Subah Savere

Subah Savere A Daily News Magazine... Subah Savere is not a run-of-the-mill newspaper; it is a daily newsmagazine. Umesh Trivedi, Mr. Arun Patel, Mr. Girish Upadhyay, Mr.
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It is an attempt to bring thought and analysis back into the news and break the clutter of mere news-reporting. For some decades now, journalism has taken a turn in the wrong direction; the 'market' has reduced the profession to a profit-making business. And this has stripped journalism of the social concern and responsibility that it should assume. Subah Savere is a solemn resolve to give journal

ism a positive direction. This venture has been undertaken by a team of experienced journalists like Mr. Ajay Bokil, Mr. Pankaj Shukla and Mr. Hemant Pal. A line-up of eminent journalists and thinkers has been assembled from across the country to contribute to the daily and initiate a dialogue with the reader and society at large. It is the endeavour of the ‘Subah Savere’ team to reintroduce values of authenticity, credibility and dialogue into the daily news-cycle; to provide a space for all aspects on issues that matter to all of us. A number of renowned columnists from the state as well as from the national stage will provide in-depth analysis to peel the layers of meaning from within the daily dose of routine reportage.

‘Subah Savere’ is a campaign to reinvigorate the public dialogue every single morning! So go pick a copy and join the campaign!

29/01/2024
गांधी के पुण्य-स्मरण में अमृत-कणों के साथ जहर के छींटे भी..- उमेश त्रिवेदी- लेखक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक हैं- सम्पर्...
30/01/2023

गांधी के पुण्य-स्मरण में अमृत-कणों के साथ जहर के छींटे भी..

- उमेश त्रिवेदी
- लेखक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक हैं
- सम्पर्क: 9893032101
- यह आलेख दैनिक समाचार पत्र सुबह सवेरे के 30 January 2023 अंक में प्रकाशित हुआ है

