Gupshup Rani

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टीवी सीरियल अनुपमा में आने वाला हैंबहुत बड़ा ट्विस्ट....टीवी सीरियल अनुपमा में कहानी लेगी एक नया मोड , होगी छोटी अनु की ...
17/01/2023

टीवी सीरियल अनुपमा में आने वाला हैंबहुत बड़ा ट्विस्ट....

टीवी सीरियल अनुपमा में कहानी लेगी एक नया मोड , होगी छोटी अनु की असली मां की एंट्री । छोटी अनु के असली माता पिता आयेंगे सामने सीरियल की कहानी मे होने वाली ही माया की एंट्री ये माया कोई और नहीं बल्कि होगी छोटी अनु की असली मां इसी के साथ छोटी अनु से जुड़े सारी पुरानी कहानियां सामने आएंगे। इसी के साथ कहानी में अनुज के भाई अंकुश का भी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को भी कहानी में हवा दी जा रही हैं। इसी के साथ कहानी मे आपको नए-नए मोड़ देखने को मिलेंगे।

क्रिसमस डे पर योहवा के लिए प्यारा सा गीत....आज का दिन यहोवा ने बनाया है,  हम उसमें आनंदित हो आनंदित हों  आज का दिन यहोवा...
24/12/2022

क्रिसमस डे पर योहवा के लिए प्यारा सा गीत....

आज का दिन यहोवा ने बनाया है,
हम उसमें आनंदित हो आनंदित हों
आज का दिन यहोवा ने बनाया है,
हम उसमें आनंदित हो आनंदित हों
प्रभु को महिमा मिले, चाहे हो मेरा अपमान
वो बढ़े मैं घटूँ, रहे उसी का ध्यान
प्रभु को महिमा मिले, चाहे हो मेरा अपमान
वो बढ़े मैं घटूँ, रहे उसी का ध्यान
आज का दिन यहोवा ने बनाया है,
हम उसमें आनंदित हो आनंदित हों
स्तुति प्रशंसा करें, क्यों ना कुछ होता रहे
उसको हम भाते रहें, चाहे जहाँ भी रहें
स्तुति प्रशंसा करें, क्यों ना कुछ होता रहे
उसको हम भाते रहें, चाहे जहाँ भी रहें
आज का दिन यहोवा ने बनाया है,
हम उसमें आनंदित हो आनंदित हों
आता हूँ तेरे पास, मुझको है तुझसे आस
मुझको कबूल कर ले, पापों से शुद्ध कर दे
आता हूँ तेरे पास, मुझको है तुझसे आस
मुझको कबूल कर ले, पापों से शुद्ध कर दे
आज का दिन यहोवा ने बनाया है,
हम उसमें आनंदित हो आनंदित हों ।।

लिजिए अब आपके लिए स्वादिष्ट मटन कोरमा बनाने की ये आसन सी विधि:- मटन कोरमा बनाने की सामग्री:- मटन 1 किलोदही 1 कपकाजू का प...
16/12/2022

लिजिए अब आपके लिए स्वादिष्ट मटन कोरमा बनाने की ये आसन सी विधि:-
मटन कोरमा बनाने की सामग्री:-
मटन 1 किलो
दही 1 कप
काजू का पेस्ट 1 कप
प्याज, लहसुन, अदरक का पेस्ट 2 बड़े चम्मच
दालचीनी 4 टुकड़े
तेजपत्ते 2
हरी इलायची 7
बड़ी इलायची 2
करन फूल 2
लवंग 10-12
काली मिर्च 10-15
हरी मिर्च 4
हल्दी पाउडर 1 चम्मच
लाल मिर्च पाउडर 1 चम्मच
जीरा पाउडर 1 चम्मच
धनिया पाउडर 1 चम्मच
हरा धनिया थोड़ा सा
तेल 200 ग्राम
स्वादानुसार नमक
मटन कोरमा बनाने की विधि:-
मटन कोरमा बनाने के लिए सबसे पहले एक गंजी में तेल डालकर धीमी आंच पर गर्म करें। तेल गरम होने लगे तब हरी इलायची, दालचीनी, लॉन्ग, जाय पत्री, तेजपत्ता, काली इलायची, करन फूल, काली मिर्च डालकर 30 सेकंड तक भूनें।
अब प्याज,लहसुन, अदरक का पेस्ट डालकर मिलाते हुए 3 मिनट भूनें। मसाला भून चुका हैं। अब हरी मिर्च और धुला हुआ मटन डालकर मिला दें। मटन मिलाने के बाद 5 मिनट तेज आंच पर पकाना है। अब हल्दी, मिर्च पाउडर, जीरा पाउडर, धनिया पाउडर और स्वादानुसार नमक डालकर चम्मच से अच्छी तरह मिला दें। अब गैस की आंच धीमी करें और दही डालकर मिला दें फिर गंजी पर ढक्कन ढक कर 20-30 मिनट मध्यम आंच पर पकाएं। अब ढक्कन हटाए और देखे की मटन अच्छी तरह नरम हुआ है या नहीं।
अब काजू का पेस्ट डालकर चम्मच से मिला दे। कम आंच पर 10 मिनट पकाये। ग्रेवी के लिए थोड़ा सा पानी मिलाये साथ ही हरा धनिया भी डालकर मिला के गैस बंद कर दे, लिजिए मटन कोरमा की रेसिपी बनकर तैयार है परोसने के लिए। प्लेन रोटी या तंदूरी रोटी के साथ गरमागरम परोसें और खाने का स्वाद ले।

ड्राय फ्रूट समोसा : -आपने कई तरह के समोसों खाए होंगे जैसे आलू समोसा, मटर समोसा लिकिन अब  घर पर ड्राई फ्रूट समोसा रेसिपी ...
14/12/2022

ड्राय फ्रूट समोसा : -आपने कई तरह के समोसों खाए होंगे जैसे आलू समोसा, मटर समोसा लिकिन अब घर पर ड्राई फ्रूट समोसा रेसिपी को बना के देखे।इन्हें आप स्नैक के तौर पर भी उपयोग कर सकते हैं।
ड्राई फ्रूट समोसा बनाने की सामग्री :-
1 बड़ा चम्मच सौंफ़
3 बड़े चम्मच काजू,
2 बड़े चम्मच किशमिश
3 बड़े चम्मच बादाम,
2 बड़े चम्मच चुहारा
2बड़े चम्मच पिस्ता
2 बड़े चम्मच सूखा नारियल, कद्दूकस किया हुआ
2 बड़े चम्मच गुड
3 बड़े चम्मच घी
1 कप मैदा
3 बड़े चम्मच तेल

