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“बसुंधरा-तले भारत-रमणी नुहे हीन नुहे दीन अमर कीरति कोटि युगे केभें जगतुं नोहिब लीन।,,अर्थात्...भारत की नारी पृथ्वी पर कि...
14/01/2025

“बसुंधरा-तले भारत-रमणी नुहे हीन नुहे दीन अमर कीरति कोटि युगे केभें जगतुं नोहिब लीन।,,

अर्थात्...

भारत की नारी पृथ्वी पर किसी की तुलना में न तो हीन है, न दीन है। सम्पूर्ण जगत में उसकी अमर कीर्ति युगों-युगों तक कभी लुप्त नहीं होगी यानि सदैव बनी रहेगी।

- 'उत्कल भारती' कुंतला कुमारी साबत

प्रयागराज में टूट गए सारे रिकॉर्ड!1 करोड़ 65 लाख लोगों ने पहले दिन किया अमृत स्नान।महाकुंभ में 1.65 करोड़ श्रद्धालुओं ने...
13/01/2025

प्रयागराज में टूट गए सारे रिकॉर्ड!

1 करोड़ 65 लाख लोगों ने पहले दिन किया अमृत स्नान।

महाकुंभ में 1.65 करोड़ श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई, 44 घाटों पर हुआ स्नान

हेलिकॉप्टर से फूल बरसाए, NSG कमांडो रख रहे नजर।

महाकुंभ 144 साल में दुर्लभ खगोलीय संयोग में हो रहा है।

यह वही संयोग है, जो समुद्र मंथन के दौरान बना था।






#महाकुम्भ2025 #एकता_का_महाकुम्भ

12/01/2025

स्वामी विवेकानंद एक अध्यात्मवादी और हिन्दू-धर्म के उद्धारक तथा व्याख्याता थे तथा भारतीय समाज के सम्बंध में भी विचार व्यक्त किये, उन्होंने अस्पृश्यता की घोर निंदा की

#राष्ट्रीय_युवा_दिवस



#राष्ट्रीय_युवा_दिवस

"अनेक देशों में भ्रमण करने के पश्चात् मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि संगठन के बिना संसार में कोई भी महान एवं स्थाई कार...
12/01/2025

"अनेक देशों में भ्रमण करने के पश्चात् मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि संगठन के बिना संसार में कोई भी महान एवं स्थाई कार्य नहीं किया जा सकता।"

सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति की सुगन्ध बिखेरने वाले युवा सन्यासी, प्रकाण्ड विद्वान "युग प्रवर्तक" स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के शुभ-अवसर पर कोटि-कोटि नमन।




#राष्ट्रीय_युवा_दिवस

जबलपुर महानगर में राष्ट्र सेविका समिति द्वारा आयोजित पथ संचलन और मकर संक्रांति उत्सव में बहनों ने अनुशासन, एकता और राष्ट...
11/01/2025

जबलपुर महानगर में राष्ट्र सेविका समिति द्वारा आयोजित पथ संचलन और मकर संक्रांति उत्सव में बहनों ने अनुशासन, एकता और राष्ट्र सेवा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया।

!! जय श्री राम !!प्रतिष्ठा द्वादशी के पावन पर्व पर आप सबको हार्दिक शुभकामनाएँ Best wishes to everyone on the occasion of...
11/01/2025

!! जय श्री राम !!

प्रतिष्ठा द्वादशी के पावन पर्व पर आप सबको हार्दिक शुभकामनाएँ

Best wishes to everyone on the occasion of Pratishtha Dwadashi

#श्रीराम_मंदिर #अयोध्या #श्रीराम_जन्मभूमि_मंदिर

"जब तक व्यक्ति अहंकारयुक्त होता है, तब तक वह दुःख भोगने के लिए बाध्य है। और जब अहंकार नहीं रह जाता, तब कोई कष्ट नहीं होत...
11/01/2025

"जब तक व्यक्ति अहंकारयुक्त होता है, तब तक वह दुःख भोगने के लिए बाध्य है। और जब अहंकार नहीं रह जाता, तब कोई कष्ट नहीं होता। अतः उत्तम यह है कि बिना अहंकार के रहा जाए।"

- मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम


"देश की एकता और प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए सामाजिक एकता होना बहुत जरूरी है."- डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
10/01/2025

"देश की एकता और प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए सामाजिक एकता होना बहुत जरूरी है."

- डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार


बैकुंठ एकादशी बैकुंठ एकादशी जिसे पुत्रदा एकादशी या मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का यह एक महत्वपूर्ण व्रत पर...
09/01/2025

बैकुंठ एकादशी

बैकुंठ एकादशी जिसे पुत्रदा एकादशी या मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का यह एक महत्वपूर्ण व्रत पर्व है जो मार्गशीर्ष (अग्रहायण) माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि में मनाया है। अग्रहायण अर्थात् हिंदू पंचांग का नौवां मास है इसे अगहन का माह भी कहते हैं, ऋषि कश्यप ने इसी माह कश्मीर की रचना की थी। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु के क्षीरसागर में अर्धांगिनी माता लक्ष्मी के साथ से शेषशैय्या में विराजित अद्भुत रुप का पूजन होता है। अतः यह व्रत भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी को समर्पित किया जाता है और मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख सम्पदा के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।
एक दंत कथा के अनुसार, अयोध्या के एक वैष्णव राजा अम्बरीष सदैव इस व्रत को रखते थे। एक बार तीन दिनों के उपवास के पश्चात् जब वह व्रत का पारायण (उपवास तोड़ने) करने जा रहे थे, तब ऋषि दुर्वासा उनके नगर के द्वार पर प्रकट हुए। राजा ने ऋषि का सम्मानपूर्वक स्वागत किया और उनसे भोजन करने का निवेदन किया जिसे ऋषि ने स्वीकार कर लिया। वह भोजन से पूर्व स्नान करने चले गए । उन्हें स्नान के पश्चात् आने में बहुत बिलंब हो गया। राजा अम्बरीष के उपवास तोड़ने का शुभ क्षण निकट आ गया था। वह दुविधा में पड़ गए, यदि दिन समाप्त होने से पूर्व वह पारायण नहीं करते तो उन्हें उपवास का फल नहीं मिलेगा। उन्होंने *अतिथि देवो भव* के भाव से दुर्वासा ऋषि के आने से पूर्व भोजन करने के स्थान पर थोड़ा जल ग्रहण कर लिया । जब ऋषि दुर्वासा वापस लौटे तो वे क्रोधित हो गए भगवान विष्णु जी के सुदर्शन चक्र ने उनकी रक्षा की ।
भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने एक कुलीन किंतु अभष्ट्र ब्राम्हण अजामिल को इसी दिन मोक्ष प्रदान किया था। अजामिल ने अपने जीवन के अंत समय में अपने दसवें पुत्र नारायण के मोह में पड़कर मृत्यु पीड़ा से बचने उसे पुकारा था । वह उसके जीवन का अंतिम क्षण था , जब उसने "नारायण" का नाम लिया। भगवान विष्णु ने उसे उसके पापों से मुक्त कर बैकुंठ में स्थान दिया।
मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से 100 अश्वमेध यज्ञों और 1000 राजसूय यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है।

ज्ञ इस दिन निर्धनों को भोजन, वस्त्र और धन का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन और सत्संग में शामिल होना जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है।

दक्षिण भारत के तिरुपति बालाजी मंदिर, श्रीरंगम मंदिर और बद्रीनाथ धाम में इस दिन बड़ी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है। भक्तों को वैकुंठ द्वारम (उत्तर द्वार/ विशेष द्वार) से प्रवेश कर गर्भगृह के निकट जाकर दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से मनोवांछित फल की प्राप्ति , पापों का नाश और आत्मा की शुद्धि, परिवार में सुख-शांति और समृद्धि तथा मृत्यु के उपरांत बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती हैं।

वैदिक पंचांग के अनुसार, पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 09 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट पर प्रारंभ होगी और इसका समापन 10 जनवरी को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर होगा। दसवीं तिथि के साथ एकादशी के व्रत का विधान नहीं है और सनातन धर्म में सूर्योदय के पश्चात तिथि की गणना की जाती है अतः बैकुंठ एकादशी का व्रत 10 जनवरी को रखा जाएगा।
#बैकुंठ_एकादशी
लेखन- डॉ नुपूर निखिल देशकर

