने साथी मेढक को साँप के मुँह से बचाने के लिए जबरदस्त कोशिश करते हुए l

इसे अंत तक जरूर देखें l

मेंढ़कों ने साँप पर किया अटैक l अब ये कहना मुनासिब नहीं कि मेंढ़कों को तराजू पर एक साथ नहीं तौला जा सकता lअद्भुत और अच...

 #क्षत्रिय राजा नहीं थे ( भाग -१)शीर्षक देखकर भले आपको आश्चर्य हो रहा होगा लेकिन मेरे समझ से ये सच है । जरा सोचिए भगवान ...
08/01/2023

#क्षत्रिय राजा नहीं थे ( भाग -१)

शीर्षक देखकर भले आपको आश्चर्य हो रहा होगा लेकिन मेरे समझ से ये सच है ।

जरा सोचिए भगवान बुद्ध को राज पाट क्यों छोड़ना पड़ा होगा , वो भी गृहस्थी बस जाने के बाद ?

हम सब जानते हैं कि भगवान बुद्ध अपने राज्य / देश के बजावते युवराज बनते हैं , उनकी शादी होती है , उनके बच्चे भी होते हैं । सब कुछ तो ठीक ही चल रहा होता है फिर आखिर ऐसी कौन सी परिस्थिति आन पड़ती है जिस कारण उन्हें घर छोड़ना पड़ जाता है ?

सवाल वही है गृहस्थी बसने के बाद उन्हें घर क्यों छोड़ना पड़ जाता है ?

हमें लगता है भगवान बुद्ध भारत के तत्कालीन व्यवस्था से क्षुब्ध होकर घर छोड़ते हैं, उनका मन समाज में व्याप्त असमानता , पाखंड , विषमता से अक्सर आहत और असहज हो जाता है।

उन्हें एक वैसे राजा बनने में कोई अभिरुचि नहीं रही होगी जो दूसरों के द्वारा निर्देशित और गलत नीतियों पर आधारित रही होगी । जो व्यवस्था मानव मानव के बीच विभेद पैदा करती हो और जो गलत मूल्यों के लिए खून बहाने में थोड़ा भी न सकुचाती हो , वो बुद्ध को स्वीकार्य नहीं थे । उनका मन इससे आहत हो जाता था ।

इस तरह अन्य राजाओं की तरह उन्हें भी , अमानवीय एवं अनुचित नियमों के बंधन से बांधने की कोशिश हुई होगी जो उनके स्वतंत्र एवं पवित्र मन को स्वीकार्य नहीं हुआ होगा फिर अंततः वही होता है जो दुनिया के सामने है वो सत्य की खोज में निकल पड़ते हैं ।

दूसरी बात यदि भगवान बुद्ध ,भगवान की खोज में निकले होते तो उन्हें भी किसी न किसी भगवान का साक्षात्कार हुआ होता और इसके लिए उन्हें घर छोड़ने की प्रेरणा भी शादी के पहले ही प्राप्त हो गई होती । लेकिन नहीं ऐसा नहीं होता है ,वो निकले ही थे व्यवस्था के विकल्प की तलाश में यानी सत्य की तलाश में ।

बुद्ध अपनी एकाग्रता रूपी तप से समाज को न केवल नया विकल्प देते हैं बल्कि खुद ही ज्ञान बन जाते हैं । वो ज्ञान प्राप्ति की बात करते हैं , भगवान प्राप्ति की बात नहीं करते ।

हम सब ये भी जानते हैं कि व्यक्ति जब सन्यास लेता है तो उसकी घर वापसी नहीं होती लेकिन भगवान बुद्ध सत्य की खोज के बाद अपने घर भी वापस आते हैं और फिर दुनिया को एक नई दिशा , नई व्यवस्था , नई सोच और सत्य के प्रकाश से प्रकाशित भी कर देते हैं जो रूढ़िवादियों को स्वीकार्य नहीं होता है और जिसके लिए कालांतर में विरोधी मार काट का रास्ता तक अपनाते हैं । क्रमश: ......

