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*लिबर्टी अब आपके अपने शहर बक्सर में... आपसभी का हार्दिक स्वागत है...🙏                      #बक्सर
23/01/2024

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जाँच की हर सुविधा के साथ रेडकलीफ अब बक्सर में...🙏
04/01/2024

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नमस्कार... बक्सर जिले के लिए एक नई शुरुआत। यदि आप अपने व्यवसाय/प्रतिष्ठान/संस्थान के बिजनेस संबंधित समाचार और अपने प्रोड...
14/07/2022

नमस्कार... बक्सर जिले के लिए एक नई शुरुआत। यदि आप अपने व्यवसाय/प्रतिष्ठान/संस्थान के बिजनेस संबंधित समाचार और अपने प्रोडक्ट की जानकारी कम समय में निःशुल्क और सीमित खर्च द्वारा दूर-दूर तक अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना चाहते है तो, आपका इंतजार खत्म... क्योंकि कि हम लेकर आये है आपके लिए "बक्सर दर्पण" नामक पत्रिका, मोबाईल एप और पोर्टल न्यूज चैनल जिसके माध्यम से आप अपने वयापार को हाजरो/लाखों लोगों के बीच आगे बढ़ा सकते है। जिसका शीघ्र शुभारम्भ होने जा रहा है, इससे जुड़ने के लिए संपर्क करें और अपना आशीर्वाद बनाये रखें। मो0: 8804403000, वाट0: 9304663664 धन्यवाद!😊

बक्सर दर्पण के सभी दर्शकों एवं पाठकों को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं... !!गरपती बप्पा मोरया!!
10/09/2021

बक्सर दर्पण के सभी दर्शकों एवं पाठकों को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं... !!गरपती बप्पा मोरया!!

बक्सर दर्पण के सभी पाठकों, दर्शकों एवं समस्त देशवासियों को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं... !!राधे-राधे!!
30/08/2021

बक्सर दर्पण के सभी पाठकों, दर्शकों एवं समस्त देशवासियों को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं... !!राधे-राधे!!

हरतालिका व्रत (तीज)🌳🌳🌳🌳हरतालिका तीज की महिमा को अपरंपार माना गया है। हिन्दू धर्म में विशेषकर सुहागिन महिलाओं के लिए इस प...
21/08/2020

हरतालिका व्रत (तीज)
🌳🌳🌳🌳
हरतालिका तीज की महिमा को अपरंपार माना गया है। हिन्दू धर्म में विशेषकर सुहागिन महिलाओं के लिए इस पर्व का महात्म्य बहुत ज्यादा है। हरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में मनाए जाने वाला एक प्रमुख व्रत है। तृतीया तिथि 21 अगस्त को हैं अतः हरतालिकाव्रत अर्थात तीज 21अगस्त 2020 कों मनाई जाएगी।

हरतालिका तीज शुभ मुहूर्त:
सुबह 5 बजकर 53 मिनट से 9 बजकर 6 मिनट तक

हरतालिका तीज व्रत के नियम:

हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है. अगले दिन सुबह पूजा के बाद जल पीकर व्रत खोलने का विधान है.

- हरतालिका तीज व्रत एक बार शुरू करने पर फिर इसे छोड़ा नहीं जाता है. हर साल इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करना चाहिए।

- हरतालिका तीज व्रत के दिन रात्रि जागरण किया जाता है. रात भर जागकर भजन-कीर्तन करना चाहिए.

हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि

हरतालिका तीज की पूजा सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में की जाती है.
- इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत और काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाई जाती है.
पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखकर उस पर केले के पत्ते बिछाएं और भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें.
- इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें.
- इस व्रत की मुख्य परंपरा माता पार्वती को सुहाग की सारी वस्तुएं चढ़ाना है.
- हरतालिका तीज की पूजा में शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है. बाद में यह सामग्री किसी ब्राह्मण को दान देना चाहिए.
- तीज की कथा सुनें और रात्रि जागरण करें. आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं और हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें.

हरतालिका तीज का महत्व

हरतालिका तीज पर माता पार्वती और भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है. इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की कामना के लिए ये व्रत रखती हैं. हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. माता पार्वती ने शंकर भगवान को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. माता पार्वती के इस तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती जी की अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया. तभी से अच्छे पति की कामना और पति की लंबी आयु के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है.

दसरथ माँझी की पुण्यतिथि पर विशेष (साभार-आज तक) जानें पहाड़ तोड़ने वाले शख्‍स दशरथ मांझी के बारे में...दशरथ मांझी, एक ऐसा...
17/08/2020

दसरथ माँझी की पुण्यतिथि पर विशेष (साभार-आज तक)
जानें पहाड़ तोड़ने वाले शख्‍स दशरथ मांझी के बारे में...
दशरथ मांझी, एक ऐसा नाम जो इंसानी जज्‍़बे और जुनून की मिसाल है. वो दीवानगी, जो प्रेम की खातिर ज़िद में बदली और तब तक चैन से नहीं बैठी, जब तक कि पहाड़ का सीना चीर दिया. जानें मांझी के बारे में:

दशरथ मांझी, एक ऐसा नाम जो इंसानी जज्‍़बे और जुनून की मिसाल है. वो दीवानगी, जो प्रेम की खातिर ज़िद में बदली और तब तक चैन से नहीं बैठी, जब तक कि पहाड़ का सीना चीर दिया.
जिसने रास्ता रोका, उसे ही काट दिया:
बिहार में गया के करीब गहलौर गांव में दशरथ मांझी के माउंटन मैन बनने का सफर उनकी पत्नी का ज़िक्र किए बिना अधूरा है. गहलौर और अस्पताल के बीच खड़े जिद्दी पहाड़ की वजह से साल 1959 में उनकी बीवी फाल्गुनी देवी को वक्‍़त पर इलाज नहीं मिल सका और वो चल बसीं. यहीं से शुरू हुआ दशरथ मांझी का इंतकाम.

22 साल की मेहनत:
पत्नी के चले जाने के गम से टूटे दशरथ मांझी ने अपनी सारी ताकत बटोरी और पहाड़ के सीने पर वार करने का फैसला किया. लेकिन यह आसान नहीं था. शुरुआत में उन्हें पागल तक कहा गया. दशरथ मांझी ने बताया था, 'गांववालों ने शुरू में कहा कि मैं पागल हो गया हूं, लेकिन उनके तानों ने मेरा हौसला और बढ़ा दिया'.

अकेला शख़्स पहाड़ भी फोड़ सकता है!
साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज़ ने कब्ज़ा कर रखा था. पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना. और 22 साल जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ ने मांझी से हार मानकर 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता दे दिया

दुनिया से चले गए लेकिन यादों से नहीं!
दशरथ मांझी के गहलौर पहाड़ का सीना चीरने से गया के अतरी और वज़ीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13 किलोमीटर रह गया. केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया. साल 2007 में जब 73 बरस की उम्र में वो जब दुनिया छोड़ गए, तो पीछे रह गई पहाड़ पर लिखी उनकी वो कहानी, जो आने वाली कई पीढ़ियों को सबक सिखाती रहेगी.

सौजन्‍य: 2020 T.V. Today Network Limited.

सन्डे स्पेशल....डुमरांव: सन 42 के अमर शहीदों की शहादत गाथा को भूल रहा वर्तमान पीढ़ी... वतन को अंग्रेजी हुकूमत के गुलामी ...
16/08/2020

सन्डे स्पेशल....
डुमरांव: सन 42 के अमर शहीदों की शहादत गाथा को भूल रहा वर्तमान पीढ़ी...

