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वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।आप सभी को शारदीय  #नवरात्रि के पावन पर्व ...
15/10/2023

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।

आप सभी को शारदीय #नवरात्रि के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।

प्रथम नवरात्र पर मां शैलपुत्री को शत–शत वंदन। उनकी कृपा से देशवासियों के जीवन सुख, शांति और समृद्धि आए, यही प्रार्थना है।

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ निवासी और भारतीय क्रिकेट टीम के उभरते खिलाड़ी रिंकू सिंह ने एक मंदिर बनवाया है. सिंह ने मन्नत मांगी...
13/10/2023

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ निवासी और भारतीय क्रिकेट टीम के उभरते खिलाड़ी रिंकू सिंह ने एक मंदिर बनवाया है. सिंह ने मन्नत मांगी थी कि अच्छा प्रदर्शन करने पर वो मंदिर बनवाएंगे. उन्होंने एटा में कुलदेवी के मंदिर का निर्माण कराया है. इसके लिए उन्होंने 11 लाख रुपये खर्च किए हैं. सिंह ने एटा-क्वार्सी बाईपास स्थित गांव कमालपुर में कुलदेवी मां चौडेरे देवी मंदिर का निर्माण कराया है.

बक्सर रेल हादसे में एक खुशहाल परिवार को तबाह कर दिया। सफ़र पर निकलने से पहले आनंद विहार टर्मिनल पर दीपक भंडारी ने परिवार...
12/10/2023

बक्सर रेल हादसे में एक खुशहाल परिवार को तबाह कर दिया। सफ़र पर निकलने से पहले आनंद विहार टर्मिनल पर दीपक भंडारी ने परिवार के साथ सेल्फी ली थी। उन्हें क्या पता था कि सफ़र पर जाने के बाद यह परिवार के साथ की आखिरी तस्वीर होगी।

आसाम के रहने वाले 39 वर्षीय दीपक भंडारी के परिवार में कुल चार लोग थे, जिसमें वह, उनकी 33 वर्षीय पत्नी ऊषा भंडारी और 8 वर्षीय जुड़वां बच्ची आकृति और अदिति थे। दीपक अपने परिवार के साथ आनंद विहार टर्मिनल से जलपाईगुड़ी के सफ़र पर निकले थे। सफ़र पर जाने से पहले उन्होंने परिवार के साथ सेल्फी ली और फिर इकोनॉमी M1 में परिवार के साथ बैठ गए।

रघुनाथपुर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन जैसे ही डिरेल हुई, उनकी पत्नी और एक बेटी खिड़की से बाहर की ओर गिरे। बाहर गिरने के बाद आकृति और ऊषा की मौत हो गई। वहीं दीपक और उनकी बेटी अदिति का समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रघुनाथपुर में इलाज चल रहा है।

दीपक से उनकी बेटी अदिति मां और बहन के बारे में पूछती रही, पिता परिवार के साथ ली आखिरी सेल्फी को देख हालात को कोसते रहे। अदिति पिता के मोबाइल में ली सेल्फी को चूमते रही, मां और बहन को ढूंढती रही। यह मंजर देख अस्पताल में मौजूद लोगों के भी आंखों में आंसू आ गए।

दीपक भंडारी ने बताया कि वह विदेश में काम करते हैं, छुट्टी में घर आए थे। परिवार दिल्ली में रहता है, उनके साथ जलपाईगुड़ी जा रहे थे। इसी दौरान अचानक रेल हादसा हो गया और परिवार में 4 लोगों की जगह दो लोग ही बचे। पत्नी और 1 बेटी की मौके पर ही मौत हो गई।

 #क्या_आप_जानते_हैं?बात है फरवरी 1919 की, जब अपने एक आयरिश दोस्त जेम्स हेनरी कजिंस और उनकी पत्नी मारग्रेट के न्योते पर ग...
09/10/2023

#क्या_आप_जानते_हैं?
बात है फरवरी 1919 की, जब अपने एक आयरिश दोस्त जेम्स हेनरी कजिंस और उनकी पत्नी मारग्रेट के न्योते पर गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर मदनपल्ली (आंध्र प्रदेश) आए थे।