"मानव स्वयं पर अनुशासन के कठोरतम बंधन तब बड़े आनन्द से स्वीकार करता है, जब उसे यह अनुभूति होती है कि उसके द्वारा कोई महा...
09/01/2025

"मानव स्वयं पर अनुशासन के कठोरतम बंधन तब बड़े आनन्द से स्वीकार करता है, जब उसे यह अनुभूति होती है कि उसके द्वारा कोई महान कार्य होने जा रहा है।"

- माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर 'श्री गुरुजी'

जबलपुर की हल्दी मास्को में बढ़ाएगी खाने का स्वादजबलपुर के किसान अंबिका पटेल  23 जनवरी से 9 फरवरी तक रूस प्रदर्शनी में जब...
06/01/2025

जबलपुर की हल्दी मास्को में बढ़ाएगी खाने का स्वाद

जबलपुर के किसान अंबिका पटेल 23 जनवरी से 9 फरवरी तक रूस प्रदर्शनी में जबलपुर की हल्दी को विजिटर्स के लिए रखा जाएगा.

मास्को में इस हल्दी की कीमत करीब 1200 रुपये प्रति किलो तक जा सकती है.

इसमें खास एंटीवायरल और एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं. इन्हीं सब कारणों से हल्दी की डिमांड हमेशा बनी रहती है.

आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर हल्दी को जबलपुर के किसान ने ऑर्गेनिक पद्धति से तैयार किया है. ये एक सेलम प्रजाति की आर्गेनिक हल्दी है.


जिला सिवनी में हो रही मवेशियों की तस्करी पर रोक लगाने के लिए सिवनी के बंडोल पुलिस ने एक बड़ी कार्रवाई की है। पुलिस ने 6 ...
06/01/2025

जिला सिवनी में हो रही मवेशियों की तस्करी पर रोक लगाने के लिए सिवनी के बंडोल पुलिस ने एक बड़ी कार्रवाई की है। पुलिस ने 6 मवेशियों सहित एक मारुति कार को जब्त कर लिया है। मारुति कार में 5 गायें और 1 नाटा बैल क्रूरता पूर्वक भरे हुए थे। मवेशी तस्कर तरह-तरह के तरीके अपनाकर मवेशियों की तस्करी कर रहे हैं। इस मामले में पुलिस ने चालक और मवेशियों के मालिक के खिलाफ गौवंश वध प्रतिषेध अधिनियम, म.प्र. कृषक पशु परिरक्षण अधिनियम, पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम और धारा 184 मोटर वाहन अधिनियम के तहत अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना शुरू कर दी है।



Vishva Hindu Parishad -VHP Panchjanya

जबलपुर में श्री सुनील जी आंबेकर अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को महाकौशल फ़िल्म फेस्टिवल 2024 का विश...
06/01/2025

जबलपुर में श्री सुनील जी आंबेकर अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को महाकौशल फ़िल्म फेस्टिवल 2024 का विशेषांक Cine शिल्प 2024 भेंट करते हुए संपादक श्रीनिवास राव जी।

भारत के जन और पर्यावरण की सेवा ही भारत माता का वास्तविक पूजन है – डॉ. मोहन भागवत जीओंकारेश्वर, 05 जनवरी 2025कुटुंब प्रबो...
06/01/2025

भारत के जन और पर्यावरण की सेवा ही भारत माता का वास्तविक पूजन है – डॉ. मोहन भागवत जी

ओंकारेश्वर, 05 जनवरी 2025

कुटुंब प्रबोधन गतिविधि की अखिल भारतीय बैठक के अंतिम दिन का प्रारंभ ओंकारेश्वर स्थित नर्मदा किनारे मार्कण्डेय आश्रम पर भारत माता पूजन से हुआ. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने भारत माता एवं आदि शंकाराचार्य जी का पूजन किया.

