08/05/2023
ओम शांति 🙏 ये एक कहानी के माध्यम से मैं आप तक ईश्वरीय प्रेम पहुंचाने कि कोशिश कर रहा हूं, ये मेरे अन्तर आत्मा से महसूस कर ये एक कहानी लिखने जा रहा हूं, उम्मीद है आपको अच्छा लगेगा:-
हम मनुष्य आत्माओं को अपने जीवन में कितनी जरूरत है परमात्मा कि, आईये एक कहानी के माध्यम जानते हैं :-
एक शहर में २ व्यक्ति पड़ोसी आमने-सामने रहा करते हैं।
पहला व्यक्ति ठीक ठाक कमा लेता है, और अपना जीवन यापन किसी तरह चलाएं रहता है। अपना सुखी ज़िन्दगी में व्यस्त रहता है, और दूसरा व्यक्ति उनका बहुत बड़ा कारोबार बहुत धन कमाया रहता फिर भी और कमाने कि चाहत,
उन्हें धन के सिवाय कुछ नज़र ही नहीं आता, मानों सोते वक्त भी धन ही दिखाई देता है उसको।
एक दिन की बात है, पहले व्यक्ति को ईश्वरीय संदेश मिलता है, और वो अपने जीवन में परिवर्तन लाकर सदा के लिए खुश महसूस करने लगता है, और एक दिन वो पहला व्यक्ति पड़ोसी होने के नाते उनका भी भला हो, यही समझकर उनके पास ईश्वरीय संदेश ले के जाते हैं,
तो दूसरा व्यक्ति कहते हैं कि - अभी तो मुझे फुर्सत नहीं है, भाई साहब!,
मेरा तो व्यापार बढ़कर मैं खुद के लिए भी समय दे नहीं पाता हूं, वैसे मैं सब कुछ जानता हूं, मुझमें बहुत ज्ञान है, मैं भी पूजा पाठ करता हूं। बिना पूजा किये, बिना भगवान को याद किये, मैं अपने व्यापार में नहीं बैठता, समय मिलने पर जरुर ज्ञान सुनने आऊँगा, फिर यही कहते दूसरा व्यक्ति पहला व्यक्ति की बात को टाल देते हैं।
उसके बाद समय का ऐसे मोड़ आया कि..., वो दूसरा व्यक्ति जो धन से बहुत धनवान थे, जो! संसार में हर किसी को खरीदने की समक्षता रखता था, वे बहुत गम्भीर बीमार हो गये और विस्तर पर लेटने लायक बन गये। कुछ दिन बीत गये, फिर उनके रिश्ते नाते, यहां तक की डाक्टर भी हाथ उठा दिए, और बोले, अब कुछ भी नहीं हो पायेगा, अब सब कुछ ऊपर वाले के हाथ में है।
डॉक्टर यही कहकर चल पड़े, सभी ने जवाब दे दिया, और जिसके पीछे रात दिन भागा,फिर रहा था, उस 'धन' ने भी जवाब दे दिया कि - मैं भी कुछ कर नहीं सकता, जब तक तुम्हारा शरीर स्वस्थ रहेगा तब तक मैं धन साथ हूँ, उसके बाद मैं भी काल को हरा नहीं सकता, तब वो दूसरा बीमारी से पीड़ित व्यक्ति थके हारे सोच में पड जाते हैं, मैं किस भगवान को याद करूं, हमारे तो इतने सारे भगवान हैं, किसी एक को कैसे पुकारूँ?
कौन है? जो मेरी मदद करने वाले भगवान? अन्त में पहला पड़ोसी याद आते हैं और उनको बुलाते हैं, और वे पहला व्यक्ति परमात्मा का परिचय देते हैं, उस दूसरे व्यक्ति को पश्चाताप होने लगता है, काश मैं सही समय पर भगवान कि पहचान कर लेता तो, आज मैं सकून से शरीर छोड़ पाता भगवान कि याद में।
ऐसे भगवान को पुकार कर, रो रो कर आँख आँसुओं से भर आई, और शरीर छोड़ दिया।
दोस्तों ये कहानी का भावार्थ यही है कि हम जब तक शरीर से ठीक रहते हैं, हमें देह अभिमान में आने के कारण हम यथार्थ भगवान के परिचय से दूर हो जाते हैं, हमें लगता है कि... हम सब कुछ जानते हैं।
यदि! सब कुछ जानते हैं, तो! हम एक दूसरे के खून के प्यासे क्यूँ बनते, किसी भी धर्म शास्त्रों में ये नहीं सिखाया है, क्योंकि हम इस संसार की मृग तृष्णा में जी रहे हैं। ये दुनियाँ माया कि दुनियाँ है।
हम भगवान से वंचित हैं, अपने पिता भगवान इस सृष्टि पर आ गये हैं, पहचानों, अपने पिता को समय बहुत ही कम है, माया के मृग तृष्णा में नहीं फँसो, संसार की पुकार की आवाज को समझने कि कोशिश करो।
हम सब बारूद के ढ़ेर पर खड़े हैं, कभी भी 3 विश्व युद्ध कि चिंगारी लग सकती है, प्रकृति चारों ओर तांडव खेल मचा रही है, बस! हम सबको जगाने भगवान आये हैं, जागो! जागो! मेरे भारत वासियों गीता के भगवान आ चुके हैं इस धरा पर, धन्यवाद ओम शांति 🙏