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New Mahalaxmi DJ SOUND Jasrapur Jhunjhunu Rajasthan India
22/10/2024

New Mahalaxmi DJ SOUND Jasrapur Jhunjhunu Rajasthan India

Dj Anmol Bhurasar & Honey Dj Sound Samaspur Jhunjhunu Rajasthan                                                         ...
24/09/2024

Dj Anmol Bhurasar & Honey Dj Sound Samaspur Jhunjhunu Rajasthan

कोनसा डीजे है बताओ.........................................................................................................
22/08/2024

कोनसा डीजे है बताओ................................................................................................................

13/04/2024

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05/11/2023
*भादवे का घी* भारतीय देसी गौमाता का घी.. भाद्रपद मास आते आते घास पक जाती है।जिसे हम घास कहते हैं, वह वास्तव में अत्यंत द...
21/08/2023

*भादवे का घी*
भारतीय देसी गौमाता का घी..
भाद्रपद मास आते आते घास पक जाती है।
जिसे हम घास कहते हैं, वह वास्तव में अत्यंत दुर्लभ औषधियाँ हैं।
इनमें धामन जो कि गायों को अति प्रिय होता है, खेतों और मार्गों के किनारे उगा हुआ साफ सुथरा, ताकतवर चारा होता है।
सेवण एक और घास है जो गुच्छों के रूप में होता है। इसी प्रकार गंठिया भी एक ठोस खड़ है। मुरट, भूरट,बेकर, कण्टी, ग्रामणा, मखणी, कूरी, झेर्णीया,सनावड़ी, चिड़की का खेत, हाडे का खेत, लम्प, आदि वनस्पतियां इन दिनों पक कर लहलहाने लगती हैं।
यदि समय पर वर्षा हुई है तो पड़त भूमि पर रोहिणी नक्षत्र की तप्त से संतृप्त उर्वरकों से ये घास ऐसे बढ़ती है मानो कोई विस्फोट हो रहा है।
इनमें विचरण करती गायें, पूंछ हिलाकर चरती रहती हैं। उनके सहारे सहारे सफेद बगुले भी इतराते हुए चलते हैं। यह बड़ा ही स्वर्गिक दृश्य होता है।
इन जड़ी बूटियों पर जब दो शुक्ल पक्ष गुजर जाते हैं तो चंद्रमा का अमृत इनमें समा जाता है। आश्चर्यजनक रूप से इनकी गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है।
कम से कम 2 कोस चलकर, घूमते हुए गायें इन्हें चरकर, शाम को आकर बैठ जाती है।
रात भर जुगाली करती हैं।
अमृत रस को अपने दुग्ध में परिवर्तित करती हैं।
यह दूध भी अत्यंत गुणकारी होता है।
इससे बने दही को जब मथा जाता है तो पीलापन लिए नवनीत निकलता है।
5से 7 दिनों में एकत्र मक्खन को गर्म करके, घी बनाया जाता है।
इसे ही #भादवे_का_घी कहते हैं।
इसमें अतिशय पीलापन होता है। ढक्कन खोलते ही 100 मीटर दूर तक इसकी मादक सुगन्ध हवा में तैरने लगती है।
बस,,,, मरे हुए को जिंदा करने के अतिरिक्त, यह सब कुछ कर सकता है।
ज्यादा है तो खा लो, कम है तो नाक में चुपड़ लो। हाथों में लगा है तो चेहरे पर मल दो। बालों में लगा लो।
दूध में डालकर पी जाओ।
सब्जी या चूरमे के साथ जीम लो।
बुजुर्ग है तो घुटनों और तलुओं पर मालिश कर लो। गर्भवतियों के खाने का मुख्य अवयव यही था।
इसमें अलग से कुछ भी नहीं मिलाना। सारी औषधियों का सर्वोत्तम सत्व तो आ गया!!
इस घी से हवन, देवपूजन और श्राद्ध करने से अखिल पर्यावरण, देवता और पितर तृप्त हो जाते हैं।
कभी सारे मारवाड़ में इस घी की धाक थी।
कहते है कि इसका सेवन करने वाली विश्नोई महिला 5 वर्ष के उग्र सांड की पिछली टांग पकड़ लेती और वह चूं भी नहीं कर पाता था।
एक और घटना में एक व्यक्ति ने एक रुपये के सिक्के को मात्र उँगुली और अंगूठे से मोड़कर दोहरा कर दिया था!!
आधुनिक विज्ञान तो घी को वसा के रूप में परिभाषित करता है। उसे भैंस का घी भी वैसा ही नजर आता है। वनस्पति घी, डालडा और चर्बी में भी अंतर नहीं पता उसे।
लेकिन पारखी लोग तो यह तक पता कर देते थे कि यह फलां गाय का घी है!!
यही वह घी था जिसके कारण युवा जोड़े दिन भर कठोर परिश्रम करने के बाद भी बिलकुल नहीं थकते थे.......
इसमें इतनी ताकत रहती थी, जिससे सर कटने पर भी धड़ लड़ते रहते थे!!
इसे घड़ों में या घोड़े के चर्म से बने विशाल मर्तबानों में इकट्ठा किया जाता था जिन्हें "दबी" कहते थे।
घी की गुणवत्ता तब और बढ़ जाती, यदि गाय पैदल चलते हुए स्वयं गौचर में चरती थी, तालाब का पानी पीती, जिसमें प्रचुर विटामिन डी होता है और मिट्टी के बर्तनों में बिलौना किया जाता हो।
वही गायें, वही भादवा और वही घास,,,, आज भी है। इस महान रहस्य को जानते हुए भी यदि यह व्यवस्था भंग हो गई तो किसे दोष दें?
जब गाय नहीं होगी,,,
तब घी कहां होगा,,,,
विचारणीय 🙏🙏

