Nikhil singh

Nikhil singh सनातन धर्म को बढ़ाना
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🚩जय हिंदुत्व धर्म🚩
🌹जय सनातन धर्म🌹
🇨🇮जय भारत माता🇨🇮
🦚🦚🦚
(1)

01/08/2023

सुदामा कुटी दर्शन वृन्दावन--जहाँ सब कुछ फ्री।। दामोदर दास बाबा असली साधु...........

01/08/2023

सावन सोमवार के दिन शिव मंदिर से लें आये ये 2 चींजें ...........

31/07/2023

मेरी विनती यही है राधा रानी
कृपा बरसाये रखना,,

23/07/2023

🙏🐚🚩हर हर महादेव🚩🐚🙏

सुप्रीति_सिंह हुगली जिले के राजबलहाट की रहने वाली हैं।  गणित में परास्नातक.  अत्यंत गरीबी में शिक्षा.  पिताजी रिक्शा चला...
13/07/2023

सुप्रीति_सिंह हुगली जिले के राजबलहाट की रहने वाली हैं। गणित में परास्नातक. अत्यंत गरीबी में शिक्षा. पिताजी रिक्शा चलाते थे. परिवार में सास-ससुर और एक बेटा और एक बेटी हैं। परिवार के लिए दो मुट्ठी भोजन जुटाने के लिए दिन-रात मेहनत करनी पड़ती है। सुप्रीति सिंह फ्लिपकार्ट कंपनी से जुड़कर ऑर्डर किया हुआ सामान घर-घर पहुंचाती हैं।
आजकल लड़कियां भी लड़कों की तरह पारिवारिक जिम्मेदारियां उठा रही हैं.....
समान अधिकार और समान जिम्मेदारियाँ.......

आपको सलाम...🙏

🙏🏻❤️

अयोध्या हाईवे UP भीखी पुरवा मे अद्भुत पेड़ है, विश्व में भारत के अलावा कहीं नहीं है, इसलिए इसका कोई वैज्ञानिक नाम नहीं ह...
12/07/2023

अयोध्या हाईवे UP भीखी पुरवा मे अद्भुत पेड़ है, विश्व में भारत के अलावा कहीं नहीं है, इसलिए इसका कोई वैज्ञानिक नाम नहीं है, जब छाल सूखकर उतरती है, तो राम लिखा नजर आता है, स्थानीय लोग रामवृक्ष पुकारते है, सरकार से निवेदन है, बीज संग्रहित कर पूरे भारत मे वृक्षारोपण हो। 🙏🏻
🚩।।जय श्री राम।।🚩

10/07/2023

Ravi kishan ji.. सांसद एवं अभिनेता को महाराज जी ने विजय प्राप्त के लिए कौन सी दो,,,

पवित्र और चमत्कारिक मेहंदीपुर बालाजी महाराज की सम्पूर्ण कथा!!!!!राजस्थान के सवाई माधोपुर और जयपुर की  सीमा रेखा पर स्थित...
22/06/2023

पवित्र और चमत्कारिक मेहंदीपुर बालाजी महाराज की सम्पूर्ण कथा!!!!!

राजस्थान के सवाई माधोपुर और जयपुर की सीमा रेखा पर स्थित मेंहदीपुर कस्बे में बालाजी का एक अतिप्रसिद्ध तथा प्रख्यात मन्दिर है जिसे "श्री मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर" के नाम से जाना जाता है।

भूत प्रेतादि ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहांँ आने वालों का ताँंता लगा रहता है। तंत्र मंत्रादि ऊपरी शक्तियों से ग्रसित व्यक्ति भी यहांँ पर बिना दवा और तंत्र मंत्र के स्वस्थ होकर लौटते हैं । सम्पूर्ण भारत से आने वाले लगभग एक हजार रोगी और उनके स्वजन यहाँं नित्य ही डेरा डाले रहते हैं ।

बालाजी का मन्दिर मेंहदीपुर नामक स्थान पर दो पहाड़ियों के बीच स्थित है, इसलिए इन्हें "घाटे वाले बाबा जी" भी कहा जाता है । इस मन्दिर में स्थित बजरंग बली की बालरूप मूर्ति किसी कलाकार ने नहीं बनाई, बल्कि यह स्वयंभू है । यह मूर्ति पहाड़ के अखण्ड भाग के रूप में मन्दिर की पिछली दीवार का कार्य भी करती है ।

इस मूर्ति को प्रधान मानते हुए बाकी मन्दिर का निर्माण कराया गया है । इस मूर्ति के सीने के बाईं तरफ़ एक अत्यन्त सूक्ष्म छिद्र है जिससे पवित्र जल की धारा निरंतर बह रही है।

यह जल बालाजी के चरणों तले स्थित एक कुण्ड में एकत्रित होता रहता है जिसे भक्तजन चरणामृत के रूप में अपने साथ ले जाते हैं । यह मूर्ति लगभग 1000 वर्ष प्राचीन है किन्तु मन्दिर का निर्माण इसी सदी में कराया गया है । मुस्लिम शासनकाल में कुछ बादशाहों ने इस मूर्ति को नष्ट करने की कुचेष्टा की, लेकिन वे असफ़ल रहे ।

वे इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई । थक हार कर उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा । ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1910 में बालाजी ने अपना सैकड़ों वर्ष पुराना चोला स्वतः ही त्याग दिया । भक्तजन इस चोले को लेकर समीपवर्ती मंडावर रेलवे स्टेशन पहुंँचे, जहांँ से उन्हें चोले को गंगा में प्रवाहित करने जाना था ।

