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यह किताब पढ़ते हुए बार-बार मुझे वह दृश्य दिखे जहां चलते पहाड़ों की ऊंचाई नापते जाना था कि आखिर क्यों वह हमें अपने पास आन...
24/12/2024

यह किताब पढ़ते हुए बार-बार मुझे वह दृश्य दिखे जहां चलते पहाड़ों की ऊंचाई नापते जाना था कि आखिर क्यों वह हमें अपने पास आने का निमंत्रण देते हैं. बार-बार इनके बीच से गुजरते इनकी समृद्धता का एहसास होता है व जल जंगल जमीन के सघन सहज सरल रिश्तों की बात समझ में आती है. दूरस्थ के इन इलाकों में प्रकृति ने जो रहने टिकने के बंदोबस्त किये हैं सीमांत वासियों ने उनके साथ जो समायोजन किया है उससे कितनी बसासतें आवास-प्रवास का क्रम बना अपने जीवन निर्वाह के अनोखे उपक्रम संजो गईं हैं. आगे जाते जब न कोई रास्ता दिखे, न कोई पग डंडी बस टटोल टटोल कर बढ़ना ही किसी के इशारों से संभव हो तब जाना जाता है कि आबो हवा के बदलने का मतलब किन नई परीक्षाओं से गुजर जाना है.अब यही प्रकृति परीक्षा लेती है कि कितना बूता है चल दिखा और बढ़ आगे तो पायेगा वह जिसकी तलाश थी जिसके लिए मन बेचैन था वह है यहां कहीं, तो देख.

न यहां मनुष्य है और न देवता. भूगर्भ और भूगोल तो है पर गिनी चुनी वनस्पतियाँ. इस Book Review Himank aur Kvathnank Ke Beech

दिनभर अधिकारी फाइलों में खोए रहते और शाम होते ही माल रोड पर चहल-पहल शुरू हो जाती. ठंडी हवाएँ नैनीताल झील को छूतीं और सरक...
20/12/2024

दिनभर अधिकारी फाइलों में खोए रहते और शाम होते ही माल रोड पर चहल-पहल शुरू हो जाती. ठंडी हवाएँ नैनीताल झील को छूतीं और सरकारी अधिकारी अपने परिवारों संग झील की सैर पर निकल जाते. यह समय नैनीताल की जिंदगी का सबसे सुनहरा समय होता.

लेकिन जैसे-जैसे अक्टूबर का महीना नजदीक आता, पहाड़ों पर ठंड बढ़ने लगती. बर्फीली हवाएँ बहने लगतीं और तब नैनीताल के सरकारी दफ्तर हल्द्वानी की ओर रुख करते.

हल्द्वानी, जो तराई और भाबर क्षेत्र का प्रवेश द्वार था, सर्दियों में कुमाऊँ प्रशासन का मुख्य केंद्र बन जाता. हल्द्वानी की जमीन सपाट थी, यातायात की सुविधा अच्छी थी और तराई-भाबर के गाँवों तक अधिकारियों के लिए पहुँचना आसान था. अधिकारी हल्द्वानी में बैठकर किसानों की समस्याएँ सुनते, जमीनों का हिसाब-किताब करते और जंगलों की देख- रेख का काम करते.

ठंडी हवाएँ नैनीताल झील को छूतीं और सरकारी अधिकारी अपने परिवारों संग झील की सैर पर निकल जाते... Winters During British Era

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए महज 44 ...
20/12/2024

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए महज 44 साल की उम्र में विश्वविख्यात ‘हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान (एचएमआई), दार्जिलिंग’ के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित होने का गौरव प्राप्त किया है. गौरतलब है कि रजनीश जोशी की स्कूली पढाई-लिखाई सरस्वती शिशु मंदिर, देवलथल में हुई. उसके बाद आगे की शिक्षा कारमन स्कूल देहरादून से हुई. एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले रजनीश के पिता प्राइवेट संस्थान में कार्यरत थे तो माता गृहणी. साल 2005 में सेना में कमीशन मिलने के बाद गढ़वाल राइफल्स के सैन्य अधिकारी के तौर उन्होंने पर देश के विभिन्न सैन्य केन्द्रों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वाह किया. इसके साथ ही उन्होंने कई चुनौतीपूर्ण पर्वतारोहण अभियानों में भागीदारी की और कई का नेतृत्व भी किया.
18 दिसम्बर को कर्नल रजनीश जोशी ने विधिवत रूप से ‘हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान (एचएमआई), दार्जिलिंग’ के प्राचार्य का पदभार ग्रहण कर लिया. इस गौरव को हासिल करने वाले वे उत्तराखंड के दूसरे सैन्य अधिकारी हैं.