माता पन्ना धाय के जीवन का संक्षिप्त परिचय नाम:- वीरांगना पन्नाधाय।पिता:- हरचंद जी हांकला (गुर्जर)।जन्म स्थान:- चित्तौड़गढ़...
19/08/2023

माता पन्ना धाय के जीवन का संक्षिप्त परिचय
नाम:- वीरांगना पन्नाधाय।

पिता:- हरचंद जी हांकला (गुर्जर)।

जन्म स्थान:- चित्तौड़गढ़ के समीप पाण्डोली गांव।

पति:- कमेरी गांव के चौहान गोत्रीय लालाजी गुर्जर के पुत्र श्री सूरजमल से पन्ना का विवाह हुआ। पन्ना का पति सूरजमल एक वीर सैनिक था और चित्तौड़ राज्य में सेवारत था।

वंषज:- पन्ना का एकमात्र पुत्र चंदन था जिसकी बाल्यावस्था में ही बलि चढ़ाकर पन्ना ने मेवाड़ राज्य के कुलदीपक उदयसिंह की रक्षा की थी।

चारित्रिक विषेषताएं:- विष्व इतिहास में पन्ना के त्याग जैसा दूसरा दृष्टांत अनुपलब्ध है। अविस्मरणीय बलिदान, त्याग, साहस, स्वाभिमान एवं स्वामिभक्ति के लिए पन्नाधाय का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। वह एक कर्तव्यनिष्ठ साहसी महिला थी।

सामाजिक/राजनीतिक योगदान:- स्वामिभक्त और वीरांगना पन्ना ने महाराणा सांगा के छोटे पुत्र राजकुमार उदयसिंह की प्राण रक्षा के लिए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान कर मेवाड़ के राजवंष की रक्षा की और मेवाड़ को अस्थिरता से बचा लिया। पन्ना को महारानी कर्मवती की सेवा तथा उदयसिंह को अपना दूध पिलाने के लिए धाय मां के रूप में नियुक्त किया गया था। रानी कर्मवती की मृत्यु के बाद कुंवर उदयसिंह की देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी पन्ना ने अपना सर्वस्व समर्पित कर निभाई थीं। पन्ना के प्रयासों से ही उदयसिंह पुनः चित्तौड़ की राजगद्दी पर आसीन हो सका।

जीवन की प्रमुख प्रेरणादायी घटनाएं:- चित्तौड़ का शासक बना बनवीर जब कुंवर उदयसिंह की हत्या करने हेतु नंगी तलवार लिये आधी रात को पन्ना के कक्ष में प्रविष्ट हुआ और पूछने लगा कि उदयसिंह कहां है, तो वीरांगना पन्ना ने अपने पुत्र चंदन की ओर इषारा कर दिया। दुष्ट बनवीर ने चंदन के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। किन्तु बहादुर पन्ना ने उफ् तक नहीं की। बनवीर के जाने पर पन्ना ने चतुराई से उदयसिंह को महल के बाहर भेजकर, अपने पुत्र चंदन का दाह संस्कार किया और स्वयं भी चुपचाप महल से निकल गई।