ब्रिटिश स्टेशन मास्टर ने चोले को निःशुल्क ले जाने से रोका और उसका वजन करने लगा, लेकिन चमत्कारी चोला कभी मन भर ज्यादा हो जाता और कभी दो मन कम हो जाता । असमंजस में पड़े स्टेशन मास्टर को अंततः चोले को बिना लगेज ही जाने देना पड़ा और उसने भी बालाजी के चमत्कार को नमस्कार किया ।

इसके बाद बालाजी को नया चोला चढाया गया । यज्ञ हवन और ब्राह्मण भोज एवं धर्म ग्रन्थों का पाठ किया गया । एक बार फ़िर से नए चोले से एक नई ज्योति दीप्यमान हुई । यह ज्योति सारे विश्व का अंधकार दूर करने में सक्षम है । बालाजी महाराज के अलावा यहांँ श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल कप्तान ( भैरव ) की मूर्तियांँ भी हैं ।

प्रेतराज सरकार जहां द्ण्डाधिकारी के पद पर आसीन हैं वहीं भैरव जी कोतवाल के पद पर । यहां आने पर ही सामान्यजन को ज्ञात होता है कि भूत प्रेतादि किस प्रकार मनुष्य को कष्ट पहुंँचाते हैं और किस तरह सहज ही उन्हें कष्ट बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है । दुखी कष्टग्रस्त व्यक्ति को मंदिर पहुँचकर तीनों देवगणों को प्रसाद चढाना पड़ता है ।

बालाजी को लड्डू प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान (भैरव) को उड़द का प्रसाद चढाया जाता है । इस प्रसाद में से दो लड्डू रोगी को खिलाए जाते हैं और शेष प्रसाद पशु पक्षियों को डाल दिया जाता है । ऐसा कहा जाता है कि पशु पक्षियों के रूप में देवताओं के दूत ही प्रसाद ग्रहण कर रहे होते हैं । प्रसाद हमेशा थाली या दोने में रखकर दिया जाता है।

लड्डू खाते ही रोगी व्यक्ति झूमने लगता है और भूत प्रेतादि स्वयं ही उसके शरीर में आकर बड़बड़ाने लगते है । स्वतः ही वह हथकडी और बेड़ियों में जकड़ जाता है । कभी वह अपना सिर धुनता है कभी जमीन पर लोट पोट कर हाहाकार करता है । कभी बालाजी के इशारे पर पेड़ पर उल्टा लटक जाता है । कभी आग जलाकर उसमें कूद जाता है ।

कभी फाँसी या सूली पर लटक जाता है । मार से तंग आकर भूत प्रेतादि स्वतः ही बालाजी के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं अन्यथा समाप्त कर दिये जाते हैं । बालाजी उन्हें अपना दूत बना लेते हैं। संकट टल जाने पर बालाजी की ओर से एक दूत मिलता है जोकि रोग मुक्त व्यक्ति को भावी घटनाओं के प्रति सचेत करता रहता है।

बालाजी महाराज के मन्दिर में प्रातः और सायं लगभग चार चार घंटे पूजा होती है । पूजा में भजन आरतियों और चालीसों का गायन होता है। इस समय भक्तगण जहांँ पंक्तिबद्ध हो देवताओं को प्रसाद अर्पित करते हैं वहीं भूत प्रेत से ग्रस्त रोगी चीखते चिल्लाते उलट पलट होते अपना दण्ड भुगतते हैं ।

बालाजी मंदिर में प्रेतराज सरकार दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं। प्रेतराज सरकार के विग्रह पर भी चोला चढ़ाया जाता है। प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है ।

भक्ति-भाव से उनकी आरती, चालीसा, कीर्तन, भजन आदि किए जाते हैं । बालाजी के सहायक देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है।

पृथक रूप से उनकी आराधना - उपासना कहीं नहीं की जाती, न ही उनका कहीं कोई मंदिर है। वेद, पुराण, धर्म ग्रन्थ आदि में कहीं भी प्रेतराज सरकार का उल्लेख नहीं मिलता। प्रेतराज श्रद्धा और भावना के देवता हैं।

कुछ लोग बालाजी का नाम सुनते ही चाैंक पड़ते हैं। उनका मानना है कि भूत-प्रेतादि बाधाओं से ग्रस्त व्यक्ति को ही वहाँ जाना चाहिए। ऐसा सही नहीं है। कोई भी - जो बालाजी के प्रति भक्ति-भाव रखने वाला है, इन तीनों देवों की आराधना कर सकता है। अनेक भक्त तो देश-विदेश से बालाजी के दरबार में मात्र प्रसाद चढ़ाने नियमित रूप से आते हैं।
किसी ने सच ही कहा है—"नास्तिक भी आस्तिक बन जाते हैं, मेंहदीपुर दरबार में ।"

प्रेतराज सरकार को पके चावल का भोग लगाया जाता है, किन्तु भक्तजन प्रायः तीनों देवताओं को बूंदी के लड्डुओं का ही भोग लगाते हैं और प्रेम-श्रद्धा से चढ़ा हुआ प्रसाद बाबा सहर्ष स्वीकार भी करते हैं।

कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव भगवान शिव के अवतार हैं और उनकी ही तरह भक्तों की थोड़ी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न भी हो जाते हैं । भैरव महाराज चतुर्भुजी हैं। उनके हाथों में त्रिशूल, डमरू, खप्पर तथा प्रजापति ब्रह्मा का पाँचवाँ कटा शीश रहता है । वे कमर में बाघाम्बर नहीं, लाल वस्त्र धारण करते हैं। वे भस्म लपेटते हैं । उनकी मूर्तियों पर चमेली के सुगंध युक्त तिल के तेल में सिन्दूर घोलकर चोला चढ़ाया जाता है ।