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने बड़ी उपलब्धि... Colonel Rajneesh Joshi Mountaineering

मोटर चली गई. बूढ़ा कई मिनट तक मूर्ति की भांति निश्चल खड़ा रहा. संसार में ऐसे मनुष्य भी होते हैं, जो अपने आमोद-प्रमोद के ...
19/12/2024

मोटर चली गई. बूढ़ा कई मिनट तक मूर्ति की भांति निश्चल खड़ा रहा. संसार में ऐसे मनुष्य भी होते हैं, जो अपने आमोद-प्रमोद के आगे किसी की जान की भी परवाह नहीं करते, शायद इसका उसे अब भी विश्वास न आता था. सभ्य संसार इतना निर्मम, इतना कठोर है, इसका ऐसा मर्मभेदी अनुभव अब तक न हुआ था. वह उन पुराने जमाने की जीवों में था, जो लगी हुई आग को बुझाने, मुर्दे को कंधा देने, किसी के छप्पर को उठाने और किसी कलह को शांत करने के लिए सदैव तैयार रहते थे. जब तक बूढ़े को मोटर दिखाई दी, वह खड़ा टकटकी लगाए उस ओर ताकता रहा. शायद उसे अब भी डॉक्टर साहब के लौट आने की आशा थी. फिर उसने कहारों से डोली उठाने को कहा. डोली जिधर से आई थी, उधर ही चली गई. चारों ओर से निराश हो कर वह डॉक्टर चड्ढा के पास आया था. इनकी बड़ी तारीफ़ सुनी थी. यहां से निराश हो कर फिर वह किसी दूसरे डॉक्टर के पास न गया. क़िस्मत ठोक ली!

संध्या का समय था. डॉक्टर चड्ढा गोल्फ़ खेलने के लिए तैयार हो रहे थे. मोटर द्वार के सामने खड़ी थी कि दो कहार... Kahani Mantra Munshi Premc...

स्टेशन के बाहर एक तांगा रुका, उसका चालक चिल्लाया, “नैनी ताल, साहब! जल्दी, जल्दी!” सामान को मजबूती से बाँधकर, जॉर्ज घोड़ा ...
19/12/2024

स्टेशन के बाहर एक तांगा रुका, उसका चालक चिल्लाया, “नैनी ताल, साहब! जल्दी, जल्दी!” सामान को मजबूती से बाँधकर, जॉर्ज घोड़ा गाड़ी में चढ़ गया, और घोड़े तेज़ रफ़्तार से चल पड़े. उन दिनों काठगोदाम से नैनीताल तक की यात्रा तांगे से ही की जाती थी. नैनी ताल की सड़क ऊपर की ओर मुड़ी हुई थी, एक सर्पीली सड़क जो ढलानों से चिपकी हुई थी. उनके नीचे, तराई लगातार फैली हुई थी, इसके जंगल के टुकड़े बादलों के अस्पष्ट में धुंधले हो गए थे. जॉर्ज को चेतावनी दी गई थी, यात्रा रात में करने की कोशिश नहीं की गई थी – कुली धुंध में इन रास्तों पर चलने से मना करते थे, जंगली जानवरों और छिपी हुई खाइयों से डरते थे. जैसे-जैसे वे चढ़ते गए, जॉर्ज इस दृश्य पर आश्चर्यचकित होता गया. प्रत्येक मील के साथ चर्चा ठंडी होती गई. पंख वाले जीव जिन्हें उसने हाल ही में कभी नहीं देखा था, पेड़ों के बीच नाच रहे थे, उनकी धुनें तांगा घोड़ों से बंधी झंकार की झंकार के साथ मिल रही थीं. एक मोड़ के आसपास, समुद्र खुल गया और एक लुभावनी दृश्य सामने आया: नैनीताल, कुमाऊं का चमकता हुआ रत्न.

