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Vera Prakashan साहित्यिक पुस्तकों का नया घर

नववर्ष सबके लिए शुभ हो...
01/01/2025

नववर्ष सबके लिए शुभ हो...

नए साल में आने वाली, नई किताब--------------------------------------------------------------तनाव अब बेअसर : मनीष शर्मा (त...
30/12/2024

नए साल में आने वाली, नई किताब
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तनाव अब बेअसर : मनीष शर्मा (तनाव मुक्त जीवन प्रबंधन के सूत्र)
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आज के तेज़ रफ़्तारक और प्रतिस्पर्धी युग में तनाव हमारी दिनचर्या का ऐसा अनचाहा हिस्सा बन चुका है, जिसे नकारना कठिन है। परंतु, क्या तनाव से मुक्ति संभव है? मनीष शर्मा की समाधानपरक पुस्तक 'तनाव अब बेअसर' इसी ज्वलंत प्रश्न का उत्तर देती है।

यह पुस्तक मात्र एक विषय की चर्चा नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला का ऐसा व्यावहारिक मार्गदर्शन है, जो तनाव रहित, संतुलित और आनंदपूर्ण जीवन की ओर प्रेरित करती है। लेखक ने तनाव के विविध पहलुओं—मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक—का गहन विश्लेषण करते हुए इसे एक सहज, सृजनात्मक और समाधानपूर्ण दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है।

पुस्तक में 32 अध्यायों के माध्यम से तनाव के स्वरूप, उसके कारणों और उसके प्रबंधन के व्यापक और बहुआयामी पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। इनमें तनाव की ऊर्जा का नियोजन, मन और शरीर को शांत करने की प्रक्रिया, मूड बदलने के सरल उपाय, प्रकृति सान्निध्य और संगीत से तनाव-मुक्ति जैसे विषय शामिल हैं। इसके साथ ही, परीक्षाओं के दौरान तनाव प्रबंधन, सार्वजनिक भाषण और इंटरव्यू के तनाव से निपटने की विधियाँ, और महिलाओं तथा गृहिणियों के लिए विशेष सुझाव जैसे अध्याय इसे हर वर्ग के पाठकों के लिए प्रासंगिक बनाते हैं।

— स्वामी ध्यान असीम, ओशो संन्यासी और साधक (पुस्तक की भूमिका से)

नए साल में आने वाली, नई किताब--------------------------------------------------------------सपनों की धरती का सफ़र : मनमोह...
30/12/2024

नए साल में आने वाली, नई किताब
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सपनों की धरती का सफ़र : मनमोहन ​भिंडर | अनुवाद : सुजाता
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यह किताब मनमोहन भिंडर के जीवन की रोंगटे खड़े करने वाली सच्ची कहानी है। बल्कि यूँ कहें कि उनके जीवन की सच्चाई है, जो उनके नाम के अनुरूप मन को मोहती है। वह कैसे जोखिम भरा स.फर तय करने के बाद ग्वाटेमाला और मैक्सिको के जंगलों से बच कर अपने सपनों के देश अमेरिका पहुँचे। पाठक एक बार शुरू करने पर पुस्तक ख़त्म करके ही दम लेता है, बीच में छोड़ नहीं पाता। लेखक के कहने का तरीका बेहद दिलचस्प है, जो अंत तक पाठक को बाँध कर रखता है।
— सुजाता, कवि-अनुवादक (पुस्तक की भूमिका से)

29/12/2024

साहित्य तक "बुक कैफे टॉप 10" कविता पुस्तकों में वेरा प्रकाशन से प्रकाशित अनु चक्रवर्ती की पुस्तक "उदासियों की उर्मियाँ" ने भी जगह बनाई है। अनु जी को बहुत-बहुत बधाई और "साहित्य तक" के प्रति आभार💐💐💐

नए साल में आने वाली, नई किताब--------------------------------------------------------------मशरिक़ी हूर : पंडित राधेश्याम ...
29/12/2024

नए साल में आने वाली, नई किताब

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मशरिक़ी हूर : पंडित राधेश्याम कथावाचक | संपादन : हरिशंकर शर्मा
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आवरण चित्र : NSD के सौजन्य से

नए साल में आने वाली, नई किताब--------------------------------------------------------------गिलुभाई एवं अन्य कहानियां : व...
28/12/2024

नए साल में आने वाली, नई किताब

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गिलुभाई एवं अन्य कहानियां : विवेक कुमार मिश्र
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नए साल में आने वाली, नई किताब--------------------------------------------वेरा प्रकाशन की कथा एवं कथेतर पांडुलिपि प्रकाशन...
28/12/2024

नए साल में आने वाली, नई किताब
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वेरा प्रकाशन की कथा एवं कथेतर पांडुलिपि प्रकाशन योजना में चयनित पुस्तक-10