भारतमाता पूजन के महत्व और उद्देश्य को प्रतिपादित करते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि भारत भूमि हमारा पालन-पोषण, संरक्षण और संवर्धन करती है. भारत भूमि में जन्म लेने वाले प्रत्येक जन में सेवा का स्वाभाविक संस्कार है. भारत माता का पूजन मतलब भारत में रहने वाले जन, जमीन, जंगल, जल और जानवरों की सेवा और सुरक्षा करना है. पर्यावरण और जैव विविधता का संरक्षण और संवर्धन भारत माता पूजन से मिलने वाली प्रेरणा है.

पवित्र नर्मदा किनारे मार्कण्डेय आश्रम में नर्मदा आरती के पश्चात् भारत माता पूजन में सरसंघचालक जी ने एकांत में अध्यात्म साधना और लोकान्त में समाज सेवा का आह्वान किया. गृहस्थ आश्रम को धर्म की धुरी बताते हुए कहा कि जो जिस भी स्थित में है, उसे समाज की सेवा के लिये तत्पर रहना चाहिये. जिस प्रकार गरूड़ ने माता की सेवा से देवता का वाहन बनने का आशीर्वाद पाया, उसी प्रकार हम भी भारत माता की सेवा के आशीर्वाद से धर्म के वाहक बनने में समर्थ हों.

कुटुंब प्रबोधन गतिविधि की अखिल भारतीय बैठक में समर्थ कुटुंब व्यवस्था को लेकर विभिन्न प्रकार के विषयों पर चर्चा की गई. जिसके अंतर्गत बताया गया कि सृष्टि की सबसे अनुपम रचनाओं में एक भारतीय परिवार की रचना है. भारतीय परिवारों को सुदृढ़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्य कुटुंब प्रबोधन गतिविधि द्वारा किए जाते है. कुटुंब मित्रों का परिवारों में आना जाना, परिवारों से सकारात्मक चर्चा करना, ऐसे कई अलग-अलग क्रियाकलापों द्वारा कुटुंब व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने का काम किया जाता है.

कुटुंब प्रबोधन गतिविधि द्वारा परिवार को मजबूत बनाए रखने के लिये छह प्रकार के “भ” पर काम करने के लिए बताया कि भोजन, भजन, भाषा, भूषा, भ्रमण और भवन, इन सभी बातों को लेकर प्रत्येक परिवार को काम करना होगा. साथ ही साथ वर्तमान समय में बच्चों में जो विकृति दिखाई देती है, उसका सबसे बड़ा कारण मोबाइल का बड़ी मात्रा में उपयोग ध्यान में आता है. इस हेतु प्रत्येक व्यक्ति को अपने परिवार में आपसी संवाद बढ़ाने की आवश्यकता है, जिससे घर के बच्चे अपने मन की बात बोल सकेंगे और निश्चित ही परिवार के वातावरण में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेंगे.

कुटुंब प्रबोधन गतिविधि का कार्य में देशभर में मातृशक्ति समान रूप से करती है. देश की कई प्रांतों में महिलाओं द्वारा बड़े स्तर पर अनेक प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. साथ ही आने वाले समय में मातृशक्ति की सहभागिता को बढ़ाने के लिए भी आह्वान किया गया.

मार्कण्डेय आश्रम में भारत माता पूजन के पश्चात सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने कहा कि यह पूरा विश्व एक देह है और उसकी आत्मा हमारा भारत देश है.

#आदि_शंकराचार्य #ओंकारेश्वर #कुटुंब_प्रबोधन #नर्मदा_तट #भारत_माता #भारत_माता_पूजन #मां_नर्मदा #मार्कण्डेय_आश्रम #मोहन_भागवत_जी #संघ #सरसंघचालक #सेवा #पर्यावरण

गुरुगोबिंद सिंह के ग्रंथ योजनापूर्वक ग़ायब किए जा रहे हैं            भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन ऐसे शबद बोलने वा...
06/01/2025

