Bhanwarlal sitaram mev

Bhanwarlal sitaram mev teaching

31/10/2023

सफर में धूप तो बहुत होगी तप सको तो चलो,
भीड़ तो बहुत होगी नई राह बना सको तो चलो।

माना कि मंजिल दूर है एक कदम बढ़ा सको तो चलो,
मुश्किल होगा सफर, भरोसा है खुद पर तो चलो।

हर पल हर दिन रंग बदल रही जिंदगी,
तुम अपना कोई नया रंग बना सको तो चलो।

राह में साथ नहीं मिलेगा अकेले चल सको तो चलो,
जिंदगी के कुछ मीठे लम्हे बुन सको तो चलो।

महफूज रास्तों की तलाश छोड़ दो धूप में तप सको तो चलो,
छोटी-छोटी खुशियों में जिंदगी ढूंढ सको तो चलो।

यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें,
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो।

तुम ढूंढ रहे हो अंधेरो में रोशनी ,खुद रोशन कर सको तो चलो,
कहा रोक पायेगा रास्ता कोई जुनून बचा है तो चलो।

जलाकर खुद को रोशनी फैला सको तो चलो,
गम सह कर खुशियां बांट सको तो चलो।

Hii
31/10/2023

Hii

28/10/2023
न कोई रंग है न कोई रूप वो निराकार है।लेकिन युगो युगो से उसका वजूद है।हिंदी में उसे ' अफवाह ' कहते है , अंग्रेजी में रयूम...
15/04/2022

न कोई रंग है
न कोई रूप
वो निराकार है।लेकिन युगो युगो से उसका वजूद है।हिंदी में उसे ' अफवाह ' कहते है , अंग्रेजी में रयूमर। कहते है उसने पहली मर्तबा महाभारत में अपनी आमद दर्ज करवाई। उसे फख्र है कि उसने महाभारत युद्ध में पासा पलट दिया।तब बीच जंग अफवाह फ़ैल गई कि अश्वथामा मारा गया। मगर तब उसके लिए हालात विकट थे। कोई अफवाह का सहचर और सहयोगी नहीं था। इतिहास की इतनी लम्बी डगर उसने तन्हा तय की है। लेकिन तकनीक के विस्तार ने उसके पंख लगा दिए।

अफवाह को लगता है अब उसका काम बहुत आसान हो गया है।
अमेरिका में फिल्म निर्देशक मार्क फ्रॉस्ट कहते है ' प्रिय इंटरनेट ,तुम अफवाह फैलाने में बहुत काम की चीज हो। सच के लिए राह दुश्वार हो गई है। [Dear Internet, you are very good at spreading rumours] जब जब ज्ञान विज्ञानं ने दस्तक दी ,अफवाह ने मोर्चा संभाल लिया। वो अन्धविश्वास की अंगुली थामे ज्ञान विज्ञानं के लिए मुश्किलें खड़ी कर देती। फिर चाहे वो टीकाकरण हो या बिजली का आगमन।

यह 1927 की बात है जब जयपुर ने पहली बार बिजली से शहर को रोशन होते देखा।मगर अफवाह तुरंत नमूदार हुई और गली गली फ़ैल गई।बात यूँ फैली कि बिजली से इंसान का खून सूख जाता है। घर के खिड़की दरवाजे जल उठते है। यह अफवाह का ही असर था कि धनी मानी लोगो ने भी 1931 तक बिजली कनेक्शन नहीं लिया। इसके पहले 1889 में जब सार्वजनिक स्थानों पर पानी के नल लगे तब भी अफवाह ने हंगामा बरपा दिया।

वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र सिंह शेखावत जयपुर के इतिहास पर गहरी नजर और समझ रखते है। वे इन घंटनाओ की पुष्टि करते है। शेखावत कहते है जब लोगो ने टूंटी के पानी को अस्वीकार कर दिया,विद्वानों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया। जयपुर के मौज मंदिर में बैठक हुई और शास्त्रों का संदर्भ देकर कहा गया नल का पानी भी शुद्ध है। तब हालात सामान्य हुए।
शेखावत कहते है अफवाहे उस दौर में भी रही है। एक मौके पर जयपुर में भीड़ ने एक अफवाह के चलते अंग्रेज अफसर ब्लैक तो पीट पीट कर मार डाला। भीड़ इस अफवाह पर जमा हुई थी कि राजा का कत्ल कर दिया गया है। ब्लैक इस सबसे बेखबर था। भीड़ के हत्थे चढ़ गया। बाद में हत्या की बात महज अफवाह निकली।