ड्राई फ्रूट समोसा रेसिपी विधि :-

1. ड्राई फ्रूट समोसा बनाने के लिए सबसे पहले एक पैन में घी गर्म करें, फिर उसमें सुखा नारियल, सौंफ, काजू,बादाम, किशमिश, पिस्ता, छुहारा सभी को धीमी आंच में भून लें ।
2.अब इसे ठंडा होने दें , ठंडा होने पर उसमे गुड पाउडर को
इसमें मिला ले ।
3.अब एक बड़ बर्तन में मैदा में तेल डालकर हाथों से मिक्स करें फिर गुनगुना पानी डालकर आटा गूंद लें।
4. इसके बाद इस आटे को छोटे-छोटे लोई बना लें, फिर बेलन की मदद से गोलाकार छोटी पूरी बेल लें।
5.अब सभी पूरियों को बीच में से काट लें , कटे हुए हिस्से को तिकोना आकार में मोड़ते हुए किनारों को पानी से सील कर लें।
6. इसके बाद तिकोने की शेप में चम्मच की मदद से पहले से तैयार ड्राई फ्रूट की स्टफिंग भरें और पानी लगाकर सील बंद कर दें।
7. अब एक कढ़ाही में तेल गर्म करें, फिर एक-एक कर सभी समोसों को दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंक लें, अब गर्मागर्म सर्व करें।

ऐसे फिल्मे होती ह देखने लायक:-फिल्म कला को लिखा और डायरेक्टर अन्विता दत्त ने किया है अन्विता ने एक चित्रकार और संगीतकार ...
12/12/2022

ऐसे फिल्मे होती ह देखने लायक:-

फिल्म कला को लिखा और डायरेक्टर अन्विता दत्त ने किया है अन्विता ने एक चित्रकार और संगीतकार के रूप में ये फिल्म बनाई है। कला के मुख्य किरदार लता मंगेशकर, के एल सहगल, नूरजहां जैसी सितारों से प्रभावित है. कश्मीर की वादियां और 40 के दशक के ग्रामोफोन म्यूजिक और फिल्म इंडस्ट्री की पॉलिटिक्स को इसमें दिखाया गया है. इंसान सबसे भाग सकता है लेकिन अपने आप से नहीं और कैसे आपका पाप खुद को ही सजा देता है ये इसी पर आधारित हैं ये फिल्म,संगीत,पात्र और चलचित्रों के माध्यम से हमे कहती है।
फिल्म के मुख्य कलाकार:- तृप्ति डिमरी , स्वास्तिका मुखर्जी , बाबिल खान , अमित सियाल , समीर कोचर , गिरिजा ओक , वरुण ग्रोवर , स्वानंद किरकिरे और अनुष्का शर्मा
एक झलक कहानी की:-एक मां को जुड़वा बच्चों की आस है। डॉक्टर उसके हाथ में लाकर बेटी को थमाते है क्योंकि बेटी ने गर्भ में पोषण का ज्यादा हिस्सा ले लिया , तो बेटा बच नहीं पाया। तब मां ने तकिये से बेटी का गला घोंटने की कोशिश की । फिल्म ‘कला’ एक ऐसी मां की कहानी है जिसे अपनी सगी बेटी से ज्यादा गुरुद्वारे से आए एक अनाथ लड़के से प्यार है। और, इतना प्यार कि उसे फिल्मों में गाने का मौका दिलाने के लिए वह उस वक्त के नामचीन गायक चंदन लाल सान्याल के सामने बिछने को तैयार हैं। मां से उसकी उम्मीद के मुताबिक गायिकी न सीख सकी कला मौका पाने का ये हुनर सीख लेती है। और उसे मौका,शोहरत मिल भी जाता हैं। शोहरत की बुलंदियों तक आने पर उसे याद आता है वह लड़का जिसका मौका उसने धोखे से छीना था। इन सब से कला अपनी नजरों में गिरने लगते है। फिल्म ‘कला’ वहां से शुरू होती है। समय में कभी आगे तो कभी पीछे आती जाती ये फिल्म एक बार देखने लायक है।

जाने अष्टलक्ष्मी के बारे में :- धर्मग्रंथों में धन, समृद्धि तथा वैभव की देवी मां  लक्ष्मी को बताया गया है। ये भगवान विष्...
10/12/2022