आज तीस जनवरी है, महात्मा गांधी की पुण्य तिथि। जिसे हम शहीद दिवस के रूप मे याद करते हैं और समूचा देश महात्मा गांधी सहित स्वतंत्रता संग्राम में शहादत देने वाले सभी स्वतंत्रता सेनानियों को दो मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजलि अर्पित करता है। 30 जनवरी,1948 को बिड़ला हाउस में प्रार्थना पर जाते समय नाथूराम गोडसे ने अपनी पिस्तौल से तीन गोलियाँ दागकर महात्मा गांधी का सीना छलनी कर दिया था। देश की आजादी के इतिहास की यह घटना भी 75 साल पुरानी हो चुकी है।
देश आजादी का अमृत-महोत्सव मना रहा है, लेकिन महात्मा गांधी के पुण्य स्मरण में अमृत कणों के साथ जहर के छींटे भी उड़ रहे हैं। जहर का यह जिक्र इसलिए है कि देश में नाथूराम गोडसे के जघन्य कृत्य को वैचारिक-मंच देने की सक्रिय और सुनियोजित कोशिशें बढ़ने लगी हैं। गोडसे के महिमा-मंडन के प्रायोजित प्रयास वर्षों से जारी हैं। गोडसे के महिमा-मंडन पर सत्ता-पक्ष की खामोशी ही महात्मा गांधी के बारे में सरकार की गंभीरता को शंकास्पद बनाती है। गांधी के खिलाफ गोडसे की बातें पहली भी होती थीं, लेकिन वो सब कुछ गोडसे के इर्द-गिर्द हिन्दुत्व का आभामंडल संजोने की राजनीतिक सक्रियता का हिस्सा नहीं होता था। अब हालात बदल गए हैं। ताजा उदाहरण राजकुमार संतोषी की फिल्म ’गांधी-गोडसे-एक युद्ध’ है, जो हाल में प्रदर्शित हुई है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर गांधी-गोडसे की काल्पनिक-जिरह को संजोकर गोडसे के तर्कों को फिल्मी-मंच प्रदान करने का यह उपक्रम उतना सहज-सरल नहीं है, जितना कि बताया जा रहा है।
लेकिन, यह भी सच है कि लोग जितना महात्मा गांधी का विरोध करते हैं, गांधी उतने ही प्रासंगिक महसूस होने लगते हैं। उनकी वैचारिकता उतनी ही मजबूत होती जा रही है। ठेट देहातों से लेकर महानगरों तक,भारत की सियासत और रवायत में कहीं प्रतीकों के रूप में, कहीं विचार के स्तर पर, कहीं कर्म की जमीन पर महात्मा गांधी की मूरत नजर आती है। इतिहास में महात्मा गांधी के अहिंसक स्वतंत्रता-संग्राम के समानान्तर आजादी के दूसरे आंदोलन की इबारत लिखने की कोशिशें धुंधलके पैदा करने में भले ही कामयाब हो जाएं, लेकिन उनके योगदान को कमतर करने में शायद ही कामयाब हो सकेंगी।
जिंदगी का एक भी पहलू ऐसा नहीं है, जिसे महात्मा गांधी के विचारों ने जिसको छुआ नहीं हो। महात्मा गांधी सार्वजनिक जीवन में विश्वसनीयता हासिल करने का सबसे सरल और सहज उपलब्ध ताबीज हैं। जाहिर है कि राजनेताओं को मजबूरी में यह ताबीज पहनना पड़ता है।
महात्मा गांधी हिन्दुस्तान के मिजाज में उस हस्तक्षेप और भरोसे का नाम है, जिसकी जरूरत हर उस मौके पर महसूस होती है, जब देश का संवर्द्धन करने वाले लोकतांत्रिक मूल्यों पर कुठाराघात होता है। आजादी के बाद पचहत्तर सालों से जारी राजनीतिक क्षरण और अवमूल्यन के बावजूद देश में गांधी विचार का वृहताकार अस्तित्व और जीवंत उपस्थिति लोकतंत्र को दीपांकित करती महसूस होती है। बापू को याद करने की सियासी औपचारिकताएं बीते समय के शिलालेखों से ज्यादा भारत के भविष्य के तकाजों में गांधी की प्रासंगिकता को रेखांकित करती हैं।
महात्मा गांधी की प्रभावशीलता बहुआयामी है। उनकी वैचारिक रचनाशीलता में राष्ट्र, समाज और व्यक्ति, सबके लिए अनगिन संभावनाएं झिलमिल करती हैं। महात्मा गांधी देश के जहन में जिंदा हैं। समाज के हर संघर्ष में उनके विचार अगुवाई करते महसूस होते हैं, व्यक्ति के हर सामाजिक और राजनीतिक मति-भ्रम में वो समाधान की पताका के साथ रूबरू होते हैं, मनुष्यता की हर कसौटी पर आगाह करते हैं। देश, समाज और व्यक्तियों के बीच महात्मा गांधी की सघन उपस्थिति, वैचारिक सक्रियता और समर्थन अदभुत है। शायद यही गांधी-विचार की सबसे बड़ी तदबीर और ताकत है। इसीलिए इतिहास के पन्नों पर गांधी कभी हारते नजर नहीं आते हैं। वो हमेशा जीतते हैं,जो उन्हें हराना चाहते हैं, वो उनसे भी जीतते हैं और जो उनके साथ चलते हैं, वो उनको भी नहीं हारने देते हैं।
1932 में साहित्य का नोबल पुरूस्कार जीतने वाली जानी-मानी साहित्यकार पर्ल एस. बक ने महात्मा गांधी के बारे में कहा था कि- वे सही थे, वे जानते थे कि वे सही हैं, हम सब भी जानते हैं कि वो सही थे। उनकी हत्या करने वाला भी जानता था कि वो सही हैं। हिंसा की अज्ञानता चाहे जितनी लंबी चले, वे यही साबित करते हैं कि गांधी सही थे। विडम्बना यह है कि भारत की राजनीति में वस्तुनिष्ठता से सोचने और आकलन का चलन सूखने लगा है। सत्ता-लोलुप राजनेता सिंहासन हासिल करने के लिए जिन हथकण्डों का इस्तेमाल कर रहे हैं, उस हथकण्डों में नाथूराम गोडसे को सही मानना और ठहराना भी शामिल है। सत्ता हासिल करने की कूट-संरचनाओं के इस दौर में काला-जादू इसी को कहते हैं।
बहरहाल, महात्मा गांधी के बारे में पर्ल एस. बक का यह कथन गोडसे के समर्थकों के लिए भले ही शर्मिंदगी का सबब नहीं बने, लेकिन वर्तमान काल की प्रतिकूलताओं में गांधी की प्रासंगिकता को मजबूत करता है। फिलवक्त हर तरह की आंतरिक-हिंसा झेल रहे भारत में गांधी-मार्ग ज्यादा प्रासंगिक और आवश्यक प्रतीत होता है। दलित-अत्याचार, महिला-उत्पीड़न, और सांप्रदायिक हिंसा के इस दौर में गांधी की नसीहतें सबस ज्यादा कारगर औजार साबित हो सकती हैं।

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