शिकागो यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफ केस सनस्टेन कहते है ' अफवाह का वजूद उतना ही पुराना है जितना मानवता का इतिहास।पर इंटरनेट के बाद इसका दायरा सर्वव्यापी हो गया है।सच तो यह है हम सभी अब इससे आच्छादित है। वे किसी भी चीज को खराब कर सकती है। यहाँ तक कि लोकतंत्र को भी'। इंटरनेट के बाद अफवाह का दायरा और दमखम बढ़ गया है। उसकी मदद में बहुत सारे उपकरण आ खड़े हुए।

पहले अफवाह लम्बी दुरी की यात्रा करते करते खुद हांफ जाती थी। पर अब उसके लिए सब कुछ आसान है।भारत में टीकाकरण का इतिहास काफी पुराना है। वो एक दिन में विश्व फार्मेसी नहीं बना है / इसी जून माह में 1802 में पहली बार तीन साल के एक बच्चे को टीका लगाया गया था। लेकिन अफवाहे हमेशा अपना काम करती रही है । वे तब भी हरकत में थी। अब भी है।

भारत ने 1947 में आज़ादी हासिल की। सरकार ने मई 1948 में प्रेस नोट जारी कर कहा टी बी महामारी बन गई है। इसके बाद अगस्त 1948 में दो स्थानों पर पायलट प्रोजेक्ट के तहत टी बी का टीका लगना शूरु हुआ। तब साक्षरता 12 प्रतिशत थी। जीवन प्रत्याशा बहुत कम थी। मगर अफरा तफरी नहीं मची। केंद्र ने इसका संचालन किया। टीकाकरण टीम को अफवाह से लड़ना पड़ा।मद्रास में तय शुदा कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। उत्तर भारत में कुछ राज्यों में यह अफवाह फ़ैल रही थी कि टीकाकरण से आदमी निसंतान हो जायेगा।मगर वक्त के साथ चीजे बदलती चली गई। टीकाकरण कामयाब रहा। अफवाह हाथ मलते रह गई। पर तब उसके पास आज जैसे साधन नहीं थे।

अफवाहों पर काम करने वाले रॉबर्ट नेप और लियो पोस्टमैन जैसे विज्ञानी कहते है अफवाहे जैसे जैसे अपना सफर तय करती है ,वे सिकुड़ती जाती है। वे छोटी ,सार रूप में आसानी से खपाई जाने वाली सामग्री हो जाती है। आखिर में एक अफवाह का 70 फीसद हिस्सा गायब हो जाता है। रोबर्ट नेप ने दूसरे विश्व युद्ध में फैली अफवाहों का अध्ययन किया था। वे कहते है ये सकारात्मक भी होती है नकारात्मक भी। अफवाह से कोई भी अछूता नहीं है। अमेरिका जैसे देश में बराक ओबामा को भी अपने जन्म स्थान के बारे में अफवाह को निर्मूल साबित करने में काफी जोर लगाना पड़ा।
किसी ने ठीक कहा -
बच्चा अंधकार से डरे यह तो मुमकिन है।
पर आदमी उजालो से खौफजदा हो ,यह समझ में नहीं आ रहा है।
जब जब ज्ञान विज्ञानं दस्तक देते है ,अँधेरे रोशनी से डर जाते है।