पन्ना ने न केवल उदयसिंह की जान बचाई अपितु उसे सुरक्षित रखने हेतु दर-दर की ठोकरें खाई। अंत में कुभलगढ़ के किलेदार आषा शाह देवपुरा ने इन्हें शरण दी। यही नहीं पन्ना ने राजनीतिक कौशल दिखाते हुए अवसर आने पर कुंभलगढ़ में ही मेवाड़ के प्रमुख सरदारों को एकत्रित करवाकर कुंवर उदयसिंह का राज्याभिषेक करवाया। उदयसिंह के चित्तौड़ विजय कर पुनः राजगद्दी पर बैठने तक पन्ना ने चैन की सांस नहीं ली।

सन् 1540 ई. में चित्तौड़ दुर्ग पर महाराणा उदयसिंह का आधिपत्य हो गया। महाराणा उदयसिंह ने कुंभलगढ़ से महारानी जैवंती बाई, राजकुमार प्रतापसिंह, धाय मां पन्ना को चित्तौड़ बुला लिया। पन्नाधाय ने अपना संकल्प और जीवन साधना पूर्ण होने पर ही वापस चित्तौड़गढ़ में प्रवेष किया। महान् बलिदानी पन्नाधाय ने जिस साम्राज्य की रक्षा हेतु अपने पुत्र चंदन की बलि चढ़ा दी और राज्य के वास्तविक उत्तराधिकारी को सुरक्षित रखने के लिए जीवन भर संघर्ष किया, उसकी वह तपस्या सफल हुई। पन्ना का समर्पण सार्थक हुआ। प्रतापसिंह जैसे विष्वविख्यात देषभक्त शूरवीर और स्वाभिमानी व्यक्ति ने जिस वंष में जन्म लेकर महाराणा के पदको सुषोभित किया, वह पन्नाधाय के अमर बलिदान से ही संम्भव हुआ।

एक औरत की कहानी 👉👉👉👉👉लगातार दो बेटियां हो गई दो साल के अंतराल में। सच कहूं तो मैं खुश नहीं थी। मेरे सपने अधूरे रह गए। मे...
18/08/2023

एक औरत की कहानी 👉👉👉👉👉
लगातार दो बेटियां हो गई दो साल के अंतराल में। सच कहूं तो मैं खुश नहीं थी। मेरे सपने अधूरे रह गए। मेरा सपना था कि एक बेटा भी मेरे गोद में खेले मगर मेरे अच्छे पति ने जब कहा "दो बेटियों को ही हम पाल पोस कर काबिल बनाएंगे स्नेहा। क्यों बेटे के लिए तरस रही हो। आज के इस महंगाई के जमाने में दो से ज्यादा बच्चे होना भी देश के अहित में है।। वैसे ही देश में जनसंख्या बहुत है। दो बेटियों के बाद अगर एक बेटा हो गया तो तुम्हारा ध्यान भी बेटे की ओर ज्यादा रहेगा जिससे बेटियां स्वयं को तिरस्कृत महसूस करेगी। मैं ऐसा होने देना नहीं चाहता। हमारा छोटा परिवार सुखी परिवार।"
मेरे पति की बात मुझे कुछ हद तक तो समझ में आ गई मगर मन में एक अधूरा ख्वाब रह गया।

