14/06/2023
इस किताब का अनुवाद मैंने एक हफ्ते में कर दिया था। मैं और अमरपाल अपने एक साथी के घर कुछ समय के लिए गये थे, जहाँ अंग्रेजी में यह किताब मिली, जिसमें चे ग्वेरा के बारे फिदेल का संस्मरण है। मैंने अनुवाद शुरू कर दिया और अमरपाल ने मेरी हर जरूरत पूरी की।
इस किताब का संक्षिप्त परिचय--
चे ग्वेरा के बारे में फिदेल कास्त्रो के भाषणों और वक्तव्यों का यह संकलन उनके सहयोद्धा, अन्तरंग मित्र और कामरेड के उद्गार हैं जो प्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित हैं। चे के व्यक्तित्व और व्यावहारिक कार्रवाइयों का इतना सहज, तथ्यपूर्ण और रागात्मक चित्रण तथा इतना गहरा और सही मूल्यांकन फिदेल के अलावा किसी अन्य के वश में नहीं था। 1955 में मैक्सिको सिटी में पहली मुलाकात और कुछ घंटों की बातचीत में बनी फिदेल और चे की दोस्ती ग्रान्मा अभियान, सियेरा माएस्त्रा की पहाड़ियों में छापामार लड़ाई, क्यूबा के केन्द्रीय भाग में बतिस्ता के खिलाफ आखिरी लड़ाई और समाजवादी नवनिर्माण के दौरान फौलाद में ढलती गयी। दुनिया भर के क्रान्तिकारी आन्दोलन के इतिहास में इन दोनों क्रान्तिकारियों की दोस्ती, युगान्तरकारी एकजुट कार्रवाइयाँ और हर महत्त्वपूर्ण मामले में वैचारिक एकता सिर्फ क्यूबा और लातिन अमरीका ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में परिवर्तनकारी शक्तियों के लिए प्रेरणास्पद रही है और आगे भी बनी रहेगी।
चे ग्वेरा और फिदेल कास्त्रो की दोस्ती में दरार डालने और उनके वैचारिक मतभेदों के बारे में झूठ और अफवाह फैलाने का प्रयास अमरीकी साम्राज्यवादियों और तमाम तरह के पूँजीवादी लोगों द्वारा तो लगातार किया ही गया, वामपंथी घेरे के कुछ लोगों द्वारा भी समय–समय पर ऐसे प्रयास किये गये। 1965 में चे ग्वेरा की अचानक क्यूबा से अनुपस्थिति के बाद अटकलबाजियों और किस्से–कहानियों का नया सिलसिला चल पड़ा। कुत्साप्रचार की इस आँधी को तब विराम लगा, जब फिदेल कास्त्रो ने क्यूबाई कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय कमेटी की पहली बैठक के बाद अपना भाषण दिया। उन्होंने उस भाषण में चे के साथ अपनी अटूट एकता का इजहार करते हुए उनके द्वारा क्यूबा छोड़ते समय उनके नाम लिखे पत्र को भी पढ़ा। वह ऐतिहासिक पत्र और भाषण इस पुस्तक के पहले अध्ययन में दिया गया है।
अक्टूबर 1967 में बोलीविया में छापामार लड़ाई लड़ते हुए चे की मृत्यु के बाद भी अटकलबाजियों का दौर शुरू हुआ। फिदेल ने एक टेलीविजन कार्यक्रम में चे की मृत्यु की पुष्टि की। उन्होंने तमाम समाचारों, रिपोर्टों और बयानों का तथ्यपूर्ण विश्लेषण करके यह स्थापित किया कि चे की घायल अवस्था में गिरफ्तारी के बाद सीआईए समर्थित बोलीवियाई सैन्य अधिकारियों ने हत्या की और उनके अन्तिम अवशेषों को छुपा दिया। उन्होंने बताया कि इस कटु सत्य को हमें स्वीकारना होगा कि चे अब नहीं रहे लेकिन शारीरिक रूप से दुश्मनों ने भले ही उन्हें खत्म कर दिया हो, उनके आदर्शों, विचारों और कार्रवाइयों के रूप में प्रस्तुत उदाहरण को, जनता के दिलों में चे की स्मृतियों को वे खत्म नहीं कर पायेंगे। चे हमारे बीच आज भी हैं और कल भी भावी पीढ़ियों का मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे।
इस संकलन में चे की याद में विभिन्न अवसरों पर दिये गये भाषण हैं जिनमें क्यूबा की क्रान्ति में उनके योगदान का सजीव चित्रण है। इसके अलावा एक क्रान्तिकारी के रूप में चे के व्यक्तित्व की विशेषताओं को ठोस घटनाओं के माध्यम से बताया गया है। अलग–अलग छावियों और दृश्यों को अगर एकत्रित किया जाय तो चे के क्रान्तिकारी जीवन की एक मुकम्मिल तस्वीर हमारे सामने आ जाती है। विभिन्न राष्ट्रीय–अन्तरराष्ट्रीय मुद्दों पर चे की राजनीतिक समझ और अवस्थिति को भी इसमें यथास्थान प्रस्तुत किया गया है। एक पत्रकार को दिये गये इन्टरव्यू का अंश सबसे महत्त्वपूर्ण है जिसमें फिदेल ने समाजवादी खेमें में वैचारिक भटकाव और विवरण पर चे की राय के माध्यम से अपना रुख स्पष्ट किया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया है कि सोवियत संघ और समाजवादी खेमें के अन्य देशों के पतन का एक प्रमुख कारण समाजवादी निर्माण की प्रक्रिया में पूँजीवादी विचारों और तौर–तरीकों का अपनाया जाना है। इस जहर के ज्यादा से ज्यादा उपयोग का ही नतीजा है कि उन देशों में समाजवाद मरता जा रहा है।
संयोगवश अभी कुछ ही माह पहले चे ग्वेरा की शहादत की 50वीं बरसी गुजरी है। ऐसे समय में, जब पूरी दुनिया में मेहनतकश वर्गों का विश्वव्यापी आन्दोलन सामयिक आघात और वैचारिक विभ्रम का शिकार हुआ है, एक महाकाव्यात्मक संघर्ष से विस्तृत ऐतिहासिक दस्तावेजों का यह संकलन न सिर्फ चे के व्यक्तित्व और कृतित्व का सम्पूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है बल्कि एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में क्यूबा के क्रान्तिकारियों और उनकी बेमिसाल बहादुराना संघर्षों की भी झलक प्रस्तुत करता है।
इस पुस्तक के अनुवाद, प्रस्तुति और कलेवर के बारे में पाठकों के सुझाव और आलोचनाओं का हमें इन्तजार रहेगा।
--गार्गी प्रकाशन
साभार -- Digamber
प्रगतिशील पुस्तक केन्द्र देहरादून पर उपलब्ध।