जाने अष्टलक्ष्मी के बारे में :- धर्मग्रंथों में धन, समृद्धि तथा वैभव की देवी मां लक्ष्मी को बताया गया है। ये भगवान विष्णु की पत्नी और आदिशक्ति स्वरूप कहा गया हैं धन ,समृद्धि, यश, वैभव के लिए लोग इनकी पूजा अर्चना करते हैं लेकिन देवी लक्ष्मी एक नहीं पूरी 8 हैं और यह अलग-अलग माध्यमों से अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं।
माता आदिलक्ष्मी पहला स्वरूप
देवी लक्ष्मी का पहला स्वरूप आदिलक्ष्मी का है इन्हें मूललक्ष्मी, आदिशक्ति भी कहा जाता है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार देवी प्राशक्तिय ने ही सृष्टि के आरंभ में त्रिदेवों को प्रकट किया और इन्हीं से महालक्ष्मी,महाकाली और महासरस्वती ने आकार लिया। महालक्ष्मी ने स्वयं जगत के संचालन के लिए भगवान विष्णु के साथ रहना स्वीकार किया। इन्के द्वारा ही जीवन की उत्पत्ति हुई है। इनके भक्त मोह-माया से मुक्ति होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इनकी कृपा से लोक-परलोक में सुख-संपदा प्राप्त होती है।
माता धनलक्ष्मी दूसरा स्वरूप
देवी लक्ष्मी का दूसरा स्वरूप धनलक्ष्मी है। इन्होंने भगवान विष्णु को कुबेर के कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिए यह रूप धारण किया था। इस देवी का संबंध भगवान वेंकटेश है जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। वेंकटेश रूप में भगवान ने देवी पद्मावती से विवाह के लिए कुबेर से कर्ज लिया। इसी कर्ज को चुकाने में भगवान की सहायता के लिए देवी लक्ष्मी धनलक्ष्मी रूप में प्रकट हुईं। इनके पास धन से भरा कलश है और एक हाथ में कमल फूल है। इनकी पूजा और भक्ति आर्थिक परेशानियों और कर्ज से मुक्ति दिलाती है।
माता धान्यलक्ष्मी तीसरा स्वरूप
धान्य का अर्थ है अन्न संपदा। देवी लक्ष्मी का यह स्वरूप अन्न का भंडार बनाए रखता हैं। इन्हें माता अन्नपूर्णा का स्वरूप भी माना जाता है। यह देवी हर घर में अन्न रूप में विराजमान रहती हैं। इन्हें प्रसन्न करने का एक सरल तरीका है कि घर में अन्न की बर्बादी ना करें। जिन घरों में अन्न का निरादर नहीं होता है उस घर में यह देवी प्रसन्नता पूर्वक रहती हैं और अन्न धन का भंडार बना रहता हैं।
माता गजलक्ष्मी चौथा स्वरूप
देवी लक्ष्मी अपने चौथे स्वरूप में गजलक्ष्मी रूप में पूजी जाती हैं। इस स्वरूप में देवी कमल पुष्प के ऊपर हाथी पर विराजमान हैं। और इनके दोनों ओर हाथी सूंड में जल लेकर इनका अभिषेक करते हैं। देवी की चार भुजाएं हैं जिनमें देवी ने कमल का फूल, अमृत कलश, बेल और शंख धारण किया है। देवी गजलक्ष्मी को कृषि और उर्वरता की देवी माना गया है। यह संतान सुख भी प्रदान करती हैं। कृषिक्षेत्र से जुड़े लोगों और संतान की इच्छा रखने वालों को देवी के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।
माता सन्तानलक्ष्मी पांचवां स्वरूप
माता लक्ष्मी का पांचवां स्वरूप संतान लक्ष्मी का है। माता संतानलक्ष्मी का स्वरूप स्कंदमाता से मिलता-जुलता हैं। इसलिए स्कंदमाता और संतान लक्ष्मी को समान माना गया है। संतान लक्ष्मी माता की चार भुजाएं हैं जिनमें दो भुजाओं में माता ने कलश धारण किया है और नीचे के दोनों हाथों में तलवार और ढ़ाल है। यह देवी भक्तों की रक्षा अपने संतान के समान करती हैं। इनकी पूजा से योग्य संतान की प्राप्ति होती है।
माता वीरलक्ष्मी छठा स्वरूप
अपने नाम के अनुसार यह देवी वीरों और सहसी लोगों की आराध्य हैं। यह युद्ध में विजय दिलाती हैं। इनकी आठ भुजाएं हैं जिनमें देवी ने विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किया हुआ है। माता वीर लक्ष्मी भक्तों की रक्षा करती हैं और अकाल मृत्यु से बचाती हैं। इनकी कृपा से सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
माता विजयलक्ष्मी देवी लक्ष्मी का सातवां स्वरूप
देवी का सातवां स्वरूप विजयलक्ष्मी का है इन्हें जयलक्ष्मी भी कहा जाता है। इस स्वरूप में माता सभी प्रकार की विजय प्रादान करने वाली हैं। अष्टभुजी यह माता भक्तों को अभय प्रदान करती हैं। आप संकट में फंसे हों तो देवी के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।
माता ऐश्वर्यलक्ष्मी आठवां स्वरूप
शिक्षा और ज्ञान से समृद्धि प्रदान करने वाली देवी लक्ष्मी माता का आठवां स्वरूप है। इनका स्वरूप मां दुर्गा से दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी माता से मिलता-जुलता है। इनकी साधना से शिक्षा के क्षेत्र में सफलता और ज्ञान की वृद्धि होती है। इनके साधक अपनी बुद्धि और ज्ञान से प्रसिद्धि पाते हैं।
।।जय मां लक्ष्मी।।

अजवाइन सर्दियों में होता है बेहद फायदेमंद :-  पेट की दिक्कतों में खासतौर से अजवाइन फायदेमंद साबित होता है।अजवाइन एक मसाल...
09/12/2022

अजवाइन सर्दियों में होता है बेहद फायदेमंद :-

पेट की दिक्कतों में खासतौर से अजवाइन फायदेमंद साबित होता है।अजवाइन एक मसाला है जिसका उपयोग अलग-अलग पकवानों को बनाने में किया जाता है। अजवाइन का इस्तेमाल आयुर्वेद में भी किया जाता है।अजवाइन में कई गुण पाए जाते हैं जो सेहत के लिए बहुत अच्छे होते हैं। यह फाइबर, खनिज, विटामिन और एंटी-ऑक्सीडेंट्स से भरपूर हैं जो सेहत से जुड़ी कई दिक्कतों को दूर करता है। अजवाइन का पानी वजन कम करने में सहायक सा है। यह पानी मेटाबॉलिज्म को दुरुस्त करता है जिससे खाना जल्दी एब्जॉर्ब होता है। वहीं, खाली पेट इस पानी को पीने से फैट बर्न होता है। इसे वर्कआउट से पहले भी पिया जा सकता है।
अजवाइन के सेवन से पाचन बेहतर होता है। अपच की दिक्कत में खासतौर से अजवाइन फायदा पहुंचाता है। पेट में होने वाली गड़बड़ी से परेशान लोग खाना खाने के बाद अजवाइन का सेवन करने को कहा जाता हैं। ऐसा करने से गैस की परेशानी दूर होती है।पीरियड्स का दर्द होने पर हल्का गर्म अजवाइन का पानी पिएं अजवाइन के एंटी-इंफ्लेमेटरी और एनेस्थेटिक गुण पीरियड क्रैंप्स से राहत देते हैं।अजवाइन के पानी को खांसी और जुकाम दूर करने के लिए भी पिया जा सकता है. गर्म अजवाइन का पानी एंटी-कफिंग एजेंट कोडेन से भरपूर होता है जो खांसी दूर करता है और बलगम दूर कर गले को भी राहत पहुंचाता है. अजवाइन का पानी आप अजवाइन के दानों को रातभर भिगोकर रखें और सुबह इसे गर्म करके छानकर पी लें।

(कंतारा)फिल्म हो तो ऐसे:- अब हिंदी में 9 दिसंबर को नेटफ्लिक्स पर। एक बार जरूर देखे इसकी लोकप्रियता को देखते हुए इस फिल्म...
09/12/2022