राजीव सिंह
वैशाली ( बिहार )
8.1.2022

क्षत्रियों का शोषण स्वभाव से सबों पर आंख मूंद कर भरोसा करने वाले ,दिन दुखियों पर सदा दया और कृपा करने वाले क्षत्रियों के...
06/01/2023

क्षत्रियों का शोषण

स्वभाव से सबों पर आंख मूंद कर भरोसा करने वाले ,दिन दुखियों पर सदा दया और कृपा करने वाले क्षत्रियों के लिए साधु - संत , ऋषि - मुनि , तपस्वी , महात्मा न केवल आदरणीय हैं बल्कि पूजनीय भी हैं लेकिन कुछ दोमूहे स्वार्थियों द्वारा क्षत्रियों के इस सरल स्वभाव का फायदा कलयुग में खूब उठाया जाता रहा है । चाल इतनी बारीक होती थी या होती है कि क्षत्रियों को कभी इनपर शक भी नहीं हो पाता और अंदर अंदर सब चौपट हो जाता है ।

छोटे से छोटे बात को भी अपने आन पर लेने वाली ये जाति कभी अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करती और इसी का गलत फायदा उठा इसे बाकी सभी जातियों से समय समय पर लड़ाया जाता रहा है ।

क्षत्रिय पहले केवल अस्त्र शस्त्र चलाने में ही माहिर थे , उन्हें शिक्षा , राजनीति और कूटनीति से कोई मतलब नहीं होता था लेकिन अब जब समय बदला है तो क्षत्रिय भी शिक्षित होने लग गए हैं , राजनीति और कूटनीति का थोड़ा बहुत ज्ञान इन्हें भी होने लग गया है ।

आखिर वो कौन लोग थे जो एक समय हिंदुओं को आपस में बांट कर राज कर रहे थे , और अब हिंदुओं को एक कर राज करना चाह रहे हैं ???

सही में बड़े दोमुहे होते हैं ।इन्हें देशभक्ति से कुछ भी लेना देना नहीं होता । अपने स्वार्थ में ये देश के दुश्मनों से भी हाथ मिलाने में तनिक भी नहीं सकुचाते ।

इन्हीं दोमुहे के चलते विदेशियों ने हम पर वर्षों राज किया ।
इसलिए , क्षत्रियों को , जिनके खून में राजगुण जन्म से ही होता है , इन दोमुहे से सदा सावधान रहना चाहिए ।

दुनिया में ऐसी कोई जाति नहीं जो क्षत्रियों जैसी निर्भीक , स्पष्टवादी , हिम्मती , स्वाभिमानी दयालु और दानी हो । जिनके पुरखों के सद्गुणों की चर्चा आज भी समाज में बड़े गर्व से सभी वर्गों द्वारा किया जाता है , बाबजूद इसके क्षत्रिय आज हासिए पर है ।

इसलिए , आप सबों से भी अपील है कि आप सब भी अपने ढंग से मूल्यांकन करे और दोमुहे से सदा सचेत रहें ।

राजीव
वैशाली ( बिहार )

भारत के राजतंत्रिय व्यवस्था में सभी जातियों को राजा बनने की स्वतंत्रता थी लेकिन साहस, शौर्य , प्रजा के रक्षार्थ जान देने...
28/12/2022