हम दोनों ने मिलकर दोनों बेटियों को अच्छी शिक्षा और अच्छी संस्कृति से अच्छा व्यक्तित्व दिया। बड़ी बेटी डॉक्टर बनी तो छोटी बेटी इंजीनियर। बड़ी धूमधाम से दोनों बेटियों की अच्छे लड़कों से शादी भी की। बड़ा दामाद डॉक्टर है तो छोटा दामाद इंजीनियर। दोनों बेटियों को ही अपना मनपसंद जीवनसाथी मिला। हम बहुत खुश थे इसलिए खुशी से जीवन बितने लगे। मेरे पति ने जो भी संपत्ति हमारे पास थी, दोनों बेटियों में आधा-आधा बांट दिया। जब बड़ी बेटी ने कहा कि "हमें आपकी संपत्ति की जरूरत नहीं है पापा। आप अपनी संपत्ति अपने पास ही रखिए।" तब मेरे पति ने जवाब दिया "हमारे घर के तुम ही तो वारिस हो। हमारे बाद हमारी संपत्ति की देखभाल तुम दोनों बहनें मिलकर ही तो करोगे।"
बेटी ने कहा "आप अभी कहीं नहीं जा रहे हैं पापा।"
"कभी ना कभी तो हमें जाना ही पड़ेगा बेटा। हाँ एक बात कहना चाहता हूं अगर मैं पहले चला गया तो अपनी माँ का ध्यान रखना।"
"और अगर मैं पहले चली गई तो?" मैं बोल पड़ी थी।
"यह भी कोई कहने वाली बात है क्या मम्मी, पापा? आप लोग ऐसा क्यों कह रहे हैं? आप दोनों की देखभाल करना हमारा कर्तव्य है।" कृतिका ने कहा।
"इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मेरे दोस्त बृजेश के दोनों बेटे अमेरिका में जाकर बस गए। अब बुढ़ापे में उनका सहारा कोई नहीं रहा। जब दो बेटे हुए थे तब बृजेश बहुत गर्वित था यह सोच कर कि दो वारिस पैदा हो गए। मुझे भी कहा था "एक बार और चांस ले लो अमूल्य, हो सकता है तीसरी बार कोई बेटा पैदा हो जाए। तुम्हारे बाद तुम्हारा कोई वारिस तो होगा।" मैंने भी हंसकर कहा था.."मेरी बेटियां ही वारिस बनेगी। मुझे बेटा नहीं चाहिए।" मेरे अच्छे पति ने कहा था।
पापा के गुजर जाने के बाद बड़ी बेटी कृतिका ने उस जमीन पर अपने पापा के नाम से एक अस्पताल खोला जो जमीन पापा ने संपत्ति का बंटवारा करते समय उसे दी थी। अस्पताल का नाम अपने पापा के नाम से 'अमूल्य आरोग्य केंद्र' रखा। छोटी बेटी अमृता के नाम से उसके पापा ने अपना मकान कर दिया था। अमृता ने उस मकान में बच्चों के लिए एक निशुल्क स्कूल खोल दिया और स्कूल का नाम मेरे नाम से 'स्नेहा विद्यालय' रखा। दोनों बेटियों ने माता पिता का नाम अमर कर दिया। आज मैं अपनी बेटियों पर गर्वित हूँ। मेरे मन में अब कोई अधूरा ख्वाब नहीं रह गया।

कौन कहता है कि केवल लड़के ही वारिस बनते हैं लड़कियां नहीं। जहां पर भी कृतिका और अमृता के पापा आज है वहीं से देखकर गर्व से उनका सीना चौड़ा हो रहा होगा यह सोच कर कि "मेरे बाद मेरी बेटियों ने हमारा नाम ऊंचा रखा है, जीवित रखा।"

बेटियों ने अपने कर्म से मेरा दृष्टिकोण ही बदल दिया। बेटा न होने का मन में कोई दुःख नहीं।🙏🙏🙏

Beautiful story.....👉👉👉पाँच दिन की छूट्टियाँ बिता कर जब ससुराल पहुँची तो पति घर के सामने स्वागत में खड़े थे। अंदर प्रवेश ...
17/08/2023

Beautiful story.....👉👉👉

पाँच दिन की छूट्टियाँ बिता कर जब ससुराल पहुँची तो पति घर के सामने स्वागत में खड़े थे। अंदर प्रवेश किया तो छोटे से गैराज में चमचमाती गाड़ी खड़ी थी स्विफ्ट डिजायर!

मैंने आँखों ही आँखों से पति से प्रश्न किया तो उन्होंने गाड़ी की चाबियाँ थमाकर कहा:-"कल से तुम इस गाड़ी में कॉलेज जाओगी प्रोफेसर साहिबा!"