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एक परेशान आत्मा : द्वारिका वैष्णव के व्यंग्य
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आवरण : रोमी भगवानी

नए साल में आने वाली, नई किताब---------------------------------वेरा प्रकाशन की कथा एवं कथेतर पांडुलिपि प्रकाशन योजना में ...
27/12/2024

नए साल में आने वाली, नई किताब
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वेरा प्रकाशन की कथा एवं कथेतर पांडुलिपि प्रकाशन योजना में चयनित पुस्तक-9
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उसके आने से पहले : मार्टिन जॉन की कहानियाँ
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नए साल में आने वाली, नई किताब---------------------------------वेरा प्रकाशन की कथा एवं कथेतर पांडुलिपि प्रकाशन योजना में ...
25/12/2024

नए साल में आने वाली, नई किताब
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वेरा प्रकाशन की कथा एवं कथेतर पांडुलिपि प्रकाशन योजना में चयनित पुस्तक-8
स्मृतिलोक से चिट्ठियाँ : पंकज मिश्र, कैलाश मिश्र
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पंकज और कैलाश की इन चिट्ठियों को पढ़ते हुए, अपने भीतर एक अपराधबोध और ख़लिश उगती है और चचा ग़ालिब का ये शे'र याद आता है। मोबाइल और डेटा क्रांति के इस युग में जो कोमलताएँ हमसे छूटती गयी हैं, उनमें मासूमियत का यह रूप प्रमुखता से शामिल है। इन चिट्ठियों को पढ़ते हुए कभी आप मुस्कराते हैं, कभी हैरत से भरते हैं और कभी अ.फसोस भी होता है कि हम चीज़ों को छिन जाने के बाद ही उनकी असली कदर कर पाते हैं। इनमें एक बेलौस ईमानदारी है और इन्हें सच्चाई की स्याही में कलम डुबो कर लिखा गया है। लगता है लिखने वाला अकेले में बैठा अपने सबसे सच्चे पलों से मुख़ातिब है और अपने दोष गिनाते हुए उसे किसी की परवाह नहीं है। इस हिम्मत और सा.फगोई को दिल तोड़ने वाले अनुभवों और मुहब्बत भरे दिल की दरकार होती है। यह जानकर कि ये चिट्ठियाँ, सोशल मीडिया पर चिट्ठियाँ लिखने की ज़िद के साथ लिखी गयी हैं; दोनों लेखकों के पुरानी सौगातों से लगाव और तकनीक की अंधी गति से विरोध के तौर पर भी देखा जा सकता है।

— विमल चंद्र पांडेय , कहानीकार, फ़िल्म निर्देशक

नए साल में आने वाली, नई किताब------------------------------------------------शेष फिर | डॉ. अजित के ख़त------------------...
24/12/2024

नए साल में आने वाली, नई किताब
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शेष फिर | डॉ. अजित के ख़त
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देखा जाए तो— ख़त, ख़लिश और .ख्वाब तीन काल हैं। अतीत, वर्तमान और भविष्य के मध्य एक सुरंग बनाने के लिए, शब्दों को अंतस में अलग-अलग ढंग से उकेरने के लिए यह पुस्तक उपयोगी हो सकती है।
'शेष फिर' किसी निर्णय या अनुभव को अंतिम नहीं मानती है, बल्कि कहे और लिखे गए से इतर बहुत कुछ अनकहा रह गया है, इस संभावना को जीवित रखती है।
उम्मीद ज़िंदगी की सबसे ख़ूबसूरत शय होती है, यह इसी उम्मीद को बचाती है कि तमाम आशंकाओं और हीनताओं के बावजूद कल के लिए हम ख़ुद को बचा पाने में सफल हो जाते हैं।
यह पुस्तक प्रश्नवाचक और पूर्णविराम से हटकर जीवन के मनोवैज्ञानिक विस्मय का व्याकरण गढ़ने का एक प्रयास है, ताकि हम अँधेरे में वो सब लिख, पढ़, सुन सकें,जिसके ज़रिए जीवन आगे बढ़ता है। यह समय के अनुशासन से लगभग मुक्त है, इसलिए इसमें संगृहीत ख़तों पर मौसमों की मार नहीं पड़ती है, बल्कि इनके ज़रिए मन के उस मौसम का सही पंचांग पता चलता है, जो काल गणना में आचार्यों से कहीं छूट गया था।
(पुस्तक के ब्लर्ब से)
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पुस्तक का यह सुंदर आवरण बनाया है सुपरिचित चित्रकार सविता जाखड़ ने

नए साल में आने वाली, नई किताब------------------------------------------------समय ने समझाया | सिद्धेश्वर सिंह का कविता-सं...
23/12/2024

