Mantra Tantra Yantra Vigyan Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji

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Mantra Tantra Yantra Vigyan Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji Mantra Ta**ra Yantra Vigyan (formerly Mantra Ta**ra Yantra Vigyan) is a monthly magazine containing

भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा कही गयी गीता जी में श्री कृष्ण ने अवतार लेने के कारण और कर्मो का वर्णन करते हुये लिखा है कि----

यदायदा हि घर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मान स्रुजाम्यहम ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दूषक्रुताम ।
घर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥


अर्थात, साधू पुरुषो के उद्धार के लिए, पापकर्म करने वालो का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मे युग-

युग मे प्रकट हुआ करता हू।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव ।त्वमेव सर्वम् मम देव देव ॥

परमपूज्य डा.नारायण दत्त श्रीमाली जी
(परमहंस स्वामी निखिलश्वेरानंद जी )

सदगुरुदेव शरणम् गच्छामि

सर्वश्रेष्ठ एवं ऋषियों में भी परम वन्दनीय ऋषिगण निम्नवत हैं, जिनका उल्लेख कूर्म पुराण, वायु पुराण तथा विष्णु पुराण में भी प्राप्त होता है! इन ऋषियों ने समय-समय पर शास्त्र तथा सनातन धर्म की मर्यादा बनाये रखने के लिए सतत प्रयास किया हैं! अतः ये आज भी हम लोगों के लिए वन्दनीय हैं -
स्वयंभू,
मनु,
भारद्वाज,
वशिष्ठ,
वाचश्रवस नारायण,
कृष्ण द्वैपायन,
पाराशर,
गौतम,
वाल्मीकि,
सारस्वत,
यम,
आन्तरिक्ष धर्म,
वपृवा,
ऋषभ,
सोममुख्यायन,
विश्वामित्र,
मुद्गल,
निखिल (डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली)

मैंने मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान पत्रिका क्यों प्रारम्भ की?
यह कदम हम नहीं उठाएंगे तो और कौन उठाएगा?

हम जिस युग में साँस ले रहे हैं, वह संघर्ष, स्वार्थ, छल, प्रतिस्पर्धा तथा येन-केन प्रकारेण अपने अस्तित्व को बचाए रखने का युग हैं, मानवीय भावनाओं को तक पर रख दिया गया हैं, और अपने आप भौतिकता के कीचड में इस प्रकार से लुंज-पुंज हो रहे हैं हैं कि आँख उठाकर देखने, सोचने और समझने का समय ही नहीं मिल पा रहा हैं, कुछ क्षणों के लिए हमारे मानस में यह चिंतन आता भी हैं कि यह क्या हो रहा हैं? हम किस तरफ बढ़ रहे हैं? क्या हमारे जीवन का यही श्रेय प्रेय हैं? क्या हमारे जीवन की पूर्णता इसी में हैं? पर काल संघर्षप्रवाह में दुसरे ही क्षण लिप्त होकर भूल जाते हैं और उसी संघर्ष, आपाधापी तथा स्वार्थ चक्र में घूमने के लिए विवश हो जाते हैं.

यह युग संक्रांति काल हैं, जिसमें पुरानी सभ्यता के प्रति मोह हैं, पर नई सभ्यता में लिप्त हैं, ईश्वर के अस्तित्व को मानते हैं, पर अनास्था की साँस लेकर दुविधाग्रस्त भी हैं, पूर्वजों के प्रति सम्मान हैं पर नई पीढी के आगे किंकर्तव्य विमूढ़ भी हैं, हमारे प्राचीन ज्ञान विज्ञान के प्रति ललक हैं, पर मार्ग दर्शन के बिना हताश निराश और उदास हैं, हम जानते हैं कि हम भारतीय हैं, उस भारत के निवासी हैं, जो विश्व का सिरमौर था, ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी था, चिंतन के क्षेत्र में जिसकी समता करने वाला और कोई नहीं था ...... और इसीलिए हम अपने आपको गौरवशाली समझते हैं.... हमारे पूर्वजों और ऋषि मुनियों की चर्चा होते ही हमारा सीना फूल जाता हैं, पूर्वजों द्वारा प्रणीत साहित्य, मंत्र तंत्र को लेकर आज भी विश्व के सामने गर्वोन्नत मस्तिष्क से खड़े हो पते हैं, क्योंकि यह साहित्य शाश्वत और अमर हैं, यह साहित्य अपने आप में दुर्लभ और अप्रतिम हैं, आज विश्व ने अन्य क्षेत्रों में भले ही आश्चर्यजनक प्रगति कर दी हो, पर जर्मनी, जापान प्रभति अन्य पाश्चात्य देश आज भी मंत्र तंत्र के क्षेत्र में भारत का लोहा मानने को बाध्य हैं. आज भी इस प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने के लिए वे हमारी तरफ़ ताकने को विवश हैं.