शास्त्र और लोककथाओं में भैरव देव के अनेक रूपों का वर्णन है, जिनमें एक दर्जन रूप प्रामाणिक हैं। श्री बाल भैरव और श्री बटुक भैरव, भैरव देव के बाल रूप हैं। भक्तजन प्रायः भैरव देव के इन्हीं रूपों की आराधना करते हैं । भैरव देव बालाजी महाराज की सेना के कोतवाल हैं।

इन्हें कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है। बालाजी मन्दिर में आपके भजन, कीर्तन, आरती और चालीसा श्रद्धा से गाए जाते हैं । प्रसाद के रूप में आपको उड़द की दाल के बड़े और खीर का भोग लगाया जाता है। किन्तु भक्तजन बूंदी के लड्डू भी चढ़ा दिया करते हैं ।

सामान्य साधक भी बालाजी की सेवा-उपासना कर भूत-प्रेतादि उतारने में समर्थ हो जाते हैं। इस कार्य में बालाजी उसकी सहायता करते हैं। वे अपने उपासक को एक दूत देते हैं, जो नित्य प्रति उसके साथ रहता है।

कलियुग में बालाजी ही एकमात्र ऐसे देवता हैं , जो अपने भक्त को सहज ही अष्टसिद्धि, नवनिधि तदुपरान्त मोक्ष प्रदान कर सकते हैं

श्रीजगन्नाथ जी के "रथ" पर अनाधिकारी न चढ़े न ही श्रीविग्रह को स्पर्श करें...महाप्रभु जी का रथ आते देख ससम्मान कुछ दूर साथ...
20/06/2023

श्रीजगन्नाथ जी के "रथ" पर अनाधिकारी न चढ़े न ही श्रीविग्रह को स्पर्श करें...

महाप्रभु जी का रथ आते देख ससम्मान कुछ दूर साथ चल लेवे...

ब्रह्मवेत्ता पुरूष भी आती हुई रथयात्रा का सम्मान न करे तो अगला जन्म ब्रह्म राक्षस की योनि में मिलता है।

"शुभ रथयात्रा"

13/06/2023

योगिनी एकादशी कथा माहात्म्य -

आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष यह व्रत बुधवार 14 जून , 2023 को रखा जायेगा.
योगिनी एकादशी का व्रत रखने से समस्त पापों का नाश होता है, तथा इस लोक में भोग और परलोक मुक्ति भी मिलती है।

कथा माहात्म्य -

अर्जुन ने कहा- "हे त्रिलोकीनाथ! मैंने ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी की कथा सुनी। अब आप कृपा करके आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाइये। इस एकादशी का नाम तथा माहात्म्य क्या है? सो अब मुझे विस्तारपूर्वक बतायें।"

श्रीकृष्ण ने कहा- "हे पाण्डु पुत्र! आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत इहलोक में भोग तथा परलोक में मुक्ति देने वाला है। हे अर्जुन! यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। तुम्हें मैं पुराण में कही हुई कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो -

कुबेर नाम का एक राजा अलकापुरी नाम की नगरी में राज्य करता था। वह शिव-भक्त था। उनका हेममाली नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था। हेममाली की विशालाक्षी नाम की अति सुन्दर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प लेकर आया, किन्तु कामासक्त होने के कारण पुष्पों को रखकर अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा। इस भोग-विलास में दोपहर हो गई।

हेममाली की राह देखते-देखते जब राजा कुबेर को दोपहर हो गई तो उसने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर पता लगाओ कि हेममाली अभी तक पुष्प लेकर क्यों नहीं आया। जब सेवकों ने उसका पता लगा लिया तो राजा के पास जाकर बताया- 'हे राजन! वह हेममाली अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है।'

इस बात को सुन राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी। डर से काँपता हुआ हेममाली राजा के सामने उपस्थित हुआ। उसे देखकर कुबेर को अत्यन्त क्रोध आया और उसके होंठ फड़फड़ाने लगे।

राजा ने कहा- 'अरे अधम! तूने मेरे परम पूजनीय देवों के भी देव भगवान शिवजी का अपमान किया है। मैं तुझे शाप (श्राप) देता हूँ कि तू स्त्री के वियोग में तड़पे और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी का जीवन व्यतीत करे।'

कुबेर के शाप (श्राप) से वह तत्क्षण स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरा और कोढ़ी हो गया। उसकी स्त्री भी उससे बिछड़ गई। मृत्युलोक में आकर उसने अनेक भयंकर कष्ट भोगे, किन्तु शिव की कृपा से उसकी बुद्धि मलिन न हुई और उसे पूर्व जन्म की भी सुध रही। अनेक कष्टों को भोगता हुआ तथा अपने पूर्व जन्म के कुकर्मो को याद करता हुआ वह हिमालय पर्वत की तरफ चल पड़ा।

चलते-चलते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुँचा। वह ऋषि अत्यन्त वृद्ध तपस्वी थे। वह दूसरे ब्रह्मा के समान प्रतीत हो रहे थे और उनका वह आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान शोभा दे रहा था। ऋषि को देखकर हेममाली वहाँ गया और उन्हें प्रणाम करके उनके चरणों में गिर पड़ा।

हेममाली को देखकर मार्कण्डेय ऋषि ने कहा- 'तूने कौन-से निकृष्ट कर्म किये हैं, जिससे तू कोढ़ी हुआ और भयानक कष्ट भोग रहा है।'

