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जयपुर के एक बाज़ार का दृश्य 1960
01/11/2024

जयपुर के एक बाज़ार का दृश्य 1960

24/10/2024
कम उम्र में ही दुल्हन बन गई Bollywood की ये मशहूर अभिनेत्रियां
08/10/2024

कम उम्र में ही दुल्हन बन गई Bollywood की ये मशहूर अभिनेत्रियां

मेरे पापा ने पूरी जिंदगी बॉलीवुड के नाम कर दी, लेकिन कोई लाइक नहीं करेगा 🥰🙏अमरीश पुरी भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित औ...
08/10/2024

मेरे पापा ने पूरी जिंदगी बॉलीवुड के नाम कर दी, लेकिन कोई लाइक नहीं करेगा 🥰🙏

अमरीश पुरी भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित और प्रतिभाशाली खलनायकों में से एक थे। उनका जन्म 22 जून 1932 को पंजाब में हुआ था। अपनी शक्तिशाली आवाज और प्रभावशाली अभिनय के दम पर उन्होंने हिंदी फिल्म उद्योग में एक अद्वितीय स्थान हासिल किया। अमरीश पुरी ने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की और बाद में फिल्मों में कदम रखा, जहां उन्होंने विभिन्न भूमिकाओं में अपनी छाप छोड़ी।

अमरीश पुरी का करियर कई दशकों तक चला, जिसमें उन्होंने कई यादगार किरदार निभाए। हालांकि, उन्हें सबसे ज्यादा उनके खलनायकी वाले किरदारों के लिए जाना जाता है। 'मोगैंबो' के रूप में उनका डायलॉग "मोगैंबो खुश हुआ" (फिल्म: मिस्टर इंडिया) आज भी भारतीय सिनेमा का एक प्रतिष्ठित हिस्सा है। इस किरदार ने उन्हें हमेशा के लिए एक यादगार खलनायक बना दिया। इसके अलावा फिल्म 'करण अर्जुन' में उनका डायलॉग "राम लखन आएगा... मेरा करण अर्जुन आएगा" ने भी उन्हें एक अलग पहचान दिलाई।

अमरीश पुरी ने 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' में बालदेव सिंह के रूप में भी अद्वितीय प्रदर्शन किया, जहां उनका संवाद "जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिंदगी" एक कालजयी पंक्ति बन गया। उनकी भूमिका ने इस फिल्म को एक क्लासिक बना दिया और उन्हें एक सख्त लेकिन प्यारे पिता के रूप में दर्शकों के दिलों में बसा दिया।

अमरीश पुरी के अभिनय की विशिष्टता उनकी संवाद अदायगी और उनकी गहरी आवाज में थी, जिसने उनके किरदारों को जीवंत बना दिया। उनका अभिनय हमेशा दर्शकों के दिलों पर एक अमिट छाप छोड़ गया। उनके द्वारा निभाए गए किरदार और उनके द्वारा बोले गए संवाद आज भी लोगों की यादों में ताजा हैं। अमरीश पुरी न केवल एक महान अभिनेता थे, बल्कि उन्होंने भारतीय सिनेमा को कई अविस्मरणीय पात्र दिए, जिनका जादू समय के साथ और भी बढ़ता गया।

अमरीश पुरी की कहानी हमें यह सिखाती है कि समर्पण, मेहनत और प्रतिभा से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। उन्होंने अपने अभिनय से न सिर्फ भारतीय सिनेमा में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता और वे हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे।

करिश्मा कपूर, भारतीय सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री, का जन्म 25 जून 1974 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था। वे हिंदी फिल्म उद्य...
08/10/2024

करिश्मा कपूर, भारतीय सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री, का जन्म 25 जून 1974 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था। वे हिंदी फिल्म उद्योग के प्रतिष्ठित कपूर परिवार से संबंध रखती हैं। करिश्मा के पिता रणधीर कपूर और मां बबीता कपूर दोनों ही बॉलीवुड के जाने-माने कलाकार हैं। उनके दादा राज कपूर और परदादा पृथ्वीराज कपूर भी भारतीय सिनेमा के महान हस्तियों में से एक थे। करिश्मा की बहन करीना कपूर खान भी बॉलीवुड की सफल अभिनेत्री हैं।