गुरुगोबिंद सिंह के ग्रंथ योजनापूर्वक ग़ायब किए जा रहे हैं

भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन ऐसे शबद बोलने वाले गुरु गोबिंद सिंह जी केवल सिक्ख समुदाय के प्रेरणापुंज व आदर्शों ही नहीं अपितु समूचे हिंदू समुदाय हेतु प्रेरणापुंज रहें हैं। वे सिक्ख समुदाय की गुरु पीठ पर दसवें गुरु के रूप में विराजे थे। उन्होंने श्री गुरुग्रंथ साहिब को पूर्ण किया व उसे ही गुरु मानने की सीख अपने अनुयायियों को दी थी।
पटना में वर्ष 1666 की पौष शुक्ल सप्तमी को जन्में गुरु गोबिंदसिंह का मूल नाम गोबिंद राय था। नानकशाही कैलेंडर के अनुसार ही पौष मास, शुक्ल पक्ष, सप्तमी को गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश परब मनाया जाता है।
गुरु गोबिंदसिंह जी ने वर्ष 1699 की बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना थी। इसके पूर्व गुरु गोबिंद सिंह ने अपने सभी अनुयायियों को आनंदपुर साहिब में एकत्रित होनें का आदेश दिया था। उस सभा में उन्होंने सभी अनुयायियों के समक्ष अपनी तलवार म्यान से निकाली और अपनी उस चमकदार तलवार को लहराते हुए कहा - “वो पाँच लोग सामने आयें जो धर्म की रक्षा के लिए अपनी गर्दन भी कटवा सकते हों”। गुरु के इस आदेश पर सर्वप्रथम दयाराम आगे बढ़कर गुरुजी के पास आए तो गुरु गोबंदसिंग उन्हें अपने तंबू में ले गए, और जब गुरुजी बाहर आए तो उनके हाथों में रक्त सनी, रक्त टपकती हुई तलवार थी। इस प्रकार शेष चारो शिष्य भी रक्त टपकती तलवार देखकर भयभीत नहीं हुए व तंबू के भीतर क्रमशः निडर होकर जाते रहे। उनके ये वीर शिष्य थे, हस्तिनापुर के धरमदास, द्वारका के मोहकम चंद, जगन्नाथ के हिम्मतसिंग और बीदर के साहिब चंद। सभा में उपस्थित अन्य शिष्यों को लगा कि उन पांचों का बलिदान दे दिया गया है। किंतु, कुछ मिनिटों बाद ही ये पांचों शिष्य तंबू से भगवा पगड़ी व भगवा वेश धारण करके बाहर निकल आए। खालसा पंथ की स्थापना के दिन गुरु की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए इन शिष्यों को ही “पंज प्यारे” का नाम दिया गया। इस प्रकार खालसा पंथ की स्थापना हुई थी।
हिंदू समुदाय के अलग-अलग मत, पंथ, संप्रदाय के इन वीर हिंदू युवकों को गुरु साहब जी ने एक कटोरे में कृपाण से शक्कर मिलाकर उसका जल पिलाया और एक समरस, सर्वस्पर्शी व भेदभावरहित हिंदू समाज का प्रतीक उत्पन्न किया। इन पंज प्यारों के नाम के आगे गुरुजी ने सिंह उपनाम लगाकर इन्हें दीक्षित किया था। इस सभा में ही उन्होंने यह जयघोष भी प्रथम बार बोला था - “वाहे गुरुजी का खालसा वाहे गुरुजी की फ़तह”। गुरुसाहब ने खालसा पंथ की स्थापना हिंदू समाज को विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों से बचाने व अपने सनातन धर्म की रक्षा करने हेतु की थी। इतिहास साक्षी है कि खालसा पंथ ने अपने इस लक्ष्य के अनुरूप ही सनातन की रक्षा के लिए अनगिनत युद्ध लड़े, असंख्य प्राणों की आहुतियाँ दी, अनहद मुस्लिम विरोधी अभियान संचालित किए थे।
मात्र नौ वर्ष की आयु में गुरु गोबिंद सिंग ने मुगलों द्वारा काटे गए, अपने पिता के सिर को देखने की भीषण व दारुण घटना को भोगा था।