"ओह माय गॉड!!'' ख़ुशी इतनी थी कि मुँह से और कुछ निकला ही नही। बस जोश और भावावेश में मैंने तहसीलदार साहब को एक जोरदार झप्पी देदी और अमरबेल की तरह उनसे लिपट गई।

उनका गिफ्ट देने का तरीका भी अजीब हुआ करता है। सब कुछ चुपचाप और अचानक!! खुद के पास पुरानी इंडिगो है और मेरे लिए और भी महंगी खरीद लाए।

6 साल की शादीशुदा जिंदगी में इस आदमी ने न जाने कितने गिफ्ट दिए। गिनती करती हूँ तो थक जाती हूँ। ईमानदार है रिश्वत नही लेते ।

मग़र खर्चीले इतने कि उधार के पैसे लाकर गिफ्ट खरीद लाते है।

लम्बी सी झप्पी के बाद मैं अलग हुई तो गाडी का निरक्षण करने लगी। मेरा फसन्दीदा कलर था। बहुत सुंदर थी।

फिर नजर उस जगह गई जहाँ मेरी स्कूटी खड़ी रहती थी।
हठात! वो जगह तो खाली थी।

"स्कूटी कहाँ है?" मैंने चिल्लाकर पूछा।
"बेच दी मैंने, क्या करना अब उस जुगाड़ का? पार्किंग में इतनी जगह भी नही है।"

"मुझ से बिना पूछे बेच दी तुमने??"
"एक स्कूटी ही तो थी; पुरानी सी। गुस्सा क्यूँ होती हो?"
उसने भावहीन स्वर में कहा तो मैं चिल्ला पड़ी:-"स्कूटी नही थी वो। मेरी जिंदगी थी। मेरी धड़कनें बसती थी उसमें। मेरे पापा की इकलौती निशानी थी मेरे पास।

मैं तुम्हारे तौफे का सम्मान करती हूँ मगर उस स्कूटी के बिना पे नही। मुझे नही चाहिए तुम्हारी गाड़ी। तुमने मेरी सबसे प्यारी चीज बेच दी। वो भी मुझसे बिना पूछे।'" मैं रो पड़ी।

शौर सुनकर मेरी सास बाहर निकल आई। उसने मेरे सर पर हाथ फेरा तो मेरी रुलाई और फुट पड़ी। "रो मत बेटा, मैंने तो इससे पहले ही कहा था।

एक बार बहु से पूछ ले। मग़र बेटा बड़ा हो गया है। तहसीलदार!! माँ की बात कहाँ सुनेगा? मग़र तू रो मत। और तू खड़ा-खड़ा अब क्या देख रहा है वापस ला स्कूटी को।"

तहसीलदार साहब गर्दन झुकाकर आए मेरे पास। रोते हुए नही देखा था मुझे पहले कभी। प्यार जो बेइन्तहा करते हैं। याचना भरे स्वर में बोले:- सॉरी यार! मुझे क्या पता था वो स्कूटी तेरे दिल के इतनी करीब है। मैंने तो कबाड़ी को बेचा है सिर्फ सात हजार में।

वो मामूली पैसे भी मेरे किस काम के थे? यूँ ही बेच दिया कि गाड़ी मिलने के बाद उसका क्या करोगी? तुम्हे ख़ुशी देनी चाही थी आँसू नही। अभी जाकर लाता हूँ। "
फिर वो चले गए।

मैं अपने कमरे में आकर बैठ गई। जड़वत सी। पति का भी क्या दोष था। हाँ एक दो बार उन्होंने कहा था कि ऐसे बेच कर नई ले ले। मैंने भी हँस कर कह दिया था कि नही यही ठीक है।

लेकिन अचानक स्कूटी न देखकर मैं बहुत ज्यादा भावुक हो गई थी। होती भी कैसे नही। वो स्कूटी नही "औकात" थी मेरे पापा की।

जब मैं कॉलेज में थी तब मेरे साथ में पढ़ने वाली एक लड़की नई स्कूटी लेकर कॉलेज आई थी। सभी सहेलियाँ उसे बधाई दे रही थी।

तब मैंने उससे पूछ लिया:- "कितने की है?
उसने तपाक से जो उत्तर दिया उसने मेरी जान ही निकाल ली थी:-" कितने की भी हो? तेरी और तेरे पापा की औकात से बाहर की है।"

अचानक पैरों में जान नही रही थी। सब लड़कियाँ वहाँ से चली गई थी। मगर मैं वही बैठी रह गई। किसी ने मेरे हृदय का दर्द नही देखा था। मुझे कभी यह अहसास ही नही हुआ था कि वे सब मुझे अपने से अलग "गरीब"समझती थी। मगर उस दिन लगा कि मैं उनमे से नही हूँ।

घर आई तब भी अपनी उदासी छूपा नही पाई। माँ से लिपट कर रो पड़ी थी। माँ को बताया तो माँ ने बस इतना ही कहा" छिछोरी लड़कियों पर ज्यादा ध्यान मत दे! पढ़ाई पर ध्यान दे!"

