25/12/2023
😁पच्चीस-दिसम्बर-मनुस्मृति-दहन-दिवस😄
25 दिसंबर 1927 को महाड़ तालाब में पानी पीने के अधिकार के आंदोलन के दौरान बाबासाहेब अम्बेडकर ने सार्वजनिक रूप से सदियों तक देश के मूलनिवासियो को गुलाम बनाकर रखने वाली किताब मनुस्मृति जलाई थी
इस कार्य के लिए जब कोई भी अपनी जमीन देने से कतरा रहा था तब फत्ते खां नाम के एक मुस्लिम व्यक्ति ने इस कार्यक्रम के लिए अपनी निजी ज़मीन दी थी और वही मनुस्मृति के एक एक पन्ने को फाड़कर जला दिया गया था बाबासाहेब ने मनुस्मृति का दहन हिंदू धर्म की उन तमाम स्मृतियों,ग्रन्थों,पुराणों आदि किताबों का प्रतिनिधि ग्रन्थ मानकर किया था जो महिलाओं,और पिछड़ों यानि आज के ( एससी-एस टी-ओ बी सी ) को हीन मानते हुए उन्हें एक अछूत का जीवन जीने के लिए बाध्य करती थी।
मनु ने मनुस्मृति में अमानवीय कानूनों से अछूतों( शुद्र-दलित,ओबीसी,आदिवासी) और महिलाओं को केवल एक गुलाम व जानवर से भी बदतर जीवन जीने को मजबूर किया मनु के बनाये कानूनों के कारण इस देश के मुलनिवासी मरे हुए जानवरों का सड़ा हुआ मांस नोचकर खाने तक को मजबूर हुए थे गले मे हांडी पीछे झाड़ू तक जैसे प्रावधान जब अस्तित्व में थे तो मनुस्मृति के ही कारण थे मनुस्मृति के नियम में केवल ब्राह्मनो को ही विशेषाधिकार प्राप्त थे व इस देश के मूलनिवासी पूर्णतः अधिकारवंचित तो थे ही इसके साथ साथ उनके लिए कड़े से कड़ें अमानवीय दण्ड लिखे गए थे ताकि कोई भी ब्राह्मणो के विरुद्ध अपनी आवाज उठा ही न सके बाबासाहेब अंबेडकर ने मनुस्मृति का दहन कर देश में समानता,न्याय और समता के अधिकारों की शुरूआत की बाद में उन्होंने भारतीय संविधान की नींव रखी जिसके बूते आज महिलाएं और बहुजन समाज को अधिकार मिलने प्रारम्भ हुए पर आज देश मे जैसी सरकार सत्ता में हैं आज भी देश में मनुस्मृति का प्रभाव देखा और महसूस किया जा सकताहै
भारतीय संविधान से अधिकार पाकर ( एससी-एस टी-ओ बी सी) और महिलाओं के आगे बढ़ने से जिन्हें तकलीफ है उन कुछ देशद्रोहियों ने भारतीय संविधान को जलाने की हिमाकत भी की थी लेकिन जो लोग स्वतंत्रता समानता,न्याय,भाईचारे, समता और बराबरी के अधिकारों को महत्व देते हैं वो आज मनुस्मृति जला रहें हैं और जब तक इसका दहन होता रहेगा जब तक इस देश से मनुवाद लुप्त नही हो जाएगा ?
मनुस्मृति दहन दिवस की बधाई 🙏💪🙏👏👍