गुरु गोबिंद सिंह केवल धार्मिक गुरु नहीं थे, वे एक उद्भट योद्धा, अद्भुत साहित्यकार, अनुपम समाजशास्त्री व रणनीतिज्ञ भी थे।
गुरु गोबिंद सिंह के सैन्य अभियानों व चुनौतियों से घबराकर क्रूर मुगल शासक औरंगज़ेब ने गुरु जी को एक संदेश भेजा - “आपका और मेरा धर्म एकेश्वरवादी है, तो भला हमारें मध्य क्यों शत्रुता होनी चाहिए? हिंदु रक्तपिपासु औरंजेब ने लिखा - “आपके पास मेरी प्रभुसत्ता मानने के अलावा कोई चारा नहीं है जो मुझे अल्लाह ने दी है। आप मेरी सत्ता को चुनौती न दें वर्ना मैं आप पर हमला करूँगा”। उत्तर देते हुए, गुरु साहब जी ने लिखा “सृष्टि में मात्र एक सर्वशक्तिमान ईश्वर है जिसके मैं और आप दोनों आश्रित हैं किंतु आप इसको नहीं मानते और अन्यायपूर्ण भेदभाव करते हैं। आप हम हिंदुओं का संहार करते हैं। ईश्वर ने मुझे न्याय स्थापित करने व हिंदुओं की रक्षा हेतु जन्म दिया है। हमारें व आपके मध्य शांति नहीं हो सकती है, हमारे रास्ते अलग हैं?” इस पत्र के बाद औरंगज़ेब भड़क उठा और उसने अपनी समूची शक्ति गुरु गोबिंद सिंह के पीछे लगा दी।
‘फ़ाउंडर ऑफ़ खालसा’ के लेखक अमरदीप दहिया लिखते हैं - “गुरु ने अपने सभी सेना प्रमुखों को आदेश दिया - “मुग़ल सेना की संख्या बहुत बड़ी होने के कारण हमने क़िले में रहकर छापामार युद्ध ही करना होगा”।
इस ऐतिहासिक संघर्ष में गुरु साहब जी ने खालसा पंथ के भाई मुखिया व भाई परसा को घुड़सवारों, पैदल सैनिकों और साहसी युवाओं के साथ आनंदपुर पहुंचने के लिए कहा। युद्ध हेतु कुरुक्षेत्र व अफ़ग़ानिस्तान से घोड़े बुलवाये गए। रात-दिन सैन्य प्रशिक्षण होने लगा। खालसा सेना छः भागों में जमाई गई। पाँच टुकड़ियां पाँच किलों की रक्षा के लिए कूच कर गई और छठी को आपद स्थिति हेतु सुरक्षित रखा गया।
इस पृष्ठभूमि में अत्यंत भीषण युद्ध हुआ। मुगलों ने भयंकर हमला किया। इस युद्ध के संदर्भ में इतिहासकार मैक्स आर्थर मौकॉलिफ़ अपनी पुस्तक ‘द सिख रिलीजन’ में लिखते हैं, “इन पाँचों गढ़ों से सिख तोपचियों ने मुगलों को बड़ी संख्या में मार गिराया। मुगल सैनिक खुले में लड़ रहे थे इसलिए सिक्ख सैनिकों की अपेक्षा उन्हें अधिक हानि हुई। मुगलों की दुर्बल होती स्थिति देखकर उदय सिंह और दया सिंह के नेतृत्व में सिक्ख सैनिक किले से बाहर निकल आए और मुगल सैनिकों पर टूट पड़े। मुगल सेनापति वज़ीर ख़ाँ और ज़बरदस्त ख़ाँ ये देखकर दंग रह गए कि किस तरह एक छोटी सी सेना मुगलों के दाँत खट्टे कर रही थी।” गुरुजी की सेना, सेनापति, उनके घोड़े, उनकी सैन्य चमक-दमक, भव्यता, वीरता का बड़ा अच्छा वर्णन इस पुस्तक में है। आर्थर ने लिखा “बड़ी संख्या में हताहत हो रहे ये मुस्लिम आक्रमणकारी अपनी रणनीति परिवर्तित करने को विवश ही गए व सीधे युद्ध करने के स्थान पर उन्होंने इस सनातनी सेना को उनके किलों के भीतर घेर-बाँधकर रखने की रणनीति अपनाई। सिक्ख सैनिक अपने किलों से बाहर ही न निकल पाएँ और उन्हें खाद्य सामग्री व अन्य साधन न मिल पाएँ, इस प्रकार की योजना मुग़लों ने बनाई।” इस युद्ध में कुछ संधियाँ भी हुई और उन संधियों को मुस्लिम आक्रामकों ने किस प्रकार बेईमानी पूर्वक