Khan sir motivational video

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29/07/2024
एक प्राथमिक स्कूल मे अंजलि नाम की एक शिक्षिका थीं वह कक्षा 5 की क्लास टीचर थी, उसकी एक आदत थी कि वह कक्षा मे आते ही हमेश...
18/07/2024

एक प्राथमिक स्कूल मे अंजलि नाम की एक शिक्षिका थीं वह कक्षा 5 की क्लास टीचर थी, उसकी एक आदत थी कि वह कक्षा मे आते ही हमेशा "LOVE YOU ALL" बोला करतीं थी।

मगर वह जानती थीं, कि वह सच नहीं बोल रही ।
वह कक्षा के सभी बच्चों से एक जैसा प्यार नहीं करती थीं।
कक्षा में एक ऐसा बच्चा था, जो उसको फूटी आंख भी नहीं भाता था। उसका नाम राजू था। राजू मैली कुचैली स्थिति में स्कूल आ जाया करता है। उसके बाल खराब होते, जूतों के बन्ध खुले, शर्ट के कॉलर पर मैल के निशान । पढ़ाई के दौरान भी उसका ध्यान कहीं और होता था।

मैडम के डाँटने पर वह चौंक कर उन्हें देखता, मगर उसकी खाली-खाली नज़रों से साफ पता लगता रहता, कि राजू शारीरिक रूप से कक्षा में उपस्थित होने के बावजूद भी मानसिक रूप से गायब है, यानी (प्रजेंट बाडी अफसेटं माइड) धीरे- धीरे मैडम को राजू से नफरत सी होने लगी। क्लास में घुसते ही राजू मैडम की आलोचना का निशाना बनने लगता। सब बुराईयों के उदाहरण राजू के नाम पर किये जाते। बच्चे उस पर खिलखिला कर हंसते और मैडम उसको अपमानित कर के संतोष प्राप्त करतीं।
राजू ने हालांकि किसी बात का कभी कोई जवाब नहीं दिया था।

मैडम को वह एक बेजान पत्थर की तरह लगता जिसके अंदर आत्मा, नाम की कोई चीज नहीं थी। प्रत्येक डांट, व्यंग्य और सजा के जवाब में वह बस अपनी भावनाओं से खाली नज़रों से उन्हें देखा करता और सिर झुका लेता। मैडम को अब इससे गंभीर नफरत हो चुकी थी।

पहला सेमेस्टर समाप्त हो गया और प्रोग्रेस रिपोर्ट बनाने का चरण आया तो मैडम ने राजू की प्रगति रिपोर्ट में सब बातें उसके विरोध लिख दिए। प्रगति रिपोर्ट माता-पिता को दिखाने से पहले हेड मास्टर के पास जाया करती थी। उन्होंने जब राजू की प्रोग्रेस रिपोर्ट देखी तो मैडम को बुला लिया। "मैडम प्रगति रिपोर्ट में कुछ तो राजू की प्रगति भी लिखनी चाहिए। आपने तो जो कुछ लिखा है, इससे राजू के पिता इससे बिल्कुल निराश हो जाएंगे। मैडम ने कहा "मैं माफी माँगती हूँ, लेकिन राजू एक बिल्कुल ही अशिष्ट और बेकार,बेवकूफ बच्चा है । मुझे नहीं लगता कि मैं उसकी प्रगति के बारे में कुछ लिख सकती हूँ।" मैडम घृणित लहजे में बोलकर वहां से उठ कर चली गई स्कूल की छुट्टी हो गई। अगले दिन हेड मास्टर ने एक विचार किया और उन्होंने चपरासी के हाथ मैडम की डेस्क पर राजू की पिछले कई वर्षों की प्रगति रिपोर्ट रखवा दी । अगले दिन मैडम ने कक्षा में प्रवेश किया तो रिपोर्ट पर नजर पड़ी। पलट कर देखा तो पता लगा कि यह राजू की रिपोर्ट हैं। " मैडम ने सोचा कि पिछली कक्षाओं में भी राजू ने निश्चय ही यही गुल खिलाए होंगे।" उन्होंने सोचा और कक्षा 3 की रिपोर्ट खोली। रिपोर्ट में टिप्पणी पढ़कर उनकी आश्चर्य की कोई सीमा न रही, जब उन्होंने देखा कि रिपोर्ट उसकी तारीफों से भरी पड़ी है। "राजू जैसा बुद्धिमान बच्चा, मैंने आज तक नहीं देखा।" "बेहद संवेदनशील बच्चा है और अपने मित्रों और शिक्षक से बेहद लगाव रखता है।" "

