Adv. Abhimanyu Mishra

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भारत सरकार द्वारा डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (Digital personal data protection Act) को पिछले माह राष्ट्रपत्ती...
08/09/2023

भारत सरकार द्वारा डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (Digital personal data protection Act) को पिछले माह राष्ट्रपत्ती से मंजूरी मिल चुकी है और यह अधिनियम डेटा सुरक्षा और गोपनीयता के लिए भारत मे एक गेम-चेंजर साबित होगा । 💻🔒

भारत ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम की शुरुआत के साथ डिजिटल व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। 🛡️

मुख्य विचार:
1️⃣ व्यक्तियों को उनके डेटा पर अधिक नियंत्रण के साथ सशक्त बनाता है।

2️⃣ डेटा प्रोसेसिंग, भंडारण और स्थानांतरण के लिए कड़े नियम निर्धारित करता है।

3️⃣ जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए डेटा उल्लंघनों के लिए दंड लागू करता है।

यह कानून न केवल गोपनीयता बढ़ाता है बल्कि डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में विश्वास को भी बढ़ावा देता है, जो डिजिटल युग में व्यवसायों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। 🌐

पेशेवर होने के नाते, यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम सूचित रहें और इन परिवर्तनों के अनुकूल बनें। आइए डेटा सुरक्षा को प्राथमिकता देने और सभी के लिए एक सुरक्षित डिजिटल भविष्य बनाने के इस अवसर का लाभ उठाएं।

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🔸पहली गाली पर सर काटने की शक्ति होने बाद भी यदि 99 और गाली सुनने का 'सामर्थ्य' है, तो वो कृष्ण हैं।🔸'सुदर्शन' जैसा शस्त्...
07/09/2023

🔸पहली गाली पर सर काटने की शक्ति होने बाद भी यदि 99 और गाली सुनने का 'सामर्थ्य' है, तो वो कृष्ण हैं।

🔸'सुदर्शन' जैसा शस्त्र होने के बाद भी यदि हाथ में हमेशा 'मुरली' है, तो वो कृष्ण हैं।
🔸द्वारिका' का वैभव होने के बाद भी यदि 'सुदामा' मित्र है, तो वो कृष्ण हैं।
🔸 'मृत्यु' के फन पर मौजूद होने पर भी यदि 'नृत्य' है, तो वो कृष्ण हैं।

🔸 'सर्वसामर्थ्य' होने पर भी यदि सारथी' बने हैं, तो वो कृष्ण हैं।
*ऐसे है मेरे श्री कृष्ण*

*श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं* 💐💐
जय श्री कृष्ण🙏🙏🙏

अभिमन्यु मिश्रा
अधिवक्ता
दिल्ली उच्च न्यायालय

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सरकार ने देश में कानूनी व्यवस्था में बड़ा कदम उठाया है, सरकार ने नए आपराधिक कानून के साथ पूरी आपराधिक प्रक्रिया और धारा ...
20/08/2023

सरकार ने देश में कानूनी व्यवस्था में बड़ा कदम उठाया है, सरकार ने नए आपराधिक कानून के साथ पूरी आपराधिक प्रक्रिया और धारा को बदल दिया है

सभी वकील और कानून के छात्र ध्यान दें! अखिल भारतीय बार परीक्षा के परिणाम अब आ चुके हैं! अपने अंकों की जांच करें और देखें ...
28/04/2023

सभी वकील और कानून के छात्र ध्यान दें! अखिल भारतीय बार परीक्षा के परिणाम अब आ चुके हैं! अपने अंकों की जांच करें और देखें कि आपने इस राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा में कितना अच्छा प्रदर्शन किया।

परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले और अब देश भर में कानून का अभ्यास करने के योग्य होने वाले सभी लोगों को बधाई।

अपने परिणामों की जांच करने के लिए, बार काउंसिल ऑफ इंडिया की आधिकारिक वेबसाइट www.allindiabarexamination.com पर जाएं और अपनी साख का उपयोग करके लॉग इन करें। अपना स्कोर देखे !

धन्यवाद



















बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ( ) ने फैसला किया है कि सभी अधिवक्ताओं के पहचान पत्र नए सिरे से बनाए जाएंगे।यह निर्णय 6 अप्रैल को ...
13/04/2023

बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ( ) ने फैसला किया है कि सभी अधिवक्ताओं के पहचान पत्र नए सिरे से बनाए जाएंगे।

यह निर्णय 6 अप्रैल को हुई बैठक में लिया गया। इसके तहत सभी अधिवक्ताओं को की सत्यापित प्रतियों, नामांकन प्रमाण पत्र की प्रति और के प्रमाण पत्र (जहां लागू हो) के साथ नए सिरे से आवेदन करना आवश्यक है।

सभी को नए सिरे से आवेदन करने के लिए एक महीने का समय दिया जा रहा है, जिसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। पहचान पत्र मुफ्त जारी किए जाएंगे।" बीसीडी ने एक में कहा, जो एक महीने के भीतर यानी 01.05.2023 से 31.05.2023 तक आवेदन करते हैं।

Warm greetings to our   brothers & sisters on  .May this new year bring prosperity, good health, and   to everyone.
25/03/2023

Warm greetings to our brothers & sisters on .

