26/11/2024
महाराष्ट्र के #अंडर_करंट को इस बार बड़े-बड़े दिग्गज भी देख पाने से चूक गए.... महाराष्ट्र में एक #सहानुभूति_की_लहर थी, जिसे ना तो शरद पंवार देख पाए और ना ही वह सहानुभूति की लहर ऊद्धव ठाकरे या अन्य किसी कांग्रेसी को नजर आई। सहानुभूति की वह लहर #नरेंद्र_मोदी के लिए थी। महाराष्ट्र की जनता को नरेंद्र मोदी का वह चेहरा बार बार उद्वेलित कर रहा था जो उसने 4 जून 2024 को देखा था। 4 जून को भाजपा को जीत तो मिल गई थी, परंतु नरेंद्र मोदी का कलेजा भीतर से रो रहा था।
31 अक्टूबर 1984 को जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी तब टेलीविजन पर अपने प्रधानमंत्री का मृत शरीर देखकर हर हिंदुस्तानी की आत्मा रो पड़ी थी... उस रुदन में न कोई हिंदू था न कोई मुसलमान था, न कोई सिख था न कोई इसाई था... हर हिंदुस्तानी रो रहा था.… हर किसी के दिमाग में एक ही सवाल था कि आखिर #हमारे_प्रधानमंत्री का कसूर क्या था, उसे किस बात की सजा दी गई... तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मृत शरीर देखकर जो सहानुभूति की लहर हिंदुस्तान में उस समय उठी थी, उसे याद करिए.... 40 साल बाद.. 4 जून 2024 को टेलीविजन पर एक #बुझा_हुआ_चेहरा नजर आया था भारत की जनता को, जो ऊपर से बार-बार खुश दिखने की कोशिश कर रहा था, परंतु भीतर से उस चेहरे की रुलाई बार-बार बाहर फूट पड़ रही थी, जिसे लाख छुपाने पर भी नरेंद्र मोदी छिपा नहीं पा रहे थे। भीतर से रोते हुए उस चेहरे को देखकर भारत की जनता का #कलेजा_कांप_गया था... क्योंकि उस निर्दोष चेहरे के भीतर से आ रहे रुदन को टेलीविजन देख रहा हर हिंदुस्तानी सुन पा रहा था, महसूस कर पा रहा था। उस बिलखते हुए चेहरे से एक बहुत बड़ा सवाल उभर रहा था कि "आखिर मेरा #कसूर_क्या_था..? 18-18 घंटे रात-दिन लगातार जागकर हम आपके लिए जो मेहनत करते रहे, 22 वर्षों से लगातार आपके लिए बिना रुके बिना थमे, बिना कोई छुट्टी मनाए हमने आपके लिए जो काम किया, उसमें कमी कहां रह गई, वह तो बताओ... मेरी गलती कहां रह गई वह तो मुझे बताओ... किस गलती की सजा मुझे दी गई है ?"
कभी-कभी शब्द साथ नहीं देते हैं... कितना भी आप उन्हें साधने की कोशिश करें, परंतु मुंह से शब्द कुछ और निकल रहे होते हैं लेकिन बॉडी लैंग्वेज कुछ और कह रही होती है... और वह बॉडी लैंग्वेज भारत की जनता भलीभांति सुन पा रही थी.. मोदी जी बोल कुछ और रहे थे लेकिन उनकी बॉडी लैंग्वेज कुछ और कह रही थी, जिसे देखते हुए भारत की जनता भलीभांति समझ रही थी कि हमारे प्रधानमंत्री को उस बात की सजा दी गई है जो गलती उसने की ही नहीं है,, और यहीं से सहानुभूति की वह लहर उठी जिसने महाराष्ट्र में वैसा ही कुछ कर दिखाया जैसा इसी भारत की जनता ने 1984 में 415 सीट राजीव गांधी को देकर किया था,, ूतो_न_भविष्यति जैसी स्थिति भारत की जनता ने उस बार जो दिखाई थी, वही इस बार दिखा दिया महाराष्ट्र की जनता ने... देख सको तो देख लो,, मोदी के लिए सहानुभूति की जो लहर चार जून को उठी थी वह ईवीएम तक खींच कर ले गई... और तब तक नहीं शांत हुई जब तक #कमल के निशान पर उंगली दब नहीं गई...