07/02/2024
#चौसठयोगिनी_नामस्तोत्रम्
गजास्या सिंह-वक्त्रा च, गृध्रास्या काक-तुण्डिका ।
उष्ट्रा-स्याऽश्व-खर-ग्रीवा, वाराहास्या शिवानना ॥
उलूकाक्षी घोर-रवा, मायूरी शरभानना ।
कोटराक्षी चाष्ट-वक्त्रा, कुब्जा चविकटानना॥
शुष्कोदरी ललज्जिह्वा, श्व-दंष्ट्रा वानरानना ।
ऋक्षाक्षी केकराक्षी च, बृहत्-तुण्डा सुराप्रिया ॥
कपालहस्ता रक्ताक्षी, शुकी श्येनी कपोतिका ।
पाशहस्ता दंडहस्ता, प्रचण्डा चण्डविक्रमा ॥
शिशुघ्नी पाशहन्त्री च, काली रुधिर-पायिनी।
वसापाना गर्भरक्षा, शवहस्ताऽऽन्त्रमालिका ॥
ऋक्ष-केशी महा-कुक्षिर्नागास्या प्रेतपृष्ठका।
दन्द-शूक-धरा क्रौञ्ची, मृग-श्रृंगा वृषानना ॥
फाटितास्या धूम्रश्वासा, व्योमपादोर्ध्वदृष्टिका ।
तापिनी शोषिणी स्थूलघोणोष्ठा कोटरी तथा ॥
विद्युल्लोला वलाकास्या, मार्जारी कटपूतना।
अट्टहास्या चकामाक्षी, मृगाक्षी चेति चा मताः ॥
~फल-श्रुति :-
चतुष्षष्टिस्तुयोगिन्यः पूजिता नवरात्रके।
दुष्ट-बाधां नाशयन्ति, गर्भ-बालादि-रक्षिकाः॥
नडाकिन्यो नशाकिन्यो, न कूष्माण्डा नराक्षसाः ।
तस्य पीड़ांप्रकुर्वन्ति, नामान्येतानि यः पठेत् ॥
बलि-पूजोपहारैश्च, धूप-दीप-समर्पणैः।
क्षिप्रं प्रसन्ना योगिन्यो, प्रयच्छेयुर्मनोरथान् ॥
कृष्णा-चतुर्दशी-रात्रावुपवासी नरोत्तमः।
प्रणवादि-चतुर्थ्यन्त-नामभिर्हवनं चरेत् ॥
प्रत्येकं हवनं चासां, शतमष्टोत्तरंमतम् ।
स-सर्पिषा गुग्गुलुना, लघु-बदर-मानतः॥
विधि :-
साधक कृष्ण-पक्षकी चतुर्दशी को उपवास करे।
रात्रि में गुग्गुलऔर घृत से विभक्ति युक्त प्रत्येक नाम के आगे प्रणव ॐ लगाकर, प्रत्येक नाम से १०८ आहुतियाँ अर्पित करे ।
पूरी तरह शुद्ध होकर, एकाग्र-मनसे जो इन नामों का पाठ करता है । उसे डाकिनी, शाकिनी, कूष्माण्ड और राक्षस आदि किसी प्रकार की पीड़ा नहीं होती ।
धूप-दीपादि उपचारों सहित पूजन और बलि प्रदान करने से योगनियाँ शीघ्र प्रसन्न होकर सभी कामनाओं को पूरा करती है ।
हवनके लिये चौंसठ योगिनी नाम इस प्रकारहै। प्रत्येक नाम के आदि में ‘ॐ’तथा अन्त में स्वाहा लगाकर हवन करें ॥
ॐगजास्यै स्वाहा ॥
ॐ सिंह-वक्त्रायैस्वाहा ॥
ॐ गृध्रास्यायैस्वाहा ॥
ॐकाक-तुण्डिकायै स्वाहा ॥
ॐ उष्ट्रास्यायैस्वाहा ॥
ॐअश्व-खर-ग्रीवायैस्वाहा ॥
ॐवाराहस्यायै स्वाहा ॥
ॐशिवाननायै स्वाहा ॥
ॐ उलूकाक्ष्यै स्वाहा ॥
ॐ घोर-रवायैस्वाहा ॥
ॐमायूर्यै स्वाहा ॥
ॐशरभाननायै स्वाहा ॥
ॐकोटराक्ष्यै स्वाहा ॥
ॐअष्ट-वक्त्रायै स्वाहा॥
ॐकुब्जायै स्वाहा ॥
ॐविकटाननायै स्वाहा ॥
ॐ शुष्कोदर्यैस्वाहा ॥
ॐललज्जिह्वायैस्वाहा ॥
ॐश्व-दंष्ट्रायैस्वाहा ॥
ॐवानराननायै स्वाहा ॥
ॐ ऋक्षाक्ष्यै स्वाहा ॥
ॐ केकराक्ष्यै स्वाहा ॥
ॐबृहत्-तुण्डायैस्वाहा ॥
ॐसुरा-प्रियायै स्वाहा ॥
ॐकपाल-हस्तायै स्वाहा ॥
ॐरक्ताक्ष्यै स्वाहा ॥
ॐ शुक्यै स्वाहा ॥
ॐश्येन्यैस्वाहा ॥
ॐकपोतिकायै स्वाहा ॥
ॐ पाश-हस्तायै स्वाहा ॥
ॐदण्ड-हस्तायैस्वाहा ॥
ॐप्रचण्डायै स्वाहा ॥
ॐचण्ड-विक्रमायै स्वाहा ॥
ॐशिशुघ्न्यैस्वाहा ॥
ॐपाश-हन्त्र्यै स्वाहा ॥
ॐ काल्यै स्वाहा ॥
ॐरुधिर-पायिन्यै स्वाहा ॥
ॐ वसा-पानायै स्वाहा ॥
ॐगर्भ-भक्षायैस्वाहा ॥
ॐशव-हस्तायै स्वाहा ॥
ॐआन्त्र-मालिकायै स्वाहा ॥
ॐ ऋक्ष-केश्यैस्वाहा ॥
ॐमहा-कुक्ष्यै स्वाहा ॥
ॐ नागास्यायै स्वाहा ॥
ॐप्रेत-पृष्ठकायै स्वाहा ॥
ॐदंष्ट्र-शूकर-धरायै स्वाहा ॥
ॐक्रौञ्च्यैस्वाहा ॥
ॐमृग-श्रृंगायै स्वाहा ॥
ॐवृषाननायै स्वाहा ॥
ॐफाटितास्यायै स्वाहा ॥
ॐ धूम्र-श्वासायै स्वाहा ॥
ॐव्योम-पादायै स्वाहा॥
ॐऊर्ध्व-दृष्टिकायैस्वाहा ॥
ॐतापिन्यै स्वाहा ॥
ॐशोषिण्यै स्वाहा ॥
ॐस्थूल-घोणोष्ठायैस्वाहा ॥
ॐकोटर्यैस्वाहा ॥
ॐविद्युल्लोलायै स्वाहा॥
ॐबलाकास्यायै स्वाहा ॥
ॐमार्जार्यैस्वाहा ॥
ॐकट-पूतनायै स्वाहा ॥
ॐअट्टहास्यायै स्वाहा॥
ॐकामाक्ष्यैस्वाहा ॥
ॐ मृगाक्ष्यै स्वाहा!!