यह सब लिखा था.......।
अंतिम सेमेस्टर में भी राजू ने प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है। "मेडम ने अनिश्चित स्थिति में कक्षा 4 की रिपोर्ट खोली।" राजू ने अपनी मां की बीमारी का बेहद प्रभाव अपने ऊपर लिया। .उसका ध्यान पढ़ाई से हट रहा है। "" राजू की माँ को अंतिम चरण का कैंसर हुआ है। घर पर उसका और कोई ध्यान रखनेवाला नहीं है, जिसका गहरा प्रभाव उसकी पढ़ाई पर पड़ा है।
ये लिखा था ......।
नीचे हेड मास्टर ने लिखा कि राजू की माँ मर चुकी है और माँ के जाने के साथ ही राजू के जीवन की चमक और रौनक भी चली गई। ..... राजू को बचाना होगा...इससे पहले की बहुत देर हो जाए।
यह सब पढ़कर मैडम के दिमाग पर भयानक बोझ हावी हो गया। कांपते हाथों से उन्होंने प्रगति रिपोर्ट बंद की। मैडम की आँखों से आंसू एक के बाद एक गिरने लगे, मैडम ने साड़ी से अपने आंसू पोंछे।
अगले दिन जब मैडम कक्षा में दाख़िल हुईं तो उन्होंने अपनी आदत के अनुसार अपना पारंपरिक वाक्यांश "आई लव यू ऑल" दोहराया। मगर वह जानती थीं कि वह आज भी झूठ बोल रही हैं। क्योंकि इसी क्लास में बैठे एक उलझे बालों वाले बच्चे राजू के लिए जो प्यार वह आज अपने दिल में महसूस कर रही थीं.. ...वह कक्षा में बैठे और किसी भी बच्चे से अधिक था ।
पढ़ाई के दौरान उन्होंने रोजाना दिनचर्या की तरह एक सवाल राजू पर दागा और हमेशा की तरह राजू ने सिर झुका लिया। जब कुछ देर तक मैडम से कोई डांट फटकार और सहपाठी सहयोगियों से हंसी की आवाज उसके कानों में जब नहीं पड़ी, तो उसने अचंभे में सिर उठाकर मैडम की ओर देखा।
अप्रत्याशित, उनके माथे पर आज बल न थे, वह मुस्कुरा रही थीं, मतलब वह आज बिल्कुल भी गुस्से में नहीं थी। उन्होंने राजू को अपने पास बुलाया और उसे सवाल का जवाब बताकर जबरन दोहराने के लिए कहा। राजू तीन-चार बार के आग्रह, के बाद अंतत:बोल ही पड़ा। इसके जवाब देते ही मैडम ने न सिर्फ खुद खुशान्दाज़ होकर तालियाँ बजाईं बल्कि सभी बच्चों से भी बजवायीं........और उसे प्रोत्साहित किया।
