
04/02/2025
जाता हुआ दिसंबर
सुबह की गुनगुनी धूप में प्रभा और दादी आंगन में बैठी हैं। रोज़ सुबह की चाय दादी को यहीं आंगन में पसंद आती है।
बड़े से घर में जहां हर वक्त हंसी मजाक शोर हुआ करता था वहां आज सन्नाटा बिखर गया है। कोरोना ने इस घर से प्रभा के पति, बड़ा बेटा,बहू, पोते को छीन लिया।
सारा घर अब उजाड़ बियाबान सा लगता। प्रभा, दादी और छोटे बेटे का परिवार सब रहते तो साथ लेकिन सब अपने में सिमटे हुए।
किसी में हिम्मत नहीं बची थी की वो दूसरे को हौसला दे हिम्मत बढ़ाए। सभी अपने अपने दुःख में लिपटे हुए जिए जा रहे थे।
सबसे मुश्किल दादी के लिए था जिनकी आंखों के सामने इतने सारे लोग बिछड़ गए थे। कितना कठिन होता है जिन्हे कंधा देना हो उनको ही अंतिम यात्रा में बिदाई देनी पड़े।
उम्र के अस्सी दशक देख चुकी दादी शरीर से जितनी मजबूत थीं उससे ज्यादा अब उन्होंने अपने मन को मजबूत कर लिया था। घर का उदास माहौल उनसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था। ठीक है की अपनों के जाने का दुःख खत्म नहीं होता लेकिन जो जिंदा हैं उनके लिए तो जीना पड़ता है, दुःख को दबाकर हंसी लानी पड़ती है चेहरे में। जीवन की स्लेट पर पुरानी इबारत मिटाकर नई कहानी लिखने का समय आ गया है ऐसा उन्हें लग रहा था।
चाय पीते हुए उन्होंने प्रभा से कहा "बहू! देखो ये सुबह की धूप कितनी प्यारी लगती है, पर इसके लिए सारी रात ठंड और अंधकार भी सहना पड़ता है, ऐसे ही जीवन में बुरा समय जब आता है तो उसके आगे अच्छा वक्त भी रखा होता है। उस बुरे समय से जूझना उससे लड़कर आगे निकलना आसान नहीं होता पर नामुमकिन भी नहीं होता। जो छोड़ गए हमें उनकी यादें जीवन भर साथ रहेंगी, पर यादों के सहारे जीवन नहीं व्यतीत किया जा सकता। भविष्य के लिए अतीत का त्याग करना जरूरी होता है बेटी। तुम्हें ही सम्हालना है परिवार को। जाते हुए साल को विदा करो और आने वाले समय का स्वागत करो।"
प्रभा की उदास आंखों की नमी दादी की बातों से जैसे भाप बनकर उड़ने लगी। उसने तय किया कि साल के आखरी महीने की शेष होती तारीखों को विदा कर वह भी नए साल में नई शुरुआत करेगी।
आखिर जो साल चला जाता है वो लौटकर नहीं आता। बस यादें रह जाती हैं उनकी।
© संजय मृदुल