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सम्पादकीय

गौरवपूर्ण,ईमानदार व जुझारू पत्रकारिता के लिए प्रधानमंत्री को पत्र

माननीय प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री महोदय, सादर वन्दे मातरम्! मैं इस देश का / आपके प्रदेश का एक साधारण नागरिक हूँ तथा विगत डेढ़ दशक से पत्रकारिता से जुड़ा हूँ। मैं अपने इस पत्र के माध्यम से पत्रकारिता से जुडे एक बेहद अहम मसले को आपके ध्यान में लाना चाहता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि आप इस पत्र में दर्शाई गई ईमानदार व राष्ट्रभक्

त पत्रकारों की पीड़ा को समझेंगे तथा सुझाए गये उपाय पर सकारात्मक कदम उठाकर न सिर्फ पत्रकारिता वरन् भारत देश के विकास को एक नई गति व दिशा देंगें।

महोदय, ‘पत्रकारिता’ व ‘राष्ट्रहित’ दो ऐसे शब्द हैं जो जितने अधिक महत्वपूर्ण हैं उनके प्रति उतनी ही कम प्रतिबद्धता हमारी लोकतांत्रिक सरकारों नें आजादी के दिन से आज तक दिखाई है। किसी भी सभ्य समाज में ‘पत्रकारिता’ की अपरिहार्यता व महत्व से कोई इनकार नहीं कर सकता है। सही मायनों में पत्रकारिता का जन्म ही समाज व लोकतंत्र के रक्षक के रूप में हुआ है। लेखन,प्रसारण संबंधी वे सभी गतिविधियाँ ‘पत्रकारिता’ कहलाती हैं जिनसे की समाज व लोकतंत्र की कमियाँ सामने आती हों तथा समाज को निरन्तर एक सकारात्मक मार्गदर्शन प्राप्त होता हो। यहाँ खास बात यह है कि पत्रकारिता की प्रतिबद्धता सदैव ‘देश की जनता’ के प्रति होती है। यदि कोई भी व्यक्ति देश हित के बजाय किसी अन्य के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने वाला लेखन या प्रसारण करता है तो उस व्यक्ति विशेष को ‘ख़बर लेखक’ से लेकर कोई भी संज्ञा दी जा सकती है परन्तु उसे ‘पत्रकार’ तो कदापि नहीं कहा जा सकता है क्योंकि पत्रकार की प्रत्येक सांस में; उसके द्वारा लिखे गये प्रत्येक शब्द में राष्ट्रहित व समाजहित की भावना ही सर्वोपरी होती है। सिर्फ ऐसी ही पत्रकारिता के बारे में नेपोलियन ने कहा था कि वो हजारों संगीनों की बजाय एक समाचारपत्र से अधिक डरता है। आज अधिकांश तथाकथित ‘पत्रकार’ पत्रकारिता करने का भ्रम फैलाकर समाज में प्रतिष्ठा व शक्ति तो पाना चाहते हैं परन्तु इस बात पर विचार करने को बिलकुल भी तैयार नहीं हैं कि क्या वे समाज में प्रतिष्ठा पाने के हकदार हैं? क्या वे सही मायने में ‘पत्रकारिता’ कर रहे हैं? गहन मंथन के बाद आज का लगभग हर पत्रकार इस निष्कर्ष पर पहुँचेगा कि यदि निष्पक्ष रूप से देखें तो आज हम ‘पत्रकारिता’ नहीं सिर्फ उसका दिखावा करने मात्र में लगे हैं; शायद इसीलिए समाज में लगातार पत्रकाराें की साख़ गिरती जा रही है और साख़ आखि़र गिरे क्यों नहीं अधिकांश तथाकथित पत्रकारों ने अपनी प्रतिबद्धता जनता के बजाय अपनी स्वार्थपूर्ति में सहायक व्यक्तियों के पास गिरवी जो रख दी है। अपनी प्रतिबद्धता गिरवी रखने वाले तथाकथित पत्रकारों व प्रतिबद्धता को गिरवी रखवाने वाले प्रशासक/राजनेता /कर्मचारी; सभी पक्षों की स्वार्थ पूर्ति निर्बाध रूप से जारी है परन्तु क्या जिससे पत्रकारिता को शक्ति प्राप्त हुई थी उस शक्तिपुंज को यानी देश की जनता को कुछ मिल रहा है? जब जनता को हमसे कुछ मिल ही नहीं रहा तो वो आखि़र क्यों हमें सम्मान देगी? महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जब पत्रकारिता का जन्म ही जनता के लिए हुआ है तो आखिर क्यों पत्रकारिता अपने पथ से भटक गई है? मेरी राय में इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है- पत्रकारिता के क्षेत्र में ‘पत्रकारिता’ को कैरियर मानने वाले लोगों का बाहुल्य । जब से पत्रकारिता के क्षेत्र में उसे कैरियर मानने वाले लोगों का प्रवेश हुआ है तभी से इस क्षेत्र में सिर्फ पत्रकारिता विहीन पत्रकारों की संख्या बढ़ी है। यक्ष प्रश्न यह है कि क्या पत्रकारिता एक ‘कैरियर’ है? यदि है तो क्या पत्रकारिता को कैरियर के रूप में अपनाकर हम देश की जनता के साथ पूरी तरह से न्याय कर सकते हैं? मेरी राय में तो ऐसा कदापि सम्भव ही नहीं है क्योंकि ‘कैरियर’ शब्द का अर्थ ही होता है-व्यवसाय,पेशा,उद्योग,आजीविका । यदि हम पत्रकारिता के साथ ‘कैरियर’ शब्द जोड़ दे ंतो इसका अर्थ हुआ पत्रकारिता के हथियार का व्यावसायिक रूप में आजीविकी कमाने के मुख्य मकसद से प्रयोग। जब पत्रकारिता के क्षेत्र में आजीवीका हमारा मुख्य मकसद होगी तो हम राष्ट्रहित के प्रति कितनी मात्रा में और कितने समय तक वफादार रहेंगें यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। पत्रकारिता को आजीविका का साधन मानते ही न तो विचारों की स्वतंत्रता प्राप्त हो सकती है,न ईमानदारी बच सकती है; न राष्ट्रहित का जज़्बा सुरक्षित रह सकता है और न ही पत्रकारिता के महत्वपूर्ण गुण आत्मसम्मान की रक्षा की जा सकती है वैसे भी जब हम पत्रकारिता के अंतिम लक्ष्य ‘लोकहित’ की रक्षा ही नहीं कर पाये तो ऐसी ‘पत्रकारिता’ से फायदा ही क्या हुआ? यदि हम पत्रकारिता को आजीविका के साधन की बजाय सिर्फ राष्ट्रसेवा का अवसर माने तो इस सिद्धांत को अपनाने वाला पत्रकार आखिर अपना जीवन यापन करेगा तो करेगा कैसे? आज पत्रकारों की दुविधा यह है कि उसे पत्रकारिता को कैरियर या