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जम्मू कश्मीर पर पहला अधिकार मुसलमानों व कश्मीरी ब्राम्हणों का नहीं बल्कि कायस्थों का है।आज़ यह बहस राष्ट्रीय व अन्तर्राष...
06/05/2024

जम्मू कश्मीर पर पहला अधिकार मुसलमानों व कश्मीरी ब्राम्हणों का नहीं बल्कि कायस्थों का है।

आज़ यह बहस राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बारबार होती है कि कश्मीर मुसलमानों और कश्मीर ब्राह्मणों का ,पर सच्चाई यह है कि 8 वीं शताब्दी के पूर्व से ही वहां कायस्थों का राज्य रहा है चाहे वह
ललितादित्य
अवन्तिवर्मन—८५५/६-८८३
शंकरवर्मन राजा—८८३-९०२
गोपालवर्मन—९०२-९०४
सुगन्धा—९०४-९०६
पार्थ राजा- ९०६-९२१ + ९३१-९३५
चक्रवर्मन- ९३२-९३३ + ९३५-९३७
यशस्कर—९३९-९४८
संग्रामदेव—९४८-९४९
पर्वगुप्त—९४९-९५०
क्षेमगुप्त—९५०-९५८
अभिमन्यु राजा—९५८-९७२
नन्दिगुप्त—९७२-९७३
त्रिभुवन—९७३-९७५
भीमगुप्त—९७५-९८०
दिद्दा—९८०/१-१००३
संग्रामराज—१००३-१०२८
अनन्त राजा—१०२८-१०६३
कलश राजा—१०६३-१०८९
उत्कर्ष—१०८९
हर्ष देव—१०८९-११०१ आदि का उल्लेख बारहवीं शताब्दी में कल्दण द्वारा लिखी गयी राजतरंगिनी में मिलता है।
जहां तक कश्मीर में मुसलमानों की आवाजाही का प्रश्न है वह मुगल काल में 15वीं शताब्दी के बाद प्रारम्भ होता है,जबकि इसके पूर्व जम्मू कश्मीर शुद्ध हिन्दू कायस्थ रियासत थी,परन्तु यह देश का दुर्भाग्य है कि वोटो की राजनीति में जो तेजी से संख्या बल के साथ चिल्लाता है उसकी ही बात को सही मान लिया जाता है। इसलिए ही विश्व फलक पर आज जनमत कराकर कश्मीर को स्वतंत्र राज्य बनाने की बात अक्सर गूंजती है। आज कश्मीर के हुक्मरान मुसलमान होते हैं तथा कश्मीर पर अपना पूर्ण नियंत्रण व प्रभुत्व स्थापित करने के लिए कश्मीरी ब्राम्हणों से संघर्ष करते हैं परन्तु वास्तव में कश्मीर जिन कायस्थ राजाओं के समय फला फूला है उन्हें कोई नही जानता तथा कश्मीर के वास्तविक उत्तराधिकारियों का लोप हो गया है।जिसे भारत का सिकंदर कहा जाता है वह अखंड हिन्दू सम्राट जिन्होंने सर्वाधिक सीमाएं भारत की बढ़ाई वह कायस्थ विभूति ललितादित्य मुक्तापीड़ है।

आखिर कहां से आया 'लिट्टी-चोखा' और कैसे बन गया बिहार की पहचान....हमारे देश के व्यजनों की खुशबू व चटकारे विश्व के हर कोने ...
30/04/2024

आखिर कहां से आया 'लिट्टी-चोखा' और कैसे बन गया बिहार की पहचान....
हमारे देश के व्यजनों की खुशबू व चटकारे विश्व के हर कोने में प्रसिद्ध है। हजारों जायकेदार भारतीय व्यंजनों का मेन्यू दुनियाभर के हर महंगे होटल में बड़े शौक से पेश किए जाते हैं। ऐसे में लिट्टी-चोखा की लोकप्रियता से भला कौन किनारा कर सकता है। जी हां, चाहे वह कोई मजदूर हो या बड़े पोस्ट का अधिकारी, हर कोई लिट्टी चोखा का लुत्फ उठाना चाहता है। वैसे तो लिट्टी-चोखा देश ही नहीं, बल्कि दुनिया विदेशों में भी पसंद किया जाता है। यह बिहार का लोकप्रिय व्यंजन है, लेकिन यह व्यंजन आपको दुनिया के हर हिस्से में मिल जाएगी। लिट्टी-चोखा एक ऐसा व्यंजन है, जो परंपरा, स्वाद और सांस्कृतिक विरासत की कहानी को दर्शाता है। इस डिश को सफर का साथी भी कह सकते हैं। लोग लंबी यात्रा के दौरान लिट्टी जरूर ले जाते हैं, इसे पैक करना और खाना दोनों आसान रहता है। इसे चोखा के अलावा आचार या चटनी के साथ भी खा सकते हैं। कई लोग तो केवल लिट्टी खाना ही पसंद करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, आखिर लिट्टी-चोखा बनाने की शुरुआत कैसे हुई? तो चलिए जानते हैं इसकी रोचक कहानी।
मगध काल में हुई लिट्टी-चोखा की शुरुआत
माना जाता है कि लिट्टी-चोखा बनाने की शुरुआत मगध काल में हुई। मगध बहुत बड़ा साम्राज्य था, चंद्रगुप्त मौर्य यहां के राजा थे, इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी । जिसे अब पटना के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि पुराने जमाने में सैनिक युद्ध के दौरान लिट्टी-चोखा खाते थे। यह जल्दी खराब नहीं होती थी। इसे बनाना और पैक करना काफी आसान था। इसलिए सैनिक भोजन के रूप में इसे अपने साथ ले जाते थे। 1857 के विद्रोह में भी लिट्टी-चोखा खाने का जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई के सैनिक भी लिट्टी चोखा खाना पसंद करते थे। यह व्यंजन अपनी बनावट के कारण युद्ध भूमि में प्रचलित हुआ। सैनिकों को इसे खाने के बाद लड़ने की ताकत मिलती थी।
मुगल काल से भी जुड़ा है लिट्टी-चोखा।
लिट्टी-चोखा का जिक्र मुगल काल में भी मिलता है। मुगल रसोइयों में नॉनवेज ज्यादा प्रचलित था। ऐसे में लिट्टी मांसाहारी व्यंजनों के साथ भी खाया जाता था। समय के साथ लिट्टी चोखा को लेकर नए-नए प्रयोग होते गए। आज लिट्टी चोखा के स्टॉल हर शहर में दिख जाते हैं। यह खाने में स्वादिष्ट तो होता ही है, साथ ही सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है ।