(कंतारा)फिल्म हो तो ऐसे:- अब हिंदी में 9 दिसंबर को नेटफ्लिक्स पर। एक बार जरूर देखे इसकी लोकप्रियता को देखते हुए इस फिल्म के रिलीज के दो हफ्ते बाद ही इसका हिंदी डब वर्जन रिलीज किया गया। ऋषभ सेठी द्वारा लिखीं और फिलमाई गई ये फिल्म 16करोड़ में बनी इस फिल्म ने बॉक्स- ऑफिस में 400.90करोड़ कमा लिए हैं। फिल्म की शुरुआत कर्नाटक के एक राजा से होती है।जो वहां एक स्थानीय देवता पंजुरी की मूर्ति को अपनी मन की शांति के लिए अपने घर लाने के लिए वहां के ग्रामीणों को काफी बड़ी भूमि दान की थी। उस दौरान देवता ने राजा को कहा था कि अगर कभी उसने यह भूमि वापस मांगी, तो देवता उसे माफ नहीं करेंगे। उसके बाद कुछ समय बीतने पर राजा के एक वंशज को लालच आ जाता है और वह भूत कोला स्थानीय पूजा के दौरान देवता बने नर्तक पर सवाल उठाते हुए उनसे दान की हुई जमीन वापस मांगता है। इससे नाराज होकर नर्तक के भीतर आए देवता जंगल में जाकर सशरीर गायब हो जाता हैं। वहीं कुछ दिनों बाद राजा के वंशज की भी अचानक मृत्यु हो जाती है।
फिल्म की असली कहानी सन 1990 में शुरू होती है,जहा राजा के एक और वंशज साहब की नजर उस जमीन पर है। वहीं भैंसे को दौड़ाने के खेल कंबाला का विजेता शिवा (ऋषभ शेट्टी) गांव का रखवाला बना हुआ है। उसके पिता देवता बनकर पहले ही जंगल में गायब हो गए थे। इसलिए उसकी मां उसे लेकर काफी परेशान रहती है। उन्हीं दिनों वहां नए फॉरेस्ट ऑफिसर मुरलीधर की तैनाती होती है, जो कि जंगल को रिजर्व फॉरेस्ट बनाना चाहता है। इसलिए साहब उसे पसंद नहीं करता। वहीं शिवा की गर्लफ्रेंड लीला (सप्तमी गौड़ा) खुद फॉरेस्ट गार्ड है और मुरलीधर की टीम का हिस्सा है। शिवा अपने पूर्वजों को देवता की बदौलत मिली जमीन को साहब से बचा लेता है।

भगवान विष्णु के  दशवे अवतार कल्कि अवतार की कथा:-कल्कि अवतार को भगवान का विष्णु अंतिम अवतार बताया गया है। भगवान विष्णु के...
07/12/2022

भगवान विष्णु के दशवे अवतार कल्कि अवतार की कथा:-
कल्कि अवतार को भगवान का विष्णु अंतिम अवतार बताया गया है। भगवान विष्णु के कल्कि के अवतार का प्रयोजन विश्व कल्याण तथा सतयुग की स्थापना करना होगा है।
भगवान का यह अवतार श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान विष्णु के सभी अवतारों की कथाएँ विस्तार से वर्णित है।
इसके बारहवें स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में भगवान के कल्कि अवतार की कथा विस्तार से दी गई है जिसमें यह कहा गया है कि, सम्भल ग्राम में विष्णुयश नामक श्रेष्ठ ब्राह्मण के पुत्र के रूप में भगवान कल्कि का जन्म होगा।
वह देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर अपनी कराल तलवार से दुष्टों का संहार कर कलयुग का अन्त करेंगे। विष्णु पुराण और भगवत पुराण दोनों में ही कल्कि अवतार का उल्लेख आया हैं।
।।जय श्री हरी।।

भगवान विष्णु के  नववे अवतार बुद्ध अवतार की कथा:-धर्म ग्रंथों के अनुसार गौतम बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार थे परंतु प...
06/12/2022

भगवान विष्णु के नववे अवतार बुद्ध अवतार की कथा:-
धर्म ग्रंथों के अनुसार गौतम बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार थे परंतु पुराणों में वर्णित भगवान बुद्धदेव का जन्म गया के समीप कीकट में हुआ बताया गया है और उनके पिता का नाम अजन बताया गया है। यह प्रसंग पुराण में वर्णित बुद्धावतार का है।
एक समय दैत्यों की शक्ति बहुत बढ़ गई। देवता भी उनके भय से भागने लगे। राज्य की कामना से दैत्यों ने देवराज इन्द्र से पूछा कि हमारा साम्राज्य स्थिर रहे, इसका उपाय क्या है। तब इन्द्र ने शुद्ध भाव से बताया कि सुस्थिर शासन के लिए यज्ञ एवं वेदविहित आचरण आवश्यक है। तब दैत्य वैदिक आचरण एवं महायज्ञ करने लगे, जिससे उनकी शक्ति और बढऩे लगी। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने देवताओं के हित के लिए बुद्ध का रूप धारण किया। बुद्ध दैत्यों के पास पहुंचे और उन्हें उपदेश दिया कि यज्ञ करना पाप है। यज्ञ से जीव हिंसा होती है। यज्ञ की अग्नि से कितने ही प्राणी भस्म हो जाते हैं। भगवान बुद्ध के उपदेश से दैत्य प्रभावित हुए। उन्होंने यज्ञ व वैदिक आचरण करना छोड़ दिया। इसके कारण उनकी शक्ति कम हो गई और देवताओं ने उन पर हमला कर अपना राज्य पुन: प्राप्त कर लिया।
।। जय श्री हरी।।
" भगवान बुद्ध के अवतार से संबंधित बहुत सी कहानियां मिलती हैं यहां हमने हमारे द्वारा खोजी गई प्राप्त जानकारी के आधार पर यह कथा आप तक पहुचाई है ।आप अपने मनोबुद्धि से काम ले।"

अब लीजिए कॉर्न पराठा के मजे :- कॉर्न फाइबर से भरपूर होता है जो हमारे डाइजेशन को बेहतर करने में मददगार होता है। बॉइल्ड कॉ...
05/12/2022