वतन को अंग्रेजी हुकूमत के गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाने के लिए डुमरांव नगर के चार नौजवानों ने विगत 16 अगस्त,सन 1942 को डुमरांव थाना के निकट हंसते-हंसते अपने सीने पर अग्रेंजी हुकूमत की गोलियों को खाकर ‘खुश रहो अहले वतन अब हम तो सफर करते है’ को साकार करने का काम किया। वतन की आजादी के लिए वीर जवानों में कपिलमुनि, रामदास सोनार, गोपाल जी एवं रामदास लोहार ने अपने प्राणों की आहूति देकर डुमरांव का नाम इतिहास के पन्ने में अकिंत कराने का काम किया।
उनके शहादत को याद कर डुमरांव के नागरिक खुद को गौरवान्वित महसूस करते है। पर दुःखद बिडम्बना है कि आजादी की लंबी अवधि गुजर जाने के बाद भी सरकार द्वार अमर शहीदों के परिजनों के दिक्कतों को दूर करने एवं राहत देने की दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठा सकी है। अमर शहीदों की गाथा को जीवंत बनाए रखने को लेकर विद्यालय के पाठ्य पुस्तक में शामिल करने को लेकर स्थानीय नागरिको की मांग सरकार से जारी है। गत दिनों नागरिको ने प्रशासन को स्मार पत्र सौंपा है।
अमर शहीदो का एक परिचय–
1.शहीद कपिलमुनि- स्थानीय नगर के राजगढ़ से पूरब दिशा में महज कुछ फर्लांग पर मौजूद बड़का अंगना निवासी पिता राम प्रसाद माता सीता देवी के घर के आंगन में कपिलमुनि की पैदाईश हुई तो आंगन में किलकारियां गूंज उठी। पैदाईश के प्रतिक स्वरूप थाली बजी तो पड़ोस की महिलाओं की भीड़ नवजात शिशु को आर्शिवाद देने पंहुच गई। कपिलमुनि भी कोई साधारण बालक नहीं थे।
बल्कि होनवार वीरवन के चिकने होत पात वाली कहावत आगे चलकर चरितार्थ हो उठी। अपने चार भाईयों में काशीनाथ प्रसाद, राधा किशुन प्रसाद एवं कैलाश प्रसाद सहित कपिलमुनि घर के आंगन में खेलते दिखते थे तो उनके माता पिता को राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर के आंगन का दृश्य याद कर भाव विभोर हो उठते। बचपन से निर्भिक कपिलमुनि की शादी महज करीब 18 साल की अवधि में चैंगाई गांव की निवासी रूना के साथ हुई थी। उनकी दो पुत्री संतानों में कमला एवं विमला शामिल है। एक साधारण परिवार के बालक कपिलमुनि परिवार के भरण पोषण के लिए चैक पर खुद के पान का दुकान चलाते थे।
शहीद गोपाल जी-डुमरांव नगर स्थित वार्ड संख्या 17 के बड़का आंगन रमन सिंह की गली के निवासी पिता बचन कहार माता प्यारी देवी के घर रूपी आंगन में पैदा हुए थे। अपने तीन भाईयों में नेपाली जी एवं ललन जी से छोटे थे। शहीद रामदास सोनार- बाबू कुंवर सिंह ने 80 साल की उम्र में अगं्रेजो के खिलाफ तलवार उठाई थी तो शहीद रामदास सोनार ने 60 साल की उम्र में वतन की आजादी के लिए अपने साथी कपिलमुनि के साथ अगली कतार में खड़े हो गए थे।
गरीब परिवार में पैदा हुए रामदास सोनार अपने खानदानी पेशा में फेरी कर परिवार में दो बच्चो में किशुन सोनार एवं छोटकन प्रसाद का भरण पोषण किया करते थे। पिता के शहादत के समय उनके दोनों पुत्र उम्र में काफी छोटे थे। परिवार बेसहारा हो गया। गरीबी इस कदर था कि उनके बच्चों को पुत्रियों की शादी के लिए चैक रोड स्थित पैतृक मकान बेचना पड़ा।
वीर रामदास लोहार- डुमरांव नगर क चैक रोड ब्रहबाबा गली के निवासी रामनारायण लोहार के दो पुत्र भोला लोहार एवं रामदास लोहार थे। भोला लोहार निःसंतान थे। पर रामदास लोहार की एक पुत्री ललिता कुमारी है। जिनकी शादी बाराणसी में हुई है। शहीद रामदास लोहार महज 40 साल की उम्र में ही वतन की आजादी के लिए सीने पर ब्रिटीश हुकूमत के थानेदार देवनाथ की गोली खाकर अमर हो गए। शहीद रामदास लोहार से जुड़े परिजन चैक रोड में आज भी मौजूद है।
गौरतलब हो, अन्य शहीदों की भांति रामदास लोहार का परिवार भी उजड़ गया। हाला कि उनके परिवार से जुड़े अन्य सदस्य जीवित है। वर्तमान पिढ़ी धीरे- धीरे अमर शहीदों की शहादत की ऐतिहासिक कहानी एवं शहीद परिवार को भूलने लगे है। वर्तमान कामकाजी सरकार को अमर शहीद के परिवार की खोज खबर लेने की जरूरत है। अमर शहीदों की गाथा को पाठ्य पुस्तक में शामिल करने की जरूरत है।

आजादी (स्वतंत्रता) के 74 साल (15 अगस्त)....इस वर्ष भारत अपना 74 वा स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। १५ अगस्त १९४७ को हमारा देश ब्...
14/08/2020

आजादी (स्वतंत्रता) के 74 साल (15 अगस्त)....
इस वर्ष भारत अपना 74 वा स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। १५ अगस्त १९४७ को हमारा देश ब्रिटिश शासन से पूरी तरह आज़ाद हुआ था। इस दिन को हम सभी भारतवासी बहुत ही उत्साह और गौरव के साथ मनाते हैं। आज़ादी मिलने के बाद हर वर्ष हम इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन सभी सरकारी कार्यालय जैसे बैंक, पोस्ट ऑफिस आदि में अवकाश होता है। इसके साथ ही सभी स्कूल और ऑफिस में तिरंगा फहराया जाता है।

15 अगस्त 1947 भारत के लिए बहुत भाग्यशाली दिन था। इस दिन अंग्रजों की लगभग 200 वर्ष गुलामी के बाद हमारे देश को आज़ादी प्राप्त हुई थी। भारत को आज़ादी दिलाने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों को अपनी जान गवानी पड़ी थी। स्वतंत्रता सेनानियों के कठिन संघर्ष के बाद भारत अंग्रजों की हुकूमत से आज़ाद हुआ था। तब से ले कर आज तक 15 अगस्त को हम स्वतंत्रता दिवस मानते हैं।

स्वरंत्रता दिवस को भारत में राष्ट्रीय अवकाश होता है। इसके एक दिन पहले भारत के राष्ट्रपति देश के समक्ष संबोधित करते हैं। जिसे रेडियो के साथ कई टीवी चैनेल्स में भी दिखया जाता है। स्वतंत्रता दिवस को हर वर्ष देश के प्रधानमंत्री लाल किला पर तिरंगा फहराते हैं। तिरंगा फहराने के बाद राष्ट्र गान गया जाता है और 21 बार गोलियां चला कर सलामी भी दी जाती है। इसके साथ ही भारतीय सशस्त्र बल, अर्धसैनिक बल और एनएनसीसी कैडेड परेड करते हैं। इस दिन लाल किला से टीवी के डी डी नेशनल चैनल और आल इंडिया रेडियो में सीधा प्रसारण किया जाता है। आतंकवाद के खतरे को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा के कड़े इन्तेजाम भी किये जाते हैं।

केवल देश की राजधानी के साथ देश के अन्य सभी राज्यों में भी मुख्यमंत्री सम्मान के साथ तिरंगा फहराते हैं। 15 अगस्त को हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों को श्रधांजलि दी जाती और उनका सम्मान किया जाता है। इस दिन देशभक्ति के गीत और नारे लगाये जाते हैं। वहीं कुछ लोग पतंग उड़ा कर आजादी का पर्व मनाते है।

भारत में हर वर्ष स्वत्रंता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता का विशेष महत्व होता इस लिए हर भारतीय के लिए यह दिन बहुत महत्व रखता है। 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रजों की परतंत्रता के बाद स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। स्वतंत्रता दिवस को हम राष्ट्रीय त्योहार के रूप में मानते हैं।

कई वर्षों के विद्रोहों के बाद ही हमने स्वतंत्रता प्राप्त की और 14 और 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को भारत एक स्वतंत्र देश बन गया। दिल्ली के लाल किला में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार भारत के झंडे का अनावरण किया था। उन्होंने मध्यरात्रि के स्ट्रोक पर “ट्रास्ट विस्ट डेस्टिनी” भाषण दिया। पूरे राष्ट्र ने उन्हें अत्यंत खुशी और संतुष्टि के साथ सुना। तब से हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर, प्रधान मंत्री पुरानी दिल्ली में लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और जनता को संबोधित करते हैं। इसके साथ ही तिरंगे को 21 तोपों की सलामी भी दी जाती है।

इस दिन सभी सरकारी दफ्तर, कार्यालयों में तिरंगा फहराया जाता है और राष्ट्रगान “जन-गण-मन” गया जाता है। स्कूल, कालेजो में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और मिठाइयां बांटी जाती हैं। मंगल पांडे, सुभाषचंद्र चंद्र बोस, भगतसिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, रानी लक्ष्मीबाई, महात्मा गांधी, अशफाक उल्ला खां, चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु आदि कई स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों को याद किया जाता है।

कुछ भारतीय पतंग उड़ा कर तो कुछ कबूतर उड़ा कर आज़ादी मानते हैं। प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस मनाना भारत के स्वतंत्रता के इतिहास को जिंदा रखता है और आजादी का सही मतलब लोगों को समझाता है।