करिश्मा ने साल 2003 में बिजनेसमैन संजय कपूर से शादी की थी, लेकिन 2016 में उनका तलाक हो गया। उनके दो बच्चे हैं, बेटी समायरा कपूर और बेटा कियान राज कपूर। करिश्मा अपने बच्चों के साथ मुंबई में रहती हैं और अपने परिवार के साथ समय बिताना पसंद करती हैं।

कपूर परिवार बॉलीवुड के सबसे प्रतिष्ठित और पॉपुलर परिवारों में से एक है। इस परिवार ने भारतीय सिनेमा को कई महान कलाकार दिए हैं। करिश्मा कपूर ने भी अपने अभिनय से बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाई है और अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ाया है। उनकी प्रतिभा और मेहनत ने उन्हें सिनेमा की दुनिया में एक विशेष स्थान दिलाया है।

श्रेय घोषाल** भारतीय सिनेमा की एक प्रमुख और सम्मानित गायिका हैं, जिनकी आवाज़ ने उन्हें संगीत जगत में एक विशिष्ट स्थान दि...
08/10/2024

श्रेय घोषाल** भारतीय सिनेमा की एक प्रमुख और सम्मानित गायिका हैं, जिनकी आवाज़ ने उन्हें संगीत जगत में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है। उनकी गायकी की यात्रा और व्यक्तिगत जीवन पर विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है:
# # # **श्रेय घोषाल का करियर:**
**प्रारंभिक जीवन और करियर की शुरुआत:**
श्रेय घोषाल का जन्म 12 मार्च 1984 को पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर में हुआ था। उन्होंने बहुत ही छोटी उम्र में संगीत की शिक्षा लेना शुरू किया। उनके करियर की शुरुआत 1998 में फिल्म **"देवदास"** से हुई, जिसमें उन्होंने "बोल रे पपिहरा" और "सिलसिले है" जैसे गानों से पहचान बनाई।
**प्रमुख गाने और हिट फिल्में:**
श्रेय ने अपने करियर में कई हिट गाने गाए हैं, जिनमें विभिन्न भाषाओं में गाए गए गाने शामिल हैं:
- **"तुम ही हो"** (आशिकी 2, 2013): इस गाने ने उन्हें एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया और यह गाना उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बना।
- **"डोला रे डोला"** (देवदास, 2002): इस गाने ने भी उन्हें महत्वपूर्ण पहचान दिलाई।
- **"चंदा रे चंदा रे"** (मोहेंजो दारो, 2016): एक और हिट गाना जो दर्शकों द्वारा बहुत सराहा गया।
**संगीत की विविधता:**
श्रेय ने हिंदी के अलावा बंगाली, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, और मलयालम जैसी विभिन्न भाषाओं में भी गाया है। उनकी गायकी की विविधता और शैलियाँ उन्हें भारतीय सिनेमा के कई हिस्सों में लोकप्रिय बनाती हैं।
**पुरस्कार और सम्मान:**
श्रेय घोषाल को कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें **फिल्मफेयर पुरस्कार**, **राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार**, और **आईफा पुरस्कार** शामिल हैं। उनकी गायकी के लिए मिली सराहना और पुरस्कार उनके संगीत क्षेत्र में योगदान की पुष्टि करते हैं।
# # # **श्रेय घोषाल का व्यक्तिगत जीवन:**
**परिवार और विवाह:**
श्रेय घोषाल ने 5 फरवरी 2015 को शिलादित्य मुखोपाध्याय से विवाह किया, जो एक उद्यमी और व्यवसायी हैं। उनका विवाह एक भव्य और खास अवसर था, जिसमें उनके परिवार और करीबी दोस्तों ने भाग लिया।
**बच्चे:**
श्रेय और शिलादित्य की एक बेटी है, जिसका नाम **"शेरिन"** है। वह अपने परिवार के साथ समय बिताने को पसंद करती हैं और अपने पारिवारिक जीवन का आनंद लेती हैं।
**सामाजिक और परोपकारी कार्य:**
श्रेय घोषाल कई सामाजिक कारणों का समर्थन करती हैं और चैरिटी इवेंट्स में भाग लेती हैं। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, और बच्चों के कल्याण के लिए कई पहलों में हिस्सा लिया है और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझती हैं।
**निष्कर्ष:**
श्रेय घोषाल का करियर और व्यक्तिगत जीवन दोनों ही उनकी सफलता और प्रतिभा की गवाही देते हैं। उनकी अद्वितीय गायकी और संगीत के प्रति समर्पण ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है, और उनका पारिवारिक जीवन भी सुखद