स्टेशन के बाहर एक तांगा रुका, उसका चालक चिल्लाया, "नैनी ताल, साहब! जल्दी, जल्दी!"... Journey from Bareilly to Nainital in the summer of 1886

त्रिपाठी जी तब मिले थे जब बिरला कॉलेज श्रीनगर में गर्मियों की छुट्टी होने पर में नैनीताल आया था.1974 में जब में दिल्ली द...
18/12/2024

त्रिपाठी जी तब मिले थे जब बिरला कॉलेज श्रीनगर में गर्मियों की छुट्टी होने पर में नैनीताल आया था.1974 में जब में दिल्ली दूरस्थ शिक्षा व फिर राजकीय महाविद्यालय में नौकरी पर आया तब वह यहीं इंटर कॉलेज में थे. उनसे बड़ी लम्बी बातचीत हुई. उत्तराखंड के अतीत के बारे में उन्होंने बहुत विस्तार से बताया. ऐतिहासिक पुनरावलोकन में मेरी कोई खास रूचि न थी. उनकी बातें सुन मैंने सोचा कि इस दिशा में मुझे कायदे से पढ़ना है. आखिर अंग्रेजों के द्वारा लिखे सन्दर्भ ही आज प्रामाणिक हैं. यहां बी डी पांडे के इतिहास से आगे के लिए भी हम पलट एटकिंसन को ही देखते हैं. शेरिंग की बॉर्डरलैंड पलटते हैं.

uttarakhand tara chandra tripathi

फिल्म के पात्र गढ़-कुमौं की सरल भाषा को बोल रहे हैं. ये अर्बन कुमाउँनी और अर्बन गढ़वाली भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, यहाँ ...
18/12/2024

फिल्म के पात्र गढ़-कुमौं की सरल भाषा को बोल रहे हैं. ये अर्बन कुमाउँनी और अर्बन गढ़वाली भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, यहाँ अर्बन अर्थ वह भाषा है जिसमें भाषा के ठेठ शब्दों का प्रयोग न कर हिन्दी व अन्य भाषाओं के प्रचलित शब्दों का प्रयोग किया जाता है परन्तु भाषा का ध्वनियात्मक ठेठपन बरकरार रहता है. जिससे कुमाउँनियों को गढ़वाली तथा गढ़वालियों को कुमाउँनी आसानी से समझ में आयेगी. भाषा की दृष्टि से यह फिल्म संकेत देती है कि गढ़-कुमौं की भाषाओं में अर्बन शब्दों के प्रयोग से विकसित कर एक नई उत्तराखंडी भाषा बनाई जा सकती है जो दोनों स्थानों में बराबरी से प्रयोग में लाई जा सके. इसे शहरों में बसने वाले अर्बन पहाड़ी युवा बोला करेंगे.

भाषा की दृष्टि से यह फिल्म संकेत देती है कि गढ़-कुमौं की भाषाओं में अर्बन शब्दों के प्रयोग से विकसित Garh kumaon Uttarakhand Film Review

वृक्ष उत्तराखंड का हो और औषधीय न हो ऐसा कैसे हो सकता है. इसका उपयोग डायबिटीज को कंट्रोल करनेवाले अपनी दवाएं मे तरीक़े-तर...
13/12/2024

वृक्ष उत्तराखंड का हो और औषधीय न हो ऐसा कैसे हो सकता है. इसका उपयोग डायबिटीज को कंट्रोल करनेवाले अपनी दवाएं मे तरीक़े-तरीक़े से करते है. देवदार की छाल पतली और हरी होती है जो बाद मे भूरी हो जाती है फिर इसमें दरारें पड़ जाती हैं. गढ़वाल के गाँवों लोग इसे पीस कर माथे पर इसका लेपन करते हैं और कठिन से कठिन सिरदर्द छूमंतर हो जाता है. इसके तेल की दो बूंद नाक में डाल और कान में डालने से भी दर्द में राहत मिलती हैं. पेट में होने वाले अल्सर मे भी इसका प्रयोग किया जाता है.

King of jungle उत्तराखण्ड में बहुतायत से पाया जाने वाला देवदार का पेड़ अपनी सुगंध और औषधीय गुणों के कारण बहुत महत्त्व का मान....