आज से मिलेगा इन योजनाओं का लाभ
01/04/2022

आज से मिलेगा इन योजनाओं का लाभ

31/03/2022

रामराम सा🙏 आज एक दुखद जिक्र दो दिन पूर्व की एक ह्रदय विदारक घटना जिसमें एक प्रसूता व एक उच्च शिक्षित महिला चिकित्सक (गोल्डमैडलिस्ट) अलग-अलग कारणों से प्राणों से हाथ धो बैठती है। पहले बात हम प्रसूता की करतें है जैसा हमे पता चला प्रिंट मीडिया से कि मात्र 22 वर्ष की आयु में वो चौथी बार माँ बनने जारही थी या ये कहा जाए कि उसको ऐसा करने के लिए मजबूर होना पङा था क्योंकि वो तीन लडकियों की माँ थी। बच्चियों को समाज मे आज भी सन्तान नही माना जारहा है? एक लङके की चाह पूरी करने की जिद परिवार की होती है जिसे पूरा करना उसका फर्ज माना जाता है समाज में।इस फर्ज के लिए उसका इस कम उम्र मे भी चार बार माँ बनना क्या हमारे समाज मे महिलाओ के स्वास्थ्य, खानपान, लैंगिक समानता व शिक्षा के न्यूनतम स्तर को सूचित नही करता है?क्या ये सब क्या इस बात को इंगित नही करते है कि तमाम कानूनी व सामाजिक अधिकारो के शोर के बीच स्थिति आज भी जस की तस है? दूसरी शिकार महिला चिकित्सक जिनकी मौत ये साबित करती है कि आज भी इस स्तर पर पहुंच कर भी कितनी असुरक्षा व भय व मानसिक रूप से दबाव के बीच हमारी महिलायें कार्य कर रही है। कुछ अराजक तत्वों की भीङ व कानून के पहरेदारो के पक्षपातपूर्ण रवैया के चलते एक उच्च शिक्षित महिला को खुद को निर्दोष साबित करने के लिए मौत को गले लगाना पङता है। हम इसका कतई समर्थन नही करते। प्रत्येक महिला में बचपन से ही कार्य स्थल के तनावों को झेलने व उनसे पार पाने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। परिवार जनो को भी कामकाजी महिलाओ को मानसिक रूप से लगातार टच में रहकर उन्हें साथ देना चाहिए। कितनी भयभीत थी वो महिला कि दो प्यारे बच्चो का मोह भी उसको रोक नही पाया। क्या वो इतनी हताश थी इस भ्रष्ट सिस्टम के व्यवहार से? युद्ध हो या अराजकता, महामारी हो या आतंकवाद हमेशा सर्वाधिक पीड़ित पक्ष महिला ही होती है। हमे आधी आबादी व पूरी दुनिया (महिला) को सशक्त करने के लिए लगातार प्रयास करने होगें। अब अन्त में एक बात ओर सर्व ज्ञात तथ्य है कि हमारी महिला संस्था सशक्त महिलाओ की संस्था है इसमे सभी महिलाये वो है जिन्होने मेहनत साहस व लगन से खुद को साबित किया है। पर इसके बावजूद हमारी संस्था व इसके कार्यो, सोशल मीडिया पोस्ट,महिला व्यक्तित्वो, आयोजन पर हर दस पन्द्रह दिन बाद कुछ खाली व कुंठित लोग गलत कमैट करते है। हालांकि हमे रत्ती भर भी परवाह नही है इन सबकी पर ये हमे यह सोचने को मजबूर जरूर करता है कि अभी हमे बहुत साहस से लगातार आगे बढना है। बहरहाल दोनो ही दिवंगत महिलाओ को करमाबाई जाट महिला संस्था की तरफ से सादर श्रंदाजली 🙏🙏

31/03/2022

अंधविश्वासों को,
1.धरोहर मानकर इनका बचाव करना चाहिए,
या
1.वैज्ञानिक दृष्टिकोण में बाधक मानकर इनको खत्म करना चाहिए।