महर्षि की बात सुनकर हेममाली बोला- 'हे मुनिश्रेष्ठ! मैं राजा कुबेर का अनुचर था। मेरा नाम हेममाली है। मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर शिव पूजा के समय कुबेर को दिया करता था। एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फँस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा और दोपहर तक पुष्प न पहुँचा सका। तब उन्होंने मुझे शाप (श्राप) दिया कि तू अपनी स्त्री का वियोग और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी बनकर दुख भोग। इस कारण मैं कोढ़ी हो गया हूँ तथा पृथ्वी पर आकर भयंकर कष्ट भोग रहा हूँ, अतः कृपा करके आप कोई ऐसा उपाय बतलाये, जिससे मेरी मुक्ति हो।'

मार्कण्डेय ऋषि ने कहा- 'हे हेममाली! तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए मैं तेरे उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूँ। यदि तू आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएँगे।'

महर्षि के वचन सुन हेममाली अति प्रसन्न हुआ और उनके वचनों के अनुसार योगिनी एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करने लगा। इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।

हे राजन! इस योगिनी एकादशी की कथा का फल अट्ठासी सहस्र ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मोक्ष प्राप्त करके प्राणी स्वर्ग का अधिकारी बनता है।"

कथा-सार

मनुष्य को पूजा आदि धर्म में आलस्य या प्रमाद नहीं करना चाहिए, अपितु मन को संयम में रखकर सदैव भगवान की सेवा में तत्पर रहना चाहिए।

एकादशी तिथि प्रारम्भ -

13 जून , 2023 को 09:28 am

एकादशी तिथि समाप्त -

14 जून 2023 को 08:48 am

15 जून को, पारण समय -

05:23 am से 08:10 am

।। आपका आज का दिन शुभ मंगलमय हो ।।

singh

.             दिनांक 19.05.2023 दिन शुक्रवार तदनन्तर संवत् २०८० के ज्येष्ठ माह की अमावस्या  को है :-👇                   ...
19/05/2023

. दिनांक 19.05.2023 दिन शुक्रवार तदनन्तर संवत् २०८० के ज्येष्ठ माह की अमावस्या को है :-👇

"वट सावित्री व्रत"

वट सावित्री व्रत का हिंदू धर्म में काफी महत्व माना जाता है। इस दिन सुहागन महिलायें अपने सुहाग की रक्षा के लिए वट वृक्ष और यमदेव की पूजा करती हैं। शाम के समय वट की पूजा करने पर ही व्रत को पूरा माना जाता है। इस दिन सावित्री व्रत और सत्यवान की कथा सुनने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार इस कथा को सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। कथा के अनुसार सावित्री यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थी। इस व्रत में कुछ महिलायें फलाहार का सेवन करती हैं तो वहीं कुछ निर्जल उपवास भी रखती हैं।

"वट वृक्ष का महत्व"

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का बहुत ही महत्व माना जाता है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व होते हैं। शास्त्रों के अनुसार वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास होता है। बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा सुनने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। वट वृक्ष अपनी लंबी आयु के लिए भी जाना जाता है। इसलिए यह वृक्ष अक्षयवट के नाम से भी मशहूर है।

"पूजन सामग्री"

वट सावित्री पूजन के लिए सत्यवान-सावित्री की मूर्ति, बांस का बना हुआ एक पंखा, लाल धागा, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, 5 तरह के फल फूल, 1.25 मीटर कपड़ा, दो सिंदूर जल से भरा हुआ पात्र और रोली इकट्ठा कर लें।

"पूजन विधि"

इस दिन सुहागनों को सुबह स्नान करके सोलह श्रृंगार करके तैयार हो जाना चाहिए। वट सावित्री में वट यानि बरगद के पेड़ का बहुत महत्व माना जाता है। शाम के समय सुहागनों को बरगद के पेड़ के नीचे पूजा करनी होती है। एक टोकरी में पूजा की सभी सामग्री रखें और पेड़ की जड़ो में जल चढ़ाएं। जल चढ़ाने के बाद दीपक जलायें और प्रसाद चढ़ायें। इसके बाद पंखे से बरगद के पेड़ की हवा करें और सावित्री माँ का आशिर्वाद लें। वट वृक्ष के चारों ओर कच्चे धागे या मोली को 7 बार बांधते हुए पति की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना करें। इसके बाद माँ सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें। घर जाकर उसी पंखें से अपने पति को हवा करें और आशिर्वाद लें। फिर प्रसाद में चढ़े फल आदि ग्रहण करने के बाद शाम में मीठा भोजन अवश्य करें।

"वट सावित्री व्रत की कथा"

बहुत पहले की बात है अश्वपति नाम का एक सच्चा ईमानदार राजा था। उसकी सावित्री नाम की बेटी थी। जब सावित्री शादी के योग्य हुई तो उसकी मुलाकात सत्यवान से हुई। सत्यवान की कुंडली में सिर्फ एक वर्ष का ही जीवन शेष था। सावित्री पति के साथ बरगद के पेड़ के नीचे बैठी थी। सावित्री की गोद में सिर रखकर सत्यवान लेटे हुए थे। तभी उनके प्राण लेने के लिये यमलोक से यमराज के दूत आये पर सावित्री ने अपने पति के प्राण नहीं ले जाने दिए। तब यमराज खुद सत्यवान के प्राण लेने के लिए आते हैं।
सावित्री के मना करने पर यमराज उसे वरदान मांगने को कहते हैं। सावित्री वरदान में अपने सास-ससुर की सुख शांति मांगती है। यमराज उसे दे देते हैं पर सावित्री यमराज का पीछा नहीं छोड़ती है। यमराज फिर से उसे वरदान मांगने को कहते हैं। सावित्री अपने माता पिता की सुख समृद्धि मांगती है। यमराज तथास्‍तु बोल कर आगे बढ़ते हैं पर सावित्री फिर भी उनका पीछा नहीं छोड़ती है। यमराज उसे आखिरी वरदान मांगने को कहते हैं तो सावित्री वरदान में एक पुत्र मांगती है। यमराज जब आगे बढ़ने लगते हैं तो सावित्री कहती हैं कि पति के बिना मैं कैसे पुत्र प्राप्ति कर स‍कती हूँ। इसपर यमराज उसकी लगन, बुद्धिमत्ता देखकर प्रसन्न हो जाते हैं और उसके पति के प्राण वापस कर देते हैं।
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"जय जय श्री राधे"
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19/05/2023
13/05/2023

