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Bihar Live Bihar Live:Unveiling the rich tapestry of Bihar's heritage and culture.

 #भोज आमतौर पर जिन लोगों का कनेक्शन गांव से रहा होगा इस चीज को बखूबी समझते होंगे कि भात का रिश्ता क्या होता है गांव में ...
14/03/2024

#भोज
आमतौर पर जिन लोगों का कनेक्शन गांव से रहा होगा इस चीज को बखूबी समझते होंगे कि भात का रिश्ता क्या होता है गांव में किसी भी समारोह में दो तरह का भोज होता था पक्की और एक कच्ची पक्की भोज का मतलब होता था पूरी पुलाव बुंदिया दही और कच्ची भोज का मतलब होता है भात। भात वाला रिश्ता गांव में भी हर किसी का हर किसी से नहीं होता था जो काफी करीबी होते थे उन्हीं लोगों से भात का रिश्ता होता था। आमतौर का भात का रिश्ता जात में ही होता था कई बार समारोह समाप्ति के अंतिम दिन माता का भोज दिया जाता था इसके पीछे एक लंबी कहानी है जब गांव में मोटे अनाज लोगों के खाने के मुख्य साधन थे मोटे अनाज में ज्वार बाजरा और मक्का। खासकर उत्तर बिहार में धान गेहूं की जगह मक्का और चना की फसल ही ज्यादा होती थी।हरित क्रांति के बाद देश में गेहूं की उपज भी व्यापक पैमाने पर होने लगी बिहार में शाहाबाद के इलाके को छोड़ दें तो अन्य जिलों में धान तब भी नदारद थी।ऐसे में शादी समारोह हो या किसी विशेष अवसर पर ही भात खाने को मिलता था वहीं से भात के रिश्ते की शुरुआत हुई जितना कुछ बचपन में गांव को देखने सोचने समझने का मौका मिला इस बात पर जमकर रिसर्च हुआ सुदूर गांव के लोगों से भी भारत का रिश्ता रहा दो पहर रात गुजरने के बाद गांव का हज्जाम लोगों को बुलाने आता था लोग अपने घर से लोटा गिलास लेकर जाते थे दो गांव के बीच की दूरी होती थी एक आदमी आगे आगे लालटेन और लाठी लेकर चलता था पीछे सभी लोग रेल के डिब्बे की तरह उसका अनुसरण करते थे भोज स्थल पर जाने के बाद गजब का उत्साह होता था पत्तों वाला पत्तल सोंधी मिट्टी वाला चुक्कर का पानी छिलके वाली दाल भात घी की खुशबू कई तरह की सब्जियां दही। और सबसे बड़ी बात खाने और खिलाने वालों की श्रद्धा। गांव में हर किसी की हैसियत इस बात से नापी जाती थी कितने ज्यादा से ज्यादा लोगों से उनका भात का रिश्ता है। बचपन में अक्सर एक चीज को नहीं समझ पाता था कि गांव से कई किलोमीटर दूर के गांव के लोगों के यहां हम भात खाने क्यों जाते हैं। गांव में यह भात जिस बर्तन में बनता था उसे हमारे जिले छपरा में हंडा बोलते थे जो पीतल का होता था लकड़ी की आंच पर इसी में दाल चावल और सब्जियां तैयार होती थी। जिसके यहां भात का भोज होता था उसके यहां दोपहर से ही चहल-पहल होती थी गांव के लोग ही मिलजुलकर यहां भात बनाते थे। दौड़ गरीबी का था घर का एक सदस्य कमाता था और आधा दर्जन सदस्य उसी की कमाई पर खेती कर परिवार पालते थे पर लोगों में भोज भात खिलाने का श्रद्धा था जमाना बदला वक्त बदला पैसा भी सबके पास आ गया पर ना भात की परंपरा रही ना लोगों के अंदर श्रद्धा। अब कहीं यह परंपरा बची भी है तो गांव के लोग ही गांव में ही भात खाने नहीं जाना चाहते दूर गांव से भात का रिश्ता टूट गया वह पेट्रोमैक्स की रोशनी में लंबी पात में जमीन पर बैठकर खाने का आनंद अब सिर्फ जेहन भर में रह गया है।पहले गाँव मे न टेंट हाऊस थे और न कैटरिंग।
थी तो बस सामाजिकता।गांव में जब कोई शादी ब्याह होते तो घर घर से चारपाई आ जाती थी,हर घर से थरिया, लोटा, कलछुल, कराही इकट्ठा हो जाता था और गाँव की ही महिलाएं एकत्र हो कर खाना बना देती थीं।औरते ही मिलकर दुलहन तैयार कर देती थीं और हर रसम का गीत गारी वगैरह भी खुद ही गा डालती थी।शादी ब्याह मे गांव के लोग बारातियों के खाने से पहले खाना नहीं खाते थे क्योंकि यह घरातियों की इज्ज़त का सवाल होता था।
गांव की महिलाएं गीत गाती जाती और अपना काम करती रहती।सच कहु तो उस समय गांव मे सामाजिकता के साथ समरसता होती थी।र विदाई के समय नगद नारायण कड़ी कड़ी १० रूपये की नोट जो कहीं २० रूपये तक होती थी....वो स्वार्गिक अनुभूति होती कि कह नहीं सकते हालांकि विवाह में प्राप्त नगद नारायण माता जी द्वारा आठ आने से बदल दिया जाता था...आज की पीढ़ी उस वास्तविक आनंद से वंचित हो चुकी है जो आनंद विवाह का हम लोगों ने प्राप्त किया है।जो आने वाली पीढ़ियों को कथा कहानियों में पढ़ने सुनने को ही मिल पाएगा।
© अनूप नारायण सिंह