31/03/2022

साथियों,जब हम स्वतन्त्रता आंदोलन का इतिहास पढ़ते हैं तो कई जगह जानने को मिलता है कि अंग्रेजों ने "फूट डालो,राज्य करो"की नीति से भारत को गुलाम बनाए रखा यानि की अंग्रेजों ने हिन्दू तथा मुसलमान और जातियों में फूट डालकर राज्य किया था।
अब तो अंग्रेजों को गए 75 साल हो गए लेकिन अब भी फूट बरकरार है।पहले की तरह ही वर्तमान में भी,समय समय पर साम्प्रदायिक दंगे होते रहते हैं।अन्य जातियों और धर्मों के प्रति कटुता को सोशल मीडिया या अन्य जगहों पर देखा जा सकता है।क्या वर्तमान में भी, हमारी जातिगत या धर्मगत फूट के लिए अमेरिका,चीन या इंग्लैंड जिम्मेदार हैं?
भारतीय समाज में व्याप्त व्यापक फूट के लिए जातिगत और धर्मगत व्यवस्था ही जिम्मेदार हैं।परवरिश की वजह से ज्यादातर लोग, अन्य धर्म और जातियों के प्रति उदासीन या नफरत का भाव रखते हैं।क्या इस फूट का स्थाई समाधान,धर्मगत और जातिगत व्यवस्था को खत्म करने से नहीं हो सकता?क्या अपन इतना साहस जुटा सकते हैं कि उक्त बन्धनों को तोड़कर एक हो जाएं?
उक्त फूट का स्थाई समाधान और उन्नति का रास्ता आपके सामने है और वह है, अंधविश्वास मुक्त, वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त,परम्परागत धर्मविहीन,जातिविहीन,नस्लभेद मुक्त,साहसी,स्वस्थ,शिक्षित और उच्च नैतिक मूल्यों वाले,"मानवतावादी विश्व समाज"के निर्माण की विचारधारा को अपनाना।
अगर हम उक्त विचारधारा की नहीं अपना पा रहे हैं तो इसके कारण हैं, या तो अपने में साहस की कमी है या फिर छोटे छोटे स्वार्थों में लिप्त रहने की प्रवृत्ति।
आओ,"मानवतावादी समाज" के निर्माण की विचारधारा को अपनाकर,समाज को नई और सही दिशा दें।

जय मानवता।। जय नैतिकता।। जय विज्ञान।।

31/03/2022

यदि #निजीकरण अच्छा होता तो #सरकारी_बैंकों से ज्यादा भीड़ प्राइवेट बैंको में होती ।
यदि निजीकरण अच्छा होता तो #रोडवेज_बस ज्यादा लोग प्राइवेट बस में चलना पसन्द करते ।
यदि निजीकरण अच्छा होता तो #सरकारी_अस्पताल से ज्यादा भीड़ प्राइवेट अस्पताल में होती ।
यदि निजीकरण अच्छा होता तो लाखों स्टूडेंट्स की तैयारी न करते सीधे प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन लेते ।
यदि निजीकरण अच्छा होता तो लोग GOVT जॉब छोड़कर प्राइवेट जॉब करते ।
यदि निजीकरण अच्छा होता तो #जवाहर_नवोदय_विद्यालय , #केंद्रीय_विद्यालयों का रिजल्ट प्राइवेट स्कूलों से अच्छा नही होता ।
निजीकरण के बाद
क्या प्राइवेट कंपनी अपने किसी कर्मचारी को महंगाई बढ़ने के साथ साथ सैलरी बढ़ाएगी ।
क्या कोई प्राइवेट कंपनी वेतन सहित मेडिकल लीव देगी ।
क्या कोई प्राइवेट कंपनी हर साल वेतन वृद्धि करेगी ?
क्या कोई प्राइवेट कंपनी अपने कर्मचारियों को आपदा के समय वेतन देगी ?
क्या कोई प्राइवेट कंपनी अपने #मृतक_कर्मचारी के आश्रित को जॉब पर रखेगी ?
क्या कोई प्राइवेट कंपनी घाटे में जाने पर अपना व्यवसाय जारी रखेगी ?
ये निजीकरण नही देश को गुलामी की ओर धकेलना है ।
आज बड़े बड़े भारतीय पूंजीपति देश के संसाधन खरीद सकते हैं लेकिन यदि ये संसाधन और घाटे में गए तो विदेशियों को बेच देंगे यही अंतिम सत्य है । #निजीकरणभारतछोड़ो