और इसका प्रमाण हैं विदेशियों के झुंड के झुंड का भारत की और आना, ध्यान, योग साधना के प्रति दीवानगी की हद तक जाना, हमारे मंत्र तंत्र गर्न्थों का आए दिन चोरी से विदेशों में ले जाना और मंत्र तंत्रों की खोज में सब कुछ भूल भुलाकर भटकना.....!

पर हम क्या कर रहे हैं कभी हमने दो क्षण रुक कर सोचा हैं? इस भाग दौड़ में दो क्षण साँस लेकर कभी यह विचार किया हैं कि हम अपने पूर्वजों की थाती को सुरक्षित रखने के लिए क्या कर रहे हैं? जब विदेशी प्रतिभाशाली लोग हजारों लाखों मील की यात्रा कर यहाँ इसके लिए भटक रहे हैं तब हम अपने घर में बैठे इसके लिए कुछ कर पा रहे हैं? नहीं.... कभी नहीं.... कभी नहीं
सोचा.... कभी सोचने का उपक्रम भी नहीं किया कभी विचार करने को समय ही नहीं मिला....!

और हमारी इस शिथिलता तथा उदासीनता से ही हमारी आगे की पीढी उच्छ्रन्खल होती जा रही हैं. ईश्वर और धर्म का जमकर मखौल उड़ाया जा रहा हैं, अनुशासन और नियमों को ताक पर रख दिया हैं और हमारी विचारधारा दर्शन, चिंतन, मनन मंत्र तंत्र आदि के प्रति घृणा के स्तर तक पहुँच गई हैं और यह सब कुछ हमारी आंखों के सामने हो रहा हैं, हम हाथ पर साथ धरे बैठे हैं, और वे हमारे पूरे इतिहास की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं. हम निष्क्रिय हैं और वे हमारे सुदीर्घ चिंतन, पूर्वजों की थाती तथा मानवीय मूल्यों का उपहास करने में गौरव अनुभव करने लगे हैं और यह सब कुछ हमारे सामने हमारी आंखों के सामने हो रहा हैं.....

क्या इस उदासीनता के लिए आने वाला इतिहास हमें क्षमा करेगा? आने वाला समय जब पुकार पुकार कर इन प्रश्नों के उत्तर पूछेगा, तब आपके पास क्या उत्तर होगा? आप क्या जवाब देंगे, आपके पास प्रत्युत्तर देने के लिए रह भी क्या
जाएगा?

आज चारों तरफ उच्छ्रंखलता और नग्नता का बोलबाला हैं, नई पीढी डिस्कों के प्रति आस्थावान होती जा रही हैं, घटिया साहित्य से पूरा बाजार भरा पड़ा हैं, लूटमार, बलात्कार, व्यभिचार और अश्लील साहित्य प्रत्येक के हाथो में हैं, फिल्मी पत्रिकाएँ उनके मानस में हैं, हमारे धर्म और साहित्य का जमकर मखौल इन पत्रिकाओं के मध्यम से उड़ाया जा रहा हैं, और इसी का परिणाम हैं की आने वाली पीढी की पकड़ हमारे हांथों से छूटती जा रही हैं, वह ईश्वर, धर्म और मंत्र तंत्र के प्रति अनास्थावान बनने से दिग्भ्रमित हैं, विचार शून्य हैं, परेशान और व्यथित हैं, पुराना उसके हाथ से छुट गया हैं, नया उसकी पकड़ में नहीं आ रहा हैं और इसीलिए वह त्रिशंकु की भांति दुविधा ग्रस्त हैं, अश्लील, अनास्थापूर्ण पत्र पत्रिकाओं ने उसके मानस को आंदोलित भ्रमित और उच्छ्रन्खल बना दिया हैं.

ऐसी स्थिति में अब आपको आवश्यकता हैं..... अब जरुरत हैं कि उन्हें मार्गदर्शन दिया जायें, उन्हें श्रेष्ठ साहित्य से परिचित कराया जाए, पूर्वजों के प्रति आस्था पैदा की जायें, मानवीय मूल्यों का ज्ञान दिया जायें और मंत्र तंत्र के प्रति ललक जाग्रत की जायें, उनके सामने जहर का प्याला भरा पड़ा हैं उसमें अमृत उंडेला जायें, इस घटाटोप अंधकार में दीपक जलाया जायें.

और इसी घटाटोप अंधकार में मैंने एक दीपक जलाने का प्रयत्न किया हैं, इस निविड़ कालरात्रि में रौशनी की किरण बिखरने का प्रयत्न किया हैं, जिसके सहारे लक्ष्य तक पहुँचा जा सकें, हम अपने पूर्वजों से, अपने साहित्य से और अपने आप से परिचित हो सकें, हमारे हृदय में प्रकाश फैल सकें, इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर इस पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया हैं.

