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22/12/2024
तितिक्षा तेलंग ने इस किताब को पढ़ा ही नहीं, जी लिया है। इस भावपूर्ण उद्गार के लिए तितिक्षा के प्रति स्नेहिल आभार।
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‘लौ’ के साथ बहते जाने के आनंद को महसूस किया। इश्क़ा को कहीं खुद में पाया, कहीं आप ही इश्क़ा लगीं। इश्क़ा का प्रेम के साथ बहते जाना महसूस किया। बस वाला किस्सा बहुत प्यारा लगा, बार-बार पढ़ने का मन किया। क्यों, वो नहीं जानती, कोई भाव था, जो सीधे दिल को छू गया। आपका लिखा किसी और जहाँ में ले जाता है, जहाँ से लौटने का मन नहीं करता।
इतना कुछ था कि ‘लौ’ के साथ बहने से खुद को रोक नहीं पाई, सो बह गई मैं तो। कब पूरी पढ़ चुकी पता ही न चला। बहते जाने के परमानंद को पूरे समय महसूस किया। ‘लौ’ के साथ जो सुकून मिला, फिर से जीने का मन है उसे। मुझे तो बहते जाना ही पसंद है। हमेशा से खो जाना चाहती हूँ। बहुत जगह फ़िल्म ‘बनारस’ याद आई। कुछ ऐसा ही था उसमें, जो ‘लौ’ में भी महसूस किया ।
शुक्रिया बहुत छोटा शब्द है उसके लिए, जो मुझे मिला इस लौ के साथ बहते हुए, जीते हुए ।
आपने लिखा ‘लौ’ की आँच मुझ तक पहुँचे। ये ‘लौ’ मुझ तक न सिर्फ़ पहुँची, बल्कि मुझमें ही समा गई है, जिससे अलग होना मुश्किल है ।
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तितिक्षा तेलंग