21/11/2021
तमिल फिल्म इंडस्ट्री इन दिनों इंटरनेशनल न्यूज में है. इसकी वजह सूर्या की नई फिल्म जय भीम को लेकर होने वाली चर्चा है. बीबीसी, याहू न्यूज, खलीज टाइम्स और द इंडिपेडेंट जैसे अंतरराष्ट्रीय न्यूज प्लेटफॉर्म ने ये खबर दी है कि जय भीम फिल्म ने आईएमडीबी रेटिंग में शॉशांक रिडम्पशन (1994) और द गॉडफादर (1972) जैसी सर्वकालिक श्रेष्ठ फिल्मों को पीछे छोड़ते हुए यूजर रेटिंग चार्ट में टॉप की जगह बना ली है.
जय भीम तमिल सिनेमा की नई मुकुटमणि है. पिछले एक दशक में नए तमिल सिनेमा ने कई धमाकेदार प्रस्तुतियां दी हैं.
समाज की सच्चाइयों को ज्यादा तल्खी से उजागर करता है. इस क्रम में खासकर जाति और शोषण के प्रश्न से टकराने का साहस इन फिल्मों ने किया है. इन फिल्मों में दलित, बहुजन, आदिवासी समुदायों के प्रतिरोध की भी दास्तान है.
इन फिल्मों को बनाने वालों में पा. रंजीत का नाम प्रमुख है, जिन्होंने अट्टाकथी (2012), मद्रास (2014), कबाली (2016), काला (2018), सारपट्टा परम्बरई (2021) बनाई है. उनके साथ काम शुरू करने वाले मारी सेल्वराज ने स्वतंत्र रूप से पेरियारुम पेरुमल (2018) और कर्णन (2021) बनाई. वहीं, इन दोनों से पहले से फिल्म बना रहे वेट्रिमारन ने असुरन (2019) बनाई है. और अब सूर्या की जय भीम आई है. इन फिल्मों को तमिल नया सिनेमा की शुरुआत माना जा रहा है.
अब आते हैं मैथिली सिनेमा बनाने पर, महात्मा गांधी जी ने एक बार कहा था आप अपनी मातृभाषा में अपनी बात सही से अभिवक्ति कर पाते हैं!
मैथिली बोलने वालो की संख्या 8 करोड़ से ज्यादा हैं, एक बहुत बड़ा बाज़ार हैं, मैथिली क्षेत्र में मल्टीप्लेक्स खुलेगा, प्रत्यक्ष और अप्रत्क्ष रूप से 1lac से ज्यादा रोज़गार उत्पन्न होगा, इंटरनेशनल मार्केट में मैथिली का नाम होगा, एक यूरोपियन कंट्री के बराबर हमारे मिथिला की आबादी है और वो कंट्री अपनी भाषा में सिनेमा बनाते हैं क्योंकि उन्हें अपनी भाषा पर गर्व होता हैं, हमें नहीं हैं!
अच्छी फिल्में अभी देखनी बाक़ी हैं क्योंकि हमने अभी तक अपनी कहानी नहीं कहीं, अपनी पटकथा अभी तक नहीं लिखी!
#मिथिला
क्रेडिट fti wisdom tree, Amazon/ Facebook/The print