 #कभी_सोचना         एक सर्वे के मुताबिक भारत में साल भर में शादियों पर जितना खर्च हो रहा है, उतनी कई देशों की GDP भी नही...
27/04/2024

#कभी_सोचना
एक सर्वे के मुताबिक भारत में साल भर में शादियों पर जितना खर्च हो रहा है, उतनी कई देशों की GDP भी नहीं है।
सनातन में शादी एक संस्कार होती थी जो अब एक इवेंट बन कर रह गई हैं। पहले शादी समारोह मतलब दो लोगों को जुड़ने का एहसास कराते पवित्र विधि विधान, परस्पर दोनों पक्षों की पहचान कराते रीति-रिवाज, नेग भी मान सम्मान होते थे।
पहले हल्दी और मेंहदी यह सब घर अंदर हो जाता था किसी को पता भी नहीं होता था। पहले जो शादियां मंडप में बिना तामझाम के होती थी, वह भी शादियां ही होती थी और तब दाम्पत्य जीवन इससे कहीं ज्यादा सुखी थे। परंतु समाज व सोशल मीडिया पर दिखावे का ऐसा भूत चढ़ा है कि किसी को यह भान ही नहीं है कि क्या करना है क्या नहीं..?
यह एक दूसरे से ज्यादा आधुनिक और अमीर दिखाने के चक्कर में लोग हद से ज्यादा दिखावा करने लगे हैं। अड़तालिस किलो की बिटिया को पचास किलो का लहंगा भारी न लगता। माता पिता की अच्छी सीख की तुलना में कई किलो मेकअप हल्का लगता है। हर इवेंट पर घंटों का फोटो शूट थकान नहीं देता पर शादी की रस्म शुरू होते ही पंडित जी जल्दी करिए, कितना लम्बा पूजा पाठ है, कितनी थकान वाला सिस्टम है" कहते हुए शर्म भी न आती।
वाक़ई, अब की शादियाँ हैरान कर देने वाली हैं। मज़े की बात ये है कि ये एक सामाजिक बाध्यता बनती जा रही है। उत्तर भारत में शादियों में फ़िज़ूल खर्ची धीरे धीरे चरम पर पहुँच रही है।
पहले मंडप में शादी, वरमाला सब हो जाता था। फिर अलग से स्टेज का खर्च बढ़ा, अब हल्दी और मेहंदी में भी स्टेज, खर्च बढ़ गया है। प्री वेडिंग फोटोशूट, डेस्टिनेशन वेडिंग, रिसेप्शन, अब तो सगाई का भी एक भव्य स्टेज तैयार होने लगा है। टीवी सीरियल देख देख कर सब शौक चढ़े है। पहले बच्चे हल्दी में पुराने कपड़े पहन कर बैठ जाते थे अब तो हल्दी के कपड़े पांच दस हजार के आते है।
प्री वेडिंग शूट, फर्स्ट कॉपी डिजाइनर लहंगा, हल्दी/मेहंदी के लिए थीम पार्टी, लेडिज संगीत पार्टी, बैचलरस पार्टी, ये सब तो लडकी वाला नाक उँची करने के लिये करवाता है। यदि लड़की का पिता खर्च मे कमी करता है तो उसकी बेटी कहती है कि शादी एक बार ही होगी और यही हाल लड़के वालो का भी है।
मजे की बात यह है कि स्वयं बेटा-बेटी ही इतना फिल्मी तामझाम चाहते हैं, चाहे वो बात प्री-वेडिंग शूट की हो या महिला संगीत की, कहीं कोई नियंत्रण नहीं है। लडक़ी का भविष्य सुरक्षित करने के बजाय पैसा पानी की तरह बहाते हैं। अब तो लड़का लड़की खुद माँ बाप से खर्च करवाते हैं।
शादियों में लड़के वालों का भी लगभग उतना ही खर्चा हो रहा है जितना लड़की वालों का अब नियंत्रण की आवश्यकता जितना लड़की वाले को है, उतना ही लड़के वाले को भी है। दोनों ही अपनी दिखावे की नाक ऊंची रखने के लिए कर्जा लेकर घी पी रहे हैं।
कभी ये सब अमीरों, रईसों के चोंचले होते थे लेकिन देखा देखी अब मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास वाले भी इसे फॉलो करने लगे है। रिश्तों में मिठास खत्म ये सब नौटंकी शुरू हो गई। एक मज़बूत के चक्कर में दूसरा कमजोर भी फंसता जा रहा है।
कुछ वर्षों पहले ही शादी के बाद औकात से भव्य रिसेप्शन का क्रेज तेजी से बढ़ा। धीरे-धीरे एक दूसरे से बड़ा दिखने की होड़ एक सामाजिक बाध्यता बनती जा रही है। इन सबमें मध्यम वर्ग परिवार मुसीबत में फंस रहे हैं कि कहीं अगर ऐसा नहीं किया तो समाज में उपहास का पात्र ना बन जायें। सोशल मीडिया और शादी का व्यापार करने वाली कंपनिया इसमें मुख्य भूमिका निभा रहीं हैं। ऐसा नहीं किया तो लोग क्या कहेंगे/सोचेंगे का डर ही ये सब करवा रहा है।
कोई नही पूछता उस पिता या भाई से जो जीवनभर जी तोड़ मेहनत करके कमाता है ताकि परिवार खुश रह सकें। वो ये सब फिजूलखर्ची भी इसी भय से करता है कि कोई उसे बुढ़ापे में ये ना कहे के आपने हमारे लिए किया क्या है। दिखावे में बर्बाद होते समाज को इसमें कमी लाने की महती आवश्यकता है वरना अनर्गल पैसों का बोझ बढ़ते बढ़ते वैदिक वैवाहिक संस्कारों को समाप्त कर देगा।

