पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर ब्लाक का बेहद सुंदर गांव किमसार, जो यहां एक बार घूमने आ जाए, बार-बार याद करे। किमसार गांव में वर्षों से एक परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है, वो है मकर संक्रांति पर गेंदी का मेला। गेंदी का मेला में एक विशेष खेल होता है, जिसे गेंदी का खेल कहा जाता है। इसमें एक बड़ी गेंद, जो रबर और लेदर की बनी है, जिसे लगभग 50 साल पहले गांव के रणजीत सिंह, लेकर आए थे, से दो पक्ष एक दूसरे के पाले में गोल करने के लिए खेलते हैं।हालांकि, वर्तमान में जिस गेंद से खेल होता है, वो 50 साल पुरानी है, पर गांव में गेंदी के खेल की परंपरा कितनी पुरानी है, किसी को नहीं मालूम। लोग इस परंपरा को सैकड़ों साल पुराना बताते हैं।
वन गुज्जर के साथ थालू में दालभात - स्नेह एवं सम्मान
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देहरादून जिला के संगतियावाला गांव में निशा देवी जी ने मुझ से पूछा, भाई साब क्या खाना खाएंगे। मैंने कहा, क्यों नहीं। पर दो रोटी से ज्यादा नहीं। आज आपने क्या बनाया है, उनका जवाब था, कापली। मैंने कापली सुना था, पर यह खाई हो, ऐसा याद नहीं था।
मैंने पहले यह जानने की कोशिश की, कापली को कैसे बनाया जाता है। इसमें क्या मिलाया जाता है। रीता बहनजी ने बताया, यह साग होता है। इसमें हम राई, मैथी, सरसो, पालक के पत्तों को अच्छी तरह धोकर साफ करके एक साथ मिलाकर घुटवा तैयार करते हैं। घुटवा यानी मिक्सी या सिलबट्टे पर पीस लेते हैं। प्रेशर कुकर में एक दो सीटी के बाद, इसमें मिर्च, मसाले मिलाकर सरसो के तेल का छोंक लगाते हैं।
मैंने कापली का स्वाद लिया, वो भी घराट के आटे की बनी रोटियों के साथ, वाह मजा आ गया। साथ में, निशा जी ने मुझे छोंक लगाया हुआ मट्ठा दिया। मट्ठे ने भोजन का स्वाद और भी शानदार कर दिय
देहरादून जिला के संगतियावाला गांव में निशा देवी जी ने मुझ से पूछा, भाई साब क्या खाना खाएंगे। मैंने कहा, क्यों नहीं। पर दो रोटी से ज्यादा नहीं। आज आपने क्या बनाया है, उनका जवाब था, कापली। मैंने कापली सुना था, पर यह खाई हो, ऐसा याद नहीं था।
मैंने पहले यह जानने की कोशिश की, कापली को कैसे बनाया जाता है। इसमें क्या मिलाया जाता है। रीता बहनजी ने बताया, यह साग होता है। इसमें हम राई, मैथी, सरसो, पालक के पत्तों को अच्छी तरह धोकर साफ करके एक साथ मिलाकर घुटवा तैयार करते हैं। घुटवा यानी मिक्सी या सिलबट्टे पर पीस लेते हैं। प्रेशर कुकर में एक दो सीटी के बाद, इसमें मिर्च, मसाले मिलाकर सरसो के तेल का छोंक लगाते हैं।
मैंने कापली का स्वाद लिया, वो भी घराट के आटे की बनी रोटियों के साथ, वाह मजा आ गया। साथ में, निशा जी ने मुझे छोंक लगाया हुआ मट्ठा दिया। मट्ठे ने भोजन का स्वाद और भी शानदार कर दि
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देहरादून के संगतियावाला गांव में पुरानी घराट पर एक स्टोरी कवर करने गया था। पता चला कि पास में ही एक खेत में गन्ने की कटाई चल रही है। महिलाएं गन्ना काट रही थीं। अगोला काटकर गन्ने पर से पत्तियां हटाई जा रही थीं। महिलाएं गन्ने की पुलियां बना रही थीं। ये पुलियां चीनी मिल जानी थीं। एक महिला तीन से चार घंटे में लगभग 25 पुलियां बना देती है।
