25/10/2024
रबी फसलों के लिए डीएपी की जगह है अनेक विकल्प
किसान बंधु परंपरागत डीएपी का उपयोग करते हैं, जिसमें सिर्फ 2 पोषक तत्व नत्रजन 18 प्रतिशत एवं फास्फोरस 46 प्रतिशत पाये जाते हैं, इसके और अधिक उपयोगी विकल्पों का कृषक बंधु उपयोग कर सकते हैं –
पहला विकल्पक:
नैनो डीएपी
नैनो डीएपी का उपयोग बीज उपचार के रूप में 1 किलो बीज में 5 मिली नैनो डीएपी का उपयोग कर सकते हैं।
500 मिली की एक बॉटल 100 किग्रा बीज के लिए पर्याप्त है।
इसके अच्छे परिणाम के लिए 30-35 दिन की फसल में 4 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से खड़ी फसल में छिड़काव कर सकते हैं।
नैनो डीएपी के लाभ
नैनो डीएपी (600 रू. प्रति बॉटल) परंपरागत डीएपी रू 1350 से सस्ती है।
नैनो डीएपी मिट्टी, जल एवं वायु प्रदूषण में कमी आती है।
भंडारण एवं परिवहन में सुविधा है आप एक बैग में भी रख सकते हंै।
जैव सुरक्षित एवं पर्यावरण हितैषी भी है।
फसल उपज अच्छी एवं गुणवत्ता में वृद्धि।
दूसरा विकल्प – (यूरिया+सिंगल सुपर फास्फेट)
एक बोरी डीएपी के स्थान पर 20 किलो यूरिया एवं 3 बोरी एसएसपी (सिंगल सुपर फास्फेट) का उपयेाग कर सकते है। एसएसपी में 3 तत्व पाए जाते हैं। फास्फोरस 16 प्रतिशत, सल्फर 12.5 प्रतिशत एवं केल्सियम 21 प्रतिशत पाया जाता है।
सल्फर दलहनी फसलों में प्रोटीन की मात्रा एवं तिलहनी फसलों में तेल की मात्रा को बढ़ा देता है तथा केल्सियम से अमलीय मृदा का पीएच नियंत्रित हो जाता है, जिससे मृदा की उर्वरता बढ़ जाती है और डीएपी से सस्ती भी है। एक बोरी लगभग 421 रू. की है। 20 किलो यूरिया एवं 2 बोरी एसएसपी (सिंगल सुपर फास्फेट) दोनों की कीमत डीएपी के लगभग बराबर है।
तीसरा विकल्प – (एनपीके 12:32:16)
1 बोरी डीएपी के स्थान पर एनपीके (12:32:16) का उपयोग कर सकते हैं इसमें नत्रजन 12 प्रतिशत, फास्फोरस 32 प्रतिशत एवं पोटाश 16 प्रतिशत पाया जाता है। अधिकतर किसान पोटाश का उपयोग नहीं करते हैं। जबकि यह एक पौधे के लिए आवश्यक मुख्य पोषक तत्व है।
एनपीके 12:32:16 के लाभ
नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश 3 मुख्य पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हंै।
पोटाश के उपयोग से अन्य पोषक तत्वोंं की उपलब्धता बढ़ जाती है, क्योंकि पोटाश फसलों में होने वाली रन्ध्रों के खुलने एवं बंद होने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, जिससे जल के साथ पोषक तत्वों का अवशोषण बढ़ जाता है।
पोटाश के उपयोग से बीज की चमक बढ़ जाती है।
पोटाश के उपयोग से पौधों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे फसलों में रोग कम लगते हंै तथा उत्पादन बढ़ जाता है।