कोविड-19 के बीच घर पर इस तरह से मनाएं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार आस्था  Written by Megha Sharmaखास बातेंकोविड-19 के...
11/08/2020

कोविड-19 के बीच घर पर इस तरह से मनाएं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार
आस्था Written by Megha Sharma

खास बातें
कोविड-19 के बीच घर पर मनाएं जन्माष्टमी
11 और 12 दोनों दिन मनाई जाएगी जन्माष्टमी
हर राज्य में अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है जन्माष्टमी
नई दिल्ली: Krishna Janmashtami 2020: जन्माष्टमी (Janmashtami 2020) का त्योहार देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है. भारत के अलग-अलग राज्यों में इस त्योहार को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. कहीं जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) के अवसर पर झांकियां लगाई जाती हैं तो वहीं कहीं पर इस मौके पर दही हांडी का काय्रक्रम आयोजित किया है. वहीं कुछ अन्य इलाकों में भगवान श्रीकृष्ण को झूला झुलाकर जन्माष्टमी का यह त्योहार मनाया जाता है.
हालांकि, साल 2020, बाकी के सालों से काफी अलग है. इस साल कोरोनावायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) के फैल जाने के कारण लोगों को हमेशा से अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है और इस वजह से लोग हर साल की तरह इस साल सामान्य तरीके से जन्माष्टमी (Janmashtami) नहीं मना सकते हैं. साथ ही इस साल, लोग अधिक मात्रा में किसी एक जगह पर एकत्रित नहीं हो सकते हैं. इस वजह से कई मंदिरों में भी श्रद्धालुओं के जाने पर प्रतिबंध लगा हुआ है.

ऐसे में अगर आप सोच रहे हैं कि जन्माष्टमी का त्योहार कैसे मनाएं तो चिन्ता न करें क्योंकि हम इस लेख में बताने वाले हैं कि आप किस तरह घर पर धूमधाम से जन्माष्टमी मना सकते हैं.

घर पर मंदिर को और ठाकुर जी के झूले को सजाएं
माना कि इस साल आप घर के बाहर जन्माष्टमी नहीं मना सकते लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप घर पर भी जन्माष्टमी का त्योहार नहीं मना सकते हैं. इसके लिए आपको सबसे पहले अपने घर के मंदिर और भगवान श्रीकृष्ण के झूले को सजाने की जरूरत है.

झूला सजाने की सामग्री
आप अपने बजट के मुताबिक ठाकुर जी का झूला ला सकते हैं और यदि आपके पास पहले से झूला रखा हो तो उसका इस्तेमाल भी कर सकते हैं. इसके लिए आपको फूल, लाल मखमल, या रेशमी कपड़ा, झूला, लाल छोटा तकिया और झालर आदि चाहिए.
ऐसे सजाएं ठाकुर जी का झूला
1. झूले के बाहरी कोनों पर झालर या फिर लेस लगाएं.
2. अब इसमें लाल मखमल या फिर रेशमी कपड़ा बिछाएं.
3. झूले के चारों तरफ फूल सजाएं.
4. अब कान्हा जी का स्थान रखें.
5. कान्हा जी का तकिया और गद्दा रखें.
6. अब कान्हा जी को तैयार कर झूले में बैठा दें.
7. झूले को हिलाने के लिए फूल या फिर कपड़े या धागे से एक रस्सी बांधे.
8. इसी तरह ठाकुर जी को भी सजा लें.

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धनिया प्रसाद और स्वादिष्ट पकवान बनाएं
घरवालों के साथ घर में ही जन्माष्टमी के त्योहार को यादगार बनाने के लिए आप इस मौके पर धनिया प्रसाद बना सकती हैं. इसके लिए आप यूट्यूब पर प्रसाद की रेसिपी भी देख सकती हैं. इसके अलावा आप चाहें तो स्वादिष्ट पकवान भी बना सकती हैं और घर पर धूमधाम के साथ जन्माष्टमी का त्योहार मना सकते हैं.
आप चाहें को घर में रंगोली बना कर भी सजावट कर सकते हैं और त्योहार में चार चांद लगा सकते हैं. गौरतलब है कि इस साल जन्माष्टमी का त्योहार 11 और 12 अगस्त दोनों दिन मनाया जाएगा.

बक्सर के गौरव पद्मभूषण से समान्नित आचार्य शिवपूजन सहाय के जन्मदिवस, 78 वी भारत छोड़ो आंदोलन, बिहार पृथ्वी दिवस एवं आदिवास...
09/08/2020

बक्सर के गौरव पद्मभूषण से समान्नित आचार्य शिवपूजन सहाय के जन्मदिवस, 78 वी भारत छोड़ो आंदोलन, बिहार पृथ्वी दिवस एवं आदिवासी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.....

सन्डे स्पेशल:-  आंदोलन के 78 साल पर विशेष रिपोर्ट.... भारत छोड़ो आंदोलन ने अंग्रेज हुकूमत की नीँव हिला कर रख दी थी! 9 अग...
09/08/2020

सन्डे स्पेशल:- आंदोलन के 78 साल पर विशेष रिपोर्ट....
भारत छोड़ो आंदोलन ने अंग्रेज हुकूमत की नीँव हिला कर रख दी थी!

9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ शुरू हुए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक भूमिका निभाने वाले भारत छोड़ो आंदोलन ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने का काम किया था। यह वह आंदोलन था जिसमें पूरे देश की व्यापक भागीदारी रही थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की मशहूर घटना काकोरी कांड के ठीक सत्रह साल बाद हुये इस आंदोलन ने देखते ही देखते ऐसा स्वरूप हासिल कर लिया कि अंग्रेजी सत्ता के दमन के सभी उपाय नाकाफी साबित होने लगे थे। क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद गांधीजी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फैसला लिया था। अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे के साथ शुरू हुए आंदोलन के थोड़े ही समय बाद गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ताओं ने हड़तालों और तोड़फोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन को जिंदा रखा।

1942 का आंदोलन 1920, 1921, 1930, 1940-41 के आंदोलनों से काफी भिन्न था। इसी कारण सुभाष बाबू ने कहा कि 1942 में पेसिव रजिस्टेन्स के युग का अंत होकर एक्टिव रजिस्टेन्स का सूत्रपात हुआ। राजनारायण मिश्र, महेंद्र चौधरी, लेना प्रसाद, मांतिगिनी, हाजरा, चापेकर बंधुओं, खुदीराम, कन्हाईलाल, करतार सिंह, रामप्रसाद बिस्मित, अशफकाउल्ला, राजेंद्र लाहिड़ी, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे वीरों के अविस्मरणीय योगदान ने आजादी की राह काफी सरल बना दी। दोनों प्रकार के मार्ग से पूरा देश आंदोलित हो उठा। गांधीजी का ‘करो या मरो’ अत्यन्त ही शक्तिशाली मंत्र था। शब्द शास्त्र के कुशल शिल्पकार बापू के मंत्र का भी देशव्यापी असर पड़ा और यह नारा बाद में ध्येय मंत्र बन गया।



6 अगस्त 1925 को ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने के उद्देश्य से बिस्मिल के नेतृत्व में हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ के दस जुझारू कार्यकर्ताओं ने काकोरी कांड किया था, जिसकी यादगार ताजा रखने के लिए पूरे देश में हर साल 9 अगस्त को काकोरी काण्ड स्मृति-दिवस मनाने की परम्परा भगत सिंह ने प्रारंभ कर दी थी और इस दिन बहुत बड़ी संख्या में नौजवान एकत्र होते थे। गांधी जी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत 9 अगस्त 1942 का दिन चुना था। यह आंदोलन गांधी जी की सोची-समझी रणनीति का ही हिस्सा था। दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध में इंग्लैंड को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी से सभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज को दिल्ली चलो का नारा दिया। गांधी जी ने मौके की नजाकत को भांप लिया और 8 अगस्त 1942 की रात में ही बम्बई से अग्रेजों को भारत छोड़ो व भारतीयों को करो या मरो का आदेश जारी किया।



9 अगस्त 1942 के दिन इस आंदोलन को लाल बहादुर शास्त्री सरीखे एक छोटे से व्यक्ति ने एक बड़ा रूप दे दिया। लाल बहादुर शास्त्री ने 1942 में मरो नहीं, मारो का नारा दिया जिसने क्रान्ति की दावानल को पूरे देश में प्रचण्ड किया। 19 अगस्त, 1942 को शास्त्री जी गिरफ्तार हो गए। 900 से ज्यातदा लोग मारे गए, हजारों लोग गिरफ्तार हुए इस आंदोलन की व्यूह रचना बेहद तरीके से बुनी गई थी। चूंकि अंग्रेजी हुकूमत दूसरे विश्व युद्ध में पहले ही पस्त हो चुकी थी और जनता की चेतना भी आंदोलन की ओर झुक रही थी, लिहाजा 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई सत्र में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नाम दिया गया था। हालांकि गांधी जी को फौरन गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे।