सेवा में से किसी एक रूप में चुनना पड़ता है तय है कि अधिकांश लोग पहला विकल्प चुनते हैं,हमारे तथाकथित जनप्रतिनिधियों,भ्रष्ट कार्मिकों व सरकारों की हार्दिक इच्छा भी यही रहती है कि हम पत्रकारिता को अपने कैरियर के रूप में देखें क्योंकि ऐसा करते ही हम स्वहित के आगे राष्ट्रहित की बलि चढ़ा देते हैं तथा मात्र एक ‘खबर लेखक’ की हैसियत से अपने लेखन कौशल का प्रयोग निजी स्वार्थसिद्धि में सहायक जनप्रतिनिधियों,प्रशासकों,पूंजीपतियों व मीडिया मालिकों की स्वार्थसिद्ध में करने लग जाते हैं तथा राष्ट्र की जनता को कहते हैं ‘प्लीज वेट! यू आर इन क्यू ’ । खब़रों में जनहित के प्रति पूर्ण समर्पण का अभाव पाया जाता है, ऐसा भी नहीं है कि ख़बरों में बिलकुल जनहित नज़र नहीं आता है,खबरों में जनहित की झलक दिखती है परन्तु सिर्फ उतनी ही जितनी की स्वयं मीडिया को अपने अस्तित्व के लिए जरू़री होती है। स्वार्थी जनप्रतिनिधियों, प्रशासकों,राजकीय कर्मचारियों एवं सरकारों की हार्दिक इच्छा के विरूद्ध पत्रकारिता को सेवा के रूप में अपनाने वाले लोग संघर्षशील होते हैं वे भूखे रहकर भी निरन्तर संघर्ष करते हैं परन्तु भूखे पेट संघर्ष कितने दिन चल सकता है हम सब जानते हैं। एक दिन ऐसा संघर्षशील ,सच्चा व वास्तविक पत्रकार लोगों के हितों के लिए लड़ता हुआ भूखे पेट ही इस दुनिया से रूकसत हो जाता है तथा उस पत्रकार के परिजन उस दिन को कोसते रहते हैं जिस दिन उनके प्रिय ने पत्रकारिता के क्षेत्र में सेवा वाले विकल्प को चुना था। परिजनों का कोसना भी गलत नहीं है आखिर प्रत्येक व्यक्ति की देश के साथ-साथ अपने परिवार के पालन-पोषण की भी कुछ जिम्मेदारी तो बनती ही है। अब सवाल उठता है कि यदि पत्रकारिता कैरियर नहीं है यानी धन कमाने का साधन नहीं है तो इस क्षेत्र में मौजूद लोग और भविष्य में आने वाले लोग ,क्या पत्रकारिता को ‘भूखे मरने के लिए अपनाए’? एक प्रचलित कहावत है ‘ भूखे भजन ना होय गोपाला’ अर्थात् भूखे पेट रहकर भगवान का भजन करना भी सम्भव नहीं होता है और यदि कोई इसे संभव बनाने की कोशिश भी करे तो ऐसा भजन बहुत अधिक समय तक चल नहीं सकता है। ऐसे भजन की आयु बहुत कम होती है। उक्त कहावत वर्तमान समय के पत्रकारों व पत्रकारिता की पीड़ा को सटीक ढंग से व्यक्त करती है। पीड़ा यह है कि सिद्धांत रूप में कहा जाता है कि पत्रकारिता देश व समाज की सेवा का साधन है,आजीविका का साधन नहीं है। हम सब इस बात को प्रबलता से मानते भी हैं परन्तु पत्रकारिता का उक्त सिद्धांत पत्रकारों को जीवन-यापन हेतु जरू़री धन के अर्जन के सभी द्वार बन्द कर देता है। पत्रकार यदि ख़बर से संबंधित विपक्ष से धन की अपेक्षा करे तो वह भ्रष्ट व ब्लैकमेलर कहलाएगा और यदि ख़बर से संबंधित पक्ष से धन की अपेक्षा करे तो यह न सिर्फ अनैतिक होगा वरन् पेड़ न्यूज का कलंक अपने माथे मढ़ने जैसा कार्य होगा। जहाँ तक बात सरकारी व निजी विज्ञापनों से खर्चा निकालने की है तो कुछ बडे मीडिया ब्रांडों के अलावा अन्य मीडिया संस्थानों के लिए यह विकल्प भी सफेद हाथी ही सिद्ध होता है। विज्ञापनदाता पर उचित अनुचित दबाब डालने व विज्ञापन हेतु पत्रकारिता के मूल सिद्धांत यानी जनहित से समझौता नहीं करने वाले लोगों के लिए निजी तो छोड़ो सरकारी विज्ञापन प्राप्त करना भी लगभग असम्भव है। आजादी के बाद से आज तक की सरकारी विज्ञापन नीति सदैव ‘ग्रामीण व स्थानीय पत्रकारिता’ के बज़ाय केवल ‘पूंजीवाद मीडिया घरानों को पोषित करने वाली रही है जबकि राष्ट्र-हित की दृष्टि से ग्रामीण व स्थानीय पत्रकारिता कतिपय पूंजीवादी मीडिया घरानों की पत्रकारिता की तुलना में अत्यधिक प्रभावी होती है। कुल मिलाकर राष्ट्र-हित को समर्पित पत्रकारिता केवल स्वयं व अपने परिवार को भूखा मारने जैसा कार्य बनकर रह गई है एक ऐसा कार्य जिसकी जरू़रत राष्ट्र के अलावा शायद किसी को नहीं है। क्या ऐसा नहीं हो सकता ही राष्ट्रहितकारी ईमानदार पत्रकारिता भी हो जाये तथा पत्रकार को न तो भूखा मरना पडे ,न विज्ञापन आदि के लालच में चुप रहना पडे़,न ही अपने आत्मसम्मान से समझौता करना पडे़ और प्रत्येक सच्चे पत्रकार को यह संतुष्टि भी मिले की उसने राष्ट्रसेवक की भूमिका निभाई वो भी बिना अपने ईमान को बेचे व परिवार को भूखों मारे । मेरी राय में यदि हमारे जनप्रतिनिधि व सरकारें अपने निजी हितों की बजाय जनहित के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए कृत संकल्प हों तो ऐसा शत् प्रतिशत सम्भव है। इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकारों को ‘पत्रकारिता’ के क्षेत्र में ‘ख़बर भत्ता व प्रोत्साहन योजना’ लागू करनी चाहिए। इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक एक्सक्लूसिव ख़बर हेतु खबर संकलनकर्ता पत्रकार एवं उससे सम्बद्ध मीडिया संस्थान को 80 : 20 के अनुपात में कम से कम 10रू प्रति वर्ग सेमी की दर से ख़बर भत्ता दिया जाना चाहिए। ख़बर की एक्सक्लूसिवनेस के प्रमाण हेतु सरकारी स्तर पर ख़बर के ऑनलाईन पंजीकरण की व्यवस्था होनी चाहिए। यहाँ पत्रकार से हमारा तात्पर्य अधीस्वीकृत एवं गैर-अधीस्वीकृत दोनों प्रकार के पत्रकारों से है। अधिस्वीकृत पत्रकारों की सूची सरकार के पास उपलब्ध रहती ही है जबकि गैर-अधिस्वीकृत