राशी खन्ना भारतीय फिल्म उद्योग की एक प्रमुख अभिनेत्री और गायिका हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत तेलुगु और तमिल फिल्म...
08/10/2024

राशी खन्ना भारतीय फिल्म उद्योग की एक प्रमुख अभिनेत्री और गायिका हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत तेलुगु और तमिल फिल्मों में की। दिल्ली में 30 नवंबर 1990 को जन्मी राशी ने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से अंग्रेजी में स्नातक की पढ़ाई की है। फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले, राशी ने कुछ विज्ञापनों में भी काम किया, जहां उनकी सुंदरता और अभिनय प्रतिभा को पहचान मिली। उनका आकर्षक व्यक्तित्व और स्क्रीन पर सहजता ने उन्हें दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।
राशी खन्ना ने अपने करियर की शुरुआत 2013 में बॉलीवुड फिल्म "मद्रास कैफे" से की थी, जिसमें उन्होंने जॉन अब्राहम के साथ काम किया। इस फिल्म में उनके अभिनय को सराहा गया, लेकिन उन्हें असली पहचान तेलुगु फिल्म "ऊहालु गुसागुसलाडे" से मिली, जो 2014 में रिलीज़ हुई। इस फिल्म में उनकी मासूमियत और सहजता ने दर्शकों का दिल जीत लिया, और उन्हें तेलुगु सिनेमा में एक उभरती हुई स्टार के रूप में देखा जाने लगा। इसके बाद उन्होंने कई हिट तेलुगु फिल्मों में काम किया, जिनमें "सुप्रीम," "जय लव कुश," "थोली प्रेमा," और "वेंकी मामा" जैसी फिल्में शामिल हैं।
राशी खन्ना की खासियत सिर्फ उनके अभिनय तक सीमित नहीं है। वह एक प्रतिभाशाली गायिका भी हैं और उन्होंने कई फिल्मों में गाने भी गाए हैं। उनकी गायन प्रतिभा को भी दर्शकों ने बहुत पसंद किया है। राशी ने न केवल तेलुगु और तमिल फिल्मों में बल्कि मलयालम और हिंदी फिल्मों में भी अपनी पहचान बनाई है। उनके बहुमुखी अभिनय ने उन्हें विभिन्न भाषाओं के दर्शकों के बीच लोकप्रिय बना दिया है।
राशी खन्ना के अभिनय की खासियत उनकी संवेदनशीलता और किरदारों में ढल जाने की उनकी क्षमता है। वह अपनी हर भूमिका को पूरी शिद्दत के साथ निभाती हैं, चाहे वह एक रोमांटिक किरदार हो, एक हास्य भूमिका हो, या एक गंभीर चरित्र। उनके चेहरे की मासूमियत और अभिनय की गहराई ने उन्हें दर्शकों के बीच एक पसंदीदा अभिनेत्री बना दिया है।
राशी खन्ना ने बहुत कम समय में अपने अभिनय कौशल से फिल्म उद्योग में अपनी जगह बना ली है। उनकी मेहनत, लगन, और निरंतरता ने उन्हें एक सफल अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया है। आने वाले समय में, राशी से और भी बेहतरीन प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती है, क्योंकि उन्होंने साबित कर दिया है कि वह किसी भी चुनौतीपूर्ण भूमिका को बखूबी निभा सकती हैं। उनकी यात्रा एक प्रेरणा है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो अपने सपनों को साकार करने के लिए फिल्मी दुनिया में आना चाहते हैं।

अर्शद वारसी एक भारतीय अभिनेता और कॉमेडियन हैं, जिन्हें उनके बेहतरीन हास्य अभिनय के लिए जाना जाता है। उनका जन्म 19 अप्रैल...
01/10/2024