9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। गांधी जी के साथ भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खान पैलेस में, डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पटना जेल व अन्य सभी सदस्यों को अहमदनगर के किले में नजरबंद किया गया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 942 लोग मारे गये, 1630 घायल हुए, 18000 डीआईआर में नजरबंद हुए तथा 60229 गिरफ्तार हुए। जयप्रकाश नारायण इस क्रांति के नेता थे। अरूणा आसफ अली व मदनलाल बागडी आदि का इस क्रांति में अविस्मरणीय योगदान है।

अगस्त क्रांति में महिलाओं के योगदान को कमतर नहीं आंका जा सकता। अरूणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी आदि ने आंदोलन में खूब साथ दिया। अच्युत पटवर्धन, रासबिहारी, मोहन सिंह सरीखे क्रांतिकारियों ने अमूल्य योगदान दिया। सारा देश मानो हिल गया। 8 अगस्त 1942 को जिस क्रांति का सूत्रपात हुआ उसने यह जाहिर कर दिया कि अब अंग्रेजी हुकूमत टिक नहीं सकती। दरअसल सन् 1942 की क्रांति पिछले सत्तावन वर्ष से राष्ट्रीय कांग्रेस जो आंदोलन चला रही थी, उसका उफान था। इस उफान ने अंग्रेजों की आंखें खोल दी। इस उफान की पृष्ठभूमि में लोकमान्य तिलक और उनके बाद महात्मा गाँधी ने जो व्यापक जन-जागृति उत्पन्न की थी, जो राष्ट्रीय चेतना जगाई थी, वह थी। यह आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया था। सन 1942 में गांधी जी के नेतृत्व में शुरु हुआ यह आंदोलन बहुत ही सोची-समझी रणनीति का हिस्साा था, इसमें पूरा देश शामिल हुआ। इस आंदोलन का तत्कालीन ब्रिटिश सरकार पर बहुत ज्यादा असर हुआ। इतना की इसे खत्म करने के लिए पूरी ब्रिटिश सरकार को एक साल से ज्यादा का समय लग गया।



भारत का हर नागरिक देश के इस बड़े आंदोलन को समझे, जाने यह जरूरी है। देखा जाए तो यह सही मायने में एक जन आंदोलन था, जिसमें लाखों आम हिंदुस्तानी चाहे वह गरीब हो, अमीर हो, ग्रामीण हो सभी लोग शामिल थे। इस आंदोलन की सबसे बड़ी खास बात यह थी कि इसने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया। युवा कॉलेज छोड़कर जेल की कैद स्वीकार कर रहे थे। सबसे बड़ी बात यह थी कि इस आंदोलन का प्रभाव ही इतना ज्यादा था कि अंग्रेज हुकूमत पूरी तरह हिल गई और उसे इस आंदोलन को दबाने के लिए ही साल भर से ज्यादा का समय लगा। जून 1944 में जब विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था, तो गांधीजी को रिहा कर दिया गया। इस तरह आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत पर व्यापक प्रभाव डाला और इसके कुछ साल बाद ही भारत आजाद हुआ।

बहुला चतुर्थी : कैसे करें व्रत-पूजन जानिये।बहुला चतुर्थी व्रत वर्ष 2020 में शुक्रवार, 07 अगस्त को मनाया जाएगा। इसी दिन स...
07/08/2020

बहुला चतुर्थी : कैसे करें व्रत-पूजन जानिये।

बहुला चतुर्थी व्रत वर्ष 2020 में शुक्रवार, 07 अगस्त को मनाया जाएगा। इसी दिन संकष्टी गणेश चतुर्थी होने के कारण यह व्रत भी किया जाएगा। बहुला चतुर्थी व्रत में गौपूजन को बहुत महत्व दिया गया है।


बहुला चौथ की पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन माताएं कुम्हारों द्वारा मिट्टी से भगवान शिव-पार्वती, कार्तिकेय-श्रीगणेश तथा गाय की प्रतिमा बनवाकर मंत्रोच्चारण के साथ विधि-विधान के साथ इसे स्थापित करके पूजा-अर्चना करने पर मनोवांछित फल की प्राप्ति करती हैं। इस दिन श्रीकष्‍ण भगवान का पूजन भी किया जाता है।

आइए जानें कैसे करें बहुला चतुर्थी व्रत?

बहुला चतुर्थी (चौथ) तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने गौपूजा के दिन के रूप में मान्यता प्रदान की है।

* यह व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

* इस चतुर्थी को आम बोलचाल की भाषा में बहुला चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।

* इस दिन चाय, कॉफी या दूध नहीं पीना चाहिए, क्योंकि यह दिन गौपूजन का होने से दूधयुक्त पेय पदार्थों को खाने-पीने से पाप लगता है, ऐसी मान्यता है।


* जो व्यक्ति चतुर्थी को दिनभर व्रत रखकर शाम (संध्या) के समय भगवान कृष्‍ण, शिव परिवार तथा गाय-बछड़े की पूजा करता है उसे अपार धन, सभी तरह के ऐश्वर्य तथा संतान की चाह रखने वालों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।

* बहुला व्रत माताओं द्वारा अपने पुत्र की लंबी आयु की कामना के लिए रखा जाता है।

इसके पीछे एक यह कथा भी प्रचलित है कि एक बार बहुला नामक गाय जंगल में चरते-चरते काफी दूर जा पहुंची, जहां एक शेर उसे खाने के लिए रोक लेता है। तब बहुला गाय द्वारा अपने भूखे बछड़े को दूध पिलाकर वापस आने की शेर से विनती करने पर शेर उसे छोड़ देता है। तब शेर द्वारा बहुला गाय को छोड़ने पर उसे शेर योनि से मुक्ति मिल जाती है तथा वह अपने पूर्व रूप अर्थात गंधर्व रूप में प्रकट होता है। इसीलिए इस दिन महिलाओं द्वारा दिनभर उपवास रखकर शिव परिवार की पूजा के साथ बहुला नामक गाय की पूजा भी की जाती है।

बहुला चौथ व्रत के संबंध में यह मान्यता है कि इस दिन गाय का दूध एवं उससे बनी हुई चीजों को नहीं खाना चाहिए। इस व्रत को करने से शुभ फल प्राप्त होता है, घर-परिवार में सुख-शांति आती है, मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत करने से परिवार पर आ रहे विघ्न संकट तथा सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं तथा जन्म-मरण की योनि से मुक्ति भी दिलाता है यह व्रत।

किशोर दा, जन्मदिवस पर विशेष.....किशोर कुमार की जीवनी!मित्रो लाखो दिलो पर राज करने वाले Kishore Kumar  किशोर कुमार एक ऐसे...
04/08/2020

किशोर दा, जन्मदिवस पर विशेष.....किशोर कुमार की जीवनी!
मित्रो लाखो दिलो पर राज करने वाले Kishore Kumar किशोर कुमार एक ऐसे गायक थे जिन्होंने अपनी मधुर आवाज से एक इतिहास रच दिया | उनके गानों को आज भी आप भारत के हर घर में सुन सकते है | किशोर कुमार की आवाज आज भी लोगो के दिल में जीवित है जो उन्हें प्यार और दर्द के नगमे सुनाती है | उसी प्यार और दर्द की आवाज के जादूगर की जीवनी से आज आपको रूबरू करवाना चाहते है |

Kishore Kumar किशोर कुमार का जन्म मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में गांगुली परिवार में हुआ था | उनके पिता का नाम कुंजालाल गांगुली और माता का नाम गौरी देवी थे | Kishore Kumar किशोर कुमार का बचपन का नाम आभास कुमार गांगुली था और वो एक बहुत सम्पन्न परिवार से थे |


किशोर कुमार अपने भाई बहनों में सबसे छोटे थे | उनके सबसे बड़े भाई अशोक कुमार एक महान और मशहूर अभिनेता रह चुके थे | अशोक कुमार से छोटी उनकी बहन और उनसे छोटा एक भाई अनूप कुमार था | जब किशोर कुमार फिल्मो में अभिनेता बन चुके थे तब किशोर कुमार बालक थे |