ख़जूर के पेड़ के ऊपरी  #हिस्से_के_पास_छीलकर मटकी टाँग कर नीर रस निकाला जा रहा है, इस नीर रस को हमारे गांव के साइड में ताड़...
26/04/2024

ख़जूर के पेड़ के ऊपरी #हिस्से_के_पास_छीलकर मटकी टाँग कर नीर रस निकाला जा रहा है, इस नीर रस को हमारे गांव के साइड में ताड़ी नाम से ही ज्यादा जानते हैं|
ाड़ी_हल्का_फुल्का नशीला पदार्थ भी है लेकिन फिर भी लोग गर्मी में बहुत ज्यादा पीना पसंद करते है क्योंकि लोग बताते हैं शरीर की गर्मी को शांत करने के साथ-साथ इससे पेट भी साफ रहता है, कहा जाता है कि पेट से परेशान लोगों के लिए यह बहुत ही फायदेमंद साबित होता है|
#हल्का_फुल्का_नशीला पदार्थ होने के बावजूद हम लोगों के यहां गांव के साइड में पूरा परिवार एक साथ बैठकर पीते 😊😊 हैं स्वाद में हल्का खट्टापन होता है|
#खजूर_के_पेड़_से निकलने वाली ताड़ी से गुड़ भी बनाया जाता है इससे बनाएं जाने वाले गुड़ को नोलन गुड़ कहते हैं, यह पौष्टिक पदार्थों से भरपूर भी होता है|

@भात का भोज... ....   आम तौर पर जिन लोगों का जुड़ाव गांव से रहा होगा वह इस चीज को बखूबी समझते होंगे कि भात का रिश्ता क्य...
26/04/2024

@भात का भोज... ....

आम तौर पर जिन लोगों का जुड़ाव गांव से रहा होगा वह इस चीज को बखूबी समझते होंगे कि भात का रिश्ता क्या होता है।गांव में किसी भी समारोह में दो तरह का भोजन होता था पक्की और एक कच्ची। पक्की भोज का मतलब होता था पूरी पुलाव बुंदिया दही और कच्ची भोज का मतलब होता है भात। भात वाला रिश्ता गांव में भी हर किसी का हर किसी से नहीं होता था जो काफी करीबी होते थे उन्हीं लोगों से भात का रिश्ता होता था। आमतौर का भात का रिश्ता जात में ही होता था कई बार समारोह समाप्ति के अंतिम दिन माता का भोज दिया जाता था इसके पीछे एक लंबी कहानी है जब गांव में मोटे अनाज लोगों के खाने के मुख्य साधन थे मोटे अनाज में ज्वार बाजरा और मक्का। खासकर उत्तर बिहार में धान गेहूं की जगह मक्का और चना की फसल ही ज्यादा होती थी।हरित क्रांति के बाद देश में गेहूं की उपज भी व्यापक पैमाने पर होने लगी बिहार में शाहाबाद के इलाके को छोड़ दें तो अन्य जिलों में धान तब भी नदारद थी।ऐसे में शादी समारोह हो या किसी विशेष अवसर पर ही भात खाने को मिलता था वहीं से भात के रिश्ते की शुरुआत हुई जितना कुछ बचपन में गांव को देखने सोचने समझने का मौका मिला इस बात पर जमकर रिसर्च हुआ।सुदूर गांव के लोगों से भी भात का रिश्ता रहा। दो पहर रात गुजरने के बाद गांव का हज्जाम लोगों को बुलाने आता था। लोग अपने घर से लोटा गिलास लेकर जाते थे। दो गांव के बीच की दूरी होती थी। एक आदमी आगे आगे लालटेन और लाठी लेकर चलता था पीछे सभी लोग रेल के डिब्बे की तरह उसका अनुसरण करते थे। भोज स्थल पर जाने के बाद गजब का उत्साह होता था। पत्तों वाला पत्तल सोंधी मिट्टी वाला चुक्कड का पानी छिलके वाली दाल भात घी की खुशबू कई तरह की सब्जियां दही। और सबसे बड़ी बात खाने और खिलाने वालों की श्रद्धा। गांव में हर किसी की हैसियत इस बात से नापी जाती थी कितने ज्यादा से ज्यादा लोगों से उनका भात का रिश्ता है। बचपन में अक्सर एक चीज को नहीं समझ पाता था कि गांव से कई किलोमीटर दूर के गांव के लोगों के यहां हम भात खाने क्यों जाते हैं। गांव में यह भात जिस बर्तन में बनता था उसे हंडा बोलते थे जो पीतल का होता था। लकड़ी की आंच पर इसी में दाल चावल और सब्जियां तैयार होती थी। जिसके यहां भात का भोज होता था उसके यहां दोपहर से ही चहल-पहल होती थी। गांव के लोग ही मिल जुलकर यहां भात बनाते थे। दौर गरीबी का था घर का एक सदस्य कमाता था और आधा दर्जन सदस्य उसी की कमाई पर खेती कर परिवार पालते थे पर लोगों में भोज भात खिलाने का श्रद्धा था। जमाना बदला वक्त बदला पैसा भी सबके पास आ गया पर ना भात की परंपरा रही ना लोगों के अंदर श्रद्धा। अब कहीं यह परंपरा बची भी है तो गांव के लोग ही गांव में ही भात खाने नहीं जाना चाहते। दूर गांव से भात का रिश्ता टूट गया। वह पेट्रोमैक्स की रोशनी में लंबी पात में जमीन पर बैठकर खाने का आनंद अब सिर्फ जेहन भर में रह गया है।पहले गाँव मे न टेंट हाऊस थे और न कैटरिंग , थी तो बस सामाजिकता।गांव में जब कोई शादी ब्याह होते तो घर घर से चारपाई आ जाती थी,हर घर से थरिया, लोटा, कलछुल, कराही इकट्ठा हो जाता था और गाँव की ही महिलाएं एकत्र हो कर खाना बना देती थीं।औरते ही मिलकर दुलहन तैयार कर देती थीं और हर रसम का गीत गारी वगैरह भी खुद ही गा डालती थी।शादी ब्याह मे गांव के लोग बारातियों के खाने से पहले खाना नहीं खाते थे क्योंकि यह घरातियों की इज्ज़त का सवाल होता था।गांव की महिलाएं गीत गाती जाती और अपना काम करती रहती।सच कहु तो उस समय गांव मे सामाजिकता के साथ समरसता होती थी।
विदाई के समय नगद नारायण कड़ी कड़ी १० रूपये की नोट जो कहीं २० रूपये तक होती थी....वो स्वार्गिक अनुभूति होती कि कह नहीं सकते हालांकि विवाह में प्राप्त नगद नारायण माता जी द्वारा आठ आने से बदल दिया जाता था...आज की पीढ़ी उस वास्तविक आनंद से वंचित हो चुकी है जो आनंद विवाह का हम लोगों ने प्राप्त किया है।जो आने वाली पीढ़ियों को कथा कहानियों में पढ़ने सुनने को ही मिल पाएगा।🙏🏽🙏🏽