14/03/2024
टाटा स्टील और जमशेदपुर शहर की कुछ पुरानी तस्वीर...
13/03/2024

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बिहार के लोग आसानी से पहचान जाएंगे यह क्या चीज़ हैं!! कॉमेंट में दीजिए जवाब।
13/03/2024

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मुंबई सेंट्रल स्टेशन का निर्माण स्थल,1920 और अभी का स्टेशन
13/03/2024

मुंबई सेंट्रल स्टेशन का निर्माण स्थल,1920 और अभी का स्टेशन

यह ब्रिटिश वास्तुकार क्लाउड बैटल द्वारा डिजाइन किया गया था , और 1930 में शापूरजी पल्लोनजी द्वारा 21 महीने के रिकॉर्ड समय...
13/03/2024

यह ब्रिटिश वास्तुकार क्लाउड बैटल द्वारा डिजाइन किया गया था , और 1930 में शापूरजी पल्लोनजी द्वारा 21 महीने के रिकॉर्ड समय में बनाया गया था। इस परियोजना पर तब 15.6 मिलियन रुपये की लागत आई थी।

1930 में जब स्टेशन खुला, तो द टाइम्स ऑफ इंडिया ने सुझाव दिया कि बॉम्बे सेंट्रल नाम न्यूयॉर्क शहर में ग्रैंड सेंट्रल टर्मिनल से प्रेरित था । कागज ने तर्क दिया कि स्टेशन को कमाठीपुरा कहा जाना चाहिए था , जिस क्षेत्र में यह स्थित था। कागज ने सुझाव दिया कि कमाठीपुरा नाम को शायद खारिज कर दिया गया था, क्योंकि यह क्षेत्र एक लाल बत्ती वाला जिला है ।

मुंबई, बड़ौदा और मध्य भारत रेलवे से अपनी पहुंच बढ़ा बड़ौदा को पठानकोट के माध्यम से दिल्ली । बढ़ती आबादी की मांगों को पूरा करने के लिए कोलाबा-बल्लार्ड पियर रेलवे स्टेशन अपर्याप्त साबित हुआ जिसके कारण सरकार को बॉम्बे सेंट्रल के निर्माण की योजना बनानी पड़ी।