मेरे घर के पास पहले गन्ने के बहुत सारे खेत थे। अब वहां मकान बन गए हैं। पहले हम भी इन खेतों में गन्ने लेने जाते थे। मैंने गन्ना कटाई कर रहीं मीनाक्षी जी से पूछा, क्या आप मुझे गन्ने की छिलाई करना सिखाएंगी। उन्होंने कहा, क्यों नहीं।
उन्होंने मुझे छोटी पाटल देते हुए कहा, आसानी से पत्तियां हटाओ। हाथ में न लग जाए। मैंने उनसे गन्ने से अगोला काटना सीखा। यहां यह जानना जरूरी है कि गन्ने में कितना हिस्सा अगोला होता है। अगोल
राजकीय प्राथमिक विद्यालय, कन्या माजरीग्रांट में बच्चों के साथ मिड डे मील। मेरे साथ बैठी हैं पायल, जिनके लेखन का मैं प्रशंसक हो गया। पायल हाल ही में राज्य स्तरीय सुलेख प्रतियोगिता में प्रथम आई हैं। जल्द ही पायल के लेखन से आपको परिचित कराऊंगा। साथ ही, उनके स्कूल की प्रेरणादायक कहानी भी साझा करूंगा। उनके शिक्षकों ललित गोस्वामी सर और दलीप सिंह सर के बच्चों की शिक्षा के प्रति समर्पण और त्याग पर बहुत सारी जानकारियां दूंगा।
मिड डे मील में उड़द, चने की दाल और चावल। वास्तव में बहुत अच्छा खाना बनाया भोजन माता सरिता देवी जी ने। मैं अचानक ही इस विद्यालय में ठीक भोजन से पहले पहुंचा था।
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मिड डे मील
राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय भोगपुर में अचानक पहुंच गया। वहां शिक्षकों से मिला। पास ही, प्राइमरी स्कूल में आए, बचपन के मित्र जय सिंह कौशल भी वहां मिल गए। जय सिंह जी, सीआरसी (क्लस्टर रिसोर्स कोआर्डिनेटर) हैं। शिक्षक शमशाद अंसारी जी ने पूछा, मिड डे मील का समय हो गया है, क्या भोजन करेंगे।
मैं भला भोजन के लिए कैसे मना कर सकता हूं, तुरंत कह दिया, बच्चों के साथ बैठकर ही भोजन करुंगा।
वैसे मैं भोजन माता दर्शी देवी जी से पहले ही मिल लिया था और पूरा मैन्यू जान लिया था, आज भोजन में क्या है। इस विद्यालय में छात्र-छात्राओं की संख्या 27 है। बच्चे एक हॉल में लगी बेंचों पर खाना खाते हैं। आज खाने में चने की दाल, चावल और आलू गोभी की सब्जी थी।
ऐसा नहीं है, यह केवल हमें देखकर बना था, भोजन हमारे विद्यालय पहुंचने से पहले बनने लगा था। हम तो विद्यालय बिना किसी को बताए पहुंचे थे।
भो
@DugDugiRajesh
Uttarakhand की राजधानी से लगभग 25 किमी. दूर एक ऐसा गांव है, जहां अदरक, हल्दी, पिंडालु, आलू, फलियां आदि खूब होते हैं, पर इस उत्पाद को बाजार तक लाने की दिक्कत है। सड़क नहीं होने की वजह से उत्पाद की बिक्री नहीं हो पा रही है। हल्दी तो भोगपुर के बाजार में बिक जाती है या लोग खुद ही हल्दी खरीदने के लिए गांव पहुंच जाते हैं, पर अदरक को खरीदार नहीं मिल पा रहे हैं।
कंडोली गांव बहुचर्चित सूर्याधार झील के पास है, पर यहां तक आने के लिए लगभग तीन किमी. का पथरीला रास्ता पार करना पड़ता है।
देखिए वीडियो...