रात को पापा घर आए तब उनसे भी मैंने पूछ लिया:-"पापा हम गरीब हैं क्या?"

तब पापा ने सर पे हाथ फिराते हुए कहा था"-हम गरीब नही हैं बिटिया, बस जरासा हमारा वक़्त गरीब चल रहा है।"

फिर अगले दिन भी मैं कॉलेज नही गई। न जाने क्यों दिल नही था। शाम को पापा जल्दी ही घर आ गए थे। और जो लाए थे वो उतनी बड़ी खुशी थी मेरे लिए कि शब्दों में बयाँ नही कर सकती। एक प्यारी सी स्कूटी। तितली सी। सोन चिड़िया सी।

नही, एक सफेद परी सी थी वो। मेरे सपनों की उड़ान। मेरी जान थी वो। सच कहूँ तो उस रात मुझे नींद नही आई थी। मैंने पापा को कितनी बार थैंक्यू बोला याद नही है। स्कूटी कहाँ से आई ?

पैसे कहाँ से आए ये भी नही सोच सकी ज्यादा ख़ुशी में। फिर दो दिन मेरा प्रशिक्षण चला। साईकिल चलानी तो आती थी। स्कूटी भी चलानी सीख गई।

पाँच दिन बाद कॉलेज पहुँची। अपने पापा की "औकात" के साथ। एक राजकुमारी की तरह। जैसे अभी स्वर्णजड़ित रथ से उतरी हो। सच पूछो तो मेरी जिंदगी में वो दिन ख़ुशी का सबसे बड़ा दिन था। मेरे पापा मुझे कितना चाहते हैं सबको पता चल गया।

मग़र कुछ दिनों बाद एक सहेली ने बताया कि वो पापा के साईकिल रिक्सा पर बैठी थी। तब मैंने कहा नही यार तुम किसी और के साईकिल रिक्शा पर बैठी हो। मेरे पापा का अपना टेम्पो है।

मग़र अंदर ही अंदर मेरा दिमाग झनझना उठा था। क्या पापा ने मेरी स्कूटी के लिए टेम्पो बेच दिया था। और छः महीने से ऊपर हो गए। मुझे पता भी नही लगने दिया।
शाम को पापा घर आए तो मैंने उन्हें गोर से देखा।

आज इतने दिनों बाद फुर्सत से देखा तो जान पाई कि दुबले पतले हो गए है। वरना घ्यान से देखने का वक़्त ही नही मिलता था। रात को आते थे और सुबह अँधेरे ही चले जाते थे। टेम्पो भी दूर किसी दोस्त के घर खड़ा करके आते थे।

कैसे पता चलता बेच दिया है।
मैं दौड़ कर उनसे लिपट गई!:-"पापा आपने ऐसा क्यूँ किया?" बस इतना ही मुख से निकला। रोना जो आ गया था।

" तू मेरा ग़ुरूर है बिटिया, तेरी आँख में आँसू देखूँ तो मैं कैसा बाप? चिंता ना कर बेचा नही है। गिरवी रखा था। इसी महीने छुड़ा लूँगा।"

"आप दुनिया के बेस्ट पापा हो। बेस्ट से भी बेस्ट।इसे सिद्ध करना जरूरी कहाँ था? मैंने स्कूटी मांगी कब थी?क्यूँ किया आपने ऐसा? छः महीने से पैरों से सवारियां ढोई आपने। ओह पापा आपने कितनी तक़लीफ़ झेली मेरे लिए ?