पत्रकारों की सूची प्रतिवर्ष प्रत्येक मीडिया संस्थान से अपडेट करवाते रहना चाहिए। सामान्य ख़बर भत्ते के अलावा आर्थिक अनियमितताओं को सटीक तथ्यों के साथ उजागर करने वाली प्रत्येक एक्सक्लूसिव ख़बर पर घोटाले की राशि का कम से कम 10 प्रतिशत बतौर प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। यदि सरकार वास्तव में चाहती है कि भ्रष्टाचार की चूलें हिलें तो उसे पत्रकारिता के क्षेत्र में उपरोक्त सुझाव को जरूरी विचार-विमर्श के बाद यथाशीघ्र लागू करना चाहिए। यदि सरकार ऐसा करती है तो पत्रकार एक ऐसी कौम का नाम है जो यदि सक्रिय हो जाए तो भ्रष्टाचार के सम्पूर्ण तंत्र की चूलें हिला डालेगी। सरकार का उक्त कदम न सिर्फ ईमानदार पत्रकारों को आत्मसम्मान के साथ आर्थिक सम्बल प्रदान करेगा वरन् कदम कदम पर राष्ट्र को पहुँचाई जाने वाली हानि से बचाएगा। सरकार का यह कदम देश में ईमानदार पत्रकारिता का मार्ग प्रशस्त करेगा। वर्तमान में स्थिति ये है सरकार ने पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय लोगों के लिए ईमानदारीपूर्ण व स्वाभिमानयुक्त पत्रकारिता का मार्ग पूरी तरह से बंद कर रखा है। आर्थिक मजबूरियों के तहत जहाँ एक ओर विभिन्न मीडिया घरानाें से वेतनभोगी के रूप में सम्बद्ध तथाकथित 90 प्रतिशत पत्रकार गम्भीर पूंजीवादी शोषण के शिकार हैं वहीं स्वतंत्र रूप से दैनिक,साप्ताहिक व पाक्षिक समाचार-पत्रों के संचालक पत्रकारों को गम्भीर आर्थिक कठिनाईयों के चलते मात्र परिवार-पालन की तो छोड़ो ,अपने सम्मान की रक्षा के लिए ही ऐड़ी से चोटी तक का जोर लगाना पड़ रहा है। वेतनभोगी पत्रकारों को जहाँ जॉब असुरक्षा व मामूली वेतन के चलते हर पल अपनी वाक् स्वतंत्रता (पत्रकारिता के सर्वप्रमुख गुण) से समझौता करना पड़ता है वहीं अधिकांश दैनिक,साप्ताहिक,पाक्षिक समाचार पत्र विज्ञापनों की आस में किसी के भी खिलाफ सच्चाई प्रकट करने से बचते हैं तथा सच्चाई का सौदा करने को मजबूर हो जाते हैं और जब वे मजबूरी के कारण भ्रष्टाचारियों से दुरभिसंधि कर लेते हैं तो लोग प्रत्येक ‘पत्रकार’ को ‘ब्लैकमेलर’ का खिताब दे डालते हैं। मैं ब्लैकमेलिंग का पक्षधर नहीं हूँ परन्तु सवाल ये उठता है कि क्या पत्रकारों के पास ईमानदारी से जीविकोंपार्जन का कोई तरीका सरकार ने छोड़ा है? नही ंना? वेतनभोगी पत्रकार कुछ हद तक इसके अपवाद हो सकते हैं परन्तु शोषण से पीडित इन ‘वाक् स्वतंत्रता विहीन’ लोगों पर लगा ‘पत्रकार’ का लेबल सिर्फ लेबल ही है ये किस हद तक और किस रूप में पत्रकारिता कर पाते हैं ये जगजाहिर है। आर्थिक तंगी से ग्रस्त अधिकांश ऐसे लोग पत्रकारिता को जरिया बनाकर सिर्फ भष्टों की कमाई में से अपना हिस्सा निकालने लगें हैं। मैं इसे पूरी तरह गलत नहीं कह सकता क्योंकि इसे हम गलत तो तब माने ना जब ईमानदार विकल्प उपलब्ध हों तथा कोई भ्रष्ट विकल्प को चुने। दैनिक,साप्ताहिक,पाक्षिक समाचारों के पास आय का एकमात्र स्रोत विज्ञापन हैं फिर वो चाहे सरकारी हों या निजी। समाचार संचालक विज्ञापनों के फेर में पत्रकारिता को ताक में रखने को मजबूर हो जाते हैं। बिना पैसे के समाचार-पत्र संचालक न तो मैन-पावर के माध्यम से समाचारों की गुणवत्ता ही बढ़ा पाते हैं और न ही अपनी प्रसार संख्या। किसी स्कैण्डल को उजागर करना व बिना लिए दिए छोड देना तो अपनी जेब से पैसा लगाना है क्योंकि सच उजागर होने पर समाचार-पत्र या ख़बर के लेखक पत्रकार को कोई आर्थिक लाभ नहीं होता है क्योंकि यदि ख़बर से सम्बद्ध पक्ष से धन की उम्मीद की जाये तो वह पेड न्यूज कहलाएगी और यदि विपक्ष से धन लें तो वह भी ब्लैकमेलिंग कहलाएगी व अनैतिक होगी। स्थिति यह है कि एक तरफ कुआं है और दूसरी तरफ खाई। हाँ यदि कोई सच उजागर करने की धमकी देकर रूपये ऐंठना चाहे तो ऐसी पीत-पत्रकारिता जैसा आय का शायद ही कोई कैरियर हो। मैं समझता हूँ कि मैने इस लेख के माध्यम से स्वाभिमानी व ईमानदार पत्रकारों की आर्थिक पीड़ा का उचित विवेचन का प्रयास किया है और पीड़ा निवारण का एक बेहद सरल,तर्कसंगत एवं व्यावहारिक उपाय सुझाने का प्रयास किया है। वैसे भी जब विधायक,सांसद जैसे जनप्रतिनिधि अपनी जनसेवा के बदले संतोषजनक वेतन व भत्तों का उपभोग करते हैं तो आखिर पत्रकार से बिलकुल भूखे पेट ईमानदार जनसेवा की उम्मीद आखिर क्यों? क्या राष्ट्र-हित के लिए पत्रकारों का जीवित रहना व श्रेष्ठ पत्रकारिता करना जरू़री नहीं है ? मैं पत्रकारों के लिए वेतन का समर्थन तो नहीं करता क्योंकि पत्रकार कभी वेतनभोगी हो ही नहीं सकता है परन्तु मैं पत्रकारों के लिए ‘ख़बर भत्ते एवं प्रोत्साहन राशि’ एवं पेंशन योजना पुरजोर समर्थन करता हूँ और अपील करता हूँ कि पत्रकारिता के क्षेत्र में आर्थिक स्वावलम्बन को प्रेरित करने वाले ऊपर वर्णित सुझाव पर त्वरित व सकारात्मक कदम उठाये। मुझे आशा ही नहीं वरन् पूर्ण विश्वास है कि केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा वर्तमान स्थिति पर गहन विचार कर जल्द ही ‘ग्रामीण व स्थानीय पत्रकारिता’ को प्रोत्साहित करने वाली नीति का पुर्ननिर्धारण किया जाएगा तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में ‘ख़बर भत्ता व प्रोत्साहन योजना अविलम्ब लागू की जाए।