जय श्री चित्रगुप्त महराज की 🙏🙏
23/03/2024

जय श्री चित्रगुप्त महराज की 🙏🙏

22/03/2024

Sangrahe Khurd friday market at panchayat bhawan on 22.03.2024

21/03/2024

अपना गाँव संग्रहे खुर्द ,गढवा
बुधवार बाजार बस स्टेंड के पास. 20.03.2024

"बर बरात के असली बात" वो मुहल्ले के जवान छैल छबीले लड़के होते थे, जिनके ऊपर बारातियों को खिलाने की जिम्मेवारी हुआ करती थ...
06/03/2024

"बर बरात के असली बात"

वो मुहल्ले के जवान छैल छबीले लड़के होते थे, जिनके ऊपर बारातियों को खिलाने की जिम्मेवारी हुआ करती थी।कमबख्त ये काम बस इस लिए ले लेते के आखिरी पंगत घर मुहल्ले और रिश्ते में आई लड़कियों की होती। ये थके हुए भी ऊर्जा से भरे होते। ये चाहते उनकी पंगत बैठते बिस्मिल्ला खा शहनाई बजाने लगे, ये चाहते बैठने की जगह को चौका की तरह पूरा जाए, ये चाहते घर के चाचा ताऊ बस कहीं भी चले जाए पर इधर ना आएं।

ये ऐसी जमीन पर चांदनी बिछाते कहां वो पैर रखती। फिर लड़कियां आती जैसे सौगात, जैसे जिंदगी में बसंत, जैसे देह पलाश के रंग रंग जाए। लड़कियां दुप्पटे में मुंह छुपाए मुस्कुराती, लड़के पत्तल क्या बिछाते खुद बिछ जाते। कड़ाही की सबसे गरम गोल सुनहरी पुड़ियों का चुनाव होता। ये ऐसे पूड़ी उठा कर रखते जैसे दिल रख रहें हो। जबकि आंखें भी नहीं मिलती लेकिन इतने पास पास तो शायद ही कभी और हो पाएंगे। कसोरे में ज्यादा से ज्यादा बुनिया, हर ना के बाद भी दही बूंदी के कसोरे भर दिए जाते।

कुछ लड़कियां खास होती वैसे कुछ लड़के भी खास होते।ये आपस के इशारे से हमारी वाली और उसकी वाली बांट लेते।
ये पंगत संगीत के बैठक की तरह होती। जो खतम ना हो कभी की दुवाएं पढ़ी जाती।

लड़कियां चिड़िया की तरह खा रही गिलहरी की तरह कुतर रही पूड़ी। लड़के बाल्टियों में खाना लिए भाग भाग इनके पास आ रहे।

दिल की बात यही कही जाय, आखिर गाजीपुर वाली भाभी की बहन कल चली जायेगी तो लड़का खाली बाल्टी लिए ही घूम रहा।मिनिट भर को ठहराता कहता सुनो कल चली जाओगी? लड़की लाल हुई जा रही, कहती- अपनी दीदी से मिलने जल्दी आया करो।

लड़की शरारत से कहती है -बाल्टी में तरकारी है क्या? दो मुझे। लड़के की तो बाल्टी खाली है, लड़की जोर से हंसती है।

ये पंगत लडको की उम्र बढ़ाने को है। इशारे में उन्हें आल द बेस्ट बोलने के लिए एकदम नजदीक से लड़के के घुंघराले बालों में हाथ फेरने के लिए है। यहीं कसोरे में दिल परोसे जा रहे पूरियों को फूंक कर दिया जा रहा। और इन्हीं जूठी पत्तलों पर लड़कियां अपनी नाजुक उंगलियां छोड़ गई कुछ पत्तलों को लड़के ऐसे सहेज कर उठा रहे कुछ पत्तलों में बचा पूड़ी का टुकड़ा ऐसे नजर बचा कर खा ले रहे जैसे प्रसाद हो।