फिर तो यह दिनचर्या बन गयी। मैडम हर सवाल का जवाब अपने आप बताती और फिर उसकी खूब सराहना तारीफ करतीं। अब प्रत्येक अच्छा उदाहरण राजू के कारण दिया जाने लगा । धीरे-धीरे पुराना राजू सन्नाटे की कब्र फाड़ कर बाहर आ गया। अब मैडम को सवाल के साथ जवाब बताने की जरूरत नहीं पड़ती। राजू रोज बिना त्रुटि उत्तर देकर सभी को प्रभावित करता और नये नए सवाल पूछ कर सबको हैरान भी करता ।
उसके बाल अब कुछ हद तक सुधरे हुए होते, कपड़े भी काफी हद तक साफ होते, जिन्हें शायद वह खुद धोने लगा था। देखते ही देखते साल समाप्त हो गया और राजू ने दूसरा स्थान हासिल कर कक्षा 5 वीं कक्षा पास कर ली, यानी अब वह दूसरी जगह स्कूल मे दाखिले के लिए तैयार था।
कक्षा 5 वीं के विदाई समारोह में सभी बच्चे मैडम के लिए सुंदर उपहार लेकर आए और मैडम की टेबल पर ढेर लग गया । इन खूबसूरती से पैक हुए उपहारों में एक पुराने अखबार में बदतर सलीके से पैक हुआ एक उपहार भी पड़ा था। बच्चे उसे देखकर हंस रहे थे । किसी को जानने में देर न लगी कि यह उपहार राजू ही लाया होगा। मैडम ने उपहार के इस छोटे से पहाड़ में से लपक कर राजू वाले उपहार को निकाला। खोलकर देखा तो उसके अंदर एक महिलाओं द्वारा इस्तेमाल करने वाली इत्र की आधी इस्तेमाल की हुई शीशी और एक हाथ में पहनने वाला एक बड़ा सा कड़ा कंगन था, जिसके ज्यादातर मोती झड़ चुके थे। मैडम ने चुपचाप इस इत्र को खुद पर छिड़का और हाथ में कंगन पहन लिया। बच्चे यह दृश्य देखकर सब हैरान रह गए। खुद राजू भी। आखिर राजू से रहा न गया और अपनी मैडम के पास आकर खड़ा हो गया। कुछ देर बाद उसने अटक-अटक कर मैडम को बोला "आज आप में से मेरी माँ जैसी खुशबू आ रही है।" इतना सुनकर मैडम की आँखों में आँसू आ गये और मैडम ने राजू को अपने गले से लगा लिया।
राजू अब दूसरे स्कूल में जाने वाला था, और अब
राजू ने दूसरी जगह स्कूल मे दाखिले ले लिया था
समय बीतने लगा।
दिन, सप्ताह, सप्ताह महीने और महीने साल में बदलते भला कहां देर लगती है?
मगर हर साल के अंत में मैडम को राजू के हाथ से लिखा एक पत्र नियमित रूप से प्राप्त होता। जिसमें लिखा होता कि "इस साल कई नए टीचर्स से मिला। मगर आप जैसा मैडम कोई नहीं था।"