भारत के राजतंत्रिय व्यवस्था में सभी जातियों को राजा बनने की स्वतंत्रता थी लेकिन साहस, शौर्य , प्रजा के रक्षार्थ जान देने की हिम्मत , जिस भी व्यक्ति या जाति में होता था शासक वही बन पाता था ।
भारतीय जाति व्यवस्था में क्षत्रिय शुरू से ही एक ऐसी जाति रही है जो सभी जातों को अपना समझती रही है , किसी से कोई भेद भाव नहीं । चाहे वो केवटराज हों, शबरी माता हों या महाराणा के बुरे वक्त के वनवासी । सभी कंधा से कंधा मिलाकर चलते थे ।
ऐसा देखा गया है कि क्षत्रियों में उपरोक्त खूबी सबसे ज्यादा होती थी इसलिए राजा भी वही बनते थे । बाकी जातियां भी अपने स्वभाव अनुसार जीवकोपर्जन कर खुशी खुशी रहा करती थी ।
राष्ट्र और प्रजा की रक्षा के लिए क्षत्रिय एक पल के लिए भी नहीं सोचते थे । नई नवेली दुल्हन के हाथों की मेंहदी भी नहीं सुख पाती थी लेकिन युद्ध का आगाज होने पर वो युद्ध भूमि में जाने से थोड़ा भी संकोच नहीं करते थे । प्रजा की रक्षा ही जिनका धर्म होता था । आज जब हम इतिहास में झांकते हैं तो पाते हैं कि एक से बढ़कर एक क्षत्रिय राजाओं के शौर्य से , उन सब की वीरगाथाओं से इतिहास के पन्ने रंगे पड़े हैं । हमे तो उनमें प्रयुक्त होने वाली स्याही का रंग कभी काली दिखा ही नहीं , हमेशा लाल ही दिखती है ।
लेकिन वो कौन स्वार्थी लोग थे जिन्होने अपने स्वार्थ और ईर्ष्या में विदेशियों से समझौता कर , दुश्मनों को अंदर ही अंदर सहयोग कर सोने की चिड़िया को लुटेरों के हाथों गिरवी रख दिया । क्षत्रिय अपना सर्वस्व लूटा कर भी राष्ट्र को पराधीन होने से नही बचा सके । जिनकी राजनीति के आगे किसी का कुछ नहीं चला । कूटनीति ऐसी कि दोष भी उनके माथों नहीं मढ़ाया । जिसने कुछ लोगों को उकसा कर , उन्हें आगे कर , बाद में गद्दार बता कर मजे से अपना रोटी सेंकते रहे । आखिर जिस देश की सेना से विदेशी लुटेरों के पैंट गिले हो जाया करते थे ,उसे राजा के विशवस्तों ने ही ईर्ष्या और स्वार्थवश, दुश्मनों के पैरों तले रौंदवा दिया ।
बाद के दिनों में इन्हीं जातियों ने सबसे ज्यादा इस्लाम के झंडे भी थामें और फिर उन्हीं लोगों ने अंग्रेजों को भी खूब मदद की । लुटेरों ने भी इन्हें धन धान दे कर अनुग्रहित किया ।
आज जब समाज पहले से ज्यादा शिक्षित , समझदार और जागरूक है , हमे सावधान रहना चाहिए ।
अपने बलिदान के कारण क्षत्रिय संख्या में कम हैं , इसलिए प्रजातंत्र में राजा बनना थोड़ा मुश्किल प्रतीत होता है लेकिन प्रजा रहते हुए भी समय आने पर क्षत्रिय अपने कर्तव्यों के निर्वहन से कभी पीछे नहीं हटते ।

धन्यवाद
राजीव
वैशाली ( बिहार )

10/09/2022

पितरों को याद करने का महीना शुरू हो गया है । वैसे तो हम सब अपने सभी छोटे बड़े यज्ञ - प्रयोजनो में अपने पितरों को गोहराना कभी नहीं भूलते , क्योंकि बिना उनको गोहराये कोई भी यज्ञ संपन्न हो ही नहीं सकता ।
हम अपने मतलब से (उनके आशीर्वाद खातिर )उन्हें याद करते ,पूजते और गोहराते तो हैं ही लेकिन साल का ये खास महीना, पितृपक्ष , जो केवल पितरों को ही समर्पित है , जिस महीने में हमारे पितरजन पृथ्वीलोक पधारते हैं और अपनों से उम्मीद करते हैं कि वो उनके लिए , उनके नाम से कम से कम एक लोटा जल अवश्य अर्पित करें ।

आपको आश्चर्य होगा जानकर कि केवल इतना ही के लिए , हम सभी के पितर गण हम सब की ओर टकटकी लगाए देखते रहते हैं कि कब उनका अपना एक लोटा जल उनके नाम से अर्पित कर उन्हें तृप्त करेगा ? केवल इतना करने मात्र से ही हमारे पितर तृप्त हो जाते हैं और सदा आशीर्वाद बरसाते रहते हैं । वैसे अगर कोई कुछ ज्यादा भी करना चाहे तो उसे अवश्य करना चाहिए ।

पितरों का महत्व केवल आप इतना ही से समझ सकते हैं कि इस पितृपक्ष के महीने में बाकी दूसरा सारा काम वर्जित है , आप जानते हैं क्यों ?
ऐसा केवल इसलिए नहीं कि ये महीना अशुभ( मान्यतानुसार ) है बल्कि इसलिए कि ये पितरों का और केवल पितरों का महीना है, जिसमे पितरों के सिवाए कुछ नहीं , इसीलिए वर्जित है सारे काम इस महीने में । अब आपको अंदाजा लग गया होगा आप सब को कि पितृपक्ष का महीना कितना महत्वपूर्ण है हम सब के लिए ?