भंग किया इसका विवरण भी इस पुस्तक में है। गुरु गोबिंद सिंह के सेनापति, माता जी, पुत्र, परिजन, सहयोगी किस प्रकार छद्मपूर्ण हताहत किया गए यह दुखद तथ्य भी स्मरणीय है। गुरु जी के दोनों पुत्रों द्वारा इस्लाम स्वीकार करने के स्थान पर दीवार में चुनकर भीषण मृत्यु का वरण करने का भी उल्लेख आता है। गुरु जी की हत्या भी छद्दमपूर्वक उन्हें अकेला पाकर की गई थी। सात अक्टूबर, वर्ष 1708 को गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु ग्रंथसाहिब को नमन करते हुए कहा - “आज्ञा भई अकाल की, तभी चलाया पंथ, सब सिखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रंथ।” इसके बाद उन्होंने 7 अक्टूबर, 1708 लो अपने प्राण छोड़ दिए, तब गुरु गोबिंद सिंह मात्र 42 वर्ष के युवा थे।
महत्वपूर्ण बात है कि आज सिक्ख समुदाय के कुछ मुट्ठी भर अराष्ट्रीय तत्व गुरु गोबिंद सिंह जी की सीख, उनके साहित्य व उनके सनातन की रक्षा के मूल भाव की उपेक्षा कर रहें हैं व सिक्खिज्म के नाम पर भ्रम उत्पन्न कर रहे हैं। गुरु जी का साहित्य कई गुरुद्वारों से योजनाबद्ध नीति से ग़ायब करा दिया गया है। गुरु गोबिंद रचित
जापु साहिब, दशम ग्रन्थ, अकाल स्तुति, बिचित्तर नाटक, चंडी चरित्र, ज्ञान प्रबोध, चौबीस अवतार, शस्त्रमाला, अथ पख्याँ चरित्र लिख्यते, आदि ग्रंथ जो कि सनातन का महिमागान करते हैं उन्हें, हिंदू-सिक्ख में भेद उत्पन्न करने हेतु पठन-पाठन से हटा दिया जाना एक गहरा षड्यंत्र है। देवी की आराधना करते हुए गुरु जी कहते हैं -
पवित्री पुनीता पुराणी परेयं ।
प्रभी पूरणी पारब्रहमी अजेयं ॥
अरूपं अनूपं अनामं अठामं ।
अभीतं अजीतं महां धरम धामं ll
आज आवश्यकता इस बात की है कि सर्व साधारण सिक्ख समाज अलगाववादी तत्त्वों से बचे व गुरु साहब जी के लेखन का हृदयपूर्वक मनन करे।

लेखक :- प्रवीण गुगनानी

#श्री_गुरुगोबिंद_सिंह_जी

देहु शिवा वर मोहि इहै,शुभ कर्मन ते कबहूँ न टरौं।न डरौं अरि सों जब जाइ लरौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं।धर्म, सेवा और मानवता...
06/01/2025

देहु शिवा वर मोहि इहै,
शुभ कर्मन ते कबहूँ न टरौं।
न डरौं अरि सों जब जाइ लरौं,
निश्चय कर अपनी जीत करौं।

धर्म, सेवा और मानवता के प्रतीक, सिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को उनके पावन प्रकाश पर्व पर कोटि-कोटि नमन।
#श्री_गुरु_गोबिंद_सिंह_जी

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल ।बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।।निज यानी अपनी भाषा से ही उन्नति सम्भव ...
06/01/2025

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल ।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।।

निज यानी अपनी भाषा से ही उन्नति सम्भव है, क्योंकि यही सारी उन्नतियों का मूलाधार है। मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण सम्भव नहीं है।

आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह, युग प्रवर्तक रचनाकार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!


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