अब लीजिए कॉर्न पराठा के मजे :-
कॉर्न फाइबर से भरपूर होता है जो हमारे डाइजेशन को बेहतर करने में मददगार होता है। बॉइल्ड कॉर्न से लेकर कॉर्न चाट, कॉर्न पकोड़े तो आपने कई बार खाएं होंगे, अब लीजिए कॉर्न पराठा के मजे । सर्दियों के दिनों में कॉर्न पराठा बेहतरीन ऑप्शन बनता हैं तो जानते हैं इसे बनाने की विधि :-
सामग्री
उबले कॉर्न – 2 कप
आटा – 2 कप
प्याज – 1
बेसन – 2 टी स्पून
अदरक-लहसुन पेस्ट – 1 टी स्पून
हरी मिर्च पेस्ट – 1/2 टी स्पून
हल्दी – 1/4 टी स्पून
जीरा पाउडर – 1/2 टी स्पून
हरा धनिया कटा – 2 टेबलस्पून
तेल – जरुरत के हिसाब से
नमक – स्वादानुसार
कॉर्न पराठा बनाने की विधि:-
कॉर्न पराठा बनाने के लिए सबसे पहले भुट्टे को लेकर उबाल लें और उसके दानें एक बाउल में निकाल लें. इसके बाद उन्हें मिक्सर में डालकर दरदरा पीस ले ।अब प्याज को बारीक काट लें। एक थाली में आटा डालकर उसमें थोड़ा सा नमक डालें और थोड़ा-थोड़ा पानी डालते हुए पराठे का आटा गूंथ लें। अब एक कड़ाही में थोड़ा सा तेल डालकर उसे गर्म करें। जब तेल गर्म हो जाए तो उसमें जीरा और बेसन डालकर भूनें। कुछ देर तक इन्हें भूनने के बाद इसमें बारीक कटी प्याज, अदरक-लहसुन पेस्ट, हरी मिर्च पेस्ट डालकर 4-5 मिनट तक पकाएं। जब प्याज नरम होकर लाइट ब्राउन हो जाएं तो उसमें दरदरे पिसे कॉर्न, लाल मिर्च पाउडर, हरी धनिया पत्ती और हल्दी डालकर अच्छे से मिक्स करें और ढककर 4-5 मिनट तक और पकने दें। इसके बाद गैस बंद कर दें। पराठे के लिए स्टफिंग तैयार हो गई है।अब एक नॉनस्टिक पैन/कड़ाही लेकर उसे मीडियम आंच पर गर्म करें।उस पर थोड़ा सा तेल डालकर चारों ओर फैला लें। इस बीच आटे की लोइयां बना लें और एक लोई को लेकर उसे बेल लें।इसके बाद उसके बीच में तैयार स्टफिंग का मसाला रखें और चारों ओर से बंद कर दबाकर गोलाकार या तिकोना बेल लें। इसके बाद पराठे को तवे पर डालकर दोनों ओर से सुनहरा होने तक सेकें, और इसके बाद एक प्लेट में निकाल लें। इसी तरह सारे पराठे तैयार कर लें। नाश्ते के लिए टेस्टी एंड हेल्दी कॉर्न पराठे बनकर तैयार हो चुके हैं। इसे हरी चटनी या दही के साथ सर्व करें।

यह कथा है मोक्षदा एकादशी व्रत की :- इस बार यह एकादशी व्रत 3 दिसम्बर 2022 दिन शनिवार को किया जाएगा। महाभारत के युद्ध का म...
02/12/2022

यह कथा है मोक्षदा एकादशी व्रत की :-
इस बार यह एकादशी व्रत 3 दिसम्बर 2022 दिन शनिवार को किया जाएगा। महाभारत के युद्ध का मैदान था और महाराज युधिष्ठिर के अनुज अर्जुन सामने अपने बुजुर्गों को देखकर उनके विरुद्ध शस्‍त्र उठाने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे, तब भगवान कृष्‍ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। उस दिन मागशीर्ष मास के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी थी। इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है और यह साल की अंतिम एकादशी मानी जाती है। भगवान कृष्‍ण ने इस एकादशी की कथा को खुद युधिष्ठिर को सुनाया। प्राचीन काल में चंपकनगर में एक वैखानस नामक राजा राज्य करते थे। उनके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन करता था। एक रात राजा ने बहुत ही बुरा सपना देखा कि उसके पूर्वज नरक में पड़े हैं। य‍ह देखकर वह बहुत ही दुखी हुए। तब वह अपने राज्‍य के ब्राह्मणों के पास गए और इस सपने के बारे में उनको बताया। राजा बोले, ‘सपने में अपने पूर्वजों को नरक में पड़ा देख मैं बहुत ही दुखी हूं। वे मुझसे उन्‍हें नरक से निकालने की गुहार लगा रहे थे। हे ब्राह्मण देवता यह सब देखकर मैं बहुत ही दुखी हूं और उन्‍हें नरक से बाहर निकालना चाहता हूं। इसके लिए मुझे क्‍या करना चाहिए।’ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे। यह सुनकर राजा मुनि के आश्रम में गए। वहां जाकर बोले, ‘हे स्‍वामी, आपकी कृपा से मेरे राज्‍य में सब कुशल मंगल है, लेकिन मेरे पितर नरक भोग रहे हैं और मैं बेहद असहाय महसूस कर रहा हूं। मैं उन्‍हें किस प्रकार से उस नरक से निकालूं।’राजा की बात सुनकर मुनि श्रेष्‍ठ पर्वत ऋषि बोले, ‘महाराज, मार्गशीर्ष मास के शुक्‍ल पक्ष में जो एकादशी पड़ती है, आप उसका व्रत कीजिए, विधि विधान से पूजा कीजिए और दान पुण्‍य कीजिए तो उस व्रत के प्रभाव से आपके पितर नरक से मुक्‍त हो जाएंगे।’ राजा ने ऐसा ही किया और जल्‍द ही आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी और राजा के पितर नरक से मुक्ति पा गए।
।।जय श्री हरी।।

3 दिसंबर 2022 को मनाई जाएगी गीता जयंती :-गीता में जीवन का सार है, जिसे पढ़कर कलयुग में मनुष्य जाति को सही राह मिलती हैं।इ...
02/12/2022

