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एक दिन एक बुजुर्ग डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा..."चिट्ठी ले लीजिये।"आवाज़ सुनते ही तुरंत अंदर से एक ल...
18/12/2024

एक दिन एक बुजुर्ग डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा..."चिट्ठी ले लीजिये।"

आवाज़ सुनते ही तुरंत अंदर से एक लड़की की आवाज गूंजी..." अभी आ रही हूँ...ठहरो।"

लेकिन लगभग पांच मिनट तक जब कोई न आया तब डाकिये ने फिर कहा.."अरे भाई! कोई है क्या, अपनी चिट्ठी ले लो...मुझें औऱ बहुत जगह जाना है..मैं ज्यादा देर इंतज़ार नहीं कर सकता....।"

लड़की की फिर आवाज आई...," डाकिया चाचा , अगर आपको जल्दी है तो दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए,मैं आ रही हूँ कुछ देर औऱ लगेगा ।

" अब बूढ़े डाकिये ने झल्लाकर कहा,"नहीं,मैं खड़ा हूँ,रजिस्टर्ड चिट्ठी है,किसी का हस्ताक्षर भी चाहिये।"

तकरीबन दस मिनट बाद दरवाजा खुला।

डाकिया इस देरी के लिए ख़ूब झल्लाया हुआ तो था ही,अब उस लड़की पर चिल्लाने ही वाला था लेकिन, दरवाजा खुलते ही वह चौंक गया औऱ उसकी आँखें खुली की खुली रह गई।उसका सारा गुस्सा पल भर में फुर्र हो गया।

उसके सामने एक नन्ही सी अपाहिज कन्या जिसके एक पैर नहीं थे, खड़ी थी।

लडक़ी ने बेहद मासूमियत से डाकिये की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाया औऱ कहा...दो मेरी चिट्ठी...।

डाकिया चुपचाप डाक देकर और उसके हस्ताक्षर लेकर वहाँ से चला गया।

वो अपाहिज लड़की अक्सर अपने घर में अकेली ही रहती थी। उसकी माँ इस दुनिया में नहीं थी और पिता कहीं बाहर नौकरी के सिलसिले में आते जाते रहते थे।

उस लड़की की देखभाल के लिए एक कामवाली बाई सुबह शाम उसके साथ घर में रहती थी लेकिन परिस्थितिवश दिन के समय वह अपने घर में बिलकुल अकेली ही रहती थी।

समय निकलता गया।

महीने ,दो महीने में जब कभी उस लड़की के लिए कोई डाक आती, डाकिया एक आवाज देता और जब तक वह लड़की दरवाजे तक न आती तब तक इत्मीनान से डाकिया दरवाजे पर खड़ा रहता।

धीरे धीरे दिनों के बीच मेलजोल औऱ भावनात्मक लगाव बढ़ता गया।
एक दिन उस लड़की ने बहुत ग़ौर से डाकिये को देखा तो उसने पाया कि डाकिये के पैर में जूते नहीं हैं।वह हमेशा नंगे पैर ही डाक देने आता था ।

बरसात का मौसम आया।

फ़िर एक दिन जब डाकिया डाक देकर चला गया, तब उस लड़की ने,जहां गीली मिट्टी में डाकिये के पाँव के निशान बने थे,उन पर काग़ज़ रख कर उन पाँवों का चित्र उतार लिया।

अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाई से उस नाप के जूते मंगवाकर घर में रख लिए ।

जब दीपावली आने वाली थी उससे पहले डाकिये ने मुहल्ले के सब लोगों से त्योहार पर बकसीस चाही ।

लेकिन छोटी लड़की के बारे में उसने सोचा कि बच्ची से क्या उपहार मांगना पर गली में आया हूँ तो उससे मिल ही लूँ।

साथ ही साथ डाकिया ये भी सोंचने लगा कि त्योहार के समय छोटी बच्ची से खाली हाथ मिलना ठीक नहीं रहेगा।बहुत सोच विचार कर उसने लड़की के लिए पाँच रुपए के चॉकलेट ले लिए।

उसके बाद उसने लड़की के घर का दरवाजा खटखटाया।
अंदर से आवाज आई...." कौन?

" मैं हूं गुड़िया...तुम्हारा डाकिया चाचा ".. उत्तर मिला।

लड़की ने आकर दरवाजा खोला तो बूढ़े डाकिये ने उसे चॉकलेट थमा दी औऱ कहा.." ले बेटी अपने ग़रीब चाचा के तरफ़ से "....

लड़की बहुत खुश हो गई औऱ उसने कुछ देर डाकिये को वहीं इंतजार करने के लिए कहा..