यही कुछ लड़के भीड़ वाले चप्पल में अपनी वाली का चप्पल लिए साइड में खड़े हैं।भीड़ के इसी छोर पर ये एक दूसरे की देह गंध के नजदीक है के मतवाले हुए जा रहे।और ऐसे में एक लड़की अपना मुंह पोंछा रूमाल किसी लड़के की मुठ्ठी में ठूस कर भाग जा रही।

पंगत उठ गई है। दीवाने थक गए है, घर के लोग चाहते हैं ये इतना काम किए लड़के मजे से खाएं, पर ये अन्नत आनंद में हैं।

वो कौन लड़का था जो भाभी की बहन का जूठा पत्तल मोड़ कर छुपा लिया के बस इसी में खाना खायेंगे

पत्तल के जूठे में लड़की की शर्माती नजर है उसकी उंगलियों की छुवन है मन तो ऐसा की के एक उंगली को दांत से काट ले लड़का पर इस सोच से ही एक उफ्फ का जन्म है एक आह सी बिछड़न

वो प्यार था या कुछ और था ...

जय श्री चित्रगुप्त महराज की 🌹
06/03/2024

जय श्री चित्रगुप्त महराज की 🌹

15/01/2024
*कायस्थ विभूतिओ में आज के दिन 12 जनवरी विशेष**1. सनातन धर्म की परिभाषा के साथ बौद्ध , हिंदू धर्म की बात रखने वाले स्वामी...
12/01/2024

*कायस्थ विभूतिओ में आज के दिन 12 जनवरी विशेष*

*1. सनातन धर्म की परिभाषा के साथ बौद्ध , हिंदू धर्म की बात रखने वाले स्वामी विवेकानंद जयंती*

*2. शंकराचार्य के पास शिक्षा ग्रहण के बाद शंकराचार्य पद के दावेदार पर ब्राह्मण ना होने के कारण व्यास पीठ पर बैठने नही दिया गया पूरे विश्व में राम के नाम का नोट चलाने वाले कायस्थ कुल गौरव महर्षि महेश योगी जी की जयंती*

*3. अंग्रेजी हुकूमत की कमर तोड़ने वाले मास्टर सूर्य सेन को आज के दिन अंग्रेजो ने क्रूरता से अधमरा कर दिया उनके दांत तोड़ दिए , नाखूनों को नोच के उनके शरीर को घसीटा गया अंत में मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार तक नही करने दिया गया और उनके शरीर को बंगाल की खड़ी में फेंकवा दिया*
*उन्होने आखिरी पत्र अपने दोस्तों को लिखा था जिसमें कहा था: "मौत मेरे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। मेरा मन अनन्तकाल की ओर उड़ रहा है ... ऐसे सुखद समय पर,ऐसे गंभीर क्षण में, मैं तुम सब के पास क्या छोड़ जाऊंगा ? केवल एक चीज, यह मेरा सपना है, एक सुनहरा सपना- स्वतंत्र भारत का सपना .... कभी भी 18 अप्रैल, 1930, चटगांव के विद्रोह के दिन को मत भूलना ... अपने दिल के देशभक्तों के नाम को स्वर्णिम अक्षरों में लिखना जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता की वेदी पर अपना जीवन बलिदान किया है।"*

*ऐसे बहादुर कायस्थ कुल गौरव मास्टर सूर्य सेन को नमन 🙏🏻*

*एक मानव के रूप में मेरा जीवन कुछ सीमित अवधि तक हो सकता पर मेरे कायस्थ समाज और मेरे पूर्वजों के कलम तलवार और शौर्य के चर्चाओं का कोई उम्र नही ये अनंत काल तक रहेगा जब तक हम जैसे परवाने होंगे जिनको कुछ लोग जातिवादी कहेंगे पर ठीक है अगर अपने पूर्वजों के शौर्य बलिदान और उनके किए कर्मो का चर्चा करना जातिवाद है तो गर्व से कहता हू हा मैं हूं जातिवादी*

*अनंत काल तक गौरवमय रहे मेरा समाज*
*मैं रहूं या ना रहूं सदा चमकता रहे मेरा कायस्थ समाज*
*मैं दिखूं या ना दिखूं चिरस्थाई रहे मेरा समाज*

*कायस्थ - कलम कटार और बलिदान*
*अमर रहे मेरा कायस्थ समाज 🚩*

*शिक्षा संगठन राष्ट्रवाद*
*कायस्थ एकता जिंदाबाद*

जिला स्कुल के मैदान मे 23 वे राष्ट्रीय वॉलीबाल प्रतियोगिता के उद्घाटन के अवसर पर मैं साथ में वालीबॉल के पलामू जिला  अध्य...
12/01/2024

जिला स्कुल के मैदान मे 23 वे राष्ट्रीय वॉलीबाल प्रतियोगिता के उद्घाटन के अवसर पर मैं साथ में वालीबॉल के पलामू जिला अध्यक्ष सह वालीबॉल के राज्य कार्यकारी अध्यक्ष आदरणीय श्री सुनील सहाय जी, श्री संजय राज जी और अन्य।

जय श्री चित्रगुप्त महराज  की 🙏
22/11/2023

जय श्री चित्रगुप्त महराज की 🙏

श्रीवास्तव कायस्थों का सांस्कृतिक इतिहास - ————————पौराणिक स्रोतों के अनुसार, नंदिनी (सुदक्षिणा) और श्री चित्रगुप्त के प...
22/11/2023