3 दिसंबर 2022 को मनाई जाएगी गीता जयंती :-

गीता में जीवन का सार है, जिसे पढ़कर कलयुग में मनुष्य जाति को सही राह मिलती हैं।इसके महत्व को बनाये रखने के लिए ही हिन्दू धर्म में गीता जयंती मनाई जाती हैं।भगवत गीता स्वयं श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी। कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन अपने सगो को दुश्मन के रूप में सामने देख, विचलित हो जाता हैं और शस्त्र उठाने से इंकार कर देता हैं। तब स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मनुष्य धर्म एवम कर्म का उपदेश दिया। यही उपदेश भगवत गीता में लिखा हुआ है, जिसमे मनुष्य जाति के सभी धर्मो एवम कर्मो का समावेश हैं।मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन भगवत गीता जयंती के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता हैं। भगवत गीता का जन्म भगवान कृष्ण के श्री मुख से कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था।गीता का जन्म आज से लगभग 5140 वर्ष पूर्व हुआ था।
गीता केवल हिन्दू सभ्यता को मार्गदर्शन नहीं देती यह जाति वाद से कही उपर मानवता का ज्ञान देता हैं। गीता के अठारह अध्यायो में मनुष्य के सभी धर्म एवम कर्म का ब्यौरा हैं। इसमें सत युग से कल युग तक मनुष्य के कर्म एवम धर्म का ज्ञान हैं। गीता के श्लोको में मनुष्य जाति का आधार छिपा हैं। मनुष्य के लिए क्या कर्म हैं उसका क्या धर्म हैं इसका विस्तार स्वयं कृष्ण ने अपने मुख से कुरुक्षेत्र की उस धरती पर कहा है। उसी ज्ञान को गीता के पन्नो में लिखा गया हैं। यह सबसे पवित्र और मानव जाति का उद्धार करने वाला ग्रन्थ हैं।गीता का जन्म मनुष्य को धर्म का सही अर्थ समझाने की दृष्टि से किया गया। हिन्दू धर्म ही एक ऐसा धर्म हैं जिसमे किसी ग्रन्थ की जयंती मनाई जाती हैं, इसका उद्देश्य मनुष्य में गीता के महत्व को जगाये रखना हैं।कलयुग में गीता ही एक ऐसा ग्रन्थ हैं जो मनुष्य को सही गलत का बोध करा सकता हैं।
ऐसे मनाई जाती हैं गीता जयंती:-
इस दिन भगवत गीता का पाठ किया जाता हैं।देश भर के मंदिर में भगवान कृष्ण एवम गीता की पूजा की जाती हैं। भजन एवम आरती की जाती हैं। महाविद्वान इस दिन गीता का सार कहते हैं। कई वाद विवाद का आयोजन होता हैं।जिसके जरिये मनुष्य जाति को इसका ज्ञान मिलता हैं। इस दिन कई लोग उपवास रखते हैं गीता के उपदेश पढ़े एवम सुने जाते हैं। गीता जयंती मोक्षदा एकादशी के दिन आती है, इस दिन विष्णु भगवान की पूजा की जाती हैं ।भगवत गीता का पाठ किया जाता हैं. इससे मनुष्य को मोक्ष का मार्ग मिलता हैं।
।। जय श्री हरी।।

भगवान विष्णु के आठवे अवतार श्री कृष्ण की कथा :- श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवे अवतार हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव,द...
02/12/2022

भगवान विष्णु के आठवे अवतार श्री कृष्ण की कथा :-

श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवे अवतार हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव,द्वारकाधीश आदि नामों से उनको जाना जाता है। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तृत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस उपदेश के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान प्राप्त हैं।
श्री कृष्ण वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे। देवकी कंस की बहन थी। कंस एक अत्याचारी राजा था। उसने आकाशवाणी सुनी थी कि देवकी के आठवें पुत्र द्वारा वह मारा जाएगा। इससे बचने के लिए कंस ने देवकी और वसुदेव को मथुरा के कारागार में डाल दिया। मथुरा के कारागार में ही भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उनका जन्म हुआ। कंस के डर से वसुदेव ने नवजात बालक को रात में ही यमुना पार गोकुल में यशोदा के यहाँ पहुँचा दिया। गोकुल में उनका लालन-पालन यशोदा और नन्द बाबा ने माता-पिता के रूप मे किया। बाल्यावस्था में ही उन्होंने बड़े-बड़े कार्य किए जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। अपने जन्म के कुछ समय बाद ही कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी पूतना का वध किया , उसके बाद शकटासुर, आदि राक्षस का वध किया। बाद में गोकुल छोड़कर नंद गाँव आ गए वहां पर भी उन्होंने कई लीलाएं की जिसमे गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला आदि मुख्य है। इसके बाद मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न संकटों से उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और रणक्षेत्र में ही उन्हें उपदेश दिया। 124 वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की।
।।जय श्री हरी।।

भगवान विष्णु के सातवे अवतार श्री राम अवतार की कथा :-रामायण और रामचरित मानस हमारे पवित्र ग्रंथ हैं। तुलसीदास जी ने रामचरि...
01/12/2022

भगवान विष्णु के सातवे अवतार श्री राम अवतार की कथा :-

रामायण और रामचरित मानस हमारे पवित्र ग्रंथ हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की है तथा आदिकवि वाल्मीकि जी ने महाकाव्य रामायण लिखी हैं।
एक बार की बात है। चार सनत्कुमारों ने वैकुंठ के द्वारपाल जय-विजय को तीन जन्म के लिए राक्षस हो जाने का श्राप दिया था.
उनकी मुक्ति तभी होनी थी, जब भगवान विष्णु अवतार लेकर उनका वध कर देते यही उपाय था दोनों हिरण्यकशिपु-हिरण्याक्ष, रावण-कुंभकर्ण और शिशुपाल-वक्रदंत के रूप में जन्म लिया था.
भगवान विष्णु ने नृसिंह-वाराह, श्रीराम और श्रीकृष्ण का अवतार लेकर तीनों को मुक्ति दी । श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं ये अयोध्या के राजा थे। वे वाल्मीकि के महाकाव्य रामायण में मुख्य पात्र हैं महाकाव्य में, भगवान राम को एक आदर्श राजा और एक आदर्श व्यक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। वह भारत में ज्यादा तर घरों मे पूजे जाने वाले हिंदू देवता हैं। रामायण के अनुसार, भगवान राम की कथा कुछ इस प्रकार है।
भगवान राम राजा दशरथ और कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। उन्होंने राजा जनक की पुत्री राजकुमारी सीता जी से विवाह किया। स्वयंवर में सीता के भावी वरों को एक विशाल धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने की चुनौती दी गई। विभिन्न राज्यों के राजकुमारों ने कोशिश की लेकिन धनुष को हिलाने में वे सफल नहीं हुए।जैसा कि भगवान राम भगवान विष्णु के अवतार थे, उन्होंने धनुष को उठाया और अपने एक हाथ से उसे बांध दिया।
किंवदंती है कि भगवान राम की सौतेली माँ, कैकेयी अपने बेटे भरत को अयोध्या का राजा बनाना चाहती थीं, और इसलिए उन्होंने भगवान राम को अयोध्या से चौदह वर्ष वनवास दे दिया। भगवान राम के साथ माता सीता और भाई लक्ष्मण भी वनवास में उनके साथ ही गए।
एक दिन माता सीता द्वारा स्वर्ण मृग की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान राम वन मे चले गए । भगवान राम की चीख सुन माता ने लक्ष्मण को वन में जाने को कहा तब लक्ष्मन ने आश्रम के बाहर एक रेखा बनाई और उनके आने तक माता को आश्रम में ही रहने की विनती की। तभी छल से सीता का हरण रावण ने कर लिया। रावण एक ज्ञानी लेकिन एक दुष्ट राजा था। उसने भगवान राम से बदला लेने के लिए सीता को बंदी बना लिया। भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण और हनुमान की सहायता से माता सीता को बचाने के लिए रावण की सेना पर हमला किया। एक लंबी और भयंकर लड़ाई के बाद, भगवान राम रावण को मारने में सफल हुए और अपनी पत्नी के साथ फिर से मिले। अपना वनवास पूरा करने के बाद, भगवान राम अपनी पत्नी और भाई के साथ वापस अयोध्या लौट आए और उन्हें राजा के रूप में उनका राज तिलक किया गया । उनके शासन को राम राज्य खा गया। क्योंकि राजा राम के राज में सभी को उचित न्याय प्राप्त होता था।आज भगवान राम अपने साहस, सदाचार, वीरता और अपनी पत्नी और अयोध्या के प्रति पूर्ण समर्पण के लिए पूजनीय हैं। यहां हमे अपको यह कथा संक्षेप में बताई है आप इस बारे में विस्तार से जानने के लिए रामायण या रामचरित मानस का अध्धयन कर सकते हैं।
।।जय श्री हरी।।