फ़िनलैंड की जनसंख्या 54 लाख है यानि फ़िनलैंड में 54 लाख दिमाग हैं।हमारे देश की जनसंख्या 134 करोड़ है यानि हमारे देश में 134...
29/03/2022

फ़िनलैंड की जनसंख्या 54 लाख है यानि फ़िनलैंड में 54 लाख दिमाग हैं।हमारे देश की जनसंख्या 134 करोड़ है यानि हमारे देश में 134 करोड़ दिमाग हैं।फ़िनलैंड उन नौ देशों में से है जिनके लिए सन 2016 में अखबारों में खबर आई थी कि इनमें धर्म(Religion) खत्म होने के कगार पर है और हमारे देश में 98% लोग धार्मिक(Religious)हैं।
जिन देशों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता जा रहा है उन देशों में धर्म खत्म होता जा रहा है तथा ऐसे देश विज्ञान-तकनीकी में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं इसीलिए हम फ़िनलैंड से स्नाइपर राइफल खरीद रहे हैं।
सऊदी अरब,भारत,पाकिस्तान,ईरान अफगानिस्तान,बांग्लादेश,अल्जीरिया, थाइलैंड आदि धार्मिक प्राथमिकता वाले देश विज्ञान-तकनीकी में पिछड़े हुए देश बने हुए हैं तथा इनकी सुरक्षा व्यवस्था भी खरीदे हुए हथियारों पर निर्भर है।

IPS किशन सहाय

28/03/2022

हर सभ्य व्यक्ति चाहता है दुनिया में कोई भी व्यक्ति,समाज दुःखी, परेशान, गरीब, प्रताड़ित, अपमानित, बहिष्कृत और अशिक्षित न बचा रहे। नेतागिरी, समाजसेवा, आंदोलन, व्यवस्था परिवर्तन, क्रांति, बदलाव इत्यादि सभी बातों के लिए सभी मनावप्रेमी सहमत और एकमत है।

सवाल यह है कि कोई अपनी भूमिका कैसे दर्ज करवाये? क्या बिना साधन, संसाधन के हम किसी भी परिस्थिति से लड़ सकते हैं? और यदि आने वाले कल में हमारे पास साधन-संसाधन जुट जाएं, तब तक क्या हमारे अंदर के जज्बात उसी रूप में बरकरार बने रह सकते हैं?

मैंने देखा है असंख्य लोग गरीबों की गरीबी के लिए लड़ते-लड़ते खुद ही अमीर हो गये। आज मुझे भी पीड़ा है,चिंता है, सहानुभूति है, दर्द है लेकिन आज मेरी लड़ने के प्रति सीमाएं है, बाधाएं है, मजबूरी है जबतक इन तमाम रुकावटों से लड़ने योग्य बनूंगा तबतक इच्छाएं ही समाप्त हो जाएंगी?

ऐसा क्यों है कि लोग समय रहते हमें नहीं समझते और हम समय रहते लोगों को नहीं समझा पाते? शायद सामंतवादी समाज के विघटन जो कि उचित था और औधोगिक समाज के उदय होने से मानवीय मूल्यों की जगह धन, पैसा, अर्थ, पूंजी ने ले ली है? आज अर्थ ही उपलब्धि है।

हमने पूंजी अर्जित को सफलता समझ लिया गया है उसके स्रोत भले ही कुछ भी हो। मैँ जानता हूँ हर हालात को चंद समय में बदला जा सकता है लेकिन व्यवस्था बदलाव की बातें करने वालों को तवज्जो इसलिये नहीं मिलती क्योंकि समाज उनकी निजी आर्थिक उपलब्धि देखना चाहता है।

🎂 🎁 🎈 🎉 🕯 🍰 🎂 🎁  *लोकप्रिय विधायक जनाब हाकम अली जी जन्मदिन मुबारक हो*🎂🥳🎂🥳🎂🥳🎂🎂🎂 *मैं आपके सुखी जीवन व उज्ज्वल भविष्य की क...
20/03/2022