अर्शद वारसी एक भारतीय अभिनेता और कॉमेडियन हैं, जिन्हें उनके बेहतरीन हास्य अभिनय के लिए जाना जाता है। उनका जन्म 19 अप्रैल 1968 को मुंबई में हुआ था। अर्शद का बचपन संघर्षपूर्ण रहा, क्योंकि उनके माता-पिता का जल्दी निधन हो गया था, और उन्होंने 14 साल की उम्र में ही अपनी पढ़ाई छोड़कर खुद के लिए काम करना शुरू कर दिया था। अर्शद ने एक कॉस्मेटिक्स कंपनी में सेल्समैन के रूप में काम किया और बाद में एक फोटो लैब में भी काम किया।

अर्शद का डांस और थिएटर के प्रति झुकाव था, और उन्होंने मुंबई में अकबर सामी के डांस ग्रुप में शामिल होकर अपनी कला को निखारा। इसके बाद, उन्होंने अपना खुद का डांस ग्रुप शुरू किया और विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लिया। 1991 में, उन्होंने डांस प्रतियोगिता "इंडियन डांस चैंपियनशिप" जीती, जो उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इस उपलब्धि ने उन्हें मुंबई के फिल्म जगत में कदम रखने का अवसर दिया।

1996 में, अर्शद वारसी ने "तेरे मेरे सपने" फिल्म से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। हालांकि फिल्म ने उन्हें तुरंत सफलता नहीं दिलाई, लेकिन उनके अभिनय की तारीफ जरूर हुई। असली पहचान उन्हें "मुन्नाभाई एम.बी.बी.एस." (2003) में सर्किट के किरदार से मिली। इस फिल्म में उनके कॉमेडी टाइमिंग और संवाद अदायगी ने उन्हें रातोंरात मशहूर कर दिया। इसके बाद, उन्होंने "लगे रहो मुन्नाभाई" (2006) में भी इस किरदार को निभाया, जिससे उनकी लोकप्रियता और भी बढ़ गई।

अर्शद ने अपने करियर में कई यादगार फिल्में दी हैं, जैसे "गोलमाल" सीरीज, "धमाल" और "इश्किया"। उनकी फिल्मों में उनकी हास्य क्षमता और अभिनय कौशल की तारीफ होती रही है। "इश्किया" में उनके गंभीर किरदार की भी सराहना की गई, जिससे यह साबित हुआ कि वह केवल कॉमेडी ही नहीं, बल्कि गंभीर भूमिकाओं में भी बेहतरीन प्रदर्शन कर सकते हैं।

अर्शद वारसी ने मारिया गोरेटी से शादी की, जो एक वीजे और टीवी होस्ट हैं। उनके दो बच्चे हैं - ज़ेके और ज़ेनी। अर्शद अपने निजी जीवन में भी काफी सादगी पसंद करते हैं और फिल्मी चमक-धमक से दूर रहना पसंद करते हैं। उनका फिल्मी सफर संघर्ष और मेहनत से भरा रहा है, और उन्होंने अपने काम से भारतीय सिनेमा में एक अलग पहचान बनाई है।

उम्र के इस पड़ाव पर भी शरत सक्सेना काफी फिट नजर आते है। 17 अगस्त 1950 को मध्य प्रदेश के सतना में जन्मे शरत सक्सेना बुधवा...
01/10/2024

उम्र के इस पड़ाव पर भी शरत सक्सेना काफी फिट नजर आते है। 17 अगस्त 1950 को मध्य प्रदेश के सतना में जन्मे शरत सक्सेना बुधवार को अपना 72वां जन्मदिन मना रहे है। शरत सक्सेना ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत निर्देशक नरेंद्र बेदी की अमिताभ बच्चन स्टारर फिल्म 'बेनाम' से साल 1974 में की। हिंदी, तेलुगू, मलयालम और तमिल में 250 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके शरत सक्सेना के करियर का उफान अपने समय के सुपरस्टार मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म 'बॉक्सर' के बाद आया। बड़े परदे पर अलग अलग तरह के किरदारों के चलते अपनी अलग पहचान बना चुके शरद सक्सेना का एक किस्सा हिंदी सिनेमा में काफी चर्चित रहा है और वह भी इसलिए क्योंकि इसका नाता हिंदी सिनेमा में सबसे कम पैसे देने के लिए चर्चित रहे निर्माता मुकेश भट्ट से जुड़ा है।