आलू के पराठे ऐसे बनाए :-एक ऐसी फूड जिसे हर कोई पसंद करता है. खासतौर पर बच्चों का तो ये काफी फेवरेट फूड आइटम है. आलू का प...
30/11/2022

आलू के पराठे ऐसे बनाए :-

एक ऐसी फूड जिसे हर कोई पसंद करता है. खासतौर पर बच्चों का तो ये काफी फेवरेट फूड आइटम है. आलू का पराठा आसानी से और जल्दी बनने वाली रेसिपी है।इसे कभी भी बनाकर खाया जा सकता है लंच ,डिनर आप जब चाहें तब आलू का पराठा एक अच्छा विकल्प होता है। विंटर सीजन में आलू का पराठा खाने का मजा ही कुछ और है। आलू का पराठा बनाना काफी आसान है और उसे बनाने के लिए मुख्य तौर पर आलू का ही इस्तेमाल किया जाता है।
आलू का पराठा बनाने के लिए सामग्री
तेल
आटा – 2 कप
उबले आलू – 5
प्याज कद्दूकस – 2
हरा धनिया – 1 टेबल स्पून
अदरक-लहसुन पेस्ट – 1 टी स्पून
हरी मिर्च पेस्ट – 1 टी स्पून
लाल मिर्च पाउडर – 2 टी स्पून
हल्दी – 1/4 टी स्पून
आलू का पराठा बनाने की विधि
आलू का पराठा बनाने के लिए सबसे पहले एक बर्तन लें और उसमें आटा डालकर पहले 2 टेबल स्पून तेल डालें फिर स्वादानुसार नमक डाल कर मिलाए आटे के साथ तेल अच्छी तरह से मिक्स हो जाए तो थोड़ा-थोड़ा पानी डालते हुए आटे में मिलाएं और उसे मुलायम गूंथ लें। अब आटे पर थोड़ा सा तेल लगाएं और उसे 10 मिनट के लिए ढंककर रख दें.
अब आलू के पराठे के लिए आलू की चटनी तैयार करने के लिए एक बर्तन लें और उसमें पहले आलू डालकर उन्हें अच्छी तरह से मैश कर लें । इसके बाद उसमें प्याज, हरी मिर्च , अदरक-लहसुन का पेस्ट,धनिया पत्ती, मिर्च पाउडर, हल्दी और नमक डालकर अच्छी तरह से मिक्स कर दें।
इसके बाद आटे की लोई बना लें और एक लोई लेकर पहले उस पर सूखा आटा (पलेथन) लगा लें और उसे हल्के हाथों से बेले. रोटी को ज्यादा पतला नहीं बेलना ह. जब रोटी बिल जाए तो उसके बीच में आलू के मसाले की स्टफिंग रख दें. उसे चारों ओर से मोडते हुए पैक करें. उसके बाद एक्स्ट्रा आटे को निकाल दें. अब तैयार लोई को हथेली से दबा कर फिर बेलें।
अब गैस पर तवा रखें और फ्लेम को मीडियम पर करें. इसके बाद आलू के पराठे को तवे पर डालें. कुछ देर तक एक तरफ पकाने के बाद आलू के पराठे को पलट दें।अब उसमें तेल लगाएं और पराठे को सेकने के बाद फिर पलट दें और दूसरी तरफ तेल लगाएं. जब पराठा गोल्डन ब्राउन हो जाए तो वह सिक चुका है। उसे प्लेट में उतार ले. इसी तरह सारी लोईयों और स्टफिंग को मिलाकर आलू के पराठे तैयार करें।
नोट:-ब्रेकफास्ट में आलू के पराठों को अचार, चटनी या फिर दही के साथ सर्व करें.

भगवान विष्णु के छठवे अवतार भगवान परशुराम की कथा :-अक्षय तृतीया पर शुभ और मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं। इसी शुभ दिन पर भ...
30/11/2022