May this new year bring prosperity, good health, and to everyone.

11/10/2022
भांग NDPS एक्ट के तहत नहीं आती; हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत दीहाल ही में, कर्नाटक हाईकोर्ट ने भांग रखने के आरोपी एक व्यक्...
02/09/2022

भांग NDPS एक्ट के तहत नहीं आती; हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत दी

हाल ही में, कर्नाटक हाईकोर्ट ने भांग रखने के आरोपी एक व्यक्ति को इस फैसले के बाद जमानत दे दी कि भांग एनडीपीएस अधिनियम के तहत कवर नहीं है।

इस प्रकार देखते हुए, न्यायमूर्ति के नटराजन की खंडपीठ ने रोशन कुमार मिश्रा द्वारा दायर एक याचिका को स्वीकार कर लिया और उसे 2 लाख रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के दो जमानतदारों पर जमानत दे दी।

अदालत ने अभियोजन पक्ष के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि चूंकि भांग गांजा के पत्तों से तैयार किया जाता है, इसलिए यह गांजा की परिभाषा के तहत आएगा।

अदालत के अनुसार, यह सुझाव देने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि भांग या तो चरस या गांजा से तैयार किया जाता है और चूंकि गांजा के पत्तों और बीजों को गांजा की परिभाषा से बाहर रखा जाता है, इसलिए यह प्रतिबंधित दवा नहीं है।

शीर्षक: रोशन कुमार मिश्रा बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर: सीआरएल याचिका 6611/2022

ट्रेडमार्क उल्लंघन एक अनधिकृत व्यक्ति द्वारा किसी चिह्न का अनधिकृत उपयोग है, जो पहले से पंजीकृत ट्रेडमार्क के समान या भ्...
15/08/2022

ट्रेडमार्क उल्लंघन एक अनधिकृत व्यक्ति द्वारा किसी चिह्न का अनधिकृत उपयोग है, जो पहले से पंजीकृत ट्रेडमार्क के समान या भ्रामक रूप से समान है! शब्द भ्रामक रूप से समान है कि जब कोई आम उपभोक्ता उत्पादों या सेवाओं पर चिह्न को देखता है, तो यह उपभोक्ता को अन्य पंजीकृत ट्रेडमार्क के साथ भ्रमित करेगा। इसलिए यह भ्रम पंजीकृत ट्रेडमार्क उत्पादों और सेवाओं को प्रभावित करेगा

Trademark act section 29

पत्नी को जिंदा जलाकर मार दिया, जज ने हत्या का दोषी तो ठहराया लेकिन दी सिर्फ 5 साल की सजा, अब छिन गया एडीजे का पदएडिशनल स...
21/07/2022

पत्नी को जिंदा जलाकर मार दिया, जज ने हत्या का दोषी तो ठहराया लेकिन दी सिर्फ 5 साल की सजा, अब छिन गया एडीजे का पद

एडिशनल सेशंस जज (ADJ) लीना दीक्षित की रिट पिटिशन को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही अब उनके जज पद पर रह पाने की सारी संभावनाएं खत्म हो गई हैं। दहेज हत्या के मामले में दोषी को नाम मात्र की सजा देने के कारण प्रशासकीय समिति ने उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की थी जिसे मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फुल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। लीना ने एमपी हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ ही सुप्रीम कोर्ट गई थीं, लेकिन उन्हें यहां से भी राहत नहीं मिली।

हत्या का दोषी ठहराया, लेकिन सजा बेहद कम दी

लीना दीक्षित के एडीजे कोर्ट में पति द्वारा पत्नी को जिंदा जलाने का मामला सामने आया था। पत्नि ने दम तोड़ने से पहले सारी घटना बता दी। घटना स्थल से केरोसिन तेल की मौजूदगी की भी पुष्टि हुई और तय हो गया कि पति ने ही पत्नी की निर्ममता से जान ली है। बतौर एडीजे लीना दीक्षित ने पति को दफा 302 के तहत हत्या का दोषी तो ठहराया, लेकिन उसे सिर्फ 5 वर्ष की जेल की सजा सुनाई। हालांकि, सीआरपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति को मृत्यु दंड या उम्रकैद की सजा का प्रावधान है।