“स्कूल के समय में गीत गाती थी, पर उस समय संगीत में करिअर बनाने की बात नहीं सोची थी। मुझे गीत गुनगुनाना अच्छा लगता था। शादी के तीन महीने बाद, चारा पत्ती काटते समय पेड़ से गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गई। आपरेशन किया गया और डॉक्टर ने एक साल तक बेड रेस्ट की सलाह दी। उस समय गाने गुनगुनाती, मोबाइल पर गाने सुनती, जिससे मुझे काफी राहत मिली। एक तरह से समझो, मेरा दर्द कुछ कम होने लगा। संगीत दर्द को छिपाने का माध्यम बना। तभी मैंने सोचा, क्यों न संगीत सीखा जाए, संगीत के क्षेत्र में कुछ किया जाए।” देहरादून के कंडोली गांव में रहने वालीं सविता रावत, हमारे साथ संगीत पर बात कर रही थीं। सविता का मायका टिहरी गढ़वाल जिले के चंबा के पास आराकोट है। कंडोली में एक साक्षात्कार के दौरान, 26 वर्षीय सविता हमें संगीत के क्षेत्र में अपने सफर को साझा कर रही थीं।
“स्कूल के समय में गीत गाती थी, पर उस समय संगीत में करिअर बनाने की बात नहीं सोची थी। मुझे गीत गुनगुनाना अच्छा लगता था। शादी के तीन महीने बाद, चारा पत्ती काटते समय पेड़ से गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गई। आपरेशन किया गया और डॉक्टर ने एक साल तक बेड रेस्ट की सलाह दी। उस समय गाने गुनगुनाती, मोबाइल पर गाने सुनती, जिससे मुझे काफी राहत मिली। एक तरह से समझो, मेरा दर्द कुछ कम होने लगा। संगीत दर्द को छिपाने का माध्यम बना। तभी मैंने सोचा, क्यों न संगीत सीखा जाए, संगीत के क्षेत्र में कुछ किया जाए।”
देहरादून के कंडोली गांव में रहने वालीं सविता रावत, हमारे साथ संगीत पर बात कर रही थीं। सविता का मायका टिहरी गढ़वाल जिले के चंबा के पास आराकोट है। कंडोली में एक साक्षात्कार के दौरान, 26 वर्षीय सविता हमें संगीत के क्षेत्र में अपने सफर को साझा कर रही थीं।
कौड़सी गांव की बिटिया से मुलाकात
कौड़सी गांव की 19 साल की कल्पना हमें 'सीक्रेट सुपर स्टार' फिल्म का पॉपुलर गाना "तेरी ही बोली बोलूंगी मैं, तेरी ही बानी गाऊंगी मैं, तेरे इश्क़ दा चोला पहन के, मैं तुझमें ही रंग जाऊंगी…" सुनाती हैं। कल्पना एक दिन कामयाब गायिका बनेंगी, गीत गाते समय उनके चेहरे पर दिखता आत्मविश्वास इस दावे की पुष्टि करता है। कल्पना भी सीक्रेट सुपर स्टार फिल्म की उस मेधावी बिटिया की तरह हैं, जो पॉपुलर सिंगर बनना चाहती है।
कल्पना से हमारी मुलाकात महज संयोग है। हमें जानकारी मिली थी कि कौड़सी गांव में एक बिटिया बहुत सुंदर गीत गाती है।
कल्पना स्कूल के प्रोग्राम में भागीदारी करती रही हैं। दसवीं की बोर्ड परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुई थीं। बारहवीं में भी उन्होंने बहुत अच्छे अंक हासिल किए थे।
कल्पना ने बताया, वो चाहती हैं कि संगीत के क्षेत्र में पहचा