उसके बाद उसने अपने घर के एक कमरे से एक बड़ा सा डब्बा लाया औऱ उसे डाकिये के हाथ में देते हुए कहा , " चाचा..मेरी तरफ से दीपावली पर आपको यह भेंट है।

डब्बा देखकर डाकिया बहुत आश्चर्य में पड़ गया।उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे।

कुछ देर सोचकर उसने कहा," तुम तो मेरे लिए बेटी के समान हो, तुमसे मैं कोई उपहार कैसे ले लूँ बिटिया रानी ?

"लड़की ने उससे आग्रह किया कि " चाचा मेरी इस गिफ्ट के लिए मना मत करना, नहीं तो मैं उदास हो जाऊंगी " ।

"ठीक है , कहते हुए बूढ़े डाकिये ने पैकेट ले लिया औऱ बड़े प्रेम से लड़की के सिर पर अपना हाथ फेरा मानो उसको आशीर्वाद दे रहा हो ।

बालिका ने कहा, " चाचा इस पैकेट को अपने घर ले जाकर खोलना।
घर जाकर जब उस डाकिये ने पैकेट खोला तो वह आश्चर्यचकित रह गया, क्योंकि उसमें एक जोड़ी जूते थे। उसकी आँखें डबडबा गई ।

डाकिये को यक़ीन नहीं हो रहा था कि एक छोटी सी लड़की उसके लिए इतना फ़िक्रमंद हो सकती है।

अगले दिन डाकिया अपने डाकघर पहुंचा और उसने पोस्टमास्टर से फरियाद की कि उसका तबादला फ़ौरन दूसरे इलाक़े में कर दिया जाए।

पोस्टमास्टर ने जब इसका कारण पूछा, तो डाकिये ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और भीगी आँखों और रुंधे गले से कहा, " सर..आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा सकूँगा। उस छोटी अपाहिज बच्ची ने मेरे नंगे पाँवों को तो जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊँगा ?"

इतना कहकर डाकिया फूटफूट कर रोने लगा ।

(X से अनु पटेल जी की एक पोस्ट)

#लघुकथा #कहानी #कहानियां #हिन्दी

किसी के स्मृति मेंलिखी किसी की एक कविताकिसी और को किसी और की दिलाती है याद। मनुष्यबना हैएक से दुःखों से।कितनी उदास और खू...
17/12/2024

किसी के स्मृति में
लिखी
किसी की एक
कविता

किसी और को
किसी और की
दिलाती है याद।

मनुष्य
बना है
एक से दुःखों से।
कितनी उदास और खूबसूरत
है ये बात।।

किताब "गुप्त प्रेमपत्र" से एक कविता

17/12/2024
लड़कों के लिए एक कविता:"लड़के हमेशा खड़े रहेखड़ा रहना उनकी कोई मजबूरी नहीं रहीबस उन्हें कहा गया हर बारचलो तुम तो लड़के ह...
17/12/2024

लड़कों के लिए एक कविता:

"लड़के हमेशा खड़े रहे
खड़ा रहना उनकी कोई मजबूरी नहीं रही
बस उन्हें कहा गया हर बार
चलो तुम तो लड़के हो, खड़े हो जाओ
तुम मलंगों का कुछ नहीं बिगड़ने वाला।

छोटी-छोटी बातों पर ये खड़े रहे कक्षा के बाहर
स्कूल विदाई पर जब ली गई ग्रुप फोटो
लड़कियाँ हमेशा आगे बैठी
और लड़के बगल में हाथ दिए पीछे खड़े रहे
वे तस्वीरों में आज तक खड़े हैं।

कॉलेज के बाहर खड़े होकर
करते रहे किसी लड़की का इंतजार
या किसी घर के बाहर घंटों खड़े रहे
एक झलक एक हाँ के लिए
अपने आपको आधा छोड़
वे आज भी वहीं रह गए हैं।

बहन-बेटी की शादी में खड़े रहे मंडप के बाहर
बारात का स्वागत करने के लिए
खड़े रहे रात भर हलवाई के पास
कभी भाजी में कोई कमी ना रहे
खड़े रहे खाने की स्टाल के साथ
कोई स्वाद कहीं खत्म न हो जाए
खड़े रहे विदाई तक दरवाजे के सहारे
और टैंट के अंतिम पाईप के उखड़ जाने तक
बेटियाँ-बहनें जब लौटेंगी
वे खड़े ही मिलेंगे।

वे खड़े रहे पत्नी को सीट पर बैठाकर
बस या ट्रेन की खिड़की थाम कर
वे खड़े रहे बहन के साथ घर के काम में
कोई भारी सामान थामकर
वे खड़े रहे माँ के ऑपरेशन के समय
ओ. टी. के बाहर घंटों
वे खड़े रहे पिता की मौत पर अंतिम लकड़ी के जल जाने तक
वे खड़े रहे दिसंबर में भी
अस्थियाँ बहाते हुए गंगा के बर्फ से पानी में।

लड़कों रीढ़ तो तुम्हारी पीठ में भी है
क्या यह अकड़ती नहीं?