मेरे प्यारे हमवतनों,जय हिंद!जैसा कि हम जानते हैं कि राजनीतिक दलों के आय का मुख्य स्रोत्र पूंजीपतियों द्वारा चंदे के रूप ...
09/11/2024

मेरे प्यारे हमवतनों,
जय हिंद!

जैसा कि हम जानते हैं कि राजनीतिक दलों के आय का मुख्य स्रोत्र पूंजीपतियों द्वारा चंदे के रूप में दिया गया धन होता है । ये धन इसलिए दिया जाता है ताकि देश की नीतियां पूंजीपतियों के पक्ष में बनाई जा सके। इसी पूंजी के बल पर राजनीतिक दल देश में पोलिंग बूथ लेवल तक नेटवर्किंग करते हैं, सहयोगियों का जाल बिछाते तथा जनता में अपना प्रचार बनाकर रखते हैं । कहने का अर्थ ये है कि राजनीतिक दलों की ताकत है पूंजीपतियों से प्राप्त धन द्वारा पोलिंग बूथ लेवल तक की गई उनकी नेटवर्किंग जोकि उन्होंने काफी श्रम,समय एवं धन खर्च करके तैयार की है, इसी नेटवकिंग के बल पर वो चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों को पहले अपना बंधुआ गुलाम बनाते हैं और फिर उन्हें अपना सिम्बल देकर अपने उम्मीदवार के रूप में जनता के बीच अवतार बनाकर उतारते हैं और प्रचार के माध्यम से जनता के अमूल्य वोट की संगठित लूट करते रहते हैं और वोट की लूट के बाद वो सेवक होने के बावजूद जनता के भाग्य विधाता बन बैठते हैं जबकि उनका पूरा ध्यान और समय सिर्फ अपना एवं अपने दल का एवं पूंजीपतियों का हित साधने में लगा रहता है।

यदि यही नेटवकिंग पूंजीपतियों के हाथों बिके हुए राजनीतिक दलों की बजाय जनता स्वयं किसी प्रेशर ग्रुप के रूप में छोटे —छोटे अंशदान के माध्यम से स्वयं कर ले तो क्या जन—नियंत्रित उम्मीदवारों को जिताना संभव नहीं हो सकेगा ?

जनता की नेटवर्किंग की संभावना से जुड़े जरूरी प्रश्न जो हमें अपने आप से पूछने हैं ————

1——भारत में प्रत्येक पोलिंग बूथ पर औसतन 1100 से 1500 मतदाता होते हैं । क्या इन 1100—1500 लोगों में से हमें एक व्यक्ति, निस्वार्थी या थोड़ा कम स्वार्थी और देश के लिए सोचने वाला मिल सकता है ?

2———प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में करीब 150 से लेकर 300 पोलिंग बूथ होते हैं । यदि हमें एक पोलिंग बूथ से एक आदमी नि:स्वार्थी या थोड़ा कम स्वार्थी और देश के लिए सोचने वाला मिल जाए तो क्या उन्हें संगठित करके एक विधानसभा क्षेत्र में करीब 150 से 300 लोगों की स्थाई टीम बनाना संभव है ?

3——एक विधानसभा क्षेत्र में करीब 150 से 300 लोगों की स्थाई टीम बन जाए तो क्या इन 150 से 300 लोगों में से उनकी विशेषज्ञता या रूचि के क्षेत्र के आधार पर क्षेत्र में विषयवार नागरिक समितियों का निर्माण किया जा सकता है ?

4——यदि हमारे किसी विचार या समस्या के साथ एक अपील पर विधानसभा क्षेत्र के 150 से 300 लोग हमारा शारीरिक, मानसिक,आर्थिक, बौद्धिक एवं तकनीकी तौर पर सहयोग करने लग जाए तो क्या हम भय मुक्त होगें या नहीं ? क्या हमें शक्ति का आभास होगा या नहीं ?

5——यदि विषयवार बनाई गई विशेषज्ञों की समिति सार्वजनिक एवं निजी समस्याओं से जुड़े पहलुओं पर हमें परामर्श देने में लग जाएं । क्या हमारी स्थिति आज से बेहतर कल वाली होगी या नहीं ? हमारी समस्या से मुक्त होने की संभावना बढ़ेगी या नहीं ?

6——यदि एक विधानसभा क्षेत्र में 150 से 300 सक्रिय लोगों की रोजगारशुदा स्थाई टीम हो तो क्या राजस्थान में प्रदेश स्तर पर 30 हजार से 60 हजार लोगों की स्थाई टीम बन सकती है या नहीं ?

7——यदि प्रदेश के ये 30 से 60 हजार लोग अपने साथ 100—100 लोगों को 'मीडिया मित्र एवं राष्ट्र सेवक' बनने हेतु तैयार कर लें तो क्या राजस्थान प्रदेश स्तर पर 30 से 60 लाख लोगों का मजबूत प्रेशर ग्रुप बन सकता है या नहीं ?

8— यदि प्रेशर ग्रुप में शामिल 30 से 60 लाख लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति मात्र 10 या 20 मतदाताओं को इस संकल्प के लिए तैयार कर ले कि हमें ऐसे किसी भी व्यक्ति को वोट नहीं देना है जो 'जन—संप्रभुता' एवं जन—नियंत्रण को एक लिखित एग्रीमेंट के माध्यम से स्वीकार ना कर ले । तो क्या यह संकल्प प्रदेश के करीब तीन से छ करोड़ लोगों तक नहीं पहुंचाया जा सकता है ?

9——यदि राजस्थान प्रदेश के तीन से छ: करोड़ लोग संकल्पबद्ध होकर जन—प्रतिनिधित्व के इच्छुक उम्मीदवारों के सामने '​लिखित सर्विस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर के बिना वोट ना देने की घोषण कर दें तो क्या ऐसी स्थिति में क्या, ऐसा कोई भी व्यक्ति, चाहे वो किसी भी पार्टी का क्यों ना हो, चुनाव जीत सकता है जिसने लिखित सर्विस एग्रीमेंट करने से इंकार कर दिया हो ?

9——यदि जनता के पास जनप्रतिनिधि का लिखित सर्विस एग्रीमेंट आ जाए हो तो क्या हमारे जन—प्रतिनिधि पर जन—इच्छा,जन—हित,जन—मार्गदर्शन,जन—नियंत्रण एवं जन उत्तरदायित्व की लगाम लगाई जा सकती है ?

10——यदि हमारे जन—प्रतिनिधि 'जन नियंत्रण' में आ जाएं तो क्या राजनीतिक दलों के आलाकमान हमारे जन—प्रतिनिधि को अपना गुलाम बनाकर रख सकते हैं ? क्या वे उसे अपने या दलीय हित में काम करने को मजबूत कर सकते हैं ? याद रहे आलाकमान सिर्फ टिकट दे सकता है, वोट देने की क्षमता तो सिर्फ और सिर्फ हम यानी हम भारत के लोगों में ही है । टिकट के बिना तो जीतना संभव है परंतु क्या वोट के बिना भी जीतना संभव है ?

11——यदि हमारे जन—प्रतिनिधि राजनीतिक दलों के आलाकमानों की गुलामी से मुक्त हो जाए यानी उनके नियंत्रण या उनके पिंजरे से आजाद हो जाए तो क्या कोई भी पूंजीपति खाली पिंजरों वाले राजनीतिक दलों को एक पैसे की भी धनापूर्ति करेंगा ?

12——यदि पूंजीपति राजनीतिक दलों को धनापूर्ति करना बंद कर दें और राजनीतिक दल के आलाकमान की ताकत समाप्त हो जाए तथा जन—प्रतिनिधियों पर जन निंत्रण स्थापित हो जाए तो देश की नीतियां पूंजीपतियों के हित में बनाई जाएंगी या जनता के हित में ?

13——यदि हमारे जन—प्रतिनिधि जन—इच्छा के अनुसार जन—हित को ध्यान में रखकर जन—मार्गदर्शन, जन— नियंत्रण एवं जन—उत्तरदायित्व के अधीन रहकर नीतियाँ बनाने लग जाएं तो क्या 'समस्या मुक्त भारत' का सपना धरातल पर उतर सकता है ? क्या हमारा कल आज से बेहतर हो सकता है ?