अशोक कुमार बताते है कि उनका बचपन से गला खराब रहता था और लगातार खांसते रहते थे | बचपन में किशोर कुमार के साथ एक घटना हुयी जिसमे उनके पैर की एक अंगुली कट गयी थी | अब दर्द के मारे किशोर कुमार का बुरा हाल हो गया था और उस समय ऐसी दवाईया नही थी जो दर्द को कम कर सके | अब दर्द के कारण दिन के अधिकतर समय रोते रहते थे और दवा देने के बाद चुप होते थे | अब एक महीने तक उनके रोने का सिलसिला युही चलता रहा और इसी कारण बचपन से खासते रहने वाले किशोर कुमार का गला साफ हो गया | उसके बाद उन्होंने गाना शुरू किया |

Kishore Kumar किशोर कुमार बचपन से ही KL सेहगल के फेन थे और उनको ही अपनी प्रेरणा बनाकर गाते रहते थे | उनके बड़े भाई उनको अक्सर चिढाया करते थे कि वो सेहगल की तरह नही गा सकते है | अब किशोर कुमार अपने बड़े भाई की मदद से बॉम्बे टॉकीज में Chorus Singer के रूप में अपने करियर की शुरवात की |

किशोर कुमार पहली बार अपने बड़े भाई की फिल्म शिकारी (1946 ) में नजर आये जहा उनको अभिनय करने का मौका मिला | संगीतकार खेमचंद ने उनको पहले बार फिल्मो में गाना गाने का मौका दिया और उन्होंने 1948 में देवानंद की फिल्म जिद्दी के लिए “मरने की दुआए क्यों मांगू ” गाना गाया | उनके इस गाने के बाद फिल्मो के कई ऑफर आये लेकिन उस समय फिल्मो में आने के लिए ज्यादा सीरियस नही थे |

1949 में वो मुंबई में रहने लग गये और 1951 में आयी आन्दोलन फिल्म में उन्हें मुख्य अभिनेता का किरदार निभाने को मिला | अपने बड़े भाई की वजह से उनको फिल्मो के कई ऑफर आये लेकिन वो गायक बनने में ज्यादा रूचि रखते थे | अशोक कुमार जो उस समय तक एक मंझे हुए अभिनेता बन गये थे ,चाहते थे कि किशोर कुमार भी उनकी तरह अच्छा अभिनेता बने | अब किशोर कुमार अभिनय तो करते थे लेकिन उनको कॉमेडी रोल करना पसंद था |


Kishore Kumar किशोर कुमार ने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नही ली थी इसलिए संगीतकार उनको गाने में लेने के लिए कतराते थे फिर भी एक बार संगीतकारसलील चौधरी ने उनकी आवाज सुनकर उनको गाने के कई मौके दिए थे | इसके बाद किशोर कुमार ने न्यू दिल्ली , आशा , चलती का नाम गाडी , हाफ टिकट , गंगा की लहरें और पड़ोसन जैसी फिल्मो में हास्य अभिनेता का काम किया |

चलती का नाम गाडी उनकी अभिनय के तौर पर एक सफल फिल्म रही जिसमे कार मेकेनिक के रूप में उनके और मधुबाला के बीच रोमांस को दिखाया गया है | इस फिल्म में उनका गाना “एक लडकी भीगी भागी सी ” बहुत लोकप्रिय हुआ था |

संगीतकार SD बर्मन को किशोर कुमार के टैलेंट को समझने और निखारने का श्रेय जाता है जिन्होंने किशोर कुमार को सेहगल की आवाज की नकल करने के बजाय अपनी खुद की धुन निकालने को कहा | उनसे प्रेरित होकर उन्होंने अपनी खुद की कला “युड्ली” को इजाद किया जो उन्होंने विदेशी संगीतकारो से सुन रखा था |

बर्मन ने किशोर कुमार Kishore Kumar को कई फिल्मो में काम दिलवाया जिसमे कुछ प्रमुख फिल्मे मुनीमजी , टैक्सी ड्राईवर , House No. 44, फुन्तूश , नौ दो ग्यारह , पेइंग गेस्ट , गाइड , Jewel Thief , प्रेम पुजारी और तेरे मेरे सपने थी | उनके बर्मन साहब के लिए गाय गानों में “माना जनाब ने पुकारा नही ” “हम है राही प्यार के ” “ऐ मेरी टोपी पलट के आ ” “हाल कैसा है जनाब का ” जैसे लोकप्रिय गाने गाये |

1961 में फिल्म झुमरू में उन्हों निर्माता और निर्देशन का काम भी किया | इसके बाद उन्होंने कई गाने गाये लेकिन उस समय तक उनका ज्यादा नाम नही था | 1969 में उन्होंने आराधना फिल्म में “मेरे सपनो की रानी ” गाना गाया जिसने उनको एक स्टार बना दिया और इसी फिल्म के गाने “रूप तेरा मस्ताना ” के लिए उनको पहला फिल्मफेर अवार्ड भी मिला |

1970 और 1980 का दशक उनके लिए स्वर्णिम दशक रहा था जिसमे उन्होंने मशहूर अभिनेताओ राजेश खन्ना , अमिताभ बच्चन , धर्मेन्द्र ,जीतेंद्र ,संजीव कुमार ,देवानंद ,संजय दत्त ,अनिल कपूर ,दिलीप कुमार ,प्राण ,रजनीकान्त ,गोविंदा और जेकी श्राफ के साथ काम किया |किशोर कुमार ने मो.रफी , मुकेश , लता मंगेशकर , आशा भोंसले जैसे दिग्गज गायकों के साथ काम किया | 13 अक्टूबर 1987 को किशोर कुमार की मुत्यु हो गयी और संयोग से उस दिन उनके बड़े भाई अशोक कुमार का जन्मदिन था |

Kishore Kumar किशोर कुमार ने चार शादिया की थी | उनकी पहली पत्नी गायक और अभिनेत्री रुमा घोष थी और उनकी ये शादी 1950 से 1958 तक चली उनकी दुसरी पत्नी मधुबाला थी जिसके लिए उन्होंने मुस्लिम धर्म परिवर्तन कर दिया था लेकिन उनके परिवार वालो ने कभी मधुबाला को नही अपनाया| 1969 में मधुबाला की मृत्यु हो गयी और उन्होंने योगिता बाली से शादी कर ली जो केवल दो वर्ष 1976 और 1978 तक चली |

किशोर कुमार ने अंतिम शादी लीना चंदावर्कर से की और 1980 से लेकर अपनी मौत तक उनसे शादी बनी रही | उनके दो पुत्र है रुमा घोष से उनको अमित कुमार और लीना चंदावर्कर से सुमित कुमार थे | Kishore Kumar किशोर कुमार की मौत के बाद भी उनके गाने आज भी हमारे दिलो में जीवित है |

रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है, और इसका इतिहास...रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है? रक्षा बंधन आने वाला है. ये सुनकर ही बहु...
03/08/2020

रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है, और इसका इतिहास...

रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है? रक्षा बंधन आने वाला है. ये सुनकर ही बहुत सी बहनों के चेहरे में खुशी झलक जाती है. और हो भी क्यूँ न ये भाई बहन का रिश्ता ही कुछ ऐसा होता है किसे की शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है. ये रिश्ता इतना ज्यादा पवित्र होता है की इसका सम्मान पूरी दुनिभर में किया जाता है.

ऐसे में शायद ही कोई होगा जिसे की ये न पता हो की रक्षा बंधन का अर्थ क्या है और इसे कैसे मनाया जाता है?

भाई और बहन की bonding पूरी तरह से unique होती है. जहाँ पूरी दुनिभर में भाई बहन के रिश्ते को इतना सम्मान दिया जाता हो वहां पर भारत कैसे पीछे हट सकता है. भारत जिसे की संस्कृतियों की भूमि भी माना जाता है. वहीं तो इस रिश्ते को एक अलग ही पहचान दिया गया है. इसकी इतनी ज्यादा महत्व है की इसे एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है.

इस त्यौहार में भाई बहन के प्यार को एक tradition के तरह मनाया जाता है. रक्षा बंधन एक special हिंदू त्यौहार है जिसे की केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुसरे देशों जैसे की Nepal में भी भाई बहन के प्यार का प्रतिक मानकर खूब हर्षउल्लाश से मनाया जाता है. इस पर्व “Raksha Bandhan” को श्रावण माह के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. जो की अक्सर अगस्त के महीने में आता है.

चूँकि इस त्यौहार के विषय में हम सभी को जरुर से जानना चहिये इसलिए आज हमने सोचा की क्यूँ न आप लोगों को रक्षा बंधन के बारे में पूरी जानकारी प्रदान की जाये. इससे आप लोगों को भी भारत के इस महान पर्व के विषय में पता चले साथ में रक्षा बंधन कैसे मनाया जाता है इसकी भी जानकारी मिल सकें. तो फिर बिना देरी के चलिए शुरू करते हैं.

