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पत्रकार Aarju Siddiqui बता रहे हैं कि,पत्रकारों से खचाखच भरे लल्लनटॉप के स्टूडियो में इंटरव्यू देने आए नाना पाटेकर ने एक...
25/06/2024

पत्रकार Aarju Siddiqui बता रहे हैं कि,

पत्रकारों से खचाखच भरे लल्लनटॉप के स्टूडियो में इंटरव्यू देने आए नाना पाटेकर ने एकाएक जब सौरभ द्धिवेदी से पूछा की क्या यहाँ कोई मुसलमान है?
तो सौरभ सकपका गए, फिर संभलते हुए बताया कि कैमरा के पीछे खड़ा वो शख्स मुसलमान है।

मुख्यधारा के पत्रकारिता में किसी तरह जैसे-तैसे ठेल-ठाल के कुछ मुसलमान पहुँचते भी हैं तो उन्हें पावर के पॉजिशन से दूर रखने की ख़ूब कोशिश की जाती है।

उसे पत्रकारिता के तकनीकि क्षेत्रों में ढकेला जाता है। रिपोर्टिंग और वो भी कैमरे के आगे तक पहुँचने में उसे गैर-मुस्लिम पत्रकारों से 100 गुणा ज़्यादा मेहनत करना होता है।
कई बार वो मेहनत भी बेकार जाता है। क्यूंकि संस्थान उसे किसी निर्णायक जगहों से पहले ही निषेध कर चुके होते हैं।

मीडिया चैनलों में कैमरे के पीछे काम करने वाले मुसलमान आपको हजारो की तादाद में मिल जाएगें, लेकिन कैमरे के आगे काम करने वाले मुसलमान एक्का-दुक्का ही मिलेगें और जो मिलेगें भी कमोबेश अपोलोजेटिक मुसलमान होगें।

21/02/2024

नकबा की चाबियाँ
By Adnan Kafeel Darwesh

खड़खड़ाती हैं समुद्र की चाबियाँ
आधी रात
जब वो लेता है बायीं करवट
पहाड़ों और मैदानों की चाबियाँ
हिलती हैं गुच्छों में
एक मद्धम लय के साथ
एक दूसरे से टकराती हुई
सूरज और चाँद की चाबियाँ
गिर जाती हैं अंधे कुओं में
दिन और रात की चाबियाँ
चुरा लेती हैं पलटनें
कुछ बेनाम चाबियाँ
खड़खड़ाती हैं एक साथ
एक नारंगी के भीतर देर तक
जब वो भर रहा होता है
एक छटपटाती हुई ख़ुश्बू से
ज़ैतून के पेड़
तालों की शक्ल में खड़खड़ाते हैं
टहनियाँ मस्काते
जब फूटने लगता है
उनके भीतर का तेल
ज़मीन खड़खड़ाती है
जंग लगे तालों की तरह
मिसाइलों के कर्कश शोर के दरमियान
रोज़ स्वप्न में दिखती हैं
दीवार पर टंगी
ज़ंग लगी चाबियाँ
जो टँकी रहती हैं
मुर्दार आँखों में उम्र भर
जिनमें भरा होता है सफ़ेद धुआँ
बूढ़ी हथेलियाँ सौंपती हैं उनको
मुट्ठी में जकड़ी चाबियाँ
चुपचाप एक दिन
जिनकी ज़िंदगियाँ हैं आसेबज़दा
मौत की कालिख से
और जिनके जूते हैं पसीजते हुए
उनके ही ख़ून से...
चाबियों का लोहा
उतर जाता है उनके सारे बदन में
उनके पुरअसरार ख़ून में
बुलबुलों की तरह फूटता
ज़ैतून के तेल की तरह चमकता
और नारंगी की ख़ुश्बू की तरह गमकता
और उनके ख़ाब में दस्तक देता रहता है बार-बार
उन्हें बताने को
कि उन्हें पहुँचना है आख़िरकार उन तालों तक
किसी भी तरह
जिन्हें टैंकों ने चबा लिया है
अपने ताक़तवर जबड़ों से
जिन्हें निकालने के लिए
उतरना है उन्हें
उन टैंकों के पेट तलक
उन्हें खोलने को हमेशा के लिए
ताकि खुल सके
धरती से आकाश तलक बंद ये
चुराई हुई दुनिया।
°°°°
*‘नकबा’ के अरबी माने त्रासदी के हैं, जो फ़िलिस्तीनी इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना के लिए अब प्रयुक्त होता है जो सन् 1948 में घटित हुई जो इस्राईली क़ब्ज़े, फ़िलिस्तीनियों के व्यापक विस्थापन और जनसंघार का सूचक है। फ़िलिस्तीनी इतिहास की इस दिल दहलाने वाली घटना को फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध की संस्कृति ने चाबियों के रूपक में बदल दिया है। लाखों की संख्या में विस्थापित फ़िलिस्तीनी अब भी उन घरों की चाबियों को अपने पास रखे हुए हैं जिनमें से उन्हें खदेड़कर क़ब्ज़ा कर लिया गया था।
'पक्षधर' में पूर्व प्रकाशित

गुस्ताख़ी माफ़!
06/07/2023

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