यदि हां तो इंतजार किस बात का है । जनता की नेटवर्किंग के हमारे इस अभूतपूर्व अभियान में जुड़ जाएं, बैस्ट रिपोर्टर के मीडिया मित्र एवं जन संप्रभुता संघ के राष्ट्रसेवक बने तथा राष्ट्र—उत्थान', रोजगार एवं 'आत्म—कल्याण' के संयुक्त व अभूतपूर्व अवसर का लाभ उठाएं ।

हमसे जुडने के लिए नीचे दिए गए लिंक/क्यूआर कोड़ की सहायता से अपना बायोडेटा प्रेषित करें । बायोडेटा भेजने हेतु निर्धारित लिंक इस प्रकार है —

https://forms.gle/45ffbQkSH7n7Z3rd9

बायोडेटा से सामान्य संतुष्टि के बाद बायोडेटा में दर्ज आपके मोबाईल नम्बर एवं मेल आई.डी. के माध्यम से आपके साथ आवेदन प्रक्रिया व पात्रता संबंधी जानकारीयां साझा की जाएंगी ।

धन्यवाद!
जय हिंद! जय भारत! जय जगत ।

शुभेच्छु!
अनिल यादव
सम्पादक,बैस्ट रिपोर्टर न्यूज।
अध्यक्ष,जन संप्रभुता संघ ।
9414349467

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22/10/2024

"ख़बर से जुड़े सभी पक्षों को सुनकर तथा अपने नज़रिए को सतपक्ष रखकर, समाज को सही दिशा देने की नीयत से की जाने वाली पत्रकारिता ही सच्ची पत्रकारिता होती है। "

आपकी राय आमंत्रित है।

19/10/2024

'सतपक्ष मीड़िया', न्यायपालिका के बाद आज की सबसे बड़ी आवश्यकता
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प्रिय देशवासियों!

कुछ कायर,चापलूस एवं लोभी प्रवृत्ति के लोगों ने अपनी मूर्खता व धूर्तता से मीडिया को 'प्रेश्या' बनाकर रख दिया है, यानी पैसा फेंक,तमाशा देख ।

मर्यादा,जिम्मेदारी,आत्मस्वाभिमान,न्याय व जनहित के प्रति जुनून या तड़प को कुछ लोगों ने अपने लालच की अग्नि में भस्म कर दिया है,तो कुछ लोगों ने 'पेट की आग' के चलते सत्ताधीशों व पूंजीपतियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है।

राष्ट्र निर्माण की बजाय राष्ट्र में असत्य,अविश्वास,अनिश्चितता व नफ़रत के वातावरण का निर्माण करना एवं जनहित की बजाय स्वहित को सर्वोपरी मानने की संकल्पना ही आज के 'न्यू इंडिया' के पथभ्रष्ट मीड़िया की उपलब्धि है।

याद रहे राष्ट्र किसी जमीन के टुकड़े का नाम नहीं है,राष्ट्र बनता है जीते जागते इंसानों से,उस जमीन पर रहने वाली जनता से ।

इसलिए जनहित भुलाकर दिनरात राष्ट्र—हित का शाब्दिक झुनझुना बजाना, सत्ताधीशों द्वारा अपनी नाकामी को छुपाने तथा जनता को धोखा देने के धूर्त प्रयास से अधिक कुछ नहीं होता है ।

जनहित से मुहँमोड़ कर राष्ट्र विकास की दौड़ का दावा करना देश से धोखा है,गद्दारी है ; जनता को इस खुशफहमी में डुबोकर रखना; मीड़िया,सत्ताधीशों एवं पूंजीपतियों की मक्कारी है।

जनता को इस मक्कारी को पहचानना ही होगा ।

वर्तमान परिस्थितियों में जनहित के प्रति पूर्णत: समर्पित यानी 'सतपक्ष मीड़िया'; न्यायपालिका के बाद आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है ।

'सतपक्ष मीडिया' के सृजन में और उसके पालन पोषण एवं संरक्षण में तन—मन—धन से हर सम्भव सहयोग देना, किसी भी देश—प्रेमी द्वारा देश को दिया जाने वाला सबसे उपयोगी उपहार एवं अविस्मरणीय योगदान सिद्ध होगा ।

यदि आप विचारर से सहमत हैं तो बैस्ट रिपोर्टर के 'मीडिया मित्र' बनकर सतपक्ष मीडिया सृजन, नागरिक शक्ति सृजन, शिक्षा, रोजगार, व्यापार, सहकार, सदाचार एवं आत्मविकास के साथ राष्ट्र उत्थान के अभूतपूर्व संगम से जुड़ने के लिए नीचे दिए गए सम्पर्क नम्बरों पर सम्पर्क करें ।

शुभेच्छु!

अनिल यादव
सम्पादक,बैस्ट रिपोर्टर न्यूज
संस्थापक अध्यक्ष,सतपक्ष पत्रकार मंच
संस्थापक अध्यक्ष, जन संप्रभुता संघ
9414349467

15/10/2024
दैनिक लोकमत के संपादक सम्माननीय श्री अशोक माथुर जी के निधन का समाचार बेहद कष्टकारी है। श्री अशोक माथुर बेहद सरल,सौम्य एव...
14/10/2024

दैनिक लोकमत के संपादक सम्माननीय श्री अशोक माथुर जी के निधन का समाचार बेहद कष्टकारी है। श्री अशोक माथुर बेहद सरल,सौम्य एवं कर्तव्यनिष्ठ इंसान थे । श्री मा​थुर के निधन से पत्रकारिता जगत को अपूर्णीय क्षति हुई है। परमात्मा दिवंगत आत्मा को सद्गति प्रदान करे ।

13/10/2024

झूठा व्यक्ति आवाज़ ऊँचा करके,
सच्चे व्यक्ति को मौन कर देता है।

सच्चा व्यक्ति अपने मौन से ही
झूठ व झूठे व्यक्ति दोनों की बुनियाद हिला देता है ।

—जन सम्प्रभुता संघ—

12/10/2024

आज विजय दशमी है।

हर वर्ष की तरह आज भी रावण दहन किया जाएगा और रावण के पुतले के नाश को ही रावण का नाश समझकर प्रसन्नता प्रकट की जाएगी।

हजारों साल पहले हुए राम—रावण युद्ध में रावण की पराजय एवं भगवान श्रीराम की विजय के प्रतीक इस यादगार दिन पर अन्य लोगों की तरह हम भी सभी भारतवासियों को बधाई और शुभकामना देना चाहते हैं,दे भी रहे हैं परन्तु हम बेहद दु:खी हैं और बेमन से सिर्फ बतौर रस्म अदायगी मरती हुई उम्मीद से आपको बधाई व शुभकामना दे रहें हैं, वास्तव में इसका कोई विशेष महत्व है या नहीं,हम नहीं जानते।

आप सोच रहे होंगें खुशी के मौके पर हम ऐसी मनहूसियत भरी व अरूचि पूर्ण बातें क्यों कर रहे हैं ?