श्रीवास्तव कायस्थों का सांस्कृतिक इतिहास -
————————
पौराणिक स्रोतों के अनुसार, नंदिनी (सुदक्षिणा) और श्री चित्रगुप्त के प्रथम पुत्र थे कायथा (उज्जैन) में जन्में भानु, जिन्हें श्रीवास्तव कहा गया और उनका उपनाम धर्मध्वज था। उनका विवाह नाग वासुकि की पुत्री नागकन्या पद्मिनी (नाग वासुकि का प्राचीन मन्दिर प्रयागराज में है), और एक देवकन्या से भी कायथा में हुआ। विवाह के पश्चात कायथा से वह कश्मीर के झेलम नदी के किनारे बसे। दोनों पत्नियों ने कश्मीर में झेलम नदी के दो तरफ रहना पसंद किया। नागकन्या जिस तरफ बसीं वहां बसने वाले श्रीवास्तवों को खरे कहा गया। झेलम की दूसरी तरफ के क्षेत्र को देवसर कहा गया और वहां बसने वाले श्रीवास्तवों को देवसरे या दूसरे कहा गया। कालांतर में ये दोनों श्रीनगर के राजा की गद्दी पर भी बैठे। एक मान्यता यह है कि श्रीनगर नाम श्रीवास्तव उपजाति के कारण पड़ा, दूसरी मान्यता यह है कि भानु (श्रीवास्तव) सूर्य के उपासक थे और उन्होंने श्रीनगर की स्थापना की। ऐतिहासिक रेकॉर्ड भी बताते हैं कि श्रीवास्तव की उत्त्पत्ति स्वात नदी से जुड़ी है, जिसका मूल नाम श्रीवास्तु या सुवास्तु था (शशि, पेज 117)। कालांतर में वह अयोध्या में आकर बसे। उत्तर प्रदेश के अवध गज़ेटियर के साकेत अंक के अनुसार ६४३ से लेकर ११वीं शताब्दी तक श्रीवास्तव कायस्थ राजाओं ने लगभग राज किया। बंगाल के सेना साम्राज्य के एक राजा आदिसुर के आमंत्रण पर वह कन्नौज से बंगाल गये और उनकी उत्कृष्ट सेवा के लिये उन्हें कुलीन कि उपाधि दी गई। बंगाल में उनका स्थानीय नाम ‘बोस’ और ‘बसु’ पड़ा।उपरोक्त विवरण सर्वाधिक प्रामाणिक सबूतों पर आधारित है।
दूसरी एक मान्यता यह है कि राजा श्रीवास्तव का विवाह नर्मदा और सुषमा से हुआ। नर्मदा से उन्हें दो पुत्र हुए-देवदत्त और घनश्याम जिसे खरे कहा गया। एक पुत्र ने मुख्य कश्मीर पर राज किया और दूसरे ने सिंधु नदी के किनारे के क्षेत्र पर। घनश्याम के वंशजों को कुछ लोग सिंधुआ कहते हैं। सुषमा के पुत्र को धन्वंतर कहा गया, जिसने कौशल (कोशल) और अवध (अयोध्या) पर राज किया। उसके वंशजों को ‘दूसरे’ कहा गया। माना जाता है कि धन्वंतर ने अमरावती से विवाह किया, जिसने सुखेन को जन्म दिया, जो श्रीलंका के राजा रावण के राजवैद्य बने।
श्रीवास्तव कायस्थों के वंशज धीरे-धीरे आज के उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, बनारस, गोरखपुर, जौनपुर, गाजीपुर, बलिया बस गये; आज के बिहार में वह मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश से सटे ज़िलों में भोजपुर, रोहतास, आरा, छपरा, सिवान, मुजफ्फरपुर आदि ज़िलों में आकर बसे।
इसके बाद वे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों में आए। कुछ ब्रिटिश इतिहासकारों के मुताबिक, श्रीवास्तव कायस्थ गोंडा ज़िल के श्रावस्ती से बाहर फैले। श्रावस्ती नगर, जिसे सहेत-महेत कहा जाता था, की स्थापना उस श्रीवास्तव राजा (क्रुक, 1896) ने की थी जो एक महान और लंबी विरासत छोड़ गया था। आम मान्यता यह है कि राजा दशरथ के एक मंत्री सुमंत श्रीवास्तव कायस्थ थे। बाद में भगवान राम ने अपने साम्राज्य का विभाजन अपने पुत्रों लव और कुश के बीच कर दिया, तो उत्तरी कोशल श्रावस्ती बन गया और वहां के मुख्य निवासियों को श्रीवास्तव कहा गया। डॉ. रांगेय राघव के मुताबिक, श्रीवास्तव में जो ‘वास्तव’ जुड़ा है वह दरअसल यह बताता है कि वे महान वास्तुकार थे और उन्होंने हस्तिनापुर, अचिछा और श्रावस्ती का निर्माण किया था।
चंदेल राजा भोजवरम (13वीं सदी) के काल के अजयगढ़ शिलालेख से यह संकेत मिलता है कि 36 नगर ऐसे थे जिनमें लेखक वर्ग के लोग रहते थे। कीलहॉर्न और संत लाल कटारे सरीखे विद्वानों ने इन 36 नगरों की पहचान आज के छत्तीसगढ़ क्षेत्र में की है (एपिग्राफिया इंडिका, पेज 89)। इनमें सबसे खूबसूरत शहर तक्करिका था, जिसे श्रीवास्तवों ने अपनी स्थायी बस्ती के रूप में स्वीकार कर लिया था (एपिग्राफिया इंडिका,पेज 333)। बताया जाता है कि कुसा नाम के राजा ने कुसुमपुरा नामक नगर को अपना निवास स्थान बना लिया था। श्रीवास्तवों की उत्त्पति की कहानी जो भी हो, और उनका मूल स्थान चाहे श्रीनगर रहा हो या श्रावस्ती या छत्तीसगढ़ पुरालेखों से स्पष्ट है कि वे अपने विशद ज्ञान और अपनी विश्वसनीय निष्ठा जैसे असाधारण गुणों के बूते सत्ता की सीढ़ियों पर ≈पर चढ़ते गए। शक्तिशाली और समृह् होने के बाद उन्होंने अपनी सामाजिक हैसियत में वृहि् करने के लिए खुद को कश्यप ऋषि और उनके पुत्रों का वंशज बताकर यह दावा किया कि वे दैवी मूल के हैं।