इसके पीछे धन या यश प्राप्त करने की कोई लालसा नहीं हैं, चिंतन यही हैं कि इस उपापोह के युग में यदि कुछ भी नहीं किया गया तो क्या होगा? यदि हम ही कदम नहीं उठाएंगे तो कौन उठाएगा? यदि हम ही रौशनी की किरण नहीं
बिखेरेंगे तो कौन बिखेरेंगा?

मेरा लक्ष्य, मेरा उद्देश्य तो केवल मात्र इतना ही हैं कि हम अपनी लुप्त होती हुयी संस्कृति को जीवित रख सकें, जो मंत्र तंत्र समाप्त प्राय हो रहे हैं, उन्हें प्रकाश में ला सकें, सुरक्षित रख सकें, दीर्घजीवी बना सकें.

मैंने यह गुरुत्व भर इसीलिए उठाया हैं कि मेरे पास आप लोगों का सहयोग हैं, इस कार्य में मेरा हाथ बंटाने का जो संकल्प दोहराया हैं वह मेरे लिए आह्लाद कारक हैं. मुझे आप पर भरोसा हैं. (जनवरी १९८१ से उद्धृत)

सस्नेह तुम्हारा
नारायण दत्त श्रीमाली.

मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान

जनवरी 2001.

पेज 28 से

Mantras, Ta***ic Procedures, Talisman, Astrology, Sadhanas, Yoga, Ayurveda, Meditation, Hypnotism, Numerology, Palmistry, Alchemy, Occult sciences etc. It details numerous Sadhanas and Dikshas to realise ambitions & resolve tensions, worries & problems regarding finance, domestic, marital , black magic, intelligence, health etc. It also includes practical methods to attain spiritual upliftment , kundalini activation etc. You can attain Totality and Perfection by taking Dikshas from Reverent Trimurti Gurudevs and performing Sadhanas. II ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:II
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः II
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमःII
अखण्ड मंडलाकार व्याप्तं येन चराचरम II
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः II

मैं तुम्हे इसी जीवन मैं ब्रह्मत्व तक पंहुचा दूंगा , यह मेरी गारंटी है , पर गारंटी तब हो सकती है जब तुम अपने आप को मिटा सको , जब तुम अपने आप को पूर्णता से समाप्त कर सको ...

अनंत देवी देवता हैं, अनंत उपासना पद्धति है, कहाँ कहाँ जाकर सिर झुकाओगे, किन किन दरवाज़ों पर जाकर नाक रगडोगे, जीवन के दिन तो थोड़े से ही हैं, गिनती के हैं. वे तो ऐसे ही समाप्त हो जायेंगे, फिर क्या मिलेगा? जीवन यूँ ही भटकते हुए मंदिरों में , तीर्थों में, साधू सन्यासियों के पास समाप्त हो जायेगा. यदि तुम्हें सदगुरु मिल गये हैं, तो सब कुछ छोड़कर उनके चरण क्यूँ नहीं पकड़ लेते.
परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद

GIVE ME FAITH AND DEVOTION, AND I WILL GIVE YOU FULFILMENT & COMPLETENESS
- ParamPujya Pratahsamaraniya Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji

मेरे गुरूजी ...

मेरे गुरूजी को भला किसी परिचय की क्या आवश्यकता ? वे कोई सूर्य थोड़े ही हैं जो रात्रिकाल में लुप्त हो जायें; वे चन्द्रमा भी नहीं जो मात्र रात्रि में ही दृष्टिगोचर हों | वे देव भी नहीं हैं क्योंकि वे कथाओं, शास्त्रों, मान्यताओं तक ही सीमित नहीं हैं और वे साधारण मनुष्य भी नहीं हैं क्योंकि वे सिद्ध हैं, ज्ञानी हैं, पूर्ण पुरुष हैं |

मेरे गुरूजी तो मात्र मेरे गुरूजी हैं | वे मेरी माता भी हैं, पिता भी और मार्गदर्शक भी | वे मेरे सर्वोत्तम मित्र हैं तथा मेरी सर्वाधिक मूल्यवान निजी संपत्ति भी | वे मेरे प्राण हैं अतैव मेरी अजरता, अमरता के स्रोत हैं | सारांश यह है की वे मेरे जीवन का सार हैं | जैसे मैं उनका परिचय हूँ वे मेरा परिचय हैं |

मेरे गुरूजी सहीं अर्थों में भारतीय ऋषि हैं, जिनके चरणों में बैठना ही एक सुखद अनुभव है, जीवन की पूर्णता है | वे तपस्वी हैं, सन्यासी हैं, गृहस्थ हैं, विद्वान हैं, श्रेष्ठतम शिष्य हैं, महानतम गुरु हैं, सर्वज्ञ हैं, सर्वस्व हैं फिर भी निरहंकार हैं, निर्विकार हैं |