अपराध और सजा में तालमेल नहीं

अपराध की गंभीरता और सजा में नरमी का मामला जोर पकड़ा तो लीना ने खुद ही अपने जजमेंट की समीक्षा की और दफा 302 के बदले दफा 304ए के तहत दोषी बता दिया जिसमें ज्यादा से ज्यादा दो वर्षों की सजा होती है। जबकि दहेज हत्या का मामला दफा 304बी के तहत आता है और इसमें कम-से-कम सात साल की सजा का प्रावधान है जो अधिकतम उम्रकैद तक बढ़ाई जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट में लीना की दलील
सुप्रीम कोर्ट में लीना का केस जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एसआर भट और जस्टिस एस धूलिया की बेंच के पास गया। लीना ने अपने बचाव में दलील दी कि यह उनकी पहली गलती है और बारबार कहा कि चूंकि यह उनकी पहली और एकमात्र गलती है, इसलिए उन्हें पद से हटाना ठीक नहीं होगा। लीना की इन दलीलों पर

लीना की दलीलों से सहमत नहीं हुआ सुप्रीम
प्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, '...आप किसी व्यक्ति को हत्या का दोषी ठहराकर पांच साल की जेल की सजा कैसे दे सकती हैं? और, फिर आपने दोष की दफा बदलकर 304ए कर दिया। ऐसा करते वक्त आपने यह भी नहीं सोचा कि आपको अपना फैसला बदलने का अधिकार है भी या नहीं। आप धारा 302 और 498ए (दहेज प्रताड़ना) का मतलब जानती हैं।'

Medical Insurance Policy पर सुप्रीम कोर्ट का लैंडमार्क निर्णय, कहा – “बीमा किया है ~ क्लेम देना ही होगा”सर्वोच्च न्यायलय...
07/07/2022

Medical Insurance Policy पर सुप्रीम कोर्ट का लैंडमार्क निर्णय, कहा – “बीमा किया है ~ क्लेम देना ही होगा”

सर्वोच्च न्यायलय Supreme Court ने अपने दिए लैंडमार्क निर्णय Landmark Decision में कहा है कि एक बार बीमा Insurance करने के बाद बीमा कंपनी प्रस्तावक फार्म में उजागर की गई बीमित व्यक्ति की वर्तमान चिकित्सकीय स्थिति का हवाला देकर क्लेम देने से इन्कार नहीं कर सकती।

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि बीमा लेने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपनी जानकारी के मुताबिक सभी तथ्यों को बीमा कंपनी के समक्ष उजागर करे। यह माना जाता है कि बीमा लेने वाला व्यक्ति प्रस्तावित बीमे से जुड़े सभी तथ्यों और परिस्थितियों को जानता है।

जहाँ तक बीमा लेने वाला व्यक्ति वही चीजें उजागर कर सकता है जो उसे पता हैं, लेकिन तथ्यों को उजागर करने का उसका दायित्व उसकी वास्तविक जानकारी तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें उन तथ्यों को उजागर करना भी शामिल है जो उसे सामान्य तौर पर पता होनी चाहिए।

पीठ ने कहा कि एक बार जब बीमित व्यक्ति की चिकित्सकीय स्थिति का आकलन करने के बाद पालिसी जारी कर दी जाती है तो बीमा कंपनी वर्तमान चिकित्सकीय स्थिति का हवाला देते हुए क्लेम खारिज नहीं कर सकती जिसे बीमित व्यक्ति ने प्रस्ताव फार्म में उजागर किया था और जिसकी वजह से वह खास खतरे की स्थिति उत्पन्न हुई जिसके संबंध में बीमित व्यक्ति ने क्लेम प्रस्तुत किया है।

शीर्ष अदालत मनमोहन नंदा द्वारा दाखिल अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (National Consumer Disputes Redressal Commission) के फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें उसने अमेरिका में हुए चिकित्सा खर्च के दावे की मांग संबंधी याचिका खारिज कर दी थी। नंदा ने ओवरसीज मेडिक्लेम बिजनेस एंड हालिडे पालिसी खरीदी थी क्योंकि उनकी अमेरिका यात्रा की योजना थी।

सैन फ्रांसिस्को एयर पोर्ट पहुंचने पर उन्हें हार्ट अटैक Heart Attack आया और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां उनकी एंजियोप्लास्टी Angioplasty की गई और तीन स्टेंट डाले गए। बाद में उन्होंने इलाज के खर्च का बीमा कंपनी में क्लेम प्रस्तुत किया जिसे कंपनी ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अपीलकर्ता को हाइपरलिपिडेमिया और डायबिटीज थी जिसे बीमा खरीदते समय उजागर नहीं किया गया था।

National Consumer Disputes Redressal Commission का कहना था कि मेडिक्लेम पालिसी Mediclaim Policy खरीदते समय यह बात उजागर नहीं की गई थी कि शिकायतकर्ता स्टैटिन दवाएं Statin Medicine ले रहा था, लिहाजा उसने अपने स्वास्थ्य की पूर्ण स्थिति उजागर करने के दायित्व का पालन नहीं किया। जबकि शीर्ष अदालत ने कहा कि यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी द्वारा पालिसी को खारिज करना गैरकानूनी था।

मेडिक्लेम पालिसी Mediclaim Policy खरीदने का मकसद अचानक बीमारी या ऐसी किसी बीमारी से क्षतिपूर्ति हासिल करना है जिसकी कोई संभावना नहीं है और जो विदेश में भी हो सकती है।