वर्तमान उपनगरीय मार्ग जो कभी कोलाबा तक चलता था, पहले बेलासिस रोड स्टेशन द्वारा परोसा जाता था। पूर्वी हिस्से में लंबी दूरी की बॉम्बे सेंट्रल टर्मिनस (बीसीटी) के निर्माण के बाद इसका नाम बदलकर बॉम्बे सेंट्रल (स्थानीय) कर दिया गया। १ फरवरी २०१८ को, स्टेशन कोड को बीसीटी से एमएमसीटी में बदलने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया था।

राजेंद्र नगर रेलवे टर्मिनल पर ये हेरिटेज रेल इंजन 74 साल पुराना है।1950 के दशक के इस स्टीम इंजन को टर्मिनल के बाहर सर्कु...
12/03/2024

राजेंद्र नगर रेलवे टर्मिनल पर ये हेरिटेज रेल इंजन 74 साल पुराना है।1950 के दशक के इस स्टीम इंजन को टर्मिनल के बाहर सर्कुलेटिंग एरिया के पश्चिम में प्रदर्शनी के तौर पर लगाया गया है।
इस इंजन के इतिहास की बात करें तो यह कभी झाझा स्टेशन पर रखा रहता था और इस इंजन से तूफान एक्सप्रेस के साथ-साथ माल गाड़ियों को भी खींच कर पटना जंक्शन तक लाया जाता था। इस हेरिटेज इंजन का डिजाइन डब्लू जी है और लोको इंजन नंबर 9673 है। डब्लूजी इंजन 42 साल बाद वर्ष 1992 से बंद कर दिया गया, जिसके बाद इस इंजन को धरोहर के रूप में राजेंद्र नगर टर्मिनल पर लगाने का फैसला लिया गया। 1970-90 के बीच यह इंजन काफी विश्वसनीय हुआ करता था।

1991 में ऐसा दिखता था सहरसा का शंकर चौक और DB रोड।
12/03/2024

1991 में ऐसा दिखता था सहरसा का शंकर चौक और DB रोड।

ब्रिटिश काल 1861 में पटना स्टेशन के रूप में स्थापित पटना साहिब (पटना सिटी) स्टेशन 161 वर्ष का हो गया। इसे 1862 में दानाप...
12/03/2024

ब्रिटिश काल 1861 में पटना स्टेशन के रूप में स्थापित पटना साहिब (पटना सिटी) स्टेशन 161 वर्ष का हो गया। इसे 1862 में दानापुर-लखीसराय रेलखंड (इकहरी लाइन, ब्रौड गेज) के साथ स्थापित किया गया था। 1867 में दानापुर से फतुहा-दानापुर के बीच रेलवे लाइन के दोहरीकरण संपन्न हुआ। पटना साहिब स्टेशन कभी बेगमपुर स्टेशन के नाम से भी जाना जाता था। बुजुर्ग बताते हैं कि कुछ अवधि के लिए यह स्टेशन बांकीपुर स्टेशन के नाम से जाना जाता था। बाद में गया रेलवे लाइन से जब पटना को जोड़ा गया तब वर्ष 1939 में पटना जंक्शन का निर्माण हुआ। इसके बाद ही पुराने पटना स्टेशन का नाम बदल कर पटना सिटी किया गया।

तिलरथ रेलवे स्टेशन बेगुसराय जिले में है जो इसे भारत के बिहार राज्य का एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन बनाता है। तिलरथ का स्टे...
11/03/2024

तिलरथ रेलवे स्टेशन बेगुसराय जिले में है जो इसे भारत के बिहार राज्य का एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन बनाता है। तिलरथ का स्टेशन कोड नाम 'TIL' है। सबसे व्यस्त और आबादी वाले भारतीय राज्यों में से एक, बिहार के हिस्से के रूप में बेगूसराय जिले का तिलरथ रेलवे स्टेशन भारतीय रेलवे के शीर्ष सौ ट्रेन गुजरने वाले स्टेशनों में से एक जाना जाता है। तिलरथ (TIL) जंक्शन से गुजरने वाली ट्रेनों की कुल संख्या 125 है।