फिर राजू की पढ़ाई समाप्त हो गई और पत्रों का सिलसिला भी सम्माप्त हो गया। कई साल आगे गुज़रे और मैडम भी रिटायर हो गईं।
एक दिन मैडम के घर अपनी मेल में राजू का पत्र मिला जिसमें लिखा था:--
"इस महीने के अंत में मेरी शादी है और आपके बिना शादी की बात मैं नहीं सोच सकता, आपको मेरी शादी में जरूर आना होगा। एक और बात .. मैं जीवन में बहुत सारे लोगों से मिल चुका हूं।। आप जैसा कोई नहीं हैं, मैडम.........आपका डॉक्टर राजू
पत्र मे साथ ही विमान का आने-जाने का टिकट भी लिफाफे में मौजूद था।
मैडम खुद को जाने से हरगिज़ न रोक सकी। उन्होंने अपने पति से अनुमति ली और वह राजू के शहर के लिए रवाना हो गईं। शादी के दिन जब वह शादी की जगह पहुंची, तो थोड़ी लेट हो चुकी थीं।

उन्हें ऐसा लगा समारोह समाप्त हो चुका होगा.. मगर यह देखकर उनके आश्चर्य की सीमा न रही कि शहर के बड़े डॉक्टर , बिजनेसमैन और यहां तक की वहां पर शादी कराने वाले पंडितजी भी थक गये थे, ये पूछ-पूछ कर, कि आखिर अब कौन आना बाकी है...मगर राजू समारोह में शादी के मंडप के बजाय गेट की तरफ टकटकी लगाए उनके आने का इंतजार कर रहा था। फिर सबने देखा कि जैसे ही एक बुड्ढी औरत ने गेट से प्रवेश किया, तभी राजू उनकी ओर लपका और उनका, वह हाथ पकड़ा जिसमें उन्होंने अब तक वह कड़ा पहना हुआ था, कंगन पहना हुआ था, जो उसकी, यानि राजू की मां का था और उन्हें सीधा मंच पर ले गया।
राजू ने माइक हाथ में पकड़ कर कुछ यूं बोला "दोस्तों आप सभी हमेशा मुझसे मेरी माँ के बारे में पूछा करते थे और मैं आप सबसे वादा किया करता था कि जल्द ही आप सबको उनसे मिलवाऊंगा।।।........
ध्यान से देखो यह यह मेरी प्यारी सी माँ दुनिया की सबसे अच्छी है यह मेरी माँ, यह मेरी माँ हैं -

!! प्रिय दोस्तों.... इस सुंदर कहानी को सिर्फ शिक्षक और शिष्य के रिश्ते के कारण ही मत सोचिएगा । अपने आसपास देखें, राजू जैसे कई फूल मुरझा रहे हैं जिन्हें आप का जरा सा ध्यान, प्यार और स्नेह नया जीवन दे सकता है।

Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! Omprakash Yadav, Neha Mishra
29/11/2023

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29/07/2023

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08/07/2023

मांसाहार क्यों छोड़े? पौधों में भी तो जान होती है!

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06/07/2023

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पूरा घर मेहमानों से भरा हुआ था। परिवार की इस पीढ़ी की आखिरी संतान मेरे छोटे चाचा की छोटी लड़की कृष्णा की शादी थी। शाम को ह...
25/06/2023

पूरा घर मेहमानों से भरा हुआ था। परिवार की इस पीढ़ी की आखिरी संतान मेरे छोटे चाचा की छोटी लड़की कृष्णा की शादी थी। शाम को ही बारात आने वाली थी इसी से चहल पहल और ज्यादा बढ़ चुकी थी। गाँव में सादगी से अपने सीमित बजट में रहते हुए चाचा ने सारी तैयारियाँ कर रखी थी।

तभी मैंने देखा घर का पुरुष वर्ग नंगे पैर घर से कहीं बाहर जा रहा था। मैं उनके साथ जुड़ने को वहां आंगन में रखे हुए एक बड़े से पत्थर पर बैठकर अपने पैरों में पहन रखे जूते और मोजे उतारने लगा।

‘रमेश, हम लोग गाँव के बाहर स्थित मंदिर में देव को आमन्त्रण देने जा रहे है। यह हमारे परिवार की परम्परा है। लड़की की शादी में बारात आने के पहले देव को बुलाया जाता है। तू तो यहां रहता नहीं इसलिए शायद यह सब अब याद न हो तुझे।’ तभी ताऊजी ने घर में से निकलते हुए मुझे देख कहा।

‘जी, मैं आ रहा हूं ताऊजी।’ अपने पैरों के जूते निकालते हुए मैंने कहा।

‘तू नहीं आएगा तो चलेगा। वैसे भी कल रात हल्की सी बारिश होने से बाहर कीचड़ हो गया है। तेरे पाँव गन्दे हो जाएंगे।’ मेरी बात सुनकर ताऊजी ने कहा और मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना वे वहां से चले गए।

तभी मेरे चचेरे भाई की पत्नी बाहर आंगन में कुछ लेने आई। मुझे देखकर वह ठिठक गई और फिर हड़बड़ाते हुए मेरे पास आकर खड़ी हो गई।

‘अरे देवर जी ! आप यहां इस खुले पत्थर पर काहे बैठ गए ? आपके कपड़े गन्दे हो जाएंगे। आप वहां उस कुर्सी पर जाकर इत्मिनान से बैठिए।’ भाभी की बात का मैं कुछ जवाब नहीं दे पाया और इतनी देर में घर के सारे पुरुष काफी आगे निकल गए। मन मसोसकर मैं टेन्ट के नीचे लगी कुर्सियों में से एक कुर्सी पर जाकर बैठ गया। तभी मेरी नजर वहीं मुझसे कुछ दूर बैठे मेरे दोनों बच्चों पर पड़ी।

