24/12/2024
श्यामपुर में औरतों के लिए सिर्फ एक ही दर्जी की दुकान थी। उसका मालिक राजू बहुत ही बदमाश किस्म का आदमी था।
जब उसकी दुकान में कोई औरत या लड़की ग्राहक आती, तो वो किसी न किसी बहाने से उन्हें गलत तरीके से छूने की कोशिश करता।
राजू, “अरे ! क्या भाभी जी, आप जो ये सूट लेकर आई हैं, ये तो थोड़ी पुरानी है ना और आप कह रही हैं कि इसी नाप का सूट बना दो।
ऐसे थोड़ी होता है। देखिए, इतने महीनों में आपकी कमर या आपका साइज कुछ तो बड़ा होगा। अगर मैं पुरानी नाप से ही ये वाली सूट बना दूंगा तो फिर फिटिंग सही नहीं होगी ना?”
महिला, “अच्छा ठीक है, फिर ले लो नाप।”
महिला के इतना कहने पर ही राजू की आँखों में चमक आ जाती है। अपने गले में पड़े इंच टेप से वो नाप लेने लगता है।
राजू, “हाँ भाभी जी, ज़रा सा सामने आइए। हाँ हाँ हाँ, ठीक है ठीक है, ज़रा कमर की नाप ले लूँ।”
उसके बाद तो वो लगभग आधे घंटे नाप लेने में ही लगा देता। और अगर कोई उससे कहता,
महिला, “अरे राजू मास्टर जी ! कितनी देर से नाप ले रहे हो, शाम तक नाप ही लोगे क्या?”
राजू, “मेरा नाम है राजू मास्टर। मैं अपने काम से कोई समझौता नहीं करता, हाँ। ठीक से नाप लूँगा तभी तो मस्त सूट बना पाऊंगा ना।”
अब उसकी इस बात पर कोई क्या ही उसे बोलता। बहरहाल, औरत के जाने के बाद वो उस औरत के ख्यालों में खो जाता और,
राजू, “क्या मस्त फिगर थी भाभी जी की? इसके आगे तो सारी हीरोइनें फैल जाएँगी। वाह ऊपर वाले ! क्या किस्मत बनाइए तुमने? मैंने पिछले जनम में कोई अच्छे कर्म किए होंगे, जो आपने मुझे दर्जी बनाया।
हे भगवान, बस एक ही प्रार्थना है कि अगले जन्म में मोहे दर्जी ही की जो ताकि मैं अलग-अलग और खूबसूरत औरतों के नाप ले सकूँ।”
राजू टेलर अपने काम की आड़ में औरतों के साथ छेड़छाड़ किया करता था। अब उसका प्रोफेशनल ही ऐसा था कि लोगों को ज्यादा कुछ पता नहीं लगता।
श्यामपुर में विनीता नाम की एक रिटायर टीचर अपनी बेटी सिम्मी और बेटे विकास के साथ रहा करती थी। विकास की अभी कुछ दिनों पहले ही शर्मीला नाम की लड़की से शादी हुई थी। शर्मिला बहुत ही भोली लड़की थी।
एक बार की बात है। सुबह का समय था। शर्मीला माथे पर घूँघट लिए अपनी सास के पास चाय लेकर गई।
शर्मिला, “ये लीजिए माझी, आपकी चाय अदरक वाली।”
ये कहकर उसने चाय अपनी सास को दी। विनीता ने चाय ले ली तो शर्मिला वहाँ से जाने लगी।
विनीता, “बहू, 1 मिनट रुको। मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।”
शर्मिला, “मुझसे कोई बात हो गई क्या, माँ जी? चाय तो ठीक है ना?”
विनीता, “अरे ! तू इतना डरती क्यों है? मैं तेरी सास हूँ, कोई राक्षस थोड़ी हूँ जो तुझे खा जाऊँगी।
और जहाँ तक रही चाय की बात, तो वो तो मैंने अभी तक पी ही नहीं है।”
ये कहकर उसने चाय की प्याली उठाई और चाय पीने लगी। चाय पीते ही,
विनीता, “बहुत ही अच्छी चाय है, बिलकुल तुम्हारी जैसी। अरे बहू ! तुम खड़ी क्यों हो? तुम्हें कहा है ना, मैंने बैठने के लिए। बैठो।”
शर्मिला, “जी माँ जी, कहिए आप मुझसे क्या बातें करना चाहती थीं?”