मैं पागल कुछ समझ ही नही पाई ।" और मैं दहाड़े मार कर रोने लगी। फिर हम सब रोने लगे। मेरे दोनों छोटे भाई। मेरी मम्मी भी।

पता नही कब तक रोते रहे ।
वो स्कूटी नही थी मेरे लिए। मेरे पापा के खून से सींचा हुआ उड़नखटोला था मेरा। और उसे किसी कबाड़ी को बेच दिया। दुःख तो होगा ही।

अचानक मेरी तन्द्रा टूटी। एक जानी-पहचानी सी आवाज कानो में पड़ी। फट-फट-फट,, मेरा उड़नखटोला मेरे पति देव यानी तहसीलदार साहब चलाकर ला रहे थे।
और एकदम मुझे ऐसा लगा कि जैसे पापा ने शुरू में ले कर आए थे और फिर मै उस से लिपट गई जैसे बचपन में पापा से लिपट जाती थी।

 #महत्वपूर्ण_सूचना 1) मीटर की रीडिंग लेने आये हुवे व्यक्ति का नाम,पहचान पत्र देखे और जिस दिन रीडिंग ली जाये उस दिन स्वक्...
16/08/2023

#महत्वपूर्ण_सूचना

1) मीटर की रीडिंग लेने आये हुवे व्यक्ति का नाम,पहचान पत्र देखे और जिस दिन रीडिंग ली जाये उस दिन स्वक्षर (sign) ले।

2) ध्यान दे अगली बार यह रीडिंग 30 दिन बाद लिए जाते है या नहीं

3) 30 दिन के बाद रीडिंग लेने आनेवाले को रीडिंग लेने ना दे और तुरंत बिजली विभाग के अफसर से शिकायत करें।

4) बिल्डिंग/सोसाइटी हो तो सोसाइटी के सेक्रेटरी ने यह काम वॉचमैन से हर महीने करवाना चाहिए

100 रीडिंग तक 3.76 रु प्रति यूनिट लगता है।

30 दिन में रीडिंग ना लेने की वजह 100 के ऊपर रीडिंग जाती है और फिर आपको 7.21 रु प्रति यूनिट लगाया जाता है।

300 के ऊपर रेडिंग गयी तो तीन गुना शुल्क लगता है यानी 9.91 रु प्रति यूनिट।

500 के ऊपर रीडिंग गई तो चार गुना शुल्क 11.31 रु प्रति यूनिट ।

आप सब से अपील है के ऊपर लिखी बातों का पालन करें और अधिक से अधिक लोगो को इसकी सुचना करे

01/08/2023

कमाल का जुगाड ❤️👍👍

15/05/2023

जब शादी की तारीख फिक्स हो जाती है तो लड़की का बाप लड़के के बाप से पूछता है कितनी बारात लाओगे?
लड़के का बाप कहता है तीन सौ।
लड़की का बाप बोलता है इतनी बारात बहुत ज्यादा हो जाएगी, दो सौ बारात ले आना।
लड़के का बाप कहता है दो सौ बारात में हमें नहीं होगी हमारी इज्जत चली जाएगी। गांव में हर घर से कम से कम एक आदमी तो पूछना ही पड़ेगा तो सिर्फ गांव के दो सौ लोग हो जाएंगे फिर हमारे रिश्तेदार और घर की औरतें हो जाएंगी, जिसे नहीं पूछेंगे वही बुरा मान जाएगा इसलिए कम से कम तीन सौ लोग आएंगे। हम तो आपके हालात देखकर तीन सौ बाराती ला रहे हैं वरना हमारा परिवार इतना बड़ा है कि और इतने नाते रिश्तेदार हैं कि हमें चार सौ बाराती से ज्यादा लाना चाहिए।

कुछ दिनों बाद जब उसी लड़के वालों के घर में कोई बीमार हो जाता है तो पूरे गांव में कोई एक यूनिट खून देने वाला नहीं मिलता। सोशल मीडिया में अपील करना पड़ता है। अगर किसी से झगड़ा हो जाता है तो पूरे गांव में दो लोग ऐसे नहीं मिलते जो कोर्ट में चलकर ज़मानत ले लें।

मेरा मानना है कि बारात में सिर्फ उन्हें ही लेकर जाना चाहिए जो
एक यूनिट ब्लड दे सकें और जो कोर्ट में खड़े होकर तुम्हारी जमानत ले सकें।

बस यही तुम्हारे हैं बाकी सब गैर हैं।
🙏🙏🌹

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Jaipur
Jaipur
302012

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