भगवान विष्णु के छठवे अवतार भगवान परशुराम की कथा :-
अक्षय तृतीया पर शुभ और मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं। इसी शुभ दिन पर भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है। भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठवे अवतार हैं। उन्हें भगवान विष्णु का उग्र अवतार माना जाता है। उन्होंने श्रीराम से पहले धरती पर अवतार लिया था. कहा जाता है कि उन्हें अपने पिता द्वारा चिरंजीवी रहने का वरदान मिला था । भागवान परशुराम जी त्रेता युग में एक ब्राह्मण ऋषि के यहाँ जन्मे थे। ये महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र हैं। विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम जी का मूल नाम राम था किन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया। तभी से उनका नाम परशुराम हो गया। परशुराम को चिरंजीवी माना जाता है यानी कि वे आज भी जीवित हैं. उनका जिक्र रामायण और महाभारत दोनों काल में किया गया है. कहा जाता है कि कलयुग के अंत में जब भगवान विष्णु के कल्कि अवतार जन्म लेंगे, तब उनकी कहते के लिए भगवान परशुराम पुनःआएंगे।
महर्षि जमदग्नि को माता रेणुका से पाँच पुत्र हुये जिनके नाम थे- रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्*वानस और परशुराम। एक बार रेणुका सरितास्नान के लिये गई। दैवयोग से चित्ररथ भी वहाँ पर जल-क्रीड़ा कर रहा था। चित्ररथ को देख कर रेणुका का चित्त चंचल हो उठा। इधर जमदग्नि को अपने दिव्य ज्ञान से इस बात का पता चल गया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने बारी-बारी से अपने पुत्रों को अपनी माँ का वध कर देने की आज्ञा दी। रुक्मवान, सुखेण, वसु और विश्*वानस ने माता के मोहवश अपने पिता की आज्ञा नहीं मानी, किन्तु परशुराम ने पिता की आज्ञा मानते हुये अपनी माँ का सिर काट डाला। अपनी आज्ञा की अवहेलना से क्रोधित होकर जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़ हो जाने का शाप दे दिया और परशुराम से प्रसन्न होकर वर माँगने के लिये कहा। इस पर परशुराम बोले कि हे पिताजी! मेरी माता जीवित हो जाये और उन्हें अपने मरने की घटना का स्मरण न रहे। परशुराम जी ने यह वर भी माँगा कि मेरे अन्य चारों भाई भी पुनः चेतन हो जायें और मैं युद्ध में किसी से परास्त न होता हुआ दीर्घजीवित रहूँ। जमदग्नि जी ने परशुराम को उनके माँगे वर को पूरी प्रसन्नता से दे दिये।
इस घटना के कुछ काल पश्चात एक दिन जमदग्नि ऋषि के आश्रम में कार्त्तवीर्य अर्जुन आये। जमदग्नि मुनि ने कामधेनु गौ की सहायता से कार्त्तवीर्य अर्जुन का बहुत आदर सत्कार किया। कामधेनु गौ की विशेषतायें देखकर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने जमदग्नि से कामधेनु गौ की माँग की किन्तु जमदग्नि ने उन्हें कामधेनु गौ को देना स्वीकार नहीं किया। इस पर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने क्रोध में आकर जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया और कामधेनु गौ को अपने साथ ले जाने लगा। किन्तु कामधेनु गौ तत्काल कार्त्तवीर्य अर्जुन के हाथ से छूट कर स्वर्ग चली गई और कार्त्तवीर्य अर्जुन को बिना कामधेनु गौ के वापस लौटना पड़ा। जब परशुराम वहाँ आये तो उनकी माता छाती पीट-पीट कर विलाप कर रही थीं। अपने पिता के आश्रम की दुर्दशा देखकर और अपनी माता के दुःख भरे विलाप सुन कर परशुराम जी ने इस पृथ्वी पर से क्षत्रियों के संहार करने की शपथ ले ली। पिता का अन्तिम संस्कार करने के पश्चात परशुराम ने कार्त्तवीर्य अर्जुन से युद्ध करके उसका वध कर दिया। इसके बाद उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से रहित कर दिया और उनके रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र में पाँच सरोवर भर दिये। अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोक दिया। अब परशुराम ब्राह्मणों को सारी पृथ्वी का दान कर महेन्द्र पर्वत पर तप करने हेतु चले गए ।
।।जय श्री हरी।।

भगवान विष्णु के पंचम अवतार वामन अवतार की कथा-वामन का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को हुआ था। श्रीमद भगवत गी...
29/11/2022

भगवान विष्णु के पंचम अवतार वामन अवतार की कथा-

वामन का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को हुआ था। श्रीमद भगवत गीता में उल्लेखित भगवान विष्णु के पांचवे और त्रेता युग के पहले अवतार थे। ये भगवान विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मनुष्य के रूप में प्रकट हुए।
पौराणिक कथा के अनुसार वामन ने राजा बलि का घमंड तोड़ने के लिए तीन कदमो में तीनों लोक नाप दिया था। एक बार देवताओं और दैत्यों के बीच भीषण युद्ध हुआ। जिसमें दैत्य पराजित हुए तथा जीवित दैत्य मृत दैत्यों को लेकर अस्ताचल की ओर चले गए। दैत्यराज बलि इंद्र वज्र से मृत्यु को प्राप्त हो गए। तब दैत्यराज गुरु ने अपनी मृत संजीवनी विद्या से दैत्यराज बलि को जीवित कर दिया। साथ ही अन्य दैत्यों को भी जीवित और स्वस्थ कर दिया। इसके बाद गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया और अग्नि से एक दिव्य बाण और कवच प्राप्त किया । दिव्य बाण की प्राप्ति के बाद राजा बलि स्वर्ग लोक पर एक बार फिर आक्रमण करने के लिए चल दिए। असुर सेना को आते हुए देख देव राज इंद्र समझ गए कि इस बार देवतागंण असुरों का सामना नहीं कर पाएंगे। ऐसे में देवराज इंद्र सभी देवताओं के साथ स्वर्ग छोड़कर चले गए। परिणास्वरूप स्वर्ग पर राजा बलि का अधिपत्य स्थापित हो गया और दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि के स्वर्ग पर अचल राज के लिए अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया।
देवराज इंद्र को राजा बलि की इच्छा के बारे में पहले से ही ज्ञात था और यह भी पता था कि यदि राजा बलि का यज्ञ पूरा हो गया तो दैत्यों को स्वर्ग से कोई नहीं निकाल सकता। ऐसे में सभी देवी देवता काफी चिंतित हो गए और श्री हरि भगवान विष्णु के शरंण में जा पहुंचे। इंद्र देव ने अपनी पीड़ा बताते हुए श्री हरि से सहायता के लिए विनती की। देवताओं को परेशान देख भगवान विष्णु ने सहायता का आश्वासन दिया और कहा कि मैं वामन रूप में देवराज इंद्र की माता अदिति के गर्भ से जन्म लूंगा। जिसके बाद भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भगवान विष्णु ने माता अदिति के गर्भ से धरती पर जन्म लिया।
उनके ब्रह्मचारी रूप को देखकर सभी ऋषि मुनि व देवी देवता प्रसन्न हो गए। तथा सभी ऋषि मुनियों ने अपना आशीर्वाद दिया और वामन एक बौने ब्राम्हण का वेष धारण कर राजा बलि के पास जा पहुंचे। उनके तेज से यज्ञशाला प्रकाशित हो उठी। यह देख बलि ने उन्हें आसन पर बिठाकर आदर सत्कार किया और भेंट मांगने को कहा। इसे सुन वामन ने अपने रहने के लिए तीन पग भूमि देने का आग्रह किया। हालांकि दैत्यराज गुरु शुक्रचार्य को पहले ही आभास हो गया था और उन्होंने राजा बलि को वचन देने के लिए मना किया था। लेकिन राजा बलि नहीं माने और उन्होंने ब्राह्मण को वचन दिया क‍ि तुम्हारी यह मनोकामना जरूर पूरी करेंगे। बलि ने हाथ में गंगा जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया।
संकल्प पूरा होते ही वामन का आकार बढ़ने लगा और विकराल रूप धारण कर लिया। उन्होंने एक पग में पृथ्वी, दूसरे पग में स्वर्ग तथा तीसरे पग में दैत्यराज बलि ने अपना मस्तक प्रभु के चरणों के आगे रख दिया। अपना सबकुछ गंवा चुके बलि को अपने वचन से ना हटते देख भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंने दैत्यराज को पाताल का अधिपति बना दिया।
।। जय श्री हरी।।

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