तब शर्मिला की सास ने उसे कहा,
विनीता, “शर्मीला बहू, तेरी शादी को लगभग डेढ़ महीने हो गए। कब तक यूं साड़ी और घूँघट में रहेंगी।”
शर्मीला, ” मैं समझी नहीं, माँझी।”
विनीता, “बहू, अब हमारी पीढ़ी की तो तुम हो नहीं कि घूँघट और साड़ी में ही हमेशा रहो। तुम आज की पीढ़ी हो, तुम सलवार सूट पहन सकती हो। घर में मैं कुछ नहीं बोलूँगी तुमको।”
शर्मिला, “पर माँ जी, मैं तो सलवार सूट लेकर आई ही नहीं। मुझे लगा कि शादी के बाद साड़ी में ही रहना होगा। भला ऐसा भी होता है क्या?”
उसके बाद विनीता ने अपनी बेटी सिम्मी को आवाज लगाई।
विनीता, “सिम्मी…”
सिम्मी उस समय कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रही थी। माँ की पुकार सुनकर वो बाहर आई।
सिम्मी, “हाँ मम्मी, क्या कह रही हो?”
विनीता,” कहीं जा रही है क्या?”
सिम्मी, “क्या मम्मी..? इस समय मैं कॉलेज जाती हूँ ना?”
विनीता, “पर आज तो संडे है ना?”
विनीता ने कैलेंडर की ओर देखते हुए कहा।
सिम्मी, “ओह ! मैंने तो ध्यान ही नहीं दिया। अच्छा, ये तो बोलो कि तुम मुझे बुला क्यों रही थी?”
विनीता, “जिम्मी बेटा, वो तुम्हारे पास तीन-चार सूट के कपड़े पड़े हैं ना, जो पिछले महीने खरीदे थे।”
सिम्मी, “हाँ तो..?”
विनीता, “वो दोनों ना, वो तुम भाभी को दे दो। वो उसे राजू टेलर के पास जाकर सिलवा लेगी। तुम्हारी भाभी के पास एक भी सूट नहीं है।”
सिम्मी, “अच्छा माँ, मैं दे देती हूँ।”
सिम्मी ने सूट के कपड़े अपनी भाभी को दे दिए। सिम्मी कॉलेज चली गई।
विनीता, “बहू ये लो सूट का कपड़ा, इसे सिलवा लो। यहाँ से थोड़ी दूर पर राजू टेलर है, तुम उसके पास चली जाओ।”
शर्मीला, “मैं अकेली जाऊँ?”
विनीता, “हाँ बहू, चली जाओ ना। तुम्हें तो पता है ना मेरे घुटनों में कितना दर्द रहता है? अगर तुम्हारे साथ गई, तो फिर एक सप्ताह तक चलना-फिरना सब हराम हो जाएगा।”
शर्मीला सूट का कपड़ा लेकर राजू टेलर के पास गई। राजू ने उसे देखा तो,
राजू, “ये कौन देहाती हुस्न की परी आ रही है घूँघट वुंगट निकाल के? पहले तो इसे कभी नहीं देखा।”
राजू टेलर शर्मिला को घूर-घूरकर देख रहा था। उसे इस तरह घूरता देखकर शर्मिला झेंप गई। तब राजू ने उससे पूछा,
राजू, “कहिए, क्या सेवा करूँ?”
शर्मीला, “जी, ये सूट बनवाना है।”
राजू, “हाँ हाँ बना देंगे, बना देंगे। वैसे कैसा बनवाना है पटियाला या नॉर्मल?”
शर्मीला, “पटियाला..?”
राजू, “अरे ! पटियाला नहीं पता आपको? आजकल वो स्टाइल बहुत चलता है। मैं तो एक्स्पर्ट हूँ पटियाला का। मेरे पास दूर-दूर से लोग आते हैं पटियाला सूट सिलवाने।”
उसके बाद राजू टेलर ने शर्मिला को दुकान पर रखे कुछ सैंपल दिखाए। शर्मिला को वो पसंद आ गए।
शर्मीला, “हाँ जी, सही है। ऐसा ही बना दो मेरा।”
राजू, “अरे ! ऐसा क्यों? इससे अच्छा बना देंगे आपका, लेकिन पहले आपको देना होगा।”
शर्मीला, “देना होगा… क्या देना होगा?”
राजू, “अरे ! नाप देना होगा नाप। बिना नाप मैं कैसे बनाऊंगा आपके लिए पटियाला सूट?”