🎂 🎁 🎈 🎉 🕯 🍰 🎂 🎁
*लोकप्रिय विधायक जनाब हाकम अली जी जन्मदिन मुबारक हो*
🎂🥳🎂🥳🎂🥳🎂🎂🎂
*मैं आपके सुखी जीवन व उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।*
🎉🎉🎂🎉🥳🎂🎉🎂🥳
*आप जीवन में हमेशा मुस्कुराते रहो*
*जीवन आपका सदा महकता रहे*
*जीवन में हो आपको इतनी खुशियां की*
*खुशी भी सदा आपकी दीवानी रहें।* *Happy birthday sir*
❤️🌷🌹🎉🍨🎂🍦🎸🍫

18/03/2022

साथियों धर्म को बचाना ही हम सब का पहला कर्तव्य है।धर्म बचेगा तभी तो हम बचेंगे।उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों की जनता ने धर्म को बचाने के लिये अपने मत का प्रयोग किया और आज धर्म बच गया वर्ना पता नहीं धर्म का क्या होता ?

खेती बचाने के लिये 700 किसानों ने शहादत दी उसकी परवाह न करते हुये किसानों ने पहले धर्म बचाया।

उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षक भर्ती में अनुसूचित जाति व अन्य आरक्षण को खा गई फिर भी उसकी चिंता न करते हुये पहले धर्म बचाया।

कारोना काल में देश की जनता की दौड़ दौड़ कर सेवा करने वाले सोनू सूद की बहन को इसलिये हराया ताकि धर्म बच सके।

उन्नाव में बलात्कार किया,गवाहों को ट्रक से कुचला लेकिन धर्म को जिंदा रखने के लिये बलात्कारियों का समर्थन करने वालों की झोली में सभी सीटें डाल दी।

लखीमपुर में किसानों को कुचलने वालों को वोट देकर इसलिये सम्मानित किया ताकि धर्म बच सके।

देखो बहन मायावती ने धर्म को बचाने के लिये खुद राजनीतिक रूप से शहीद हो गई।

ओबीसी ने धर्म बचाने के लिये कितना त्याग किया है ओबीसी के नेता केशव प्रसाद मौर्य उपमुख्यमंत्री होते हुये भी स्टूल पर बैठ गये क्योंकि धर्म बचाना था।जब मौर्य जी को लगा कि धर्म कुर्बानी मांग रहा है तो चुनाव भी हार गये।

किसानों को क्या क्या नहीं कहा परजीवी,खालिस्तानी,मवाली,गुंडे फिर भी धर्म को बचाने के लिये अपना जमीर बेच दिया लेकिन धर्म पर आंच नहीं आने दी।

सरकारी नौकरी कितनी मुश्किल से मिलती है फिर भी सरकारी कर्मचारियों ने अपनी नौकरी को दांव पर लगाकर ईवीएम को इधर उधर करना,बेलट पेपर में इधर उधर करना सब धर्म को बचाने के लिये किया।

कारोना में दवाई,बेड, ऑक्सीजन कुछ नहीं मिला।लाशों से गंगा को पाट दी,लाशें कुते खा रहे थे,अपने मरते गये फिर भी धर्म को बचाने के हमेशा कहते रहे सब कुछ चंगा है,ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है।

धर्म बचाना बहुत मुश्किल काम है इधर धर्म बचाने के लिये किसान,sc, st व ओबीसी ने अपने आप को बर्बाद कर लिया लेकिन धर्म पर आंच नहीं आने दी।उधर बड़े लोग,ऊंचे लोग भी धर्म को बचाने के लिये संघर्ष कम नहीं कर रहे है।एक गरीब आदमी धर्म बचाने के लिये पहले प्रधानमंत्री बना फिर "राम" नहीं मिल रहे थे उन्हें अंगुली पकड़कर लेकर आये।दूसरे मठ का त्याग करके मुख्यमंत्री बने इन्होंने भी "राम" को लाने में बहुत महेनत की तब कहीं राम आये तभी नारा दिया "जो राम को लाया है,हम उन्हें ही लायेंगे"।शुक्र मनाओं यह तो महेनती लोग है जो राम को पकड़कर ले आये वरना थोड़ी देर और हो जाती तो मुश्किल हो जाती।हमें तो खुश है कि यह लोग राम को ले आये।राम के आते ही देश में खुशहाली आ गई।दो करोड़ की जमीन 16 मिनट में 18 करोड़ की हो गई।