जेम्स, एनी बेसंट के बनाए थीयोसोफ़ीकल कॉलेज में प्रिंसिपल थे और मारग्रेट वहाँ अंग्रेज़ी पढ़ाया करती थीं। इसके साथ ही ये दोनों ही अच्छे लेखक, कवि थे व संगीत में गहरी रुचि रखते थे। इसलिए कॉलेज का माहौल भी बहुत शालीन था। शायद यही सूकून था कि यहीं रहकर गुरुदेव ने 1911 में लिखी अपनी एक बंगाली रचना का अंग्रेज़ी में अनुवाद कर दिया और इसे नाम दिया 'The Morning Song Of India'.
मारग्रेट ने इस रचना को सुर दिये और आगे चलकर यही बना हमारे भारत का राष्ट्रगान!

मार्च 1919 में टैगोर, मदनपल्ली से जाते-जाते इसे एक नयी उपाधि दे गए..."दक्षिण का शांतिनिकेतन"!

"कई सालों तक मैं एयर फोर्स में अकेली लेडी ऑफिसर थी। आर्मी और नेवी में भी मिलाकर दर्जन भर से ज़्यादा महिला ऑफिसर्स नहीं थ...
08/10/2023

"कई सालों तक मैं एयर फोर्स में अकेली लेडी ऑफिसर थी। आर्मी और नेवी में भी मिलाकर दर्जन भर से ज़्यादा महिला ऑफिसर्स नहीं थीं। शुरू में पुरुषों के बीच काम करने में थोड़ा असहज महसूस करती थीं, लेकिन फिर बहादुरी से खुद को समझाया कि मैं कुछ भी कर सकती हूँ।" 2018 में एक इंटरव्यू के दौरान विंग कमांडर (रिटायर्ड) विजयलक्ष्मी रामनन ने बताया था।

IAF की पहली महिला ऑफिसर, विंग कमांडर रामनन ने ऐसे काम किए जिनसे एयर फाॅर्स में कई बदलाव आए; उन्होंने महिलाओं के लिए नए रास्ते खोल दिए थे।

पहली महिला अधिकारी होकर यूनिफॉर्म में साड़ी पहनने वालीं वह अकेली तो थीं ही, साथ ही उन्होंने IAF का यूनिफॉर्म भी डिज़ाइन किया था।

वह बताती थीं, "आर्मी और नेवी की महिला ऑफिसर्स पैंट्स पहनती थीं। मैं साड़ी पहनती थी, लेकिन आस्तीन को लेकर थोड़ी प्रॉब्लम आई। हेडक्वाटर से काफ़ी बातचीत के बाद, यह फैसला हुआ कि ब्लाउज़ में 3/4th आस्तीनें होंगी। उसमें मैं बहुत कम्फर्टेबल नहीं थी, तो मैंने उनको बोला कि मैं मर्दों की तरह आस्तीन ऊपर चढ़ाकर काम करुँगी।"।

1962, 1965 and 1971 के युद्ध के समय विजयलक्ष्मी रामनन मेडिकल टीम का भी हिस्सा रहीं और चोटिल जवानों की सेवा करती थीं। 1979 में, विंग कमांडर के पोस्ट से रिटायर होने के दो साल पहले उन्हें विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया गया था।

आर्चरी में भारतीय पुरुष कंपाउंड टीम ओजस प्रवीण, अभिषेक वर्मा और प्रथमेश समाधन ने गोल्ड पर सटीक निशाना लगाया और भारत को द...
05/10/2023

आर्चरी में भारतीय पुरुष कंपाउंड टीम ओजस प्रवीण, अभिषेक वर्मा और प्रथमेश समाधन ने गोल्ड पर सटीक निशाना लगाया और भारत को दिलाया Asian Games 2023 में अपना 21वां गोल्‍ड मेडल✌️

इस स्कूल में पढ़ने की फीस है बेकार प्लास्टिक बोतलें!!जी हाँ, सच कह रहे हैं हम। गाजियाबाद के इंदिरापुरम में चल रहे इस फुट...
04/10/2023