जिम कार्बेट ने अपनी किताब ‘द मैन ईटर ऑफ़ रुद्रप्रयाग’ में तेंदुए के आदमखोर बनने के कारण के बारे में लिखा है कि बीसवीं सद...
13/12/2024

जिम कार्बेट ने अपनी किताब ‘द मैन ईटर ऑफ़ रुद्रप्रयाग’ में तेंदुए के आदमखोर बनने के कारण के बारे में लिखा है कि बीसवीं सदी में जब हैजा नामक बीमारी फैली. संक्रामक बीमारी होने के कारण लोगों ने उसका दाह संस्कार करने की बजाय लाश के मुंह में कोयला डालकर जंगल में पहाड़ियों से नींचे फैंकना शुरू कर दिया. जहां उसे तेंदुए खाया करते थे, यहीं से इनके आदमखोर होने की शुरुआत होती है. संक्रामक रोग कम होने के बाद जब लाशों की संख्या कम हुई तो इन्होंने जंगलों से गावों का रुख शुरू किया.

बाघ ने उसे अपना शिकार बना लिया है और यहीं से तेंदुए के लिये पहाड़ों में एक शब्द आ गया कुकुरी बाघ... Man-eating leopard in Uttarakhand

उत्तराखण्ड की तराई में बसे गूजर हिमाचल प्रदेश से आये हैं. घुमंतू होने के कारण गूजर अपने पशुओं के लिए लम्बे-चौड़े चरागाहो...
13/12/2024

उत्तराखण्ड की तराई में बसे गूजर हिमाचल प्रदेश से आये हैं. घुमंतू होने के कारण गूजर अपने पशुओं के लिए लम्बे-चौड़े चरागाहों की खोज में उत्तराखण्ड के तराई में पहुंचे और उन्होंने इसे अपना जाड़ों का घर बना लिया. गर्मियों के दिनों में वे उत्तराखण्ड के हिमालयी बुग्यालों में पहुँच जाते. 1962 के चीन आक्रमण ने उनका बुग्यालों में जाना बंद करवा दिया. यहां भी उनका घुमंतू जीवन जारी रहा. इस समय तराई के जंगलों में 600 गूजर परिवार रहा करते हैं. जंगलों के निवासी होने की वजह से उन्हें वन गूजर भी कहा जाता है.

Gujars of Uttarakhand Tarai गूजर भारत के गडरिया कबीले के लोग हैं. गूजर मूलतः गो-पलक थे, उन्हें गोचर कहा जाता था. उनका आदि स्थान गुजरात ....

पानी वर्षा से जलवायु  का संतुलन है जिससे पृथ्वी के उस हिस्से का तापमान बना रहता है जिससे हिमखण्ड अस्तित्व में रहते हैं य...
13/12/2024

पानी वर्षा से जलवायु का संतुलन है जिससे पृथ्वी के उस हिस्से का तापमान बना रहता है जिससे हिमखण्ड अस्तित्व में रहते हैं यही हिमप्रदेश तमाम जलस्रोतों का मूल है इन्हीं से सदानीरा नदियाँ निकलती हैं. ये नदियों न हो तो पृथ्वी के सारे जलस्रोत एक दिन में ख़त्म हो जायंगे. सारांश में कहा जाय तो वनस्पति ही पर्यवारण की सेंटर ऑफ़ ग्रेवटी है जिससे जलवायु संतुलन और परिवर्तन संभव हो पाता है और जिससे जीवन के लिए सर्वोपरि चीज अन्न जल उपलब्घ होता है. हाँ प्रकृति की ये कृतियाँ मानव जनित तो नहीं है लेकिन मनुष्य अपने आविर्भावकाल से इनका क्षरण व विध्वंस जरुर करता आया है. पर्यावरण दोहन का यह क्रम आधुनिक वैज्ञानिक युग में अपने चरम पर पहुँच गया है इसका एक कारण गलफहमी भी हो सकता है क्योंकि विज्ञान ने आज लगभग सभी चीजें कृतिम दे दी. लेकिन हम भूल रहे है कि ये सब क्षणिक हैं बिना प्राकृतिक हवा पानी भोजन के जीवन संभव नहीं है. यही सिलसिला रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पूरी पृथ्वी जीवशून्य हो जाएगी और यह जीवरहित अन्य ग्रहों की तरह उसर भूखंड रह जायेगा. प्रकृति पुत्र इंद्र सिंह बिष्ट का कहना है ‘बुबा विज्ञान कति भी नकली चीजें बणे दे पर आखिर पुटुगे आग अन्नाऽळ ही बुझोंण और तीस पणिल, भूख तीस यूं मशीनोन थोड़ी बुझोंण.’

इन्द्रसिंह बिष्ट के कार्य के परिणीत कुछ बातें पहाड़ का हरा सोना बांज वृक्ष पर भी की जाय, पर्यावरण, खेती- बाड़ी, समाज.....