श्री बांके बिहारी जी शयन आरती

बुढ़वा (बड़ा) मंगल कथा और महत्व〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर...
09/05/2023

बुढ़वा (बड़ा) मंगल कथा और महत्व
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥

बुढ़वा मंगल उत्सव हनुमान जी के वृद्ध रूप के लिए किया जाता है। यह उत्सव ज्येष्ठ माह के चारों मंगलवार को आयोजित किया जाता है, जिसे प्रचलित भाषा में बूढ़े मंगल के नाम से भी जाना जाता है।

बुढ़वा मंगल हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, इसे भारत में वानर राज राम भक्त हनुमान जी के वृद्ध रूप की पूजा की जाती है। श्री हनुमंत शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक हैं, वह जादुई शक्तियों और बुरी आत्माओं को जीनते की क्षमता रखने वाले देव के रूप मे पूजे जाते हैं।

बुढ़वा मंगल दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत मे ज्यादा प्रमुखता से मनाया जाता है। परंतु उत्तर भारत में ही कहीं-कहीं यह त्यौहार ज्येष्ठ माह के प्रथम मंगलवार को भी मनाया जाता है, जिनमे कानपुर एवं वाराणसी प्रमुख शहर हैं।

भगवान शिव के अवतार है हनुमान।

भगवान हनुमान को महादेव का 11वां अवतार भी माना जाता है। हनुमान जी की पूजा करने और व्रत रखने से हनुमान जी का आर्शीवाद प्राप्त होता है और जीवन में किसी भी प्रकार का संकट नहीं आता है, इसलिए हनुमान जी को संकट मोचक भी कहा गया है।

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में होता हैं या फिर शनि की साढ़ेसाती चल रही होती है, उन लोगों को इस दिन हनुमान जी के सुन्दर कांड का 101 पाठ या हनुमान चालीसा का 1001 पाठ कराने से शनि ग्रह से जुड़ी समस्या में कमी आती हैं। हनुमान जी को मंगलकारी कहा गया है, इसलिए इनकी पूजा जीवन में मंगल लेकर आती हैं।

केसरी तथा माता अंजना के पुत्र श्री हनुमान को महावीर, बजरंगबली, मारुती, पवनपुत्र, अंजनीपुत्र तथा केसरीनन्दन के नाम से भी जाना जाता है। पवनपुत्र हनुमान को भगवान शिव का 11वां रूद्र अवतार माना गया है, अतः प्रत्येक हनुमान मंदिर में शिवलिंग स्थापित अवश्य किया जाता है।

हनुमानजी की प्रतिमा पर लगा केसरी सिन्दूर अत्यन्त पवित्र माना जाता है क्योंकि माना जाता है कि हनुमान को केसरी सिन्दूर अत्यन्त प्रिय है। भक्तगण प्रायः इस सिन्दूर को देसी घी में मिलाकर भगवान की प्रतिमा पर लगाते हैं और प्रसादस्वरूप उसी का टीका तिलक के रुप में अपने मस्तक पर लगाते हैं। ऐसा माना जाता है, कि इस तिलक के माध्यम से भक्त श्री हनुमानजी की कृपा से उन्हीं की तरह शक्तिशाली, ऊर्जावान तथा संयमित हो जाते हैं।

बुढ़वा मंगल का इतिहास और प्रचलित कथायें:
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वैसे तो बुढ़वा मंगल के बारे में कई कथायें प्रचलित हैं जिसका वर्णन मिलता है यहाँ पर कुछ ऐसी ही किवद्नतियां हैं जो सदियों से चली आ रही हैं ।

पुरानी मान्यताओं के अनुसार एक कथा यह है कि महाभारत काल में हजारों हाथियों के बल को धारण किए भीम को अपने शक्तिशाली होने पर बड़ा अभिमान और घमंड हो गया था। भीम के घमंड को तोड़ने के लिए रूद्र अवतार भगवान हनुमान ने एक बूढ़े बंदर का भेष धारण कर उनका घमंड चूर-चूर किया। आगे चलकर यही दिन बुढ़वा मंगल कहलाने लगा।

दूसरी कथा
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एक अन्य मत के अनुसार रामायण काल में भाद्रपद महीने के आखिरी मंगलवार को माता सीता की खोज में जब लंका पहुंचने पर हनुमान जी की पूंछ में रावण ने आग लगा दी थी तो हनुमान जी ने अपने विराट स्वरूप को धारण कर लंका को जलाकर रावण का घमंड चूर किया।

मंत्र
ॐ हनु हनुमते नमो नमः, श्री हनुमते नमो नमः।
उत्सव व पूजा विधि
-हनुमान जी का जन्म सूर्योदय के समय हुआ था इसलिए बुढ़वा मंगल के दिन ब्रहम मुहूर्त में पूजा करना सबसे शुभ माना जाता है।
- हनुमान जी का उपवास रखें नमक का प्रयोग न करें।
-हनुमान जी को प्रिय चीज़ों का भोग जैसे लड्डू,केला ,अंगूर व शुद्ध चावल की खीर चढ़ायें।