पीठ ने कहा कि अगर बीमित व्यक्ति ऐसी किसी बीमारी का शिकार बनता है जो स्पष्ट रूप से पालिसी से बाहर नहीं है, तो यह बीमा कंपनी का दायित्व है कि वह अपीलकर्ता को पालिसी के तहत हुए खर्चो की क्षतिपूर्ति करे।

केस टाइटल – MANMOHAN NANDA Vs UNITED INDIA ASSURANCE CO. LTD. & ANR
केस नंबर – CIVIL APPEAL NO.8386/2015
कोरम – न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना

Source: JP LIVE 24
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Iadvabhimishra एक ऐतिहासिक फैसले में, SC ने कहा कि वेश्यावृत्ति एक पेशा है और सभी यौनकर्मी कानून के तहत सम्मान और समान स...
27/05/2022

Iadvabhimishra एक ऐतिहासिक फैसले में, SC ने कहा कि वेश्यावृत्ति एक पेशा है और सभी यौनकर्मी कानून के तहत सम्मान और समान सुरक्षा के हकदार हैं।

जस्टिस एल नागेश्वर राव, बीआर गवई और एएस बोपन्ना की 3-बेंच जज ने सेक्स वर्कर्स के अधिकारों की रक्षा के लिए निर्देश दिए और कहा कि जब यह स्पष्ट हो जाता है कि सेक्स वर्कर एक वयस्क है और सहमति से भाग ले रही है, तो पुलिस को हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। या कोई आपराधिक कार्रवाई कर रहा है।

एक सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यौनकर्मियों को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए, दंडित नहीं किया जाना चाहिए या वेश्यालयों पर छापेमारी करके परेशान नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि स्वैच्छिक यौन कार्य अवैध नहीं है और केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है। इसके अलावा, इसने पुलिस को यौनकर्मियों के साथ भेदभाव न करने का भी निर्देश दिया और यौनकर्मियों के प्रति संवेदनशील होने का आह्वान किया।

कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी बच्चे या सेक्स वर्कर को अपनी मां से सिर्फ इसलिए अलग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे देह व्यापार में शामिल हैं।

यदि कोई यौनकर्मी यौन उत्पीड़न का शिकार है, तो उसे भारत में यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के लिए उपलब्ध सभी सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।

केस साभार:-Budhadev Karmaskar v. State of West Bengal And Ors. Criminal Appeal No. 135 of 2010
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आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कथित रूप से 6 किलोग्राम गांजा रखने के आरोपी एक व्यक्ति को यह कहते हुए जमानत दे दी है कि यह...
13/04/2022

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कथित रूप से 6 किलोग्राम गांजा रखने के आरोपी एक व्यक्ति को यह कहते हुए जमानत दे दी है कि यह वाणिज्यिक मात्रा नहीं है और आगे कहा कि इस मामले में जमानत का मामला एनडीपीएस के 37 शासित नहीं होगा।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि किसी भी अवैध पदार्थ की कोई भी मात्रा जो आधिकारिक राजपत्र में केंद्र द्वारा निर्दिष्ट मात्रा से अधिक है, वाणिज्यिक मात्रा कहलाती है और गांजा के मामले में, मात्रा 20 किग्रा या उससे अधिक है।

ये टिप्पणियां न्यायमूर्ति चीकाती मानवेंद्रनाथ रॉय की पीठ ने कीं, जिन्होंने कहा कि आरोपी 2 महीने से जेल में बंद है और कहा कि यह जमानत देने के लिए एक उपयुक्त मामला है।

भले ही अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी हो, लेकिन उसने आरोपी पर कुछ शर्तें भी लगा दीं क्योंकि राज्य के वकील ने कहा कि आरोपी तमिलनाडु का निवासी है और अगर वह फरार हो जाता है, तो उसे पकड़ना मुश्किल होगा।

इसलिए अदालत ने आरोपी पर निम्नलिखित शर्तें लगाईं:-

1-याचिकाकर्ता को दो स्थानीय जमानतदार प्राप्त करने होंगे जो विशाखापत्तनम के स्थानीय निवासी हैं।

2-2,00,000 रुपये का सेल्फ-बॉन्ड निष्पादित करें।

3-जमानत के बाद याचिकाकर्ता को चार्जशीट दाखिल होने तक और फिर महीने में एक बार थाने कोटौरतला, विशाखापत्तनम में रोजाना रिपोर्ट करना होता है।

पार्श्वभूमि:

पुलिस ने याचिकाकर्ता और तीन अन्य के खिलाफ 1985 के एनडीपीएस की धारा 20(बी)(ii)(बी) के तहत कथित तौर पर 6 किलो गांजा रखने के आरोप में मामला दर्ज किया था और आरोपी को उसके आसपास खर्च करने के बाद जमानत दे दी गई थी। दो महीने जेल में।

