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31/10/2023
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08/10/2023

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🧃 बिहारी सतुआ 🧉दूसरा-तीसरा में पढ़ते होंगे. ठीक से यादो नहीं है. गर्मी के दिन में इस्कूल मॉर्निंग हो जाता था. मॉर्निंग स्...
15/04/2023

🧃 बिहारी सतुआ 🧉

दूसरा-तीसरा में पढ़ते होंगे. ठीक से यादो नहीं है. गर्मी के दिन में इस्कूल मॉर्निंग हो जाता था. मॉर्निंग स्कूल मतलब भोर 6 बजे से 11 बजे तक पढ़ाई आ उसके बाद भर दिन गाछी में टिकोला के रखवाली.. भोरका इस्कूल जाना बड़ा झंझटिया काम लगता था. मन मारकर बिछौना छोड़ना पड़ता. मतलब रात भर आपको मच्छर खखोर दिया हो, भोर में 4 बजे हल्का-हल्का हवा में नींदे पड़े हों कि दादी कुण्डी खटखटा देती थीं. अरे अभिए ता नींद पड़ा था. हम बिछौना पर पड़ले-पड़ल अपना आखिरी ब्रह्मास्त्र छोड़ते "दादी, पेट दर्द.." पर दादी कहाँ मानने वाली थीं. "चुपचाप उठ रे कुम्भकरण, तुम्हारा डेली का ईहे नखरा रहता है.."😴😴

हम नींद में उठते.. नींदे में मैदान हो लेते. नींदे में ब्रश-दतमन भी कर लेते.. आ नींदे में जइसे ही भनसाघर (रसोई) में घुसते, पानी रखा पितरिया लोटा पैर से लगकर ढनमाना जाता. फिर दादी डांट के कहतीं "जा रे सत्यानाशी, अभी पानी पिबो नहीं किए थे.. पूरा उझल दिए." अब हमारा नींद फुर्र. हम फिर दांव खेलते "खाना कुच्छो नहीं है, हम भूखे नहीं जाएंगे इस्कूल." हालांकि तब तक दू ठो बसिया रोटी में चीनी लपेट कर ठूंस दिए रहते.🥖🥖

"तुमको तो हम इस्कूल भेजिए के रहेंगे.. चाहे भूक्खेे जाओ, चाहे दुक्खे." दादी अपने से डिबिया लेश के भनसाघर में आतीं आ सतुआ का पैकेट निकालतीं. पहलवान जी इ के ईहाँ से आया शुद्ध चना का सतुआ. अपना हाथ से पीसल. बाटी में सत्तू उझल के, एक मुट्ठी चीनी डालके सतुआ का गोला तईयार हो जाता. इहे गोला बम भोला 5 घंटा इस्कूल में जान बचाएंगे. हम बस्ता टांगते आ सतुआ भकोसते चल देते इस्कूल. सतुआ से पहीला इंट्रोडक्शन हमारा अईसे ही हुआ था. चीनी मिलाएल गोला वाला सतुआ. लिट्टी-चोखा, नीम्बू-प्याज वाला सतुआ, काला नमक वाला सत्तू सब तो बाद में देखे. कभी-कभी ता इस्कूल से सीधा गाछी भाग जाते, दादी सबको कहते खोजतीं " अमना को देखे हैं, देखिए तो भोर से खाली सतुआ खाया हुआ है.. आज मिल जाए पहले फेर बताते हैं इसको.."🌳👵🏻

आज सतुआइन है. फेसबुक से पता चला. एक बार फेर गाँव याद आ गया. टिकोला, सतुआ का गोला आ दादी. होली का छुट्टी मनाकर जे बिहार से शहर लौटता है ना. चाहे आईआईटी में पढ़े वाला हो चाहे फैक्टरी में कमाए वाला.. ओकरा बैग के, झोेरा के कोनो कोना में करियक्का पोलिथिन में बान्हल सतुआ जरूर मिल जाएगा. सतुआ हमारे लिए खाली नाश्ता आ पेट भरे का चीज नहीं है, कोनो दादी आ कोनो माई का विश्वास है, भरोसा है. शहर के मोमो, पिज्जा आ बर्गर को उठा के पटक देबे वाला सतुआ. पोलोथिन में सतुआ बान्हते समय शायद दादी आ मम्मी ईहे असीरबाद देती होंगी "मिरचाई नियन हरियाएल रहेगा, हमार बचवा जुड़ाइल रहेगा..!"😇

- Shyam Gupta ✍🏻©

Bihari no 1


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08/03/2023

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*𝐇𝐀𝐏𝐏𝐘 𝐇𝐎𝐋𝐈*

*आपको और आपके परिवार को होली के पावन अवसर पर मेरे और मेरे परिवार की तरफ से, हार्दिक शुभकामनाये!* ☜︎︎︎𝒬꧂
꧁𝒬☞︎︎︎ *होली के रंगो की तरह आपकी जिंदगी भी, खुशियों के रंगो से भरी हो,मेरी यही कामना है....* ☜︎︎︎𝒬꧂
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13/02/2023

13/02/2023

I've received 200 reactions to my posts in the past 30 days. Thanks for your support. 🙏🤗🎉
09/02/2023

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22/01/2023

Career guru cansultancy chakia

18/01/2023

From fill online

Celebrating my 8th year on Facebook. Thank you for your continuing support. I could never have made it without you. 🙏🤗🎉
18/01/2023

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हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी , पहला चरण   -   कैंची दूसरा चरण    -   डंडा तीसरा चरण   -   गद्दी ......
18/01/2023

हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी ,
पहला चरण - कैंची
दूसरा चरण - डंडा
तीसरा चरण - गद्दी ...
*तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।*
*"कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे*।
और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और *"क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है* ।
*आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था*।
हमने ना जाने कितने दफे अपने *घुटने और मुंह तोड़वाए है* और गज़ब की बात ये है कि *तब दर्द भी नही होता था,* गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए।
अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और *अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में* ।
मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी! *"जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं* ।
*इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए* !
और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी।
और ये भी सच है की *हमारे बाद "कैंची" प्रथा विलुप्त हो गयी* ।
हम लोग की दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा !
*पहला चरण कैंची*
*दूसरा चरण डंडा*
*तीसरा चरण गद्दी।*
● *हम वो आखरी पीढ़ी हैं*, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है।
● *हम वो आखरी लोग हैं*, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं l

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*सुख,शांति एवं समृद्धि की अनंत शुभकामनाओं सहित 2023 के आगमन की बहुत-बहुत हार्दिक बधाई। समय के साथ आप सदैव आगे बढ़ते रहें...
31/12/2022

*सुख,शांति एवं समृद्धि की अनंत शुभकामनाओं सहित 2023 के आगमन की बहुत-बहुत हार्दिक बधाई। समय के साथ आप सदैव आगे बढ़ते रहें ईश्वर से हम यही प्रार्थना करते हैं।*
*नया साल की बधाई*
*𝐇𝐚𝐩𝐩𝐲 𝐍𝐞𝐰 𝐘𝐞𝐚𝐫 𝐦𝐲 𝐅𝐫𝐢𝐞𝐧𝐝*

*By Shyam Gupta *

21/11/2022
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16/01/2022

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