रक्षा बंधन का पर्व दो शब्दों के मिलने से बना हुआ है, “रक्षा” और “बंधन“. संस्कृत भाषा के अनुसार, इस पर्व का मतलब होता है की “एक ऐसा बंधन जो की रक्षा प्रदान करता हो”. यहाँ पर “रक्षा” का मतलब रक्षा प्रदान करना होता है उअर “बंधन” का मतलब होता है एक गांठ, एक डोर जो की रक्षा प्रदान करे.

ये दोनों ही शब्द मिलकर एक भाई-बहन का प्रतिक होते हैं. यहाँ ये प्रतिक केवल खून के रिश्ते को ही नहीं समझाता बल्कि ये एक पवित्र रिश्ते को जताता है. यह त्यौहार खुशी प्रदान करने वाला होता है वहीँ ये भाइयों को ये याद दिलाता है की उन्हें अपने बहनों की हमेशा रक्षा करनी है.

रक्षाबंधन क्यों मनाते है?
ये सवाल की रक्षा बंधन हम क्यूँ मानते हैं आप में से बहुतों के मन में जरुर होगा. तो इसका जवाब है की यह त्यौहार असल में इसलिए मनाया जाता है क्यूंकि ये एक भाई का अपने बहन के प्रति कर्तव्य को जाहिर करता है. वहीँ इसे केवल सगे भाई बहन ही नहीं बल्कि कोई भी स्त्री और पुरुष जो की इस पर्व की मर्यादा को समझते है वो इसका पालन कर सकते हैं.

इस मौके पर, एक बहन अपने भाई के कलाई में राखी बांधती है. वहीँ वो भगवान से ये मांगती है की उसका भाई हमेशा खुश रहे और स्वस्थ रहे. वहीँ भाई भी अपने बहन को बदले में कोई तौफा प्रदान करता है और ये प्रतिज्ञा करता है की कोई भी विपत्ति आ जाये वो अपने बहन की रक्षा हमेशा करेगा.

साथ में वो भी भगवान से अपने बहन ही लम्बी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की मनोकामना करता है. वहीँ इस त्यौहार का पालन कोई भी कर सकता है फिर चाहे वो सगे भाई बहन हो या न हो. अब शायद आपको समझ में आ ही गया होगा की रक्षा बंधन क्यूँ मनाया जाता है.

रक्षा बंधन का इतिहास (History of Raksha Bandhan in Hindi)
राखी का त्यौहार पुरे भारतवर्ष में काफी हर्ष एवं उल्लाश के साथ मनाया जाता है. यह एक ऐसा त्यौहार है जिसमें क्या धनी क्या गरीब सभी इसे मनाते हैं. लेकिन सभी त्योहारों के तरह ही राखी इन हिंदी के भी एक इतिहास है, ऐसे कहानियां जो की दंतकथाओं में काफी लोकप्रिय हैं. चलिए ऐसे ही कुछ रक्षा बंधन की कहानी इन हिंदी के विषय में जानते हैं.

1. सम्राट Alexander और सम्राट पुरु
राखी त्यौहार के सबसे पुरानी कहानी सन 300 BC में हुई थी. उस समय जब Alexander ने भारत जितने के लिए अपनी पूरी सेना के साथ यहाँ आया था. उस समय भारत में सम्राट पुरु का काफी बोलबाला था. जहाँ Alexander ने कभी किसी से भी नहीं हारा था उन्हें सम्राट पुरु के सेना से लढने में काफी दिक्कत हुई.

दिवाली क्यों मनाया जाता है
जब Alexander की पत्नी को रक्षा बंधन के बारे में पता चला तब उन्होंने सम्राट पुरु के लिए एक राखी भेजी थी जिससे की वो Alexander को जान से न मार दें. वहीँ पुरु ने भी अपनी बहन का कहना माना और Alexander पर हमला नहीं किया था.

2. रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ
रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ की कहानी का कुछ अलग ही महत्व है. ये उस समय की बात है जब राजपूतों को मुस्लमान राजाओं से युद्ध करना पड़ रहा था अपनी राज्य को बचाने के लिए. राखी उस समय भी प्रचलित थी जिसमें भाई अपने बहनों की रक्षा करता है. उस समय चितोर की रानी कर्णावती हुआ करती थी. वो एक विधवा रानी थी.

और ऐसे में गुजरात के सुल्तान बहादुर साह ने उनपर हमला कर दिया. ऐसे में रानी अपने राज्य को बचा सकने में असमर्थ होने लगी. इसपर उन्होंने एक राखी सम्राट हुमायूँ को भेजा उनकी रक्षा करने के लिए. और हुमायूँ ने भी अपनी बहन की रक्षा के हेतु अपनी एक सेना की टुकड़ी चित्तोर भेज दिया. जिससे बाद में बहादुर साह के सेना को पीछे हटना पड़ा था.

3. इन्द्रदेव की कहानी
भविस्य पुराण में ये लिखा हुआ है की जब असुरों के राजा बाली ने देवताओं के ऊपर आक्रमण किया था तब देवताओं के राजा इंद्र को काफी क्ष्यती पहुंची थी.

इस अवस्था को देखकर इंद्र की पत्नी सची से रहा नहीं गया और वो विष्णु जी के करीब गयी इसका समाधान प्राप्त करने के लिए. तब प्रभु विष्णु ने एक धागा सची को प्रदान किया और कहा की वो इस धागे को जाकर अपने पति के कलाई पर बांध दें. और जब उन्होंने ऐसा किया तब इंद्र के हाथों राजा बलि की पराजय हुई.

इसलिए पुराने समय में युद्ध में जाने से पूर्व राजा और उनके सैनिकों के हाथों में उनकी पत्नी और बहनें राखी बांधा करती थी जिससे वो सकुशल घर जीत कर लौट सकें.

4. माता लक्ष्मी और राजा बलि की कहानी
असुर सम्राट बलि एक बहुत ही बड़ा भक्त था भगवान विष्णु का. बलि की इतनी ज्यादा भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने बलि के राज्य की रक्षा स्वयं करनी शुरू कर दी. ऐसे में माता लक्ष्मी इस चीज़ से परेशान होने लगी. क्यूंकि विष्णु जी अब और वैकुंठ पर नहीं रहते थे.

अब लक्ष्मी जी ने एक ब्राह्मण औरत का रूप लेकर बलि के महल में रहने लगी. वहीँ बाद में उन्होंने बलि के हाथों में राखी भी बांध दी और बदले में उनसे कुछ देने को कहा. अब बलि को ये नहीं पता था की वो औरत और कोई नहीं माता लक्ष्मी है इसलिए उन्होंने उसे कुछ भी मांगने का अवसर दिया.

इसपर माता ने बलि से विष्णु जी को उनके साथ वापस वैकुंठ लौट जाने का आग्रह किया. इसपर चूँकि बलि से पहले ही देने का वादा कर दिया था इसलिए उन्हें भगवान विष्णु को वापस लौटना पड़ा. इसलिए राखी को बहुत से जगहों में बलेव्हा भी कहा जाता है.

5. कृष्ण और द्रौपधी की कहानी
लोगों की रक्षा करने के लिए Lord Krishna को दुष्ट राजा शिशुपाल को मारना पड़ा. इस युद्ध के दौरान कृष्ण जी की अंगूठी में गहरी चोट आई थी. जिसे देखकर द्रौपधी ने अपने वस्त्र का उपयोग कर उनकी खून बहने को रोक दिया था.

भगवान कृष्ण को द्रौपधी की इस कार्य से काफी प्रसन्नता हुई और उन्होंने उनके साथ एक भाई बहन का रिश्ता निभाया. वहीं उन्होंने उनसे ये भी वादा किया की समय आने पर वो उनका जरुर से मदद करेंगे.

बहुत वर्षों बाद जब द्रौपधी को कुरु सभा में जुए के खेल में हारना पड़ा तब कौरवों के राजकुमार दुहसासन ने द्रौपधी का चिर हरण करने लगा. इसपर कृष्ण ने द्रौपधी की रक्षा करी थी और उनकी लाज बचायी थी.

6. महाभारत में राखी
भगवान कृष्ण ने युधिस्तिर को ये सलाह दी की महाभारत के लढाई में खुदको और अपने सेना को बचाने के लिए उन्हें राखी का जरुर से उपयोग करना चाहिए युद्ध में जाने से पहले. इसपर माता कुंती ने अपने नाती के हाथों में राखी बांधी थी वहीँ द्रौपधी ने कृष्ण के हाथो पर राखी बांधा था.

7. संतोधी माँ की कहानी
भगवान गणेश के दोनों पुत्र सुभ और लाभ इस बात को लेकर परेशान थे की उनकी कोई बहन नहीं है. इसलिए उन्होंने अपने पिता को एक बहन लाने के लिए जिद की. इसपर नारद जी के हस्तक्ष्येप करने पर बाध्य होकर भगवान् गणेश को संतोषी माता को उत्पन्न करना पड़ा अपने शक्ति का उपयोग कर.

