28/06/2024
समारोह पूर्वक धूमधाम से मनाई गई दानवीर भामाशाह जी की जयंती
सारण जिला वैश्य महासभा, सारण के तत्वाधान में "नारायण पैलेस, दलदली बाजार छपरा में दानवीर भामाशाह जी की जयंती समारोह बड़े ही धूमधाम से सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में मनायी गयी। जिसकी अध्यक्षता वीरेंद्र साह मुखिया और संचालन विष्णु कुमार गुप्ता ने किया। शुरुआत दानवीर भामाशाह जी की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर एवं वैश्य गीत से हुआ। वक्ताओं ने भामाशाह द्वारा स्वदेश प्रेम और मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप से मित्रता और विश्वासपात्र सलाहकार रहने के चलते अपना सर्वस्व-- तन -मन-धन दान करने की वृतांत को अपने-अपने ढंग से अपनी-अपनी शैली में दर्शकों व श्रोताओं के सम्मुख रखा।
सब ने माना कि अकबर से युद्ध के लिए व अपनीमातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम और दानवीरता के चलते चित्तौड़ के नगर सेठ भामाशाह जी ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था।उनका यह सुकृत्य इतिहास में सदा ही अमर रहेगा।
उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए अध्यक्ष वीरेंद्र साह मुखिया ने कहा कि दानवीर भामाशाह जी बेमिसाल व्यक्तित्व के धनी एवं त्यागी पुरुष थे। वे एक धनी व्यक्ति के साथ-साथ प्रसिद्ध सेनापति, मंत्री और मित्रों के मित्र और दुश्मनों के दुश्मन थे।आत्मसम्मान और त्याग की यही भावना उनके स्वदेश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने वाले देश-भक्त के रूप में शिखर पर स्थापित कर देती है।
डॉ हरिओम प्रसाद ने भामाशाह जी को भारत माता का एक अनमोल हीरा तथा वैश्यों का आइकाॅन बताया और कहा कि हमें ऐसे महापुरुष से प्रेरणा लेकर संग्रही बनने के बजाय परिग्रही बनना चाहिए।
माखनलाल चतुर्वेदी जी की दो पंक्तियों से उन्होंने समापन किया "मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक"।
राज नारायण साह ने कहा कि जब तक भारतवर्ष रहेगा, चांद और सूरज रहेंगे भामाशाह जी का जीवन सभी लोगों के लिए सदा अनुकरणीय रहेगा। उनके जैसा समाज के हर धनी व्यक्ति को बनना चाहिए। जिससे कि हमारा देश और समाज अधिक सशक्त बन सके।
उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए प्राचार्य सिया शरण प्रसाद ने कहा कि भामाशाह जी की दानशीलता, वीरता, त्याग, बलिदान और देश प्रेम की उत्कट इच्छा के कारण ही बिहार सहित अनेकों राज्यों व केंद्र सरकार द्वारा उनके सम्मान में, उनके नाम पर सफल उद्यमियों के बीच "भामाशाह पुरस्कार" देती हैं ।यह उनके प्रति हमारे सच्ची श्रद्धांजलि वह प्रेम को दर्शाता है।
ने कहा कि
वह धन्य देश की माटी है, जिसमें भामा सा लाल पला,
उस दानवीर की यश गाथा को मिटा सका क्या काल भला।
इस दानवीर के त्याग का बखान करते-करते छठी लाल प्रसाद ने कहा कि हल्दी घाटी के युद्ध के पश्चात जब महाराणा प्रताप बिल्कुल निराश हो गए थे तब उन्होंने महाराणा प्रताप के लिए अपनी निजी सम्पत्ति में इतना धन दान दिया था कि जिससे २५००० सैनिकों का बारह वर्षों तक वेतन, भत्ते, युद्ध सामग्री और भोजन का प्रबंध किया जा सके।
उपस्थित लोगों में विद्यासागर विद्यार्थी, डाॅ.हरिओम प्रसाद विष्णु कुमार गुप्ता, चंद्र केतु प्रसाद, रामचंद्र प्रसाद, सुनील कुमार गुप्ता, ललन प्रसाद, मुकेश कुमार गुप्ता शिक्षक, कन्हैया कुमार, शशि भूषण प्रसाद अधिवक्ता, शिव कुमार ब्याहुत, सुधीर कुमार गुप्ता, गोरख प्रसाद, राजेश्वर प्रसाद, बिरजा साह, वीरेंद्र शाह सुग्रीव कुमार गुप्ता,रंजीत कुमार, कृष्ण कुमार वैष्णवी, अशोक कुमार गुप्ता, संतलाल साह, अरुण साह, उदय कुमार गुप्ता, गुड्डू जी,अनिल साह, मनोज कुमार,बद्री साह, सुमित कुमार गुप्ता, बबलू, रवि कुमार, संतोष कुमार,अजय प्रसाद एल आई सी, श्रीकांत जी, मुन्ना कुमार गुप्ता, अनिल कुमार गुप्ता, रामा, मुरारी प्रसाद, शंकर गुप्ता, अजय कुमार गुप्ता, प्राचार्य सिया शरण प्रसाद, अरुण कुमार गुप्ता शिक्षक,राज कुमार गुप्ता, प्राचार्य ब्रृज बिहारी प्रसाद आदि प्रमुख थे। धनबाद ज्ञापन संजीत कुमार नन्ची ने किया