बात उस समय की है जब आमिर खान की फिल्म 'गुलाम' शुरू हो रही । इस फिल्म में बॉक्सर की भूमिका के लिए कलाकार की तलाश जारी थी। कोई कलाकार इस किरदार के लिए फिट नहीं बैठ रहा था। किसी ने शरत सक्सेना के नाम का सुझाव दिया। फिल्म के निर्माता मुकेश भट्ट ने शरत सक्सेना की 'बॉक्सर' देखी थी। उन्होंने तुरंत शरत सक्सेना के नाम पर अपनी सहमति जता दी। 'गुलाम' में बॉक्सर की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण थी। फिल्म में कलाकार अच्छा होगा तो वह पैसे भी अच्छे ही लेगा, ये सोचकर ही मुकेश भट्ट ने शरत सक्सेना से पैसे की बात की।

उधर, शरत सक्सेना तो जानते ही थे कि निर्माता मुकेश भट्ट पैसों को लेकर थोड़ा कंजूस हैं। वह कलाकारों को उनकी मौजूद बाजार कीमत से हमेशा कम पैसे देते हैं। शरत सक्सेना ने सोचा कि फिल्म अच्छी है तो अगर पूरी फिल्म के दो लाख रुपये भी मिल गए तो वह फिल्म कर लेंगे। लेकिन, उन्होंने अपने पत्ते मुकेश भट्ट से मिलते ही नहीं खोले। मुकेश भट्ट ने शरत सक्सेना को फिल्म की कहानी सुनाई। फिल्म में उनका किरदार सुनाया और बोले, ‘ज्यादा तो नहीं लेकिन मैं इस फिल्म के लिए तुम्हें छह लाख रुपये ही दे सकता हूं।’

शरत सक्सेना ने बहुत मुश्किल से खुद पर काबू किया। अपने चेहरे की खुशी दबाई और चुपचाप मुकेश भट्ट के दफ्तर से निकल आए। उम्मीद से तीन गुना ज्यादा पैसे मिलने की खुशी वह छुपा नहीं पा रहे थे और आखिरकार अपने एक करीबी के साथ ये सारी बातें साझा करने के बाद ही उनका मन शांत हुआ। फिल्म की शूटिंग पूरी हो गई और उनको पूरी फिल्म के छह लाख रुपये भी मिल गए। लेकिन, इस बात का जिक्र शरत सक्सेना ने फिर कभी किसी से नहीं किया।

बात जब फिल्म 'गुलाम' की छिड़ी है, तो इस फिल्म से जुड़ा एक और किस्सा भी आपको बता देते हैं। इस फिल्म को पहले महेश भट्ट निर्देशित कर रहे थे। महेश भट्ट के बारे में यह बात तो सबको पता है कि गाने और एक्शन सीन की शूटिंग में वह कभी भी सेट पर नहीं जाते है। उनके सहायक निर्देशक ही गाने और एक्शन सीन की शूटिंग में होते हैं। यह बात फिल्म के हीरो आमिर खान को पसंद नही थी। और, एक दिन आमिर खान ने महेश भट्ट को बोल ही दिया कि आपको फिल्म का निर्देशक रहना है तो आपको हर रोज शूटिंग पर आना होगा।

महेश भट्ट उन दिनों तेजी से ऊपर जाते निर्देशक थे। उनका फिल्म इंडस्ट्री में अपना रुआब था। गांठते वह बड़े से बड़े दिग्गज को भी नहीं थे तो ये बात महेश भट्ट कैसे बर्दाश्त कर लेते। उन्होंने आमिर खान की क्लास लेनी शुरू की। और, उस समय आमिर खान का भी अपना रुतबा था। वह भी कहां महेश भट्ट की बात सुनने वाले थे। दोनों के बीच खूब बहस हुई और महेश भट्ट ने फिल्म छोड़ दी। फिल्म के निर्माता मुकेश भट्ट को फिर इस पूरे मामले में दखल देना पड़ा। किसी तरह उन्होंने आमिर खान को मनाया और फिल्म विक्रम भट्ट के निर्देशन में आगे बढ़ी।

रवि किशन इन दिनों भले ही सियासत के सुपरस्टार बने हुए हों, मगर बतौर अभिनेता उनकी पारी लम्बी और शानदार रही है, जो अभी बदस्...
01/10/2024

रवि किशन इन दिनों भले ही सियासत के सुपरस्टार बने हुए हों, मगर बतौर अभिनेता उनकी पारी लम्बी और शानदार रही है, जो अभी बदस्तूर जारी है. अपने करियर में उन्होंने भोजपुरी, साउथ और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में जमकर काम किया है और अपने लिए खास जगह बनायी. हालांकि, यह सब उतना आसान नहीं रहा.