वहीँ ये मौका रक्षा बंधन ही था जब दोनों भाईओं को उनकी बहन प्राप्त हुई.

8. यम और यमुना की कहानी
एक लोककथा के अनुसार मृत्यु के देवता यम ने करीब 12 वर्षों तक अपने बहन यमुना के पास नहीं गए, इसपर यमुना को काफी दुःख पहुंची.

बाद में गंगा माता के परामर्श पर यम जी ने अपने बहन के पास जाने का निश्चय किया. अपने भाई के आने से यमुना को काफी खुशी प्राप्त हुई और उन्होंने यम भाई का काफी ख्याल रखा.

इसपर यम काफी प्रसन्न हो गए और कहा की यमुना तुम्हे क्या चाहिए. जिसपर उन्होंने कहा की मुझे आपसे बार बार मिलना है. जिसपर यम ने उनकी इच्छा को पूर्ण भी कर दिया. इससे यमुना हमेशा के लिए अमर हो गयी.

भारत के दुसरे धर्मों में रक्षा बंधन कैसे मनाया जाता है?
चलिए अब जानते हैं की कैसे भारत के दुसरे धर्मों में रक्षा बंधन मनाया जाता है.

१. हिंदू धर्म में – यह त्यौहार हिंदू धर्म में काफी हर्ष एवं उल्लाश के साथ मनाया जाता है. वहीँ इसे भरत के उत्तरी प्रान्त और पश्चिमी प्रान्तों में ज्यादा मनाया जाता है. इसके अलावा भी दुसरे देशों में भी इसे मनाया जाता है जैसे की नेपाल, पाकिस्तान, मॉरिशस में भी मनाया जाता है.

२. Jain धर्म में – जैन धर्म में उनके जैन पंडित भक्तों को पवित्र धागा प्रदान करते हैं.

३. Sikh धर्म में – सिख धर्म में भी इसे भाई और बहन के बीच मनाया जाता है. वहीँ इसे राखाडी या राखरी कहा जाता है.

भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षा बंधन का त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है. यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है. इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बंधन बांधती है, जिसे राखी कहते हैं.

राखी बांधने का शुभ मुहूर्त और पांचांग कब है?
राखी का त्यो हार इस बार 3 अगस्त, यानी स्वतंत्रता दिवस के दिन होने वाला है. इस दिन गुरुवार पड़ रहा है.
यदि हम सुभ मुहूर्त की बात करें तब इस साल रक्षा बंधन पर राखी बांधने मुहूर्त काफी लंबा है. रक्षा बंधन 2020 के दिन बहने अपने भाई को सुबह 05:49 से शाम के 6:01 बजे तक राखी बांध सकती हैं.

रक्षाबंधन कैसे मनाया जाता है?
सभी त्योहारों के तरह ही रक्षा बंधन को मनाने की एक विधि होती है जिसका पालन करना बहुत ही आवश्यक होता है.
चलिए इस विषय में विस्तार में जानते हैं.

रक्षाबंधन के दिन सुबह जल्दी उठकर नहा लेना होता है. इससे मन और शरीर दोनों ही पवित्र हो जाता है. फिर सबसे पहले भगवान की पूजा की जाती है. पुरे घर को साफ कर चरों तरफ गंगा जल का छिडकाव किया जाता है.

अब बात आती है राखी बांधने की. इसमें पहले राखी की थाली को सजाया जाता है. रक्षाबधंन के प्रवित्र त्याहार के दिन पितल की थाली मे ऱाखी ,चंदन ,दीपक ,कुमकुम, हल्दी,चावल के दाने नारियेल ओर मिठाई रखी जाती है.

अब भाई को बुलाया जाता है और उन्हें एक साफ़ स्थान में नीचे बिठाया जाता है. फिर शुरू होता है राखी बांधने की विधि.सबसे पहले थाली के दीये को जलाती है, फिर बहन भाई के माथे पर तिलक चन्दन लगाती है. वहीँ फिर भाई की आरती करती है. उसके बाद वो अक्षत फेंकती हुई मन्त्रों का उच्चारण करती है. और फिर भाई के कलाई में राखी बांधती है. वहीँ फिर उसे मिठाई भी खिलाती है. यदि भाई बड़ा हुआ तब बहन उसके चरण स्पर्श करती है वहीँ छोटा हुआ तब भाई करता है.

अब भाई अपने बहन को भेंट प्रदान करता है. जिसे की बहन खुशी खुशी लेती है. एक बात की जब तक राखी की विधि पूरी न हो जाये तब तक दोनों को भूका ही रहना पड़ता है. इसके पश्चात राखी का रस्म पूरा होता है.

भारत के दुसरे प्रान्तों में रक्षा बंधन कैसे मनाया जाता है?
चूँकि भारत एक बहुत ही बड़ा देश है इसलिए यहाँ पर दुसरे दुसरे प्रान्तों में अलग अलग ढंग से त्योहारों को मनाया जाता है. चलिए अब जानते हैं की रक्षाबंधन को कैसे दुसरे प्रान्तों में मनाया जाता है.

1. पश्चिमी घाट में रक्षाबंधन कैसे मानते है
पश्चिमी घाट की बात करें तब वहां पर राखी को एक देय माना जाता है भगवान वरुण को. जो की समुद्र के देवता है. इस दिन वरुण जी को नारियल प्रदान किये जाते हैं. इस दिन नारियल को समुद्र में फेंका जाता है. इसलिए इस राखी पूर्णिमा को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है.

2. दक्षिण भारत में रक्षाबंधन कैसे मानते है
दक्षिण भारत में, रक्षा बंधन को अवनी अबित्तम भी कहा जाता है. ये पर्व ब्राह्मणों के लिए ज्यादा महत्व रखता है. क्यूंकि इस दिन वो स्नान करने के बाद अपने पवित्र धागे (जनेयु) को भी बदलते हैं मन्त्रों के उच्चारण करने के साथ. इस पूजा को श्रावणी या ऋषि तर्पण भी कहा जाता है. सभी ब्राह्मण इस चीज़ का पालन करते हैं.

3. उत्तरी भारत में रक्षाबंधन कैसे मानते है
उत्तरी भारत में रक्षा बंधन को कजरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. इस पर्व के दौरान खेत में गेहूं और दुसरे अनाज को बिछाया जाता है. वहीं ऐसे मौके में माता भगवती की पूजा की जाती है. और माता से अच्छी फसल की कामना की जाती है.

4. गुजरात में रक्षाबंधन कैसे मानते है
गुजरात के लोग इस पुरे महीने के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग के ऊपर पानी चढाते हैं. इस पवित्र मौके पर लोग रुई को पंच्कव्य में भिगोकर उसे शिव लिंग के चारों और बांध देते हैं. इस पूजा को पवित्रोपन्ना भी कहा जाता है.

5. ग्रंथो में रक्षाबंधन
यदि आप ग्रंथो में देखें तब आप पाएंगे की रक्षाबंधन को ‘पुन्य प्रदायक ‘ माना गया है. इसका मतलब की इस दिन अच्छे कार्य करने वालों को काफी सारा पुन्य प्राप्त होता है.

रक्षाभंदन को ‘विष तारक‘ या विष नासक भी माना जाता है. वहीँ इसे ‘पाप नाशक’ भी कहा जाता है जो की ख़राब कर्मों को नाश करता है.

रक्षा बंधन का महत्व
रक्षाबंधन का महत्व सच में सबसे अलग होता है. ऐसा भाई बहन का प्यार शायद ही आपको कहीं और देखने को मिले किसी दुसरे त्यौहार में. ये परंपरा भारत में काफी प्रचलित है और इसे श्रावन पूर्णिमा के लिए मनाया जाता है.

यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें की बहन भाई के हाथों में राखी बांधकर उससे अपने रक्षा की कसम लेती है. वहीँ भाई का भी ये कर्तव्य होता है की वो किसी भी परिस्थिति में अपने बहन की रक्षा करे. सच में ऐसा पवित्र पर्व आपको दुनिया में कहीं और देखने को न मिले.

राखी का त्यौहार श्रावन के महीने में पड़ता है, इस महीने में गर्मी के बाद बारिस हो रही होती है, समुद्र भी शांत होता है और पुर वातावरण भी काफी मनमोहक होता है.

ये महिना सभी किशानों, मछवारे और सामुद्रिक यात्रा करने वाले व्यवसायों के लिए भी काफी महत्व रखता है. रक्षाबंधन को नारियली पूर्णिमा भी कहा जाता है भारत के सामुद्रिक तट इलाकों में. इस दिन वर्षा के देवता इंद्र और सुमद्र के देवता वरुण की पूजा की जाती है. वहीँ देवताओं को नारियल अर्पण किये जाते हैं और खुशहाली की कामना की जाती है.