इस स्कूल में पढ़ने की फीस है बेकार प्लास्टिक बोतलें!!
जी हाँ, सच कह रहे हैं हम। गाजियाबाद के इंदिरापुरम में चल रहे इस फुटपाथ स्कूल के बच्चों ने पिछले दो साल में सैकड़ों किलो प्लास्टिक वेस्ट जमा करके एक या दो नहीं बल्कि 4000 ईको-ब्रिक्स बनाई हैं। पर्यावरण संरक्षण के साथ शिक्षा की यह अनोखी पहल की है NTPC की एक रिटायर्ड अधिकारी नीरजा सक्सेना ने।
'नीरजा फुटपाथ स्कूल' में वह रोज़ 35 से 40 बच्चों को पढ़ाती हैं। इसके साथ ही वह इन बच्चों को बुनियादी जरूरतें जैसे स्कूल बैग, यूनिफॉर्म और खाना भी मुहैया करवाती हैं। इस नेक काम को शुरू करने का ख्याल उन्हें कोरोना के दौरान आया।आसपास की बस्तियों में खाना देने जाते समय उन्होंने देखा कि बच्चे खाना तो कहीं न कहीं से जुटा लेते हैं लेकिन शिक्षा की रोशनी से कोसों दूर हैं। ये सब देख कोरोना काल
के बाद उन्होंने इन बच्चों की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी ले ली।
आज यहां पढ़ने वाले कई बच्चे स्कूल भी जाने लगे हैं। उनके निरंतर प्रयास का ही नतीजा है कि आज ये बच्चे शिक्षा के साथ पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी जागरूक हो रहे हैं। आज ये बच्चे कहीं भी बेकार प्लास्टिक देखते हैं तो उससे ईको-ब्रिक्स बना देते हैं। साथ ही दूसरों को भी कचरा फ़ैलाने से रोकते हैं। नीरजा हर तीन महीने में जमा हुए प्लास्टिक को रीसाइकल के लिए भेज देती हैं। देश के भविष्य को संवारने वाले बच्चों में बदलाव की लौ जलाने का नीरजा का यह प्रयास वाकई तारीफ के काबिल है। अगर आप भी पर्यावरण और इंसानियत से जुड़ा कोई ऐसा ही काम कर रहे हैं
तो अपनी कहानी हमारे साथ ज़रूर साझा करें।
नीरजा के कार्य से प्रेरित होकर आप भी ऐसा कोई नेक काम शुरू करना चाहते हैं तो देखिए उनकी पूरी कहानी: बायो में दिए लिंक पर क्लिक करें।

राज्य में जाति आधारित जनगणना का काम हुआ पूरा, मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों ने रिपोर्ट जारी की। ▪️ गणना में कुल आबादी ...
03/10/2023

राज्य में जाति आधारित जनगणना का काम हुआ पूरा, मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों ने रिपोर्ट जारी की।

▪️ गणना में कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा बताई गई है।

▪️ राज्य में पिछड़े वर्ग की आबादी 27.12 फीसदी है।

▪️ अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36 फ़ीसदी है।

▪️ अनुसूचित जाति की आबादी 19.65 फ़ीसदी से थोड़ी ज्यादा है।

▪️ अनुसूचित जनजाति की आबादी मात्र 1.68 फीसदी है।

▪️ वहीं, सवर्णों की तादाद 15.52 फ़ीसदी है।
#ब्रेकिंग_बिहारतक

"सामान्य आदमी जहां सौ करने में सक्षम है तो मैं एक सौ एक काम करने की योग्यता रखता हूँ"-गोविंद खारोल"मंजिल उन्हीं को मिलती...
01/10/2023