ईपू. 268 के आसपास सम्राट अशोक ने कश्मीर को जीत लिया और अपने पुत्र जालौका को उसका राज्यपाल बना दिया। जालौका के बाद गोनंद परिवार ने, जिसका अंतिम राजा बालदित्य था, कश्मीर को अपने कब्जे में ले लिया। बालदित्य की एकमात्र बेटी थी अनंगलेखा, लेकिन अशुभ ग्रहों के प्रभावों को टालने के लिए उसने उसका विवाह एक चारा प्रबन्धक दुर्लभवर्धन से कर दिया, जो श्रीवास्तव कायस्थ था। ललितादित्य इस कर्कोट नामक वंश की पांचवीं पीढ़ी का राजा था।
इस वंश की उत्त्पति के बारे में भले ही भिन्न-भिन्न मत हों, ऐतिहासिक तथ्य यह है कि यह कार्कोट वंश छठी सदी के करीब में उभरा और सबसे प्रसिह् ललितादित्य मुक्तपीठ के अलावा कई योग्य कायस्थ राजाओं ने कश्मीर पर 400 से ज्यादा वर्षों तक राज किया। और ऐसा लगता है कि वे सब श्रीवास्तव कायस्थ ही थे।
कार्कोट वंश के इन राजाओं के बारे में ऐतिहासिक विवरण का स्रोत मुख्यतः कल्हण की ‘राजतरिंगिणी’ ही है। यह भी इस बात की पुष्टि करती है कि वे राजा कायस्थ थे। कल्हण के अलावा, अल बरूनी और तांग वंश के सु तांग ने भी ललितादित्य के शासनकाल का विस्तार से वर्णन किया है। एक इतिहासकार ने ललितादित्य को ‘भारत का सिकंदर’ तक कहा है। बताया जाता है कि उसने 100 से ज्यादा लड़ाइयां लड़ी और सबमें विजय प्राप्त कीऋ बताया जाता है कि उसने तुर्कों, रूसियों, और अरबों को उनकी ही ज़मीन पर हराया, जबकि चीनियों ने बागी तिब्बतियों को परास्त करने के लिए उसके साथ संधि कर ली। उसने उस काल के सबसे शक्तिशाली कन्नौज के राजा यशोवर्णम को भी पराजित किया। इस तरह, उसका साम्राज्य तुर्की से लेकर बंगाल तक फैला था। उसे कश्मीर में भव्य नगरों और मन्दिरों के निर्माता के तौर पर याद किया जाता है। उसने कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से परिहासपुरा में स्थानांतरित करवाया, जिसके शानदार अवशेष श्रीनगर से 22 किलोमीटर की दूरी पर आज भी देखे जा सकते हैं। भारत में सूर्य देवता का सबसे बड़ा मार्तंड मन्दिर कश्मीर के अनंतनाग जिले में आज भी अपनी भव्यता के साथ खड़ा है, हालांकि विदेशी आक्रान्ताओं ने इसे कई बार नष्ट करने की कोशिश की (स्टीन, 2019)।
छठी सदी के बाद से श्रीवास्तवों ने उत्तर भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कलचुरी, चंदेल, गहड़वाल जैसे महत्वपूर्ण राजवंशों ने उनकी सेवाओं का काफी लाभ उठाया। लेखक और कलमजीवी के रूप में शुरू करके उन्होंने सिकला, पुराण, आगम, धर्मशास्त्र और साहित्य की विद्या के सागर को पार किया और माप-तौल के विज्ञान, व्याकरण, प्रेम एवं कला से निर्मित राजनीतिक-विधिक ज्ञान की ऊचाइयों को छुआपि (एपिग्राफिया इंडिका, खंड 30, पेज 90, 48)। अपनी वफ़ादारी और कुशलता के बल पर उन्होंने गांवों की जमींदारी, दौलत, और रसूख हासिल किया, जिसे उन्होंने मन्दिरों का निर्माण कराने जैसे परमार्थ के कार्यों के जरिए मजबूत करने के उपक्रम किए (ब्लंट, पेज 222)। कालांतर में श्रीवास्तव कायस्थ मध्य और उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में भी फैल गए।
उच्चवर्गीय श्रीवास्तव कायस्थों और उन्हीं के गांव के साधारण पटवारियों के बीच अलगथलग और उदासीन-सा संबंध रहा क्योंकि ये मुंशी भ्रष्टाचार के लिए बदनाम थे। आर्थिक अनिश्चितता और समाज में नीची हैसियत के कारण ये पटवारी लोग हेराफेरी का सहारा लिया करते थे। इसलिए उच्चवर्गीय श्रीवास्तव कायस्थ पटवारियों के साथ कारोबारी या पारिवारिक संबंध बनाने से इनकार करते थे (क्रुक, खंड 3, पेज 191)। श्रीवास्तवों के 56 अल हैं।
श्रीवास्तव कायस्थों में अनगिनत हस्तियाँ हुईं, जिसमें उल्लेखनीय हैं ललितादित्य मुक्तपीढ़, जयप्रकाश नारायन, सुभाष चंद्र बोस, महेश योगी, स्वामी योगानंद, राजेन्द्र प्रसाद, सच्चिदानंद सिन्हा, महादेवी वर्मा आदि।