-बुढ़वा मंगल पर 101 बार हनुमान चालीसा,सुंदरकांड का पाठ,बजरंग बाण का -पाठ करना शुभ होता है सारे कष्ट संकटमोचन दूर कर देते हैं।
-श्री हनुमंत लाल पर सिंदूर चढ़ाएँ, हनुमंत ध्वजा, प्रार्थना, भजन / कीर्तन करें।
-रामचरित मानस का पाठ कराना भी शुभ व अत्यन्त लाभकारी होता है।
-हनुमान मंदिर का दर्शन कर घर के मंदिर में करें पूजा।

धन और व्यापार से जुड़ी परेशानी दूर करने के लिए करें ये उपाय:
बुढ़वा मंगल के दिन कुछ उपाय करने से धन और व्यापार में आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सकता है। बुढ़वा मंगल के दिन शुभ मुहूर्त में हनुमान जी को चमेली के तेल का दीपक जलाएं, इसके साथ ही इस दिन हनुमान जी को चोला और ध्वजा चढ़ाएं। हनुमान जी चोला चढ़ाने से भगवान विशेष प्रसन्न होते हैं।

मंत्र का ध्यान
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मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।

अर्थात : जिनकी मन के समान गति और वायु के समान वेग है, जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, उन पवनपुत्र वानरों में प्रमुख श्रीरामदूत की मैं शरण लेता हूं। कलियुग में हनुमानजी की भक्ति से बढ़कर किसी अन्य की भक्ति में शक्ति नहीं है। रामरक्षा स्तोत्र से लिए गए हनुमानजी के प्रति शरणागत होने के लिए इस श्लोक या मंत्र का जप करने से हनुमानजी तुरंत ही साधक की याचना सुन लेते हैं और वे उनको अपनी शरण में ले लेते हैं।

जो व्यक्ति हनुमानजी का प्रतिदिन ध्यान करते रहते हैं, हनुमानजी उनकी बुद्धि से क्रोध को हटाकर बल का संचार कर देते हैं। हनुमान भक्त शांत चित्त, निर्भीक और समझदार बन जाता है।

॥ आरती ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

जाके बल से गिरवर काँपे ।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई...

दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ॥
लंका जारि असुर संहारे ।
सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥

पैठि पताल तोरि जाग कारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर संहारे ।
दाईं भुजा सब संत उबारें ॥

सुर नर मुनि जन आरती उतरें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कचंन थाल कपूर की बाती ।
आरती करत अंजनी माई ॥

जो हनुमानजी की आरती गावे ।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥

आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥
श्री राम नवमी, विजय दशमी, सुंदरकांड, रामचरितमानस कथा, हनुमान जन्मोत्सव, मंगलवार व्रत, शनिवार पूजा, बूढ़े मंगलवार और अखंड रामायण के पाठ में प्रमुखता से गाये जाने वाला चालीसा, जो कि स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी के रामचरितमानस की सबसे प्रसिद्ध रचना है।
हनुमान चालीसा
॥ दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके
सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं
हरहु कलेस बिकार ॥

॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥

राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥

शंकर सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥

लाय सजीवन लखन जियाए ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥

आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥

संकट तै हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥

साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

अंतकाल रघुवरपुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥

और देवता चित्त ना धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥

जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥

जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०॥

॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप ॥
बजरंग बाण
॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते,
बिनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ,
सिद्ध करैं हनुमान॥

॥ चौपाई ॥
जय हनुमंत संत हितकारी ।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ॥
जन के काज बिलंब न कीजै ।
आतुर दौरि महा सुख दीजै ॥

जैसे कूदि सिंधु महिपारा ।
सुरसा बदन पैठि बिस्तारा ॥
आगे जाय लंकिनी रोका ।
मारेहु लात गई सुरलोका ॥

जाय बिभीषन को सुख दीन्हा ।
सीता निरखि परमपद लीन्हा ॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा ।
अति आतुर जमकातर तोरा ॥
अक्षय कुमार मारि संहारा ।
लूम लपेटि लंक को जारा ॥
लाह समान लंक जरि गई ।
जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ॥

अब बिलंब केहि कारन स्वामी ।
कृपा करहु उर अंतरयामी ॥
जय जय लखन प्रान के दाता ।
आतुर ह्वै दुख करहु निपाता ॥

जै हनुमान जयति बल-सागर ।
सुर-समूह-समरथ भट-नागर ॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले ।
बैरिहि मारु बज्र की कीले ॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा ।
ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा ॥
जय अंजनि कुमार बलवंता ।
शंकरसुवन बीर हनुमंता ॥
बदन कराल काल-कुल-घालक ।
राम सहाय सदा प्रतिपालक ॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर ।
अगिन बेताल काल मारी मर ॥

इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की ।
राखु नाथ मरजाद नाम की ॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै ।
राम दूत धरु मारु धाइ कै ॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा ।
दुख पावत जन केहि अपराधा ॥
पूजा जप तप नेम अचारा ।
नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ॥

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं ।
तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं ॥
जनकसुता हरि दास कहावौ ।
ताकी सपथ बिलंब न लावौ ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा ।
सुमिरत होय दुसह दुख नासा ॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं ।
यहि औसर अब केहि गोहरावौं ॥

उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई ।
पायँ परौं, कर जोरि मनाई ॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता ।
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल ।
ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल ॥
अपने जन को तुरत उबारौ ।
सुमिरत होय आनंद हमारौ ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै ।
ताहि कहौ फिरि कवन उबारै ॥
पाठ करै बजरंग-बाण की ।
हनुमत रक्षा करै प्रान की ॥