"सामान्य आदमी जहां सौ करने में सक्षम है तो मैं एक सौ एक काम करने की योग्यता रखता हूँ"-गोविंद खारोल
"मंजिल उन्हीं को मिलती हैं जिनके सपनो में जान होती ही पँखों से नहीं हौसलों से उड़ान होती।" ऐसे ही बुलंद हौसले की कहानी है उदयपुर के गोविंद खारोल की। जिन्होंने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बनाकर सफलता की ऊँचायों को छुआ। गोविंद बचपन से दिव्यांग हैं उनका एक हाँथ नहीं और उनका एक हाँथ छोटा हैं। लेकिन उन्होंने अपनी दिव्यंगता को अपने जीवन में कभी अड़चन नहीं बनने दिया। आज उनकी पहचान एक बेहतर साइकिलिस्ट, फोटोग्राफर, फुटबॉलर, फिल्ममेकर, रनर, ट्रेवलर के रूप में है।
गोविंद का कहना है कि बचपन में उसके सहपाठी उससे दोस्ती करने से कतराते थे। यही स्कूल तक चलता रहा। इससे पहले उनकी खुद के साथ लड़ाई चलती रहती थी। जब सहपाठी उसे शामिल नहीं करते तो वह निराश नहीं होते, बल्कि अपनी उस प्रतिज्ञा को पूरी करने में जुट जाता कि उसकी दिव्यांगता नहीं, बल्कि उसके कामों के चलते आगे से उसके दोस्त बनेंगे।
जब उन्होंने अपनी कॉलोनी के बच्चों को साइकिल चलाते देखा तो उनकी इच्छा भी साइकिल चलाने की होती थी। जिसके बाद उनके पापा ने उन्हें साइकिल दिला दी। उनके हाथ नहीं थे तो मैं पैरों को घसीटते हुए साइकिल रोकते थे। इसके अलावा उन्हें साइकिल धीमी गति से चलानी पड़ती थी ब्रेक न लगा पाने के कारण वह अक्सर गिर जाते थे। घर वालों ने इसके बाद उन्हें साइकिल चलाने से मना ही कर दिया था। लेकिन उन्होंने हार न मान कर मकैनिक से साईकिल के ब्रेक अपने पैर के पास लगवा लिए जिससे अब वह आसानी से ब्रेक लगा सकते थे।
इसके बाद उन्होंने रोजाना साइकिलिंग शुरू कर दी और इसको लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए एक बिंदास ग्रुप भी बनाया जिसमें 1000 से ज्यादा लोग हैं। गोविंद 2018 तक प्रोफेशनली साईकल चलाने लगे थे जिसके बाद उन्होंने 2018 में 18500 फिट की ऊंचाई पर मनाली से लेह के खारदुंगला दर्रे के 550 किमी ट्रेक को पूरा अपना सपना पूरा किया। यह उबड़ खाबड़ रास्ते से बनी दुनिया की सबसे ऊँची मोटरेबल रोड है।
अपनी विकलांगता और तमाम मुसीबत को पार गोविंद ने अपनी मेहनत से एक अलग पहचान बनाई। गोविंद को उनके जज्बे के लिए सलाम!

"निर्भया केस पर काम करते हुए मेरे पास उसके अलावा लगभग आठ-नौ ऐसे ही और मामले थे। सबके बारे में लोगों को पता नहीं चल पाता।...
29/09/2023

"निर्भया केस पर काम करते हुए मेरे पास उसके अलावा लगभग आठ-नौ ऐसे ही और मामले थे। सबके बारे में लोगों को पता नहीं चल पाता। निर्भया की मां की ही तरह कई और मां-बाप थे जो अपनी बच्चियों के लिए लड़ रहे थे।
ऐसे में उन्हें सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है एक सहारे की। किसी ऐसे की जो उनके साथ खड़ा रहकर लड़ाई में उनका साथ दे सके, उनकी ताकत बन सके। मैं उनको इंसाफ़ दिलाने का वादा नहीं करती, बल्कि हर हाल में उनका साथ देती हूं।"
- हज़ारों रेप पीड़ितों की मदद करने वालीं योगिता भयाना।
स्कूल और कॉलेज में पढ़ते हुए दिल्ली की रहने वालीं योगित कभी वृद्ध लोगों की मदद के लिए स्कूल में डोनेशन इकट्ठा करतीं तो कभी पेड़ के नीचे बैठकर बच्चों को पढ़ाया करती थीं। अच्छी शिक्षा के साथ-साथ उनमें समाज सेवा की भावना भी खूब थी। आगे चलकर DU से ग्रेजुएशन और Disaster Management में मास्टर्स किया। फिर एयरलाइन कंपनी में अच्छी नौकरी लग गई। वह सिर्फ़ 22 साल की थीं जब उन्होंने अपनी जॉब छोड़कर लोगों की सेवा करना शुरू कर दिया।
दिल्ली के निर्भया मामले के बाद उन्होंने People Against R**e in India (PARI) नाम से अपने एक संस्थान की शुरुआत की और रेप पीड़ितों व उनके परिवार की मदद और सुरक्षा के लिए काम करना शुरू किया। आज वह सैंकड़ों परिवारों का सहारा बन चुकी हैं। वह कहती हैं, "पीड़ितों की मदद करना ज़रूरी है, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है यह समझना कि हम क्या करें जो रेप जैसे अपराध हों ही नहीं। हर कोई इसके लिए कुछ न कुछ ज़रूर कर सकता है।"

