19/06/2024
अगर किसी सभ्यता के विश्वास को गहराई समझना है, तो सबसे आसान तरीका उनकी अंतिम संस्कार विधियों को देखना है। कोई भी सभ्यता मृत देह को कूड़े में नहीं फेंकती है, हर सभ्यता हर धर्म मे अंतिम संस्कार की विधियां होती है। हर अंतिम संस्कार विधा के पीछे एक कहानी होती है। वह कहानी जो, किसी सभ्यता के जन्म के समय से ही चली आ रही होती है।
मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार भी किया जाता है, जो अलग अलग सभ्यताओं में अलग अलग होता है। अंतिम संस्कार विधियाँ भी अलग अलग तरह से होती है। जमीन के भीतर समाधि देना या कब्र में दफन करने के पीछे अवधारणा ये होती है कि अब इनका दुबारा जन्म नहीं होगा अर्थात पुनर्जन्म नहीं होगा। जब आपको एक ही जीवन मिलता है तो मृत शरीर महत्वपूर्ण हो जाता है।
मृत देह को नए कपड़े पहनाए जाते है, साज सज्जा, जरूरत का सामान शव के साथ रखा जाता है। प्राचीन काल मे सेवक सेविकाएं और ढेर सारा सोना चांदी भी शव के साथ ही दफनाए जाते थे। इसके पीछे अवधारणा ये होती है कि कयामत के रोज ईश्वर के सामने मृत व्यक्ति खूबसूरत दिखें। सनातन में पुनर्जन्म की अवधारणा के चलते देह महत्वपूर्ण नहीं होती, इसलिए मृत्यु के बाद देह से अंतिम अवशेष तक गंगा में समर्पित कर दिए जाते है।
सनातन में मृत्य के साथ पुनर्जन्म और मोक्ष दोनों की कहानियां जुड़ी है। मोक्ष प्राथमिकता है। किन्तु मोक्ष अर्थात जन्म मरण के चक्र से मुक्ति तभी मिलती है जब आप पर कोई कर्ज न हो। यदि किसी का जन्म हुआ है तो वह खाली हाथ नहीं आया, कुछ कर्ज लेकर आया है। मुख्यता पाँच प्रकार के कर्ज बताए है, उनमें से एक कर्ज 'ब्राह्मणों' का है, जिसे गुरुओं का कर्ज कहा जाता है।
जब भाषा नहीं थी, कहानियां नहीं थी, तब संकेत या भाव थे। ईश्वर भी हमसे भावों या संकेतों में बात करते हैं। गुरुओं ने उन संकेतों को समझा और उन्हें कहानी के रूप में सँजोया। मौखिक परम्परा में उन कहानियों को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक पहुंचाया गया। लिखित परम्परा आई तो नालंदा जैसी अनगिनत युनिवर्सिटीज खुली, जहां लोग दिन रात पुरानी कहानियों को नई पांडुलिपियों में लिखते रहे ताकि पुरानी पांडुलिपियों के नष्ट होने के साथ ही, कहानियां नष्ट न हों जाएं।
एक समूह ने ये जिम्मेदारी उठाई कि प्राचीन कहानियां अगली पीढ़ी तक पहुंचती रहे। इसी समूह को कर्म प्रधान परम्परा में 'ब्राह्मण' माना गया। दिन रात पांडुलिपियों पर लिखने वाले इस समूह की आजिविका प्रभावित न हो, इसके लिए कुछ व्यवस्थाएं भी की गई जिसकी जिम्मेदारी समाज पर थी। ब्राह्मण इस कहानी या ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी कथाओं के माध्यम से आगे बढ़ाते गए और इसी पर उनकी आजीविका आधारित रही।
आज हमारे पास विभिन्न संस्कारों से जुड़ी कहानियाँ है, उन्हें हज़ारों साल से यही ब्राह्मण पीढ़ी दर पीढ़ी लेकर आए है। एक ब्राह्मण को अपने आप मे ज्ञान की एक पूरी यूनिवर्सिटी माना जाता है, इसलिए ब्रह्म हत्या को सबसे बड़ा पाप माना गया है। नालंदा जैसी यूनिवर्सिटीज में ऐसी हज़ारों हज़ार यूनिवर्सिटीज समाई थी। हर एक ब्राह्मण अपने आप मे ज्ञान की यूनिवर्सिटी था।
इसलिए आक्रांताओं ने सबसे ब्राह्मणों, मंदिरों और यूनिवर्सिटीज को निशाना बनाया। किसी भी संस्कृति को नष्ट करना हो, उसकी पीढ़ियों को उसकी जड़ो, ज्ञान, धर्म और संस्कृति से अलग करना हो तो उनके धर्म स्थल और शिक्षा के केंद्र नष्ट कर दो। मन्दिर और नालंदा दोनों ही ज्ञान और शिक्षा के केंद्र थे, इसलिए इनका नष्ट होना आक्रांताओं की नज़र में जरूरी था।
इसलिए भारत मे सबसे ज्यादा मन्दिर और यूनिवर्सिटीज नष्ट की गई, उन्हें जलाया गया, उसमे पढ़ने वाले शिष्यों और पढ़ाने वाले गुरुओं को जिंदा जला दिया गया। पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान को आगे बढाने वाली चेन तोड़ दी गई। हज़ारों हज़ार वर्ष तक संजोया गया ज्ञान एक झटके में नष्ट कर दिया गया, हमारा गौरव हमसे छीन लिया गया।
अब वो ज्ञान हासिल करना तो मुमकिन नहीं, लेकिन हमने अपना खोया गौरव जरूर हासिल कर लिया है। हमारे गुरुओं और ब्राह्मणों ने ज्ञान को बचाने के संघर्ष में यहां अपनी जानें कुर्बान की है। उनका कर्ज हमारी कई पीढ़ियों ने ढोया है। उनकी आत्मा जहां भी होगी, नालन्दा को फिर से खड़ा होते देख आज गर्वित महसूस कर रही होगी। यह भावुक करने वाला पल है। हमारी आंखें भीग जानी चाहिए।