रवि एक ऐसे अभिनेता हैं जो कभी हीरो बने तो कभी विलेन, कभी हीरोइनों के साथ रोमांस किया तो कभी अपने सेंस ऑफ ह्यूमर से दर्शकों को हंसने पर मजबूर किया. उन्होंने सिर्फ भोजपुरी सिनेमा में ही नहीं, बल्कि बॉलीवुड, कन्नड़ और तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में भी अपने अभिनय का झंडा लहराया. रवि किशन ने सिल्वर स्क्रीन्स पर तो तहलका मचाया ही, आजकल ओटीटी स्पेस में भी छाए हुए हैं.

माँ-पापा को छोड़ दिये

रवि किशन 17 जुलाई 1969 को जन्मे. बचपन से ही उन्हें एक्टिंग का शौक था, लेकिन उनके परिवार को यह पसंद नहीं था. उनके पिता ने उन पर दबाव बनाया कि वह अपने सपनों को छोड़ दें, लेकिन रवि ने कभी हार नहीं मानी. उन्होंने मां से 500 रुपये लिए और मुंबई चले गए, जहां वे अपने अपने आपको स्थापित करने के लिए स्वयं जिम्मेदार थे.

‘पीतांबर’ पहली फिल्म

भले ही रवि किशन भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार रहे, लेकिन उन्होंने अपना करियर बॉलीवुड से शुरू किया था. सालों तक धक्के खाने के बाद साल 1991 में रवि को पहली हिंदी फिल्म मिली थी, जो बी-ग्रेड मूवी ‘पितांबर’ थी. अपनी पहली ही फिल्म से रवि ने थोड़ी-बहुत पहचान बना ली थी.रवि किशन फिल्मों के साथ-साथ टेलीविजन शोज में भी कार्यरत थे. उन्हें इंडस्ट्री में काम की गरिमा, पैसा और नाम की कमी थी, जो उन्हें भोजपुरी फिल्म “सैयां हमार” से मिली. भोजपुरी फिल्मकार मोहनजी प्रसाद इस फिल्म के लिए एक नए चेहरे की तलाश में थे जब किसी ने उन्हें रवि किशन के बारे में बताया.

इस फिल्म से बने भोजपुरी सुपरस्टार

शुरूआत में उन्हें मराठी एक्टर समझा गया था, लेकिन बाद में पता चला कि वे जौनपुर से हैं. इसके बाद, निर्माता ने तुरंत रवि को “सैयां हमार” के लिए साइन कर लिया. इस फिल्म ने 2002 के होली पर रिलीज होते ही बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया, बिहार में लगभग 66 थिएटर्स में स्क्रीन होने के बाद. यह फिल्म ने रवि किशन को भोजपुरी फिल्म उद्योग में सुपरस्टार बना दिया.

‘खाकी’ में भी दिखे

आज रवि भोजपुरी से लेकर हिंदी और साउथ फिल्मों में भी अपने अभिनय का जादू चला रहे हैं. रवि को सिर्फ हीरो नहीं बल्कि विलेन के किरदार में भी पसंद किया गया है. वह ‘खाकी’ और ‘कंट्री माफिया’ जैसी वेब सीरीज में भी अपनी एक्टिंग का हुनर दिखा चुके हैं. यही नहीं, वह राजनीति में भी एक्टिव हैं. वह भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं.