- सुनीता करोथवाल"

"I cannot teach anybody anything. I can only make them think."
09/12/2024

"I cannot teach anybody anything. I can only make them think."

हिन्दी की बेहतरीन कविताओं में से एक:"चीज़ों में कुछ चीज़ें बातों में कुछ बातें वो होंगी जिन्हें कभी देख नहीं पाओगे इक्की...
07/12/2024

हिन्दी की बेहतरीन कविताओं में से एक:

"चीज़ों में कुछ चीज़ें
बातों में कुछ बातें वो होंगी
जिन्हें कभी देख नहीं पाओगे
इक्कीसवीं सदी में

ढूँढ़ते रह जाओगे
बच्चों में बचपन
जवानों में यौवन
शीशों में दरपन
जीवन में सावन
गाँव में अखाड़ा
शहर में सिंघाड़ा
टेबल की जगह पहाड़ा
और पाजामे में नाड़ा

ढूँढ़ते रह जाओगे
आँखों में पानी
दादी की कहानी
प्यार के दो पल
नल-नल में जल
संतों की बानी
कर्ण जैसा दानी
घर में मेहमान
मनुष्यता का सम्मान
पड़ोस की पहचान
रसिकों के कान
ब्रज का फाग
आग में आग
तराजू पे बट्टा
और लड़कियों का दुपट्टा

ढूँढ़ते रह जाओगे
भरत-सा भाई
लक्ष्मण-सा अनुयायी
चूड़ी-भरी कलाई
शादी में शहनाई
बुराई की बुराई
सच में सच्चाई
मंच पर कविताई
ग़रीब को खोली
आँगन में रंगोली
परोपकारी बंदे
और अर्थी को कंधे

ढूँढ़ते रह जाओगे
अध्यापक, जो सचमुच पढ़ाए
अफ़सर, जो रिश्वत न खाए
बुद्धिजीवी, जो राह दिखाए
क़ानून, जो न्याय दिलाए
ऐसा बाप, जो समझाए
और ऐसा बेटा, जो समझ जाए

ढूँढ़ते रह जाओगे
गाता हुआ गाँव
बरगद की छाँव
किसानों का हल
मेहनत का फल
मेहमान की आस
छाछ का गिलास
चहकता हुआ पनघट
लंबा-लंबा घूँघट
लज्जा से थरथराते होंठ
और पहलवान का लँगोट

ढूँढ़ते रह जाओगे
कट्टरता का उपाय
सबकी एक राय
डंकल के पंजे में देश आज़ाद
मरने का मज़ा, जीने का स्वाद
नेता जी को चुनाव जीतने के स्वाद
दुर्घटनाओं से रहित साल
गूदड़ी में होने वाले लाल
आँखों में काजल
प्रेम में पागल
साँस लेने को ताज़ा हवा
और सरकारी अस्पताल में दवा

ढूँढ़ते रह जाओगे
आपस में प्यार
भरा-पूरा परिवार
नेता ईमानदार
दो रुपए उधार
कल में आज
संगीत में रियाज़
बातचीत का रिवाज
दोस्ती में लिहाज़
सड़क किनारे प्याऊ
संबोधन में चाचा-ताऊ

ढूँढ़ते रह जाओगे
नेहरू जैसी इज़्ज़त
सुभाष जैसी हिम्मत
पटेल के इरादे
शास्त्री सीधे-सादे
पन्ना धाय का त्याग
राणा प्रताप की आग
अशोक का बैराग
तानसेन का राग
चाणक्य का नीति-ज्ञान
विवेकानंद का स्वाभिमान
इंदिरा गांधी जैसी बोल्ड
और महात्मा गांधी जैसा गोल्ड
ढूँढ़ते रह जाओगे।"

लेखक - अरुण जैमिनी

ये पंक्तियाँ "जाना जरूरी है क्या" किताब से है, जो कि ऐश्वर्या शर्मा की बेहतरीन कविताओं का संग्रह है। अगर आपको नए हिन्दी ...
04/12/2024

ये पंक्तियाँ "जाना जरूरी है क्या" किताब से है, जो कि ऐश्वर्या शर्मा की बेहतरीन कविताओं का संग्रह है। अगर आपको नए हिन्दी लेखकों को पढ़ने का मन है तो इस किताब को जरूर पढ़ना चाहिए।

यह अपने पंक्ति प्रकाशन से प्रकाशित की गई है।

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