27/06/2024
महानायक की याद
हरीश पाठक जी से साभार...
27 साल पहले,आज के ही दिन हिंदी पत्रकारिता के महानायक सुरेंद्र प्रताप सिंह (एस पी सिंह) ने अलविदा कह कर सभी को भौचक कर दिया था।तब उनकी उम्र सिर्फ 49 साल थी।वे वाया हिंदी पत्रकारिता, टीवी की दुनिया में आये थे।'आज तक' की डीडी न्यूज़ पर आनेवाली 20 मिनिट की न्यूज़ बुलेटिन को उन्होंने विशालकाय बना दिया।उसका स्लोगन 'यह थीं खबरें आज तक,इंतजार कीजिए कल तक' घर घर तक पहुँच गया था।
वे दोनों क्षेत्रों में शिखर पर थे क्योंकि वे एस पी सिंह थे।उनके तेवर,कलेवर,सोच,समझ, इरादे,इशारे,रिश्ते,पहुँच,निडरता,निर्भीकता, साफगोई ने उन्हें हिंदी पत्रकारिता का महानायक बना दिया।वे भरी सभा मे कह देते थे,'साहित्य का काम साहित्य करे,पत्रकारिता का काम उसे करने दे।पत्रकारिता दो टूक लहजे में की जाती है।यह साहित्य के वश में नहीं है।वह कुलीन बना रहे।हम आम जन की बात कहेंगे,करेंगे।'
यही सच था।'रविवार' के जरिये एस पी सिंह ने जो तेवर की पत्रकारिता की उसने फूल,पत्ती, नदी,तालाब जैसे आवरण छापने वाली पत्रिकाओं को कोने में धकेल दिया ।वे खोजी पत्रकारिता और खोजी पत्रकारों के स्वर्ण मुकुट बन गए और पिलपिली,लिजलिजी होती जा रही हिंदी पत्रकारिता को उन्होंने प्राण दे दिए।सम्मान दिला दिया।यश दिला दिया और वह भी उसे मिला जो आज उसकी थाती है-विश्वास और विश्वसनीयता।
इसीलिए वे महानायक हैं,रहेंगे।
शब्द से जब वे दृश्य में आये तो ' आज तक' उनका सपना बना।उपहार सिनेमा का अग्निकांड भावुकता से सराबोर इस शिखर पुरुष को इतना विचलित कर गया कि उसकी पल पल की रिपोर्टिंग पर उनकी नजर थी।
जलती हुई लाशों के साथ नेपथ्य में बजता 'संदेशें आते हैं गीत' के सँग-साथ ही वे जो दफ्तर में ही बीमार हुए तो फिर अतीत कथा ही बन गए।सभी को जगाती, रुलाती, सवाल पूछती फिर खुद उत्तर देती कथा।
एक दिन में नहीं बनते एस पी सिंह।
आज पुण्य तिथि पर सादर नमन-अक्षरों के सेनापति।
आपको कभी नहीं भूल सकती हिंदी पत्रकारिता।