एक पुराने घर ने सारे रिश्ते संभालेऔर आज सबने अपना-अपना अलग घर बना लिया..
09/03/2024

एक पुराने घर ने सारे रिश्ते संभाले
और आज सबने अपना-अपना अलग घर बना लिया..

भारतीय क्रिकेटर को तो सभी लाइक करते है आज देखते है खान सर को कितने लोग लाइक करते हैं
09/03/2024

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08/03/2024

ये तस्वीर कौनसे समय की है ? और कौनसे राज्य की है ? और डिब्बे में क्या लेके जाते थे?
07/03/2024

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किऊल जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड: KIUL ), पूर्व मध्य रेलवे के दानापुर डिवीजन में प्रमुख रेलवे जंक्शनों में से एक है।...
07/03/2024

किऊल जंक्शन रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड: KIUL ), पूर्व मध्य रेलवे के दानापुर डिवीजन में प्रमुख रेलवे जंक्शनों में से एक है।

किऊल भारत के बिहार राज्य के लखीसराय जिले में किउल नदी के तट पर स्थित है । यह वह स्थान है जहां जैन धर्म के तीर्थंकर महावीर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया था । किऊल रेलवे स्टेशन हावड़ा-दिल्ली मुख्य लाइन पर है । हावड़ा , सियालदह , रांची और टाटानगर से आने वाली अधिकांश पटना , गया , भागलपुर , बरौनी और हावड़ा जाने वाली एक्सप्रेस ट्रेनें यहां रुकती हैं। किउल जंक्शन पूर्वी बिहार का एक व्यस्त स्टेशन और पूर्व मध्य रेलवे और पूर्वी रेलवे का प्रवेश स्टेशन है। स्टेशन में पांच मार्ग हैं: गया , बरौनी , भागलपुर , हावड़ा और पटना










भोजपुरी के सुपरस्टार पवन सिंह, 2 साल से अपनी पत्नी से अलग रह रहे थे लेकिन अब दोनों के बीच समंजन बैठ गई है। अब एक बार फिर...
07/03/2024

भोजपुरी के सुपरस्टार पवन सिंह, 2 साल से अपनी पत्नी से अलग रह रहे थे लेकिन अब दोनों के बीच समंजन बैठ गई है। अब एक बार फिर से पवन सिंह अपनी क्यूट पत्नी ज्योति सिंह संग नजर आ सकते हैं। हाल ही में इनका एक तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है जो फैंस को काफी पसंद आता है।

70 के दशक में बारात रवानगी का दृश्यबीगोद जिला- भीलवाड़ा (राजस्थान)
07/03/2024

70 के दशक में बारात रवानगी का दृश्य
बीगोद जिला- भीलवाड़ा (राजस्थान)

डॉली चायवाला नागपुर का सबसे प्रसिद्ध चाय टपरी में से एक है । सोशल मीडिया के कारण उनकी नागपुर में काफी ज्यादा चर्चा है । ...
06/03/2024

डॉली चायवाला नागपुर का सबसे प्रसिद्ध चाय टपरी में से एक है । सोशल मीडिया के कारण उनकी नागपुर में काफी ज्यादा चर्चा है । हाल ही में जब दुनिया के सबसे धनी आदमी बिल गेट्स भारत आए तब उन्होंने भी डॉली चायवाला के यहां चाय की चुस्की ली । जिसकी फोटो और वीडियो इस समय सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा वायरल हो रही है और लोग विश्वास नहीं कर पा रहे है कि सोशल मीडिया किसी व्यक्ति को कहां से कहा तक पहुंचा सकता है।

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