शीर्षक: दिनेश बनाम आंध्र प्रदेश राज्य
केस नंबर: सीआरएल पेटिटिटन: 2296/2022

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दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए गूगल, ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम को 'आज तक' और 'तक' ट्रे...
05/04/2022

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए गूगल, ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम को 'आज तक' और 'तक' ट्रेडमार्क का उल्लंघन करने वाले 25 सोशल मीडिया अकाउंट को ब्लॉक करने के निर्देश दिए. न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह की पीठ ने कहा कि 'आज तक' भारत के सबसे लोकप्रिय न्यूज चैनलों में से एक है. लिहाजा इसके अधिकारों को संरक्षित करने की जरूरत है. साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि 'आज तक' ट्रेडमार्क की तरह भ्रामक चिह्न वाले वीडियो या पोस्ट भविष्य में अपलोड किए जाएं तो उन्हें 36 घंटे में हटाया जाए.

'आजतक' ब्रांड की मूल कंपनी लिविंग मीडिया इंडिया लिमिटेड की ओर से एडवोकेट हृषिकेश बरुआ ने कोर्ट में कहा कि वादी की प्रतिष्ठा 'AajTak' ब्रांड तक ही सीमित नहीं है, बल्कि 'TAK' ट्रेडमार्क भी इसमें शामिल है. बता दें कि उन पक्षों के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया था, जिन्होंने यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर 'TAK' ब्रांड का उल्लंघन किया था.

वहीं पीठ ने अपने आदेश में कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि 'आज तक' ब्रांड और ट्रेडमार्क काफी प्रतिष्ठित है. 'आज तक' चैनल भारत के सबसे लोकप्रिय न्यूज चैनलों में से एक है. वादी की ओर से कई प्रोग्राम्स, सोशल मीडिया अकाउंट, प्रोफाइल और हैंडल में 'TAK' मार्क का भी उपयोग किया जाता है. लिहाजा वादी के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए.

कोर्ट ने 'आज तक' की मूल कंपनी को उनके ट्रेडमार्क का उल्लंघन करने वाले पेजों और पोस्ट को हटाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से सीधे संपर्क करने की स्वतंत्रता भी दी. लेकिन इसमें कहा गया कि अगर सोशल मीडिया कंपनी की ओर से ऐसे पोस्ट या वीडियो पर 36 घंटे के भीतर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो कंपनी से संपर्क किया जा सकता है.

बता दें कि बीते साल भी दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि 'आज तक' ब्रांड के अधिकारों का उल्लंघन करने वाली कई वेबसाइटों और अकाउंट्स को हटाया जाए.

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आए दिन कई चौकाने वाले मामले सामने आते रहते हैं. अब हाल ही में जो मामला सामने आया है वह छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले का है, ज...
22/03/2022

आए दिन कई चौकाने वाले मामले सामने आते रहते हैं. अब हाल ही में जो मामला सामने आया है वह छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले का है, जहां तहसीलदार कोर्ट ने भगवान शंकर समेत 10 लोगों को नोटिस जारी कर तलब किया है. जी हाँ, इस मामले में मिली जानकारी के तहत तहसीलदार ने नोटिस में भगवान समेत सभी को चेतावनी भी दी है. इतना ही नहीं सुनवाई में उपस्थित नहीं होने पर 10 हजार का जुर्माना और कब्जे से बेदखल भी किया जा सकता है। आपको बता दें कि भोलेनाथ पर जमीन पर अवैध कब्जा करने का आरोप है। वहीं आपको यह भी बता दें कि छत्तीसगढ़ में भगवान शंकर को नोटिस देने का यह दूसरा मामला है. दरअसल इससे पहले नवंबर-2021 में जांजगीर-चांपा जिले के सिंचाई विभाग ने भोलेनाथ को नोटिस जारी कर जगह खाली करने को कहा था. प्राप्त जानकारी के अनुसार रायगढ़ शहर के अंदर संख्या-25 कौहकुंडा में शिव मंदिर है. दरअसल, सुधा राजवाड़े ने बिलासपुर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें शिव मंदिर समेत 16 लोगों पर सरकारी जमीन पर कब्जा करने का आरोप है. हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई की। वहीं कोर्ट ने राज्य सरकार और तहसीलदार कार्यालय को इसकी जांच के आदेश दिए हैं. इसके साथ ही तहसीलदार कार्यालय ने कोर्ट के आदेश की तामील करते हुए 10 लोगों को नोटिस दिया है. बताया जा रहा है कि कब्जाधारियों को जारी नोटिस में छठे नंबर पर शिव मंदिर का नाम है. इतना ही नहीं, नोटिस मंदिर के ट्रस्टी, प्रबंधक या पुजारी को संबोधित नहीं किया गया है, बल्कि सीधे शिव मंदिर यानी भगवान शंकर को नोटिस जारी किया गया है. प्राप्त जानकारी के अनुसार भगवान शंकर को भेजे गए नोटिस में तहसीलदार कोर्ट ने चेतावनी जारी की है कि छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा के तहत आपका यह कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है. आपको 10 हजार रुपये के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है और कब्जे वाली भूमि से बेदखल किया जा सकता है। इसी के साथ नोटिस जारी करने वाले नायब तहसीलदार विक्रांत सिंह ठाकुर का कहना है कि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद यह कार्रवाई की जा रही है. चूंकि मामला सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे का है। हाईकोर्ट में दायर याचिका में 16 लोगों को जमीन पर कब्जा करने की बात कही गई थी, लेकिन साइट की जांच के बाद 10 नाम सामने आए हैं। इसमें एक शिव मंदिर भी है, जो कब्जे वाली भूमि पर बना है। सभी को नोटिस जारी कर दस दिन का समय दिया गया है। इसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