यह बजरंग बाण जो जापैं ।
तासों भूत-प्रेत सब कापैं ॥
धूप देय जो जपै हमेसा ।
ताके तन नहिं रहै कलेसा ॥

॥ दोहा ॥
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै,
पाठ करै धरि ध्यान ।
बाधा सब हर,
करैं सब काम सफल हनुमान ॥

बड़ा मंगल 2023 की तिथियां
ज्येष्ठ महीने पहला बड़ा मंगल- 09 मई 2023
ज्येष्ठ महीने दूसरा बड़ा मंगल- 16 मई 2023
ज्येष्ठ महीने तीसरा बड़ा मंगल- 23 मई 2023
ज्येष्ठ महीने चौथा बड़ा मंगल- 30 मई 2023
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*आपको और आपके परिवार को ज्येष्ठ मास के प्रथम मंगलवार की हार्दिक शुभकामनाएं संकट मोचन हनुमानजी हम सब के कष्टों को दूर करे...
09/05/2023

*आपको और आपके परिवार को ज्येष्ठ मास के प्रथम मंगलवार की हार्दिक शुभकामनाएं संकट मोचन हनुमानजी हम सब के कष्टों को दूर करे*
*जय श्री राम*
*जय बजरंग बली*
🙏🚩🐚🌹🚩🙏
निखिल सिंह कुशवाहा
🙏🚩🐚🌹🚩🙏
हनुमान चालीसा" उत्पत्ति की कथा... प्रियवर... यह कहानी नहीं, एक सत्य कथा है, शायद कुछ ही लोगो को यह किस्सा पता होगा, पवन पुत्र हनुमान जी की आराधना तो सभी लोग करते हैं, और हनुमान चालीसा का पाठ भी करते है, पर इसकी उत्पत्ति कहाँ और कैसे हुई, यह जानकारी बहुत ही कम लोगो को होगी, बात 1600 ईस्वी की है, यह काल अकबर और तुलसीदास जी के समय का काल था, एक बार तुलसीदास जी मथुरा जा रहे थे, रात होने से पहले उन्होंने अपना पडाव आगरा में डाला, लोगों को पता लगा की तुलसी दास जी आगरा में पधारे हैं, यह सुन कर उनके दर्शनों के लिए लोगों का ताँता लग गया, जब यह बात अकबर को पता लगी तो उन्होंने बीरबल से पूछा की यह तुलसीदास कौन है, तब बीरबल ने बताया, इन्होंने ही हनुमान जी की कृपा से, रामचरितमानस" की रचना की है, यह परम रामभक्त तुलसीदास जी हैं, मैं भी इनके दर्शन करके आया हूँ, अकबर ने भी उनके दर्शन की इच्छा व्यक्त की, और कहा में भी उनके दर्शन करना चाहता हूँ, बादशाह अकबर ने अपने सिपाहियों की एक टुकड़ी को, तुलसीदास जी के पास उन्हें लालकिला बुलाने हेतु भेजा, और सैनिकों ने तुलसीदास जी को, अकबर का संदेश सुनाया, की आप लाल किले में उपस्थित हों, यह संदेश सुन कर तुलसीदास जी ने कहा की, मैं भगवान श्रीराम का भक्त हूँ, मुझे अकबर और लाल किले से क्या लेना देना, और लाल किले जाने को साफ मना कर दिया, जब यह बात अकबर तक पहुँची, तो उसे बहुत बुरी लगी, और अकबर गुस्से में लाल लाल हो गया, और उसने तुलसीदास जी को जंज़ीरों से जकड़ कर, लाल किला लाने का आदेश दिया, जब तुलसीदास जी, जंजीरों से जकड़े लाल किला पहुंचे, तो अकबर ने कहा की आप कोई चमत्कारी व्यक्ति लगते हो, कोई चमत्कार करके दिखाओ, तुलसी दास जी ने कहा, मैं तो सिर्फ भगवान श्रीराम जी का भक्त हूँ , कोई जादूगर नही हूँ , जो आपको कोई चमत्कार दिखा सकूँ , अकबर यह सुन कर आग बबूला हो गया, और आदेश दिया की इनको जंजीरों से जकड़ कर, काल कोठरी में डाल दिया जाये, दूसरे दिन इसी आगरा के लाल किले पर, लाखों बंदरों ने एक साथ हमला बोल दिया, पूरा किला तहस नहस कर डाला, लाल किले में त्राहि त्राहि मच गई, तब अकबर ने बीरबल को बुला कर पूछा की बीरबल यह क्या हो रहा है, बीरबल ने कहा, हुज़ूर आप चमत्कार देखना चाहते थे तो देखिये चमत्कार, अकबर ने तुरंत तुलसी दास जी को काल कोठरी से निकलवाया, और जंजीरे खोल कर क्षमा, याचना कर सम्मान किया, तुलसीदास जी ने बीरबल से कहा कि मुझे बिना अपराध के सजा मिली है, मैंने काल कोठरी में भगवान श्रीराम और हनुमान जी का स्मरण किया, मेरी आखों से अश्रुधारा निकल रही थी, और मेरे हाथ अपने आप कुछ लिख रहे थे, यह 40 चौपाई स्वतः , हनुमान जी की प्रेरणा से लिखी गई हैं, जो भी व्यक्ति कष्ट में या संकट में होगा, और वो इनका १०० बार निष्ठा पूर्वक पाठ करेगा, उसके कष्ट और सारे संकट प्रभू कृपा से दूर होंगे, इस रचना को "हनुमान चालीसा" के नाम से जाना जायेगा, अकबर बहुत लज्जित हुआ, और उसने तुलसीदास जी से बार बार क्षमा मांगी, और पूरे सम्मान और सुरक्षा, लाव लश्कर से मथुरा भिजवाया, आज हनुमान चालीसा का पाठ सभी लोग कर रहे हैं, और हनुमान जी की कृपा उन सभी पर हो रही है, और सभी के संकट दूर हो रहे हैं, हनुमान जी को इसीलिए "संकट मोचन" भी कहा जाता है... जय सिया राम... जय राधे श्याम... जय श्री हनुमान... सुस्वागतम्... साभार... जय श्री गणेश...