धर्म को बचाने के लिये हमने तय किया है कि जब तक हमारे हाथों में भीख का कटोरा नहीं पकड़ा दे तब तक धर्म पर आंच नहीं आने देंगे।

18/03/2022
15/01/2021

*रोटी और चावल को बचाने के लिए आम आवाम के हक की लड़ाई है ,किसान आंदोलन।*

रोटी और चावल किसान के खेत में पैदा होता है,न तो रिलायंस के मॉल में और न ही मीडिया के स्टूडियो में।
पेट की भूख न जियो के डाटा से मिटती है, न नागपुरी फिरंगियों के सोशल मीडिया पर परोसे गए प्रदूषित वैचारिक कचरे से मिटती है, पेट की भूख किसान के द्वारा पैदा किये गए अन्न से मिटती है।आज अफसोश हो रहा है कि अपने हक के लिए और इस देश की खुशहाली का इतिहास लिखने वाला अन्नदाता 51 दिन से इस कड़कड़ाती सर्दी में सड़कों पर रात गुजार रहा है, लेकिन बेशर्म मीडिया और अंधभक्त उसे भला बुरा कह रहे हैं।
तटस्थ होकर यदि विचार करें तो 2000 रुपये देने पर भी कोई खुले आसमान के नीचे इस मौसम में रात नहीं गुजार सकता।ये उस किसान की समझ,और अपनी फसलें और नस्लें बचाने की सोच और जज्बे पर निर्भर कर रहा है। भूख रोटी और चावल से ही शांत होगी अर्नव गोस्वामी,अमिश देवगन और सुधीर चौधरी के नफरत के शौलों से नहीं।और वो रोटी किसान पैदा करता है, नफरत के सौदागर नहीं।
ये सच है कि आज किसान अपनी आजीविका को बचाने के लिए संघर्ष रत है, लेकिन यदि बारीकी से इसे समझेंगे तो देश के प्रत्येक नागरिक का हित भी इससे प्रभावित है।
यदि आज देश की आवाम इस बात को नहीं समझ पाएगी तो आने वाले वक्त में रोटी के लिए किसान की तरफ नहीं ,अम्बानी और अडानी पर निर्भर रहना होगा।जिस तरह से फ्री में जियो की सिम देकर आज BSNL को बर्बाद कर जियो अपना जलवा दिखाने लगी है ,ठीक उसी प्रकार खाद्यान के क्षेत्र में ये कॉरपोरेट घराने कब्जा कर देश की जनता को शोषण की चक्की में पिसने के लिए मजबूर कर देंगे।आज जो आटा 22 रुपये kg मिल रहा है वह 100 रुपये kg मिलेगा।और शायद ऐसा कोई इंसान नहीं है ,जो रोटी और चावल के बिना जिंदा रह सकता है।रोटी महान है, पैदा करता किसान है।
अतः बहुत ही पैनी समझ के साथ हमें इस आंदोलन को समझने की आवश्यकता है, ये सिर्फ किसान का आंदोलन नहीं है ,ये इस देश की आम आवाम को प्रभावित करने वाला आंदोलन है।हमें ये तय करना है कि हमें इस देश को अपने चंगुल में फंसाकर मुनाफे के हथौड़े से वार करने वाले चंद पूंजीपति घरानों के पक्ष में खड़े होना है या इस देश के आम नागरिक के हितों की रक्षा करने के लिए बहादुरी से मैदान में डटे हुए उस किसान का साथ देना है।आज यदि इस जंग में किसान नहीं बचेगा तो दुनियां के नक्शे पर हिंदुस्तान भी नहीं बचेगा।हिंदुस्तान की पिक्चर धुंधली हो जाएगी।हमारे पुरखों की विरासत मिट्टी में मिल जाएगी।
अतः आइए हम अपने पूर्वाग्रहों को दूर कर हकीकत से रूबरू हों, और अपने अस्तित्व को बचाने तथा आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य के लिए सही और न्याय का साथ दें।आपका सहयोग और वैचारिक समझ इस देश का भविष्य तय करेगा।
जय संगठन।
किसान एकता जिंदाबाद।
हमारी वर्गीय एकता जिंदाबाद।

12/01/2021

मी लार्ड- आंदोलन में बुजुर्ग,महिलाएं व बच्चे क्यों?