‘अरें ! तुम दोनों यहां बैठकर इस मोबाइल के साथ अकेले क्या गेम खेल रहे हो ? घर में तुम्हारे चाचा, ताऊ और बुआ के सारे बच्चें इक्कठा हुए है। उनके साथ जाकर खेलो।’ मैंने उन्हें अकेले मोबाइल में खोए हुए देख कर कहा।

‘ओह नो डैड। दे ऑल आर डर्टी एण्ड पुअर। कह रहे थे हमें उनके संग अगर खेलना हो तो हमें हमारे जूते और मोजे निकालने होंगे। यू नो, बाहर कितना गन्दा है। शूज निकाल दिए तो पैर गन्दे हो जाएंगे।’ अपनी बड़ी बेटी का जवाब सुन मेरे ज़हन में दस साल पहले इस गाँव को छोड़कर अमेरिका जाते हुए कहे गए मेरे वाक्य अनायास ही तैर गए।

‘मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चें गरीबी की झलक भी देखे। यहां इण्डिया में रहा तो मेरी सारी जिन्दगी पापा की तरह गरीबी से लड़ते हुए ही गुज़र जाएगी।’

आज मन चाहा रूपया बटोर कर वापस अपनी धरती पर पैर रखने के बाद अब तक अपने ही लोगों द्वारा किया जा रहा औपचारिकतापूर्ण व्यवहार देखकर मुझे महसूस होने लगा रिश्तों और अपनेपन को पीछे छोड़ मैं और मेरा परिवार आज पहले से और ज्यादा ग़रीब हो चुका था ।

जिस जड़ेजा की लोग आउट होने की दुआ करते थे। वही लोग आज उनको सैल्यूट कर रहे हैं। यही है दुनिया की फितरत। लोग चढ़ते सूरज को...
31/05/2023

जिस जड़ेजा की लोग आउट होने की दुआ करते थे। वही लोग आज उनको सैल्यूट कर रहे हैं। यही है दुनिया की फितरत। लोग चढ़ते सूरज को सलाम करते है।

सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है. इसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर ब...
31/05/2023

सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है. इसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुंचते ही कंधे पर कूदकर मुझे चौंका देता था. तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज है. परंतु वह तो अब तक इस सोनजुही की जड़ में मिट्टी होकर मिल गया होगा. कौन जाने स्वर्णिम कली के बहाने वही मुझे चौंकाने ऊपर आ गया हो!

अचानक एक दिन सवेरे कमरे से बरामदे में आकर मैंने देखा, दो कौवे एक गमले के चारों ओर चोंचों से छूआ-छुऔवल जैसा खेल खेल रहे हैं. यह काकभुशुंडि भी विचित्र पक्षी है- एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित, अति अवमानित. हमारे बेचारे पुरखे न गरूड़ के रूप में आ सकते हैं, न मयूर के, न हंस के. उन्हें पितरपक्ष में हमसे कुछ पाने के लिए काक बनकर ही अवतीर्ण होना पड़ता है. इतना ही नहीं हमारे दूरस्थ प्रियजनों को भी अपने आने का मधु संदेश इनके कर्कश स्वर में ही देना पड़ता है. दूसरी ओर हम कौवा और कांव-कांव करने को अवमानना के अर्थ में ही प्रयुक्त करते हैं.
मेरे काकपुराण के विवेचन में अचानक बाधा आ पड़ी, क्योंकि गमले और दीवार की संधि में छिपे एक छोटे-से जीव पर मेरी दृष्टि रफ़क गई. निकट जाकर देखा, गिलहरी का छोटा-सा बच्चा है जो संभवतः घोंसले से गिर पड़ा है और अब कौवे जिसमें सुलभ आहार खोज रहे हैं.