क्या है पातनी देवी? माना जाता है कि धर्म की अवधारणा व्यक्ति को अनुशासन में रखने के लिये हुयी है. सामाजिक बंधनों के साथ-स...
13/12/2024

क्या है पातनी देवी? माना जाता है कि धर्म की अवधारणा व्यक्ति को अनुशासन में रखने के लिये हुयी है. सामाजिक बंधनों के साथ-साथ मनुष्य धार्मिक बन्धनों में बांधने से ही अनुशासित रह सकता है, ऐसा हमारे पूर्वजों की सोच रही होगी. लाखों, करोड़ों देवी-देवताओं का उल्लेख हमारे धर्मशास्त्रों में है. तैंतीस करोड़ देवताओं की ‘सूची’ में पातनी देवी का नाम है या नहीं, कह नहीं सकता. परन्तु मेरा मानना है कि जगह-जगह पातनी देवी के थान स्थापित करने के मूल में सम्भवतः पातीण पौधों को समूल नष्ट होने से बचाना भी रहा हो हम इसे पर्यावरणीय चेतना भी कह सकते हैं कुछ लोगों का मानना है कि पातनी देवी वास्तव में वनदेवी ही है और हम उसे प्रकृति का आभार मानकर ही पूजते हैं.

पातीण को गढ़वाल में तुंगला व पातीण, कुमाऊँ में तंग तथा जौनसार में निनस, निनावा व निनावं, हिन्दी में तुंगला कहा जाता .....

26 नवंबर की एक और भयानक रात. जहां तहां मैं एक सिपाही के पास बैठ जाता और उससे बातें करता. यह अजीब सत्य है कि कैसे कष्ट हम...
13/12/2024

26 नवंबर की एक और भयानक रात. जहां तहां मैं एक सिपाही के पास बैठ जाता और उससे बातें करता. यह अजीब सत्य है कि कैसे कष्ट हमें एक दूसरे के करीब ले आता है. इन सीधे-साधे लोगों के दिल शुद्ध सोने के थे. कभी कोई शिकायत नहीं कि ठंड के कारण आधे जमे हुए थे. ठंड तीव्र थी और उन्हें वहां लड़ने के लिए भेजा गया था, जहां की उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी. वो एक ऐसे हथियार से लैस, जो उन्होंने कभी फ्रांस में प्रवेश से पूर्व कभी प्रयोग नहीं किया था.

पुस्तक के प्राक्कथन भाग में विद्वान लेखक अनिल रतूड़ी जी जो उत्तराखण्ड के पूर्व पुलिस महानिदेशक रहे, Garhwal Aur Pratham Vishwayudh Revie...

चन्दन बताते हैं कि पर्यावरण संरक्षण की अपनी मुहिम को शुरू करते समय उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. वह कहते हैं –...
13/12/2024

चन्दन बताते हैं कि पर्यावरण संरक्षण की अपनी मुहिम को शुरू करते समय उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. वह कहते हैं – पॉल्टेकनिक से डिप्लोमा करने के बाद मेरे साथ वाले सब नौकरी करने चले गये, पहले मैंने भी वही किया पर फिर नौकरी न जची तो मैं गाँव आ गया. यहाँ मैं खेती में लग गया और आस-पास के जंगलों में पेड़ लगाने लगा. तब वन विभाग वालों के पास जाता तो कोई एक पेड़ तक नहीं देता था. मैंने अपने घर में ख़ुद की एक नर्सरी बनाई जिसमें फलदार पेड़ के साथ जंगली पेड़ भी लगाये. तब मेरे को कई लोग पागल तक कह देते थे. आज मैं अपनी नर्सरी के पेड़ दूर गांव-गाँव तक ले जाता हूँ. अब तो वन विभाग भी मेरी खूब मदद करता है.

हमारे लिये ट्रांसपोर्ट एक प्रमुख समस्या है गांव कच्ची पक्की सड़क से जुड़े होते हैं जिससे मंडी तक पहुँचने तक न केवल...