नए साल में आने वाली, नई किताब
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समय ने समझाया | सिद्धेश्वर सिंह का कविता-संग्रह
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सिद्धेश्वर मैदान और पहाड़ को जोड़ने वाले कवि हैं। उनकी कविता में नदियों का बहता जल है। वन और वनस्पतियाँ, सूर्योदय और सूर्यास्त है। ऋतुएँ हैं। इस जुड़ाव में जहाँ स्मृतियाँ फूल की तरह खिलती हैं, वहीं वर्तमान की खड़ी चढ़ाई श्लथ कर देती है। इस यात्रा का अंतहीन होना ही इसे त्रासद बनाता है। रौशनी की तलाश में कवि ऐसी यात्राएँ करते रहे हैं।

सिद्धेश्वर का समय सच और झूठ के सम्मिलन का है। झूठ के भंवर में सच के डूबते-उपराते तिनके को उनकी कविता पा लेना चाहती है। दृश्यों में अदृश्य ही उनका लक्ष्य है। स्मृतियाँ उनकी कविता का तलघर हैं। पर वे छीज रही हैं। उन्हें पालतू चूहे अपने नुकीले दाँतों से कुतर रहे हैं। सुंदर की राख गिर रही है। स्थानापन्न कुरूप है। सबकुछ अधूरा है। कवि को अपने निरर्थक होने का एहसास बराबर बना रहता है।

अपनी भाषा से बेगानापन आधुनिक भारत की देन है। राष्ट्रभाषा की आकांक्षा ने मातृभाषाओं का गला घोंट दिया। उसकी घुटी-घुटी आवाज़ें जब-तब कविता में सुनाई पड़ती हैं। अपने लिखे से अजनबियत महसूस होती है। सिद्धेश्वर की 'भोजपुरी' ऐसी ही भाषाओं का विलाप है। और, इसलिए वह दूसरी भाषाओं के अकेलेपन को भी गाने बैठ जाती है हिन्दी में। एक भरथरी गायक है जिसकी आवाज़ सारंगी की ही तरह अब सुनाई नहीं पड़ती।

सिद्धेश्वर का यह दूसरा ही संग्रह है, पर इसकी सांद्रता बताती है कि समय ने उन्हें बहुत मथा है। पूर्वज कवियों से यह समृद्ध है और इसका वितान विस्तृत है। समय की समझ और कविता की पहुँच के लिए इस संग्रह को याद रखा जाएगा।

— अरुण देव

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आवरण : अनु प्रिया

साहित्यिक पारिवारिक मासिकी "सोच विचार" में पं. राधेश्याम कथावाचक (बरेली) के नाटक 'वीर अभिमन्यु' की समीक्षा प्रकाशित हुई ...
22/12/2024

साहित्यिक पारिवारिक मासिकी "सोच विचार" में पं. राधेश्याम कथावाचक (बरेली) के नाटक 'वीर अभिमन्यु' की समीक्षा प्रकाशित हुई है। समीक्षा की है लेखक-समीक्षक रवि प्रकाश ने। वेरा प्रकाशन से प्रकाशित यह पुस्तक 'वीर अभिमन्यु' नाटक का संपादित संस्करण है। संपादन वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर शर्मा ने किया है। यह नाटक पारसी रंगमंच का पहला हिन्दी नाटक है और अपने समय में ख़ासा चर्चित और लोकप्रिय रहा है।

नए साल में आने वाली, नई किताब------------------------------------------------ठीक समानांतर | लक्ष्मी घोष का कविता-संग्रह-...
22/12/2024

नए साल में आने वाली, नई किताब
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ठीक समानांतर | लक्ष्मी घोष का कविता-संग्रह
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समकालीन कविता के संदर्भ में कहा जाता है कि वह अनुभूतियों के धरातल पर पली-बढ़ी कविता है। वहाँ संवेदना और महसूस किए गए को हू-ब-हू दर्ज करने की प्रवृत्ति की प्रमुखता है, जिस में जीवन के कड़वे सत्य वैसे ही दर्ज किए जाते हैं, जैसे वे दिखते हैं।
समकालीन कविता के रूपहले क्षितिज पर चमकने का प्रयत्न करती कवि हैं-लक्ष्मी घोष, जिनका काव्य संग्रह ‘ठीक समानांतर’ वेरा प्रकाशन से शीघ्र आ रहा है। इस किताब में शामिल कुछ कविताओं को काव्यात्मक गद्य की संज्ञा भी दी जा सकती है, लेकिन वे मूलरूपेण कविताएँ ही हैं। उन में कविता के समान ही काव्य संवेदना का पुट है और वे कविता की तरह ही हमारे संग पाठकीय यात्रा करती हैं।
‘ठीक समानांतर’ में शामिल कविताएँ, जीवन के कंटीले पथ पर नंगे पैर चलते मनुष्य का आख्यान हैं। ये कविताएँ दफ़्तर की डायरी के पीछे लिखे गए नोट्स भी हैं, रोज़नामचे भी हैं और कल्पना की उड़ान के बिंब भी हैं। ये महज़ कविताएँ नहीं हैं, ये एक जीवन को काग़ज़ पर खींच लाने की जद्दो-जहद है और कामयाब जद्दो-जहद है।
इस संग्रह में शामिल कविताएँ अनुभूतियों के स्तर पर शीर्षस्थ हैं और इन में मुक्ति के स्वप्न देखते मनुष्य रूपी परिंदे की फड़फड़ाहट की गूँज हैं। ‘ठीक समानांतर’ की कविताएँ, जीवन के समानांतर चलती उथल-पुथल, विछोह-मिलन, मुक्ति-क़ैद और दर्ज करने की बेचैनी की बानगी हैं। अगर आप भी इस रंग में रंग कर स्वयं-मुक्ति की यात्रा के साक्षी बनना चाहते हैं, तो यह काव्य संग्रह पढ़ सकते हैं।
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आवरण छायाचित्र : सुस्थिर घोष