काकद्वय की चोंचों के दो घाव उस लघुप्राण के लिए बहुत थे, अतः वह निश्चेष्ट-सा गमले से चिपटा पड़ा था. सबने कहा, कौवे की चोंच का घाव लगने के बाद यह बच नहीं सकता, अतः इसे ऐसे ही रहने दिया जावे. परंतु मन नहीं माना- उसे हौले से उठाकर अपने कमरे में लाई, फिर रूई से रक्त पोंछकर घावों पर पेंसिलिन का मरहम लगाया. रूई की पतली बत्ती दूध से भिगोकर जैसे-तैसे उसके नन्हे से मुंह में लगाई पर मुंह खुल न सका और दूध की बूंदें दोनों ओर ढुलक गईं.
कई घंटे के उपचार के उपरांत उसके मुंह में एक बूंद पानी टपकाया जा सका. तीसरे दिन वह इतना अच्छा और आश्वस्त हो गया कि मेरी उंगली अपने दो नन्हे पंजों से पकड़कर, नीले कांच के मोतियों जैसी आंखों से इधर-उधर देखने लगा.
तीन-चार मास में उसके स्निग्ध रोए, झब्बेदार पूंछ और चंचल चमकीली आंखें सबको विस्मित करने लगीं. हमने उसकी जातिवाचक संज्ञा को व्यक्तिवाचक का रूप दे दिया और इस प्रकार हम उसे गिल्लू कहकर बुलाने लगे. मैंने फूल रखने की एक हलकी डलिया में रूई बिछाकर उसे तार से खिड़की पर लटका दिया. वही दो वर्ष गिल्लू का घर रहा. वह स्वयं हिलाकर अपने घर में झूलता और अपनी कांच के मनकों-सी आंखों से कमरे के भीतर और खिड़की से बाहर न जाने क्या देखता-समझता रहता था. परंतु उसकी समझदारी और कार्यकलाप पर सबको आश्चर्य होता था. जब मैं लिखने बैठती तब अपनी ओर मेरा ध्यान आकर्षित करने की उसे इतनी तीव्र इच्छा होती थी कि उसने एक अच्छा उपाय खोज निकाला.
वह मेरे पैर तक आकर सर्र से परदे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेजी से उतरता. उसका यह दौड़ने का क्रम तब तक चलता जब तक मैं उसे पकड़ने के लिए न उठती. कभी मैं गिल्लू को पकड़कर एक लंबे लिफ़ाफ़े में इस प्रकार रख देती कि उसके अगले दो पंजों और सिर के अतिरिक्त सारा लघुगात लिफ़ाफ़े के भीतर बंद रहता. इस अद्भुत स्थिति में कभी-कभी घंटों मेज़ पर दीवार के सहारे खड़ा रहकर वह अपनी चमकीली आंखों से मेरा कार्यकलाप देखा करता.
भूख लगने पर चिक-चिक करके मानो वह मुझे सूचना देता और काजू या बिस्कुट मिल जाने पर उसी स्थिति में लिफ़ाफ़े से बाहर वाले पंजों से पकड़कर उसे कुतरता रहता. फिर गिल्लू के जीवन का प्रथम बसंत आया. नीम-चमेली की गंध मेरे कमरे में हौले-हौले आने लगी. बाहर की गिलहरियां खिड़की की जाली के पास आकर चिक-चिक करके न जाने क्या कहने लगीं? गिल्लू को जाली के पास बैठकर अपनेपन से बाहर झांकते देखकर मुझे लगा कि इसे मुक्त करना आवश्यक है.

मैंने कीलें निकालकर जाली का एक कोना खोल दिया और इस मार्ग से गिल्लू ने बाहर जाने पर सचमुच ही मुक्ति की सांस ली. इतने छोटे जीव को घर में पले कुत्ते, बिल्लियों से बचाना भी एक समस्या ही थी. आवश्यक कागज़-पत्रों के कारण मेरे बाहर जाने पर कमरा बंद ही रहता है. मेरे कॉलेज से लौटने पर जैसे ही कमरा खोला गया और मैंने भीतर पैर रखा, वैसे ही गिल्लू अपने जाली के द्वार से भीतर आकर मेरे पैर से सिर और सिर से पैर तक दौड़ लगाने लगा. तब से यह नित्य का क्रम हो गया.