यारसा गुम्बा का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेंसिस (Cordyceps Sinensis) है. समुद्र तल से  3500 से 5000 मीटर की ऊंचाई वा...
13/12/2024

यारसा गुम्बा का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेंसिस (Cordyceps Sinensis) है. समुद्र तल से 3500 से 5000 मीटर की ऊंचाई वाले इलाके में जमीन के 6 इंच भीतर धंसी पायी जाने वाली इस जड़ी को चीनी और तिब्बती चिकित्सा पद्धति में सभी रोगों की रामबाण दवा माना गया है. कैटरपिलर और कवक के दुर्लभ संयोजन से तैयार होने वाली यह जड़ी भारत के उत्तरपूर्वी राज्यों में भी दवा के रूप में इस्तेमाल की जाती है. यारसा गुम्बा को कीड़े और पौधे के बीच की स्थिति भी कहा जा सकता है. एक ख़ास तरह की इल्लियों (कैटरपिलर) के ऊपर कवक चढ़ना शुरू होता है और आखिर में उसकी ममी बना देता है. इस कैटरपिलर का विज्ञानिक नाम है हैपिलास फैब्रिक्स. उच्च हिमालयी बुग्यालों में बर्फ पिघलना शुरू होने पर यह जड़ी पनपती है.

यारसा गुम्बा, यारसा गम्बू या कीड़ा जड़ी नाम से जानी जाने वाली जड़ी-बूटी की कीमत 25-30 लाख रुपए किलो तक है. Yarsagumba The Caterpillar Fungus

शाम को जब उस जगह पर पहुँचा तो मेरे अनुमान के मुताबिक़ हाथियों का झुंड नदी किनारे घास के मैदान पर नज़र आ रहा था और घास को...
13/12/2024

शाम को जब उस जगह पर पहुँचा तो मेरे अनुमान के मुताबिक़ हाथियों का झुंड नदी किनारे घास के मैदान पर नज़र आ रहा था और घास को जड़ों से निकालकर खाने में मस्त था. दो छोटे बच्चे आपस में मस्ती कर रहे थे. लेकिन मेरा मक़सद तो बाघिन को देखना था. हाथियों के आसपास की सारी जगहों का निरीक्षण करने के बाद भी मुझे कहीं बाघिन की मौजूदगी नहीं मिली. मैं सोचने लगा— क्या पता बाघिन कहीं आसपास ही मौक़े के इंतज़ार में छिपकर बैठी हो पर मुझे ऐसा कुछ नज़र नहीं आया. इस बीच हाथियों का झुंड पानी में आकर अपनी प्यास बुझा रहा था. फिर वे धीरे-धीरे नदी पार करने अंदर जंगल को बढ़ने लगे.

गल की दुनिया के दो सबसे मुख्य किरदार हाथी और बाघ मेरी नज़रों के सामने थे... Memoirs of Corbett Park by Deep Rajwar

सात एकड़ के क्षेत्रफल पर बने इसके भव्य भवन का डिजायन सी.जी. ब्लूमफील्ड ने तैयार किया. सात वर्ष में नब्बे लाख की लागत से ...
13/12/2024

सात एकड़ के क्षेत्रफल पर बने इसके भव्य भवन का डिजायन सी.जी. ब्लूमफील्ड ने तैयार किया. सात वर्ष में नब्बे लाख की लागत से बने इस भवन का निर्माण सरदार रंजीत सिंह के तत्वावधान में किया गया था. वायसराय लार्ड इर्विन ने 7 नवम्बर 1929 को इस भवन का उद्घाटन किया. ग्रीक रोमन भवन निर्माण शैली में बनी यह बिल्डिंग आज विश्व की ऐतिहासिक इमारतों में शामिल है. फिल्म मेकर्स व प्रोड्यूसर्स एफआरआई के ख़ूबसूरत परिसर को शूटिंग के लिए बेहद मुफीद मानते हैं. एफआरआई की सुंदरता फ़िल्मी पर्दे पर एक अलग ही आकर्षण पैदा करती है. अब तक यहां कई क्षेत्रीय व बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है. इनमें मुख्य है— दुल्हन एक रात की, कृष्णा कॉटेज, रहना है तेरे दिल में, कमरा नंबर 404, पान सिंह तोमर, स्टूडेंट ऑफ द ईयर, स्टूडेंट ऑफ द ईयर-2, दिल्ली खबर, डियर डैडी, महर्षि, यारा जीनियस. कोरोना काल के बाद भी एफआरआई प्रशासन को फिल्मों की शूटिंग दर्जनों आवेदन मिले जिन्हें अनुमति नहीं दी गयी.

वन अनुसंधान संस्थान को मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 1991 में डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया. History of Forest Research In...

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