इसमें नारियल को समुद्र में फेंका जाता है या कोई दुसरे पानी के जगह में. लोगों का मानना है की प्रभु श्रीराम भी माता सीता को छुड़ाने के लिए इसी दिन अपनी यात्रा प्रारंभ की थी. उन्होंने समुद्र को पत्थरों से निर्मित पुल के माध्यम से पार किया था जिसे की वानर सेना ने बनाया था. नारियल के उपरी भाग में जो तीन छोटे छोटे गड्ढे होते हैं उसे प्रभु शिवजी का माना जाता है.

मछवारे भी अपने मछली पकड़ने की शुरुवात इसी दिन से करते हैं क्यूंकि इस समय समुद्र शांत होता है और उन्हें पानी में जाने में कोई खतरा नहीं होता है.

किशानों के लिए ये दिन कजरी पूर्णिमा होता है. किशान इसी दिन से ही अपने खेतों में गेहूं की बिज बोते हैं और अच्छी फसल की कामना करते हैं भगवान से.

ये दिन ब्राह्मणों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण होता है. क्यूंकि इस दिन वो अपने जनेयु को बदलते हैं मन्त्रों के उचार्रण के साथ. वहीँ वो इस पूर्णिमा को ऋषि तर्पण भी कहते हैं. वहीँ विधि के ख़त्म हो जाने के बाद ये आपस में नारियल से निर्मित मिठाई खाते हैं.

यदि आप भी उन्ही में से एक हैं तब जरुरु से आपको भी इस rakhi 2020 shayari एक बार जरुर देखना चाहिए.

ये लम्हा कुछ ख़ास हैं,
बहन के हाथों में भाई का हाथ हैं,
ओ बहना तेरे लिए मेरे पास कुछ ख़ास हैं
तेरे सुकून की खातिर मेरी बहना,
तेरा भाई हमेशा तेरे साथ हैं ….!!!

ओस की बूंदों से भी प्यारी है, मेरी बहना
गुलाब की पंखुड़ियों से भी नाज़ुक है, मेरी बहना
आसमां से उतारी कोई राजकुमारी है, मेरी बहना
सच कहूँ तो मेरी आँखों की राजदुलारी है, मेरी बहना

बहनों को भाइयों का साथ मुबारक हो
भाइयों की कलाइयों को बहनों का प्यार मुबारक हो
रहे ये सुख हमेशा आपकी जिन्दगीं में
आप सबको राखी का पावन त्यौहार मुबारक हो

तोड़े से भी ना टूटे, ये ऐसा मन बंधन है,
इस बंधन को सारी दुनिया कहती रक्षा बंधन है।

बहन का प्यार किसी दुआ से कम नहीं होता,
वो चाहे दूर भी हो तो गम नहीं होता,
अक्सर रिश्ते दूरियों से फीके पड़ जाते है,
पर भाई-बहन का प्यार कभी कम नहीं होता।

कच्चे धागों से बनी डोर है राखी,
प्यार और मीठी शरारतों की होड़ है राखी,
भाई की लम्बी उम्र की दुआ है राखी,
बहन के प्यार का धुआं है राखी।

सुख की छाँव हो या गम की तपिश,
मीठी सी तान हो या तीखी धुन,
उजियारा हो या अंधकार किनारा हो या बीच धार,
महफ़िल हो या तन्हाई,
हर हाल में तुम्हारे साथ है तुम्हारा भाई।

भैया तुम जियो हजारों साल,
मिले कामयाबी तुम्हें हर बार,
खुशियों की हो तुमपे बौंछार,
यही दुआ करते है हम बार बार।

चंदन की लकड़ी फूलों का हार,
अगस्त का महिना सावन की फुहार,
भाई की कलाई पर बहन का प्यार,
मुबारक हो आपको राखी का त्यौहार।

सावन के महीने में राखी का त्यौहार आता हैं
परिवार के लिए जो कि ढेरों खुशियाँ लाता हैं
रक्षाबन्धन के पर्व की कुछ अलग ही बात हैं
भाई-बहन के लिए पावन प्रेम की सौगात हैं

रेशम के धागों का है यह मजबूत बंधन
माथे पर चमके चावल रोली और चन्दन
प्यार से मिठाई खिलाये बहन प्यारी
देख इसे छलक उठीं आँखों भर आया मन

अगले पांच सालों के लिए रक्षाबंधन उत्सव की तारीख पता करें
चलिए जानते हैं अगले पांच वर्षों तक किस दिन रक्षा बंधन आने वाला है.

१५ अगस्त २०१९ गुरूवार
३ अगस्त २०२० सोमवार
२२ अगस्त २०२१ रविवार
११ अगस्त २०२२ गुरूवार
३० अगस्त २०२३ बुधवार
रक्षा बंधन स्टेटस इन हिंदी
यदि आप भी दुसरो के ही तरह इस रक्षाबंधन में Raksha Bandhan Status in hindi की तलाश कर रहे हैं, तब आपकी तलाश यहीं पर ख़त्म होती है. क्यूंकि यहाँ हमने बहुत से Raksha bandhan status लिखे हुए हैं जिनका इस्तमाल आप आसानी से कर सकते हैं.

वहीं अगर आपको भी अपने भाई या बहन के लिए कोई special status भेजना है तब आप जरुर से बढ़िया staus messages चाहिए जो की आपके feeling को बयान कर सकें.

तो लीजिये एक बहुत ही बेहतरीन collection raksha bandhan quotes की भाई और बहन के लिए. इन्हें पढ़ें और शेयर करना न भूलें.

तोड़े से भी ना टूटे, ये ऐसा मन बंधन हैं,
इस बंधन को सारी दुनिया कहती रक्षा बंधन हैं!

बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा हैं,
तुम खुश रहो हमेशा यही सौगात माँगा हैं !

दुनियाँ की हर ख़ुशी तुझे दिलाऊंगा मैं,
अपने भाई होने का हर फ़र्ज़ निभाऊंगा मैं।

भाई से ज्यादा ना कोई उलझता हैं
ना भाई से ज्यादा कोई समझता हैं ।

रंग बिरंगी राखी बाँधी, फिर सूंदर सा तिलक लगाया,
गोल गोल रसगुल्ला खाकर, भैया मन ही मन मुस्कुराया !

फूलों का तारों का सबका कहना हैं,
दुनिया में सबसे अच्छे मेरे भैया हैं…!!

Raksha Bandhan Quotes In Hindi
कभी हमसे लड़ती है, कभी हमसे झगड़ती है, लेकिन बिना कहे हमारी हर बात को समझने का हुनर भी बहन ही रखती है। हैप्पी रक्षा बंधन !!

कच्चे धागों में समाया हुआ है, ढेर सारा प्यार और अपनापन। भाई और बहन का प्यार लेकर फिर से आया है, सावन।। शुभ रक्षाबंधन !!

बहन कभी नहीं मांगती है, सोने-चाँदी के हार। उसे तो सिर्फ चाहिए, भाई का प्यार-दुलार।। राखी की शुभ कामनायें !!

यह लम्हा कुछ खास है, बहन के हाथों में भाई का हाथ है। ओ बहना तेरे लिए मेरे पास कुछ खास है, तेरे सुकून की खातिर मेरी बहना, तेरा भाई हमेशा तेरे साथ है।। रक्षाबंधन की शुभकामनायें!!

खुश किस्मत होती है, वो बहन जिसके सर पर भाई का हाथ होता है। लडना झगडना फिर प्यार से मनाना, तभी तो यह रिश्ता इतना प्यार होता है। हैप्पी रक्षाबंधन !!

रक्षाबंधन को छोड़कर ऐसा कौन सा त्यौहार जो की भाई बहन के प्यार को दर्शाता है?
रक्षाबंधन के तरह ही एक दूसरा त्यौहार भी है जो की भाई बहन के प्यार को दर्शाता है. इसे त्यौहार का नाम है भाईदूज. इस त्यौहार में भाई बहन के रिश्ते को मजबूती प्रदान करने के लिए मनाया जाता है.

इसमें बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाती है और उनके अच्छे स्वास्थ्य की मनोकामना करती हैं. वहीँ भाई भी सदा अपने बहन के साथ खड़ा होने के प्रतिज्ञा करते हैं. वहीँ दोनों एक दुसरे को मिठाई खिलाते हैं और भाई अपने बहन को तौफे देता है.

लोग अपने पारंपरिक पोषाक धारण करते हैं जिससे की पर्व की गरिमा बनी रहे. वहीँ ये केवल भाई बहन के आपसी मेल मिलाप का ही समय नहीं होता बल्कि पूरा परिवार एक दुसरे के साथ अच्छे से रहते है।

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