हमारी अरूचि व दु:ख अकारण नहीं है,इसका बेहद गंभीर कारण है ।
और वो कारण ये है कि आज 'रावण' खुश है।

रावण खुश इसलिए है क्योंकि भले ही हजारों वर्ष पूर्व राम ने रावण का कुटुम्ब समेत नाश कर दिया था परन्तु आज बिना किसी युद्ध के ही उस मर्यादा पुरूषोत्तम 'राम' का कुटुम्ब लगभग समाप्ति की ओर है और रावण का कुटुम्ब बेहद तेजी से फल—फूल रहा।

रावण अब सुरक्षित है,उसके दस सिर जोकि वास्तव में दस दुर्गणों के प्रतीक थे वो भी पूर्णत: सुरक्षित हैं क्योंकि अब स्वयं रावण को भी उम्मीद नहीं है कि कोई 'राम' आयेगा और उसे खत्म कर पाएगा।

अब जो हैं या आएगें वो या तो 'राम'नाम का झूठा उद्घोष करने वाले होंगें या फिर 'राम' का भेष बनाकर जनता को भ्रमित कर खुशफहमी में रखने वाले रावण ही होंगें।

'राम' का नाम जपने वालों एवं 'राम'का स्वांग रचकर 'रावण' के पुतलों को दहन करने वाले बहरूपियों से रावण को कोई भय नहीं है क्योंकि वो जानता है कि ये सब नौटंकी है 'राम' तो कभी का मर गया है अब सिर्फ 'रावण' जिन्दा है और रहेगा ??

अब हमारा आपसे एक प्रश्न है? क्या उक्त परिस्थिति में हमारा दु:ख व अरूचि अनुचित है?

क्या 'रावण' को खुश देखकर भी हम और आप बधाईयाँ दे सकते हैं,स्वीकर कर सकते हैं?

क्या 'रावण' की खुशी हमारे दु:ख का कारण नहीं होना चाहिए ?

क्या हम दिन—रात राम नाम जपने और मंदिर—मंदिर भटकने की बजाय अपने भीतर ही राम को पुर्नजीवित नहीं कर सकते हैं ?

कर सकते हैं, बिलकुल कर सकते हैं, यदि इच्छा शक्ति हो तथा भगवान राम के प्रति सच्ची श्रृद्धा हो तो ये सम्भव है, शत प्रतिशत सम्भव है।

इसके लिए आपको मात्र सबसे पहले स्वयं में मौजूद दस सिर वाले रावण को यानी दुर्गुणों को पहचानकर,उन्हें समूल नष्ट करके अपने मन मंदिर में ही राम की मर्यादाओं को पैदा करना होगा ।

उसके बाद आपको समाज में फैल चुके रावणों का दाना—पानी बंद करना होगा,इन रावणों की खुराक है आपका खुला या मौन समर्थन अत: हमें आज हमें यह प्रण करना होगा कि हम किसी भी परिस्थिति में 'रावण' व उसके दस सिरों अर्थात् दुर्गुणों का समर्थन नहीं करेंगें।

याद रखें यदि रावण को भगाना है तो हमें अपने मन में मौजूद राम को जगाना ही होगा और जब हम ऐसा कर पाएंगें तभी विजयदशमी का पर्व मनाना,बधाई व शुभकामना देना सार्थक होगा।

हमें उम्मीद है कि ऐसा हो सकता है, होगा और अवश्य होगा बशर्ते आपका 'प्रण' मर्यादा पुरूषोत्तम राम का जैसा अखण्ड हो यानी प्राण जाए पर वचन ना जाए।

याद रहे —

''पूजक हो श्री राम के, तो करो राम सा काम,
ऐसे कैसे जा पाओगे,परमपिता के धाम ।

देशवासियों से एक जरूरी उम्मीद के साथ
केवल जय श्री राम नहीं, 'मन में राम' और राम सा काम।

जय हिन्द! जय भारत।

अनिल यादव
सम्पादक,बैस्ट रिपोर्टर न्यूज।
अध्यक्ष,जन समप्रभुता संघ।
अध्यक्ष,सतपक्ष पत्रकार मंच।
जयपुर राजस्थान
9414349467

वोट की राजनीति और वोट बैंक की राजनीति में अंतर होता है। वोट की राजनीति समता,न्याय,प्रेम, विकास हेतु जरूरी है जबकि वोट बै...
02/10/2024

वोट की राजनीति और वोट बैंक की राजनीति में अंतर होता है।

वोट की राजनीति समता,न्याय,प्रेम, विकास हेतु जरूरी है

जबकि वोट बैंक की राजनीति समाज को असमानता, अन्याय, नफरत एवं विनाश की ओर धकेल देती है ।

वोट की राजनीति का अर्थ है सार्वजनिक हित के लिए निर्मित नीतियों के निर्माण एवं किए जाने वाले निर्णयों में जनता की सहभागिता । वोट की राजनीति के केन्द्र में नागरिक होता है।

वोट बैंक की राजनीति तो आजादी के बाद से आज तक हम सब झेल ही रहे हैं । वोट बैंक की राजनीति के केन्द्र में दल, नेता, पूंजीपति और शोषण के नए नए तरीके होते हैं।

'समस्या मुक्त भारत' के लिए 'वोट बैंक' की राजनीति को 'वोट की राजनीति' में बदलना बेहद जरूरी है ।

क्या हम तैयार हैं ?

यदि हाँ तो

जन सम्प्रभुता संघ के सदस्यों के लिए आरक्षित बैस्ट रिपोर्टर न्यूज की 'मीडिया मित्र' परियोजना से जुड़ें और राष्ट्रसेवा, आत्मोत्थान एवं लाखों रूपए के अर्थ अर्जन के अभूतपूर्व अवसर का लाभ उठाएं ।

नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से बायोडेटा भेजें —

https://forms.gle/45ffbQkSH7n7Z3rd9

अविलम्ब सम्पर्क करें ।

अनिल यादव
सम्पादक,बैस्ट रिपोर्टर न्यूज
जन समप्रभुता संघ
जयपुर राजस्थान
9414349467

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01/10/2024

देश में नागरिकों की मौत हो चुकी है,

मसान से इस सन्नाटे में अब बस राजनीतिक दलों एवं नेताओं के चमचे, अंधभक्त तथा खून में व्यापार वाले नर—पिशाच ही बचे हैं जो देश को समाप्त करने में तनमयता से जुटे हैं।

नागरिकों की मौत ने लोकतंत्र को लोभतंत्र,लूटतंत्र,झांसातंत्र एवं जोकतंत्र में बदल दिया है।

देशी व विदेशी पूंजीपतियों के धन से संचालित संगठित गैंगों के द्वारा देश के लोग बारी बारी से या संयुक्त रूप से लगातार ठगे जा रहे हैं।

कुछ गैंग पुरानी हैं, कुछ नई हैं और कुछ भविष्य में गठित होने की इच्छा पाले वेंटिंग में हैं।

सबका लक्ष्य एक ही है ' जनता रूपी भेड़ की ऊन ही नहीं उसकी खाल भी उतार लेना । '

नागरिक के पास वोट देने और टैक्स भरने,जुर्माना देने और पूंजीपतियों की एकाधिकार वाले उत्पादों के ग्राहक बनने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा है।

नागरिक सेवा के लिए निर्मित सरकारें नागरिकों को रोज डराने,धमकाने और उनसे तरह तरह के बहानों से धन वसूली में लगी हुई हैं।

स्थिति विकट थी, विकट है और आने वाले दिनों में अतिविकट होती ही चली जाएगी । नागरिक के लिए आजादी तो छोड़ों उसका सपना देखना भी अपराध हो जाएगा।

अभी भी वक्त है अपने मरने से पहले अपने मन में मौजूद 'नागरिक' को मरने ना दें,

अंतिम सांस तक अपने अधिकारों व विचारों की स्वतंत्रता बनाए रखने का संकल्प लेकर ही जीवन जिएं ।