16/03/2022
16/03/2022
15/03/2022
क्या भारत में दो विवाह किया जा सकता है? भारत के किसी भी नागरिक को दो विवाह की अनुमति प्रदान नही की गयी है सिवाए मुस्लिम ...
14/03/2022

क्या भारत में दो विवाह किया जा सकता है?

भारत के किसी भी नागरिक को दो विवाह की अनुमति प्रदान नही की गयी है सिवाए मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को छोड़कर ये नियम सभी धर्म के व्यक्ति पर लागू होता है |

अगर कोई व्यक्ति दूसरा विवाह करता है और वह मुस्लिम समुदाय से तलुकात भी नही रखता है तो ऐसे व्यक्ति पर के 494 व 495 के तहत कानूनी कार्यवाही का प्रावधान किया गया है |

कब यह दण्डनीय अपराध नही माना जाता है |

1. जब किसी व्यक्ति की पहली शादी को शून्य करार दिया गया हो |
2. जब दम्पति में से किसी एक की मृत्यु हो गयी हो |
3. जब पति- पत्नी के बीच में आपसी संबंध बने करीब एक दशक बीत चुका हो |

उपरोक्त के होने पर अगर कोई व्यक्ति दूसरी शादी करता है तो उस पर ipc के सेक्शन का कोई प्रभाव नही होगा क्योंकि के लिए कुछ अपवाद भी है |

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ओला कैब्स पर   फोरम ने 62 रुपए के किराये की गड़बड़ी की वजह से लगाया 15000/- रुपए का दंड |मुंबई के रहने वाले 34 वर्षीय   ...
07/03/2022

ओला कैब्स पर फोरम ने 62 रुपए के किराये की गड़बड़ी की वजह से लगाया 15000/- रुपए का दंड |

मुंबई के रहने वाले 34 वर्षीय शेरयांश ने अपने घर से जाने के लिए को 372/- रू. में बुक किया परंतु जब वह अपने गंतव्य पर पहुंचे तो उनका किराया 434 रुपया शो करने लगा इसकी शिकायत उन्होंने जब कैब को किया तो ड्राइवर ने कहा कि जो भी किराया हो रहा है आप वो पैमेंट् मुझे कर दो और ओला कंपनी में बात कर लीजिये अगर आप को इस किराये पर शिकायत है तो इसके बाद वकील साहब ने अपने किराया का भुगतान किया और ओला सर्विस सेंटर पर शिकायत दर्ज किया जब उनकी शिकायत पर कोई भी करवाई नहीं हुई तो उन्होंने उपभोक्ता संरक्षण के तहत उपभोक्ता फोरम में मुकदमा कर दिया जहाँ पर फोरम ने ओला कैब पर 10,000/- रू. +5000/- रु. (केस फाइल करने में जो खर्च हुआ उसकी भरपाई करने का आदेश ओला कैब को सुनाया |

कस्टमर का यह अधिकार है कि उसको जो भी किराया या मूल्य सर्विस या खरीदारी करने के पूर्व बताया या दिखाया जा रहा है उससे अतिरिक्त को और राशि को नही वसूल किया जा सकता हैं | अगर ऐसा किया जाता है तो कस्टमर इसकी शिकायत उपभोक्ता फोरम में कर सकते हैं |

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  का मतलब "जनहित याचिका" है। सरल भाषा में, इसका अर्थ है, "जनहित" की सुरक्षा के लिए अदालत में दायर मुकदमेबाजी। विभिन्न मा...
06/03/2022

का मतलब "जनहित याचिका" है। सरल भाषा में, इसका अर्थ है, "जनहित" की सुरक्षा के लिए अदालत में दायर मुकदमेबाजी। विभिन्न मामलों के लिए जनहित याचिका दायर की जा सकती है, जिनमें से कुछ प्रदूषण, आतंकवाद, सड़क सुरक्षा, या ऐसे किसी भी मामले हैं जो बड़े पैमाने पर जनता से संबंधित हैं।

कौन दायर कर सकता हहै?

आमतौर पर, पीड़ित पक्ष यानी पीड़ित, या विवाद से संबंधित किसी भी व्यक्ति द्वारा याचिका को दायर किया जा सकता है, जिसका विवाद से संबंधित हित है परंतु ने डेमोक्रेटिक सोसाइटी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में यह निर्णय दिया की कोई भी व्यक्ति चाहे वह खुद पीड़ित नही हो फिर भी वह जनता या किसी अन्य के हित की रक्षा के लिए याचिका दायर कर सकता है |

जनहित याचिका कहाँ पर दायर कर सकते हैं ?