मेरे गुरूजी तो केवल मेरे गुरूजी हैं ...
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
-- गुरूजी के श्री चरणों में नतमस्तक एक शिष्य --

गुरु परम दैवतम........मैं तुम्हें नया धर्म दे रहा हूँ जहाँ बुद्ध का ध्यान हैं, राम का शील हैं, कृष्ण का प्रेम हैं, महावीर की अहिंसा हैं. इस "गुरु धर्म" में मुस्कराहट हैं, खिलखिलाहट हैं, हंसी हैं और आनंद की हल्की-हल्की फुहार हैं. तुम मेरे पास आओ मैं तुम्हें "गुरु धर्म" में दीक्षित करता हूँl!!श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः!!!! करोमि त्वत्पूजाम सपदि सुखदो में भवविभो !!(हे प्रभु निखिल! मैं अपनी पूजा का फल मात्र इतना ही चाहता हूँ की आप के श्रीचरणों से कभी विलग न होऊं)
Please Check My Webpage for More Abt. Guruji.
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान केवल पत्रिका ही नहीं बल्कि कलयुग की श्रीमदभगवदगीता हैं, जिसका एक-एक मंत्र किसी के भी दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने की क्षमता रखते हैं. यह हमारे ऋषि मुनियों की धरोहर हैं. जनवरी 1981 से हर माह प्रकाशित सभी आयु के लोगो के लिए दुर्लभ, लुप्त तथा गुप्त साधनाओ और दीक्षाओं का ज्ञान जो कि केवल विशिष्ट साधू संतो में प्रचलित थी.यह मेरा नहीं मेरे गुरु का परिचय हैं.यह मेरे नहीं मेरे गुरूजी के शब्द हैं.और यह मैं नहीं सिर्फ एक शिष्य हैं,जिसकी चाहत हैं कि गुरूजी के हर कार्य को कर गुजरने की.
सिद्धाश्रम जाना हैं ना : मेरे साथ चलना हैं तो जीवन में तुम्हें अपना दृष्टिकोण बदलना पड़ेगा, जो विचार तुम्हारे भीतर भरे हुए हैं, उन सबको निकालकर शून्य की स्थिति उत्पन्न करनी होगी, तभी तो तुम आनंद का अनुभव कर सकोगे, किसी भी यात्रा पर चलने के लिए तैयार हो सकोगे, और मैं भी विश्वास के साथ यह देख सकूँगा कि अब यह शिष्य तैयार हैं, अब यह शिष्य कायर नहीं हैं, अब यह शिष्य अपनी शक्ति को, अपने लक्ष्य को, अपने आनंद को पहिचान गया हैं और इसे कार्य दिया जा सकता हैं, इसे विचार दिए जा सकते हैं, जो सीधे उसके ह्रदय में स्थान बनायेंगे न कि तर्क - वितर्क करते हुए मस्तिष्क में ही मापतौल करेंगे. Pujya Gurudev Shri NandKishore Shrimaliji, 14 A, Main Road, High Court Colony, Near Senapati Bhavan, Jodhpur 342001 Phone : 0291-2638209, 2624081

तुम अपने आप को पहचानो, मुझसे अपने संबंधों को पहचानो, मुझसे उऋण होने का एकमात्र यही उपाय हैं. -पूज्यपाद गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली.

परमपूज्य गुरुदेव श्री कैलाश चन्द्र श्रीमाली जी से व्यक्तिगत परामर्श और आशीर्वाद हेतु गुरुदेव के निम्न निजी नंबर पर

साय:6 से 8 बजे बात करे |
जोधपुर -02912517025 ,+91 -7568939648
दिल्ली -011 -27351006 ,मो --09013859760

"PRACHEEN MANTRA YANTRA VIGYAN"
SH.KAILASH SHRIMALI ,1-C-PANCHVATI COLONY OPP-N.C.C-GROUND,RATANADA JODHPUR,RAJSTHAN

निम्न जानकारी मेरे ज्ञान (जो की बहुत कम है) के अनुसार है, वरिष्ठ भाइयों से अनुरोध है की किसी भी प्रकार की गलती दिखने पर क्षमा करें और तत्काल मार्गदर्शन करें।

01/01/2025
28/12/2024

Kriya yog Diksha

28/12/2024

Address

Kalyan Parshvanath Jain Mandir Marg Behind Gujrat Apartment, Pitam Pura, New Delhi
Delhi
110034

Opening Hours

Monday 9am - 5pm
Tuesday 9am - 5pm
Wednesday 9am - 5pm
Thursday 9am - 5pm
Friday 9am - 5pm
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Website

https://narayanduttshrimali.com/, https://nikhilmantravigyan.org/magazine/, https://nara

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