छठ व्रत जय छठी मइया की 🙏
20/11/2023

छठ व्रत
जय छठी मइया की 🙏

17/11/2023

मरणोत्तर जीवन तथ्य एंव सत्य की कुछ श्रेष्ठ पंक्तियाँ 👉👇
मृत्यु जीवन का विश्राम स्थली हैं, जहाँ जीवात्मा अपनी थकान दूर करती, नये जीवन के लिए शक्ति प्रदान करती है ! थकान दूर करने के लिए विश्राम तो नित्य ही करते हैं! पुनः नयी शक्ति एवं स्फूर्ति से दैनिक कार्यों में जुड़ जाते हैं !विश्रामावधि में जाने में ना तो डर लगता है, ना ही किसी प्रकार की कठिनाई अनुभव होती है! विश्राम के अभाव में तो व्यय हुई शक्ति की आपूर्ति नहीं हो पाती! काया कमजोरी तथा श्रम के आरोग्य हो जाती है! जीवन भर की थकान को मिटाने के लिए भावी जीवन के लिए शक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से मृत्यु रूपी विश्राम अवधि भी उतनी ही आवश्यक है! काय- परिवर्तन इसलिए आवश्यक हो जाता है कि लंबी अवधि तक श्रम करने के कारण वह इस योग्य नहीं रहती कि कठोर श्रम कर सके ! पुराने फटे वस्त्रों को बदलकर, नये पहन लिए जाते हैं! जर्जर हो गई मशीनों को पूर्ण रूपेण परिवर्तित कर देना ही उचित होता है ! इन परिवर्तनों में ना तो किसी प्रकार का दुराग्रह होता है, ना आसक्ति और नहीं किसी प्रकार का भय! नये के प्रति, परिवर्तन के प्रति भयभीत हो जाने अथवा पुरातन के प्रति आसक्ति बने रहने से उन लाभों से वंचित रह जाना पड़ता है, जो नए वस्त्रों एवं वस्तुओं से मिलता है ! मृत्यु के संबंध में यही बात लागू होती है!
मृत्यु इसलिए भी आवश्यक एवं उपयोगी है कि जीव नये जीवन का , परिवर्तन का आनंद ले सके! मृत्यु का क्रम रुक जाय , उस स्थिति की कल्पना की जाय तो पता चलता है कि जीवन कितना नीरस एवं उभरा होगा! लंबी आयु, अमर काया, जर्जर, अशक्त बनी लाश ढोने के समान होगी, बुढ़ापा वैसे ही कितना नीरस भार भरा प्रतित होता है! उस पर भी यदि उसके साथ अमरता का वरदान जुड़ जाए तो कितनी कठिनाई होगी! निश्चित ही कोई विचारशील , काया रूपी अमरता को स्वीकार न करना चाहेंगे! असमर्थ, अशक्त, जराजीर्ण काया की गठरी के बोझ को कौन सदा ढ़ोना चाहेगा??
फिर मृत्यु से डर क्यों लगता है ? शरीर के प्रति आसक्ति क्यों बनी रहती है? इन कारणों पर विचार करने पर पता चलता है, कि मृत्यु एवं जीवन के स्वरूप की वास्तविक जानकारी न होने के कारण ही भय लगता है! हमारी सत्ता शरीर से अलग है - शाश्वत , अविनाशी एवं अमर है! यह बोध बना रहे तो मृत्यु की आशंका से भयभीत होने का कोई कारण नहीं दीख पड़ता! शरीर सत्ता को ही सब कुछ मान लेने , मृत्यु के साथ जीवन का अंत समझ लेने से डर लगता है ! शास्त्र इसलिए निर्देश देते हैं कि अपनी सत्ता को जानो और पहचानो!!
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I've received 200 reactions to my posts in the past 30 days. Thanks for your support. 🙏🤗🎉
04/11/2023

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श्री चित्रगुप्ताय: नमो: नम:दशहरा पर्व पर आप सभी ग्रुप के मित्रों  को हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनाएं 🙏भला किसी का कर ना ...
24/10/2023

श्री चित्रगुप्ताय: नमो: नम:

दशहरा पर्व पर आप सभी ग्रुप के मित्रों को हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनाएं 🙏

भला किसी का कर ना सको तो, बुरा किसी का ना करना ।
पुष्प नहीं बन सकते तो, कांटे बन कर मत रहना ॥
बन ना सको भगवान् अगर, कम से कम इंसान बनो।
नहीं कभी शैतान बनो, नहीं कभी हैवान बनो॥
सदाचार अपना न सको तो, पापों में पग ना धरना।
पुष्प नहीं बन सकते तो, कांटे बन कर मत रहना॥
सत्य वचन ना बोल सको तो, झूठ कभी भी मत बोलो।
मौन रहो तो ही अच्छा, कम से कम विष ना घोलो ॥
बोलो यदि पहले तुम तोलो, फिर मुंह को खोला करना ।
घर ना किसी का बसा सको तो, झोपड़ियां ना जला देना।
मरहम पट्टी कर ना सको तो, खार नमक ना लगा देना ॥
दीपक बन कर जल ना सको तो, अंधियारा ना फैला देना।
अमृत पिला ना सकें किसी को, ज़हर पिलाते भी डरना
धीरज बंधा नहीं सको तो घाव किसी के मत करना ॥
धर्म की जय हो। अधर्म का नाश हो !
प्राणियों में सदभावना हो। विश्व का कल्याण हो !!*

I've just reached 100 followers! Thank you for continuing support. I could never have made it without each one of you. 🙏...
23/10/2023

I've just reached 100 followers! Thank you for continuing support. I could never have made it without each one of you. 🙏🤗🎉

जय माँ सिद्धिदात्री की 🙏
23/10/2023

जय माँ सिद्धिदात्री की 🙏

17/10/2023

जय माँ चन्द्रघण्टा की 🙏

सभी लोगों को शारदीय नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं 💐जय माता दी! 🚩
15/10/2023

सभी लोगों को शारदीय नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं 💐
जय माता दी! 🚩

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष शुभकामनाएं।
11/10/2023

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष शुभकामनाएं।

जयंती पर शत शत नमन 🙏
11/10/2023

जयंती पर शत शत नमन 🙏

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