काली कुमाऊँ के देवीधूरा में श्रावणी पूर्णिमा यानि रक्षा बंधन के दिन बग्वाल खेले जाने की परंपरा है. बग्वाल में स्थानीय ग्रामीण एक दूसरे पर पत्थरों की बारिश करते हैं.
हमारा लोकपर्व घ्यूं त्यार है आज
अगली बार अल्मोड़ा जाएँ तो आपको किसी पुरानी मिठाई की दुकान में मालू के पत्ते में लिपटी सिंगौड़ी का ऑथेंटिक स्वाद मिल सकता है. इस सिंगौड़ी को खाते हुए मालू के पत्ते को जरूर याद कीजियेगा. हमारे उन पुरखों को भी याद कीजियेगा जिन्होंने अपने जंगलों में मालू को फैलाया. इसके जुड़वा पत्तों को निहार कर उन बॉहीन बन्धुवों को भी कीजियेगा जिन्होंने वनस्पतिशास्त्र के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया.
तिमला न केवल पौष्टिक एवं औषधीय महत्व का है अपितु पर्वतीय क्षेत्रों की पारिस्थितिकी में भी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है. कई सारे पक्षी तिमले के फल को खाते हैं तथा इसके बीज को एक जगह से दूसरी जगह फैलाने में सहायक बनते हैं. कई सारी कीट (Wasp) प्रजातियां भी तिमले के परागण में सहायक होती हैं.
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पहली बारिश में मिट्टी की सोंधी खुशबू और पानी की सौगात तन-मन को सराबोर कर जाती है. मन हरा-भरा होने लगता है. इसीलिए कविता-सिनेमा-गीतों में वर्षा ऋतु का चित्रण खूब देखने को मिलता है. हिंदी सिनेमा भी इस अनुभव से अछूता नहीं रहा. बरखा, बदरा, बहार, सावन, झूले, रिमझिम बारिश का सिनेमा में प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है. इतना ही नहीं, कोई विशेष घटनाक्रम दिखाना हो, या नाटकीयता, कहानी को ट्विस्ट देना हो अथवा कोई अकस्मात घटना दिखानी हो, कथा में यू टर्न लाना हो या प्रभावी क्राइम सीन खींचना हो, रोमांटिक सीन दर्शाने हों, इन सबके लिए बरसात, सबसे सहज-सुलभ मौसम रहा है.
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गढ़वाल में सभी नदियों के संगम स्थल प्रयाग कहलाते हैं. इनमें से पांच संगम देश-दुनिया में मशहूर हैं. इन पांच प्रयागों (संगम) को पंचप्रयाग के नाम से भी जाना जाता है... Full story link in the comment box
करम सिंह भण्डारी पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 1968 में चम्पावत जिले के निर्माण के लिए जन सम्पर्क किया था. उन्होंने अकेले ही बिना पार्टी और झंडे के यह अलख जगाई थी. अब जिला बन गया है और जनता लाभ ले रही है पर तब उनकी हंसी उड़ाते थे. करम सिंह का मूल गांव जिला पिथौरागढ़ का पतलदे था. वे अपनी सुविधा के लिए सूखीढांक से 6 किमी दूर (पूर्णागिरी की दिशा में) काफी पहले बस चुके थे... Full story link in the comment box
बदरीनाथ मंदिर के कपाट आज शुभ मूहूर्त पर 6 बजे श्रद्धालुओं के लिए खुले.
आज के दिन ही घटा था कफल्टा का शर्मनाक हत्याकांड...
आजकल उत्तराखण्ड के कुमाऊँ में खड़ी होली मनाई जा रही है, पुरूषों के अलावा महिलायें भी खड़ी होली को पूरे जोश और उल्लास से मनाती हैं। गाँवों में एक साथ सभी महिलाएँ खड़ी होली गाते हुए सभी के घरों में जाकर होली नाचती गाती हैं। पूरे जोश के साथ होली के उल्लास में डूबी इन महिलाओं में छोटी छोटी बच्चियों से लेकर काफ़ी वृद्ध औरतें भी शामिल होती हैं। देखिए पिछली शाम अल्मोड़ा के पास के एक गाँव डोबा से खड़ी होली की एक झलक। डोबा, अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड, 24 मार्च 2024. वीडियो एवम् विवरण- Jaimitra Singh Bisht हिमालयन जेफर, अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड।
कुमाऊनी होली के रंग...
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नये अंदाज में 'दीन ढलक्या रात आगे'