संन्यासी और जंगली हवा (3-19वीं सदी तक की प्रमुख चीनी ज़ेन कविताएँ) : हिन्दी अनुवाद : जतिंद्र औलख Jatinder Aulakh--------...
21/12/2024

संन्यासी और जंगली हवा (3-19वीं सदी तक की प्रमुख चीनी ज़ेन कविताएँ) : हिन्दी अनुवाद : जतिंद्र औलख Jatinder Aulakh
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हममें से कितने लोग जानते हैं ज़ेन परम्परा के बारे में? शायद बहुत कम। अधिकतर 'ज़ेन' का तात्पर्य 'जैन' ही समझते हैं।

ज़ेन परम्परा को जानने के लिए, हमें पीछे दूर तक जाना पड़ेगा। ज़ेन परम्परा के विकास की जड़ें हमें शाक्यमुनि बुद्ध के अनुभव में मिलती हैं, जिन्होंने पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व भारत में ध्यान की मुद्रा में जागृति का अनुभव किया था।
भारत में ज़ेन दर्शन या संप्रदाय को कई ध्यान शिक्षकों ने जाना-अपनाया। आधुनिक युग के प्रमुख ध्यान गुरु, ओशो रजनीश ने अपने व्याख्यानों में कई बार ज़ेन, परम्परा की शिक्षाओं, कथाओं, कविताओं का उल्लेख किया है।
वाकई, ज़ेन परम्परा की शिक्षाएँ आध्यात्मिक जगत में आत्मज्ञान के प्रत्यक्ष अनुभव की अनूठी मिसाल हैं। ज़ेन परम्परा की कथाओं, कविताओं से गुज़रना एक विलक्षण अनुभव से गुज़रना है।

X X X

इन कविताओं का परिवेश प्रकृति है। मानो प्रकृति ही सभी जटिल सांसारिक समस्याओं का सहज निदान है। यह बात कहने से, उतनी प्रभावी नहीं लगती। यह ही क्यों, कोई भी बात कितनी प्रभावी होगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह किसने कही है। सूचना अथवा जानकारी के बतौर कही गई बात, सि.र्फ उतना ही मूल्य रखती है, जितना बाज़ारू मूल्य देकर वह ख़रीदी गई है। वह, प्रमाणिक और प्रभावी भी उतनी ही होगी। उसका असर भी उतनी सी देर ही रहेगा, लेकिन जब कोई बात लम्बे जीवनानुभव से निकल कर आती है। जब कोई बात कहीं सुनी या पढ़ी गई होने के बजाय अनुभव से गुज़री होती है तब उस बात का असर और मूल्य कुछ और ही होता है।

X X X

अनुवाद, किन्हीं दो संस्कृतियों के बीच भाषा की खिड़की है। अनुवाद, किसी रचनाकार की रचनात्मक कसौटी भी है। रचनात्मक अनुवाद मात्र शाब्दिक अनुवाद नहीं हो सकता, वह रचना का भाविक रूपान्तरण है। इसे पुनर्रचना कहें तो ज़्यादा उचित होगा। अनुवाद की कसौटी, उस अनुवाद का अनूदित न लगना है।

मेरी समझ और अनुभव कहता है— कविताओं के इस निरे नीरस, अनावश्यक अनर्थक शाब्दिक उत्तेजन उद्वेलन, और क्षोभ भरे समय में, इन कविताओं से गुज़रना, किसी भी सुहृदय पाठक के लिए विलक्षण अनुभव हो सकता है।

— अम्बिकादत्त, कोटा (राज.)
(पुस्तक की भूमिका से)

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