याद रहे किसी देश के लोगों के दिलों में नागरिकता के बोध की मौत हो जाना , शीघ्र ही उस देश की मौत का सबसे प्रबल संकेत होता है ।

अत: अपने मन में नागरिक होने यानी देश के मालिक होने भाव जगाएं ।

पूंजीपतियों द्वारा पोषित और राजनीतिक दलों के रूप में संगठित नेताओं की गैंगों के चंगुल से निकलने के बारे में मंथन प्रारम्भ करें ।

दलों और नेताओं में अपना भविष्य ढूढना बंद करो, अपने दीपक स्वयं बनने का संगठित प्रयास करो ।

जन संप्रभुता संघ के रूप में हम एक मजबूत एवं गैर दलीय प्रयास में जुटे हैं।

यदि जरा भी समझ है और देश की फिक्र है तो दलों के पट्टों को निकाल फेंकिए और स्वतंत्र व देशप्रेमी नागरिक के रूप में 'समस्या मुक्त भारत' के हमारे प्रयास में सहभागी बनने में लेशमात्र भी संकोच या क्षणमात्र की भी देरी ना करें ।

23 साल की उम्र में भगत सिंह के विचार एवं आत्मोत्सर्ग जैसे सर्वोच्च बलिदान को याद करके हम लगातार ये सोचने को मजबूर हो रहे हैं कि आज 23 साल के युवा की तो छोड़ो 83 साल का अधेड़ भी देश की बजाय या तो किसी कम्पनी के लिए काम करके चंद पैसे के जुगाड़ में लगा रहता है या फिर घर बैठकर 'कुछ नहीं हो सकता' , ' मैं क्या कर सकता हूँ', ' सब चोर हैं ', 'टाईम ही नहीं मिलता' जैसे जुमलों का मंत्रजाप कर अपनी, अपने अधिकारों एवं अपने देश की मौत का इंतजार कर रहा है।

हम सोते हुए लोगों को जगाने के प्रयास में लिखते रहते हैं, कभी कभी लगता है कि शायद पूरा देश ही मुर्दो से भर गया है, फिर लगाता है कि हमारा काम है हर शरीर को झकझोर कर देखना, शायद ! कहीं कोई जिंदा हो । ये आलेख भी उसी कड़ी का एक और प्रयास है।

लिखने व बोलने व समझाने के लिए बहुत कुछ है परन्तु लोगों के पास गार्डन में घूमने, सैर—सपाटे, आत्ममुग्धता, लड़ने झगड़ने एवं धर्म के नाम पर किए जाने वाले पाखंडों के लिए वक्त रहता है लेकिन यदि उन्हें कहीं पर पढ़ना,समझना और कुछ करना पड़े तो उनपर पहाड़ टूट जाता है।

अत: फिलहाल सभी हमवतनों को 'जय हिंद'

यदि किसी के दिल में भगत सिंह वास्तव में जिंदा हो अविलम्ब सम्पर्क करें ।

अन्यथा मुर्दों के देश में जिंदा जमीर के लोगों की हमारी तलाश जारी रहेगी, जब तक भूंसे में सूई जितनी भी आस है हमारे प्रयास जारी रहेगें ।

हमें विश्वास है कि ये देश हमारी आस को कदापि निराश नहीं करेगा ।

निवेदक
अनिल यादव
जन सम्प्रभुता संघ
सम्पर्क 9414349467

25/09/2024
दलों ने देश व आम नागरिक दोनों को छला हैदेर से ही सही, अब हम सबको पता चल रहा है,अत: अब दलों के लिए नहीं,देश व नागरिक अधिक...
21/09/2024

दलों ने देश व आम नागरिक दोनों को छला है
देर से ही सही, अब हम सबको पता चल रहा है,
अत: अब दलों के लिए नहीं,
देश व नागरिक अधिकारों के लिए जीना बेहद जरूरी है।

क्या आप तैयार है ?

यदि हाँ तो एक अभूतपूर्व अवसर आपकी राह देख रहा है

बायोडेटा भेजें——https://forms.gle/45ffbQkSH7n7Z3rd9

सम्पर्क करें —9414349467

20/09/2024

नागरिकों द्वारा अपने 'तमाम कामों' के लिए सरकारों को चुना जाता है परन्तु
सरकारें हैं कि सत्ता के फेर में नागरिकों का ही 'काम तमाम' करने में शिद्दत से जुटी रहती हैं।

राष्ट्र सेवा एवं 40 लाख रूपए सालाना आय का अभूतपूर्व अवसर (जन संप्रभुता संघ के वर्तमान एवं भावी राष्ट्र—सेवकों(सदस्यों)हे...
19/09/2024

राष्ट्र सेवा एवं 40 लाख रूपए सालाना आय का अभूतपूर्व अवसर
(जन संप्रभुता संघ के वर्तमान एवं भावी राष्ट्र—सेवकों(सदस्यों)हेतु पूर्णत: आरक्षित )..............................

क्या आप स्वयं को देशप्रेमी मानते हैं ?
क्या आप राष्ट्र व समाज के उत्थान में अपना योगदान देना चाहते हैं ?
क्या आप लोकतंत्र, संविधान एवं समता,न्याय व प्रेम के समर्थक हैं ?
क्या आप देश में नागरिकों के मजबूत व प्रभावी प्रेशर ग्रुप के समर्थक हैं ?
क्या आप दल मुक्त होकर 'समस्या मुक्त भारत' बनाने के प्रयास में सहभागी बनना चाहते हैं ?

यदि हाँ ! तो 'राष्ट्र—उत्थान' एवं 'आत्म—कल्याण' के संयुक्त व अभूतपूर्व अवसर का लाभ उठाएं और नीचे दिए गए लिंक/क्यूआर कोड़ की सहायता से अपना बायोडेटा प्रेषित करें । बायोडेटा भेजने हेतु निर्धारित लिंक इस प्रकार है —

https://forms.gle/45ffbQkSH7n7Z3rd9

बायोडेटा से सामान्य संतुष्टि के बाद बायोडेटा में दर्ज आपके मेल आई.डी. पर आवेदन प्रक्रिया व पात्रता संबंधी जानकारी प्रेषित की जाएंगी ।

रिक्ति संबंधी विवरण निम्नानुसार है :—

पद का नाम : क्षेत्रीय परियोजना प्रमुख
रिक्तियों की संख्या : 21
विशेष : जयपुर नगर निगम क्षेत्र में स्थाई निवास अनिवार्य
अंतिम तिथि : 12 अक्टूबर 2024 या रिक्ति पूर्ण होने तक जो भी पहले हो

अति महत्वपूर्ण नोट :—

(1) अवसर केवल नागरिक संगठन 'जन संप्रभुता संघ' के मौजूदा सदस्यों एवं 'जन संप्रभुता संघ' के उद्देंश्यों के प्रति प्रतिबद्ध भावी सदस्यों के लिए सृजित व आरक्षित किया गया है। यदि आवेदन के समय आप जन संप्रभुता संघ के सदस्य नहीं हैं तो आवेदक को आवेदन से पूर्व जन संप्रभुता संघ की न्यूनतम ‘समर्थक’ श्रेणी (पंचवर्षीय शुल्क 10 रू) एवं चयन के बाद परंतु नियुक्ति से पूर्व प्रबंधक श्रेणी की सदस्यता ग्रहण करना अनिवार्यं होगा।