निषाद कुमार भारत के एक प्रमुख पैरा एथलीट हैं, जिन्होंने अपनी अद्वितीय खेल प्रतिभा और संघर्ष के दम पर देश को गर्व महसूस क...
01/10/2024

निषाद कुमार भारत के एक प्रमुख पैरा एथलीट हैं, जिन्होंने अपनी अद्वितीय खेल प्रतिभा और संघर्ष के दम पर देश को गर्व महसूस कराया है। वे पैरा-एथलेटिक्स में विशेष रूप से ऊंची कूद (हाई जंप) में उत्कृष्टता हासिल कर चुके हैं और 2021 में टोक्यो पैरालंपिक खेलों में भारत के लिए रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया।

निषाद कुमार का जन्म हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में हुआ था। उनका बचपन सामान्य बच्चों की तरह नहीं था। 8 साल की उम्र में एक दुर्घटना के कारण उन्होंने अपना दाहिना हाथ खो दिया। इस हादसे के बाद भी निषाद ने हार नहीं मानी और जीवन में आगे बढ़ने का फैसला किया। उनका झुकाव शुरू से ही खेलों की ओर था, और उन्होंने अपनी शारीरिक चुनौतियों को अपने हौसले के आड़े नहीं आने दिया।

निषाद की खेल यात्रा तब शुरू हुई जब उन्होंने ऊंची कूद में अपनी प्रतिभा दिखानी शुरू की। उन्होंने अपने करियर के शुरुआती वर्षों में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया और अपनी बेहतरीन कूद क्षमता से सभी को प्रभावित किया। 2021 में टोक्यो पैरालंपिक में, निषाद ने पुरुषों की T47 ऊंची कूद प्रतियोगिता में 2.06 मीटर की छलांग लगाकर रजत पदक जीता। इस अद्वितीय प्रदर्शन के साथ ही उन्होंने एशियाई रिकॉर्ड भी स्थापित किया।

निषाद की इस सफलता ने उन्हें तुरंत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उनकी यह उपलब्धि केवल एक व्यक्तिगत विजय नहीं थी, बल्कि उन्होंने उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा का काम किया जो शारीरिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। निषाद कुमार ने यह साबित कर दिया कि यदि इंसान के अंदर आत्मविश्वास, समर्पण, और कड़ी मेहनत का जज्बा हो, तो कोई भी बाधा उसे उसके लक्ष्य से नहीं रोक सकती।

उनकी इस ऐतिहासिक जीत के बाद भारत में उन्हें बहुत सम्मानित किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई बड़े नेताओं और खेल हस्तियों ने उनकी सराहना की। निषाद का यह सफर बेहद प्रेरणादायक है, क्योंकि उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने सपनों को पूरा किया और देश के लिए गौरव का क्षण लेकर आए।

निषाद कुमार का जीवन और उनका संघर्ष हमें यह सिखाता है कि कभी भी अपनी कठिनाइयों से हार नहीं माननी चाहिए। वे आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं, विशेषकर उन युवाओं के लिए जो खेलों में अपने करियर की शुरुआत करना चाहते हैं। निषाद की कहानी भारतीय खेल जगत में एक सुनहरे अध्याय के रूप में याद की जाएगी।

ऋषभ पंत भारत के सबसे गतिशील और प्रतिभाशाली क्रिकेटरों में से एक हैं, जो मैदान पर अपनी आक्रामक बल्लेबाजी शैली और निडर दृष...
01/10/2024

ऋषभ पंत भारत के सबसे गतिशील और प्रतिभाशाली क्रिकेटरों में से एक हैं, जो मैदान पर अपनी आक्रामक बल्लेबाजी शैली और निडर दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कम उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है, खासकर टेस्ट मैचों में। यहाँ उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन का अवलोकन है:

परिवार:
माता-पिता: ऋषभ पंत का जन्म 4 अक्टूबर 1997 को रुड़की, उत्तराखंड, भारत में राजेंद्र पंत और सरोज पंत के घर हुआ था। उनके पिता, राजेंद्र पंत का 2017 में निधन हो गया, जो ऋषभ के लिए एक कठिन समय था क्योंकि उन्हें अपने क्रिकेट कैरियर के दौरान नुकसान का सामना करना पड़ा था। उनकी मां सरोज पंत अपने पूरे सफर में सहारा का स्तंभ रही हैं। ऋषभ की एक बड़ी बहन भी है साक्षी पंत
परवरिश: रिषभ के शुरुआती साल रुड़की में गुजरे थे, लेकिन क्रिकेट के सपनों को साकार करने दिल्ली चले गए। उनके परिवार ने उनकी महत्वाकांक्षाओं का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और उनकी मां उनकी परवरिश में विशेष रूप से प्रभावशाली रही हैं।

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