"यह एक सपने के साकार होने जैसा है। सर्वोच्च अदालत में पेश भर होना ही मेरे लिए काफ़ी मायने रखता है। इससे मुझे आत्मविश्वास...
28/09/2023

"यह एक सपने के साकार होने जैसा है। सर्वोच्च अदालत में पेश भर होना ही मेरे लिए काफ़ी मायने रखता है। इससे मुझे आत्मविश्वास और हिम्मत मिली है।"
–सारा सनी, वकील
22 सितंबर भारतीय न्यायपालिका के लिए एक ऐतिहासिक दिन रहा, Supreme Court के किसी मामले में पहली बार एक मूक-बधिर वकील को साइन लैंग्वेज में सुनवाई करने का मौका मिला। वकील सारा सनी की ओर से पेश एडवोकेट (ऑन रिकॉर्ड) संचिता ऐन. ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से अपील की थी कि कोर्ट में ट्रांसलेशन की इजाज़त दी जाए, ताकि सारा कोर्ट की कार्यवाही को समझ सकें। इसके बाद कोर्ट रूम में Interpreter सौरभ रॉय चौधरी ने साइन लैंग्वेज में सारा को कारवाई समझाई और उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका मिला।
मूक-बधिर अधिवक्ताओं के लिए सुप्रीम कोर्ट की यह पहल सराहनीय और समानता को बढ़ावा देने वाली है। आपको SC की यह पहल कैसी लगी, हमें कमेंट सेक्शन में अपने विचार ज़रूर बताएं।

 #भारत_गौरव   गुलाबी शहर, जयपुर टूरिज्म के लिए जाना जाता है। इस शहर में एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक स्थल हैं, जो प्राचीन समय...
27/09/2023

#भारत_गौरव

गुलाबी शहर, जयपुर टूरिज्म के लिए जाना जाता है। इस शहर में एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक स्थल हैं, जो प्राचीन समय की संस्कृति को दर्शाते और उस समय के राजा-महाराजाओं की वीर गाथाएं सुनाते हैं। ऐसी ही एक ऐतिहासिक इमारत है यहाँ स्थित हवा महल!
इस खूबसूरत पांच मंज़िला भवन का निर्माण 1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने कराया था। लाल और गुलाबी बलुआ पत्थरों से बने इस महल के मुख्य वास्तुकार लाल चंद उस्ताद थे। यह राजपूत वास्तुकला की एक उम्दा मिसाल है। महल का बाहरी संरचना किसी मधुमक्खी के छत्ते से मिलती-जुलती दिखाई देती है और इसमें 900 से अधिक छोटी खिड़कियां हैं, जिन्हें झरोखा नामक जटिल जाली से सजाया गया है। हैरान कर देने वाली बात यह है कि इसकी ज़मीन से ऊंचाई 50 फिट है, लेकिन इस महल को बिना किसी नीव के बनाया गया था। हवा महल को विशेष रूप से राजपूत सदस्यों और खासकर महिलाओं के लिए बनवाया गया था, ताकि शाही महिलाएं नीचे की गली में हो रहे रोज़ाना के नाटक-नृत्य देख सकें। इतनी खिड़कियां होने के कारण यह महल राजस्थान की गर्मियों में भी ठंडा रहा करता था।
हवा महल राज्य की पहचान है, रोज़ाना देश-विदेश से सैंकड़ों लोग इसे निहारने आते हैं। क्या आपने इस खूबसूरत इमारत को देखा है? अगर हाँ तो कमेंट करके बताइए कि आपको इसकी सबसे ख़ास बात क्या लगी? अपनी खींची तस्वीर भी हमारे साथ शेयर कर सकते हैं।