तो आइए हम सब मिलकर अपने अपने पितरों को याद करें , उन्हें गोहराए , उन्हें तृप्त करें और उनका आशीर्वाद अनवरत प्राप्त करते रहें ।

धन्यवाद।
राजीव सिंह
वैशाली ( विहार)
🌹🙏🌹

27/08/2022
हमारी सरकार ,कहती तो है कि हम किसानों की आय दुगनी करेंगें लेकिन करने के समय होने नहीं देती क्योंकि कृषि उत्पादों का डिमा...
26/08/2022

हमारी सरकार ,कहती तो है कि हम किसानों की आय दुगनी करेंगें लेकिन करने के समय होने नहीं देती क्योंकि कृषि उत्पादों का डिमांड अंतराष्ट्रीय मार्केट में जब बढ़ता है तो निर्यात करने से रोक देती है और घटता है तो उन उत्पादों को आयत कर , किसानों को लाभ नहीं कमाने देती ।
जबकि ठीक वैसा ही कानून उद्योगपतियों के ऊपर लागू नहीं कर पाती। उद्योगपति अपने उत्पादों का मूल्य निर्धारण भी अपनी मर्जी से करते रहते हैं । ये कैसी विषमता है ?
मानते हैं कि देश के जरूरत के लिए अन्न पर्याप्त मात्रा में होने चाहिए लेकिन ऐसा भी नहीं होने चाहिए जिससे किसान बदहाल का बदहाल बना रहे ।
कैसी विडंबना है कि ५० gm आलू का एक आलू जब किसान के पास होता है तो मूल्य १ रुपया होता है और जब वही आलू पैकेट में जाता है तो मूल्य १० रुपए हो जाता है ।
ऐसे में जरूरत है कृषि को भी उद्योग का दर्जा दिया जाए तभी पूंजीपति लोग इधर आकर्षित होंगे और यहां इन्वेस्ट करेंगे फिर किसानों की दशा भी सुधर जायेगी ।

राजीव
वैशाली ( विहार )

17/08/2022

संस्कृत , जिसे देव भाषा की संज्ञा दी जाती है , जो सब तरह से पूर्ण भी है बाबजूद इसके आज हाशिए पर है ।
सोचना पड़ेगा आखिर ऐसा क्यों हो रहा ?

आज जब संस्कृत हाशिए पर है तो लगता है शायद देव भूमि पर देवी देवता लोग भी अब आना पसंद नहीं कर रहे क्योंकि हम अपने आकर्षण खोते जा रहे हैं ।हम अपने गुणों पर अवगुण को हावी होने दे रहे है । तभी तो हम अपनी मानसिक संकीर्णता के कारण भाषा को भी क्षेत्र , धर्म , जात में बांध कर रख दिए हैं।

आज अधिकृत लोग भी इसके प्रचार - प्रसार में दिलचस्पी नहीं दिखा रहें । ताज्जुब तो तब और हो रही जब उनके संतान भी वेस्टर्न संस्कृति की ओर आकर्षित होते जा रहे हैं ।भला ऐसे में कैसे बचेगी भाषा और कौन बचाएगा संस्कृति ?

हिन्दू धर्म के अनुयायियों के बहुत बड़ी आबादी को आज भी सही सम्मान नहीं मिल पा रही , भेद यथावत है ।ऐसी विसंगतियां किसी भी भाषा , धर्म , संस्कृति के लिए लाभदायी नहीं हो सकता । समय से हिसाब तो होता ही है जैसा संस्कृत के साथ होते हम सब देख रहे हैं ।

इसलिए हमे चाहिए कि हम सब अपनी मानसिक संकीर्णता को समय रहते त्याग दे ।

ये कैसा अगड़ापन है जो नफरत करना , भेद भाव करना सिखाए । दिखावा में , अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते हुए भले कोई इसे अगड़ापन कहे , हमे तो मानसिक संकीर्णता से ज्यादा कुछ नहीं दिख रहा ।

राजीव सिंह
वैशाली ( बिहार)