जनहित याचिका को संविधान के 32 में सुप्रीम कोर्ट में |

जनहित याचिका को संविधान के 226 में हाईकोर्ट में |

लोक हित के संबंधित समस्या को सी आर पी सी के 132 में मजिस्ट्रेट कोर्ट में भी फाइल कर सकते है |

देश की पहली PIL हसनारा बनाम स्टेट ऑफ बिहार है जो की बिहार में बंद कैदीयो की रिहाई और उनकी समस्या को लेकर फाइल की गयी थी |

सी मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वच्छ वॉटर को मौलिक अधिकार बताया है और यह याचिका गंगा नदी के प्रदूषण के लिए फाइल की गयी थी |

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राजधानी दिल्ली में पुलिस कर्मियों के बगैर ही सड़कों पर बैरिकेड लगाए जाने और इससे लोगों को रही परेशानी को देखते हुए दिल्ल...
22/02/2022

राजधानी दिल्ली में पुलिस कर्मियों के बगैर ही सड़कों पर बैरिकेड लगाए जाने और इससे लोगों को रही परेशानी को देखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को कड़ा रुख अपनाया है। हाई कोर्ट ने इसे गंगीरता से लेते हुए केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस कमिश्नर को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।

हाई कोर्ट ने सरकार और पुलिस कमिश्नर को यह बताने के लिए कहा है कि सड़कों पर बगैर पुलिस कर्मियों के बैरिकेड्स क्यों लगाए जा रहे हैं।

जस्टिस विपिन सांघी और जसमीत सिंह की बेंच ने ओम प्रकाश गोयल की ओर से भेजे गए पत्र पर स्वत: संज्ञान लेकर यह मामला शुरू किया है। बेंच ने मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार, नगर निगम और पुलिस कमिश्नर को नोटिस जारी करते हुए जवाब देने को कहा है। बेंच ने सभी पक्षकारों को मामले की अगली सुनवाई 13 अप्रैल से पहले जवाब देने को कहा है।

कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से बैरिकेड्स लगाने के लिए क्या प्रोटोकॉल अपनाए जाते हैं, इस बारे में भी जानकारी देने को कहा है।

दिसंबर, 2021 में दिल्ली प्रादेशिक अग्रवाल सम्मेलन के अध्यक्ष ओम प्रकाश गोयल ने पत्र भेजकर राजधानी में मानवरहित बैरिकेड्स से लोगों को रही परेशानियों से बेंच को अवगत कराया था। प्रधानमंत्री को संबोधित इस पत्र में गोयल ने कालकाजी और सीआर पार्क थाने में जगह-जगह पर बगैर पुलिस कर्मियों के सड़कों पर बैरिकेडिंग किए जाने से लोगों को हो रही परेशानियों को दूर करने की गुहार लगाई है।

पत्र में कहा गया है कि इससे किसी तरह का मकसद पूरा होने के बजाय राजधानी में यातायात जाम की समस्या पैदा होती है और प्रदूषण भी बढ़ता है।

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19/02/2022
क्या शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चे पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकारी पा सकते है? जानिए हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णयहाल ही ...
03/02/2022

क्या शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चे पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकारी पा सकते है? जानिए हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

हाल ही में, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस सवाल का जवाब दिया कि

इस मामले में निर्णय जस्टिस सत्येन वैद्य ने दिया।

तत्काल मामले में अपीलकर्ता विवाह के बाद पैदा हुए थे और मृतक पिता ने एक मंदिर में आयोजित एक छोटे से विवाह समारोह में उनकी मां से विवाह किया था। हालांकि, अपीलकर्ता की मां को इस बात का कोई खबर नहीं था कि उसका पति पहले से शादीशुदा है।

ट्रायल कोर्ट ने कहा कि यह जोड़ा लंबे समय तक शिमला में एक ही छत के नीचे रहा, इसलिए यह माना जाता है कि वे शादीशुदा थे, लेकिन मुंशी राम (पिता) के पहले से शादीशुदा होने के कारण शादी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 (i) के तहत शून्य थी।

निचली अदालत ने फैसला सुनाया कि बच्चे वैध थे परंतु वे अपने पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा पाने के हकदार नहीं होंगे।

इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।

उच्च न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों को देखने के बाद कहा किः

जहां तक कानूनी स्थिति का संबंध है, माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जिनिया केओटिन और अन्य बनाम कुमार सीताराम मांझी और अन्य, (2003) 1 एससीसी 730 मे पारित निर्णय को पालन किया। परंतु विजया रंगनाथन और अन्य 2011 (11) एससीसी (1) में, सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की खंडपीठ में मतभेद था और इस प्रकार मामले को एक बड़ी पीठ के गठन के लिए माननीय मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने का आदेश दिया गया था। उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार, हालांकि बड़ी बेंच का गठन किया गया था, लेकिन संदर्भित प्रश्न अभी भी ऐसी बेंच के समक्ष लंबित है। मामले के इस दृष्टिकोण में, जिनिया केओटिन, सरोजम्मा और भरत मठ (सुप्रा) में निर्धारित कानून को बाध्यकारी मिसाल के रूप में पालन किया जाना है

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किरायानामा क्या है, और यह क्यों जरूरी है ? किरायानामा, मकान मालिक और किरायदार के बीच का समझौता होता है जिसमे यह सब बात ल...
02/02/2022

किरायानामा क्या है, और यह क्यों जरूरी है ?