मी-यह किसान आंदोलन है कभी आओ खेत मे तीन पीढ़ी एक साथ लगी रहती है और महिलाएं किसान परिवार की बुनियाद होती है।

यह इंडिया की सोच से भारत की समस्या को देखने का नजरिया है।इससे समाधान नहीं आक्रोश की ज्वालामुखी निकलती है।

हमारी दादी बुजुर्ग दादा को कहती है घर पर जुबाँ मत चला जा भैंस के लिए चारा काट,पौते को बोलती है बूढ़ा काट दे तो तेरी माँ को इत्तिला कर देना गठरी में बांधकर ले आएं!

दादी मरते दम तक बिलौने-झेनिये-गिड़गिड़े की रस्सी नी छोड़ती तुम क्या सोचते हो कि यह पौते के हिस्से की जमीन छोड़ देगी?दादी पौते में बेटे का अख्श देखती है।

तीन पीढ़ी तक की दूरदर्शी सोच रखने वाले किसान परिवार को तुम तीन साल बाद खत्म करने वाले कानूनों के खिलाफ बरगलाने निकले हो!

सत्ता ने गलत पंगा लिया और अब मी लार्ड फालतू में खुद की मिट्टी पलीत करवाने पर तुले हुए है।

किसान का बच्चा आज कितना संजीदा है उसका उदाहरण एक छोटी सी घटना से समझिए।किसी मित्र ने मुझे कहा कि किसान आंदोलन में योगदान देना चाहता हूँ तो देने चला गया था।

मंच के पास का कैम्प है तो वहीं जाकर बैठ गया।एक लड़का भागकर आया और बोला "देखिये मीत ते माड़ा कमेंट गेर दिया उसने!"मैं डरकर उठा कि युवा कहीं गुत्थम गुत्था होकर एकदूसरे के ऊपर कुछ गिरा रहे है!एक आदमी बोला सियाग बैठ,कहाँ जा रहा है?मैंने दिखावटी हंसी के साथ कहा अरे कुछ नहीं मैं तो किसान रेला देख रहा हूँ!

खड़ा ही था तभी एक लड़का रस्से के ऊपर से कूदकर बोला "देखियो-देखियो उसने पोस्ट गेर दी!"मुझे लगा कि किसानों ने पुलिस पोस्ट गिरा दी और अब जंग शुरू!मैं उल्टा रस्से से कुदा और साइड की गली की तरफ भागा!एक लड़का पीछे कुदा और जोर से बोला "किते भाज रिया सियाग!"डर दुगुना बैठ गया!सोचा यह पक्का पिटवायेगा!स्पीड बढ़ाई और भागकर घर आ लिया।पीछे से भूपिंदर हूडा ने फोन पे समझाया कि वो मीत पे कुछ नहीं गिरा किसी ने फेसबुक पर कमेंट किया था उसका जिक्र था और पोस्ट पुलिस की नहीं फेसबुक पर डाली थी।फिर राहत महसूस हुई।

देखो!फेसबुक पर एक कमेंट व पोस्ट गेरने को जिस कौम के युवा युद्ध की तरह ले रहे हो वो सरकारी लाठियों या आंसू गैस के गोलों को यूँ ही जाया करेंगे?टेंटला दबा देंगे टेंटला लुटियन में घुसकर फिर कश्मीरी पंडित जज काटजू फेसबुक पर ब्लडी संडे का डर दिखाने की पोस्ट गेरना भूल जाएंगे !

किसान तो कृषि कानूनों पर रोक व रद्द के बीच का भेद पहले से ही समझे हुए है मगर मी लार्ड बता सकता है कि यह महिला डांस कर रही है या घरेलू कार्य?

प्रेमाराम सियाग

02/05/2020

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