09/07/2022

* बिहार और शिक्षा *
बिहार , जो अपने शिक्षा व्यवस्था के लिए अक्सर सुर्खिया बटोरते रहा है । कभी टॉपर घोटाले के लिए , कभी उसी मार्क्स के आधार पर नियुक्ति पाए शिक्षकों के ज्ञान पर किरकिरी के लिए , सतत वित्त रहित शिक्षकों की उपेक्षा ( बिना वेतन कार्य )के लिए , बिना प्रोफेसर के कई डिपार्टमेंट चलने के लिए बल्कि यूं कहें एक दो प्रोफेसर के भरोसे पूरा कॉलेज चलने के लिए , बिना छात्रों के वर्ग , बिना प्रैक्टिकल के साइंस क्लासेज इत्यादि इत्यादि और भी बहुत कुछ । कितना गिनाऊं , आप थक जायेंगे पढ़ते पढ़ते लेकिन लिस्ट कम नहीं पड़ेगा ।

खैर , ये तो खुले तौर पर अब सभी मानने लगे हैं कि बिहार के कॉलेज एडमिशन ,एग्जाम केंद्र से ज्यादा कुछ नहीं , पठन पाठन तो बिल्कुल ही नहीं ।

कुछ दिन पहले इसी व्यवस्था पर प्रश्न उठाने का हिम्मत प्रोफेसर ललन जी ने किया था , लेकिन यहां के सड़े तंत्र ने पहले मुख्य बिंदु से लोगों के ध्यान को भटकाया और बाद में दबाब बना ,उनसे माफीनामा तक लिखवा लिया ।

आज जब प्रश्न करने वाले को ही प्रश्नों के घेरे में खड़ा कर दिया गया तो आगे कोई कैसे आवाज उठाने की हिम्मत कर पाएगा ?
भगवान ही मालिक है अब अपने बिहार का ।

राजीव सिंह
वैशाली ( बिहार)

04/07/2022

नरेंद्र बाबू
जे पी आंदोलन के एक सिपाही , जो अब हमलोग के बीच नहीं रहे । मैं उनके चरणों में अपना अश्रुपूरित श्रद्धांजलि समर्पित करता हूं । नरेंद्र बाबू की छवि एक जमीनी नेता की रही है , जो सब के लिए सर्व सुलभ थे ।
मैंने उनकी एक झलक जमशेदपुर में पाई थी । उन दिनों झारखंड विधान सभा चुनाव का बिगुल बज चुका था । बीजेपी ने आदरणीय सरयू राय (एक वरिष्ट नेता ) जी को टिकट के लिए अंतिम दिन तक इंतजार करवाती रह गई थी , जिसके जवाब में उन्होंने , अंतिम दिन से ठीक एक दिन पहले चुनाव में निर्दलीय उतरने का फैसला कर लिया था , जिसमे उन्हें भाड़ी मतों से जीत भी मिली थी और मिले भी क्यों नहीं । क्योंकि झारखंड ही नहीं ,बिहार से भी कई नेताओं का सहयोग प्राप्त हो रहा था , उसी क्रम में नरेंद्र बाबू आए थे सरयू राय जी के यहां और हमने भी उनको एक झलक देखा था । बस , वही एक मुलाकात हुई थी उनसे हमारी ।
🙏 कोटि कोटि नमन ।🙏🌹🌹

आज पूंजीपतिलोग अपने धन बल से अपने सभी प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेते हैं या बनवा लेते हैं जिनका मुकाबल...
26/06/2022

आज पूंजीपतिलोग अपने धन बल से अपने सभी प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेते हैं या बनवा लेते हैं जिनका मुकाबला छोटे उद्योगपति कभी नहीं कर पाते हैं और वे अंततः समाप्त हो जाते हैं ।

क्योंकि बैंक भी भरोसा नहीं करती है छोटे उद्योगपतियों पर और तो और जनता भी भरोसा नहीं कर पाती उनके द्वारा बनाए गए उत्पादों पर ( चाहे वो कितना भी उच्च गुणवत्ता की हो ) , क्योंकि पैसों की कमी के कारण वे इसका उचित मार्केटिंग नहीं करवा पाते ।

मेरे विचार से उद्योग नीति में बदलाव की जरूरत है ।

१. उद्योग लगाने वालों को बिना इंटरेस्ट का पूंजी मिलनी चाहिए ( प्रॉपर्टी मॉर्गेज कर के ,ताकि पचाने की संभावना न हो ) क्योंकि वो देश के बेरोजगारों के लिए रोजगार सृजित करता है ।