किरायानामा, मकान मालिक और किरायदार के बीच का समझौता होता है जिसमे यह सब बात लिखी होती हैं की मकान मालिक ने अपना मकान किरायदार को किन शर्तो के साथ दिया है एवं इसके साथ ही उसमे यह भी लिखा होता है की किरायदार की उस मकान पर क्या उत्तरदायिताव है।

किरायानामा 11 महीने का ही क्यों बनता है ?

भारत में कहीं भी किसी भी एक्ट में ऐसा नहीं लिखा गया है की किरायानामा 11 महीने का ही बनाया जायेगा यह कितने ही महीनों का बनाया जा सकता है परंतु स्टांप एंड रेजिस्ट्रेन एक्ट की धारा 17 के अनुसार अगर कोई किरायानामा 1 वर्ष या उससेे अधिक वर्षो के लिए बनाया जाता है तो उसको रेजिस्टरार ऑफिस में जा कर रेजिस्टरार के पास रेजिस्ट्री करवानी होगी इन सब झंझट से बचने के लिए आमतोर पर सभी लोग 11 महीने का रेंट अग्रीमेंट् बनवा लेते हैं।

क्या किरायदार किसी मकान का मकान मालिक बन सकता है ?

कोई भी किरायदार, किरायदार रहते हुए मकान मालिक नही बन सकता है ऐसा इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 116 के एस्टोपल् का सिद्धांत उसको किसी भी मकान का मालिक किरायदार रहते हुए बनने से रोकता है ।

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सोमवार को, सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म “Why I Killed Gandhi” की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से ...
02/02/2022

सोमवार को, सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म “Why I Killed Gandhi” की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि यहां याचिकाकर्ता के किसी मौलिक अधिकार का हनन नहीं किया गया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की अध्यक्षता वाली पीठ ने पारित किया है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता अनुज भंडारी ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है क्योंकि फिल्म “व्हाई आई किल्ड गांधी” कल रिलीज हुई है।

उन्होंने कहा कि इस फिल्म में गांधी को “नपुंसक” कहा गया है। गांधी का मजाक बनाया जा रहा है और पूरा कोर्ट रूम गांधी पर हंसते हुए दिखाया गया है।

इस मामले में सिरीज़ के निर्माता की तरफ़ से श्री नितिन भरद्वाज (AOR) , डा० अनुराग भरद्वाज (Advocate), श्री आर्यन अरोरा (Advocate) कोर्ट में उपस्थित हुए।

जस्टिस बनर्जी ने कहा:

“यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि आपने सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा क्यों खटखटाया है?”

हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने याची को हाई कोर्ट में याचिका दायर करने की छूट दी है।

पृष्ठभूमि

महात्मा गांधी की 30वीं पुण्यतिथि पर 30 जनवरी को ओटीटी प्लेटफॉर्म ‘लाइमलाइट’ पर रिलीज होने वाली फिल्म “व्हाई आई किल्ड गांधी” की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई थी।

श्री सिकंदर बहल ने अधिवक्ता अनुज भंडारी की सहायता से रिट याचिका दायर की।

याचिकाकर्ता का दावा है कि अगर फिल्म की रिलीज और प्रदर्शन को नहीं रोका गया तो यह राष्ट्रपिता की छवि को अपूरणीय क्षति पहुंचाएगा और सार्वजनिक अशांति, घृणा और वैमनस्य पैदा करेगा। याचिकाकर्ता के अनुसार, फिल्म का उद्देश्य सांप्रदायिक संघर्ष को भड़काना, नफरत फैलाना और शांति भंग करना है।

याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया था कि फिल्म “व्हाई आई किल्ड गांधी” और सभी संबंधित सामग्री को रिलीज, प्रकाशन या प्रदर्शनी से तुरंत रोक दिया जाए।

याचिकाकर्ता ने यह भी अनुरोध किया था कि ओटीटी प्लेटफार्मों को प्रभावी ढंग से विनियमित किया जाए, क्योंकि वह इस तथ्य से असंतुष्ट हैं कि फिल्मों को बिना किसी प्रतिबंध, विनियमन या निंदा के ओटीटी प्लेटफार्मों पर सार्वजनिक देखने के लिए प्रदर्शित किया जा रहा है।

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