उसके बाद राजू शर्मीला का नाप लेने लगा। शर्मीला से बातों के क्रम में ही उसे पता लग गया था कि यह बहुत ही भोली टाइप की है, इसलिए उसने मन ही मन सोच लिया था,
राजू, “आज तो इसका अच्छे से और बहुत देर नाप लूँगा, मज़ा आ जाएगा।”
नाप लेने के क्रम में राजू बार-बार शर्मिला को छू रहा था, और वो छूना नॉर्मल छूना तो नहीं था। ये बात शर्मीला को भी समझ आने लगी थी।
शर्मीला, “भाई साहब, ये आप क्या कर रहे हैं? इस तरह से कौन नाप लेता है? चलिए हटिए, दूर हटिए।”
राजू, “अरे ! क्या हो गया, क्या हो गया भाभी जी? क्यों गुस्सा हो रही हैं आप?”
शर्मीला, “गुस्सा नहीं होऊं तो क्या करूँ? ये किस तरह से और कितनी देर से नाप ले रहे हैं?
कभी कमर को छूते हैं, कभी इधर हाथ लगाते हैं, कभी उधर हाथ लगाते हैं? ये क्या बात हुई?”
राजू, “अरे ! टेलर को नाप लेने के लिए इधर-उधर तो हाथ लगाना ही होता है ना। अब मेरी आँखों में कोई मशीन तो सेट नहीं है कि एक बार किसी को देखें और परफेक्ट नाप ले लें।”
राजू अपनी बेहूदा दलीलों से अपनी कारगुजारी को ढकने की कोशिश कर रहा था। लेकिन शर्मीला भले ही भोली थी, लेकिन नासमझ तो बिलकुल भी नहीं थी।
शर्मीला, “देखो मेरे सामने ज्यादा तेज़ बनने की कोशिश मत करो। मुझे पता है तुम क्या कर रहे थे?
राजू, “मैं चुपचाप सुन रहा हूं तो इसका ये मतलब नहीं है कि आप कुछ भी इल्ज़ाम लगाओ।”
राजू, “अरे ! मैं कोई नया ट्रेलर नहीं बनाऊँ। सालों से यहाँ काम करता हूँ, हाँ और ना जाने कितनी औरतों के सूट सिले हैं मैंने?
किसी ने इस तरह से मुझ पर इल्ज़ाम नहीं लगाया, जैसे आप लगा रही हैं। अगर आपको मुझसे सूट नहीं सिलवाना तो आप जा सकती हैं, लेकिन इस तरह के बेहूदा इल्ज़ाम तो मत लगाइए मुझ पर। मैं बीवी बच्चों वाला आदमी हूँ।”
शर्मीला वहाँ से चली तो गई, लेकिन उसने अपनी सास को सारी बातें बताई।
विनीता, “ये तुम क्या कह रही हो बहू?”
शर्मीला, “हाँ माँ जी, वो बहुत ही बदमाश दर्जी है। उसने नाप लेने की आड़ में मेरे साथ बदतमीजी की। माँ जी, मुझे तो वो शक्ल से ही बदमाश लगता है।”
विनीता, “अच्छा सुनो, सिम्मी को आने दो फिर चलते हैं तीनों मिलकर उस बदमाश दर्जी की दुकान पर।”
सिम्मी के आने के बाद तीनों ने मिलकर एक प्लान बनाया। इस बार सिम्मी उस दर्जी की दुकान पर गई और सूट सिलवाने की बात कही।
अपनी आदत से मजबूर राजू टेलर बेशरमी के साथ सिम्मी की नाप लेने लगा। लेकिन इस बार उसकी सारी हरकत दूर छिपी उसकी भाभी ने रिकॉर्ड कर ली।
फिर उन्होंने पुलिस को फ़ोन कर वहाँ बुला लिया। थोड़ी देर में पुलिस वहाँ पहुँच गई।
इंस्पेक्टर शशिकला, “तू ही है ना राजू टेलर?”
राजू, “जी मैडम, मैं ही हूँ। कोई बात हो गई है क्या?”
उसके इस बात पर इंस्पेक्टर शशिकला ने उसे एक जोरदार तमाचा मारा और विनीता और शर्मिला द्वारा रिकॉर्ड किया वीडियो दिखाया।
इंस्पेक्टर शशिकला, “बेशर्म, यही करता है तू दुकान में अपनी? औरतों को क्या समझ रखा है तूने?
चल, तू थाने चल। इतने डंडे तुझे मारूंगी इतने डंडे तुझे मारूंगी कि तेरी सारी बेशर्मी निकल जाएगी।”
इंस्पेक्टर शशिकला ने राजू टेलर को जेल भेज दिया। उस पर मुकदमा चला और उसे 5 साल की सजा हुई।
विनीता की बहू शर्मीला भले ही भोली थी, लेकिन उसने गलत के खिलाफ़ आवाज उठाई। वो चुप नहीं रही।
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