२. प्रोडक्ट के क्वालिटी का मानक कराई से लागू होना चाहिए , सेफ्टी का पालन भी सख्ती से होनी चाहिए इसके अलावे किसी प्रकार का कोई कागजी प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए ।

३. उद्योग के लिए सरकार द्वारा उपयुक्त जगह चिन्हित कर उसे सब तरह से डेवलप कर देना चाहिए ( कुछ हद तक ऐसा हो भी रहा है )

४. खास उद्योग को खास जगह पर ही लगाने की अनुमति देनी चाहिए , जहां प्रचुर मात्रा में कच्चा माल उपलब्ध रहे ।

५. उत्पाद की खरीददारी सेंट्रलाइज होनी चाहिए , ताकि सब का ब्रांड एक हो जाए , जिसका वितरण जरूरत के अनुसार सब जगह किया जा सके और अधिक स्टॉक होने पर उसका निर्यात भी किया जा सके ।

६. अवैद्य वसूली को रोकने हेतु बाकी कानूनों को रद्द कर देना चाहिए ।

७. उत्पादकता के आधार पर उद्योगपति को लाभांश मिलना चाहिए साथ ही साथ उसमे कार्यरत कर्मचारी को भी अनुपातिक लाभांश मिलना चाहिए ।

८. मार्केटिंग के मकड़ जाल से छुटकारा मिलने से , नए नए स्टार्टअप , नए नए उद्योगपति सामने आने शुरू हो जायेंगे , जो देश के GDP बढ़ाने में सहायक हो जायेंगे ।

इसके अलावे और भी कई सुधार कर देश को आगे ले जाया जा सकता है , नहीं तो देश कुछ हद तक तो पूंजीपतियों के चंगुल में आ ही चुका है । धीरे धीरे पूरा ही आ जायेगा , जहां कंज्यूमर से ज्यादा उद्योगपतियों के हितों की बात सोची जायेगी , यानी आर्थिक गुलामी ।

🙏राजीव सिंह🙏
*वैशाली ( विहार )*
#उद्योगपति #योगी #योगिआदित्यनाथ

17/06/2022

मंडल कमीशन जब लागू हुआ था और आज जब अग्निपथ आया है , दोनों समय छात्रों को विश्वास में नहीं लिया गया ।
फायदा नुकसान तो बाद की बात है

एक ईमानदार ,कर्मठ ,न्यायप्रिय मुख्यमंत्री जी से हम अनुरोध करते हैं कि अपने प्रदेश में वो माफियाओं , पत्थरवाजों के अवैद्य...
14/06/2022

एक ईमानदार ,कर्मठ ,न्यायप्रिय मुख्यमंत्री जी से हम अनुरोध करते हैं कि अपने प्रदेश में वो माफियाओं , पत्थरवाजों के अवैद्य निर्माण को जिस तेजी से ध्वस्त करने में लगे हैं , उसी तर्ज पर प्राधिकरण के गैर जिम्मेदार अधिकारियों पर भी कारवाई करें , जिनके अनदेखी के कारण लोगों ने उनके इलाके में अवैद्य निर्माण करवा लिए हैं ।

आखिर वो लोग उस समय क्यों सो रहे थे , जब कोई व्यक्ति अवैद्य निर्माण करबा रहा था ।

हमें ,हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि किसी का आशियाना उसके लिए कितना प्रिए होता है । एक एक ईंट से उसकी यादें जुड़ी होती है जब वह अपने पसीने से कमाए धन का सदुपयोग कर एक घर बनबाता है ।

पूर्ण शिक्षित नहीं होने के कारण ऐसे लोग आसानी से उपद्रवियों के बहकावे में आ जाते हैं और नासमझी में कुछ ऐसे कदम उठा लेते हैं जो देश हित में नहीं होता ।

सबसे पहले सभी को उचित शिक्षा देने की कोशिश हो , नौजवानों को उचित मार्गदर्शन मिले ,तभी हमारा देश विकसित हो पाएगा ।

व्यक्ति का हृदय परिवर्तन जरूरी है । डर और नफरत पैदा कर किए गए कार्य में स्थायित्व नहीं होता।

🙏राजीव सिंह 🙏
वैशाली ( विहार )

#योगीजी

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