बस यूं ही उसको देख के मैं,उसकी ओर चला आया..तपती धूप में सुकून के जैसी,थी ठंडी उसकी छाया।यह है एक पेड़ की छाया का प्रभाव!...
26/09/2023

बस यूं ही उसको देख के मैं,
उसकी ओर चला आया..
तपती धूप में सुकून के जैसी,
थी ठंडी उसकी छाया।
यह है एक पेड़ की छाया का प्रभाव!!
1978 में जिला बाड़मेर, राजस्थान के ग्राम पंचायत सियाणी में बने नए विद्यालय के पास नवलाराम कोडेचा नाम के एक शिक्षक ने यह स‍िरस का पेड़ लगाया था। कुछ साल बाद वह प्रधानाध्यापक पद से रिटायर हो गए लेकिन उनका लगाया यह पेड़ आज पूरे स्कूल को छाया दे रहा है।
🌳
एक पेड़ कितना प्रभावशाली हो सकता है इस तस्वीर में देखा जा सकता है। इसे हमारे ही एक पाठक ने हमें भेजा है। अगर आप भी चाहें तो हमारे साथ इसी तरह की कमाल की तस्वीरें और कहानियां साझा कर सकते हैं।
आभार: भेराराम भाखर

एक दूसरे के हुए परिणिति राघव, राजस्थान में हुआ शादी।
25/09/2023

एक दूसरे के हुए परिणिति राघव, राजस्थान में हुआ शादी।

देश की बेटियों ने ऐसा कमाल किया है कि आप भी कहेंगे 'शाबाश'! Indian Women Cricket Team ने आज Asian Games में क्रिकेट का प...
25/09/2023

देश की बेटियों ने ऐसा कमाल किया है कि आप भी कहेंगे 'शाबाश'! Indian Women Cricket Team ने आज Asian Games में क्रिकेट का पहला गोल्ड जीतकर हमें बेहद गर्व करने का मौक़ा दिया है। 11 लोगों की इस टीम में आज एक सितारा कुछ ज़्यादा चमका; अपने हुनर की रौशनी से युवा तेज़ गेंदबाज तितास साधु ने इस ऐतिहासिक जीत में ख़ास भूमिका निभाई।
Titas Sadhu की पेस और स्विंग का श्रीलंकाई बल्लेबाजों के पास कोई जवाब नहीं था। उन्होंने अपने शुरुआती 3 ओवर में सिर्फ 2 रन देकर 3 विकेट अपने नाम किए। पहला ओवर मेडन फेंका और 4 ओवर के कोटे में कुल 6 रन देते हुए 3 विकेट लिए।
आज के लाजवाब प्रदर्शन के बाद इस बात में कोई संदेह नहीं कि 18 साल की तितास साधु भारतीय क्रिकेट का उभरता हुआ सितारा हैं 👏 आपको बधाई और ढेरों शुभकामनाएं, तितास।
जय हिंद 🇮🇳

भारत में कोयला खनन का इतिहास काफी पुराना है। इसकी शुरुआत 1774 दामोदर नदी के पश्चिमी तट पर स्थित एक शहर में हुई थी। इसी श...
24/09/2023

भारत में कोयला खनन का इतिहास काफी पुराना है। इसकी शुरुआत 1774 दामोदर नदी के पश्चिमी तट पर स्थित एक शहर में हुई थी। इसी शहर के नाम पर इस कोयला खदान का नाम भी रखा गया था। क्या आप इसका नाम बता सकते हैं?

23 सितंबर 1903 को जन्मे युसूफ मेहर अली भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रणी नेताओं में थे. आजादी के आंदोलन के दौरान वे 8 ब...
23/09/2023

23 सितंबर 1903 को जन्मे युसूफ मेहर अली भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रणी नेताओं में थे. आजादी के आंदोलन के दौरान वे 8 बार जेल भेजे गए। 1942 में जेल में बंद होने के बावजूद वह बंबई (अब मुंबई) के मेयर चुने गए थे।

उन्होंने 1930 के नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया। सन 1934 में ब्रिटिश राज पर षड्यन्त्र रचने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें दो वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। मेहर अली कांग्रेस सोशलिस्ट के संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने 1940 के विशिष्ट सत्याग्रह में हिस्सा लिया और दोनों अवसरों पर उन्हें गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया।

मेहर अली ही वह शख्स थे जिन्होंने 'Quit India' यानी भारत छोड़ो का नारा दिया था जिसे गांधीजी ने 1942 में भारत की आजादी के लिए छेड़े गए सबसे बड़े आंदोलन के लिए अपनाया!