(2) अवसर का सृजन समाचार संस्थान बैस्ट रिपोर्टर द्वारा ‘स्वतंत्र, सतपक्ष एवं जन-हितैषी पत्रकारिता’ तथा ‘ सशक्त नागरिक एवं समस्या मुक्त भारत ’ निर्माण के संयुक्त लक्ष्य को लेकर निर्मित प्रोजेक्ट ‘मीडिया मित्र’ के तहत किया गया है ।

(3) रिक्तियों की पूर्ति में अनुभवी एवं देशप्रेमी सेवानिवृत्त कार्मिकों तथा देश हित को समर्पित जुझारू, निःस्वार्थ व चिंतनशील नागरिकों को विशेष प्राथमिकता दी जाएगी । अधिकृत सम्पर्क : अनिल यादव, बैस्ट रिपोर्टर न्यूज नेटवर्क (9414349467)

कुछ लोग मदद करना चाहते हैं परन्तु वो मदद करने में सक्षम नहीं होते हैंकुछ लोग सक्षम तो हैं पर मदद करना नहीं चाहते हैं,केव...
09/09/2024

कुछ लोग मदद करना चाहते हैं परन्तु वो मदद करने में सक्षम नहीं होते हैं

कुछ लोग सक्षम तो हैं पर मदद करना नहीं चाहते हैं,केवल मदद के दिखावे से काम चला लेते हैं ?

प्रश्न ये है कि आखिर सक्षम व्यक्ति अक्षम की मदद क्यों नहीं करना चाहता ?

उसके पीछे कौनसा भय या मनोविज्ञान काम करता है ?

दो चित्र साझा ​कर रहे हैं,

इन चित्रों के आधार पर सभी देशवासियों से उनकी राय आमंत्रित है ।

30/08/2024

'सरकार' जनता की सेवा के लिए नियुक्त सेवा का वादा करने वाले सेवकों का समूह है,

'प्रशासन' नौकरों के सरकार रूपी इस समूह की जनता की सेवा के कार्य में सहायता के लिए सृजित अधीनस्थ नौकरों का दूसरा समूह है ।

शासन और प्रशासन दोनों ही जनता के सेवक हैं और दोनों का ही कार्य जनता की समस्याओं का समाधान करना है, इसी के लिए इनका जन्म हुआ है और दोनों का ही पालन पोषण जनता द्वारा कठिन मेहनत से कमाए गए जन—धन से होता है ।

सैद्धांतिक रूप से तो हम सब उक्त बातों से सहमत हैं परन्तु

क्या व्यावहारिक धरातल पर शासन व प्रशासन जन—सेवक की भूमिका में है,

क्या हम 'मालिक' की भूमिका में हैं ?

यदि नहीं तो आखिर क्यों ?

जरा सोचिए ।

'' सरकारों से मत करो दरकार,
मत करो आंदोलन, मत करो गुहार ।
जन—जन को जोड़ो, हो जाओ तैयार ।
जन—संप्रभुता की भरो हूंकार, उदण्डों पर दो फूंकार।
गलत का करो प्रतिकार, सेवकों को रखो सुधार ।
जब होगी जन—संप्रभुता स्वीकार,तभी होगा भारत का उद्धार ।।

याद रहे आंदोलन करना, मांग करना ही गुलामी की निशानी है,
क्योंकि सेवकों से मांग नहीं की जाती उन्हें दिया जाता है 'आदेश' ।

जय हिंद! जय भारत !

शुभेच्छु !

अनिल यादव
सम्पादक,बैस्ट रिपोर्टर न्यूज
अध्यक्ष,जन सम्प्रभुता संघ।
अध्यक्ष,सतपक्ष पत्रकार मंच ।
9414349467

30/08/2024

हमारा एक प्रश्न है ।

यदि चावल में कुछ कंकड़ या कचरा मिल जाए तो आप प्लेट से एक—एक करके चावल को हटाएंगें या प्लेट से एक—एक करके कंकड़ या कचरे को हटाएंगें ।

इस प्रश्न के उत्तर में दो रास्ते अपनाए जा सकते हैं —

1. एक—एक करके चावल को कंकड़ व कचरे से अलग किया जाए । यदि हम एक—एक करके चावल को कंकड़ व कचरे से अलग करेंगें तो कुछ समय बाद प्लेट में केवल कंकड व कचरा ही रह जाएगा यानी प्लेट पर कंकड़ व कचरे का साम्राज्य बन जाएगा

और जब प्लेट में सिर्फ कंकड़ व कचरा ही होगा तो उसके उपभोग से हमारा भविष्य अवरूद्ध हो जाएगा।

2. एक—एक करके कंकड़ व कचरे को चावल से अलग किया जाए । यदि हम एक—एक करके कंकड़ व कचरे को चावल से अलग करेंगें तो कुछ समय बाद प्लेट में केवल चावल ही रह जाएगा यानी प्लेट पर चावलों का साम्राज्य बन जाएगा।

और जब प्लेट में सिर्फ चावल ही चावल होगें तो उसके उपभोग से हमारा भविष्य समृद्ध होगा।

यदि हम चावल का मतलब अच्छे व सदगुणी लोग माने और कंकड़ व कचरे का अर्थ दुष्ट व दुगुणी लोग माने तथा प्लेट को प्रतीकात्मक रूप से राजनीति मान लें तो हमें पता चलेगा कि

हमारी पहली गलती ही हमारी व हमारे देश की समस्याओं का सबसे महत्वपूर्ण कारण है, इसी गलती के चलते ही व्यवस्था परिवर्तन के सबसे बड़े साधन 'राजनीति' में कंकड़ व कचरे का साम्राज्य स्थापित हो गया है ।

ध्यान रहे इसमें दोष दुगुर्णी लोगों का नहीं है, सदगुणी व सदगुण समर्थक लोगों का है, जिन्होंने दुर्गणीयों का भगाने की बजाय, दुर्गुणीयों से भागने का रास्ता अपना रखा है और व्यवस्था परिवर्तन के सबसे बड़े साधन 'राजनीति' को धूर्तता, स्वार्थ व संवेदनहीनता से भरे गुण्डों व माफिया किस्म के लोगों के भरोसे ना सिर्फ छोड़ दिया है वरन् उन्हीं गुण्डों से व्यवस्था सुधार की मूर्खतापूर्ण आशा भी पाले घरों में दुबके पड़े हैं।

याद रहे हम और आप राजनीति से विमुख तो हो सकते हैं, उसकी अनदेखी भी कर सकते हैं परन्तु हम में से कोई भी अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर पड़ने वाले राजनीति के प्रभाव से स्वयं को बचा नहीं सकता है ।

राजनीति व नेतागिरी में अंतर समझे ।

राजनीति किसी भी देश की व्यवस्था में परिवर्तन का सबसे बड़ा साधन है, इसकी समझ ना रखना या इसमें अरूचि रखना सबसे बड़ी मूर्खता है।

हाँ नेतागिरी की इच्छा घातक है क्योंकि नेतागिरी का एक ही उसूल होता है

'अपना काम बनता, तो भाड़ में जाए जनता '

जय हिंद! जय भारत !

शुभेच्छु !

अनिल यादव
सम्पादक,बैस्ट रिपोर्टर न्यूज
अध्यक्ष,जन सम्प्रभुता संघ।
अध्यक्ष,सतपक्ष पत्रकार मंच ।
9414349467

23/08/2024

याद रखने हेतु रिपीट करना एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु ढीठता रखना बेहद जरूरी है।

याद रहे कुछ तो लोग कहेंगें..

सभी भारतवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ,जय हिंद !
15/08/2024

सभी भारतवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ,

जय हिंद !

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