मेरे कमरे से बाहर जाने पर गिल्लू भी खिड़की की खुली जाली की राह बाहर चला जाता और दिन भर गिलहरियों के झुंड का नेता बना हर डाल पर उछलता-कूदता रहता और ठीक चार बजे वह खिड़की से भीतर आकर अपने झूले में झूलने लगता. मुझे चौंकाने की इच्छा उसमें न जाने कब और कैसे उत्पन्न हो गई थी. कभी फूलदान के फूलों में छिप जाता, कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही की पत्तियों में.

मेरे पास बहुत से पशु-पक्षी हैं और उनका मुझसे लगाव भी कम नहीं है, परंतु उनमें से किसी को मेरे साथ मेरी थाली में खाने की हिम्मत हुई है, ऐसा मुझे स्मरण नहीं आता. गिल्लू इनमें अपवाद था. मैं जैसे ही खाने के कमरे में पहुंचती, वह खिड़की से निकलकर आंगन की दीवार, बरामदा पार करके मेज़ पर पहुंच जाता और मेरी थाली में बैठ जाना चाहता. बड़ी कठिनाई से मैंने उसे थाली के पास बैठना सिखाया जहां बैठकर वह मेरी थाली में से एक-एक चावल उठाकर बड़ी सफ़ाई से खाता रहता. काजू उसका प्रिय खाद्य था और कई दिन काजू न मिलने पर वह अन्य खाने की चीजें या तो लेना बंद कर देता या झूले से नीचे फेंक देता था.

अस्पताल में रहना पड़ा. उन दिनों जब मेरे कमरे का दरवाज़ा खोला जाता गिल्लू अपने झूले से उतरकर दौड़ता और फिर किसी दूसरे को देखकर उसी तेज़ी से अपने घोंसले में जा बैठता. सब उसे काजू दे आते, परंतु अस्पताल से लौटकर जब मैंने उसके झूले की सफ़ाई की तो उसमें काजू भरे मिले, जिनसे ज्ञात होता था कि वह उन दिनों अपना प्रिय खाद्य कितना कम खाता रहा. मेरी अस्वस्थता में वह तकिए पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हे-नन्हे पंजों से मेरे सिर और बालों को इतने हौले-हौले सहलाता रहता कि उसका हटना एक परिचारिका के हटने के समान लगता.

गर्मियों में जब मैं दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर जाता न अपने झूले में बैठता. उसने मेरे निकट रहने के साथ गर्मी से बचने का एक सर्वथा नया उपाय खोज निकाला था. वह मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार समीप भी रहता और ठंडक में भी रहता. गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती, अतः गिल्लू की जीवन यात्रा का अंत आ ही गया. दिन भर उसने न कुछ खाया न बाहर गया. रात में अंत की यातना में भी वह अपने झूले से उतरकर मेरे बिस्तर पर आया और ठंडे पंजों से मेरी वही उंगली पकड़कर हाथ से चिपक गया, जिसे उसने अपने बचपन की मरणासन्न स्थिति में पकड़ा था. पंजे इतने ठंडे हो रहे थे कि मैंने जागकर हीटर जलाया और उसे उष्णता देने का प्रयत्न किया. परंतु प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया.
उसका झूला उतारकर रख दिया गया है और खिड़की की जाली बंद कर दी गई है, परंतु गिलहरियों की नयी पीढ़ी जाली के उस पार चिक-चिक करती ही रहती है और सोनजुही पर बसंत आता ही रहता है.

सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू को समाधि दी गई है- इसलिए भी कि उसे वह लता सबसे अधिक प्रिय थी- इसलिए भी कि उस लघुगात का, किसी वासंती दिन, जुही के पीताभ छोटे फूल में खिल जाने का विश्वास, मुझे संतोष देता है.

लेखिका - महादेवी वर्मा।

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12/05/2023

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