युसुफ मेहर अली युवाओं, कामगारों और व्यवयासियों के बीच काफी लोकप्रिय नेता था। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब 1940 में उन्हें गिरफ्तार किया गया था, तो उनकी गिरफ्तारी के विरोध में बॉम्बे के कई बाजारों में कोई कारोबार नहीं हुआ। उन्होंनेे कई किताबे भी लिखीं जिनमें - द प्राइस ऑफ लिबर्टी, ए ट्रिप टू पाकिस्तान समेत कई किताबें शामिल हैं।

2 जुलाई, 1950 को 47 वर्ष की अल्पायु में इस महान क्रांतिकारी का निधन हो गया!

भारत की पहली महिला एडवोकेट जिन्होंने 1944 में फुल हाई कोर्ट बेंच के सामने एक केस लड़ा था; पहली महिला जो ऑल इंडिया न्यूजप...
22/09/2023

भारत की पहली महिला एडवोकेट जिन्होंने 1944 में फुल हाई कोर्ट बेंच के सामने एक केस लड़ा था; पहली महिला जो ऑल इंडिया न्यूजपेपर एडिटर्स कॉन्फ्रेंस 1952 में बतौर स्टैंडिंग कमेटी मेंबर अपॉइंट हुई थीं; और पहली महिला जिन्होंने राज्यसभा में डेप्युटी चेयरपर्सन का पद संभाला था! अरे हम तीन अलग-अलग नहीं, बल्कि एक ही महिला की बात कर रहे हैं जिन्होंने ये सारी उपलब्धियां हासिल की थीं। यक़ीन करना मुश्किल है न? वह थीं वॉयलेट हरी अल्वा!
उन्होंने अपनी ज़िंदगी में मल्टी टैलेंटेड होने की मिसाल कायम की है। 24 अप्रैल 1908 में पैदा हुई वायलेट प्रोटेस्टेंट परिवार से ताल्लुक रखती थीं। मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से पढ़ीं वायलेट ने जोचिम अल्वा से शादी की और उन दोनों ने मिलकर सोशल वर्क, जर्नलिज्म और आज़ादी के लिए संघर्ष शुरू किया। 1942 में क्विट इंडिया मूवमेंट के दौरान वॉयलेट जेल गईं और तब उनके साथ उनका नवजात बच्चा भी था। 1944 में उन्होंने एक मैगजीन की शुरुआत की जिसका नाम था 'The Begum' और उसके बाद उसका नाम बदलकर 'Indian Woman' रख दिया गया। 1946 से 47 तक वह बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की डेप्युटी चेयरमैन रही थीं।
1947 में उन्होंने मुंबई के हॉनरेरी मजिस्ट्रेट की तरह काम किया था। 1948 से 54 तक वो वहीं पर जुवेनाइल कोर्ट की प्रेसिडेंट के तौर पर रही थीं। वह कई सारे सोशल वर्क करने वाले ऑर्गेनाइजेशन के साथ जुड़ी हुई थीं। 1952 में वह राज्यसभा से जुड़ीं और यूनियन डेप्युटी मिनिस्टर फॉर होम अफेयर्स के तौर पर 1957 से 1962 तक काम करती रहीं। उन्होंने 1969 तक अपनी ड्यूटी निभाई और 17 नवंबर को उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दिया। अकस्मात ही 20 नवंबर 1969 को उनकी मृत्यु हो गई।
संसद के गलियारों में 2007 में वायलेट अल्वा की उनके पति के साथ एक तस्वीर लगाई गई थी, क्योंकि दोनों ही संसद के पहले प्रभावी कपल थे। 2008 में उनका एक यादगार स्टाम्प भी रिलीज़ किया गया था, जो उनकी प्रतिष्ठा और महत्वपूर्ण कार्यों का प्रतीक माना गया। क्या आप इससे पहले वॉयलेट हरी अल्वा के बारे में जानते थे?

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