आज की पावन बेला पर🙏🌹श्री अनिरुद्धाचार्य जी 🌹🙏         singh
08/05/2023

आज की पावन बेला पर

🙏🌹श्री अनिरुद्धाचार्य जी 🌹🙏

singh

आपको बहुत बहुत धन्यवाद
04/05/2023

आपको बहुत बहुत धन्यवाद

03/05/2023

सभी को नमस्ते! 🌟 आप स्टार भेजकर मुझे सपोर्ट कर सकते हैं - उनसे मुझे पैसा कमाने में मदद मिलती है, ताकि मैं आपका पसंदीदा कंटेंट बनाता रहूँ.

जब भी आपको स्टार वाला आइकन दिखे, आप मुझे स्टार भेज सकते हैं!

03/05/2023

श्री राधे राधे

जगन्नाथ  के भात को जगत पसारे हाथ..ll  अनाथों के नाथ श्री जगन्नाथ भगवान का उत्सव आज से उत्तर भारत में सनातन धर्म में आस्थ...
20/04/2023

जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ..ll अनाथों के नाथ श्री जगन्नाथ भगवान का उत्सव आज से उत्तर भारत में सनातन धर्म में आस्था रखने वाले परिवारों में हर्षोल्लास के साथ विधि-विधान पूर्वक मनाया जाता है। माताएं भगवान के भोग के लिए मालपुआ गुझिया गुड़ धनिया और नाना प्रकार के व्यंजन तैयार करती हैं। श्री जगन्नाथ स्वामी जगत के संकट को हरने वाले अनाथों के नाथ हैं ।उनके श्री चरणों में बारंबार साष्टांग दंडवत प्रणाम हैl

20/04/2023

अमावस्या स्पेशल श्रृंगार आरती दर्शन

20/04/2023

20 अप्रैल 2023 कृपा बांके बिहारी जी की
श्रीमत्कुंज बिहारिणे नमः
श्रीकुंज बिहारी श्री हरिदास।
श्री बांके बिहारी जी महाराज के दर्शन। एवं श्रंगार आरती दर्शन।
श्रीं बांके बिहारी जी महाराज की कृपा आप सभी पर बनी रहे।

singh

19/04/2023

अमावस्या के दिन क्यों होते हैं भूत-प्रेत सक्रिय
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रहस्यमयी होती है अमावस्या, नकारात्मक शक्ति का अधिक प्रभाव रहता है।
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा, अमावस्या और ग्रहण के रहस्य को उजागर किया गया है। इसके अलावा वर्ष में ऐसे कई महत्वपूर्ण दिन और रात हैं जिनका धरती और मानव मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें से ही माह में पड़ने वाले 2 दिन सबसे महत्वपूर्ण हैं- पूर्णिमा और अमावस्या। पूर्णिमा और अमावस्या के प्रति बहुत से लोगों में डर है। खासकर अमावस्या के प्रति ज्यादा डर है। वर्ष में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या होती हैं। सभी का अलग-अलग महत्व है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या।

अमावस्या : वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं तो दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं। जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है।

अमा‍वस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिए। प्रेत के शरीर की रचना में 25 प्रतिशत फिजिकल एटम और 75 प्रतिशत ईथरिक एटम होता है। इसी प्रकार पितृ शरीर के निर्माण में 25 प्रतिशत ईथरिक एटम और 75 प्रतिशत एस्ट्रल एटम होता है। अगर ईथरिक एटम सघन हो जाए तो प्रेतों का छायाचित्र लिया जा सकता है और इसी प्रकार यदि एस्ट्रल एटम सघन हो जाए तो पितरों का भी छायाचित्र लिया जा सकता है।

ज्योतिष में चन्द्र को मन का देवता माना गया है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता। ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं, उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। लड़कियां मन से बहुत ही भावुक होती हैं। इस दिन चन्द्रमा नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है।

धर्मग्रंथों में चन्द्रमा की 16वीं कला को 'अमा' कहा गया है। चन्द्रमंडल की 'अमा' नाम की महाकला है जिसमें चन्द्रमा की 16 कलाओं की शक्ति शामिल है। शास्त्रों में अमा के अनेक नाम आए हैं, जैसे अमावस्या, सूर्य-चन्द्र संगम, पंचदशी, अमावसी, अमावासी या अमामासी। अमावस्या के दिन चन्द्र नहीं दिखाई देता अर्थात जिसका क्षय और उदय नहीं होता है उसे अमावस्या कहा गया है, तब इसे 'कुहू अमावस्या' भी कहा जाता है।

अमावस्या माह में एक बार ही आती है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। अमावस्या सूर्य और चन्द्र के मिलन का काल है। इस दिन दोनों ही एक ही राशि में रहते हैं। सोमवती अमावस्या, भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या आदि मुख्‍य अमावस्या होती है।

अमावस्या के दिन क्या न करें
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👉 इस दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए।
👉 इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं।
👉 जानकार लोग तो यह कहते हैं कि चौदस, अमावस्या और प्रतिपदा उक्त 3 दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है।
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