18/06/2023
पहली बात तो ये लेखक-निर्देशक ओम राउत ने रामायण खोलकर तक न देखी है और तथाकथित बुद्धिजीवी मनोज मुंतशिर 'शुक्ला' ने रामायण का 'र' भी न पढ़ा है। इसलिए कुछ भी, जो मन में आया करते चले गए। रावण को मिला वरदान तक ज्ञात न था। तो हिरणकश्यप के ही वरदान से काम चला लिया।
तुम लोग वाल्मीकि जी, तुलसीदास बाबा, अन्य रामायण वर्जन को छोड़ दीजिए, रामानंद सागर जी वाली से कोसों दूर खड़े रहे हो। इतने दूर से जो देखा, वही फिल्मा दिया।
आदिपुरुष के निर्माण व इतने निम्न स्तर के संवाद लिखने और हनुमान जी के किरदार को कॉमिक स्वरूप में दिखलाने के लिए ओम और मनोज को सह-श्रम कारावास यानी उम्र कैद होनी चाहिए। लुक हज़म न हुआ था, फिर भी एडजेस्ट करके समर्थन किया। लेकिन विश्वास करो, बजरंगबली इस अपराध के लिए कभी क्षमा नहीं करेंगे।
इसे देखकर लगता है। ओम राउत ने मार्वल और डीसी की फिल्में ख़ूब देखी होंगी, उन्हें देखकर कुछ बनाने का मन किया, तो उनके समक्ष आदिपुरुष में रामायण को सुपर हीरो फॉर्मेट में दिखलाने निकले है। भारतीय परिवेश में सुपर हीरो को दर्शाने हेतु सांकेतिक वर्जन लिखते, रामायण को अडॉप्ट करने की कतई जरूरत न थी। क्योंकि इस लायक न हो बे। ऐसे भावनाओं से खिलवाड़ करने पर तनिक लज्जा न आई।
इतिहास के तथ्यों को तोड़ मरोड़ या सिनेमाई लिबर्टी ले सकते हो, लेकिन मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम की कथा इतिहास नहीं है बल्कि सनातन की धरोहर है। क़िरदारों से ऐसी छेड़छाड़ डिस्क्लेमर से भी माफ़ न होगी।
लेखकों ने हनुमानजी, लक्ष्मण, मेघनाद, सबरी आदि क़िरदारों को धूमिल कर दिया। या कहे मजाक बना दिया। मेघनाद, मेघनाद कम हैरी पॉटर की बेलाट्रिक्स लेस्ट्रेंज अधिक लगे, काले जादू की तरह ओलंपिक की दौड़ दौड़ने लगा दिया। तिस पर सड़कछाप डायलॉग दिए गए।
हनुमानजी के बाहुबल वाले सीक्वेंस भी बेहद सूक्ष्म करके दिखाए है, सोचा था कुछ बढ़िया एंगल में सीक्वेंस देखने को मिलेंगे। लेकिन प्रभाष को पीठ पर बिठाने के अलावा कुछ न रखा।
लक्ष्मण को शक्ति लगनी थी, वक्त की कमी के चलते नाग पाश में ही मूर्छित कर दिया, वैद्य सुषेण व्यस्त थे। इसलिए अपनी नर्स को भेज दिया। रावण मायावी अवश्य था, लेकिन इतना नहीं, कि साँपों से मालिश करवाएं।
सबरी स्वयं चली आई, क्योंकि लेखक के पास वक्त न था। उनके पिताजी ने कसम दी थी कि 179 मिनट में ही खत्म करनी है 180 मिनट भी न होनी चाहिए।
प्रभाष! बाहुबली छवि की किस्तें खत्म हो गई, अब रिटायरमेंट ले लो या कुछ दिन अवकाश लेकर स्क्रिप्ट चयन करना सीखों। श्रीराम को पाने के लिए बॉडी नहीं, श्रद्धा भाव काफ़ी है। कोई फ्रेम कनेक्ट न कर सके। तुमने अब न हो पाएगा...
सैफ अली खान! बौना रावण चुना, जुगाड़ से बड़ा दिखलाने में लंगड़ा त्यागी बना दिए, हाव-भाव में इम्प्रेसिव लगे। लेकिन लुक से रावण कम खिलजी अधिक नज़र आए।
वीएफएक्स और आर्ट वर्क में फ़िल्म जगत का सबसे बड़ा घोटाला है। कोई ढंग का सीक्वेंस न था। लंका कम वोल्डनमोट का महल अधिक नजर आया। इतनी हाई टेक लंका रही, फिर भी रावण चमगादड़ यूज करते दिखलाया है।
कुछ सीक्वेंस ठीक लगे है, अयोध्याजी भव्य और सुंदर दिखलाई है। लेकिन इनकी भव्यता कौनसी बिनाह पर समझें, कुछ समझ न आया।
मूर्ख ओम राउत और मनोज मुंतशिर आपको क्या लगता है क्या नहीं, कोई फ़र्क न पड़ता है। युवा पीढ़ी व बच्चों को तुमने ज्यादा मालूम है क्योंकि उन्हें उनकी दादी-नानी ने श्रीराम कथा सुनाई है और रामानन्द सागर जी की कथा को लॉकडाउन में देख चुके है। कलयुग परिपेक्ष्य में कुछ दिखलाना था तो त्रेता युग जाने की क्या आवश्यकता थी। राम लीला तो हर साल होती है, ऐसा ही कुछ लिख लेते।
फिर कह रही हूँ, चिरंजीवी हनुमान जी अपने प्रभु की कथा को ऐसा वर्जन देने के दुस्साहस में इतने गदा मारेंगे। सोच न पाओगे, क्या हुआ। अब भी वक्त है क्षमा मांग लो।
जो भी टिकट बुक करवा लिए है वे देखना चाहते है तो सनद रहे, रामानंद सागर जी द्वारा कृत रामायण को घर छोड़कर निकले, बल्कि नहीं निकले तब भी कोई फ़र्क न पड़ेगा। इसे देखो या नहीं, कतई जरूरी न है