02/05/2024
उधर गाजा में बच्चे मर रहे हैं
महज़ अखबार में हम पढ़ रहे हैं
हाँ कत्लेआम है मग़र जायज़ है
उफ वो कैसे नैरेटिव गढ़ रहे हैं
मैं शर्मसार हूँ कि नुमाइंदे हमारे
कातिल मुल्क के कसीदे पढ़ रहे हैं
न इज़राइल कहीं है न फलस्तीन कहीं
लड़ाई मज़हबी है जो दोनों लड़ रहे हैं
रहनुमा महफूज़ रहते आए हैं हमेशा
लोग आम हैं जो रोज सूली चढ़ रहे हैं
सपने में चीखती हैं भूखे बच्चों की रुहें
मेरी नींद के टांके वहीं उधड़ रहे हैं।।